हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ ≈ मॉरिशस से ≈ – बागडोर – ☆ श्री रामदेव धुरंधर ☆

श्री रामदेव धुरंधर

(ई-अभिव्यक्ति में मॉरीशस के सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री रामदेव धुरंधर जी का हार्दिक स्वागत। आपकी रचनाओं में गिरमिटया बन कर गए भारतीय श्रमिकों की बदलती पीढ़ी और उनकी पीड़ा का जीवंत चित्रण होता हैं। आपकी कुछ चर्चित रचनाएँ – उपन्यास – चेहरों का आदमी, छोटी मछली बड़ी मछली, पूछो इस माटी से, बनते बिगड़ते रिश्ते, पथरीला सोना। कहानी संग्रह – विष-मंथन, जन्म की एक भूल, व्यंग्य संग्रह – कलजुगी धरम, चेहरों के झमेले, पापी स्वर्ग, बंदे आगे भी देख, लघुकथा संग्रह – चेहरे मेरे तुम्हारे, यात्रा साथ-साथ, एक धरती एक आकाश, आते-जाते लोग। आपको हिंदी सेवा के लिए सातवें विश्व हिंदी सम्मेलन सूरीनाम (2003) में सम्मानित किया गया। इसके अलावा आपको विश्व भाषा हिंदी सम्मान (विश्व हिंदी सचिवालय, 2013), साहित्य शिरोमणि सम्मान (मॉरिशस भारत अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी 2015), हिंदी विदेश प्रसार सम्मान (उ.प. हिंदी संस्थान लखनऊ, 2015), श्रीलाल शुक्ल इफको साहित्य सम्मान (जनवरी 2017) सहित कई सम्मान व पुरस्कार मिले हैं। हम श्री रामदेव  जी के चुनिन्दा साहित्य को ई अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों से समय समय पर साझा करने का प्रयास करेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा  – बागडोर ।) 

~ मॉरिशस से ~

☆  कथा कहानी ☆ – बागडोर – ☆ श्री रामदेव धुरंधर ☆

युद्ध में पराजय का लक्षण देख कर राजा ने भागते – भागते अपने सैनिकों से कहा, “जयी हो कर लौटना।” राजा अपने महल में छिप कर युद्ध का हाल जानने की कोशिश करता रहा। पराजय की सूचना पर वह देश छोड़ कर भागने वाला था। उसकी सेना जयी हो कर लौटी। पर सैनिकों ने अपना राजा चुन लिया था। वह जमाना ही ऐसा था कायर और अवसरवादी के हाथ में भूल से भी सत्ता की बागडोर छोड़ी नहीं जाती थी।
***

© श्री रामदेव धुरंधर

17– 04 – 2024

संपर्क : रायल रोड, कारोलीन बेल एर, रिविएर सेचे, मोरिशस फोन : +230 5753 7057   ईमेल : [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य #166 – बाल कहानी – जादू से उबला दूध ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक “बाल कहानी – जादू से उबला दूध)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 166 ☆

बाल कहानी – जादू से उबला दूध ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

“आओ रमेश,” विकास ने रमेश को बुलाते हुए कहा, “मैं जादू से दूध उबाल रहा हूँ। तुम भी देख लो।”

“हाँ, क्यों नहीं?, में भी तो देखें कि जादू से दूध कैसे उबाला जाता है?” रमेश ने बैठते हुए कहा।

” भाइयों, आपे से मेरा एक निवेदन है कि आप लोग मैं जिधर देखें उधर मेत देखना। इस से जादू का असर चला जायेगा और आकाश से आने वाली बिजली से यह दूध गरम नहीं होगा। “विकास ने कहा और एक कटोरी में बोतल से दूध उँडेल दिया।

“अब मैं मंत्र पढूँगा। आप लोग इस दूध की कटोरी की ओर देखना।” यह कहकर विकास ने आसमान की ओर मुँह करके अपना एक हाथ आकाश की और बढ़ाया, ” ऐ मेरे हुक्म की गुलाम बिजली !  चल जल्दी आ! और इस दूध की कटोरी में उतर जा।”

विकास एक दो बार हाथ को झटक कर दूध की कटोरी के पास लाया, “झट आ जा। लो वो आई,”  कहने के साथ विकास ने दूध की कटोरी की ओर निगाहें डाली। उस दूध की कटोरी में गरमागरम भाप उठ रही थी। देखते ही देखते वह दूध उबलने लगा। विकास ने दूध की कटोरी उठा कर दो चार दोस्तों को छूने के लिए हाथ में दी, ” देख लो, यह दूध गरम है?”

