हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ लघुकथा – “बेतार” ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी , बी एड , प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । यादों की धरोहर हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह -एक संवाददाता की डायरी को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह-महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

☆ लघुकथा – “बेतार?” ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

मैं अपने परिवार सहित एक चाय की दुकान पर बैठा चाय की चुस्कियां ले रहा था और‌ सर्दी के चलते गर्मागर्म पकौड़े भी मंगवा रखे थे!

इतने में एक मजदूर किस्म का दिखने वाला आदमी आया ! मुझे लगा कि वह मेरे से कुछ मांगेगा या मांगना चाहता है लेकिन मेरे पास से निकल कर पीछे रखा पानी पीने चला आया। पानी पीकर वह फिर मेरे पास से गुजरा और‌ चुपचाप सड़क किनारे खड़ा हो गया – बिल्कुल उदास!

अचानक मैंने जैसे कोई संदेश उसकी आंखों में पढ़ लिया! मैंने बेटी से कहा कि इससे पूछकर आओ कि चाय पीओगे?

बेटी ने पूछा- पहले आप बताओ कि अगर वह हामी भर दे तो क्या आप चाय पिलाओगे?

– हां, क्यों नहीं?

बेटी भागकर गयी पूछने !

वह आदमी बिना ना नुकर‌ किये खामोशी से चला आया और बोला- बाबू जी, आया तो मैं इस सर्दी में आप से एक कप चाय पीने ही लेकिन यह कह नहीं पाया। आप कैसे जान गये?

-कभी डाकखाने गये हो?

– जी बाबू जी!

-वो टिक टिक करती तार देखी है?

– हां।

– तो वहाँ बिना किसी तार के संदेश जाता है कि नहीं?

– पता नहीं, बाबू जी!

– जाओ! चाय आ गयी!

और वह बिना कुछ समझे आंखें झपकाए चाय पीने लगा!

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

संपर्क :   1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रेयस साहित्य # ९ – श्री राम के मर्यादित चरित्र से भरा मानस ☆ श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’ ☆

श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्रेयस साहित्य # ९ ☆

☆ कथात्मक साहित्यिक लेख ☆ ~ श्री राम के मर्यादित चरित्र से भरा मानस… ~ ☆ श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’ ☆ 

(श्री रामचरित मानस – भारतीय संस्कृति की आचार संहिता)

परिवार में नित्यप्रति होते कलह को देखकर विनय की विनम्रता टूटने के कगार पर पहुंच गई। परिवार का बंटवारा तो काफी दिनों पहले हो चुका था, लेकिन जगह -जमीन- संपत्ति का विवाद अभी भी सम्पूर्ण बंटवारे की तलाश कर रहा था। यद्यपि कि भौतिक सम्पत्ति की हिस्सा – हिस्सादारी लगनी शेष नहीं थी, लेकिन मन के तराजू पर चढ़े पसंगें ने कभी तराजू की डंडी को सीधा होने नहीं दिया। अक्सर जब विनय अपना बस्ता निकालकर  पढ़ने के लिए बैठता, तो आंगन और बाहर दोनों तरफ से कुछ न कुछ फुसफुसाहट साथ बातें शुरू होतीं और धीरे-धीरे यह फुसफुसाहट तेज लड़ाई में बदल जाती है। यह सिर्फ एक दिन की कहानी नहीं थी। ऐसा तो लगभग आए दिन ही हुआ करता था।

आठ-नौ साल के विनय को यह समझ में नहीं आता था, कि उसके चाचा और उसके बाबूजी से इस तरह से क्यों लड़ते हैं। वहीं उसे अपनी मम्मी की चुगलखोरी भी कहीं किसी कोने से कम नहीं थी। एक दिन तो बात इस हद तक बिगड़ गयी कि हाथापाही की नौबत आ गई। चाचा के हाथ में लगे चोट को देखकर विनय दुःखी हो गया। दरअसल यह चोट उसकी मम्मी और चाची के बीच में हो रही लड़ाई के बीच बचाव करने के कारण चाचा को लगी। दोनों मांओ को एक इस तरह से लड़ते देख विनय फूट-फूट कर रोने लगा। विनय को ऐसे रोते देख, खेलकर अभी -अभी वापस आया विभव परेशान हो गया। वह दौड़ता हुआ विनय के पास गया। अपने धूल से सने हाथों से उसने अपने छोटे चचेरे भाई के आंसुओं को पोछा तो विनय भी प्यार से उससे लिपट गया।

थोड़ी ही देर में पंचायत बैठी। जिनके घर के खुद के झगड़े सुलझ नहीं रहे थे, वे आज दो भाइयों के बीच हो रही लड़ाई को सुलझाने के लिए पंच बनकर बैठे हुए थे।

बटोही दादा ने जब यह कहते हुए अपनी मुट्ठी कस कर तख़्त पर पटकी कि मुझे नहीं समझ में आ रहा कि आप लोगों के इस रोज रोज की किच-किच का आखिर हल कहां से निकलेगा!

