हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार # 262 ☆ व्यंग्य – एक दिन ऐसा आयेगा ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार ☆

डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपका एक अप्रतिम विचारणीय व्यंग्य – ‘एक दिन ऐसा आयेगा। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 262 ☆

☆ व्यंग्य ☆ एक दिन ऐसा आयेगा

दफ्तर में एक टाइपिस्ट की ज़रूरत थी। अभी पोस्ट की मंज़ूरी नहीं आयी थी, इसलिए एक एडहॉक नियुक्ति करने का फैसला हुआ।

बंसगोपाल बाबू संकोच में सिमटते- सिकुड़ते साहब के पास पहुंचे, बोले, ‘सर, टाइपिस्ट की जगह के लिए अगर मेरे साले के नाम पर विचार हो जाए तो जनम जनम आपके गुन गाऊंगा।’

साहब पढ़े-लिखे, समझदार आदमी थे। बोले, ‘अगले जनम में तो आप तभी गुण गाएंगे जब आपको आदमी की योनि मिले। यह पक्का नहीं। इसलिए इसी जन्म की बात कीजिए। आपके साले साहब की टाइपिंग की स्पीड कैसी है?’

बंसगोपाल बाबू सिर खुजाते हुए बोले, ‘सर, अभी एक महीने से सीख रहा है। अभी तो थोड़ा धीमा है, लेकिन जल्दी फारवट हो जाएगा। दफ्तर में लग जाएगा तो सीख जाएगा।’

साहब बोले, ‘दफ्तर कोई टाइपिंग सिखाने वाला इंस्टिट्यूट नहीं है, बंसगोपाल बाबू। आप चाहें तो कल अपने साले साहब को ले आइए।मैं काम कराके देखूंगा, तभी फैसला करूंगा।’

दूसरे दिन साले साहब आ गये। साहब ने उनकी जांच की, फिर बोले, ‘बंसगोपाल बाबू, आपके साले साहब ज़्यादा देर टाइप करेंगे तो कंप्यूटर को सुधरने भेजना पड़ेगा। काफी वज़नदार हाथ मारते हैं। स्पीड बहुत धीमी है। अभी आप इनको घर पर ही रखिए। कुछ दिन रियाज़ करने के बाद देखेंगे।’

अशोक नाम के लड़के को रख लिया गया। कुछ दिन बंसगोपाल बाबू अशोक से नाराज़ रहे क्योंकि वह उनके साले की जगह छीन कर बैठा था, फिर धीरे-धीरे सामान्य हो गये।

अशोक अस्थायी था इसलिए दब कर रहता था। साहब जो भी काम बताते, बिना ना- नुकुर के कर देता। दूसरे बाबू पांच बजे तक अपने  दराज़ों में  ताले जड़कर चलते बनते, वह छः सात बजे तक खटर-पटर करता रहता। उसे साहब को खुश रखकर अपना भविष्य बनाना था।

साहब से तो कोई परेशानी नहीं थी, लेकिन दूसरे सभी बाबू यह समझने लगे थे कि उसकी नियुक्ति विशेष तौर से उन्हीं की सेवार्थ हुई है। दफ्तर में एक  और पुराने टाइपिस्ट बाबू सेवालाल थे। वे अपना तीन-चौथाई काम उसके सिर पर पटक देते थे। सिर्फ बहुत महत्वपूर्ण कागज़ों के लिए ही वे अब कंप्यूटर को अपनी उंगलियों का स्पर्श-सुख देते थे। उनका कहना था— ‘काम नहीं करोगे तो सीखोगे कैसे? खूब टाइप करोगे तभी तो रवानी आयेगी।’

पूरे दफ्तर की नज़र उस पर जमी रहती थी। वह फुरसत में दिखा नहीं कि किसी न किसी कोने से आवाज़ आ जाती थी— ‘भैये, जरा एक मिनट आना। ये फिगर चेक कर लेना। कहीं गलती न रह गयी हो।’ फिर खाली हुआ कि दूसरे कोने से आवाज़ आ जाती— ‘अरे ब्रदर, जरा आना तो। इन बिलों की एंट्री कर दो। वो शर्मा बाबू बुला रहे हैं। थोड़ा बैठ आऊं।’

उसके बगल वाले नन्दी बाबू तो बगुले की तरह उसकी मेज़ पर नज़र जमाये रहते थे। ज़रा खाली हुई नहीं कि अपना गट्ठा उसकी तरफ सरका देते। कहते, ‘जरा निपटाओ भैया, अपना तो सिर दर्द करने लगा।’

वह अपने काम से जब भी ऊपर नज़र उठाता, उसे कोई न कोई हाथ बुलाने के लिए हिलता नज़र आता। इसलिए वह अपना सिर कम  उठाता था। सीधे देखने के बजाय वह  कनखियों से ज़्यादा देखता था। काम  इतना लाद दिया जाता कि वह लंच टाइम में भी लगा रहता। एक दो बाबू थे जो उस पर दया-दृष्टि रखते थे, लेकिन बाकी सब उसे लद्दू घोड़ा समझकर अपना काम उस पर पटके जा रहे थे।

कुछ लोग रोज़ दफ्तर से दस बीस शीट कागज़ घर ले जाने के  आदी थे। वे भी उसी से मांगते। कहते, ‘घर में थोड़ा बहुत लिखा-पढ़ी का काम रहता है। दफ्तर में इतना कागज रहता है। पैसा खर्चने से क्या फायदा?’

