हिन्दी साहित्य – कथा-कहानी ☆ लघुकथा – सही मूल्यांकन ☆ श्री विजय कुमार, सह सम्पादक (शुभ तारिका) ☆

श्री विजय कुमार

(आज प्रस्तुत है सुप्रसिद्ध एवं प्रतिष्ठित पत्रिका शुभ तारिका के सह-संपादक श्री विजय कुमार जी  की एक विचारणीय लघुकथा  “सही मूल्यांकन)

☆ लघुकथा – सही मूल्यांकन ☆ श्री विजय कुमार, सह सम्पादक (शुभ तारिका) ☆

फेसबुक खोलकर राजेश एक साहित्य ग्रुप में डाली गई पोस्टों को देखने-पढ़ने लगा। आज भी एक लेखिका द्वारा अपनी एक रचना के किसी अन्य द्वारा अपने नाम से पोस्ट किए जाने पर आपत्ति दर्ज करते हुए उस पर चर्चा-परिचर्चा की जा रही थी। ग्रुप से जुड़े लगभग सभी रचनाकार या पाठक वर्ग इस कृत्य की निंदा कर रहे थे, जो सही भी था। किसी भी रचनाकार के साथ यह अन्याय ही था।

…परंतु राजेश सोच रहा था, ‘क्या जरूरत है अपनी नवीनतम रचना को इस तरह फेसबुक या व्हाट्सएप्प पर डालने की? पता नहीं क्यों, सभी को वाहवाही लूटने की इतनी जल्दी रहती है कि इधर कोई कविता, लघुकथा या अन्य रचना लिखी नहीं, उधर तुरंत पोस्ट कर दी। कई तो लगता है कि सीधे लिखते ही फेसबुक या व्हाट्सएप्प पर ही हैं। कई बार तो कितनी अशुद्धियाँ होती हैं, और रचना भी अधपकी-सी होती है। फिर सिलसिला शुरू हो जाता है वाहवाही का। अगर कोई गलती से रचना के खिलाफ कोई टिप्पणी कर दे, तो सभी उस बेचारे टिप्पणी करने वाले की हालत खराब करके रख देते हैं। यदि कोई रचना अच्छी हो, तो तुरंत चोरी हो जाती है। बस फिर कोसते रहो। क्या फेसबुक या व्हाट्सएप्प पर किसी रचना का सही मूल्यांकन हो पाता है?’

सोचते-सोचते उसने अपना ईमेल अकाउंट खोला और विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं को अपनी रचनाएं पोस्ट करने में व्यस्त हो गया…।

***

©  श्री विजय कुमार

सह-संपादक ‘शुभ तारिका’ (मासिक पत्रिका)

संपर्क – # 103-सी, अशोक नगर, नज़दीक शिव मंदिर, अम्बाला छावनी- 133001 (हरियाणा)
ई मेल- [email protected] मोबाइल : 9813130512

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – जलप्रलय ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

आज की साधना

माधव साधना सम्पन्न हुई। दो दिन समूह को अवकाश रहेगा। बुधवार 31 अगस्त से विनायक साधना आरम्भ होगी।

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

 ? संजय दृष्टि – जलप्रलय ??

चम्मच, कटोरी,

प्याली, कड़छी,

हरेक, आदिग्रंथों में

वर्णित जलप्रलय

की धमकी देता रहा,

उधर अथाह समंदर,

पेट में पानी लिए,

चुपचाप मुस्कराता,

मंद-मंद बहता रहा..!

 © संजय भारद्वाज

3:15 बजे दोपहर, 17.10.2018

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक की पुस्तक चर्चा # 119 – श्रीमदभगवदगीता – हिन्दी पद्यानुवाद – पद्य अनुवादक – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ” विदग्ध “☆ चर्चाकार – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जो  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ” विदग्ध “ जी के काव्य-संग्रह श्रीमदभगवदगीता – हिन्दी पद्यानुवादकी समीक्षा।

कृति –  श्रीमदभगवदगीता हिन्दी पद्यानुवाद

पद्य अनुवादक – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ” विदग्ध “

मूल्य – ४५० रु, पृष्ठ – २५४

पुस्तक प्राप्ति हेतु पता – ए २३३, ओल्ड मीनाल, भोपाल, ४६२०२३

☆ श्रीमदभगवदगीता – हिन्दी पद्यानुवाद– पद्य अनुवादक – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ” विदग्ध ” ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

