हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 84 ☆ आब-ए-मुहब्बत ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण कविता “आब-ए-मुहब्बत। )

आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –

यूट्यूब लिंक >>>>   Neelam Saxena Chandra

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 84 ☆

☆ आब-ए-मुहब्बत ☆

शायद मैं एक शजर हूँ

और मेरी जड़ें…

वो भी बहुत मज़बूत हैं,

और देती रहती हैं मुझे आब-ए-हयात…

पनपते ही रहते हैं मुझपर

कई हज़ार गुल

जो बिखेरते हैं दिलकश सी खुश्बू…

पर कभी-कभी,

लाज़मी है मेरा भी मुरझा जाना…

यह उम्मीद है कि

रोज़ ख्वाब में चली आती है,

कि तुम किसी अब्र से आओगे

और बरसाओगे इतनी आब-ए-मुहब्बत

कि मैं खिल उठूँगी

किसी मुस्कान सी!

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ शब्द मेरे अर्थ तुम्हारे – 3 – अप्रवासी ☆ श्री हेमन्त बावनकर

हेमन्त बावनकर

☆ शब्द मेरे अर्थ तुम्हारे – 3 ☆ हेमन्त बावनकर

☆ अप्रवासी ! ☆

 कुछ लोग

अमानवीय दर्द के साथ

पैरों में छाले लिए

हजारों मील चले गए

कुछ पहुँच गए

कुछ रास्ते में टूट गए

और

अपने ही देश में कहलाए गए

अंतरप्रांतीय ! 

अप्रवासी ! 

 

© हेमन्त बावनकर, पुणे 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 109 ☆ बिना कलम कागज…. ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी द्वारा लिखित आलेख  बिना कलम कागज….। इस विचारणीय रचना के लिए श्री विवेक रंजन जी की लेखनी को नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 109 ☆

? बिना कलम कागज…. ?

वसुधैव कुटुम्बकम् की वैचारिक उद्घोषणा वैदिक भारतीय संस्कृति की ही देन है . वैज्ञानिक अनुसंधानो , विशेष रूप से संचार क्रांति  तथा आवागमन के संसाधनो के विकास ने तथा विभिन्न देशो की अर्थव्यवस्था की परस्पर प्रत्यक्ष व परोक्ष निर्भरता ने इस सूत्र वाक्य को आज मूर्त स्वरूप दे दिया है , कोरोना त्रासदी ने दवा , वैक्सीन जैसे मुद्दे वैश्विक एकता के उदाहरण हैं . हम भूमण्डलीकरण के युग में जी रहे हैं . सारा विश्व कम्प्यूटर चिप और बिट में सिमटकर एक गांव बन गया है .

लेखन , प्रकाशन , पठन पाठन में नई प्रौद्योगिकी की दस्तक से आमूल परिवर्तन परिलक्षित हो रहे हैं . नई पीढ़ी अब बिना कलम कागज के ही कम्प्यूटर पर ही सीधे  लिख रही है ,प्रकाशित हो रही है , और पढ़ी जा रही है . ब्लाग तथा सोशल मीडीया वैश्विक पहुंच के साथ वैचारिक अभिव्यक्ति के सहज , सस्ते , सर्वसुलभ , त्वरित साधन बन चुके हैं .सामाजिक बदलाव में सर्वाधिक महत्व विचारों का ही होता है .लोकतंत्र में विधायिका , कार्यपालिका , न्यायपालिका के तीन संवैधानिक स्तंभो के बाद पत्रकारिता को  चौथे स्तंभ के रूप में मान्यता दी गई क्योकि पत्रकारिता वैचारिक अभिव्यक्ति का माध्यम होता है , आम आदमी की नई प्रौद्योगिकी तक  पहुंच और इसकी  त्वरित स्वसंपादित प्रसारण क्षमता के चलते सोशल मीडिया व ब्लाग जगत को लोकतंत्र के पांचवे स्तंभ के रूप में देखा जा रहा है . वैश्विक स्तर पर पिछले कुछ समय में कई सफल जन आंदोलन इसी सोशल मीडिया के माध्यम से खड़े हुये हैं .

हमारे देश में भी बाबा रामदेव , अन्ना हजारे के द्वारा बिना बंद , तोड़फोड़ या आगजनी के चलाया गया जन आंदोलन , और उसे मिले जन समर्थन के कारण सरकार को विवश होकर उसके सम्मुख किसी हद तक झुकना पड़ा था . इन  आंदोलनो में विशेष रुप से नई पीढ़ी ने इंटरनेट , मोबाइल एस एम एस और मिस्डकाल के द्वारा अपना समर्थन व्यक्त किया .

