हिन्दी साहित्य – कविता – * पेंसिल की नोक * – सुश्री नूतन गुप्ता

सुश्री नूतन गुप्ता 

 

पेंसिल की नोक

(संयोग से  इसी जमीन  पर इसी  दौरान एक और कविता  की रचना श्री  विवेक चतुर्वेदी जी द्वारा पेंसिल की तरह बरती गई घरेलू स्त्रियां के शीर्षक से रची गई। मुझे आज  ये  दोनों कवितायें  जिनकी अपनी अलग  पहचान है, आपसे साझा करने में अत्यन्त प्रसन्नता हो रही है। 

प्रस्तुत है  सुश्री  नूतन गुप्ता  जी की भावप्रवण कविता ।)

 

छिलते छिलते घायल हो गई ये पेंसिल की नोक
लिखने के अब क़ाबिल हो गई ये पेंसिल की नोक।
मीठा लिखते रहना इस पेंसिल की आदत था
आज अचानक क़ातिल हो गई ये पेंसिल की नोक
हरदम इसके लफ़्ज़ों से बस लहू टपकता था
पायल जैसी पागल हो गई ये पेंसिल की नोक।
कभी मनाती फिरती थी नाराज़ समंदर को
अब कितनों का साहिल हो गई ये पेंसिल की नोक
नूतन’ क्या मालूम नहीं था फटे मुक़द्दर की है तू
खुशियों में क्यूँ गाफ़िल हो गई ये पेंसिल की नोक।

©  नूतन गुप्ता

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हिन्दी साहित्य – कविता – * पेंसिल की तरह बरती गई घरेलू स्त्रियां * – श्री विवेक चतुर्वेदी

श्री विवेक चतुर्वेदी 

पेंसिल की तरह बरती गई घरेलू स्त्रियां

(संयोग से  इसी जमीन  पर इसी  दौरान एक और कविता  की रचना सुश्री नूतन गुप्ता जी द्वारा “पेंसिल की नोक “ के शीर्षक से रची गई। मुझे आज  ये  दोनों कवितायें  जिनकी अपनी अलग  पहचान है, आपसे साझा करने में अत्यन्त प्रसन्नता हो रही है। 

प्रस्तुत है जबलपुर के युवा कवि श्री विवेक चतुर्वेदी जी की भावप्रवण कविता ।)

 

पेंसिल की तरह बरती गई घरेलू स्त्रियां”
फेंकी गईं खीज और ऊब से…
मेज और सोच से गिराई गईं
गिर कर भी बची रह गई उनकी नोक
पर भीतर भरोसे का सीसा टूट गया
उठा कर फिर फिर चलाया गया उन्हें
वे छिलती रहीं बार-बार
उनकी अस्मिता बिखरती रही
घिट के कद बौना होता गया
उन्हें घर से बाहर नहीं किया गया
वे जरूरत पर मिल जाने वाले
सामान की तरह रखी गईं
रैक के धूल भरे कोनों में
सीलन भरे चौकों और पिछले कमरों में
उन्हें जगह मिली
बच्चे भी उन्हें अनसुना करते रहे…
पेन और पिता से कमतर देखा.. जो दफ्तर जाते थे
हमेशा गलत बताई गई उनकी लिखत.. अनंतिम रही..
जो मिटने को अभिशप्त थी
वे साथ रह रहीं नई और पुरानी पेंसिलों
और स्त्रियों से झगड़ती रहीं
यही सुख था.. जो उन्हें हासिल था
बरस बरस कम्पास बॉक्स और तंग घरों में
पुरुषों और पैनों के नीचे दबकर
चोटिल आत्मा लिए
अपनी देह से प्रेम लिखती रहीं
पर चूड़ीदार ढक्कनों  में बंद रहे पुरुष
उनकी तरलता स्याही की तरह
बस सूखे कागजों में दर्ज हुई
पेंसिल की तरह बरती गईं घरेलू स्त्रियां।।
© विवेक चतुर्वेदी, जबलपुर 
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आध्यात्म / Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – प्रथम अध्याय (12) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रथम अध्याय

अर्जुनविषादयोग

( दोनों सेनाओं के प्रधान शूरवीरों की गणना और सामर्थ्य का कथन )

( दोनों सेनाओं की शंख-ध्वनि का कथन )

तस्य सञ्जनयन्हर्षं कुरुवृद्धः पितामहः ।

सिंहनादं विनद्योच्चैः शंख दध्मो प्रतापवान्‌ ॥12॥

 

संजय ने कहा-

तभी पितामह भीष्म ने करके,शँख निनाद

सबको उत्साहित किया ,सहसा कर सिहंनाद।।12।।

 