बड़े बाबू का तरीका दूसरा था। अशोक काम में लगा रहता तो वे मिठास से कहते, ‘अशोक बाबू, कितना काम करोगे? थोड़ा घूम घाम आओ।’

वह जाने के लिए उठता तो वे अपनी जैकेट की जेब में हाथ डालते, कहते, ‘एक ज़र्दे वाला पान लेते आना।’

पान की फरमाइश करते वक्त वे अपना हाथ हमेशा जैकेट की जेब में डालते ज़रूर थे, पर सबको पता था कि वे पैसा कुर्ते की जेब में रखते थे। उनका हाथ जैकेट की जेब में तब तक घुसा रहता था जब तक अशोक ‘रहने दीजिए बड़े बाबू, मैं ले आऊंगा’ न कह देता। उसके यह कहते ही वे संकोच दिखाते हुए ‘अरे भाई’ कह कर हाथ को जैकेट के बंधन से मुक्त कर लेते।

दफ्तर के सयाने वक्त-वक्त पर अशोक को सीख देते थे— ‘देखो भैया, हम लोग दफ्तर के सीनियर आदमी हैं। जब पक्का अपॉइंटमेंट होगा तो साहब हम लोगों की राय लेंगे। हम लोगों की थोड़ी बहुत सेवा करते रहोगे तो आगे तुम्हारा भविष्य उज्ज्वल होगा। सेवा करो, मेवा खाओ। अभी तुम्हारी नयी उम्र है, ज्यादा काम से तुम्हारा कोई नुकसान नहीं होगा। शरीर का क्या है? जैसा बना लो, वैसा बन जाएगा। आराम-तलब बन जाओगे तो आगे काम करना मुश्किल हो जाएगा और भविष्य भी खतरे में पड़ जाएगा।’

दफ्तर के बाबुओं में एक कवि भी थे— छोटेलाल ‘आहत’। वे दफ्तर के टाइम में भी कविताएं लिखते थे और दफ्तर में ही उन्हें टाइप कराते थे। पांच बजे के बाद वे अशोक से चिपक कर बैठ जाते, कहते, ‘गुरू, जरा फटाफट टंकित तो कर दो। जब संग्रह छपेगा तो कृतज्ञता- ज्ञापन में तुम्हारा नाम भी जाएगा।’ अशोक को उनकी कविताएं टाइप करके ही छुट्टी नहीं मिलती थी, उन्हें सुनना भी पड़ता था, जो टाइपिंग से ज़्यादा कष्टदायक काम था।

अशोक ने छः महीने इसी तरह हम्माली में काटे। अन्त में पक्की नियुक्ति का आदेश आ गया। इंटरव्यू हुए।

बंसगोपाल बाबू एक बार फिर साहब के सामने हाज़िर हुए, बोले, ‘सर, अब तो साले को रखने पर विचार कीजिएगा। घरवाली कहती है कि साहब से जरा सा काम भी नहीं करा सकते। घर में पोजीशन खराब होती है सर।’

साहब ने पूछा, ‘टाइपिंग में कोई तरक्की की उसने?’

बंसगोपाल बोले, ‘क्या तारीफ करूं, सर। अब तो एक मिनट में शीट निकाल कर फेंक देता है। एकदम फरचंट हो गया है। कंप्यूटर पानी की तरह चलता है, सर।’

फिर टेस्ट हुआ। अशोक की नौकरी नियमित हो गयी। बंसगोपाल बाबू फिर मायूस हुए। साहब से पूछा तो उन्होंने जवाब दिया, ‘बंसगोपाल बाबू, आपके साले का कंप्यूटर पानी पर नहीं, बरफ के ढेलों पर चलता है। जब बरफ पिघल जाएगी तब सोचेंगे।’

नियमित होते ही अशोक का हाव- भाव बदल गया। आदमी को बिगड़ते भला कितनी देर लगती है? जब नन्दी बाबू ने अपना गट्ठा उसकी तरफ सरकाया तो उसने उसे वापस ढकेलते हुए कहा, ‘नन्दी बाबू, अपना गट्ठा संभालो। सिरदर्द के इलाज के लिए बाजार में बहुत सी दवाएं मिलती हैं।’

अब उसे कोई हाथ उठा कर बुलाता तो वह हाथ उठाकर ही निषेध कर देता। टाइम से काम बन्द करके लंच पर जाता और टाइम से लौटता। शाम को भी पांच बजे ही काम समेटना शुरू कर देता।

‘आहत’ जी कविताएं लेकर आते तो कहता, ‘जरा साहब से परमीशन ले लीजिए। पता चल जाएगा तो मेरी पेशी हो जाएगी।’ ‘आहत’ जी ने दुखी होकर कविताओं को हाथ से ही ‘फेयर’ करना शुरू कर दिया। यही  जवाब उनको भी मिला जो दफ्तर को कागज़ की फ्री सप्लाई का डिपो समझते थे। उनके भी अच्छे दिनों का अन्त हुआ।

अब बड़े बाबू पान मंगाते तो अशोक तब तक उनके सामने खड़ा रहता जब तक उनका हाथ जैकेट से निकल कर कुर्ते में न चला जाता ।

एक दिन बड़े बाबू दुखी स्वर से साहब से बोले, ‘अब अशोक में पहले वाली बात नहीं रही सर।’

साहब ने पूछा, ‘क्या बात है? काम में गड़बड़ी करता है क्या?’

