हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 243 ☆ लघुकथा – स्माइली 😊☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – स्माइली।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 243 ☆

? लघुकथा – स्माइली 😊 ?

हिन्दी, अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, चाइनीज, बंगाली, मराठी, तेलगू …, जाने कितनी भाषायें हैं। अनगिनत बोलियां और लहजे हैं।  पर दुनियां का हर बच्चा इन सबसे अनजान, केवल स्पर्श की भाषा समझता है।  माँ के मृदु स्पर्श की भाषा, मुस्कान की भाषा। मौन की भाषा के सम्मुख क्रोध भी हार जाता है। प्रकृति बोलती है चिड़ियों की चहचहाहट में, पवन की सरसराहट में, सूरज की बादलों से तांक झांक में।

वह इमोजी साफटवेयर बनाता है। उसकी  वर्चुअल दुनियां बोलती है इमोजी के चेहरों की भाषा में। उसे बिल्कुल अच्छी नहीं लगती गुस्से वाली लाल इमोजी, और आंसू टपकाती दुख व्यक्त करते चेहरे वाली इमोजी। मिटा देना चाहता है वह इसे। सोचता है, क्या करना होगा इसके लिये। क्या केवल साफ्टवेयर अपडेट? या बदलनी होगी व्यवस्था। सोचते हुये जाने कब उसकी नींद लग जाती है। गालों पर सुनहरी धूप की थपकी से उसकी नींद टूटती है, बादलों की की ओट से सूरज झांक रहा था खिड़की से मुस्करा कर। स्माइली वाली इमोजी उसे बहुत अपूर्ण लगती है इस मनोहारी अभिव्यक्ति के लिये, और वह जुट जाता है और बेहतर स्माइली इमोजी बनाने में।

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 172 ☆ वह दीपशिखा सी शांत भाव… ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ ☆

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की  प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना वह दीपशिखा सी शांत भाव। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 172 ☆

वह दीपशिखा सी शांत भाव… ☆

शांति की तलाश में व्यक्ति कहाँ से कहाँ तक भटकता फिरता है; पर मिलती स्वयं को बदलने से है। ये तो अनुभव की बात है किंतु डिजिटल युग में मोटिवेशनल स्पीकर अपने शॉर्ट्स रील द्वारा एक मिनट से भी कम समय में आपको प्रमुख बिंदु समझा देते हैं। मुख्य बिंदु को ध्यान में रखकर जब कथानक हाव- भाव के साथ प्रस्तुत किया जाता है तो सचमुच बात आसानी से समझ में आने लगती है। वैसे भी संगत की रंगत देखना हो तो इन्हें फॉलो करें,कुछ ही दिनों में बदलाव देखने को मिलेगा।

नियंत्रित मन व कार्यों की निरंतरता से सब संभव हो जाता है। बस एक दिशा में पूर्ण मनोयोग से जुड़े रहिए, जब लक्ष्य स्पष्ट हो, श्रेष्ठ गुरु का मार्गदर्शन हो तो राहें सहज होने लगतीं हैं। उन्हीं विषयों पर फोकस करें जिस पर आप कार्य करने की इच्छा रखते हैं।इस युग में सब आसानी से मिल रहा है, बस एकाग्रता की लगन जिसने लगा ली समझो उसकी मुट्ठी में चाँद- सितारे आ गए। अब चाँद तारे तोड़कर लाना कोई कल्पना की बातें नहीं हैं, यहाँ तक हमारे वैज्ञानिक तो पहुँच ही चुके हैं बस आम लोगों का पहुँचना बाकी है।

जब सब कुछ आपके इशारों से हो रहा हो तो मन पर नियंत्रण बहुत जरूरी हो जाता है। भटकता हुआ इंसान न केवल स्वयं को बर्बादी की कगार पर ले जाता है वरन सबको ऐसे गड्ढे में ढकेलने की क्षमता रखता है जो कोई सोच भी नहीं सकता है। जीवन की आपाधापी में हम अधिकारों के प्रति ज्यादा ही सचेत होने लगे हैं, कर्तव्यों को न तो जानते हैं न ही जानने की कोशिश करते हैं। ये अनजाना पन कहीं महंगा न पड़ जाए इसलिए जागिए और जगाइए।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पराकाष्ठा ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – पराकाष्ठा ? ?