भावार्थ :  कौरवों में वृद्ध बड़े प्रतापी पितामह भीष्म ने उस दुर्योधन के हृदय में हर्ष उत्पन्न करते हुए उच्च स्वर से सिंह की दहाड़ के समान गरजकर शंख बजाया॥12॥

His glorious  grandsire  (Bhishma),  the  eldest  of  the  Kauravas,  in  order  to  cheer Duryodhana, now roared like a lion and blew his conch. ॥12॥

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

 

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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हिन्दी साहित्य- कथा-कहानी – लघुकथा – * एक्सीडेंट  * – डॉ . प्रदीप शशांक 

डॉ . प्रदीप शशांक 

 

एक्सीडेंट 
“हुजूर, माई — बाप मुझे बचा लीजिये, वरना जनता मुझे मार डालेगी —-” कहते हुए ट्रक ड्राइवर थाने में प्रवेश कर सब- इंस्पेक्टर के कदमों में गिर गया।
सब – इंस्पेक्टर मेहरा ने कड़कदार आवाज में उसे गाली बकते हुए कहा –“किस को अपने ट्रक  की चपेट में ले लिया ?”
“हुजूर, अम्बेडकर चौक पर अचानक एक कॉलेज की लड़की गाड़ी सहित ट्रक के नीचे आ गई । सच कह रहा हूँ हुजूर, मेरा कोई दोष नहीं है । में वहां से सीधा ट्रक लेकर आपके पास आ गया, पब्लिक के पहुंचने से पहले हुजूर ये एक हजार रुपए  रखिये और मामला निपटा दीजिये ।”
“हूँ –”  सब इंस्पेक्टर ने चारों ओर देखा, दोपहर डेढ़ बजे का समय था, ड्यूटी पर तैनात सिपाही खाना खाने पीछे ही पुलिस लाइन के अपने क्वार्टर पर गए हुए थे और बड़े साहब भी नहीं थे, मौका अच्छा था । उसने सोचा – आज यह पूरी रकम उसकी है, किसी को भी हिस्सा नहीं देना है ।
सब इंस्पेक्टर मेहरा ने जल्दी से ट्रक ड्राइवर से रुपये लिये  और कहा – “जा जल्दी से फूट ले यहां से । पब्लिक के हाथों पड़ गया तो मार – मार कर भुरता बना देगी ।”
वह मन  ही मन खुश होकर जेब में रखे हजार रुपयों पर हाथ फेर रहा था, तभी टेलीफोन की  घन्टी बजी, उसने फोन उठाया , “हेलो — मेहरा सब इंस्पेक्टर स्पीकिंग।”
दूसरी ओर से आवाज आई — “सर, आपकी लड़की की कालेज से लौटते समय अम्बेडकर चौक पर  ट्रक से एक्सीडेंट हो जाने के कारण मौत हो गयी है।”
सब इंस्पेक्टर के हाथों से रिसीवर छूट गया और वह बेहोश होकर, कुर्सी पर एक ओर लुढ़क गया ।
© डॉ . प्रदीप शशांक 
37/9 श्रीकृष्णम इको सिटी, श्री राम इंजीनियरिंग कॉलेज के पास, कटंगी रोड, माढ़ोताल, जबलपुर ,म .प्र . 482002
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आध्यात्म / Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – प्रथम अध्याय (11) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रथम अध्याय

अर्जुनविषादयोग

( दोनों सेनाओं के प्रधान शूरवीरों की गणना और सामर्थ्य का कथन )

अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिताः ।

भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्तः सर्व एव हि ।।11।।

अपने अपने अयन में आप सभी तैनात

भीष्म पितामह की सुनें,रक्षा हित सब बात।।11।।

भावार्थ : इसलिए सब मोर्चों पर अपनी-अपनी जगह स्थित रहते हुए आप लोग सभी निःसंदेह भीष्म पितामह की ही सब ओर से रक्षा करें॥11॥

“Therefore, do ye all, stationed in your respective positions in the several divisions of the army, protect Bhishma alone”.

