हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 106 ☆ सब याद है ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी की  एक भावप्रवण कविता – सब याद है।  इस भावप्रवण रचना के लिए श्री विवेक रंजन जी की लेखनी को नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 105☆

?  सब याद है  ?

 

प्रथम पूज्य गणेश

एक  गिनती की शुरुवात

अ पहला अक्षर

सब याद है

 

पहली फिल्म जो देखी थी थियेटर में

होश में किया पहला सफर

साइकिल पर वह पहली सवारी

सब याद है

 

वह पहली रात जब

घर से दूर

होस्टल में गया था पढ़ने

पहली नौकरी

पहली तनख्वाह

वो पहली हवाई यात्रा

सब याद है

 

वह सिहरन

जब तुम्हें छुआ था पहली बार

वह पहला चुम्बन

उन्माद

भूलता कहां है

पहला प्यार

सब याद है

 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 83 – लघुकथा – नियति ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है  “लघुकथा  – नियति।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 83 ☆

☆ लघुकथा – नियति ☆ 

“सुन बेटा! आम मत लाना। मगर, मेरे घुटने दर्द कर रहे हैं, उसकी दवा तो लेते आना,”  बुजुर्ग ने घुटने पकड़ते हुए कहा।

“हुँ! ” बेटे ने बेरुखी से जवाब दिया, ” दिन भर बिस्तर पर पड़े रहते हो। घुटने दर्द नहीं करेंगे तो क्या करेंगे?  यूं नहीं कि थोड़ा घूम लिया करें। हाथपैर सही हो जाए।”

बुजुर्ग चुप हो गए मगर पास बैठे हुए दीनदयाल ने कहा, ” सुनो बेटा। यह आपके पिताजी हैं। बचपन में…..”

“हां हां, जानता हूं अंकल,”  कहते हुए बेटे ने अपने पुत्र का हाथ पकड़ा और बोला,” चल बेटा!  तुझे बाजार घुमा लाता हूं।”

यह देखसुन कर दीनदयाल से रहा नहीं गया और अपने बुजुर्ग दोस्त से बोला, ” क्या यार! क्या जमाना आ गया? ऐसे नालायक बेटों से उनका पुत्र क्या सीखेगा?”

“वही जो मैंने अपने बाप के साथ किया था और आज मेरा बेटा मेरे साथ कर रहा है। कल उसका बेटा वही करेगा,”  कह कर बिस्तर पर लेटे हुए बुजुर्ग दोस्त अपने हाथों से अपनी आंखों को पौंछ कर अपने घुटने की मालिश करने लगा।

 

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

31-05-2021

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र
ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 70 ☆ श्रीमद्भगवतगीता दोहाभिव्यक्ति – नवम अध्याय ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे । 

आज से हम प्रत्येक गुरवार को साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत डॉ राकेश चक्र जी द्वारा रचित श्रीमद्भगवतगीता दोहाभिव्यक्ति साभार प्रस्तुत कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें । आज प्रस्तुत है  नवम अध्याय

फ्लिपकार्ट लिंक >> श्रीमद्भगवतगीता दोहाभिव्यक्ति 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 70 ☆

☆ श्रीमद्भगवतगीता दोहाभिव्यक्ति – नवम अध्याय ☆ 

स्नेही मित्रो श्रीकृष्ण कृपा से सम्पूर्ण श्रीमद्भागवत गीता का अनुवाद मेरे द्वारा दोहों में किया गया है। आज श्रीमद्भागवत गीता का नवम अध्याय पढ़िए। आनन्द लीजिए

– डॉ राकेश चक्र

परम् गुह्य ज्ञान

श्रीकृष्ण भगवान ने अर्जुन को परम गुह्य ज्ञान के बारे में इस प्रकार बताया

 

हे अर्जुन मेरी सुनो, तुम हो प्रिय निष्पाप।

गुह्यज्ञान-अनुभूति से, मिट जाते सब पाप।। 1

 

सब ज्ञानों में श्रेष्ठ है, गोपनीय यह तथ्य।

करे शुद्ध मन-आत्मा, अविनाशी यह कथ्य।। 2

 

श्रद्धा-निष्ठा जो रखें, वे ही मुझको पायँ।

भक्ति भाव से रहित नर, जनम-मरण घिर जायँ।। 3

 