बड़े बाबू जल्दी से बोले, ‘नहीं नहीं, यह बात नहीं है सर। बस पहले से थोड़ा चालू हो गया है।’

साहब समझकर व्यंग्य से मुस्करा दिये।

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of social media # 209 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of social media # 209 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 209) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..! 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 209 ?

☆☆☆☆☆

मुझको तो दर्द-ए-दिल का

मज़ा याद आ गया

तुम क्यों हुए उदास

तुम्हें क्या याद आ गया…

☆☆

Remembered the bliss filled

Anguish of my lovelorn heart

Why did you become sad

Did you also miss something

☆☆☆☆☆

कहने को जिंदगी थी

बहुत मुख़्तसर मगर

कुछ यूँ बसर हुई कि

खुदा याद आ गया…

☆☆

Had a life so to say

Though much ephemeral

Passed in such away that

Made me remember the God..!

☆☆☆☆☆

अगर इश्क़ करो तो

अदब ए  वफ़ा भी सीखो

ये चंद दिनों की बेकरारी

मोहब्बत नहीं होती..

☆☆

If you love someone then

Learn to practise loyalty too

A few days of restlessness

Is not construed as love…!

☆☆☆☆☆

उनके हाथों में मेहंदी लगाने का

ये फायदा हुआ…

की रात भर उनके चेहरे से

ज़ुल्फ हम हटाते रहे…

☆☆

Reward of applying mehndi on her

Hands was that I was privileged 

To remove the bangs of hair from 

Her face throughout the night…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 209 ☆ गीत – गिनती कर किससे क्या पाया? ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है गीत  गिनती कर किससे क्या पाया? …।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 209 ☆

☆ गीत – गिनती कर किससे क्या पाया?  ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

जो थक-चुका वृद्ध वह ही है

अपना मन अब भी जवान है

अगिन हौसले बहुत जान है…

*

जब तक श्वासा, तब तक आशा

पल में तोला, पल में माशा

कटु झट गुटको, बहुत देर तक

मुँह में घुलता रहे बताशा

खुश रहना, खुश रखना जाने

जो वह रवि सम भासमान है

उसका अपना आसमान है…

*

छोड़ बड़प्पन बनकर बच्चा

खुद को दे तू खुद ही गच्चा

मिले दिलासा झूठी भी तो

ले सहेज कह जुमला सच्चा

लेट बिछा धरती की चादर

आँख मुँदे गायब जहान है

आँख खुले जग भासमान है…

*

गिनती कर किससे क्या पाया?

जोड़ कहाँ क्या लुटा गँवाया?

भुला पहाड़ा संचय का मन

जोड़ा छूटा काम न आया

काम सभी कर फल-इच्छा बिन

भुला समस्या, समाधान है

गहन तिमिर ही नव विज्ञान है

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१.१०.२०२४

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (21 अक्टूबर से 27 अक्टूबर 2024) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (21 अक्टूबर से 27 अक्टूबर 2024) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

किसी ने कहा है की जो समय का ध्यान रखता है समय उसका मान रखता है। समय का ध्यान रखने के लिए यह आवश्यक है की आपको मालूम हो कि आने वाला समय कैसा है। आपकी इसी समस्या को हल करने के लिए मैं पंडित अनिल पांडे आपको 21 अक्टूबर से 27 अक्टूबर अर्थात विक्रम संवत 2081 शक संवत 1946 के कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी से कार्तिक कृष्ण पक्ष की दशमी तक के सप्ताह के साप्ताहिक राशिफल को लेकर उपस्थित हुआ हूं।

इस सप्ताह प्रारंभ में चंद्रमा वृष राशि का रहेगा। 21 अक्टूबर के 11:31 रात से वह मिथुन राशि में प्रवेश करेगा। चंद्रमा 23 तारीख को 5:08 रात अंत से कर्क राशि का हो जाएगा और 26 अक्टूबर को 1:08 दिन से सिंह राशि में गोचर करने लगेगा।

इस पूरे सप्ताह सूर्य और बुध तुला राशि में, मंगल कर्क राशि में, शुक्र वृश्चिक राशि में, वक्री गुरु वृष राशि में, वक्री शनि कुंभ राशि में और बक्री राहु मीन राशि में भ्रमण करेंगे। आईये अब हम राशिवार राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

इस सप्ताह आपके पास धन आने का योग बन रहा है परंतु आपके सुख में थोड़ी कमी आ सकती है। यह सप्ताह आपकी व्यापार के लिए उत्तम रहेगा आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य ठीक रह सकता है इस सप्ताह आपके लिए 24, 25 और 26 तारीख की दोपहर तक का समय शुभ है। 24, 25 और 26 तारीख को आपके सुख में वृद्धि हो सकती है। सप्ताह के बाकी दिन सामान्य हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप सूर्य देव को प्रातः काल स्नान की उपरांत जल अर्पण करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