दुख के महासागर मे जो मन डूब गया हो

अवसाद की लहरो मे उलझ ऊब गया हो

तब भूल भुलैया मे सही राह दिखाने

कर्तव्य के सत्कर्म से सुख शांति दिलाने

पावन पवित्र भावो का संधान है गीता

है धर्म का क्या मर्म, कब क्या करना  सही है

जीवन मे व्यक्ति क्या करे गीता मे यही है

पर जग के वे व्यवहार जो जाते न सहे है

हर काल हर मनुष्य को बस छलते रहे है

आध्यात्मिक उत्थान का विज्ञान है गीता

करती हर एक भक्त का कल्याण है गीता

श्रीमदभगवदगीता एक सार्वकालिक  वैश्विक ग्रंथ है. इसमें जीवन के मैनेजमेंट की गूढ़ शिक्षा है. धीरे धीरे संस्कृत जानने समझने वाले कम होते जा रहे हैं. किन्तु गीता में सबकी रुचि सदैव बनी रहेगी, अतः संस्कृत न समझने वाले हिन्दी पाठको को गीता का वही ज्ञान और काव्यगत आनन्द यथावत मिल सके इस उद्देश्य से संस्कृत मर्मज्ञ, शिक्षाविद, आध्यात्मिक तथा राष्ट्रीय भावधारा के कवि प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव  “विदग्ध” ने मूल संस्कृत श्लोक, फिर उनके द्वारा किये गये काव्य अनुवाद तथा शलोकशः भावार्थ को बढ़िया कागज व अच्छी प्रिंटिंग के साथ यह बहुमूल्य कृति प्रस्तुत की है. अनेक शालेय व विश्वविद्यालयीन पाठ्यक्रमो में गीता के अध्ययन को शामिल किया गया है, उन छात्रो के लिये यह कृति बहुउपयोगी बन पड़ी है. स्वयं हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी ने अनेक राष्ट्राध्यक्षो को भेंट में भगवत गीता की प्रतियां भेंट में दी हैं. भगवत गीता की विशद टीकायें, अनेकानेक भाषाओ में अनुवाद के साथ ही कई रचनाकारों ने हिन्दी में भी इसके अनुवाद किये हैं. गीता के अध्येता भविष्य में भी ऐसा करते रहेंगे, क्योंकि गीता का मनोयोग से अध्ययन हृदय को स्पंदित करता है. प्रेरणा देता है. राह दिखाता है. 

भगवान कृष्ण ने द्वापर युग के समापन तथा कलियुग आगमन के पूर्व (आज से पांच हजार वर्ष पूर्व) कुरूक्षेत्र के रणांगण मे दिग्भ्रमित अर्जुन को, जब महाभारत युद्ध आरंभ होने के समस्त संकेत योद्धाओ को मिल चुके थे, गीता के माध्यम से ये अमर संदेश दिये थे. गीता के इन सूत्र श्लोकों के जरिये जीवन के मर्म की व्याख्या की गई है . श्रीमदभगवदगीता का भाष्य वास्तव मे ‘‘महाभारत‘‘ है। गीता को स्पष्टतः समझने के लिये गीता के साथ ही महाभारत को पढना और हृदयंगम करना भी आवश्यक है। महाभारत तो भारतवर्ष का क्या ? मानव  इतिहास है। ऐतिहासिक एवं तत्कालीन घटित घटनाओं के संदर्भ मे झांककर ही श्रीमदभगवदगीता के विविध दार्शनिक-आध्यात्मिक व धार्मिक पक्षो को व्यवस्थित ढ़ंग से समझा जा सकता है।

जहॉ भीषण युद्ध, मारकाट, रक्तपात और चीत्कार का भयानक वातावरण उपस्थित हो वहॉ गीत-संगीत-कला-भाव-अपना-पराया सब कुछ विस्मृत हो जाता है फिर ऐसी विषम परिस्थिति मे ज्ञान चर्चा की कल्पना बडी विसंगति जान पडती है। क्या रूदन में संगीत संभव है?  किंतु यह संभव हुआ है- तभी तो गीता के माहात्म्य में कहा गया है ‘‘गीता सुगीता कर्तव्य‘‘  । अतः संस्कृत मे लिखे गये गीता के श्लोको का पठन-पाठन भारत मे जन्मे प्रत्येक भारतीय के लिये अनिवार्य है। संस्कृत भाषा का जिन्हें ज्ञान नहीं है- उन्हे भी कम से कम गीता और महाभारत ग्रंथ क्या है ? कैसे है ? इनके पढने से जीवन मे क्या लाभ है ? यही जानने और समझने के लिये भावुक हृदय प्रो चित्र भूषण जी ने साहित्यिक श्रम कर कठिन किंतु जीवनोपयोगी संस्कृत भाषा के इन सूत्रो  का पद्यानुवाद किया है, और युगानुकूल सरल करने का प्रयास किया है।

