हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #202 – कविता – ☆ प्रत्यासी मीमांसा… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ (सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  “रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है एक विचारणीय कविता “प्रत्यासी मीमांसा...”।) ☆ तन्मय साहित्य  #202 ☆ ☆ प्रत्यासी मीमांसा... ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆ ☆ वोट डालना धर्म हमारा और कुकर्म तुम्हारे हैं तुम राजा बन गए वोट देकर तो हम ही हारे हैं   एक चोर एक डाकू है ठग एक,एक है व्यभिचारी एक लुटेरा हिंसक है एक एक यहाँ अत्याचारी ये हैं उम्मीदवार तंत्र के इनके वारे न्यारे हैं और कुकर्म तुम्हारे हैं ....   चापलूस है कोई तो कोई धन का सौदागर है है कोई आतंकी इनमें तो कोई बाजीगर है इनके कोरे आश्वासन औ' केवल झूठे नारे हैं और कुकर्म तुम्हारे हैं   इनमें है मसखरे कई कोई नौटंकी वाले हैं कुछ ने पहन रखी ऊपर नकली शेरों की खाले हैं संत फकीर माफियाओं के हिस्से न्यारे-न्यारे हैं और कुकर्म तुम्हारे हैं   इनमें राष्ट्र विरोधी कुछ- कुछ काले धंधे वाले हैं कुछ एजेंट विदेशों के कुछ के अपने...
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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 27 ☆ कवि कुछ ऐसा लिख… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव (संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “कवि कुछ ऐसा लिख…” ।) जय प्रकाश के नवगीत # 27 ☆ कवि कुछ ऐसा लिख… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆ कवि कुछ ऐसा लिख कि जनता जागे वरना गूँगे रह जायेंगे गीत अभागे   कौन कहाँ पर देता है आवाज़ किसी को बैठे ठाले कोसा करते नई सदी को   कर ऐसा उद्घोष कि जड़ता भागे।   प्रत्युत्तर में नहीं दबे आलोचक दृष्टि अनहद गूँजे विप्लव पाले सारी सृष्टि   तोड़ वर्जनाओं को बढ़ तू आगे।   समय कठिन है घोर अराजकता है फैली शब्द निरंतर भाव नदी की चादर मैली   छोड़ दुखों को बुन ले सुख के धागे।     ...... *** © श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.) मो.07869193927, ≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈...
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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – धूप ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज (श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) संजय दृष्टि – धूप  एसी कमरे में अंगुलियों के इशारे पर नाचते तापमान में, चेहरे पर लगा लो कितनी ही परतें, पिघलने लगती है सारी कृत्रिमता चमकती धूप के साये में, मैं सूरज की प्रतीक्षा करता हूँ, जिससे भी मिलता हूँ चौखट के भीतर नहीं, तेज़ धूप में मिलता हूँ..! © संजय भारद्वाज  (प्रात: 7:22 बजे, 25.1.2020) अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव,...
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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ झिलमिला लो जरा देर तुम जुगनुओं… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे (वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा - एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य - काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना " झिलमिला लो जरा देर तुम जुगनुओं...")  झिलमिला लो जरा देर तुम जुगनुओं... ☆ श्री अरुण कुमार दुबे  ☆ ☆ सामने जब वफ़ा का हिसाब आएगा होश सारा ठिकाने जनाब आएगा ☆ दौलतों की मुरीद आज दुनिया भले दंग होगी जो मेरा निसाब आएगा ☆ ज़हलियत का अँधेरा सिमटने लगे इल्म का जब खिला आफ़ताब आएगा ☆ जिसका आगाज़ होगा नहीं ठीक से उंसका अंजाम समझो खराब आएगा ☆ झिलमिला लो जरा देर तुम जुगनुओं बज़्म में अब मेरा माहताब आएगा ☆ झूठ के हामी बनके अगर तुम जिये सच सवालों का कैसे जबाब आएगा ☆ हम मुहाजिर कहेंगे मसीहा उसे लेके जो भी वतन की तुराब आएगा ☆ ज़ुल्म जब हद से ज्यादा बढेगें अरुण मान लेना जहां में अजाब आएगा ☆ © श्री अरुण कुमार दुबे सम्पर्क : 5, सिविल...