वृष राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। अगर आप अविवाहित हैं तो नए रिश्ते आ सकते हैं। भाई बहनों के साथ आपका तनाव बढ़ सकता है। कार्यालय में आपकी परेशानी का समय लगातार चल रहा है। इस सप्ताह आपके लिए 21 अक्टूबर और 26 के दोपहर के बाद से तथा 27 तारीख अनुकूल है। सप्ताह के बाकी दिन ठीक है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप लाल मसूर की दाल का दान करें तथा मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में जाकर तीन बार हनुमान चालीसा का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

मिथुन राशि

इस सप्ताह आपके खर्चे में कमी आएगी। कार्यालय में आपका वाद विवाद जारी रहेगा। प्रयास करने के बाद भी धन कम मात्रा में आएगा। आपके संतान को कष्ट हो सकता है। व्यापार ठीक रहेगा। इस सप्ताह आपके लिए 22 और 23 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त है। 22 और 23 तारीख को धन आने की भी संभावना है। 21 तारीख को आपको सावधान रहकर कोई भी कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन काली उड़द का दान करें और शनिवार को शनि मंदिर में जाकर शनिदेव की आराधना करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कर्क राशि

इस सप्ताह आपके माता जी का स्वास्थ्य पहले से ठीक रहेगा। आपके संतान को थोड़ी परेशानी हो सकती है। धन आने की उम्मीद है। आपका स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। इस सप्ताह आपके लिए 24, 25 और 26 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए लाभदायक है। 22 और 23 तारीख को आपको सावधान रहकर के कोई भी कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

सिंह राशि

इस सप्ताह आपको कचहरी के मामलों में सफलता मिल सकती है। आपके माता जी का स्वास्थ्य थोड़ा कमजोर हो सकता है। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक रहेंगे। आपके पराक्रम में वृद्धि हो सकती है। भाग्य आपका साथ दे सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 21 और 27 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त हैं। 26 तारीख के दोपहर के बाद का समय भी ठीक-ठाक है। 24, 25 और 26 तारीख को आपको कोई भी कार्य बड़े सावधानी पूर्वक करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन भगवान शिव का दूध और जल से अभिषेक करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कन्या राशि

इस सप्ताह आपका व्यापार ठीक चलेगा। धन आने की मात्रा में कमी आएगी। व्यापार में लाभ की मात्रा भी कम रहेगी। 22, और 23 तारीख को आपको धन लाभ हो सकता है। दुर्घटनाओं से आपको सतर्क रहना चाहिए। भाई बहनों के साथ संबंध तनावपूर्ण रहेंगे। इस सप्ताह आपके लिए 22 और 23 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त हैं। 26 और 27 तारीख को आपको कोई कार्य करने के पहले पूरी सावधानी बरतना चाहिए। 21 तारीख को भाग्य से आपको कुछ मदद मिल सकती है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

तुला राशि

इस सप्ताह आपका और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। पिताजी के स्वास्थ्य में कुछ परेशानी आ सकती है। कार्यालय में आपको सतर्क रहकर कार्य करना चाहिए। दुर्घटनाओं से बचने का प्रयास करना चाहिए। इस सप्ताह आपके लिए 24, 25 और 26 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए लाभदायक है। 21 तारीख को आपको सावधान रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप रुद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

वृश्चिक राशि

अविवाहित जातकों के विवाह के प्रस्ताव आ सकते हैं तथा विवाह तय भी हो सकता है। कचहरी के कार्यों में सफलता मिल सकती है। आपके शत्रु शांत रहेंगे परंतु समाप्त नहीं हो पाएंगे। इस सप्ताह आपके लिए 21 और 27 तारीख हित वर्धक है। 26 तारीख के दोपहर के बाद का समय भी ठीक-ठाक है। 22 और 23 तारीख को आपको कोई भी कार्य पूरी सावधानी से करना चाहिए। 21 और 27 तारीख को आपको भाग्य से मदद मिल सकती है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। कार्यालय के कार्यों में आप आप सफल रहेंगे। भाग्य आपकी मदद करेगा। भाई बहनों के साथ संबंध तनावपूर्ण हो सकते हैं। दुर्घटनाओं से आप बच जाएंगे। इस सप्ताह आपके लिए 22 और 23 तारीख लाभकारी है। सप्ताह के बाकी दिनों में आपको सतर्क रहकर कार्य करने की आवश्यकता है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन शिव पंचाक्षरी मंत्र का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

मकर राशि

इस सप्ताह आपको राजकीय कार्यों में सफलता मिल सकती है। कार्यालय में आपकी स्थिति ठीक रहेगी। व्यापार आपका उत्तम चलेगा। भाग्य से आपको मदद मिलेगी। लंबी यात्रा का योग बन सकता है। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक नहीं रहेंगे। संतान से आपके सहयोग मिल सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 24, 25 और 26 तारीख के दोपहर तक का समय किसी भी कार्य को करने के लिए उत्तम है। सप्ताह के बाकी दिन आपको सतर्क रहकर कार्य करने की आवश्यकता है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गरीब लोगों के बीच में तिल का दान करें। और शनिवार को दक्षिण मुखी हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम तीन बार हनुमान चालीसा का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