जब हम भारतीय परिदृश्य में इस प्रौद्योगिकी परिवर्तन को देखते हैं तो हिंदी  पर इसके प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखते हैं . 21 अप्रैल, 2003 की तारीख वह स्वर्णिम तिथि है जब  रात्रि  22:21 बजे हिन्दी के प्रथम ब्लॉगर, मोहाली, पंजाब निवासी आलोक ने अपने ब्लॉग ‘9 2 11’ पर अपना पहला ब्लॉग-आलेख हिन्दी में पोस्ट किया था . तब से होते निरंतर प्रौद्योगिकी विकास के साथ हिन्दी के महत्व को स्वीकार करते हुये ही बी बी सी , स्क्रेचमाईसोल , रेडियो जर्मनी ,टी वी चैनल्स , तथा देश के विभिन्न अखबारो तथा न्यूज चैनल्स ने भी अपनी वेबसाइट्स पर पाठको के ब्लाग के पन्ने बना रखे हैं . ब्लागर्स पार्क दुनिया की पहली ब्लागजीन के रूप में नियमित रूप से मासिक प्रकाशित हो चुकी है . यह पत्रिका ब्लाग पर प्रकाशित सामग्री को पत्रिका के रूप में संयोजित  करने का अनोखा कार्य कर रही थी .मुझे गर्व है कि मैं इसके मानसेवी संपादन मण्डल का सदस्य रहा हूं .  अपने नियमित स्तंभो में  प्रायः समाचार पत्र ब्लाग से सामग्री उधृत करते दिखते हैं . हिन्दी ब्लाग के द्वारा जो लेखन हो रहा है उसके माध्यम से साहित्य , कला समीक्षा , फोटो , डायरी लेखन आदि आदि विधाओ में विशेष रूप से युवा रचनाकार अपनी नियमित अभिव्यक्ति कर रहे हैं . ई अभिव्यक्ति वेब पोर्टल हेमन्त बावनकर जी का अनूठा प्रयोग है , जिसकी हर सुबह पाठक प्रतीक्षा करते हैं ।

वेब दुनिया , जागरण जंकशन , नवभारत टाइम्स  जैसे अनेक हिन्दी पोर्टल ब्लागर्स को बना बनाया मंच व विशाल पाठक परिवार सुगमता से उपलब्ध करवा रहे हैं .और उनके लेखन के माध्यम से अपने पोर्टल पर विज्ञापनो के माध्यम से धनार्जन भी करने में सफल हैं . हिन्दी और कम्प्यूटर मीडिया के महत्व को स्वीकार करते हुये ही अपने वोटरो को लुभाने के लिये राजनैतिक दल भी इसे प्रयोग करने को विवश हैं . हिन्दी न जानने वाले राजनेताओ को हमने रोमन हिन्दी में अपने भाषण लिखकर पढ़ते हुये देखा ही है .

यह सही है कि ब्लाग लेखन और व्यापकता चाहता है , पर जैसे जैसे नई कम्प्यूटर साक्षर पीढ़ी बड़ी होगी , इंटरनेट और सस्ता होगा तथा आम लोगो तक इसकी पहुंच बढ़ेगी यह वर्चुएल लेखन  और भी ज्यादा सशक्त होता जायेगा , एवं  भविष्य में  लेखन क्रांति का सूत्रधार बनेगा . युवाओ में बढ़ी कम्प्यूटर साक्षरता से उनके द्वारा देखे जा रहे ब्लाग के विषय युवा केंद्रित अधिक हैं .विज्ञापन , क्रय विक्रय , शैक्षिक विषयो के ब्लाग के साथ साथ स्वाभाविक रूप से जो मुक्ताकाश कम्प्यूटर और एंड्रायड मोबाईल , सोशल नेट्वर्किंग, चैटिंग, ट्विटिंग,  ई-पेपर, ई-बुक, ई-लाइब्रेरी, स्मार्ट क्लास, ने सुलभ करवाया है , बाजारवाद ने उसके नगदीकरण के लिये इंटरनेट के स्वसंपादित स्वरूप का भरपूर दुरुपयोग किया है . हिट्स बटोरने हेतु उसमें सैक्स की वर्जना , सीमा मुक्त हो चली है . वैलेंटाइन डे के पक्ष विपक्ष में लिखे गये ब्लाग अखबारो की चर्चा में रहे .प्रिंट मीडिया में चर्चित ब्लाग के विजिटर तेजी से बढ़ते हैं , और अखबार के पन्नो में ब्लाग तभी चर्चा में आता है जब उसमें कुछ विवादास्पद , कुछ चटपटी , बातें होती हैं , इस कारण अनेक लेखक  गंभीर चिंतन से परे दिशाहीन होते भी दिखते हैं . हिंदी भाषा का कम्प्यूटर लेखन साहित्य की समृद्धि में  बड़ी भूमिका निभाने की स्थिति में हैं ,क्योकि ज्यादातर हिंदी ब्लाग कवियों , लेखको , विचारको के सामूहिक या व्यक्तिगत ब्लाग हैं जो धारावाहिक किताब की तरह नित नयी वैचारिक सामग्री पाठको तक पहुंचा रहे हैं . पाडकास्टिंग तकनीक के जरिये आवाज एवं वीडियो के ब्लाग , मोबाइल के जरिये ब्लाग पर चित्र व वीडियो क्लिप अपलोड करने की नवीनतम तकनीको के प्रयोग तथा मोबाइल पर ही इंटरनेट के माध्यम से ब्लाग तक पहुंच पाने की क्षमता उपलब्ध हो जाने से कम्प्यूटर लेखन और भी लोकप्रिय हो रहा है . अनेक लेखक जो पहले ब्लाग पर लिखते थे प्रौद्योगिकी के परिवर्तनो के साथ सुगमता की दृष्टि से फेसबुक व अन्य सोशल साइट्स पर शिफ्ट हो रहे हैं .

