श्री प्रहलाद नारायण माथुर

(श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता ‘हाथों की लकीरें। ) 

 

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 43 ☆

☆ हाथों की लकीरें 

हाथों में लकीरों की भीड़ देखी,

दोनों हथेलियों पर लम्बी-लम्बी लकीरें देखी,

ना जाने कौन सी लकीरें हाथों में भरी है,

लकीरें तो हमने अमीरों की ही पढ़ते देखी,

फकीरों के हाथों में अमीरी की लकीरें देखी,

अमीर के हाथों में हमने फकीरी की लकीरें देखी,

जीवन-रेखा उस अमीर की बड़ी लम्बी थी,

छोटी लकीर वाले फकीर की उम्र उससे ज्यादा लम्बी निकली,

ना जाने कैसे लकीरों से लोग तकदीर पढ़ते हैं,

अमीरों के हाथों में भाग्य की लकीरें गरीबों के हाथों से कम देखी,

गरीब की दुनिया में लकीरों की क्या अहमियत,

यहां तो गरीबों में और गरीबी, अमीरों में और अमीरी बढ़ती देखी ||

© प्रह्लाद नारायण माथुर 

8949706002
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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