कुंभ राशि

इस सप्ताह भाग्य आपका साथ देगा। व्यापार में उत्तम गति रहेगी। गलत रास्ते से धन आने का योग है। शत्रुओं को आप परास्त कर सकेंगे। माता जी का स्वास्थ्य थोड़ा ठीक हो सकता है। कार्यालय में आपको सतर्क रहना चाहिए। इस सप्ताह आपके लिए 21 और 27 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए उचित है। 26 तारीख के दोपहर के बाद का समय भी उत्तम है। 24, 25 और 26 के दोपहर तक आपको कोई भी कार्य पूरी सावधानी से करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

मीन राशि

इस सप्ताह आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। माताजी और पिताजी का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। कार्यालय के कार्यों में आपकी स्थिति सामान्य रहेगी। भाग्य से कोई विशेष मदद नहीं मिलेगी। इस सप्ताह आपके लिए 22 और 23 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए लाभदायक है। 26 तारीख के दोपहर के बाद से एवं 27 तारीख को आपको कोई भी कार्य बड़ी सावधानी से करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गायत्री मंत्र का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

ध्यान दें कि यह सामान्य भविष्यवाणी है। अगर आप व्यक्तिगत और सटीक भविष्वाणी जानना चाहते हैं तो आपको किसी अच्छे ज्योतिषी से संपर्क कर अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाना चाहिए। मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ फक्त ठरवा …कधी आणि किती… ☆ सुश्री नीलांबरी शिर्के ☆

सुश्री नीलांबरी शिर्के

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

☆ फक्त ठरवा …कधी आणि किती… ☆ सुश्री नीलांबरी शिर्के

कधी भुंकायचं !

किती भुंकायचं !

आताच ठरवून

लक्षात ठेवायच 

*

 नंतर काम आपापला

 एरिया सांभाळायचं 

 भुंकून भागलं नाही तर … 

.. तर चावे घेत सुटायचं 

*

 किती सज्जन असो

समोर लक्ष ठेवायचं

विरोधी आपला नसतो

आपण फक्त भुंकायचं 

*

 पोटाला तर मिळतंच

 काळजी का करायची

 संधी मिळाली की मात्र

 तुंबडी आपली भरायची

*

 आपल्या अस्तित्वाची

 भुंकणं ही खूण आहे

 पांगलो तरी जागे राहू

 चौकस नजर हवी आहे

*
 खाऊ त्याची चाकरी करू

 म्हण जूनी झाली आहे

 रंगानं, अंगानं वेगवेगळे

 तरी काम आपलं एक आहे……..

©  सुश्री नीलांबरी शिर्के

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ नींद क्यों रात भर नहीं आती? ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी, बी एड, प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । ‘यादों की धरोहर’ हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह – ‘एक संवाददाता की डायरी’ को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह- महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

☆ आलेख ☆ नींद क्यों रात भर नहीं आती? ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

यह एक उम्र का बहुत बड़ा सवाल बन जाता है कि नींद क्यों रात भर नहीं आती ? और अगर पूरी नींद ले भी ली और फिर भी उठने के बाद आप फ्रेश महसूस नहीं करते तो यह भी एक समस्या से कम नहीं है! आठ घंटे की भरपूर नींद के बाद भी थके थके से क्यों? इसे ताज़गी न देने वाली नींद कहा जाता है। यदि अक्सर आप ऐसा ही महसूस करते हैं तो यह खतरे की घंटी से कम नहीं! आपको अलर्ट होने की जरूरत है।

न्यूरोलोजिस्ट डाॅ सोनजा कहती हैं कि हर सुबह थका हुआ जागना निराशाजनक है आपके लिए! यह आपकी पूरी दिनचर्या को बिगाड़ सकता है। नींद की गुणवत्ता में सुधार  लाने और सुबह तरोताज़ा होने पर विचार कीजिये, कोई उपाय कीजिये! यदि आप लगातार नींद कम आने से जूझ रहे हैं तो अपनी आदतों की ओर ध्यान दीजिये और एक ही समय पर सोना, दिन के समय भरपूर काम और खानपान की ओर ध्यान दीजिये! लक्ष्य रखे़ं और उन्हें पूरा करने पर ध्यान केंद्रित रखिये! प्रतिदिन सुबह कम से कम बीस मिनट की सैर अपनी सुबह में शामिल कर लीजिए! अपनी दिनचर्या पहले से निर्धारित कर लीजिए तो और बेहतर रहेगा! देर रात  जागना या रात का खाना देरी से खाना भी नींद में बाधा बन सकता है। नींद की ज्यादा दवाइयां लेने से बचिये तो बेहतर रहेगा आपके लिए! पानी बीच बीच में पीते रहिये! निष्क्रिय न रहिये, कुछ न कुछ काम ढूंढते रहिये तो अच्छा रहेगा!

बाकी कहते हैं कि धीमा धीमा संगीत और बहुत डिम सी रोशनी में भी नींद आपको अपनी आगोश में लेते देर नहीं लगाती। अच्छा साहित्य भी साथ दे सकता है नींद लाने में। मनपसंद संगीत सुनिये और फिर मस्त मस्त नींद ही नहीं ख्बाब लीजिए! सपनों में वे भी आयेंगे, जिनको आप दिनभर याद करते रहे हैं! बस, यह शिकायत न कीजिये:

नींद क्यों रात भर आती नहीं?