व्याप्त रूप अव्यक्त यह, माया का संसार।

रहें जीव मुझमें सभी, मैं ही सबका सार।। 4

 

जीवों का पालन करूँ, मेरी सृष्टि अपार।

मैं कण-कण में व्याप्त हूँ, यही योग का सार।। 5

 

प्रबल वायु रहती गगन, श्वांसों का है सार।

सब जीवों में मैं रहूँ, मेरी सृष्टि अपार।। 6

 

अंत समय कल्पांत में, प्राणी करें प्रवेश।

कल्प होय आरंभ जब, देता नया सुवेश।। 7

 

सकल जगत ये सृष्टि ही, मेरे सभी अधीन।

प्रलय-सृष्टि सब मैं करूँ,देता दृष्टि नवीन।। 8

 

कर्म मुझे बाँधें नहीं, कर्म स्वयं आधीन।

भौतिक कर्मों से विरत, मैं हूँ श्रेष्ठ प्रवीन।। 9

 

मैं सबका अध्यक्ष हूँ, सब ही रहें अधीन।

प्राणी सचराचर सभी, बनें-मिटें सब लीन।। 10

 

मनुज रूप प्रकटा कभी, मूर्ख करें उपहास।

दिव्य स्वभावी रूप का, अर्जुन कर तू भास।। 11

 

मोह ग्रस्त जो जन रहें, चित आसुरी  प्रभाव।

जाल मोह-माया घिरे,रखें न श्रद्धा-भाव।। 12

 

मोह मुक्त जो भी रहें, उन पर देव प्रभाव।

मैं अविनाशी ईश हूँ, प्रेम रखूँ सद्भाव।। 13

 

भक्ति भाव अर्पित करें, और करें नित ध्यान।

मेरी महिमा जो भजें, कर देता कल्यान।। 14

 

ज्ञान, यज्ञ-शीलन करें, भजें सदा प्रभु नाम।

विविधा रूपों में भजें, करते मुझे प्रणाम।। 15

 

कर्मकांड हूँ यज्ञ का, तर्पण करते लोग।

मैं ही आहुति अग्नि-घृत, मैं पितरों का  भोग।। 16

 

मात-पिता हूँ पितामह, चेतन हूँ ब्रह्मांड।

ज्ञेय-शुद्ध ओंकार हूँ, सब वेदों का प्राण।। 17

 

पालक-स्वामी-धाम हूँ, शरण लक्ष्य प्रिय मित्र।

मसृष्टि -प्रलय संहार हूँ, मैंअविनाशी पित्र।। 18

 

ताप-शीत में दे रहा, वर्षा करता मित्र।

मृत्यु और अमरत्व मैं, सत्य-असत का पित्र।। 19

 

मैं वेदों का सोमरस, करें अर्चना लोग।

मैं ही देता स्वर्ग हूँ, देवों-का-सा भोग।। 20

 

पुण्य कर्म जब क्षीण हों, हटे स्वर्ग का भोग।

इन्द्रिय सुख चाहे मनुज,जनम-मरण  का योग।। 21

 

जो अनन्य भावी भजें, मेरा दिव्य स्वरूप।

इच्छा-रक्षा मैं करूँ, मैं ही सबका  भूप।। 22

 

जो जन पूजें देव को, भक्ति पावनी छोड़।

ऐसा कर गलती करें, पर मैं लेता ओढ़।। 23

 

सब यज्ञों का भोक्ता, स्वामी-दिव्या भूप।

जो जन मुझे न जानते, गिर जाते वह कूप।। 24

 

जो जैसी पूजा करें, वैसा ही फल पायँ।

देव-भूत जो पूजते, शरण उन्हीं की जायँ।। 25

पितरों की पूजा करें, जाएँ पितरों पास।

जो मेरी पूजा करें, पाए मम उर वास।।

 

पत्र-पुष्प-फल प्रेम से, अर्चन करते लोग।

जल को भी स्वीकारता, प्रेमिल श्रद्धा-भोग।। 26

 

अर्जुन जो भी तुम करो, अर्पित करना मित्र।

दान-तपस्या जो करो, ये ही प्रीत पवित्र।। 27

 