ठीक उसी समय बाबा के कोठरी में रखी लाल कपडे में बंधी भारी -भरकम पुस्तक को अपने हाथों में उठाये विनय और विभव बटोही दादा के तख़्त के पास पहुंच गए। रामचरितमानस को बटोही दादा हाथों मैं रखते हुए उन दोनों ने एक साथ बोला, हम दोनों भाइयों की राय मानो तो आप बड़े बुजुर्गों के रोज-रोज के हो रहे कलह का वास्तविक हल इस पुस्तक में है। दो नन्हे नन्हे बच्चों के मुंह से एक साथ निकली इस बात को सुनकर, पारिवारिक जंग लड़ रहे दोनों भाई दंग हो गए। वहीं पंच की गद्दी पर बैठे बटोही दादा के हाथ उस पुस्तक को थामने की हिम्मत ही नहीं जुटा पा रहे थे।

श्रीराम के मर्यादित चरित्र से भरा मानस इधर पंच दादा के तख़्त पर विराजी, उधर विनय और विभव दोनों के पापा आपस में चिपट कर रो पड़े, मानो सारे गिले शिकवे उनकी आँखों से आंसू बनकर तेजी से निकल रहे थे।

इधर विनय और विभव के कानों में अपने दिवंगत हो चुके दादाजी की यह बात जोर जोर से गूंज रही थी कि…

“ए बबुआ तें पूछत बाडिस न कि ए बाबा! ई किताब कइसन ह? त सुनु..

एहि किताब में अपना रामजी के कहानी बड़ूवे। ई किताब हमनी सबके बतावे ले कि रामजी के आचरण के अपना भीतर उतार के कैसे जियल जाला, कैसे परिवार चलावल जाला अउर कैसे पारिवारिक – सामजिक रिस्ता निभावल जाला।

ए बाबुओ! ई रामायन भारतीय संस्कृति के आचार संहिता हउवे, समझल नु?”

♥♥♥♥

© श्री राजेश कुमार सिंह “श्रेयस”

लखनऊ, उप्र, (भारत )

दिनांक 22-02-2025

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-२७ (अंतिम किश्त) ☆ श्री सुरेश पटवा ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। आज प्रस्तुत है  इस यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा की अंतिम कड़ी। अगले सप्ताह से आप श्री गंगा सागर यात्रा के संस्मरण आत्मसात कर सकेंगे। )

? यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-२७ (अंतिम किश्त) ☆ श्री सुरेश पटवा ?

बादामी गुफा मन्दिर बागलकोट ज़िले के बादामी ऐतिहासिक नगर में स्थित एक हिन्दू और जैन गुफा मन्दिरों का एक परिसर है। मालप्रभा घाटी में चालुक्यों के शासन काल में बने हिंदू और जैन मंदिर वास्तुकला स्कूलों का उद्गम स्थल कला के क्षेत्रीय केंद्र के रूप में बादामी उभरा। द्रविड़ और नागर दोनों शैलियों के मंदिर बादामी के साथ-साथ ऐहोल, पट्टदकल और महाकुटा में हैं। बादामी में कई मंदिर, जैसे पूर्वी भूतनाथ समूह और जम्बुलिंगेश्वर मंदिर, 6वीं और 8वीं शताब्दी के बीच बनाए गए थे। वे मंदिर वास्तुकला और कला के विकास के साथ-साथ पहली सहस्राब्दी ईस्वी के मध्य में कला की कर्नाटक परंपरा को समझने के लिए महत्वपूर्ण हैं।

बादामी और मालप्रभा क्षेत्र के अन्य स्थलों पर विजयनगर साम्राज्य के हिंदू राजाओं और दक्कन क्षेत्र के इस्लामी सुल्तानों के बीच लड़ाई हुई थी। विजयनगर काल के बाद आए मुस्लिम शासन ने इस विरासत को और समृद्ध किया। इसकी पुष्टि यहां के दो स्मारकों से होती है। एक गुफा मंदिरों और संरचनात्मक मंदिरों के प्रवेश द्वार के पास मरकज जुम्मा है। इसमें अब्दुल मलिक अजीज की 18वीं सदी की कब्र है। उसी के बगल से होकर निकले।