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – व्यंग्य ☆ शेष कुशल # 47 ☆ व्यंग्य – “क्रेडिट कार्ड के जाल में जेन ज़ेड मछली…” ☆ श्री शांतिलाल जैन ☆

श्री शांतिलाल जैन

 

(आदरणीय अग्रज एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी विगत दो  दशक से भी अधिक समय से व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी पुस्तक  ‘न जाना इस देश’ को साहित्य अकादमी के राजेंद्र अनुरागी पुरस्कार से नवाजा गया है। इसके अतिरिक्त आप कई ख्यातिनाम पुरस्कारों से अलंकृत किए गए हैं। इनमें हरिकृष्ण तेलंग स्मृति सम्मान एवं डॉ ज्ञान चतुर्वेदी पुरस्कार प्रमुख हैं। श्री शांतिलाल जैन जी  के  स्थायी स्तम्भ – शेष कुशल  में आज प्रस्तुत है उनका एक अप्रतिम और विचारणीय व्यंग्य  क्रेडिट कार्ड के जाल में जेन ज़ेड मछली…” ।)

☆ शेष कुशल # 45 ☆

☆ व्यंग्य – “क्रेडिट कार्ड के जाल में जेन ज़ेड मछली…” – शांतिलाल जैन 

एक मछली और मर गई. – इसमें हैरत की कौनसी बात है!!

बात है श्रीमान. काया इंसान की, मगर काँटे में मछली की तरह फँस गई थी. जेन ज़ेड पीढ़ी का वय. महज़ साढ़े पच्चीस बरस की उम्र. अपने कमरे में, अपने ही पंखे से, अपनी ही बेडशीट का फंदा लगाकर, अपनी ही जान ले ली. कार्पोरेट मछुआरे के बिछाए आकर्षक लुभावने जाल में फँस गई थी वो. क्रेडिट कार्ड का जाल. प्लैटिनम एलिट कार्ड. नाम से ही अमीरी टपकाता. कार्ड प्लास्टिक का, तासीर लोहे की. मेग्नेटिक स्ट्रिप उसे खेंच रही थी. बाज़ार के समंदर की लहरें उसे जाल की तरफ धकेल रही थीं तो कैसे नहीं फँसती!!  ‘ये क्रेडिट कार्ड हम खास आपके लिए लाए हैं.’  कोमल, मधुर, मखमली आवाज़ में की गई जादुई पेशकश ठुकरा पाना मुश्किल था. वो भी मना नहीं कर सकी थी. जाल में फँस ही गई.

जेन-ज़ेड मछली जब फँसी तो दम एक-दम से तोड़ा नहीं था. छटपटाती रही, तड़पती रही, पछताती रही मगर बच नहीं सकती थी. उसकी नींद काफूर हो चुकी थी और चैन सिरे से गायब. खरीदी का पहला महीना ख़त्म हुआ, मिनिमम ड्यूज चुकाया और बचे बेलेंस के साथ दन्न से आ धंसी कर्ज के दलदल में, फिर और धंसी, थोड़ा और धंसी. दलदल शनै-शनै गहराता जाता था. पहले अठारह, फिर चौबीस, फिर छत्तीस परसेंट ब्याज की गहराई में वो उतरती-धंसती चली गई. उसके आगे हाराकिरी करने की नौबत आन पड़ी.

कार्पोरेट मछुआरे ने जेन ज़ेड मछली को जादुई कालीन से उपभोग की दुनिया की सैर कराने का रोमांचक सपना दिखाया था. वो कब कालीन पर बैठ कर उड़ चली पता ही नहीं चला. आकर्षक खूबसूरत फ्रेंड के साथ सातवें आसमां की सैर पर पहुँची. यहाँ उसे आईफोन मिला, बाईक मिली, एसयूवी बुक की, होम थियेटर मिला, महंगे डिज़ाइंड अप्पैरल्स मिले, हॉलीडे होम मिला, लक्ज़री स्टे मिला, बिग बनयान मर्लोट का ड्रिंक और लज़ीज़ इंटरकॉन्टिनेंटल खाना. पूरे महीने मौज, मस्ती, फन अनलिमिटेड. मंत्रमुग्ध थी. उसे लगा कि कारूं के खजाने की चाबी उसकी ज़ेब में आ गई है. कहाँ समंदर में पड़ी रही अब तक, असली दुनिया तो यहाँ है, उपभोग के आसमान में. और, कमाल ये कि उसे कहीं कोई भुगतान नहीं करना पड़ा. बस बेचवाल की मशीन में कार्ड से चीरा लगाया और विलासिता की भव्य दुनिया में प्रवेश कर गई. महीना पूरा होने तक यहाँ एन्जॉय के सिवाय कुछ नहीं था. जो भी है बस एक यही पल है. पूरा आसमान तुम्हारा है बस ओटीपी सही से डालना. फिर एक दिन बैंक से स्टेटमेंट मिला और जादुई कालीन एक मज़बूत जाल में बदल गया. जेन-ज़ेड मछली पूरी तरह गिरफ्त में आ चुकी थी.