यात्रा रिजर्वेशन , नेट-बैंकिंग, सेटेलाईट टीवी,  हाई टेक हिन्दी फ़िल्मों, रोजमर्रा की जीवन शैली में क्म्प्यूटर के बढ़ते समावेश से  देश-वासियों और देश-दुनिया के साथ हिन्दी-भाषियों के भी काम-काज, घर-बार और दैनिक जीवन के प्रयोग-अनुप्रयोग में , शासकीय गैरशासकीय वेबसाइट्स की सूचनाओ के माध्यम से भी हिन्दी समृद्ध होती जा रही है . दुनिया भर के हिन्दी लेखक नेट संवाद के जरिये पास आ रहे हैं . इंटरनेट पर हिन्दी लेखन की सबसे बड़ी कमी उसका वर्चुएल होना और उसका कोई स्थाई संग्रहण न होना है . यद्यपि आज भी कम्प्यूटर पर हिन्दी इतनी समृद्ध हो चुकी है कि जब भी हमें कुछ संदर्भ आवश्यक होता है , हम पुस्तकालय जाने से पहले संदर्भ सामग्री की तलाश इंटरनेट पर ही करते हैं , यह उपलब्धि बहुत महत्वपूर्ण है तथा भविष्य के लिये स्पष्ट संकेत है . सर्च इंजन की कुशलता बढ़ने के साथ ही हमारी संदर्भ के लिये यह निर्भरता और बढ़ती जायेगी . कम्प्यूटर लेखन के साफ्ट कापी से हार्ड कापी में नव परिवर्तनों के इस दौर में प्रिंटंग प्रौद्योगिकी की बढ़ती सुविधाओ के चलते पुस्तक प्रकाशन अब पहले से कहीं सरल हो चला है , इससे भी हिन्दी के विकास को प्रोत्साहन मिला है .

संसद से सड़क तक….बाज़ार से बस्ती तक…शिक्षित से सुशिक्षित तक….चूल्हे-चौके से चौक तक ..मिल से मॉल तक …कैटल क्लास से कॉर्पोरेट क्लास तक .. हिन्दी भाषा किसी  प्रचार की मोहताज़ नही है  .हिन्दी का  अपना प्रवाह , अपना समृद्ध शब्दकोष ,अपना व्याकरण है .हिन्दी जड़ता से परे विकासशील और उदारवादी भाषा है .  महात्मा गांधी विश्व  चिंतक थे ,  उन्होने हिन्दी को देश को जोड़ने के लिये आवश्यक बताते हुये इसे राष्ट्रभाषा बताया था .  अपने परिवेश की बोलियों , अन्य भाषाओ  तथा नई प्रौद्योगिकी के संसाधनो को समाहित करने की क्षमता ही हिन्दी को सहज और सर्वस्वीकार्य बनाती है.  भूमण्डलीकरण एवं नई प्रौद्योगिकी से हिन्दी और भी समृद्ध होगी .

 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

 

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 90 –आजादी की कीमत कितना समझे हम ? ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत है  समसामयिक विषय पर आधारित एक समसामयिक एवं विचारणीयआलेख  “आजादी की कीमत कितना समझे हम ? । इस सामयिक एवं सार्थक रचना के लिए श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ जी की लेखनी को सादर नमन। ) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 90 ☆

 ? आलेख – आजादी की कीमत कितना समझे हम ??