” हाँ,” नीतिन ने कहा,  “मैंने पहले भी कटोरी को छू कर देखा था। वह ठंडी थी और दूध भी ठंड था।”

अब विकास ने कटोरी का दूध बाहर फेंक दिया। तब बोला, ” यह दूध जादू से नहीं उबला था।”

“फिर?” रमेश ने पूछा।

“मैं ने मंतर पढ़ने और बिजली को बुलाने के लिए ढोंग के बहाने इस दूध में चूने का डल्ला डाल दिया था। इससे दूध गरम हो कर उबलने लगा। यह कोई जादू नहीं है।”

“यह एक रासायनिक क्रिया है इसमें चूना दूध में उपस्थित पानी से क्रिया करके ऊष्मा उत्पन्न करता है। जिससे दूध गरम हो कर उबलने लगता है।” विकास ने यह कहा तो सबने तालियां बजा दी।

” लेकिन ऐसे दूध को खानेपीने में उपयोग न करें दोस्तों!” विकास ने सचेत किया।

 –0000–

 © ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

14-12-2022

संपर्क – पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected] मोबाइल – 9424079675

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ लघुकथा – 19 – अफवाह ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ ☆

श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा –  गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी,  संस्मरण,  आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – अफवाह।)

☆ लघुकथा – अफवाह ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

“अरे तुमने सुना कमला वो तुम्हारे पड़ोसी  सिंह साहब का बेटा विदेश जा रहा है माँ बाप को वृद्धाश्रम भेज कर कितना आज्ञाकारी बनता था, भई लानत है ऐसी औलाद पर इससे तो ईश्वर बच्चा ही न दे” एक सांस में पूरे मोहल्ले की खबर सुना दी  रेखा भाभी ने कमला को ।

कमला धीरे से बोली “आपको किसने कहा किससे पता चली ये बात”।

“बस तुम्हें ही खबर नहीं सारा मोहल्ला थू थू कर रहा है अभी तो सुनकर आ रही हूँ”।

भाभी सुनी हुई बात हमेशा सच हो जरूरी नहीं।

अभी  थोड़ी देर पहले फोन पर सिंह आंटी से मेरी बात हुई है उन्होंने बताया कि उनका बेटा ट्रेनिंग के लिए विदेश जा रहा है।

सिंह आंटी अपनी बिटिया के पास रहने के लिए जा रही हैं।

आप स्वयं समझदार हैं आपके बहू और बेटे के बारे में भी तो लोग जाने क्या क्या कहते हैं…।

अफवाहों पर यकीन ना करें आप…

अच्छा चलो यह सब बात छोड़ दें हैं कमला एक कप चाय तो पिला आज श्राद्ध अमावस्या में तूने खाने के लिए क्या बनाया है वह लेकर आ….।

© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 188 – प्रतिस्पर्धा – ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ ☆

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है स्त्री विमर्श पर आधारित एक विचारणीय लघुकथा “प्रतिस्पर्धा”।) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 188 ☆

🌻 लघुकथा 🌻प्रतिस्पर्धा 🌻

आज के इस भाग दौड़ की जिंदगी में हर जगह प्रतिस्पर्धा की होड़ लगी है। जिसे देखो केवल दिखावा, ऊपरी मुखौटा लगाए हुए चारों तरफ घूम रहा है।

मकान, समान, दुकान, पकवान, पढ़ाई, लिखाई, घर, बंगला, गाड़ी, नेता- अभिनेता, कमाई, ऐश्वर्या, आराम आदि – – – यहाँ तक कि यदि पारिवारिक जीवन का तालमेल भी प्रतिस्पर्धा में टिका हुआ है।

घूम रही है सारी सृष्टि प्रतिस्पर्धा के इस चक्र में। किसी में कोई व्यक्तिगत योग्यता है तो सारा समाज टूट पड़ता है कि कैसे उसे नीचे किया जाए।

अपने को ऊपर उठाने की बजाय उसके कमियों को कुरेदने और निकालने लग जाते हैं। अपना रुतबा मान सम्मान  उससे ज्यादा करके दिखाएं – – इस प्रतिस्पर्धा की दौड़ में वह इस कदर गिर जाता है कि आज के संस्कार भी भूल जाता है कि जीवन में क्या लेना और क्या देना है।