अच्छा हुआ

नहीं रची गई

और छूट गई

एक कविता,

कविता होती है

आदमी का आप,

छूटी रचना के विरह में

आदमी करने लगता है

खुद से संवाद,

सारी प्रक्रिया में

महत्वपूर्ण है

मुखौटों का गलन,

कविता से मिलन,

और उत्कर्ष है

आदमी का

शनैः-शनैः

खुद कविता होते जाना,

मुझे लगता है

आदमी का कविता हो जाना

आदमियत की पराकाष्ठा है!

© संजय भारद्वाज 

(संध्या 7:15 बजे, दि. 30.5.2016)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मार्गशीर्ष साधना 28 नवंबर से 26 दिसंबर तक चलेगी 💥

🕉️ इसका साधना मंत्र होगा – ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🕉️

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य #156 – लघुकथा – “तर्क यह भी” ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – “तर्क यह भी)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 156 ☆

 ☆ लघुकथा- तर्क यह भी  ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

जैसे ही मेहमान ने सीताफल लिए वैसे ही दूर से आते हुए मेजबान ने पूछा, “क्या भाव लिए हैं?”

“₹40 किलो!” मेहमान ने जवाब दिया।

यह सुनते ही मेजबान सीताफल बेचने वाली पर भड़क उठे, “अरे! थने शर्म नी आवे। नया आदमी ने लूट री है।”

वे कहे जा रहे थे, “दुनिया ₹20 किलो दे री है। थूं मेह्मना ने ₹40 किलो दे दी दा। घोर अनर्थ करी री है।

” वह थारे भड़े वाली ने देख। ₹20 किलो बची री है।”

वह चुपचाप सुन रही थी तो मेजमैन भड़क कर बोले, ” माँका मोहल्ला में बैठे हैं। मांने ही लूते हैं। थेने शर्म कोणी आवेला। ₹20 पाछा दे।”

“नी मले,” उसने संक्षिप्त उत्तर दिया। सुनकर मेजबान वापस भड़क गए। जोर-जोर से बोलने लगे। वहां पर भीड़ जमा हो गई।

भीड़ भी उसे फल बेचने वाली को खरी-खोटी सुनाने लगी। वह लोगों को लूट रही है। तभी मेजबान ने मेहमान से कहा, “ब्याईजी साहब, आपको तो स्वयं को लुटवाना नहीं चाहिए।”

यह सुनकर मेहमान ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया,”ब्याईजी सा! जाने दो। ऐसे गरीब लोगों को हमारे जैसे लोगों से ही थोड़ी खुशी मिल जाती है।”

यह सुनकर मेजबान, मेहमान का मुंह देखने लगे और भीड़ चुपचाप छट गई।

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

28-11-2023

संपर्क – पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected] मोबाइल – 9424079675

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 209 ⇒ उंगली कटा के शहीद… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “उंगली कटा के शहीद”।)

?अभी अभी # 209 ⇒ उंगली कटा के शहीद… ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

मुझे उंगली कटा के शहीद होने का कोई शौक नहीं, लेकिन मेरे हर शुभ अशुभ, अच्छे बुरे, और खरे खोटे काम में, मेरी समस्त उंगलियों का योगदान अवश्य रहता है। स्वावलंबी होने के कारण, मैं अपने समस्त काम अपने हाथों से ही करता हूं, क्योंकि ये हाथ हमारी ताकत ही नहीं, अपना हाथ जगन्नाथ भी है। हाथों की इस मजबूती ही ने गब्बर को यह कहने पर मजबूर कर दिया था, ये हाथ मुझे दे दे ठाकुर।