बादामी में अठारह शिलालेख हैं, जिनमें महत्वपूर्ण ऐतिहासिक जानकारी है। एक पहाड़ी पर पुरानी कन्नड़ लिपि में पहला संस्कृत शिलालेख पुलकेशिन प्रथम (वल्लभेश्वर) के काल का 543 ई.पू. का है, दूसरा कन्नड़ भाषा और लिपि में मंगलेश का 578 ई.पू. का गुफा शिलालेख है और तीसरा कप्पे अरभट्ट है। अभिलेख, त्रिपदी (तीन पंक्ति) मीटर में सबसे प्रारंभिक उपलब्ध कन्नड़ कविता। भूतनाथ मंदिर के पास एक शिलालेख में तीर्थंकर आदिनाथ को समर्पित जैन रॉक-कट मंदिर में 12 वीं शताब्दी के शिलालेख भी हैं।

बादामी गुफा मंदिरों को संभवतः 6वीं शताब्दी के अंत तक पूरी तरह से अंदर से चित्रित किया गया था। गुफा 3 (वैष्णव, हिंदू) और गुफा 4 (जैन) में पाए गए भित्तिचित्र टुकड़े, बैंड और फीके खंडों को छोड़कर, इनमें से अधिकांश पेंटिंग अब खो गई हैं। मूल भित्तिचित्र सबसे स्पष्ट रूप से गुफा 3 में पाए जाते हैं, जहां विष्णु मंदिर के अंदर, धर्मनिरपेक्ष कला के चित्रों के साथ-साथ भित्तिचित्र भी हैं जो छत पर और प्राकृतिक तत्वों के कम संपर्क वाले हिस्सों में शिव और पार्वती की किंवदंतियों को दर्शाते हैं। ये भारत में हिंदू किंवदंतियों की सबसे पुरानी ज्ञात पेंटिंगों में से हैं, जिन्हें दिनांकित किया जा सकता है।

यह भारतीय शैलकर्तित वास्तुकला का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है, जिसमें विशेषकर बादामी चालुक्य वास्तुकला देखी जा सकती है। इस परिसर का निर्माण छठी शताब्दी में आरम्भ हुआ था। बादामी नगर का प्राचीन नाम “वातापी” था, और यह आरम्भिक चालुक्य राजवंश की राजधानी था, जिसने 6ठी से 8वीं शताब्दी तक कर्नाटक के अधिकांश भागों पर राज्य किया। बादामी गुफा मन्दिर दक्कन पठार के प्राचीनतम मन्दिरों में से हैं। इनके और एहोल के मन्दिरों के निर्माण से मलप्रभा नदी के घाटी क्षेत्र में मन्दिर वास्तुकला तेज़ी से विकसित होने लगी, और इसने आगे जाकर भारत-भर के हिन्दू मन्दिर निर्माण को प्रभावित किया।

यह नगर अगस्त्य झील के पश्चिमी तट पर स्थित है, जो एक मानवकृत जलाशय है। झील एक मिट्टी की दीवार से घिरी है, जिस से पत्थर की सीढ़ीयाँ जल तक जाती हैं। झील उत्तर और दक्षिण में बाद के काल में बने दुर्गों से घिरी हुई है। शहर के दक्षिण-पूर्व में नरम बादामी बलुआ पत्थर से बनी गुफाओं की संख्या 1 से 4 तक है।

  • गुफा न. 1 में, हिंदू देवी-देवताओं और प्रसंगों की विभिन्न मूर्तियों के बीच, नटराज के रूप में तांडव-नृत्य करने वाले शिव की एक प्रमुख नक्काशी है।
  • गुफा न. 2 ज्यादातर अपने अभिन्यास और आयामों के संदर्भ में गुफा न. 1 के समान है, जिसमें हिंदू प्रसंगों की विशेषता है, जिसमें विष्णु की त्रिविक्रम के रूप में उभड़ी हुई नक्काशी सबसे बड़ी है।
  • गुफा न. 3 सबसे बड़ी है, जिसमें विष्णु से संबंधित पौराणिक कथाएं बनाई गई हैं, और यह परिसर में सबसे जटिल नक्काशीदार गुफा भी है।
  • गुफा न. 4 जैन धर्म के प्रतिष्ठित लोगों को समर्पित है। झील के चारों ओर, बादामी में अतिरिक्त गुफाएँ हैं जिनमें से एक बौद्ध गुफा हो सकती है। 2015 में चार मुख्य गुफाओं में 27 नक्काशियों के साथ एक अन्य गुफा की खोज हुई है।