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

 

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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हिन्दी साहित्य- कथा-कहानी – लघुकथा – * जनरेशन गैप * – सुश्री ऋतु गुप्ता

सुश्री ऋतु गुप्ता

जनरेशन गैप

(प्रस्तुत है सुश्री ऋतु गुप्ता जी की  एक विचारणीय लघुकथा। )

मोहित जब भी अपने पिताजी से बात करता किसी बात का सीधा उत्तर न देता। पिता रामदास परेशान हो उठते सोचने लगते क्या तीन लड़कियों के बाद इसी दिन को देखने के लिए पैदा किया था इसको,न जाने परवरिश में क्या कमी रह गई? जब भी बात करो टेढ़ेपन से जवाब देता है।मेरी तो कोई भी बात अच्छी नहीं लगती।

एक दिन जब वह मोहित से पूछने लगा कि घर लौटने में आज देर कैसे हो गई, कॉलेज में एक्सट्रा पीरियड था क्या? बस मोहित तो सुनते ही बस आगबबूला हो गया,”आपकी क्या आदत है,क्यूँ हर वक्त इन्क्वायरी करते रहते हैं?मैं कोई दूध पीता बच्चा थोड़े ही हूँ।अपना बुरा भला समझता हूँ।” रामदास तो उसको लेकर आज पहले ही परेशान था एक थप्पड़ झट से गाल पर जड़ चिल्लाने लगा,”बाप हूँ तेरा बोलने की तमीज नहीं है,माँ-बाप के लिए बच्चा कभी बड़ा नहीं होता है। हम चिन्ता नहीं करेंगे तो क्या बाहर वाले ख्याल रखेंगे।” बस मानो मोहित तो मौके की तलाश में ही था बोलने लगा ,”बड़ी जल्द समझ आई आपको ,जब दादा जी यही सब बातें आपको बोलते थे तो क्यों तिलमिला उठते थे,क्यों उनकी बातो का कभी सीधे मूहँ जवाब नहीं देते थे? मैं बच्चा जरूर था तब पर सब समझता था कैसे वो चुपके से जाकर आपके इस गंदे रवैये से रोते थे।मैं कहता था उनसे कि वो बात करें आपसे इस बारे में,पर डरते थे आपसे।फिक्र भी थी कि न जाने ऑफिस की क्या टैंशन रही होगी इसलिए ऐसे चिल्ला रहा है। बेचारे आपकी चिंता व आपके दो मीठे बोल को तरसते-तरसते ही चल बसे।”
रामदास तो यह सुनते ही भौचक्का रह गया व शर्मिंदा भी हो उठा क्योंकि कहीं न कहीं गलती तो उससे हुई ही थी।अब उसको एहसास था पर वक्त हाथ से निकल चुका था।यह बात सही थी कि बच्चे हम से ही सीखते हैं। उनके संस्कारों के हम ही तो रचयिता हैं।वक्त के साथ विचारों में भी अंतर आ जाता है।वह अपने सवाल का जवाब खुद ही ढूंढ़ने में लग गया कि शायद यही है जनरेशन गैप।

© ऋतु गुप्ता
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हिन्दी साहित्य- कविता – * …. तो ज़िंदगी मिले * – डॉ उमेश चन्द्र शुक्ल

डॉ उमेश चन्द्र शुक्ल  

…. तो ज़िंदगी मिले 

(प्रस्तुत है  डॉ उमेश चंद्र शुक्ल जी  की एक बेहतरीन गजल)

 

जी डी पी उछल रही हमें फक्र है खुदा,
तू खैरात बाँटना  छोड़ दे तो जिंदगी मिले॥1॥

खेतों में सपने बोये फसल काटे जहर का,
रब को अगर तू बख्श दे तो ज़िंदगी मिले॥2॥

ऊपर औ नीचे बीच में मध्यम है पिस रहा,
नज़रें इनायत हो तो इधर ज़िंदगी मिले ॥3॥

जय जवान, जय किसान, विज्ञान की है जय,
तू धर्म बेचना  छोड़ दे तो जिंदगी मिले ॥4॥

मजबूर नहीं था कभी, अब मजलूम हो गया,
मज़लूमों को अगर बख्श दे तो जिंदगी मिले ॥5॥

हमने खून-पसीने से सींचा है हिंदुस्तान ‘उमेश’
तू खून पीना छोड़ दे अगर तो जिंदगी मिले ॥6॥

©  डॉ उमेश चन्द्र शुक्ल

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आध्यात्म / Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – प्रथम अध्याय (10) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रथम अध्याय

अर्जुनविषादयोग

( दोनों सेनाओं के प्रधान शूरवीरों की गणना और सामर्थ्य का कथन )

अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम्‌।

पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरक्षितम्‌।।10।।

है विशाल अपना कटक भीष्माधीन पर्याप्त

उनकी सेना भीम की रक्षा में अपर्याप्त।।10।।

भावार्थ :  भीष्म पितामह द्वारा रक्षित हमारी वह सेना सब प्रकार से अजेय है और भीम द्वारा रक्षित इन लोगों की यह सेना जीतने में सुगम है॥10॥

 

“This  army  of  ours  marshalled  by  Bhishma  is  sufficient,  whereas  their  army, marshalled by Bhima, is insufficient. ।।10।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