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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 174 ⇒ स्वीकारोक्ति… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा (वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ "अभी अभी" के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख - "स्वीकारोक्ति"।) अभी अभी # 174 ⇒ स्वीकारोक्ति… श्री प्रदीप शर्मा  Confession अक्सर लोग सच को, अपनी गलती को, अथवा किए गए अपराध को आसानी से स्वीकार नहीं करते, और अगर वे स्वीकार कर लें, तो उसे कन्फेशन अथवा स्वीकारोक्ति कहा जाता है। स्वीकारोक्ति के भी दो प्रकार होते हैं, एक ऐच्छिक और एक अनिवार्य। हम यहां केवल ऐच्छिक की ही चर्चा करेंगे। आ बैल मुझे मार ! गांधीजी ने इसे सत्य के प्रयोग कहा। बहुत से लोगों ने आत्म कथा का सहारा लेकर यह, स्वीकार किया मैने, वाला खेल बहुत रोचक तरीके से खेला। मधुशाला वाले बच्चन जी ने भी क्या भूलूं क्या याद करूं और नीड़ का निर्माण जैसे अपने संस्मरणों से पाठकों का मन मोह लिया।। आत्मकथा हो या संस्मरण,...
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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 86 – प्रमोशन… भाग –4 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

श्री अरुण श्रीवास्तव (श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना   जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। आज से प्रस्तुत है आलेखों की एक नवीन शृंखला “प्रमोशन…“ की अगली कड़ी। )  ☆ आलेख # 86 – प्रमोशन… भाग –4 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆ जब शाखा को पता चला कि प्रमोशन टेस्ट होने वाले हैं तो पहली जिज्ञासा कट ऑफ डेट जानने की हुई. जो इसके पात्र बने वो तनावग्रस्त हुये और जो कट ऑफ डेट से कटते कटते बचे वो प्रफुल्लित हुये क्योंकि उन्हें मौका मिला प्रमोशन के पात्रों को जज करने का, तानेबाजी का...
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सूचना/Information ☆ ई-अभिव्यक्ति – दीपावली विशेषांक (हिन्दी) रचनाएँ आमंत्रित ☆ सम्पादक मंडल ई-अभिव्यक्ति ☆

सूचना/Information  ☆ ई-अभिव्यक्ति - दीपावली विशेषांक (हिन्दी) रचनाएँ आमंत्रित ☆ सम्पादक मंडल ई-अभिव्यक्ति ☆ (आपके आत्मीय स्नेहनुसार अंतिम तिथि 10 अक्तूबर 2023 तक) वार्षिकांक की श्रृंखला में शीघ्र प्रकाश्य बहुपठित ई-अभिव्यक्ति के दीपावली विशेषांक 2023 के लिए आपके प्रासंगिक/अराजनैतिक लेख, लघुकथा, कहानी, व्यंग्य, कविता, संस्मरण, नाटक आदि प्रतीक्षित हैं। (शब्द सीमा  -लेख /व्यंग्य /कहानी >> अधिकतम - 2000 शब्द) आप दीपावली विशेषांक 2022 यहाँ पढ़ सकते हैं 👇 कृपया वर्ड फाइल में अपने चित्र, पते, ईमेल /मोबाइल नंबर सहित रचनाएँ निम्नलिखित ईमेल पर 5 अक्तूबर 2023 शाम 7 बजे तक प्रेषित कीजिए। विषय में दीपावली विशेषांक लिखना न भूलिए। (शब्द सीमा लेख / कहानी (2000 शब्द) ई-अभिव्यक्ति (हिन्दी) - श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ->> [email protected] श्री जय प्रकाश पाण्डेय ->> [email protected]  ई-अभिव्यक्ति (अंग्रेजी) - कैप्टन प्रवीण रघुवंशी ->> [email protected] परिश्रमिक संभव नहीं होगा। दीपावली विशेषांक ईबुक/फ्लिपबुक/पी डी एफ फॉर्मेट में प्रकाशित की जा सकती है ।  संपादक मण्डल - ई-अभिव्यक्ति  ≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर / संपादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव, भोपाल / श्री जय प्रकाश पाण्डेय, जबलपुर /...