साहित्य मनीषी कविश्रेष्ठ प्रो. चित्रभूषण श्रीवास्तव जी, जो न केवल भारतीय साहित्य-शास्त्रो धर्मग्रंथो के अध्येता हैं बल्कि एक कुशल प्रवक्ता भी हैं, वे स्वभाव से कोमल भावो के भावुक कवि भी है। निरंतर साहित्य अनुशीलन की प्रवृत्ति के कारण विभिन्न संस्कृत कवियो की साहित्य रचनाओ पर हिंदी पद्यानुवाद भी आपने प्रस्तुत किया है. महाकवि कालिदास कृत ‘‘मेघदूतम्‘‘ व रघुवंशम् काव्य का आपका पद्यानुवाद दृष्टव्य, पठनीय व मनन योग्य है।गीता के विभिन्न पक्षों जिन्हे योग कहा गया है जैसे विषाद योग जब विषाद स्वगत होता है तो यह जीव के संताप में वृद्धि ही करता है और उसके हृदय मे अशांति की सृष्टि का निर्माण करता है जिससे जीवन मे आकुलता, व्याकुलता और भयाकुलता उत्पन्न होती हैं परंतु जब जीव अपने विषाद को परमात्मा के समक्ष प्रकट कर विषाद को ईश्वर से जोडता है तो वह विषाद योग बनकर योग की सृष्टि श्रृखंला का निर्माण करता है. और इस प्रकार ध्यान योग, ज्ञान योग, कर्म योग, भक्तियोग, उपासना योग, ज्ञानयोग,  कर्मयोग,   विभूति योग, विश्वरूप दर्शन विराट योग, सन्यास योग, विज्ञान योग, शरणागत योग, आदि मार्गो से होता हुआ मोक्ष योग प्रशस्त होता है. प्रकारातंर से  विषाद योग से प्रसाद योग तक यात्रा संपन्न होती है।

इसी दृष्टि से गीता का स्वाध्याय हम सबके लिये चरित्र निर्माण, किंकर्तव्यविमूढ़ पलों में जीवन की राह ढूंढने में उपयोगी हैं. अनुवाद में प्रायः दोहे को छंद के रूप में प्रयोग किया गया है. कुछ अनूदित अंश इस तरह हैं..

पहला ही श्लोक है

धर्म क्षेत्रे कुरूक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः

मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय

शब्दशः अनुवाद किया गया है

धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में युद्ध हेतु तैयार

मेरों का पाण्डवों से संजय क्या व्यवहार

पहले ही अध्याय के २० वें श्लोक में आत्मा की अमरता इस तरह प्रतिपादित की गई है. . .

आत्मा शाश्वत अज अमर, इसका नहीं अवसान

मरता मात्र शरीर है, हो इतना अवधान

भावार्थ भी नीचे दिया गया है…

आत्मा न तो किसी काल में जन्म लेती है, और न ही मरती है. आत्मा अजन्मी नित्य, सनातन, और पुरातन है. शरीर के मारे जाने पर यह नहीं मरती.

एक चर्चित श्लोक है…

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय, नवानि गृहृणाति नरोपराणी

तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्ययानि संयाति नवानि देहि

पदयानुवाद किया गया है…

जीर्ण वसन ज्यों त्याग नर, करता नये स्वीकार

त्यों ही आत्मा त्याग तन, नव गहती हर बार

अध्याय ५ कर्म सन्यास योग है जिसके ८वें और ९वें श्लोक का भावानुवाद है…

स्वयं इंद्रियां कर्मरत, करता यह अनुमान

चलते, सुनते, देखते ऐसा करता भान।।8।।

सोते, हँसते, बोलते, करते कुछ भी काम

भिन्न मानता इंद्रियाँ भिन्न आत्मा राम।।9।।

इसी अध्याय का २९वां श्लोक है

भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम्‌ ।

सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति ॥

 

हितकारी संसार का, तप यज्ञों का प्राण

जो मुझको भजते सदा, सच उनका कल्याण।।29।।

अध्याय ९ से..