क्या पूछा आपने श्रीमान कि मछली के कांटे में चारा कौनसा लगाया था ? कमाल करते हैं आप. बड़े, आकर्षक, लुभावने, रंगीन, पूरे पेज के विज्ञापन नहीं देखे आपने ? कॅशबैक का चारा. नो कास्ट ईएम्आई का चारा. डिसकाउंट का चारा, रिवार्ड पॉइंट्स का चारा, लॉयल्टी पॉइंट्स का चारा. एयरपोर्ट के लक्ज़री लाऊंज़ में फ्री इंट्री का चारा. होलीडेईंग में छूट की चारा. कैशबैक, रिवार्ड, लॉयल्टी पॉइंट्स के बदले मालदीव्स की मुफ्त सैर का चारा. नए नए टाईप के चारे. चारे का चस्का. चस्के के काँटे में फंसी जेन ज़ेड के पास छुड़ाकर निकल पाने की गैल न थी.

क़र्ज़ का दलदल गीला तो था मगर उसमें मछली के लायक पानी न था. कुछ था तो वसूली का तकादा था, डेलिंक्वेंट लिस्ट में नाम था, खराब सिबिल स्कोर था और रिकवरी एजेंट के बाउन्सर्स का डर था. फ्रेंड अन-फ्रेंड हो चुके थे. रिश्तेदारों ने असमर्थता व्यक्त कर दी थी. माता-पिता ने जीवनभर की कमाई दे दी तब भी क़र्ज़ चुक नहीं पा रहा था. तो क्या करती जेन-ज़ेड मछली. फंदा लगाकर झूल गई.

कुछ लिखकर गई क्या ? नहीं. लेकिन सुना है तूती जैसी आवाज़ में कुछ बोलकर रिकार्ड कर गई है जो बाज़ार के नक्कारखाने में सुनाई नहीं दे रहा है. सुन पा रहे हैं तो बस कार्पोरेट का अट्टहास, क्रेडिट कार्ड की ग्रोथ के आंकड़े, जीडीपी में योगदान, क्रेडिट कार्ड कंपनी के विस्तार की योजनाओं के ऐलान. जाल अभी और लम्बा फिंकेगा. बाज़ार की शार्क का आसान शिकार जेन ज़ेड मछलियाँ. भूख बढ़ती जाती है और जेन ज़ेड इसके लिए तैयार भी है. तो प्रतीक्षा कीजिए, फंदे पर लटके अगले शिकार की.  हाँ, हैरानी मत जताईएगा, यह न्यू नार्मल है.  

-x-x-x-

© शांतिलाल जैन 

बी-8/12, महानंदा नगर, उज्जैन (म.प्र.) – 456010

9425019837 (M)

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लघुकथा ☆ मौका पर चौका ☆ श्री सुरेश पटवा ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। आज प्रस्तुत है  एक विचारणीय लघुकथा – मौका पर चौका)

? लघुकथा ☆  मौका पर चौका ☆ श्री सुरेश पटवा ?

अनिरुद्ध सिंह पिछले तीन बार से पार्षद का चुनाव जीत रहे हैं, और हाई कमान के दरबार में लगातार विधायकी की अर्जी लगाते रहे हैं, लेकिन हर बार ख़ारिज हो जाती है। तीन महीने बाद चुनाव होने हैं।

उनकी पत्नी गौरांगी शिक्षा विभाग में उप-संचालक हैं। अनिरुद्ध सिंह अच्छी खासी कमाई कर लेते हैं। इस बार पार्टी फण्ड को भी सरसब्ज़ किया है। कुछ उम्मीद बंधी है। पत्नी ने दूध गर्म करके बैठक में इनके सामने तपीली रखते हुए कहा ‘आप तो पूरे समय मोबाइल पर बातों में उलझे रहते हैं, इतने व्यस्त तो प्रधानमंत्री भी नहीं रहते होंगे।’

अनिरुद्ध ने मोबाइल कान से हटा कर खीझते हुए पूछा ‘क्या करना है, ये बताओ जल्दी?’

गौराँगी तेजी से गाड़ी में बैठते हुए बोलीं – ‘सुनो, दूध अभी गरम है, ठंडा हो जाए तो फ्रिज में रख देना, नहीं तो बिल्ली चट कर जाएगी।’

गौरांगी के जाते ही, अनिरुद्ध ने मोबाइल कान से सटाकर बोलना शुरू किया – ‘हाँ भाई, अब बोलो, कौन है, कहाँ मिला है, बरामदी में क्या निकला है?’

तभी एक बिल्ली खिड़की की जाली खोलकर अंदर झांकने लगी। अनिरुद्ध ने उसे घूरकर देखा। हाथ से भगाने की कोशिश की, पर वह लगातार पतीली की तरफ़ देखे जा रही थी। उसी समय इत्तफ़ाक़ से एक मोटा चूहा उसके बाजू से निकला।

अनिरुद्ध मोबाइल पर बोले जा रहे हैं – ‘हाँ, तो यह वही है जो हमारे इलाक़े में नदी घाट से मछली मार कर ले जाता है। परंतु यह बताओ, उसकी मोटर साइकिल से प्रतिबंधित मांस निकला है, यह कैसे सिद्ध होगा।’