सिर्फ वही एक काम आएगा जो उसका  अपना व्यक्तिगत होगा। ऑफिस में बाबू का काम करते-करते जीवन यापन करते सुंदरलाल और उसकी धर्मपत्नी अपने तीनों पुत्रियों का लालन-पालन बहुत ही सीधे – साधे ढंग से किया। उनकी हर जरूरत का सामान, उनकी आवश्यकता अनुसार ही लेकर देना। माँ भी उन्हें घर गृहस्थी से लेकर जीवन की सच्चाई का बोध कराते संस्कार देते चली थी।

बचपन में मोहल्ले में तानाकशी और सब जगह  यही सुनाई देने वाली बात होती कि अब तीन लड़कियां हैं बेचारी क्या करें?

किसी एक को ही अच्छा बना लेगी तो बहुत बड़ी बात है। सुनते-सुनते बच्चियाँ समझौता करते-करते कब बड़ी होकर अपनी-अपनी योग्यता का परचम लहराने लगी किसी को पता ही नहीं चला।

डाॅक्टर, इंजीनियर और स्कूल शिक्षिका। विद्या, धन और निर्भयता की देवी, आज तीनों बच्चियाँ अपने मम्मी- पापा का नाम शहर में रोशन कर रही थी।

उन्होंने मम्मी – पापा के साथ शहर में एक ऐसी संस्था का निर्माण किया। जिसमें कोई भी, किसी भी समाज की बेटी आकर शिक्षा ग्रहण कर सकती है।

एक वर्ष तक तो सभी ने उनका इतना मजाक बनाया कि बेटियाँ और कर भी क्या सकती है। परंतु आज पूरे न्यूज पेपर, टीवी न्यूज़ चैनलों में खबर फैला हुआ था कि इस शहर से तीन  बेटियाँ जिन्होंने सारा जीवन अपना उन बेटी बच्चियों को समर्पित किया… जो कुछ बनकर इस देश की सेवा इस गाँव  की सेवा और अपने आसपास की सेवा करना चाहती हैं। उन्हें सभी प्रकार की सहायता और सुविधा प्रदान की जाएगी।

समाचार लगते ही नेता, व्यापारी संगठन, समाज, संस्था सभी अपना- अपना बैनर पोस्टर लेकर उनके घर के सामने फूल माला गुलदस्ते सहित खड़े थे।

प्रतिस्पर्धा की होड़ में वह यह भी भूल गए थे की.. कभी किसी ने उन्हें उन बेटियों के मान- सम्मान में ठेस पहुंचाई है। जय माता के नारों, बेटी ही शक्ति है, से पूरा मोहल्ला गूँज रहा था। और कह रहे थे बेटियाँ किसी से कम थोड़े होती है।

बेटियाँ सब कुछ कर सकती हैं। सभी अपनी-अपनी सुनने में लगे थे। प्रतिस्पर्धा किस में नहीं होती यह बात उन तीन बेटियों को अच्छी तरह मालूम था।

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ ≈ मॉरिशस से ≈ – रोने वाला पेड़ – ☆ श्री रामदेव धुरंधर ☆

श्री रामदेव धुरंधर

(ई-अभिव्यक्ति में मॉरीशस के सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री रामदेव धुरंधर जी का हार्दिक स्वागत। आपकी रचनाओं में गिरमिटया बन कर गए भारतीय श्रमिकों की बदलती पीढ़ी और उनकी पीड़ा का जीवंत चित्रण होता हैं। आपकी कुछ चर्चित रचनाएँ – उपन्यास – चेहरों का आदमी, छोटी मछली बड़ी मछली, पूछो इस माटी से, बनते बिगड़ते रिश्ते, पथरीला सोना। कहानी संग्रह – विष-मंथन, जन्म की एक भूल, व्यंग्य संग्रह – कलजुगी धरम, चेहरों के झमेले, पापी स्वर्ग, बंदे आगे भी देख, लघुकथा संग्रह – चेहरे मेरे तुम्हारे, यात्रा साथ-साथ, एक धरती एक आकाश, आते-जाते लोग। आपको हिंदी सेवा के लिए सातवें विश्व हिंदी सम्मेलन सूरीनाम (2003) में सम्मानित किया गया। इसके अलावा आपको विश्व भाषा हिंदी सम्मान (विश्व हिंदी सचिवालय, 2013), साहित्य शिरोमणि सम्मान (मॉरिशस भारत अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी 2015), हिंदी विदेश प्रसार सम्मान (उ.प. हिंदी संस्थान लखनऊ, 2015), श्रीलाल शुक्ल इफको साहित्य सम्मान (जनवरी 2017) सहित कई सम्मान व पुरस्कार मिले हैं। हम श्री रामदेव  जी के चुनिन्दा साहित्य को ई अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों से समय समय पर साझा करने का प्रयास करेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा  – रोने वाला पेड़ ।) 