अहं क्रतुरहं यज्ञः स्वधाहमहमौषधम्‌ ।

मंत्रोऽहमहमेवाज्यमहमग्निरहं हुतम्‌ ॥

मै ही कृति हूँ यज्ञ हूँ, स्वधा, मंत्र, घृत अग्नि

औषध भी मैं, हवन मैं, प्रबल जैसे जमदाग्नि।।16।।

इस तरह प्रो श्रीवास्तव ने श्रीमदभगवदगीता के श्लोको का पद्यानुवाद कर हिंदी भाषा के प्रति अपना अनुराग तो व्यक्त किया ही है किंतु इससे भी अधिक सर्व साधारण के लिये गीता के दुरूह श्लोको को सरल कर बोधगम्य बना दिया है. गीता के प्रति गीता प्रेमियों की अभिरूचि का विशेष ध्यान रखा है । गीता के सिद्धांतो को समझने में साधको को इससे बडी सहायता मिलेगी, ऐसा मेरा विश्वास है। अनुवाद बहुत सुदंर है। शब्द या भावगत कोई विसंगति नहीं है।  गीता के अन्य अनुवाद या व्याख्यायें भी अनेक विद्वानो ने की हैं पर इनमें लेखक स्वयं अपनी संमति समाहित करते मिलते हैं जबकि इस अनुवाद की विशेषता यह है कि प्रो श्रीवास्तव द्वारा ग्रंथ के मूल भावो की पूर्ण रक्षा की गई है।

आखिरी अठारहवें अध्याय के अंतिम श्लोक का अनुवाद है…

जहाँ योगेश्वर कृष्ण हैं तथा धनुर्धर पार्थ

विजय सुनिश्चित वहाँ ही, मेरी मति निस्वार्थ

अंत में यही कहूंगा कि

श्री कृष्ण का संसार को वरदान है गीता

निष्काम कर्म का बडा गुणगान है गीता

तो घर पर गीता को केवल पूजा के स्थान पर अगरबत्ती लगाने के लिये न रखें. उसे पढ़ने की टेबल पर रखें, और ऐसा माहौल बनायें कि बच्चे इसे पढ़ें समझें. आवश्यक हो तो बच्चो के लिये हिन्दी या अंग्रेजी अनुवाद उपलब्ध करवायें.

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 136 – लघुकथा ☆ श्री गणेश उन्नयन… ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ ☆

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है आपकी  बाल मनोविज्ञान और जिज्ञासा पर आधारित लघुकथा “श्री गणेश उन्नयन…”।) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 136 ☆

☆ लघुकथा  🌿 श्री गणेश उन्नयन… 🙏

नदी किनारे रबर की ट्यूब लिए बैठी माधवी अपने 4 साल के बेटे को समझा रही थी… बेटा अभी जितने भी गणपति आएंगे उन सभी को विसर्जित करना है। तुम यहीं तट पर बैठना कुछ प्रसाद और रुपये मिल जायेगा।

बेटा शिबू मन ही मन सोच रहा था क्या इनमें से एक गणपति को हम अपने घर नहीं ले जा सकते क्या?  

झोपड़ी में रहने वाले क्या गणेश जी नहीं बिठा सकते? आखिर ये विसर्जन के लिए ही तो आए हैं, क्या हमारे यहां बप्पा बाकी दिनों में नहीं रह सकते?

मन में उठे सवालों को लेकर दौड़ कर अपने आई (माँ)  के पास गया और बहुत ही भोलेपन से कहा… “आई, इसमें से जो सबसे सुंदर गणपति बप्पा होंगे उसे आप नदी में नहीं भेजना। हम अपने साथ घर ले जाएंगे और पूजा करेंगे। जैसे बप्पा सब को बहुत सारा पैसा देते हैं, हमें कुछ दिनों बाद देंगे परंतु, तुम मुझे एक बप्पा इनमें से लेने देना।“

अचानक तेज बारिश होने लगी गणपति विसर्जन के लिए जितने भी भक्त आए थे। सब किनारे में रखकर घर भागने लगे। किसी ने कहा… “ए बाई! यह पैसे रखो और गहरे में जाकर विसर्जित कर देना।“

हाँ साहब हम ट्यूब में बिठा कर ले जाएंगी और आपके बप्पा को नदी में विसर्जित कर देंगे। उसके मन में उठे सवाल और बेटे की बात! क्या गणपति को हम नहीं ले सकते?