जो अर्पित मुझको करें, सारे अपने कृत्य।

भव सागर से मुक्त हों, मोक्ष मिले ध्रुव सत्य ।। 28

 

 पक्षपात या द्वेष की,करता कभी न बात।

मैं रहता समभाव हूँ, भक्ति करो दिन-रात।। 29

 

हो जघन्य यदि पाप भी, करें भक्ति औ’ योग।

तर जाते ऐसे मनुज, मिट जाते सब शोग।। 30

 

शक्ति मिले मम् भक्ति से, मिले शान्ति का योग।

भक्ति करे मेरी सदा, रहता सुखी निरोग।। 31

 

जो आते मेरी शरण, स्त्री-वैश्या-शूद्र।

परमधाम पाते वही, कभी न रहते छूद्र।। 32

 

भक्त हृदय धर्मात्मा, पाएँ मेरा लोक।

प्रेम-भक्ति मम् लीन जो, मिट जाते सब शोक।। 33

 

नित मम चिंतन तुम करो, करो भक्ति औ’ प्यार।

मुझको सब अर्पण करो, वंदन बारंबार।। 34

 

इति श्रीमद्भगवतगीतारूपी उपनिषद एवं ब्रह्मविद्या तथा योगशास्त्र विषयक भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन संवाद में ” राजविद्याराजगुह्ययोग ” नामक नवाँ अध्याय समाप्त।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – सूर संगत ☆ सूर संगत~मानवी जीवन आणि संगीत.. ☆ सुश्री अरूणा मुल्हेरकर

सुश्री अरूणा मुल्हेरकर

? सूरसंगत ?

☆ सूर संगत~ मानवी जीवन आणि संगीत ☆ सुश्री अरूणा मुल्हेरकर ☆ 

मानवी जीवन आणि संगीत यांचे अतूट नाते आहे.

टॅहॅं टॅहॅं असे एका लयीत गातच, (आपण त्याला रडणे म्हणतो) बालक  जन्माला येते.

रांगायला लागते तेही एका विशिष्ठ तालात. आई बाळाला निजण्यासाठी अंगाईगीत गाऊन मांडीवर थोपटते ते एका ठराविक लयीत.बाळ मोठे होत होत पहीली पावले टाकू लागते तेव्हा त्याच्या पायातील पैंजण रुणुझुणु नाद करतात आणि बाळ कसे ठुमकत ठुमकत चालत असते. अशावेळी स्मरते ते तुलसीदासांचे भजन”ठुमक चलत रामचंद्र।बाजत पैंजनिया”

ह्रदयाची धडधड,शरीरांतून रक्ताची एका विशिष्ट लयीत प्रवाहीत होण्याची क्रिया हे ईश्वरनिर्मीत संगीतच आहे. एखाद्या तरूणीच्या मादक कटाक्षाने मनाची झालेली थरथर

संगीतांतील एखाद्या भावविव्हळ तानेसारखीच असते. जीवन म्हणजे चैतन्य आणि जेथे चैतन्य तेथे संगीत हा निसर्ग नियमच आहे. पाण्याची खळखळ, वार्‍याची फडफड, समुद्राची गाज, पानांची सळसळ, पक्षांचा कलरव, कोकिळेचे कूजन, भ्रमराचे गूंजन हे जर शांतपणे ऐकले की असे लक्षात येते की या सर्वांमध्ये एक नाद, ताल, लय आहे, निबद्धता आहे, संगीत आहे.

मानवाच्या जीवनांत संगीत म्हणजे कंठातून उत्पन्न होणारे सुरांचे प्रकटीकरणगायन, स्वरवाद्यांतून उत्पन्न होणारे सादरीकरणस्वरवादन आणि पदन्यास व हस्तमुद्रांद्वारे केलेला भावनाविष्कार~नर्तन.

जीवनाचे हे तारू भवसागरांतून पार करीत असतांना प्रत्येक मानवाचे गायन, वादन, नर्तन चालूच असते.

टाळ वाजवत, लेझीमांच्या तालावर तोंडाने हरिनामाचा गजर करत आषाढी कार्तिकीला पंढरीला निघाले वारकरी नाचत  असतो. देवळांतून चालत असलेली भजन कीर्तने, आरत्या टाळ्या वाजवत गात असतो. मशीदीतून आलेली बांग,चर्चमधून घंटानाद आपण ऐकत असतो.

