डॉ कुंदन सिंह परिहार
(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय डॉ कुन्दन सिंह परिहार जी का साहित्य विशेषकर व्यंग्य एवं लघुकथाएं ई-अभिव्यक्ति के माध्यम से काफी पढ़ी एवं सराही जाती रही हैं। हम प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहते हैं। डॉ कुंदन सिंह परिहार जी की रचनाओं के पात्र हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं। उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय चिंतन – ‘सूली पर टंगा आदमी‘। इस विचारणीय रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार # 296 ☆
☆ चिंतन ☆ सूली पर टंगा आदमी ☆
12 जून को अहमदाबाद में हुई वायुयान दुर्घटना ने पूरी दुनिया को हिला दिया। 270 आदमियों का जीवन पल भर में बुझ गया। कल्पनातीत अन्त। इनमें से कितने ही बच्चे थे जिनका जीवन शुरू होने से पहले ही ख़त्म हो गया। एक परिवार में पति-पत्नी के अलावा तीन बच्चे थे, सात आठ साल के जुड़वां बेटे और उनसे एक दो साल बड़ी उनकी प्यारी सी दीदी। बेटियों का मोह मुझे ज़्यादा होता है, इसलिए उस नन्हीं बेटी का फोटो देखकर मुझे रोना आया।
इस घटना के दो-तीन दिन बाद ही एक हेलीकॉप्टर केदारनाथ से लौटते में दुर्घटनाग्रस्त हुआ। इसमें पायलट समेत सात व्यक्तियों की मौत हुई। सवारियों में एक नाबालिग बच्ची भी थी। फिर एक बार आदमी की असहायता शिद्दत से महसूस हुई।
ये सब स्थितियां आदमी के वश से बाहर हैं। आदमी आज टेक्नोलॉजी का गुलाम है। टेक्नोलॉजी जिस तरफ घुमाती है, उसी तरफ घूमने के लिए मजबूर है। आदमी बैलगाड़ी से चलकर तांगे, इक्के, फिटन, मोटर, रेल से बढ़कर वायुयान तक पहुंचा। ट्रेन के पंद्रह सोलह घंटे के सफर को वायुयान से तीन-चार घंटे में तय कर लेने का लोभ बढ़ा, भले ही उसके लिए जेब कुछ ज़्यादा हल्की करनी पड़े। जो आदमी मोटर पर चलने का आदी हो, उसके लिए साइकिल-रिक्शे की धीमी सवारी असहनीय हो जाती है। लेकिन वायुयान में बैठकर पूरे समय ‘राम-राम’ जपना पड़े तो यात्रा कैसी होगी? ‘न निगलते बने, न उगलते’ वाली स्थिति है।
परसों के अखबार की खबर के अनुसार पिछले एक वर्ष में हवाई यात्रा करने वाले यात्रियों की संख्या में 32 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। ये सब 35 वर्ष से कम आयु के युवा हैं जो मंझोले शहरों से महज़ घूमने और मनोरंजन के लिए विदेश गये।
बैलगाड़ी-युग में बारातें भी बैलगाड़ी में जाती थीं। बैलगाड़ी की बारात में लड़की वाले को आदमियों के अलावा बैलों की खूराक का भी इन्तज़ाम करना पड़ता था। तब की बारातें दो-तीन दिन रुकती थीं, इसलिए लड़की वालों की फजीहत का अन्दाज़ लगाया जा सकता है। मेरे एक रिश्तेदार बताते थे कि जब उनके घर की शादी होती थी तब जिनको निमंत्रण नहीं मिलता था वे भी पता चलने पर बैलगाड़ी सजाकर इष्ट-मित्रों सहित चल पड़ते थे। नतीजतन बारातियों की संख्या हज़ारों में पहुंचती थी।