भीड़ कम होने पर रखे गणपति मूर्तियों को देख मां ने कहा… “बेटा, तुम्हें जो गणपति बप्पा चाहिए बताओ।”

बेटे की खुशी का ठिकाना ना रहा बारिश बंद होने पर आगे-आगे शिबू फूटे पीपे को जोर – जोर से बजाते हुए चिल्लाते जा रहा था… “गणपति बप्पा मोरिया, गणपति बप्पा मोरिया”

और माधवी सर पर गणपति जी को उठाए अपने घर की ओर सरपट चल रही थीं। वह नहीं जानती थी कि यह  सही है या नहीं किन्तु, शायद बप्पा को भी उनके साथ जाना अच्छा लग रहा था।

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ सात समंदर पार – भाग -7 (अंतिम भाग)☆ श्री राकेश कुमार ☆

श्री राकेश कुमार

(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” ज प्रस्तुत है आलेख – “सात समंदर पार” की अंतिम कड़ी।)

☆ आलेख ☆ सात समंदर पार – भाग – 7 (अंतिम भाग) ☆ श्री राकेश कुमार ☆

यात्रा के दूसरे और अंतिम चरण में दुबई से विमान ने पंख फैलाए और यूरोप के ऊपर से शिकागो (अमेरिका) के लिए रास्ते में पड़ने वाला समुद्र फांदने लग गया। विमान में सभी की सीट के सामने स्क्रीन की सुविधा उपलब्ध रहती है। आप चाहें तो फिल्म इत्यादि देख कर मनोरंजन कर सकते हैं। विमान के बाहर लगे कैमरे से खुले आकाश के दृश्य का भी आनंद लिया जा सकता हैं। एक अन्य स्क्रीन पर आपके विमान की स्थिति, गति,  गंतव्य स्थान से दूरी इत्यादि की जानकारी पल पल में संशोधित होती रहती हैं।

विमान में नब्बे प्रतिशत से अधिक हमारे देश के लोग ही थे। नाश्ते में दक्षिण भारत के व्यंजन परोसे गए थे, पास में बैठे उत्तर भारत के एक सज्जन कहने लगे इससे अच्छा तो आलू पूरी या पराठा देना चाहिए था।हम लोग खाने पीने के बारे में कितने नखरे करते हैं।आने वाले समय में हो सकता है,आपके मन पसंद भोजन की मांग की पूर्ति के लिए स्विगी इत्यादि कंपनियां ड्रोन द्वारा खाद्य प्रदार्थ विमान की खिड़की से उपलब्ध करवा सकती हैं। रेल यात्रा में तो कई भोजनालय चुनिंदा स्टेशन पर खाद्य सामग्री आपकी सीट पर  पहुंचा देते हैं।                              

पंद्रह घंटे की यात्रा में तीन बार  खान पान की सेवा का आनंद लेते हुए विमान शिकागो की धरती पर कब पहुंच गया पता ही नहीं चला।

© श्री राकेश कुमार

संपर्क –  B  508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान) 

मोबाईल 9920832096

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ ॥ मार्गदर्शक चिंतन॥ -॥ जियो और जीने दो ॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ मार्गदर्शक चिंतन

☆ ॥ जियो और जीने दो ॥ – प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’☆

परमात्मा ने प्रकृति को सतत विकास और समृद्धि का वरदान दिया है। संसार में सबके लिये रहने, भोजन करने और विकसित होने की पूरी व्यवस्था की है। जल, भोजन, वायु, उष्णता और आकाश प्रदान कर सबको पनपने और निर्बाध बढऩे रहने का उपक्रम किया है। वनस्पति और प्राणि संवर्ग एक-दूसरे के पूरक तथा सहयोगी बनाये गये हैं। परन्तु स्वार्थी मनुष्य ने अन्य प्राणियों, वनस्पतियों, भूमि, जल, वायु और आकाश का अपनी इच्छानुसार स्वार्थपूर्ति हेतु उपयोग कर अनावश्यक दोहन कर सबको प्रदूषित कर डाला है। यह प्रदूषण स्वत: उसके विनाश का कारण हो चला है। स्वार्थ में मस्त होकर धनार्जन के लोभ में वह भूला हुआ है।