पट्टदकल्लु (Pattadakal), जिसे रक्तपुर कहा जाता था, बागलकोट ज़िले में मलप्रभा नदी के तट पर स्थित एक ऐतिहासिक गाँव है, जो अपने यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ चालुक्य राजवंश द्वारा 7वीं और 8वीं शताब्दी में बने नौ हिन्दू और एक जैन मन्दिर हैं, जिनमें द्रविड़ (दक्षिण भारतीय) तथा नागर (उत्तर भारतीय ) दोनों शैलियाँ विकसित हुई थीं। पट्टदकल्लु बादामी से 23 किमी और एहोल से 11 किमी दूर है।

यदी बादामी को महाविद्यालय तो पट्टदकल्लु को मन्दिर निर्माण का विश्वविद्यालय कहा जाता है। यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन 24 किमी बादामी है। इस शहर को कभी किसुवोलल या रक्तपुर कहा जाता था, क्योंकि यहाँ का बलुआ पत्थर लाल आभा लिए हुए है।

चालुक्य शैली का उद्भव 450 ई. में एहोल में हुआ था। यहाँ वास्तुकारों ने नागर एवं द्रविड़ समेत विभिन्न शैलियों के प्रयोग किए थे। इन शैलियों के संगम से एक अभिन्न शैली का उद्भव हुआ। सातवीं शताब्दी के मध्य में यहां चालुक्य राजाओं के राजतिलक होते थे। कालांतर में मंदिर निर्माण का स्थल बादामी से पट्टदकल्लु आ गया। यहाँ कुल दस मंदिर हैं, जिनमें एक जैन धर्मशाला भी शामिल है। इन्हें घेरे हुए ढेरों चैत्य, पूजा स्थल एवं कई अपूर्ण आधारशिलाएं हैं। यहाँ चार मंदिर द्रविड़ शैली के हैं, चार नागर शैली के हैं एवं पापनाथ मंदिर मिश्रित शैली का है। पट्टदकल्लु को 1987 में युनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था।

यहां के बहुत से शिल्प अवशेष यहां बने संग्रहालय तथा शिल्प दीर्घा में सुरक्षित रखे हैं। इन संग्रहालयों का अनुरक्षण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग करता है। ये भूतनाथ मंदिर मार्ग पर स्थित हैं। इनके अलावा अन्य महत्वपूर्ण स्मारकों में, अखण्ड एकाश्म स्तंभ, नागनाथ मंदिर, चंद्रशेखर मंदिर एवं महाकुटेश्वर मंदिर भी हैं, जिनमें अनेकों शिलालेख हैं। वर्ष के आरंभिक त्रैमास में यहां का वार्षिक नृत्योत्सव आयोजन होता है, जिसे चालुक्य उत्सव कहते हैं। इस उत्सव का आयोजन पट्टदकल्लु के अलावा बादामी एवं ऐहोल में भी होता है। यह त्रिदिवसीय संगीत एवं नृत्य का संगम कलाप्रेमियों की भीड़ जुटाता है। उत्सव के मंच की पृष्ठभूमि में मंदिर के दृश्य एवं जाने माने कलाकार इन दिनों यहां के इतिहास को जीवंत कर देते हैं।

बादामी से हुबली एयरपोर्ट 125 किलोमीटर है। 02 अक्टूबर 2023 को दोपहर तीन बजे फ्लाइट है। सुबह नाश्ता निपटा कर नौ बजे निकलना है। होटल के गेट के सामने रंगीन फूलों से गजरों की दुकानें थीं। हमारे दल की महिलाओं ने गजरे ख़रीद धारण कर लिए। बस में बैठ चल दिए। बारह बजे तक हुबली हवाई अड्डा पहुंच गए। हमारी फ्लाइट दिल्ली होकर भोपाल थी। फ्लाइट हुबली से 03:45 दोपहर को चलकर 06:15 शाम को दिल्ली एयरपोर्ट पहुंची। दिल्ली में हवाई अड्डा बदलना पड़ा। करीब दो किलोमीटर पैदल चलकर एक निशुल्क बस में बैठकर घरेलू हवाई अड्डा पहुंचे। भोपाल की फ्लाइट शाम साढ़े सात बजे थे। नौ बजे भोपाल में थे। इस प्रकार डॉक्टर राजेश श्रीवास्तव जी के नेतृत्व और उनकी टीम के सानिध्य में बिना किसी दुर्घटना के सभी यात्रियों की सकुशल घर वापसी हुई।