तभी बिल्ली दूध की पतीली से नज़र हटा चूहे की तरफ़ तेज़ी से झपटी और उसे पंजे में जकड़ लिया। अनिरुद्ध बिल्ली की तरफ़ से निश्चिंत हो गए।

अनिरुद्ध – ‘हाँ, तुम्हारा कहना सही है कि आरोप सिद्ध होने से हमें क्या लेना-देना। उसमें सालों लग जाएँगे। हमारा मतलब तो सिद्ध हो जाएगा। तुम एक काम करो, उसे रामप्रसाद चौराहे पर मय सबूतों के पहुँचो, हम पत्रकारों को लेकर आधा घंटा में वहीं मिलते हैं।

अगले दिन ख़ास-ख़ास अख़बारों में ख़बर थी ‘शहर के व्यस्त चौराहे पर प्रतिबंधित मांस सहित एक युवक गिरफ़्तार हुआ। बस्ती के सजग नागरिकों ने उसकी मरम्मत करके, पुलिस के हवाले कर दिया। सूत्रों के मुताबिक़ पुलिस तफ़तीस करके सबूत सहित कोर्ट में मुचलका पेश कर आरोपित की पुलिस कस्टडी लेगी।’

अनिरुद्ध मोबाइल को एक तरफ़ फेंक, सोफे पर पसर दार्शनिक मुद्रा में छत को निहारते हुए खुद से बोले, ‘साला, बिल्ली तक शिकार का मजा लेने को पतीली की सतह पर ज़मी दूध मलाई छोड़ देती है।’ वे छत पर एक छिपकली को कीड़े की घात लगाये देख रहे थे।

उसी समय मोबाइल की रिंग बजी। अनिरुद्ध को पार्टी मुख्यालय से खबर मिली कि ‘उन्हें दक्षिण क्षेत्र से विधायक की टिकट मिल गई है, मुकाबला चुनौतीपूर्ण होगा, तैयारी में ढील न हो।,

तभी अनिरुद्ध ने निर्निमेष दृष्टि से छत पर देखा, छिपकली ने गर्दन उठाकर एक झटके में कीड़े को निगल अपनी क्षुधा शांत कर ली।

© श्री सुरेश पटवा 

भोपाल, मध्य प्रदेश

*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 135 ☆ मुक्तक – ।।इसी धरती को ही स्वर्ग समान बनाना है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 135 ☆

☆ मुक्तक – ।।इसी धरती को ही स्वर्ग समान बनाना है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

[1]

कुछ का नहीं सबका हालात बदलना है।

जीने का कुछ अंदाज ख्याल बदलना है।।

नईपीढ़ी को सौंपके जानी विरासत अच्छी।

दुनिया का यह बदहाल हाल बदलना है।।

[2]

हर समस्या का   कुछ   निदान   पाना है।

जन जन जीवन को    आसान बनाना है।।

बदलनी  पूरे समाज की सूरत और सीरत।

हर दिल से हर दिल का   तार  जुड़ाना है।।

[3]

शत्रु के नापाक इरादों पर   भी काबू पाना है।

उन्हें ध्वस्त करना  खुद को मजबूत बनाना है।।

दुनिया को देना है विश्व गुरु भारत का पैगाम।

शांति का संदेश सम्पूर्ण  संसार में फैलाना है।।

[4]

वसुधैव कुटुंबकम् सा यह   संसार बनाना है।

मानवता का सबको    ही प्रण   दिलाना है।।

नर नारायण सेवा का भाव है सब में जगाना।

इस धरा को ही  स्वर्ग से भी सुंदर बनाना है।।

[5]

जीवन शैली खान पान का  रखना है ध्यान।

आचरण वाणी को भी करना है मधु समान।।

प्रगति  प्रकृति मध्य रखना सामजस्य भाव।

विविधता में एकता   बनाना एक अभियान।।

[6]

माला में हर गिर   गया मोती  अब पिरोना है।

अब हर टूटा   छूटा   रिश्ता   पाना खोना है।।

आंख में आंसू  आए हर किसीके दर्दों गम में।

हर कंटीली राह पर फूलों को अब बिछौना है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 199 ☆ होती प्रीति की भावना… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “होती प्रीति की भावना। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा # 199 ☆ होती प्रीति की भावना☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

चेहरा है शरीर का ऐसा अंग प्रधान

जिससे होती आई है हर जन ही पहचान।

 *

द्वेष भाव संसार में है एक सहज स्वभाव

जाता है बड़ी मुश्किल से कर ढेरों उपाय ।

 *

स्वार्थ, द्वेष हैं शत्रु दो सबके प्रबल महान

जो उपजाते हृदय में लोभ और अभियान |

 *

होती प्रीति की भावना गुण-दोषों अनुसार

पक्षपात होता जहाँ दुखी वही परिवार

 *

जिनका मन वश में सदा औ खुद पर अधिकार

उन्हें डरा सकता नहीं कभी भी यह संसार ।

 *

इस दुनियाँ में हरेक का अलग अलग संसार

वैसा करता काम जन जैसा सोच विचार

 *

बहुतों को होता नहीं खुद का पूरा ज्ञान

क्योंकि उनकी बुद्धि को हर लेता अभिमान।

 *

हर एक जैसा सोचता वैसे करता काम

सहना पड़ता भी किये करमो का परिणाम ।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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