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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ ध्यास… ☆ प्रा तुकाराम दादा पाटील ☆

श्री तुकाराम दादा पाटील  कवितेचा उत्सव  ☆ ध्यास… ☆ प्रा तुकाराम दादा पाटील ☆ (व्योमगंगा) ☆ जोडलेले प्रेमधागे तोडता येणार का हो ? वेदना मग काळजाला बांधता येणार का हो?   काळ वेडा धावणारा घेवुनी गेला सुखाला सुखवणा-या परत वेळा मागता येणार का हो?   आतताई या मनाला वेगळी चिंता सतावे संकटांच्या डोंगराना झेलता येणार का हो?   वचन होते जे दिले ते आजही आहेच ओझे फार मोठा भार आहे पेलता येणार का हो?   कैदखाने तोडुनीया जाहल्या आहेत भेटी वास्तवाच्या या कथांना सांगता येणार का हो?   श्वास झाला मोकळा पण ध्यास आहे कैद झाला हा दुरावा तोडलेला जोडता येणार का हो?   चिखलकेला वेदनांचा अंतरंगी काळजाने भावना जर उसळल्या तर मारता येणार का हो? ☆ © प्रा. तुकाराम दादा पाटील मुळचा पत्ता  –  मु.पो. भोसे  ता.मिरज  जि.सांगली सध्या राॅयल रोहाना, जुना जकातनाका वाल्हेकरवाडी रोड चिंचवड पुणे ३३ दुरध्वनी – ९०७५६३४८२४, ९८२२०१८५२६ ≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈...
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मराठी साहित्य – मराठी कविता ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 202 ☆ दुधावरची साय ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे कवितेच्या प्रदेशात # 201 ☆ दुधावरची साय ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆ ☆ भाद्रपदातली एक प्रसन्न सकाळ... गर्भार सुनेला इस्पितळात घेऊन जाताना मनाची उलघाल..... मनोमन ईश्वराची आराधना, ईशस्तवन! प्रसुतीगृहाच्या दारातला प्राजक्त, मन मोहविणारा! येणा-या सुगंधी क्षणांचा साक्षीदारच जणू! प्रतिक्षा....वेणा....वेदना.... सारं शब्दातीत.... पदरात पडलेलं निसर्गाचं दान अमूल्य  ! टॅ हॅ ऽऽऽटॅ हॅ ऽऽऽ चा प्रथम स्वर जिवाचा कान करून ऐकलेला ! आजीपणाची कृतार्थ जाणीव..... सा-या भूमिका पार पाडून, येऊन पोहचलोच आपण, या ठिकाणी! कसं अन काय... दुधावरची साय... इवलासा जीव कवेतलं आकाश... हृदयातला अथांग अर्णव... आयुष्याची सार्थकता....जगण्याचा अर्थ नवा ! ☆ © प्रभा सोनवणे १४ सप्टेंबर २००८ संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011 मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected] ≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈...
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मराठी साहित्य – विविधा ☆ कागदाची पुडी… ☆ सुश्री विभावरी कुलकर्णी ☆

सुश्री विभावरी कुलकर्णी   विविधा  ☆ कागदाची पुडी… ☆ सुश्री विभावरी कुलकर्णी ☆ आज सकाळी फुले आणायला गेले आणि बघतच राहिले.त्या मावशींनी एक वृत्तपत्राचा कागद घेतला त्यात फुले,तुळस,बेल ठेवले आणि मोठ्या निगुतीने छान पुडी बांधली.आणि त्यावर छान दोरा गुंडाळला.त्यांची एकाग्रता बघून असे वाटले,जणू त्या खूप मौल्यवान वस्तू किंवा औषध त्यात बांधत आहेत.आणि तसे तर ते  होते.ज्या फुलांनी देवाची पूजा होणार आहे ती असामान्यच! त्यांनी तो दोरा गुंडाळत असताना मनाने मला पण गुंडाळले ( फसवले नव्हे ).माझे भरकटत चाललेले मन जागेवर आणले.त्या फुलांच्या पुडीमुळे मी मात्र बालपणात पोहोचले.आणि आठवले कित्येक वर्षात आपण अशी कागदी पुडी पाहिलीच नाही.दुकानात जायचे आणि चकचकित प्लास्टिक मध्ये टाकून वस्तू आणायच्या.त्यातील बऱ्याच वस्तू मशीनमध्येच चकचकित कपडे घालून येतात.मग लक्षात आले,माझ्या लहानपणी सर्वच वस्तू कागदाच्या पुडी मधून यायच्या.ही आजची फूल पुडी बघून मन भूतकाळात शिरले. मला चांगलेच आठवते प्रत्येक दुकानात वस्तू बांधून देण्याचे कागद वेगवेगळ्या पद्धतीने ठेवलेले असायचे.त्या वरून दुकानदाराची पारख करता यायची.काही दुकानदार त्या कागदांची प्रतवारी करून ठेवायचे.म्हणजे प्रत्येक वस्तू साठी व वस्तूच्या वजना प्रमाणे ( वजना प्रमाणे आकारमान पण बदलायचे ) कागदाचे...
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