© श्री सुरेश पटवा 

भोपाल, मध्य प्रदेश

*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा #226 ☆ रहे तिरंगा सदा लहरता सतरंगी आकाश में… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “कविता  – रहे तिरंगा सदा लहरता सतरंगी आकाश में। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 226

रहे तिरंगा सदा लहरता सतरंगी आकाश में… 🇮🇳 ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

रहे तिरंगा सदा लहरता भारत के आकाश में,

करता रहे देश नित उन्नति इसके धवल प्रकाश में ॥

लाखों वीरों ने बलि देकर के इसको फहराया है

आजादी का रथ रक्तिम पथ से ही होकर आया है ॥ 1 ॥  

यह भारत की माटी पावन इसमें चन्दन – गंध है,

अमर शहीदों का इसमें इतिहास और अनुबंध है ॥  

उनके उष्ण रक्त से रंजित अगणित मर्म व्यथाएँ हैं,

सतत प्रेरणादायी भावुक कई गौरव – गाथाएँ हैं ॥ 2 ॥

 *

मनस्वियों औ तपस्वियों से इसका युग का नाता है,

राम – कृष्ण, गाँधी – सुभाष हम सबकी प्रेमल माता है ।

वीर प्रसू यह भूमि पुरातन बलिदानी, वरदानी है,

मानवीय संस्कृति की हर कण में कुछ लिखी कहानी है ॥ 3 ॥

आओ इससे तिलक करें हम सुदृढ़ शक्ति फिर पाने को,

नई पीढ़ी को अमर शहीदों की फिर याद दिलाने को ॥  

जन्मभूमि यह कर्मवती धार्मिक ऋषियों का धाम है,

इसको शत – शत नमन हमारा, बारम्बार प्रणाम है ॥ 4 ॥

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 161 ☆ गीत – ।। जिसके जीवन में संघर्ष जीत भी उसके हिस्से में आएगी ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

 

☆ “श्री हंस” साहित्य # 161 ☆

☆ गीत – ।। जिसके जीवन में संघर्ष जीत भी उसके हिस्से में आएगी ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

जिसके जीवन में संघर्ष जीत भी हिस्से में आएगी।

हृदय में स्नेह-प्रेम तो प्रीत भी उसके हिस्से में आएगी।।

*****

परिस्थिति का काम रोकना है आपका काम बढ़ते जाना।

तब आपको अपनी आंतरिक शक्ति को है बाहर लाना।।

सोच बदल देखो लड़ी सितारों की भी हिस्से में आएगी।

जिनके जीवन में संघर्ष जीत भी हिस्से में आएगी।।

****

किश्ती नहीं बदलो दिशा बदलो कि किनारे आ जाएंगे।

नजर बस अपनी बदलो कि नजारे भी नजर आएंगे।।

संकल्प आत्मबल से जीत भी आपके किस्से में आएगी।

जिनके जीवन में संघर्ष जीत भी हिस्से में आएगी।।

****

धीरे-धीरे ही चाहे चल लेना पर तुम बीच राह रुकना मत।

कठनाइयों को देख कर अपनी कोशिश में झुकना मत।।

बारिश में भीगोगे तभी इंद्रधनुष छवि हिस्से में आएगी।

जिनके जीवन में संघर्ष जीत भी हिस्से में आएगी।।

****

एक नहीं हर काम के ही हजार प्रकल्प होते हैं।

एक रास्ता बंद तो खुलते हजार विकल्प होते हैं।।

जो व्यवहार कुशल भी तो मीत मित्रता हिस्से में आएगी।

जिनके जीवन में संघर्ष जीत भी हिस्से में आएगी।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य #277 ☆ चर्चा  और आरोप… ☆ डॉ. मुक्ता ☆

डॉ. मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के माध्यम से  हम  आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी की मानवीय जीवन पर आधारित एक विचारणीय आलेख चर्चा  और आरोप। यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को  इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 277 ☆