मैं अपनी बात महाकवि जयशंकर प्रसाद जी की पंक्तियों से आरंभ करती हूँ ….

 हिमालय के आंगन में उसे प्रथम किरणों का दे उपहार

उषा ने हंस अभिनंदन किया और पहनाया हीरक हार

जहां पर ज्ञान, संस्कृति, संस्कार और अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने जीवन को न्यौछावर कर देने वाले वीर सपूतों की गिनती नहीं की जा सकती, और उनके बलिदानों के कारण ही आज हम अपनी गुलामी की जंजीरों से मुक्त हो स्वतंत्रता का फल और जीवन जी रहे हैं। बहुत ही सुंदर शब्दों में एक गाना है जो आप सभी गुनगुनाते हैं….

हम लाए हैं तूफान से कश्ती निकाल के
 इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के

क्या? कभी गाने के पीछे छिपी मनसा या उस पर विचार किया गया? एक एक शब्द में विचार करके देखिए की गुलामी की तूफान से स्वतंत्रता रूपी कश्ती को हम अब तुम सब के हवाले कर रहे हैं इसे बचा कर रखना भी है और आगे तक ले जाना भी है।

परंतु नहीं हम केवल 15 अगस्त और 26 जनवरी को मातृभूमि देशभक्ति के गीत गाकर या तिरंगा फहराकर, हाथों में बांध ली या गाल पर चिपका लिए और अपना कर्तव्य समझ शाम के आते-आते सब भूल जाते हैं।

एक सच्ची घटना को बताना चाहूंगी एक बार मैं 15 अगस्त के आस पास एक हाथ ठेले पर एक बूढ़े दादाजी से छोटे छोटे तिरंगा झंडा खरीद रही थी और बातों ही बातों में उनसे कहा कि…. यही तिरंगा बड़े दुकानों पर महंगे दामों पर बेच रहे हैं और आप क्यों सस्ते दामों पर बेच रहे हैं। उन्होंने हाथ जोड़कर कहा…. बिटिया यह तिरंगा मैं बेच नहीं रहा मैं तो हमारे भारत के झंडे को जगह-जगह फैला रहा हूं। सभी के हाथों और गाड़ियों पर एक दिन ही सही तिरंगा लगा दीखे।

इसलिए जो जितना दे रहा है मैं कोई मोल भाव नहीं कर रहा। उनकी बातों से में प्रभावित हो उन्हें प्रणाम करते चली गई। आज भी उनके लिए मन श्रद्धा से भर उठता है कि उन दादा जी ने आजादी की कीमत कितना आंका हैं।

आधुनिक भारत में आजादी का मतलब राजनीति का भी होना को चुका है। जिसके दुष्परिणाम आप सब देख रहे हैं। आज सबसे बड़ी आजादी का मतलब युवा वर्ग निकाल रहा है। भारत में चरित्रिक पतन अपनी चरम सीमा पर है। जिसके कारण परिवारों का विघटन और अपनों का टूटता हुआ घर सरेआम दिखाई दे रहा है।

जिस देश में नदी पहाड पेड़ पौधे और तीर्थ स्थलों का पूजा महत्व दर्शाया गया है। वहां पर आज सांप्रदायिकता, आतंकवाद, भाषाभेद मतभेद और कुछ बचा तो राजनीतिक   पार्टियों के कारण आपसी मनमुटाव बढ गया है।

भारत स्वतंत्र हो चुका है परंतु संघर्षरत बन गया है। हर जगह एकता संगठन औरअनुशासन की कमी दिखाई दे रही है।

प्राचीन सभ्यताएं नष्ट हो चुकी है।  देश भक्ति की भावना महज दिखावा बनकर रह गया है। हम अपने आजादी को गलत रूप में गले लगा आगे बढ़ते जा रहे हैं। जो निश्चित ही पतन की ओर लिए जा रहा है।

आचार विचार, परस्पर सहयोग और सद्भावना मानवता जैसे शब्द अब केवल लिखने और बिकने को ही मिल रहे हैं। किसी को किसी के लिए समय नहीं है। आज मां बाप को शिक्षा की आजादी और उनकी योग्यता समझ चुप हो जाते हैं परंतु जब गलत दिशा पर जाने लगते हैं। तब वो ही आजादी कष्टदायक लगने लगती है।

विलासिता भरा जीवन अपने आप को आजादी का रूप मानने लगे हैं। आजादी का दुष्परिणाम तो आज घर घर छोटे-छोटे बच्चों से लेकर बड़ो तक बात सुनने में आता है क्या इसे ही आजादी कहा जाए? सम्मान सूचक शब्द और आदर करना पुराने रीति रिवाज लगते हैं। खुले आम गले में बाहें डाल गाड़ियों में बैठे ऐसे कितने नौजवान बेटे बेटियां दिखाई देते हैं क्या? इसे हम आजादी कहते हैं।