प्रकृतिदत्त जीवन दायिनी वायु धुयें से प्रदूषित है। जल अर्थात् नदियां और जलाशय मलिन प्रवाहों से भर गये हैं। जल प्रदूषित हो गया। बीमारियां फैला रहा है। भूमि पर्याप्त उत्पन्न करने की क्षमता खोती जा रही है क्योंकि रासायनिक खादों से उर्वरा शक्ति खो रही है। कृषि भूमि पर भवन और कारखाने लगा दिये गये हैं। खदानों से जरूरत से अधिक खुदाई कर कोयला लोह अयस्क तथा अन्य मूल्यवान धातुयें और उत्पाद निकाले जा रहे हैं। शुद्ध भोज्य पदार्थ दुर्लभ हो रहे हैं। आकाश में ओजोन परत जो जीवन रक्षक कवच का काम करती है फट गई है। वायुमण्डल का तापमान असंतुलित हो गया है। प्राकृतिक बर्फ की चादर पिघल कर फट रही है। अत: उष्णता बढ़ रही है। मौसमों में असंतुलन आ गया है। वनस्पति-वृक्षों को काटा जा रहा है, अत: वनों का क्षेत्रफल कम हो रहा है। जिससे असंतुलन बढ़ रहा है। वन्य प्राणियों के आवास नष्ट हो रहे हैं जिससे उनकी प्रजातियां ही नष्ट हो रही हैं। वन्य पशुओं का मांस और धन के लिये शिकार किया जा रहा है। मनुष्य ने अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिये नदी, पहाड़, खेत, वन, वन्य प्राणियों किसी को नहीं छोड़ा है और उनसे निर्दयता पूर्वक बर्ताव कर रहा है। यही तो पाप है जो आज मनुष्य निर्भय होकर कर रहा है।

सभी धर्मों ने मनुष्य को उपदेश दिया है कि संसार में जितने भी जीव जन्तु प्राणी हैं सभी मानव जीवन में सहायक हैं। उनकी तथा प्राकृतिक सर्जना की रक्षा भर ही नहीं उनकी संवृद्धि में सहयोग करके पुण्य लाभ प्राप्त करना चाहिये। किसी का विनाश न किया जाय, इसी सिद्धांत को सामने रख भगवान महावीर ने कहा था- ‘अहिंसा परमो धर्म:’। अहिंसा ही सबसे बड़ा धर्म है। जो धर्म का पालन करते हैं उन्हें पुण्य लाभ होता है और उन्हें सद्गति प्राप्त होती है। यदि मनुष्य दया भाव रखकर सबके साथ बर्ताव करे तो वह स्वत: भी सुखी हो। उसे जीवन के लिये प्रकृति सबकुछ प्रदान करे और वनस्पति तथा सभी प्राणियों को सुखी रख सके। इसी जनकल्याणकारी सिद्धांत को प्रतिपादित कर महावीर जी ने कहा था- ‘जियो और जीने दो’ अर्थात् खुद भी जियो और सुखी रहो तथा अन्य सभी को भी जीने और सुखी रहने दो। सूत्र रूप में सुख प्राप्ति के लिये अहिंसा के इस सिद्धांत से बड़ा मार्गदर्शक सिद्धांत क्या हो सकता है। मनुष्य को इसका मनन चिंतन और अपने जीवन में परिपालन करना आवश्यक है।

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

 ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, म.प्र. भारत पिन ४६२०२३ मो ७०००३७५७९८ [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ ३० ऑगस्ट – संपादकीय – श्री सुहास रघुनाथ पंडित ☆ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

श्री सुहास रघुनाथ पंडित

? ई-अभिव्यक्ती – संवाद ☆ ३० ऑगस्ट – संपादकीय – श्री सुहास रघुनाथ पंडित – ई – अभिव्यक्ती (मराठी) ?

वि. ग. कानिटकर

वि. ग. कानिटकर हे मराठीत इतिहास, चरित्र, कथा, कादंबरी आणि अनुवादित साहित्य निर्मिती करणारे विचारवंत लेखक होते. त्यांचा जागतिक राजकारणाचा चांगला अभ्यास होता. अनेक जागतिक व्यक्तीमत्वांची चरित्रे त्यांनी लिहीली आहेत.