☆ चर्चा  और आरोप… ☆

चर्चा  और आरोप यह दोनों ही सफल व्यक्ति के भाग्य में होते हैं। लोगों के दृष्टिकोण को लेकर ज़्यादा मत सोचिए, क्योंकि सबसे ज़्यादा वे लोग ही आपका मूल्याँकन करते हैं, जिनका ख़ुद कोई मूल्य व अस्तित्व नहीं होता। आज के प्रतिस्पर्द्धात्मक युग में मानव एक-दूसरे को पछाड़ कर आगे निकल जाना चाहता है, क्योंकि वह कम समय में अधिकाधिक धन व शौहरत पाना चाहता है और भीड़ का हिस्सा नहीं बनना चाहता। वैसे भी मानव अक्सर दूसरों को सुखी देखकर अधिक दु:खी रहता है। उसे अपने सुखों का अभाव इतना नहीं खलता; जितना दूसरों के प्रति ईर्ष्या भाव आहत करता है। यह एक ऐसी लाइलाज समस्या है, जिसका निदान नहीं है। आप अपनी सुरसा के मुख की भाति बढ़ती इच्छाओं पर अंकुश लगा कर संतोष व सुख से जी सकते हैं और दूसरों के बढ़ते कदमों को देख उनका अनुकरण तो कर सकते हैं। स्पर्द्धा भाव को अपने अंतर्मन में संजोकर रखना श्रेयस्कर है, क्योंकि मन में ईर्ष्या भाव जाग्रत कर हम आगे नहीं बढ़ सकते। ईर्ष्या भाव मन में अक्सर तनाव व अवसाद को जन्म देता है, जो आपको अलगाव की स्थिति प्रदान करता है।

चर्चा सदा महान् लोगों की होती है, क्योंकि वे आत्मविश्वासी, दृढ़-प्रतिज्ञ, परिश्रमी, धैर्यवान व संवेदनशील होते हैं; भीड़ प्रतिगामी नहीं होते। उसके बल पर वे जीवन में जो चाहते हैं, उस मुक़ाम को हासिल करने में समर्थ होते हैं। उनका सानी कोई नहीं होता। दूसरी ओर आरोप भी संसार में उन्हीं लोगों पर लगाए जाते हैं, जो लीक से हटकर कुछ करते हैं। वे एकाग्रचित्त होकर निरंतर अपने पथ पर अग्रसर होते हैं, कभी विचलित नहीं होते।

अक्सर आरोप लगाने व आलोचना करने वाले वे लोग ही होते हैं, जिनका अपना दृष्टिकोण, सोच  व अस्तित्व नहीं होता। वे बेपैंदे लोट होते हैं और  उन्हें थाली का बैगन भी कहा जा सकता है। वे मात्र दूसरों पर आरोप लगा कर प्रसन्नता प्राप्त करते हैं। ऐसे लोग दूसरों की आलोचना करने में अपना अमूल्य समय नष्ट करते हैं। ‘बिन साबुन पानी बिना, निर्मल किए सुभाय’ वैसे तो कबीर ने भी निंदक के लिए अपने आँगन में कुटिया बनाने का सुझाव दिया है, क्योंकि यही वे प्राणी होते हैं, जो निष्काम भाव से आपको अपने दोषों, कमियों व अवगुणों से अवगत कराते हैं।

‘तुम कर सकते हो’ जी हाँ! यह शाश्वत् सत्य है। सो! असंभव शब्द को अपने शब्दकोश से बाहर निकाल दीजिए। आप में असीमित शक्तियाँ संचित हैं, परंतु आप उनसे अवगत नहीं होते हैं। आइंस्टीन ने जब बल्ब का आविष्कार किया तो उसे अनेक बार असफलताओं का सामना करना पड़ा। उसके मित्रों ने उसे उस खोज पर अपना समय नष्ट न करने का अनेक बार सुझाव दिया। परंतु उसका उत्तर सुन आप चौंक जाएंगे कि ‘अब उसे इस दिशा में पुन: अपना समय नष्ट नहीं करना पड़ेगा’ कह कर उनके तथ्य की पुष्टि की। अब मैं नए प्रयोग कर शीघ्रता से अपनी मंज़िल को अवश्य प्राप्त कर सकूंगा और उसे सफलता प्राप्त हुई।