यदि किसी ने प्यार से समझाना भी चाहा तो उपहार कर या हूंटिग कर आगे बढ़ जाते हैं।

अगर हमारे वीर जवान ऐसे ही होते तो क्या… हमारा अपना भारतवर्ष गुलामी की बेड़ियों से मुक्त हो सकता था। कभी नहीं उन्हें तो उस समय देश प्रेम और अपनी मातृभूमि के अलावा कुछ भी दिखाई नहीं देता था। एक आठ साल का बच्चा भी अपने गुलाम भारत को मुक्त कराने के लिए रणबांकुरे बन अपनी आहुति दे देता था।

भारतीय नारी भी अपने पूर्ण परिधानों को पहन जौहर होने या तलवार चलाने से नहीं चुकी है। इसे कहते हैं आजादी। धन्य है वह भारत के वीर सपूतों को शत शत नमन जिनके कारण आज हम स्वतंत्र भारत के नागरिक कहलाए।

स्वतंत्रता रुपी धरोहर को बचाए रखना और इसे सुरक्षित रखना हमारा कर्तव्य समझना चाहिए और इसके लिए नागरिकों को जागरुक होना चाहिए।

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 98 ☆ भारतमाते ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 98 ☆

☆ भारतमाते ☆

भारतमाते तुला वाहिले

सारे माणिक मोती

नका रे विसरू आपली माती

 

मिळूनच सारे लढले होते

विसरून धर्म अन् जाती

 

फासावरती हसत चढले

किती विझल्या प्राणांच्या ज्योती

 

माता म्हणूनी पुजे धरणीला

या जगतात आमची ख्याती

 

तिन्ही बाजूने सागर डोलतो

अन् गंगा यमुना वहाती

 

शुभ्र असा हा उंच हिमालय

त्याच्या समान आमची नीति

 

सौंदर्याचीच हे खाण काश्मीर

निसर्गाशीच जुळती नाती

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लेखनी सुमित्र की#51 – दोहे – ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)

✍  लेखनी सुमित्र की #51 –  दोहे ✍

 

मेघ कुंतला याद है, याद रसीले बैन ।

मृगलोचन से दूधिया, मृगनयनी के नैन।।

 

कटि, तट, पनघट एक से, छविदाता अभिराम।

मुझे दिखाई दे रहा, लिखा प्यार का नाम।।

 

कहने को हम दूर हैं, लेकिन बहुत समीप ।

ऊर्जा लेकर आपकी, जलता प्राण प्रदीप।।

 

थकन, निराशा, खिन्नता, या तिरती मुस्कान ।

मन में क्या कुछ उठ रहा, कर लेता अनुमान।।

 

द्वैत भले हो देहगत, एहसासी एकत्व ।

अद्वैती है प्रेम रस, या फिर कहे ममत्व।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 50 – आँख की बही स्याही… ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत “आँख की बही स्याही…  । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 50 ☆।। अभिनव गीत ।।

☆ आँख की बही स्याही …  ☆

रोटी के टुकड़े में

देखे सम्भावना

भागवती को मुमकिन

भोजन प्रस्तावना

 

हुलस गई बाहर से

कक्षायें दिखने पर

देख सकी सरस्वती

के केवल टखने भर

 

स्कूली-गेट पर

खड़ी रही हाथ जोड़

फाटक से चिपकी सी

एक अदद प्रार्थना

 

अध्ययन समूचा तब

आँखों में आ सिमटा

पीठ पर पड़ा चुपके

भोजन का जब चिमटा

 

आँखों से बह निकला

शिक्षा प्रबंधन सब

फटी फ्रॉक से झाँकी

ललक लिये यातना

 

आँख की बही स्याही

अप्रत्याशित थी घटना

नहीं कोई सुन पाये

दिल्ली में या पटना

 

चोट खाये भूखे ही

सोयेगी भागवती

खंडित हो गई आज

जिसकी आराधना

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

20-07-2021

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संस्मरण # 97 ☆ स्वच्छता मिशन ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता  ‘नकली इंजेक्शन)  

☆ संस्मरण # 97 ☆ स्वच्छता मिशन ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