और भूलिए मत, ठाकुर ने क्या कहा था, तेरे लिए तो मेरे पांव ही काफी हैं गब्बर ! यानी हाथ पांव हैं, तो हम हैं। क्या हम इन हाथ पाॅंवों की कल्पना पाँचों उंगलियों के बिना भी कर सकते हैं। यहां ना तो हम यह कहना चाहते हैं कि उंगली टेढ़ी किए बिना घी नहीं निकलता अथवा किसी के सामने घुटना टेकने वाले से तो एक स्वाभिमानी अंगूठा छाप ही

भला। फिर भी सच तो यह है कि अंगूठे की असली कीमत तो एक द्रोणाचार्य जैसा गुरु ही जानता है।।

मुझे अपनी पाॅंचों उंगलियों पर गर्व है, इसलिए नहीं कि वे सदा घी में रहती हैं, लेकिन इसलिए, क्योंकि आपस में बराबर नहीं होते हुए भी उनमें गजब की एकता और एकजुटता है।

जब भी कोई काम करना होता है, पांचों उंगलियां मुट्ठी बांध लेती हैं, और काम तमाम करके ही छोड़ती हैं।

क्या आप अपने हाथ से कोई भी काम, बिना उंगलियों की सहायता के कर सकते हैं। कलम हो या हथौड़ा, अगर उंगलियां सहयोग ना करे तो इंसान क्या करे। मुझे खेद है कि इस स्वार्थी संसार ने सारा श्रेय इन हाथों को तो दिया है, लेकिन इन उंगलियों की कभी तारीफ नहीं की।।

लेकिन जहां किसी भी काम में हाथ डालो, बदनाम बेचारी ये उंगलियां ही होती हैं। रहने दो, फालतू में उंगली मत करो। फिर भी, दिल है कि, उंगली किए बिना मानता नहीं। एक सुबह हमने भी एक काम में उंगली डाली, और उंगली कटा बैठे। बस उंगली में थोड़ा सा कटने का अहसास हुआ, और तत्काल खून टपकने लगा।

ऐसा लगा, किसी ने पानी का नल खुला छोड़ दिया है।

यह वक्त उंगली कटा के

शहीद होने का नहीं होता, बहते खून को थामने का होता है। कटी उंगली को मुंह में रखकर अपना ही खून चूसना, एक सात्विक ना सही, लेकिन स्वाभाविक प्रतिक्रिया है, जिसके पश्चात् ही प्राकृतिक चिकित्सा प्रारंभ होती है।।

हमारी पीढ़ी के चक्कू और ब्लेड से पेंसिल छीलने वाले बच्चे, अक्सर अपनी उंगली कटा लेते थे। वह जमाना कहां शार्पनर और इरेजर

का था, और कौन हर आए दिन उंगली करने पर एंटी टेटनस का इंजेक्शन लगवाता फिरे। बोरोलिन और बोरोप्लस ने आजकल हल्दी का स्थान ले लिया है, जिससे सैप्टिक की संभावना भी क्षीण हो जाती है।

एक कटी उंगली पूरे शरीर का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लेती है। पूरे शरीर को यह अहसास हो जाता है, कि शरीर का कोई अंग उंगली कटाकर शहीद हुआ है। लेकिन जब यह खबर मस्तिष्क तक पहुंच जाती है, तो वह इसे एक जुमला मानकर खारिज कर देता है। किसी की खातिर भले ही सर कटाएं, लेकिन जरा भी शोर ना हो। महज उंगली काटकर शहीद बनने का नाटक ना करें।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #23 ☆ कविता – “यहाँ भी और वहाँ भी…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 23 ☆

☆ कविता ☆ “यहाँ भी और वहां भी…☆ श्री आशिष मुळे ☆

वहाँ ठहरा यहाँ बरसा

मौसम तो मौसम है

वहाँ जलाती यहाँ डुबाती

बारिश तो बारिश है

यहाँ भी और वहाँ भी….

 

वहाँ सपनों में यहाँ सच्चाई में

धूप तो धूप है

वहाँ बैठी अकेली यहाँ कब से लापता

छांव तो छांव है

यहाँ भी और वहाँ भी…..

 

वहाँ आंखो में यहाँ लब्जों में

दर्या तो दर्या है

वहाँ रूह उबलता यहाँ कागज़ गलाता

पानी तो पानी है

यहाँ भी और वहाँ भी…..