~ मॉरिशस से ~

☆  कथा कहानी ☆ – रोने वाला पेड़ – ☆ श्री रामदेव धुरंधर ☆

लोग कहते थे जंगल में एक पेड़ है जो बहुत रोता है। आश्चर्य ही था रोने वाला पेड़ अपरिचित रहने के बावजूद उसके गान के लिए एक जाति पैदा हो गई थी। पेड़ का परिचय तो अब भी खुलता नहीं था, लेकिन उसके गान के लिए सन्नद्ध जाति ने अपना वजूद नहीं खोया। इस जाति की उम्मीद इस अर्थ में बनी रही उस पेड़ के रोने का प्रसंग फिर कहीं छिड़ता और इस जाति के वाद्य सक्रिय हो जाते।
***

© श्री रामदेव धुरंधर

04 – 04 – 2024

संपर्क : रायल रोड, कारोलीन बेल एर, रिविएर सेचे, मोरिशस फोन : +230 5753 7057   ईमेल : [email protected]

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हिन्दी साहित्य – कथा-कहानी ☆ लघुकथा – याचनाएँ ☆ श्री हरभगवान चावला ☆

श्री हरभगवान चावला

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री हरभगवान चावला जी की अब तक पांच कविता संग्रह प्रकाशित। कई स्तरीय पत्र पत्रिकाओं  में रचनाएँ प्रकाशित। कथादेश द्वारा  लघुकथा एवं कहानी के लिए पुरस्कृत । हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति सम्मान। प्राचार्य पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन।) 

आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा  – याचनाएँ)

☆ लघुकथा – याचनाएँ ☆ श्री हरभगवान चावला ☆

वह औरत जो उस प्रसिद्ध मंदिर के बाहर बैठकर भीख माँगती थी, उसकी दोनों टाँगें नाकारा थीं और वह हथेलियों के बल पर घिसटती हुई चलती थी। मंदिर के बाहर लोगों की क़तारें होतीं। वह सोचती – इन खाते-पीते, आराम से चल-फिर रहे साबुत लोगों के पास सब कुछ तो है। आख़िर ये भगवान से और क्या माँगते होंगे? काश, वह इनके मन की याचना को सुन पाती! वह हैरान रह गई जब उसने पाया कि वह इन सब लोगों की मन ही मन भगवान से की गई याचनाओं को सुन सकती है। वह कुछ देर तक सुनती रही। फिर उसका चेहरा तमतमा गया। उसे लगा, उसके कान फट जायेंगे, वह पागल हो जायेगी। इतना लोभ, इतना द्वेष, इतनी निष्ठुरता! किसी ने अकूत दौलत की याचना की थी, किसी ने पड़ोसी की दुकान में आग लग जाने की कामना की थी, किसी ने अपने पिता के लिए मौत माँगी थी। कोई अपने मिलावट के धंधे में बरक्कत की याचना कर रहा था, कोई दवाइयों के कारख़ाने का मालिक महामारी के लिए याचना कर रहा था। ऐसी और भी कितनी याचनाएँ…। उसने कानों में उँगलियाँ ठूँस लीं और चिल्लाई- मुझे दी हुई यह अयाचित शक्ति वापस लो भगवान, मैं आधी-अधूरी जैसी भी हूँ, अच्छी हूँ।

©  हरभगवान चावला

सम्पर्क – 406, सेक्टर-20, हुडा,  सिरसा- 125055 (हरियाणा) फोन : 9354545440

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ लघुकथा – 18 – मूकदर्शक ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ ☆

श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा –  गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी,  संस्मरण,  आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – मूकदर्शक।)

☆ लघुकथा – मूकदर्शक ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

अपने ही चेहरे को दर्पण के सामने खड़ी होकर मैं देख रही हूं – पाषाणवत स्तब्ध   अपने से ही संवाद करती।

इतनी ठंडी में भी माथे से पसीना जो चुहचुहा रहा था। हृदय पर एक भारी बोझ का अनुभव हो रहा था ।

क्या हो गया मेरे साथ?