लग्न,मुंज,वाढदिवस,साठीसमारंभ,धार्मिक कृत्ये साजरी करतांना सनईसारखी मंगलवाद्ये असावीच लागतात.

गणपतीची अथवा इतर कोणत्याही विजयाच्या मिरवणूकीत ढोल ताशा हवाच.

माणसाला गजराबरोबरच शांतीचीही तितकीच आवश्यकता आहे. भरकटलेल्या, अशांत मनाला शांति मिळते ती स्वरांनीच. लतादिदींच्या मधूर लकेरीत, जसराजजींच्या मोहमयी आलापीत, किशोरीताईंच्या चपल तानेत, अनूप जलोटांच्या भजनांत, शोभा गुर्टूंच्या श्रृंगारीक दादरा/ठुमरीत, जगजित सिंग/पंकज ऊधास यांच्या गझलेत किंवा रवीशंकराच्या जादुभर्‍या सतारीत, अमजदअलींच्या सरोद वादनात अथवा शिवकुमार शर्मांच्या छेडलेल्या संतुराच्या तारांत ज्या दिव्य आनंदाचा लाभ होतो, मनःशांति मिळते ती अनुभूति शब्दांत वर्णिताच येत नाही.

स्वरलहरींचा प्रभाव किती विलक्षण आहे हे शास्त्रानेही मान्य केले आहे. अनेक व्याधींवर विविध रागांतील स्वर औषधांसारखे गुणकारी आहेत हे शास्त्राद्वारे मान्य झाले आहे.

सुलभ प्रसूतीसाठी अडाण्याचे झंझावाती स्वर फार परिणामकारक आहेत हे सिद्ध झाले आहे. आॅपरेशन थिएटरमध्ये बरेच डाॅक्टर आॅपरेशन चालले असताना मंद वाद्यसंगीत लावतात. आॅफीसेसमध्येही कामाचा ताण हलका करण्यासाठी आणि कार्यक्षमता वाढविण्यासाठी पार्श्वसंगीताचा उपयोग करण्याची प्रथा हळूहळू रुजू लागली आहे.

माणूसच काय पण पशुपक्षी व फुलापानांवरही संगीताचा पोषक प्रभाव पडू शकतो हे शास्त्रीय प्रयोगाने सिद्ध होत आहे.

संगीताविना जीवन नाही हेच खरे.

©  सुश्री अरूणा मुल्हेरकर

डेट्राॅईट (मिशिगन) यू.एस्.ए.

≈संपादक–श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य # 92 – नदी है विश्राम में…. ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

वरिष्ठ साहित्यकार एवं अग्रज श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण कविता   ‘नदी है विश्राम में….। )

☆  तन्मय साहित्य  # 92  ☆

 ☆ नदी है विश्राम में…. ☆

नदी है विश्राम में

बहना हुआ है बंद

गीत का भटकन

विलोपित हो रहे हैं छन्द।

 

चिलचिलाती रेत

नौकाएँ हुई गुमसुम

अब न पूजा अर्चना

अक्षत कपूर कुमकुम,

आरती के स्वस्ति स्वर

होने लगे हैं मंद

गीत का भटकन……

 

मछलियाँ बेचैन

कछुए स्वयं में खोये

वन्य पशु-पक्षी तृषित

दृग अश्रु से धोये,

तटीय पौधे फूल पत्ते

हो रहे निर्गन्ध

गीत का भटकन

विलोपित हो रहे हैं छंद।

 

आग उगले सूर्य

चेहरे हो गए बदरंग

कैद दोपहरी घरों में

बदलते से ढंग,

सूर्य सागर अवनि में

नवसृजन के अनुबंध

गीत का भटकन

विलोपित हो रहे हैं छंद।

 

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – यात्रा संस्मरण ☆ कुमायूं #75 – 13 – जिम कार्बेट से भोपाल ☆ श्री अरुण कुमार डनायक