 

वहां भी जिंदगी यहां भी जिंदगी

चाहत उसकी निशानी है

वहां भी मौत यहां भी मौत

सेज चिता की अग्नि है

यहाँ भी और वहां भी……

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 183 ☆ बाल कविता – काश! परी यदि मैं बन जाती ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 183 ☆

☆ बाल कविता – काश! परी यदि मैं बन जाती ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

सपनों की दुनिया में खोई

      प्यारी गुड़िया रानी।

परी लोक की दादी अपनी

     कहतीं कई कहानी।।

 

काश! परी यदि मैं बन जाती

      हर बच्चा मुस्काता।

नए- नए मैं वस्त्र पहनाती

      शाला पढ़ने  जाता।।

 

खूब खिलौने उन्हें दिलाती

      खेल खेलती सँग में।

 पर्वों पर उपहार बाँटती

      रँग जाती मैं रँग में।।

 

सैर भी करती बाग बगीचे

     उड़ती नील गगन में।

हर पक्षी से बातें करती

      रहती सदा मगन मैं।।

 

परियों वाली छड़ी घुमा मैं

     सबको खुश कर देती।

झिलमिल झिलमिल वस्त्र पहनकर

       घूम मजे कर लेती।।

 

नींद हो गई सुंदर पूरी

      सपना टूट गया था।

सपने तो सपने हैं होते

       चंदा रूठ गया था।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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सूचनाएँ/Information ☆ लिटरेरी वॉरियर ग्रुप द्वारा आयोजित लिटफेस्ट संपन्न ☆ प्रस्तुति – सुश्री अपर्णा प्रधान एवम् श्री अनुप जालान ☆

☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

☆ लिटरेरी वॉरियर ग्रुप द्वारा आयोजित लिटफेस्ट संपन्न ☆

लिटरेरी वॉरियर ग्रुप द्वारा आयोजित लिटफेस्ट 18 नवंबर 2023 को साहित्य अकादमी हॉल, नई दिल्ली में सम्पन्न हुआ। लिटरेरी वॉरियर ग्रुप की संस्थापिका नीलम सक्सेना ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। विशिष्ट अतिथियों में अकादमी पुरस्कार विजेता माननीय वर्षा दास, आई.सी.सी.आर. के डिप्टी डायरेक्टर जनरल श्री अभय के, साक्षी एनजीओ की संस्थापिका डॉ. मृदुला टंडन, विख्यात लेखिका और कवयित्रीयाँ नंदिनी साहू एवम् पद्मजा आइंगर – पैडी थे। इनके अलावा अनेक लेखक, कवि, कवयित्रियों और श्रोताओं ने कार्यक्रम में हिस्सा लिया।

सन् 2011 में बने कवियों और लेखकों के एक छोटे से ग्रुप ने 2019 में लिटरेरी वॉरियर ग्रुप को जन्म दिया। कोविड काल में कवियों को अपने मन के भाव व्यक्त करने के लिए इस ग्रुप ने अनेक नवोदित कवियों को मार्गदर्शन और प्रोत्साहन दिया। उन्हें अपनी प्रतिभा को विस्तार देने के लिए उनके फेसबुक पेज https://www.facebook.com/NeelamSaxenaPoet द्वारा अनेक काव्यगोष्ठियाँ आयोजित कर मंच प्रदान किया। साथ ही सदस्यों की पुस्तकों का विमोचन और उन पर चर्चा के कार्यक्रम भी आयोजित किए। 300 से अधिक सदस्यों वाले इस ग्रुप ने मुम्बई के एन.सी.पी.ए. जैसे कई सुप्रसिद्ध मंचों पर ऐसे कार्यक्रम करने के बाद पहली बार दिल्ली के साहित्य अकादमी हॉल  के मंच पर यह लिटफेस्ट आयोजित किया।