बी. ए. व बी. एस.सी. शिक्षण पूर्ण केल्यावर त्यानी अकौंटंट जनरल च्या ऑफिसमधे नोकरी केली व त्याच वेळी लेखनही चालू ठेवले. त्यांच्या लेखनाची सुरूवात नियतकालिकांमधून झाली. माणूस या साप्ताहिकात मुक्ताफळे या नावाचे सदर व ललित मासिकातून गप्पांगण हे सदर त्यांनी लिहिले होते. अनेक कन्नड, हिंदी, इंग्रजी साहित्याचा त्यांनी मराठी अनुवाद केला आहे. ग्यानबा आणि रा. म. शास्त्री या टोपणनावाने त्यांनी बरेच लेखन केले आहे.

उत्कृष्ट साहित्य निर्मितीसाठी त्यांना राज्य शासनाचा तीन वेळा पुरस्कार मिळाला आहे. शिवाय अनेक खाजगी पुरस्कारही त्यांना मिळाले आहेत.

‘मनातले चांदणे’ हा त्यांचा पहिला कथासंग्रह. त्यांचे अन्य साहित्य असे:

 कथासंग्रह: आणखी पूर्वज, आसमंत, कळावे लोभ असावा, जोगवा, पूर्वज, लाटा, सुखाची लिपी.

कादंबरी: होरपळ, शहरचे दीवे, खोला धावे पाणी, कालखुणा.

अनुवाद: अकथित कहाणी, अयोध्या आणि हिंदु समाजापुढील प्रश्न, एका रात्रीची पाहुणी

अन्य: ॲडाॅल्फ हिटलरची प्रेमकहाणी, अब्राहम लिंकन-फाळणी टाळणारा महापुरूष, इस्रायल-युद्ध युद्ध आणि युद्धच, नाझी भस्मासूरचा उदयास्त, श्री नामदेव चरित्र, फाळणी-युगांतापूर्वीचा काळोख, महाभारत-पहिला इतिहास, माओ क्रांतिचे चित्र आणि चरित्र. . . इत्यादी.

30ऑगस्ट2016 लि श्री. कानिटकर यांचे निधन झाले. त्यांच्या स्मृतीस नम्र अभिवादन!.🙏

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शंकर गोपाळ तुळपुळे

शं. गो. तुळपुळे हे मराठी भाषा व संत वाड़्मयाचे अभ्यासक व संशोधक होते. सोलापूर येथील दयानंद महविद्यालयात ते मराठी विभाग प्रमुख होते. नंतर ते पुणे विद्यापीठातही मराठी विभाग प्रमुख होते.

साहित्यनिर्मिती:

मराठी ग्रंथ निर्मितीची वाटचाल, गुरू देव रा. द. रानडे चरित्र व तत्वज्ञान

सहलेखन– रमण महर्षि

संपादन व लेखन- 

प्राचीन मराठी कोरीव लेख, मराठी वाड़्मयाचा इतिहास: इ. स. 1350 पर्यंत.

संतवाणीतील पंथराज, श्रीकृष्ण चरित्र, पाच संतकवी, महानुभाव गद्य, दृष्टांत पाठ, प्राचीन मराठी गद्य, यादवकालीन मराठी भाषा, मराठी निबंधाची वाटचाल, स्मृतिस्थळ, 

मराठी भाषेचा तंजावरी कोश.

श्री. तुळपुळे यांचे वयाच्या 80 व्या वर्षी 1994 मध्ये निधन झाले. आज त्यांच्या स्मृती दिनी त्यांना  अभिविदन ! 🙏

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कवी बी अर्थात नारायण मुरलीधर गुप्ते

संख्यात्मक दृष्ट्या अत्यंत कमी पण दर्जात्मक दृष्ट्या अत्यंत उत्तम कविता लेखन करणारे कवी नारायण मुरलीधर गुप्ते यांनी ‘बी ‘ या टोपणनावाने कविता लेखन केले. प्रेम, कौटुंबिक, सामाजिक आशयाच्या त्यांच्या कविता प्रसिद्ध आहेत. त्यांनी काही भाषांतरेही केली आहेत.

1891 मध्ये ‘प्रणय पत्रिका’ ही त्यांची पहिली कविता ‘करमणूक’ मध्ये प्रसिद्ध झाली. ‘फुलांची ओंजळ’ हा त्यांचा पहिला काव्यसंग्रह तर ‘पिकलं पान’ हा दुसरा काव्यसंग्रह त्यांच्या मृत्यूनंतर प्रसिद्ध झाला. या दोन्ही संग्रहात मिळून त्यांनी फक्त 49 कविता लिहील्या. पण त्यांच्या काव्यचाफ्याचा  गंध रसिकांच्या मनात अजूनही दरवळत आहे.