 

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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मराठी साहित्य – मराठी आलेख – *वास्तु म्हणते तथास्तु* – सुश्री ज्योति हसबनीस

सुश्री ज्योति हसबनीस

वास्तु म्हणते तथास्तु

(प्रस्तुत है  सुश्री ज्योति  हसबनीस जी  का आलेख वास्तु म्हणते तथास्तु)

आपण ज्या वास्तुत राहतो त्या वास्तुत एक वास्तुपुरूषही कायम वस्तीला असतो असं म्हणतात. आपले हुंकार, चित्कार, उद्गार साऱ्यांची स्पंदनं ह्या वास्तूत झिरपतात, आणि अलगद  ह्या  वास्तुपुरूषापर्यंत पोहोचतात असा समज आहे. हे कितपत खरं आहे मला कल्पना नाही. पण आपली मानसिकता ज्या वेळी जशी असते तसे पडसाद वास्तूत उमटतात एवढं मात्र नक्की !

खरंच दिवसा कधीतरी लागलेला विसंवादी सूर घरातला नूर घालवल्याखेरीज राहत नाही. घरातलं चैतन्य, घरातला खळाळ साऱ्यालाच खीळ लागल्यासारखं होतं. स्तब्ध, वरवर शांत, पण आतमध्ये धगधगत असणाऱ्या तगमगीची झळ घराच्या भिंतीत शोषली जाऊन अगदी कानाकोपऱ्यापर्यंत जाऊन पोहोचते, आणि ती वास्तू पण कुठेतरी शिणल्यासारखी त्रासल्यासारखी दिसू लागते. आज हा काय सूर लागलाय असा जाब तर तो वास्तुपुरूष आपल्याला विचारत नाहीय ना असं उगाचच वाटायला लागतं.

अतिशय प्रेमाने घर सजवतांना, सजलेलं घर डोळ्यात साठवतांना ते घर पण आपल्याकडे खुप कौतुकाने बघतंय असा नकळतच भास होतो. घराच्या भिंती आपल्याशी खुष होऊन बोलतायत, नविन पडद्यांआडून खिडकीतून येणारी वाऱ्याची झुळूकही आनंदाने काही सांगू बघतेय, काळीभोर मैना झाडाच्या डहाळीवर झुलतांना हळूच उत्सुकतेने खिडकीतून डोकावतेय, आणि दुसऱ्या क्षणी झाडाला टांगलेला कंदिल निरखून बघतेय असा उगाचच भास होतो. पक्ष्यांचा गोड किलबिलाट, बागेतल्या झाडापानांची हिरवी अपूर्वाई , फुलांची उमलती नवलाई साऱ्यांचे आनंदी हुंकार परिसरात दाटतायत आणि ह्या साऱ्यामुळे तृप्त झालेला  वास्तुपुरूष खुप आनंदलाय असं अकारणच मनात येऊ लागतं !

खरंच असं असतं का, नाही माहित मला! पण एक गोष्ट मात्र नक्की, मनातला आनंद घरातल्या भिंतीभिंतीत साठवला जातो, आणि तोच परत परत जमेल तसा भेटायला येत असतो, चित्तवृत्ती अधिकाधिक प्रफुल्लित करायला!

मनातलं मळभ सतत काजळी धरत असतं, प्रकाशाने घर जरी लखलखत असलं ना तरी वास्तुच्या भिंती ती काजळीच उजळ करायला मदत करतात!

मग वास्तुपुरूष ही जर संकल्पना खरंच अस्तित्वात असेल तर  ‘ वास्तुपुरूषाने चैतन्याच्या खळाळालाच मनापासून  ‘तथास्तु’  म्हणू दे ना !!

© ज्योति हसबनीस

नागपूर

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आध्यात्म / Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – प्रथम अध्याय (9) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रथम अध्याय

अर्जुनविषादयोग

( दोनों सेनाओं के प्रधान शूरवीरों की गणना और सामर्थ्य का कथन )

 

अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्तजीविताः ।

नानाशस्त्रप्रहरणाः सर्वे युद्धविशारदाः ।।9।।

अन्य अनेकों वीर वर , मरने को तैयार

मेरे हित कई शस्त्रों के चालन में होशियार।।9।।

भावार्थ :  और भी मेरे लिए जीवन की आशा त्याग देने वाले बहुत-से शूरवीर अनेक प्रकार के शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित और सब-के-सब युद्ध में चतुर हैं॥9॥

 

And also many other heroes who have given up their lives for my sake, armed with various weapons and missiles, all well skilled in battle. ।।9।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

 

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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