ये बात ग्यारह साल पहले की है, जब स्वच्छता मिशन चालू भी नहीं हुआ था…….. ।
समाज के कमजोर एवं गरीब वर्ग के सामाजिक और आर्थिक उत्थान में स्टेट बैंक की अहम् भूमिका रही है। ग्यारह साल पहले हम देश की पहली माइक्रो फाइनेंस ब्रांच लोकल हेड आफिस, भोपाल में प्रबंधक के रुप में पदस्थ थे। ग्वालियर क्षेत्र में माइक्रो फाइनेंस की संभावनाओं और फाइनेंस से हुए फायदों की पड़ताल हेतु ग्वालियर श्रेत्र जाना होता था। माइक्रो फाइनेंस अवधारणा ने बैंक विहीन आबादी को बैंकिंग सुविधाओं के दायरे में लाकर जनसाधारण को परंपरागत साहूकारों के चुंगल से मुक्त दिलाने में प्राथमिकता दिखाई थी, एवं सामाजिक कुरीतियों को आपस में बातचीत करके दूर करने के प्रयास किए थे।
एक उदाहरण देखिए……..
स्व सहायता समूह की एक महिला के हौसले ने पूरे गाँव की तस्वीर बदल डाली , उस महिला से प्रेरित हो कर अन्य महिलाऐं भी आगे आई …. महिलाओं को देख कर पुरुषों ने भी अपनी मानसिकता को त्याग दिया और जुट गए अपने गाँव की तस्वीर बदलने के लिए….. ।
 ………ग्वालियर जिले का गाँव सिकरोड़ी की अस्सी प्रतिशत जनसँख्या अनुसूचित जाति की है लोगों की माली हालत थी , लोग शौच के लिए खुले में जाया करते थे, स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया ने माइक्रो फाइनेंस योजना के अंतर्गत वामा गैर सरकारी संगठन ग्वालियर को लोन दिया , वामा संस्था ने इस गाँव को पूर्ण शौचालाययुक्त बनाने का सपना संजोया …. अपने सपने को पूरा करने के लिए उसने स्टेट बैंक की मदद ली , गाँव के लोगों की एक बैठक में इस बारे में बातचीत की गई , बैठक के लिए शाम आठ बजे पूरे गाँव को बुलाया गया , हालाँकि उस वक़्त तक गाँव के पुरुष नशा में धुत हो जाते थे और इस हालत में उनको समझाना आसान नहीं था , लेकिन वामा और स्टेट बैंक ने हार नहीं मानी, और फिर बैठक की ….बैठक में महिलाओं और पुरुषों को शौचालय के महत्त्व को बताया , पुरुषों ने तो रूचि नहीं दिखी लेकिन एक महिला के हौसले ने इस बैठक को सार्थक सिद्ध कर दिया । विद्या देवी जाटव ने कहा कि वह अपने घर में कर्जा लेकर शौचालय बनवायेगी , वह धुन की पक्की थी उसने समूह की सब महिलाओं को प्रेरित किया इस प्रकार एक के बाद एक समूह की सभी महिलाएं अपने निश्चय के अनुसार शौचालय बनाने में जुट गईं , पुरुष अभी भी निष्क्रिय थे …. जब उन्होंने देखा कि महिलाओं में धुन सवार हो गई है तो गाँव के सभी पुरुषों का मन बदला और तीसरे दिन ही वो भी सब इस सद्कार्य में लग गए और देखते ही देखते पूरा गाँव शौचालय बनाने के लिए आतुर हो गया , प्रतिस्पर्धा की ऐसी आंधी चली कि कुछ दिनों में पूरे गाँव के हर घर में शौचालय बन गए और साल भर में  कर्ज भी पट गए …. तो भले राजनीतिक लोग स्वच्छता अभियान, और शौचालय अभियान का श्रेय ले रहे हों,पर इन सबकी शुरुआत ग्यारह साल पहले स्टेट बैंक और माइक्रो फाइनेंस ब्रांच भोपाल ने चालू कर दी थी।
 ……. जुनून पैदा करो और जलवा दिखाओ।

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #41 ☆ व्यंग कविता – परिवर्तन ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है महामारी कोरोना से ग्रसित होने के पश्चात मनोभावों पर आधारित एक व्यंग्य कविता “# परिवर्तन #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 41 ☆

☆ # व्यंग कविता – परिवर्तन # ☆ 

स्वाधीनता के पावन पर्व पर

अपनी संपन्नता पर गर्व कर

नेताजी ने

कार में बैठते हुए

अभिमान से

अपनी गर्दन

ऐंठते हुए

अपने ड्रायवर

से कहा-

क्यों भाई

हमने इस देश को

कितना आगे बढ़ाया है

गरीबों का जीवनस्तर

कितना ऊपर उठाया है

अपना खून पानी

की तरह बहाकर

इस देश में कितना

परिवर्तन लाया है ?