कार्यक्रम का बेहतरीन संचालन डॉ रेणु मिश्रा एवम् जूही गुप्ते ने किया। कार्यक्रम की शुरुआत डॉ. अपर्णा प्रधान द्वारा स्वरचित सरस्वती वंदना के गायन से हुई। 18 पुस्तकों का विमोचन माननीय विशिष्ट अतिथियों तथा नीलम सक्सेना द्वारा किया गया। इनमें मीरा भंसाली, वहीदा हुसैन, डॉ. मैत्रीय जोशी, निवेदिता रॉय, डॉ. अंशु शर्मा, डॉ. अपर्णा प्रधान, जूही गुप्ते, माला अग्रवाल (माधवी), सुरेखा साहू, यू.बी. तिवारी, डॉ. सिग्मा सतीश, डॉ. कोयल बिस्वास, डॉ. दिवाकर पोखरियाल, अनूप पांडे, गार्गी सरखेल बागची, और डॉ. रेणु मिश्रा की पुस्तकों के अलावा नीलम सक्सेना की नई पुस्तक बिनीथ द डेड स्किन (Beneath the Dead Skin) भी थी। पुस्तक विमोचन के उपरांत सभी लेखक और लेखिकाओं ने अपनी पुस्तक का संक्षिप्त परिचय दिया।

सब को इवेंट पार्टनर हाइब्रो स्क्राइब्स पब्लिकेशन द्वारा प्रायोजक मेडल्स से सम्मानित किया गया।

उसके बाद कवि-कवियत्रियों ने काव्य पाठ किया। मीरा भंसाली, वहीदा हुसैन, डॉ. मैत्रीय जोशी, डॉ. अंशु शर्मा, डॉ. अपर्णा प्रधान, माला अग्रवाल (माधवी), जूही गुप्ते, सीमा जैन, सुनील चौधरी, ऋत्विका शर्मा, सुरेखा साहू, डॉ. कोयल बिस्वास, गायत्री जोशी अरुणिमा, अनूप पांडे, डॉ. सिग्मा सतीश, मिसना चानू, सरिता त्रिपाठी, पद्मजा आइंगर – पैडी और सीमा श्रीवास्तव ने स्वरचित कविताएं सुनाई जिन्हें विशिष्ट अतिथियों एवं श्रोताओं ने बहुत सराहा।

कार्यक्रम के अंत में विभिन्न श्रेणियों के पुरस्कार दिए गए, जैसे कि सर्वश्रेष्ठ महिला लेखिका, सर्वश्रेष्ठ हिंदी काव्य पुस्तक, सर्वश्रेष्ठ अंग्रेजी कविता संग्रह, सर्वश्रेष्ठ अंग्रेजी फिक्शन पुस्तक, सर्वश्रेष्ठ हिंदी फिक्शन पुस्तक, सर्वश्रेष्ठ नॉन-फिक्शन पुस्तक, इत्यादि। इन पुरस्कारों के विजेता सीमा जैन, सुरेखा साहू, यू. बी. तिवारी, डॉ. मैत्रीय जोशी, निवेदिता रॉय, सुनील चौधरी, डॉ. अपर्णा प्रधान, माधवी अग्रवाल, हरप्रीत कौर, वीना विज, गार्गी सारखेल बागची, रूपम, वहीदा हुसैन, डॉ. कोयल बिस्वास, डॉ. दिवाकर पोखरियाल, ऋत्विक शर्मा, मीरा भंसाली, मंदिरा घोष, और सौमित रहे। नीलम सक्सेना को लीला रमन अनुकरणीय, असाधारण और प्रबुद्ध साहित्यिक प्रतिभा अवार्ड पद्मजा आइंगर – पैडी ने प्रदान किया। इसके अलावा निवेदिता रॉय, पद्मजा आइंगर – पैडी, और रित्विका को कविता वाचन के लिए पुरस्कार प्रदान किए गए।

कार्यक्रम के खुशनुमा लम्हों को सुनील चौधरी जी ने अपने कैमरे में कैद किया। मीडिया पी.डी.पी. प्रोडक्शन के सौजन्य से कार्यक्रम का सीधा प्रसारण फेसबुक पर हुआ और उन्होंने तस्वीरें भी खींची।

प्रस्तुति – सुश्री अपर्णा प्रधान एवम् श्री अनुप जालान

≈ श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ कार्तिकी पौर्णिमा… ☆ श्रीशैल चौगुले ☆

श्रीशैल चौगुले

? कवितेचा उत्सव ?