एक ज़माना वह भी था जब आम आदमी को कोई सवारी मयस्सर नहीं थी। तब अपनी पांवगाड़ी ही काम आती थी। आठ दस मील की यात्रा आराम से पैदल हो जाती थी। बहुत से तीर्थयात्री पैदल ही लंबी यात्राएं करते थे। तब तीर्थयात्रियों को घर से अन्तिम विदाई दी जाती थी क्योंकि सयाने लोगों के जीवित लौट कर आने की उम्मीद कम ही रहती थी। अभी भी कांवड़िये कांवड़ों के साथ सैकड़ो मील की यात्राएं पैदल कर रहे हैं।
वायु-यात्रा के अलावा दूसरी फिक्र महानगरों में गगनचुम्बी इमारतों को देखकर होती है। तीस चालीस फ्लोर की इमारतों के माचिस जैसे फ्लैटों को देखकर रीढ़ में फुरफुरी या झुरझुरी दौड़ती है। कुछ दिन पहले दुबई में एक 67 मंज़िली इमारत में आग लगने से बड़ी मुश्किल से करीब 3500 लोगों को निकाला जा सका। सवाल यह उठता है कि जब आदमी का सुरक्षित निकलना मुश्किल हो जाए तो उसकी गृहस्थी के माल- असबाब का क्या होगा? अमेरिका के ट्रेड टावरों को हम अभी भूले नहीं हैं।
दिल्ली के एक इलाके में पांचवीं या छठवीं मंज़िल पर आग लगने से एक सज्जन ऐसे घबराये कि अपने पुत्र और भतीजी को ऊपर से कूदने के लिए कह दिया और उनके पीछे खुद भी कूद गये। नतीजतन तीनों की ही मृत्यु हो गयी।
कुछ दिन पहले टीवी पर एक बिल्डर का इंटरव्यू देखा था। उनका कहना था कि ज़मीन की कमी और उसकी आसमान-छूती कीमतों के कारण ‘होरिज़ोंटल’ निर्माण के बजाय ‘वर्टिकल’ निर्माण ज़रूरी है। उन्होंने बताया कि उनका ख़्वाब एक किलोमीटर ऊंची टावर बनाने का है। सुनकर मेरी हालत खराब हो गयी। लगता है आदमी जीते जी स्वर्ग का सफर तय कर लेगा। ‘गगन मंडल पर सेज पिया की, किस विधि मिलना होय।’
मकान की ऊंचाई बढ़ने के साथ आदमी पूरी तरह ‘लिफ्ट’ पर निर्भर हो रहा है। लिफ्ट काम न करे तो आदमी पिंजरे में बन्द चूहा हो जाए। हाल में लिफ्ट का दरवाज़ा न खुलने और आदमी के फंस जाने की घटनाएं सामने आयीं। एक घटना में लिफ्ट का दरवाज़ा न खुलने के कारण एक आठ दस साल का बालक उसमें फंस गया था। यह दिक्कत कुछ मिनट ही रही, लेकिन लिफ्ट के बाहर प्रतीक्षारत बालक के पिता ऐसे बदहवास हुए कि उन्हें ‘हार्ट अटैक’ आ गया और उनकी मृत्यु हो गयी। ऐसी घटनाओं से आदमी की बढ़ती लाचारी सामने आती है।
कुछ दिन पहले गुड़गांव या गुरुग्राम में एक संबंधी के घर में रुकने का मौका मिला था। फ्लैट बारहवीं मंज़िल पर था। शाम को मुझे सलाह दी गयी कि नीचे जाने के बजाय थोड़ी देर बालकनी में ही टहल लूं। सलाह मान कर बालकनी के दो-तीन चक्कर लगाये, लेकिन नीचे झांकने पर मुझे चक्कर आने लगे। परिणामत: टहलना मुल्तवी करके कमरे में आ गया।
मजबूरी में आज लोग स्थितियों से संगत बैठाने की जद्दोजहद में लगे हैं। आज के महानगरों के हालात को देखकर सब की ख़ैर ही मनायी जा सकती है।
© डॉ कुंदन सिंह परिहार
जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