हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – विरोधाभास ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – विरोधाभास ? ?

तूफान-सी दौड़ती रेल आई

सरपट भागती पटरियों के पास

बसी झुग्गियाँ नजर आईं,

मेरी अनजान नजर से

झोपड़ी में जीवन थम-सा गया

ओट लेकर स्नान करती

षोढशी का रक्त जम-सा गया,

क्षण भर के लिए

मेरी दृष्टि उससे जा टकराई

वह सकुचाई

मुझे वितृष्ण हँसी आई,

आँखो में फ्रीज इस दृश्य के समांतर

उभरा दूसरा दृश्य

साबुन, शैम्पू के विज्ञापनों में

विवादास्पद होकर

नाम कमाने की

बाजारू दौड़ का

निर्वस्त्र होने की

कमर्शिअल होड़ का,

ये असहाय सलज्ज नैन

वे समर्थ निर्लज्ज नैन

मेरा देश, मानो विरोधाभास

का सजीव उदाहरण बन गया है!

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ श्रीरामनवमी  साधना पूरा करने हेतु आप सबका अभिनंदन। अगली साधना की जानकारी से शीघ्र ही आपको अवगत कराया जाएगा। 🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #228 ☆ भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं भावना के दोहे)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 228 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

मानुस गर्व न कीजियो, ऐसो कहत कबीर

कैसी विपदा आ पड़े, बनी जाये फ़क़ीर। 

*

हरि को भजना है हमें, हरि ही करे निदान।

हरि से मिलता है हमें, जीवन का वरदान  ।

*

 कभी प्रेम की बांसुरी, कभी सुरों का राग।

कभी पिया की रागनी, जीने का अनुराग ।

*

ब्रम्ह  आपके शब्द हुए,अर्थ हुई  तक़दीर।

वाक्य बनकर बस गए,दिल के हुये अमीर।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार # 3 – नवगीत – कर्मों की गीता… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम रचना – नवगीत – कर्मों की गीता…

? रचना संसार # 3 – नवगीत – कर्मों की गीता…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

चौसर की यह चाल नहीं है,

नहीं रकम के दाँव।

अपनापन है घर- आँगन में,

लगे मनोहर गाँव।।

*

खेलें बच्चे गिल्ली डंडे,

चलती रहे गुलेल।

भेदभाव का नहीं प्रदूषण,

चले मेल की रेल।।

मित्र सुदामा जैसे मिलते,

हो यदि उत्तम ठाँव।

*

जीवित हैं संस्कार अभी तक,

रिश्तों का है मान।

वृद्धाश्रम का नाम नहीं है

यही निराली शान।।

मानवता से हृदय भरा है,

नहीं लोभ की काँव।

*

घर-घर बिजली पानी  देखो,

हरिक दिवस त्योहार।

कूके कोयल अमराई में,

बजता प्रेम सितार।।

कर्मों की गीता हैं पढ़ते,

गहे सत्य की छाँव।

 

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #209 ☆ बाल गीत – बिल्ली मौसी ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है एक बाल गीत – बिल्ली मौसी। श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 210 ☆

☆ बाल गीत – बिल्ली मौसी ☆ श्री संतोष नेमा ☆

बिल्ली  मौसी  सबसे  प्यारी

करती   है  वो   सबसे  यारी

बिल्ली  मौसी  सबसे  प्यारी

*

सींका ऊपर चढ़ कर बिल्ली

पीकर  दूध  उड़ाती  खिल्ली

म्याऊं  म्याऊं बोल बोल कर

पड़ती  है  वो सब  पर भारी

बिल्ली  मौसी  सबसे  प्यारी

*

बड़ी  शेरनी  खुद को  समझे

चूहे   मार   उलझती   सबसे

छुप कर आती घर में घुसकर

दूध – मलाई    खाती    सारी

बिल्ली  मौसी  सबसे   प्यारी

*

कौन  बांधता   गले  में   घंटी

बिल्ली निकली सबकी अन्टी

आँख चमकती मूँछ  दमकती

सुनती   है  वो  सबकी  गारी

बिल्ली  मौसी  सबसे  प्यारी

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 7000361983, 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – चट्टान ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – चट्टान ? ?