श्री अरुण कुमार डनायक

(श्री अरुण कुमार डनायक जी  महात्मा गांधी जी के विचारों केअध्येता हैं. आप का जन्म दमोह जिले के हटा में 15 फरवरी 1958 को हुआ. सागर  विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के उपरान्त वे भारतीय स्टेट बैंक में 1980 में भर्ती हुए. बैंक की सेवा से सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृति पश्चात वे  सामाजिक सरोकारों से जुड़ गए और अनेक रचनात्मक गतिविधियों से संलग्न है. गांधी के विचारों के अध्येता श्री अरुण डनायक जी वर्तमान में गांधी दर्शन को जन जन तक पहुँचाने के  लिए कभी नर्मदा यात्रा पर निकल पड़ते हैं तो कभी विद्यालयों में छात्रों के बीच पहुँच जाते है. पर्यटन आपकी एक अभिरुचि है। इस सन्दर्भ में श्री अरुण डनायक जी हमारे  प्रबुद्ध पाठकों से अपनी कुमायूं यात्रा के संस्मरण साझा कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है  “कुमायूं  – 13 – जिम कार्बेट से भोपाल ”)

☆ यात्रा संस्मरण ☆ कुमायूं #76 – 13 – जिम कार्बेट से भोपाल ☆ 

जिस दिन हमें जिम कार्बेट , रामनगर से भोपाल के लिए वापस निकलना था, उस रोज मैं अकेला ही सडक के किनारे  घने जंगलों को निहारता हुआ,शुद्ध हवा को अपने फेफड़ों में भरते हुए कोसी नदी के किनारे- किनारे  जंगल के रास्ते गिर्जिया देवी के मंदिर तक का भ्रमण को निकल पडा । यह मेरा नेचर वाक था बिना किसी गाइड के । इस सड़क मार्ग में  जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान के सागौन के  जंगल एक ओर हैं तो सड़क के उस पार अल्मोडे से उद्गमित कोसी नदी कल-कल करती बहती है। रास्ते में झूला पुल है जो शायद सौ वर्ष से भी अधिक पुराना होगा। गिर्जिया देवी के विषय में जो जानकारी मैंने ग्रामीणों से जानी वह भी  कम रोमांचक नहीं है । यह स्थल इतना अच्छा था कि मैं सपिरवार वापसी के पूर्व इस स्थान पर पुन: आया ।

रामनगर से 10 कि०मी० की दूरी पर ढिकाला मार्ग पर गर्जिया  गाँव के पास कोसी  नदी के बीचों-बीच ही कहना चाहिए देवी का मंदिर है। गिर्जिया तो लगता है अपभ्रंश है हिम पुत्री गिरिजा का। देवी गिरिजा जो गिरिराज हिमालय की पुत्री तथा संसार के पालनहार भगवान शंकर की अर्द्धागिनी हैं, कोसी (कौशिकी) नदी के मध्य एक  ऊँचे टीले पर यह मंदिर स्थित है। अनेक दन्तकथाएं इस  स्थान  से जुडी हुई हैं । पूर्व में  इस मन्दिर विराजित  देवी को उपटा देवी (उपरद्यौं) के नाम से जाना जाता था । जनमानस की मान्यता हैं कि वर्तमान गर्जिया मंदिर जिस टीले में स्थित है, वह कोसी नदी की बाढ़ में कहीं ऊपरी क्षेत्र से बहकर आ रहा था। मंदिर को टीले के साथ बहते हुये आता देख भैरव देव द्वारा उसे रोकने के प्रयास से कहा गया- ठहरो, बहन ठहरो, यहां पर मेरे साथ निवास करो, तभी से गर्जिया में देवी उपटा में निवास कर रही है। इस मन्दिर में मां गिरिजा देवी की शांति स्वरूपा मूर्ति है और श्रद्धालु उन्हें नारियल, लाल वस्त्र, सिन्दूर, धूप, दीप आदि चढ़ा कर मनोकामना पूर्ण होने का आशीर्वाद मांगते है ।  नव विवाहित स्त्रियां यहां पर आकर अटल सुहाग की कामना करती हैं। निःसंतान दंपत्ति संतान प्राप्ति के लिये माता में चरणों में झोली फैलाते हैं। मनोकामना पूर्ण होने पर   श्रद्धालु घण्टी या छत्र चढ़ाते हैं ।