माझी कन्या(गायी पाण्यावर काय म्हणूनी आल्या ), चाफा बोलेना, बकुल, दीपज्योती, बंडवाला, कविवंदन, वेडगाणे या त्यांच्या गाजलेल्या कविता.

आज त्यांच्या पंचाहत्तर वा स्मृतीदिन. ! काव्यज्योती निमाली असली तरी चाफा, बकुल मागे सोडून जाणा-या व माझी कन्या मधून बापाच्या भावनांना शब्दरूप देणा -या या कवीस शतशः प्रणाम ! 🙏

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श्री सुहास रघुनाथ पंडित

ई-अभिव्यक्ती संपादक मंडळ

मराठी विभाग

संदर्भ :विकिपीडिया.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ बहिणाबाई चौधरी… ☆ श्रीमती अनुराधा फाटक ☆

श्रीमती अनुराधा फाटक

? कवितेचा उत्सव ?

☆ बहिणाबाई चौधरी ☆ श्रीमती अनुराधा फाटक ☆

बहिणाबाई चौधरी - विकिपीडिया

बहिणाबाई चौधरी

(११ ऑगस्ट, इ.स. १८८० – ३ डिसेंबर, इ.स. १९५१)

बहिणा तुझ्या नजरेने

टिपले अवघे सजीव

बांधून त्याना शब्दात

दिलेस अमरत्व !

ताकद पक्षी चंचूची

समजली तुला कशी गे

मानवाची दहा बोटे

वाटली तुला फिकी गे !

चुलीवरचा तवा देतो

जरी चटके हाताला

तोच तवा गरम भाकरी

खाऊ घालतो आम्हाला !

नित्य साध्या गोष्टीतून

दिलेस तू आम्हा ज्ञान

त्यामुळेच असून निरक्षर

ठरलीस खरी साक्षर !

गिरवावा तुझा धडा

पुस्तकाच्या शिक्षणाने

असे तुझे तत्वज्ञान

 मिरवावे अभिमाने !

© श्रीमती अनुराधा फाटक

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ चाफा बोलेना… ☆ कवी बी ☆

? कवितेचा उत्सव ?

☆ चाफा बोलेना… ☆ कवी बी ☆

चाफा बोलेना, चाफा चालेना

चाफा खंत करी काही केल्या फुलेना ।।

 

गेले आंब्याच्या बनी, म्हटली मैनासवे गाणी

आम्ही गळ्यात गळे मिळवूनी रे॥

 

गेले केतकीच्या बनी, गंध दरवळला मनी

नागासवे गळाले देहभान रे॥

 

चल ये रे, ये रे गड्या, नाचू उडू घालू फुगड्या, खेळू झिम्मा

झिम पोरी झिम पोरी झिम॥

 

हे विश्वाचे अंगण

आम्हा दिले आहे आंदण

उणे करू आपण दोघेजण ॥

 

जन विषयांचे किडे

यांची धाव बाह्याकडे

आपण करू शुद्ध रसपान ॥

 

चाफा फुली आला फुलून

तेजी दिश्या गेल्या आटुन

कोण मी-चाफा?कोठे दोघे जण?

 – कवी बी

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #153 ☆ माझी किंमत… ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

? अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 153 ?

☆ माझी किंमत…

वस्तुसारखी माझी किंमत ठरते कळले होते

वेश्या म्हणुनी या देहाला रोज डिवचले होते

 

रूप वसंता तुझे घेउनी आले होते वादळ

वेलीवरच्या फुलास त्याने सरळ फसवले होते

 

अंगावरती घाण टाकली ज्याने होती माझ्या

हात पाहिले त्याचे तेव्हा तेही मळले होते

 

नव्हती तेव्हा रंग पंचमी रंगाला तो आला

अंगावरती नको नको ते रंग उधळले होते

 

कोठडीत मी अन् सूर्याचे स्वप्न पाहिले रात्री

सभोवताली फक्त काजवे माझ्या जमले होते

 

नव्हे शृंखला ते तर पैंजण हाती नाही बेडी

फासावरती केवळ माझे स्वप्नच चढले होते

 

या देहाचा ठेका नाही कुणी घेतला येथे

काल भेटले त्यांना तर मी आज वगळले होते

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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