मैं

चट्टान बनकर खड़ा हूँ

प्रवाह के बीचों-बीच

वह

नदी बनकर

मेरे इर्द-गिर्द बह रही है

समीक्षा के शौकीन

प्रवाह की तरलता

और सरलता की

आदर्श कथा सुना रहे हैं

बगैर तथ्य जाने-समझे

मुझ पर संवेदनहीन,

जड़ और भोथरा

होने का आरोप लगा रहे हैं,

मैं चुप हूँ

वैसा ही, जैसे तब था,

तब…जब, वह

अपने सारे उफान,सारे तूफान

सारा आक्रोश,सारा असंतोष

मुझसे बयान करती

मेरे सीने से लगती

मुझसे लिपटती

कहती,सुनाती और रोती,

उसके भीतर जमा

सबकुछ प्रवाहित होने लगता

वह हल्की होती

शनैः-शनैः नदी बन

बहने लगती

….और मैं

भीतर ही भीतर समेटे

सारे झंझावत

निःशब्द खड़ा रह जाता,

उसे प्रवहमान करने

की प्रक्रिया में

सारा भीतर

भीतर ही भीतर सूख जाता,

ये सूखा भीतर

नित विस्तार पाता रहा

वह हर क्षण प्रवाह होती गई

मैं हर पल पाषाण होता रहा,

अब वह उछलती-कूदती नदी है

मैं हूँ निर्जीव चट्टान,

पर प्रवाह का

इतिहास लिखनेवालों का

है कहना;

हर नदी के लिए

आवश्यक है

एक चट्टान का होना! 

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम को समर्पित साधना मंगलवार (गुढी पाडवा) 9 अप्रैल से आरम्भ होगी और श्रीरामनवमी अर्थात 17 अप्रैल को विराम लेगी 💥

🕉️ इसमें श्रीरामरक्षास्तोत्रम् का पाठ होगा, गोस्वामी तुलसीदास जी रचित श्रीराम स्तुति भी करें। आत्म-परिष्कार और ध्यानसाधना भी साथ चलेंगी 🕉️

 अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #43 ☆ कविता – “वोह…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 43 ☆

☆ कविता ☆ “वोह…☆ श्री आशिष मुळे ☆

खेल खेल में क्या सीखे

बने राजा फ़िर भी हारे

उसे कभी समझ ना पाए

खेल सारा वोह चलाए

 *

वोह चाहे उसको जिताए

चाहें मर्जी किसीको रुलाए

एक नज़र में जहां भुलाए

बर्फ़ को भी आग बनाए

 *

वोह देखें तो भी मौत

ना देखें तो भी मौत

इतनी ताकत किसमे होत

बगैर उसके जिंदगी रोत

 *

आलम दुनिया उसकी दीवानी

हर नक्श में उसकी निशानी

है औरत या है कहानी

हर रास्ते की मंज़िल सुहानी…

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 200 ☆ बाल गीत – काश ! परी यदि मैं बन जाता ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 200 ☆

बाल गीत – काश ! परी यदि मैं बन जाता ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

काश ! परी यदि मैं बन जाता।

अपने नाना से मिल आता।।

 *

नाना मेरे बड़े दुलारे।

मेरे हैं आँखों के तारे।।

 *

खेल खेलता मैं मुस्काता।

काश ! परी यदि मैं बन जाता।।

 *

मेरे नाना इतने अच्छे।

वे बिल्कुल बन जाते बच्चे।।

 *

मैं तो अपने पास सुलाता।

काश ! परी यदि मैं बन जाता।।

 *

मम्मा पार्क नहीं ले जातीं ।

देर रात तक मुझे जगातीं।

 *

नाना के सँग दौड़ लगाता।

काश ! परी यदि मैं बन जाता।

 *

नाना जगते सुबह – सकारे।

योग कराएँ न्यारे – न्यारे।।

 *

लप्पा लोरी सँग – सँग गाता।

काश ! परी यदि मैं बन जाता।।

 *

नाना मेरे कभी न डाँटें।

मम्मा झट से मारे चाँटे।।

 *

संग – साथ में भोजन खाता।

काश ! परी यदि मैं बन जाता।।

 *

नाना सपनों में आ जाते।

मुझ पर अपना प्यार लुटाते।।

 *

मेरा सपना सच हो जाता।

काश ! परी यदि मैं बन जाता।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #226 – कविता – ☆ आदमी सूरजमुखी सा… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता आदमी सूरजमुखी सा” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #226 ☆