 

बेचारा ड्रायवर

अपनी अल्पबुधी से

कुछ सोचते हुए

फटी कमीज़ से

माथे का पसीना

पोंछते हुए

बोला-

नेताजी,

हम तो बस

इसी सत्य को

मानते हैं

हम तो बस

इसी परिवर्तन को

जानते हैं

कि

आज से

पचहत्तर साल पहले

आपके पूज्यनीय पिताजी

आज ही के दिन

तिरंगा झंडा

फहराया करते थे

और

हमारे पिताजी

उन्हें वहाँ  तक

पहुँचाया करते थे

और आज

पचहत्तर साल बाद

आप झंडा फहराने

जा रहे हैं

और हम

आपको वहाँ तक

पहुँचा रहे हैं 

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार #100 ☆ व्यंग्य – स्वर्ग-प्राप्ति में पति की उपयोगिता ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार

डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज  प्रस्तुत है आपका एक अतिसुन्दर व्यंग्य  ‘स्वर्ग-प्राप्ति में पति की उपयोगिता’। इस अतिसुन्दर व्यंग्य रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 100 ☆

☆ व्यंग्य – स्वर्ग-प्राप्ति में पति की उपयोगिता

गुनवंती देवी पिछली शाम प्रवचन सुनने गयीं थीं। तभी से कुछ सोच में थीं। बार बार नज़र पति के चेहरे पर टिक जाती थी, जैसे कुछ टोह रही हों।

आखिर बोल फूटा, बोलीं, ‘मन्दिर में दो दिन से पुखराँय वाले पंडिज्जी का प्रवचन चल रहा है। कल कहने लगे, कितना भी भगवान की भक्ति और सेवा कर लो,स्त्री को पति की सेवा के बिना स्वर्ग नहीं मिल सकता। कह रहे थे पति के बिना स्त्री की कोई गति नहीं है।’

पतिदेव दाँत खोदते हुए अन्यमनस्कता से बोले, ‘अच्छा!’

गुनवंती देवी थोड़ा सकुचाते हुए बोलीं, ‘अब देखिए, स्वर्ग की इच्छा तो हर प्रानी को होती है। हम भी स्वर्ग जाना चाहते हैं। इसलिए हमने सोच लिया है कि अब मन लगाकर आपकी सेवा करेंगे और आपके आसिरवाद से स्वर्ग का प्रवेश पक्का करेंगे।’

पतिदेव घबराकर बोले, ‘अरे भई, अब तक तो तुमने कोई खास सेवा की नहीं है। दिन भर बातें ही सुनाती रहती हो। अब सेवा करने से पिछला कैसे पूरा होगा?’

गुनवंती देवी कुछ लज्जित होकर बोलीं, ‘हाँ जी, आप ठीक कहते हैं। अब तक तो आपकी कुछ खास सेवा नहीं हो पायी। अब वो अंगरेजी में कहते हैं न, ‘कंसेंट्रेटेड’ सेवा करेंगे तो पिछला भी पूरा हो जाएगा।’

फिर बोलीं, ‘अब हम सबेरे उठने पर और रात को सोते बखत आपके चरन छुएंगे। इससे काफी पुन्न मिलेगा। लेकिन आप अपने पैरों को थोड़ा साफ रखा करो। ऐसे ही गन्दे रखोगे तो हमें दूर से धरती छू कर ही काम चलाना पड़ेगा।

‘दूसरी बात यह है कि अब आपके नहाने के बाद बनयाइन वगैरा हमीं छाँटेंगे। लेकिन आप अपनी बनयाइन रोज बदल लिया करो। परसों हमने धोने के लिए डाली तो पसीने से इतनी गंधा रही थी कि हमें उबकाई आ गयी।’

पतिदेव पत्नी की मधुर बातें सुनते उन्हें टुकुर-टुकुर निहारते रहे।

गुनवंती देवी बोलीं, ‘अब जब आप खाना खाओगे तो हम बगल में बैठकर पंखा डुलाएंगे। हमारे पास पुराना बाँस का पंखा पड़ा है।’

पतिदेव बोले, ‘क्या करना है? सीलिंग फैन तो लगा है।’

गुनवंती देवी ने जवाब दिया, ‘सीलिंग फैन तो अपना काम करेगा, लेकिन उससे पुन्न थोड़इ मिलेगा। हम आपके खाने की मक्खियाँ भगायेंगे।’

पतिदेव बोले, ‘अपने घर में मक्खियाँ कहाँ हैं?’