मुझे स्मरण हो रही है अस्मिता की स्वरचित पंक्तियाँ– ‘तूने स्वयं को पहचाना नहीं।’ नारी अबला नहीं है। उसमें असीम शक्तियाँ संचित हैं, परंतु उसने स्वयं को पहचाना नहीं। वैसे भी इंसान यदि अपना लक्ष्य निर्धारित कर निरंतर परिश्रम करता रहता है तो वह एकदिन अपनी मंज़िल को अवश्य प्राप्त कर सकता है। अवरोध तो राह में आते रहते हैं। परंतु उसे अपनी मंज़िल पाने के लिए अनवरत बढ़ना होगा। ‘कुछ तो लोग कहेंगे/ लोगों का काम है कहना’ पंक्तियाँ मानव को संदेश देती हैं कि लोग तो दूसरों को उन्नति करते देख प्रसन्न नहीं होते, बल्कि टाँग खींचकर आलोचना अवश्य करते हैं तथा उसे व्यर्थ के आरोप-प्रत्यारोपों में उलझा कर सुक़ून पाते हैं। परंतु बुद्धिमान व्यक्ति उनसे प्रेरित होकर पूर्ण जोशो-ख़रोश से अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होता है। अब्दुल कलाम के मतानुसार  ‘सपनें वे देखें, जो आपको सोने न दें।’ आप रात को सोते हुए सपने न देखें, बल्कि उन सपनों को साकार करने में जुट जाएं और मंज़िल पाने तक चैन से न सोएं। यह सफलता-प्राप्ति का अमोघ मंत्र है।

आप प्रशंसा से पिघलें नहीं, निंदा से पथ- विचलित न हों तथा दोनों स्थितियों में सम रहते हुए अपने निर्धारित पथ पर अग्रसर हों, जब तक आप मंज़िल को प्राप्त नहीं करते। आप इन दोनों स्थितियों को सीढ़ी बना लें तथा लोगों के मूल्याँकन से विचलित न हों। आप स्वयं अपने भाग्य-विधाता हैं और कठिन परिश्रम व आत्मविश्वास द्वारा वह सब प्राप्त कर सकते हैं, जिसकी आपने कल्पना भी नहीं की थी।

अंत में मैं यह कहना चाहूँगी कि इसके लिए सकारात्मक सोच की दरक़ार है।  सो! जीवन में नकारात्मकता को प्रवेश न करने दें। जीवन में प्रेम, सौहार्द, त्याग, विनम्रता, करुणा, सहानुभुति आदि सद्भावों को विकसित करें, क्योंकि यह दैवीय गुण मानव को उसकी मंज़िल तक पहुंचाने में मील का पत्थर साबित होते हैं तथा उस व्यक्ति में पंच विचार दस्तक नहीं दे सकते। आप अपने अंतर्मन में उन गुणों को विकसित कीजिए और बढ़ जाइए अपनी राहों की ओर– जहाँ सफलता आपका स्वागत अवश्य करेगी।

●●●●

© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत, पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी

संपर्क – #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com, मो• न•…8588801878

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार #50 – नवगीत – मन विचलित है… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम नवगीत – मन विचलित है

? रचना संसार # 50 – नवगीत – मन विचलित है…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

फटे-पुराने कपड़े उनके,

धूमिल उनकी आस।

जीवन कुंठित है अभाव में,

खोया है विश्वास।।

 

अवसादों की बहुतायत है,

रूठा है शृंगार।

अंग-अंग में काँटे चुभते,

तन-मन पर अंगार।।

मन विचलित है तप्त धरा है,

कौन बुझाये प्यास।

 

चीर रही उर पिक की वाणी,

काॅंपे कोमल गात।

रोटी कपड़ा मिलना मुश्किल,

अटल यही बस बात।।

साधन बिन मौन हुआ उर,

करें लोग परिहास।

 

आग धधकती लाक्षागृह में,

विस्फोटक सामान।

अंतर्मन भी विचलित तपता,

कोई नहीं निदान।

श्रापित होता जीवन सारा,

श्वासें हुई उदास।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #277 ☆ हाथ में तिरंगा रहे… ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता – हाथ में तिरंगा रहे…।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 277 – साहित्य निकुंज ☆

☆ हाथ में तिरंगा रहे🇮🇳🇮🇳☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

नहीं झुकेंगे हम कभी वतन का नेक विचार।

गूंज रहा संदेश यह करना भारत का उद्धार।

त्याग तपस्या प्रेम से इतिहास रचाइए।

हाथ में तिरंगा रहे, विजयी बनाइए।

 *

शब्द नहीं हमें बोलना देना, कर्म प्रमाण।

जन-जन की चेतना, जन मन में बलिदान

करना है संघर्ष हमें, सब में आस जगाइए

हाथ में तिरंगा रहे, विजयी बनाइए।

 *

भीड़ नहीं बनकर चलना, बने दीप की शान

अंधकार में जल उठे, भारत माँ की आन

पावन धरा की गोद में इतिहास बनाइए।

हाथ में तिरंगा रहे, विजयी बनाइए।

*

जय हिन्द…  🇮🇳🇮🇳

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #259 ☆ नापाकी अब पाक की… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता – नापाकी अब पाक की आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

 ☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 259 ☆

☆ नापाकी अब पाक की☆ श्री संतोष नेमा ☆

सेना अपने देश की, दुनिया में मशहूर |

आप्रेशन सिंदूर ने, तोड़ा पाक गुरूर ||

*

बदला हमने ले लिया, घर में घुस कर खूब |

हुआ चकित सारा जगत, देख पाक का रूप ||

*

ताकत का करता नहीं, भारत कभी गुमान |

सही वक्त पर चोट कर, छोड़े स्वयं निशान ||

*

पाक न सह पाया कभी, भारत का आघात |

सेना ने ठंडे किए, उसके सब जज्बात ||

*

गीदड़ भभकी की उसे, लत लागी बेकार |

होती हैं नाकाम सब, पाक व्यर्थ हुंकार ||

*

इस भारत को भूल से, समझें मत कमजोर |

सही वक्त पर वार कर, घाव करे पुरजोर ||

*

सीमा पर घुसपैठ का, करते काम तमाम |

वीर सैनिकों को करें, मिलकर सभी प्रणाम ||

*

आँख उठाना गैर का, हमको नहीं कबूल |

दुश्मन मिट्टी में मिलें, अपना यही उसूल ||

*

चाल कुटिल हम जानते, ताकत लो पहचान |

फन कुचलें हम सांप का, सुन लो ए शैतान ||

*

भीख माँगता फिर रहा, जग में पाकिस्तान |

जाकर शरण गुहारता, बचा हमें श्रीमान ||

*

एटम बम की धमकियाँ, हुईं सभी नाकाम |

नापाकी अब पाक की, सरेराह बदनाम ||

*

साथ खड़े हों देश के, अपना यह कर्तव्य |

पाएंगे संतोष तब, नहीं व्यर्थ वक्तब्य ||

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 70003619839300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ विजय साहित्य # 251 – संमोहन तू..! ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते ☆

कविराज विजय यशवंत सातपुते

? कवितेचा उत्सव # 251 – विजय साहित्य ?

☆ संमोहन तू..!

प्रेम करुणा,नेत्री भरता,

दिसे सावळा,शाम मुरारी.

नंदलाल हा, पार्थसारथी,

दिव्य कांतीचा, हा गिरिधारी. १

*

कंज लोजनी,अजन्मा तू,

हिरण्यगर्भा,पद्मनाभ तू.

अजया तूची, वासुदेव‌ तू,

रवि लोचनी, विश्व मूर्ती तू.२

*

दहि दुधाचे, संमोहन तू,

तुला आवडे ,साखर लोणी.

तुझ्याच साठी,यमुने काठी,

तुझ्या दर्शना,झुरते कोणी.३

*

दामोदर वा,गोपीनाथ तू,

कृष्ण मुरारी राधा रमणा.

तुला‌ पाहता,भान हरावे,

करीसी लिला,किती मोहना.४

*

मौत्तिक माला,तारावली ही,

रत्न माणके,तडीतप्रभा.

बाहु भुषणे, कर्णकुंडले  ,

सालंकृत ही, मुकूट आभा.५

*

पिवळ्या रंगी,साज केशवा,

पारीजातकी, तुझा गोडवा.

कोस्तुभ रत्ने, कंठमणी हा,

दिसे उठोनी, रूप माधवा.६

*

वैजयंतीची, मोहक माला,

मोर पिसांची ,शिरी झळाळी.

अलंकार हे, अंग हरीचे,

जिथे लक्षुमी,चवरी ढाळी.७

*

प्रेम भक्तीचा,झरा खळाळे,

तुझी लागता,चित्ती चाहूल.

स्वर्ग सुखाचा,दिसे आरसा,

जिथे विसावे,कृष्णा पाऊल.८

*

चराचराला,ठेवी बांधून,

यमुना तिरी,कदंब वृक्षी.

कृष्ण विसावा, रम्यस्थळीते,

झुले डहाळी,रेखीत नक्षी.९

*

तुला पाहण्या,तुला‌ ऐकण्या ,

फांदी वरती,बसला रावा .

घाल मोहिनी,मुरली वंशी,

वाजव वेणू,ऐकव पावा.१०

© कविराज विजय यशवंत सातपुते

सहकारनगर नंबर दोन, दशभुजा गणपती रोड, पुणे.  411 009.

मोबाईल  8530234892/ 9371319798.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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