☆ आदमी सूरजमुखी सा… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

हवाओं के साथ, रुख बदला नया है

आदमी, सूरजमुखी  सा हो गया है।

*

दोष देने में लगे हैं,  खेत को ही

घून खाए बीज, कोई  बो  गया है।

*

सोचना, नीति-अनीति व्यर्थ है अब

संस्कृति संस्कार घर में खो गया है।

*

संयमित हो कर, घरों  में  ही  रहें

खिड़कियों के काँच मौसम धो गया है।

*

सियासत का फेर, कारागार में

बढ़ गई बेशर्मियाँ, जो भी गया है।

*

फेन, फ्रिज, कूलर, सभी  चालु तो है

कौन सा भय फिर कमीज भिगो गया है।

*

अब बचा नहीं पाएँगे, मन्तर  उसे

रात उसकी छत पे उल्लू रो गया है।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 49 ☆ नभ उड़ानों पर लिया… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “नभ उड़ानों पर लिया…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 49 ☆ नभ उड़ानों पर लिया… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

 साधकर पर पाखियों ने

 नभ उड़ानों पर लिया।

 

 क्या करें आखिर

 कटे जो पेड़ थे

 चल पड़े कुछ लोग

 जो बस भेड़ थे

 पिया अमृत घट जिन्होंने

 कंठ भर कर विष दिया।

 

 डालियों पर बाँध

 अपनी हर व्यथा

 लिख वनस्पतियों में

 जीवन की कथा

 स्वर मिलाकर स्वरों से

 दर्द सारा पी लिया।

 

 चोंच में भरकर

 आशा की किरन

 पाँव में भटके

 ठिकानों की चुभन

 फड़फड़ाते रास्तों पर

 गीत कोई गा लिया।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – हरापन ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

रमते कणे कणे, इति राम:.. जो कण-कण में रमता है, वह (श्री) राम है। श्रीरामनवमी की हार्दिक बधाई। 

? संजय दृष्टि – हरापन ? ?

शादीब्याह में

हरी साड़ी

हरी चूड़ियाँ

यहाँ तक कि

अंतिम प्रयाण में भी

हरे वस्त्र,

महत्वपूर्ण है

स्त्री का हरा होना

हरा रहना..,

 

हरी घास

हरी पत्तियाँ

हरे पेड़

हरी काई

प्रकृति की

अक्षत सौंध है

हरा होना..,

 

पेड़-पत्तियाँ

निर्दय संहार के

शिकार हैं

पानी के अभाव में

काई पर

भ्रूण हत्या की मार है..,

 

मखमली घास पर

बलात लाद दी गई हैं

हजारों टन की इमारतें..,

 

चैनल बता रहे हैं

तलाक में

साढ़े तीन सौ

प्रतिशत की वृद्धि

लिव-इन

सिंगल पेरेंट

बलात्कार

विकृत यौन अत्याचार

और भी बहुत कुछ वीभत्स..,

 

दम जैसे

घुट-सा रहा है

हरापन हमसे

छूट-सा रहा है।

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम को समर्पित साधना मंगलवार (गुढी पाडवा) 9 अप्रैल से आरम्भ होगी और श्रीरामनवमी अर्थात 17 अप्रैल को विराम लेगी 💥

🕉️ इसमें श्रीरामरक्षास्तोत्रम् का पाठ होगा, गोस्वामी तुलसीदास जी रचित श्रीराम स्तुति भी करें। आत्म-परिष्कार और ध्यानसाधना भी साथ चलेंगी 🕉️

 अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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