किसी तरह से इस जिंदगी में चैन नहीं मिल रहा है पुरानी यादों की किरचें चुभ रही धी।

नहीं, ना वह मुझे छोड़ कर जा सकता है, न ही मैं उसे छोड़ सकती?

हे विधाता यह तूने क्या किया?

ऐसे अगणित सवाल मन में गूंज रहे थे।

सीधे सच्चे पथ के हमराही को कोई डर नहीं होता किसी अनुबंध के टूटने का डर कुटिल और दुष्ट को होता है।

समाज में तो सभी लोग ढाढस बनाने की बजाय अनभिज्ञ होने का स्वांग रचाते हैं और बार-बार वही बातों को दोहराते हैं, छल पूर्वक एक दूसरे के साथ झूठी हंसी का स्वांग रचाते हैं।

हृदयाघात होने के कारण अचानक चल बसे।

समझ नहीं आ रहा था कि विधाता ने कैसा खेल रचा?

क्या कोई हल निकालेंगे।

मेरे पति राम की प्राइवेट नौकरी थी और मेरे पास अब जीवन जीने का कोई सहारा नहीं है पढ़ाई लिखाई भी नहीं की है ?

5 साल के बेटे को अच्छे से पढ़ा सकूं समाज की हमदर्दी से क्या मेरा घर चलेगा?

काश 12वीं के बाद पढ़ाई की होती।

लेकिन कोई बात नहीं, मुझे अच्छा खाना बनाना आता है, और सिलाई भी आती है।

बेटे के सहारे ही अपना जीवन काट दूंगी। समाज का क्या उसकी हमदर्दी भी 4 दिन की है। कोई किसी का नहीं होता, आज इस सच को जान लिया, सब मूर्ख बनाते हैं, सब मूक दर्शक हैं।

© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 187 – कन्या भोज – ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ ☆

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है सामाजिक विमर्श पर आधारित एक विचारणीय लघुकथा कन्या भोज ”।) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 187 ☆

🌻 लघुकथा 🌻🌹 कन्या भोज 🌹

घर की साफ- सफाई करते-करते अचानक अलमारी के पुस्तकों के बीच एक कागज मिला कंचन सिहर उठी।

यही वह चिट्ठी थी, जिसने उसके मातृत्व सुख को तार – तार कर दिया था। चिट्ठी सास – ससुर के पास से लिखा गया था…. ‘सुनो पप्पू हमने यहाँ अनाथ बच्चियों के आश्रम जाकर कन्या भोज का इंतजाम करके आए हैं। पंडित जी का भी कहना है कि घर में बेटा पोता ही आएगा।

अब तुम भी कान खोल कर सुन लो हम सभी को बेटे की चाह है। वंश का नाम रोशन होगा।’

‘कल मंदिर के भी जागरण में हमने दान कर पोते के नाम की जयकारा लगवाई है।’ कंचन इसके आगे पढ़ती की पप्पू उसके पति देव की आवाज सुनाई पड़ी…. “क्या हुआ यह जानकर कि मैं सब जानता था तुम्हें गांव से इन सब बातों से दूर रखा। सारी बातें सुनता रहा समझता रहा। ताने सुन सुन आखिरी फैसला था… कि या तो गर्भ में हो रही बच्ची को गिरा दिया जाए या फिर बेटा ही होना चाहिए।”

“मुझे बेटा या बेटी से कोई फर्क नहीं पड़ता है। पड़ता है तो सिर्फ उसकी परवरिश, उसके संस्कार और उसके अच्छे सुनहरे भविष्य के लिए हम क्या कर सकते हैं।  माता-पिता की जिम्मेदारी।”

आज फिर मोहल्ले में कन्या भोज कराया जा रहा था। पप्पू के यहां बिटिया चहकती दौड़ते दौड़ते सभी पड़ोसियों के यहां कन्या भोजन करने जा रही थी।

अचानक शर्मा जी के यहाँ से आने के बाद वह अपनी मम्मी से पूछ बैठी ” मम्मी…. क्या कन्या भोज कराने से घर में वंश होता है?” “आज शर्मा आंटी ने कहा… बेटा तुम कन्या माता रानी का रूप हो वरदान देती जो कि मेरे घर में बेटा पैदा हो।”