अगले दिन कार्तिक पूर्णिमा थी और इस पावन अवसर  पर माता गिरिजा देवी के दर्शनों एवं पतित पावनी कौशिकी (कोसी) नदी में स्नानार्थ भक्तों की भारी संख्या में भीड़ उमड़ने वाली थी । हमें तो वापस आना था सो नीचे बाबा भैरव की पूजा कर हम अपने गंतव्य की ओर चल दिए ।

जब जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान से लौट रहे थे उसी दिन ख़बरें आ रही थी की उत्तराखंड के किसान भी आन्दोलन में शामिल होने दिल्ली की ओर कूच कर रहे हैं । हम दिल्ली पहुँचने को लेकर कुछ चिंतित हुए और हमारे वाहन चालक भी रास्ते भर अपने स्त्रोतों से स्थिति की जानकारी ले रहे थे और हमें चिंतामुक्त कर रहे थे । मोगा में एक ढाबे पर किसानों का हूजूम दिखा। वे सब उधमसिंह नगर उत्तराखंड से ट्रेक्टर पर दिल्ली जाने रवाना हुए हैं। रास्ते भर हमें कोई बीस ऐसे ट्रैक्टर दिखाई दिए जिनकी ट्राली काली त्रिपाल से ढकी थी और आगे काला झंडा लहरा रहा था। ट्रालियों में अंदर दस से पंद्रह हष्ट पुष्ट किसान बहुत अच्छे कपड़े पहने, हाथ में मंहगा मोबाइल लिए बैठे थे। मोगा के ढाबे में भी वे बढ़िया खाना खा रहे थे। मैंने उनसे चर्चा की तो बोले मोदीजी से मिलने जा रहे हैं। उन्हें मालूम है कि इस बिल से उन्हें क्या नुकसान होने वाला है। वे जानते हैं कि अगर देश के सेठों ने उनकी फसल का मूल्य नहीं चुकाया तो बिल पास होने के कारण उन्हें एसडीएम कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ेंगे और प्रशासन कितनी ईमानदारी से गरीबों की बात सुनता है यह  हम सब जानते हैं। उन्हें भय है कि सरकार का अगला कदम एमएसपी हटाने का होगा और इसके लिए वे आंदोलन कर रहे हैं। सरदारजी कहते हैं कि क्या छोटा क्या बड़ा सभी किसानों की बरबादी इस बिल में छिपी हुई है।उधर दिल्ली बार्डर पर जब हम पहुंचे तो पुलिस बल तैनात था। पुलिस वैन और रैपिड एक्शन फोर्स के जवानों को हमने कतार में देखा। खैर हम निर्विघिन्न हज़रत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन पहुँच गए, पुत्री ने जोमेटो से खाना मंगाया, ट्रैन में बैठकर हम सबने रात्रि का भोजन व शयन  किया और जब नींद खुली तो स्वयं को भोपाल रेलवे स्टेशन  पर पाया ।

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 43 ☆ हाथों की लकीरें ☆ श्री प्रह्लाद नारायण माथुर

श्री प्रहलाद नारायण माथुर

(श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता ‘हाथों की लकीरें। ) 

 

Amazon India(paperback and Kindle) Link: >>>  मृग  तृष्णा  

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 43 ☆

☆ हाथों की लकीरें 

हाथों में लकीरों की भीड़ देखी,

दोनों हथेलियों पर लम्बी-लम्बी लकीरें देखी,

ना जाने कौन सी लकीरें हाथों में भरी है,

लकीरें तो हमने अमीरों की ही पढ़ते देखी,

फकीरों के हाथों में अमीरी की लकीरें देखी,

अमीर के हाथों में हमने फकीरी की लकीरें देखी,

जीवन-रेखा उस अमीर की बड़ी लम्बी थी,

छोटी लकीर वाले फकीर की उम्र उससे ज्यादा लम्बी निकली,

ना जाने कैसे लकीरों से लोग तकदीर पढ़ते हैं,

अमीरों के हाथों में भाग्य की लकीरें गरीबों के हाथों से कम देखी,

गरीब की दुनिया में लकीरों की क्या अहमियत,

यहां तो गरीबों में और गरीबी, अमीरों में और अमीरी बढ़ती देखी ||

© प्रह्लाद नारायण माथुर 

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≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 95 ☆ गज़ल ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

(आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा सोनवणे जी  के उत्कृष्ट साहित्य को  साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 95 ☆

☆ गज़ल ☆

मी जरी नव्हतेच काही ऐनवेळी बोलले

एक दुखरे शल्य होते जे जिव्हारी लागले

 

मौन तेव्हा पाळले मी बोलले नाही कुणा

अर्थ त्याचे वेगळे अन फार जहरी काढले

 

काय झाले ते कळेना मीच ठरले वेंधळी

ना गुन्हा घडला परंतू कलम तेही लावले

 

आर्तता दाटून आली  या मनावर नेहमी

हुंदक्यांना दाबताना आसवांना रोखले

 

भाबड्या आहेत माझ्या कल्पना जगण्यातल्या

आडवाटा टाळल्याने राजरस्ते गाठले

 

© प्रभा सोनवणे

११ मे २०२१

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 81 ☆ लक़ीर ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण कविता “जो मिला, सो मिला । )

आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –

यूट्यूब लिंक >>>>   Neelam Saxena Chandra

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 81 ☆

☆ लक़ीर ☆

कितना आसान होता है ना

लक़ीरों को जोड़ देना

किसी भी आकृति से?

 

वो भी एक लक़ीर ही थी…

जिससे जोड़ दिया गया,

वो जुड़ गयी!

 

उससे कहा गया, “मुड़ो!”

वो मुड़ गयी…

उससे कहा गया, “घूमो!”

वो गोल घूम गयी…

उससे कहा गया, “झुको!”

वो झुक गयी…

उससे कहा गया, “काटना पड़ेगा तुम्हें!”

वो कट गयी…

 

आख़िर, लक़ीर ही तो थी वो-

कोई भी रूप ले सकती थी!

 

एक दिन किसी कोने में पड़े हुए

जब उसकी नज़र अचानक आईने पर गयी,

वो अपना रूप देखकर कांप गयी…

सिहरन सी उठी उसके बदन में…

न जाने कहाँ से उसमें ताक़त आई

कि वो सीधी होकर खड़ी होने लगी!

 

कहाँ मंज़ूर था समाज को

उसका इस तरह अपना स्वरूप ले लेना?

वो अपनी परम्पराओं की तलवार से

करने लगा उसपर वार!

 

पर इस बार

वो न मुड़ी, न घूमी;

वो न झुकी, न कटी!

उसने अब अपना अस्तित्व और उसका महत्त्व

बखूबी जान लिया था…

खड़ी रही सीना तानकर

हर वार को सहती हुई,

ख़ुद को सहलाती हुई,

और आगे बढती हुई…

 

जब उसको चलते हुए

ज़माने ने इस नए रूप में देखा,

वो भी समझ गया

कि उसकी उड़ान को

कोई नहीं रोक सकता!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ सकारात्मक कविता – ब्रेस्ट मिल्क डोनर – माँ! ☆ श्री हेमन्त बावनकर

हेमन्त बावनकर

☆ सकारात्मक कविता – ब्रेस्ट मिल्क डोनर – माँ! ☆ हेमन्त बावनकर

( एक सच्ची घटना से प्रेरित )

सोशल मीडिया पर अनुरोध आया

आवश्यकता है

ब्रेस्ट मिल्क डोनर की

एक नवजात बच्ची को

जिसने खो दिया है

अपनी माँ – कोरोना महामारी में।

 

अगले ही क्षण

उत्तर आता है एक माँ का –

हाँ, मैं दे सकती हूँ।

 

सारा सोशल मीडिया

नतमस्तक हो गया

अश्रुपूर्ण नेत्रों से

उस माँ के प्रति।

 

अगले ही क्षण

उस प्यारी बच्ची को

एक निःसंतान युगल ने

गोद लेने की पेशकश भी कर दी

धर्म, जाति और रंगभेद

को दरकिनार कर।

 

सारा सोशल मीडिया

पुनः नतमस्तक हो गया

अश्रुपूर्ण नेत्रों से

उस युगल के प्रति।

 

मानवीय संवेदनाओं को नमन!

 

© हेमन्त बावनकर, पुणे 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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