कार्तिकी पौर्णिमा  ☆ श्रीशैल चौगुले ☆

कार्तिकी पौर्णिमेचा चंद्र

तिमीरावर साम्राज्य राजेंद्र

अनंत तार्यांचा दिपेंद्र

तेजस्वी शीतल शिवेंद्र.

 

सृष्टी सागर धरा केंद्र

भक्ती द्विप देव स्वर्गेंद्र

संयम तो पंचभुतेंद्र

कार्तीक पौर्णिमेचा चंद्र.

 

मनमंदिरी पुण्य लोक

आत्मदिप जैसा सर्वेंद्र

क्रोधकांडा लोप सुखेंद्र

कार्तीक पौर्णिमेचा चंद्र.

वात-वात तेववी लक्ष

 दुष्कर्मे नाश नाश रंध्र

पवन थंडचा समक्ष

तप्त पराभूत भुपेंद्र

 

© श्रीशैल चौगुले

मो. ९६७३०१२०९०.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सुजित साहित्य #179 ☆ वातानुकुलित… ☆ श्री सुजित कदम ☆

श्री सुजित कदम

? कवितेचा उत्सव ?

☆ सुजित साहित्य # 179 ☆ वातानुकुलित… ☆ श्री सुजित कदम ☆

एका आलिशान वातानुकुलीत

दुकानाच्या आत

निर्जीव पुतळ्यांना

घातलेल्या रंगीबेरंगी

कपड्यांना पाहून,

मला माझ्या बापाची

आठवण येते…

कारण,

मी लहान असताना,

नेहमी माझ्यासाठी

रस्त्यावरून कपडे खरेदी

करताना,

माझा बाप माझ्या

चेह-यावरून हात

फिरवून त्याच्या

खिशातल्या पाकिटाला

हात लावायचा…

आणि

वातानुकुलीत

दुकानातल्या कपड्यांपेक्षा

रस्त्यावरचे कपडे

किती चांगले असतात

हे किती सहज

पटवून द्यायचा…

खिशातलं एखादं चाॅकलेट

काढून तेव्हा तो हळूच

माझ्या हातात ठेवायचा…

आणि

माझ्या मनात भरलेले कपडे

तेव्हा तो माझ्या नजरेतूनच ओळखायचा…

आम्ही कपडे खरेदी करून

निघाल्यावरही

माझा बाप चार वेळा

मागं वळून पहायचा

आणि

“एकदा तरी आपण

ह्या आलिशान दुकानातून कपडे

खरेदी करू”

इतकंच माझ्याकडे पाहून

बोलायचा…

पण आता,

मला त्या निर्जीव पुतळ्यानां घातलेल्या..

रंगीबेरंगी कपड्यांच्या

किंमतीचे लेबल पाहून…

माझ्या बापाचं मन कळतं

आणि त्यांनं तेव्हा…

डोळ्यांच्या आड लपवलेलं पाणी

आज माझ्या डोळ्यांत दाटून येतं…

कारण,

मी माझ्या लेकरांला

रस्त्यावरून कपडे

खरेदी करताना,

त्याच्यासारखाच मी ही

तेव्हा

किलबिल्या नजरेने

ह्या दुकानांकडे पहायचो…

आणि

ह्या रंगीबेरंगी कपड्यांची

स्वप्नं तेव्हा मी नजरेमध्ये साठवायचो…

अशावेळेस,

नकळतपणे

माझा हात

माझ्या लेकरांच्या चेह-यावर

कधी फिरतो कळत नाही…

आणि

पाकिटातल्या पैशांची

संख्या काही बदलत नाही…

परिस्थितीची ही गोळा बेरीज

अजूनही तशीच आहे

आणि

मनमोकळं जगणं

अजून…

वातानुकुलीत व्हायचं आहे..

 © श्री सुजित कदम

संपर्क – 117, विठ्ठलवाडी जकात नाका, सिंहगढ़   रोड,पुणे 30

मो. 7276282626

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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