“मम्मी.. क्या? आपने कभी कन्या भोज नहीं कराया था। क्योंकि सभी कह रहे थे कन्या भोज करने से बेटा होता है। बोलो ना आपने कराया होता तो मैं भी बेटा ही पैदा होती न।

फिर तो हम सभी एक साथ दादा-दादी के साथ रहते और आपको कड़वी बात नहीं सुननी पड़ती।

अब आप कन्या भोजन कर लेना। वंश आ जायेगा।” मम्मी- पापा अपनी बेटी का मुँह ताकते रहे।

बिटिया रानी अपनी बात कहते फिर चहकते हुए दूसरे घर जाने के लिए दरवाजे के बाहर निकल गई। पास में पड़ी हेयर पिन, चूड़ी, बिंदी, कंगन, डिब्बा, रिबन उपहार में मिले सामान उस मासूम के उपकार को बया कर रहे थे। मम्मी के नैनों से अश्रुं धार बह निकली उसे सहेजने और बटोरने लगी। पतिदेव ने कहा… “बेटियाँ होती ही प्यारी है।”

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा-कहानी ☆ लघुकथा – हो गया ठीक? ☆ श्री हरभगवान चावला ☆

श्री हरभगवान चावला

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री हरभगवान चावला जी की अब तक पांच कविता संग्रह प्रकाशित। कई स्तरीय पत्र पत्रिकाओं  में रचनाएँ प्रकाशित। कथादेश द्वारा  लघुकथा एवं कहानी के लिए पुरस्कृत । हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति सम्मान। प्राचार्य पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन।) 

आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा  – हो गया ठीक?)

☆ लघुकथा – हो गया ठीक? ☆ श्री हरभगवान चावला ☆

चोट के कारण दादा की उँगली दर्द कर रही थी। उन्हें बेचैन देख ढाई साल के पोते ने पूछा, “दर्द हो रहा है?”

“हाँ।”

पोते ने धीरे से उस उँगली को प्यार से चूमा और पूछा, “हो गया ठीक?”

“हाँ।” दादा ने यह कहकर पोते को चूम लिया। दर्द पता नहीं कहाँ दुबक गया था?

©  हरभगवान चावला

सम्पर्क – 406, सेक्टर-20, हुडा,  सिरसा- 125055 (हरियाणा) फोन : 9354545440

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा-कहानी ☆ लघुकथा – बस छूट गई ☆ श्री हरभगवान चावला ☆

श्री हरभगवान चावला

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री हरभगवान चावला जी की अब तक पांच कविता संग्रह प्रकाशित। कई स्तरीय पत्र पत्रिकाओं  में रचनाएँ प्रकाशित। कथादेश द्वारा  लघुकथा एवं कहानी के लिए पुरस्कृत । हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति सम्मान। प्राचार्य पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन।) 

आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा  बस छूट गई)

☆ लघुकथा – बस छूट गई ☆ श्री हरभगवान चावला ☆

दादी पोती को अपना सपना सुना रही थी, “मैं शीशे के इस पार खड़ी थी। शीशे के उस पार यमलोक था। वहाँ तुम्हारे दादा थे, तुम्हारे पापा थे, गाँव के बहुत सारे लोग भी दिखाई दे रहे थे। तभी एक बस आई। शीशे के पार से तुम्हारे दादा बस की तरफ़ इशारा करते हुए चिल्लाए – ‘बस पर चढ़कर आ जाओ।’ मैं बस की तरफ़ दौड़ी कि बस चल पड़ी। मैं बस के पीछे भागी, पर…”

“बस छूट गई, है न!” पोती ने वाक्य पूरा किया।

“हाँ।”

“बहुत अच्छा हुआ।” पोती ताली बजाती हुई ज़ोर से हँसी और तुरंत ही संजीदा हो आई, “हम तीनों बहनों को तुम्हारी बहुत ज़रूरत है दादी! अब कभी बस आए तो छोड़ देना, चाहे दादा कितना ही बुलाएँ।”

दादी ने पोती को अपने सीने से लगाया और कहा, “पक्का छोड़ दूँगी।”

©  हरभगवान चावला

सम्पर्क – 406, सेक्टर-20, हुडा,  सिरसा- 125055 (हरियाणा) फोन : 9354545440

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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