गुनवंती देवी बोलीं, ‘नहीं हैं तब भी हम भगायेंगे। पुन्न तो मिलेगा।’ फिर बोलीं, ‘लेकिन जब हम पास बैठें तो डकार जरा कंट्रोल से लेना। ऐसे डकारते हो कि पूरा घर हिल जाता है।’

पतिदेव भावहीन चेहरा लिये उनके वचन सुनते रहे।

गुनवंती देवी बोलीं, ‘खाने के बाद हाथ हमीं धुलवायेंगे।’

पतिदेव भुनभुनाये, ‘वाश-बेसिन तो है।’

जवाब मिला, ‘वाश-बेसिन पर ही धोना, लेकिन हम जग से पानी डालेंगे। नल से नहीं धोना। हाथ धोने के बाद पोंछने के लिए हम तौलिया देंगे।’

गुनवंती देवी आगे बोलीं, ‘जब हम पूजा करेंगे तब आप बगल में बैठे रहा करो। पूजा के बाद आपकी आरती उतारकर तिलक लगाएंगे और प्रसाद खिलाएंगे। लेकिन आपको रोज नहाना पड़ेगा। अभी तो जाड़े में पन्द्रह पन्द्रह दिन बदन को पानी नहीं छुआते। गन्दे आदमी की आरती कौन उतारेगा?

‘रात में पाँव धो के सोओगे तो थोड़ी देर पाँव भी दबा दिया करेंगे। उसमें पुन्न का परसेंटेज बहुत ज्यादा रहता है।’

पतिदेव ने सहमति में सिर हिलाया।

अगले सबेरे से गुनवंती देवी का पति-सेवा अभियान शुरू हो गया। सबेरे पाँच बजे से पति को हिलाकर उठा देतीं, कहतीं, ‘उठो जी!बैठकर पाँव जमीन पर रखो। लेटे आदमी का पाँव छूना अशुभ होता है।’

पतिदेव चरणस्पर्श का पुण्यलाभ देकर फिर बिस्तर पर लुढ़क जाते। लेकिन उनका सुकून थोड़ी देर का ही रहता। फिर उठ कर नहा लेने के लिए आवाज़ लगने लगती। वे ऊँघते ऊँघते, मन ही मन पुखराँय वाले पंडिज्जी को कोसते, बाथरूम में घुस जाते।

गुनवंती देवी पति-परमेश्वर की आरती उतारतीं तो भक्ति के आवेग में आँखें मूँद लेतीं। परिणामतः पतिदेव को आरती की मार से अपनी ठुड्डी और नाक को बचाना पड़ता। कभी नाक में आरती का धुआँ घुस जाता तो छींकें आने लगतीं।

रात को गुनवंती देवी नियम से पति के पैर चाँपती थीं, लेकिन उनकी डाँट- फटकार से बचने के लिए पतिदेव को अपने पैर और तलुए रगड़ रगड़ कर धोने पड़ते थे। फिर भी सुनने को मिलता—‘हे भगवान, तलुए कितने गन्दे हैं!देखकर घिन आती है।’

पतिदेव का दोस्तों के घर रात देर तक जमे रहना बन्द हो गया क्योंकि गुनवंती देवी को दस बजे नींद आने लगती थी और सोने से पहले पाँव दबाने का पुण्य प्राप्त कर लेना ज़रूरी होता था। वे घड़ी देखकर एक आज्ञाकारी पति की तरह दस बजे से पहले घर में हाज़िर हो जाते। कभी देर तक बाहर रहना ज़रूरी हो तो पाँव दबवाकर फिर से सटक लेते थे।

इस तरह दो ढाई महीने तक गुनवंती देवी की ठोस पति-सेवा चली और इस काल में उन्होंने पर्याप्त पुण्य-संचय कर लिया। लेकिन इस पुण्य-दान में पतिदेव की हालत पतली हो गयी।

फिर एक दिन गुनवंती देवी पति से बोलीं, ‘कल बनारस के एक पंडिज्जी का प्रवचन सुना। उन्होंने समझाया कि परलोक सुधारने के लिए पति की सेवा जरूरी नहीं है। पति और गिरस्ती वगैरा तो सब माया हैं। भगवान की पूरी सेवा से ही स्वर्ग मिलेगा। इसलिए अब हम आपकी सेवा नहीं करेंगे। आपको जैसे रहना हो रहो। जब उठना हो उठो और जितने दिन में नहाना हो नहाओ।’

सुनकर पतिदेव की बाँछें खिल गयीं, लेकिन वे तुरन्त अपनी खुशी दबाकर, ऊपर से मुँह लटकाकर, बाहर निकल गये। उन्हें डर लगा कि उनकी खुशी पढ़कर कहीं गुनवंती देवी अपना फैसला बदल न दें।

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares
image_print