मराठी साहित्य – प्रतिमेच्या पलिकडले ☆ अस्तित्व… ☆ श्री नंदकुमार पंडित वडेर ☆

श्री नंदकुमार पंडित वडेर

? प्रतिमेच्या पलिकडले ?

☆ अस्तित्व… ☆ श्री नंदकुमार पंडित वडेर ☆

“.. अगं तारामती !चल चल लवकर पाय उचलत राहा… अजून तालूक्याचं गाव आलं नाही!.. पाच सहा मैलाची रपेट करायची आपल्याला… आपल्या कनवाळू  मायबाप सरकारने यंदाच्या दिवाळी साठी दुर्बल कुटुंबांना दिवाळीसामानाचं पॅकेट देणारं आहेत फक्त शंभर रुपयात….त्या स्वस्त शिधावाटप दुकानातून… आपल्याला तिथं जाऊन नंबर लावला पाहिजे तरच ते आपल्याला मिळेल…त्यासाठी आधी बॅंकेत जाऊन हया महिन्याची स्वातंत्र्य सेनानी पेंशन योजनेतील जमा झालेली पेंशन काढायला हवी… तुला एक खादीची साडी आणि मला जमला तर खादीचा सदरा घ्यायला हवा…गेली दोन अडीच वर्षे कोरोना मुळे फाटकेच कपडे तसेच वापरले गेले आणि आता तेही घालण्याच्या उपयोगी नाही ठरले… यावर्षीची दिवाळी आपली खास जोरदार दिवाळी होणार आहे बघ… एक किलो रवा, एक किलो साखर, एक किलो तेल, एक किलो डाळ, अंगाचा साबण, सुवासिक तेलाची बाटली हे सगळं त्या पॅकेट मधे असणार आहे… ते आपल्याला मिळाले कि दिवाळीचा सणाचा आनंद होणार आहे… अगं चल चल लवकर… तिकडे बॅकेत किती गर्दी असते तुला ठाऊक नाही का? . मग पैसे मिळाले की त्या रेशन दुकानावर किती गर्दी उसळली असेल काही सांगता येत नाही… “

…बॅकेत पोहचल्यावर त्यांना सांगण्यात आलं…स्वातंत्र्य सेनानीं ची पेंशन मध्ये वाढ द्यायची का नाही यावर शासनाचा निर्णय प्रलंबित असल्याने निर्णय झाल्यावरच पेंशन खात्यावर जमा होईल… तेव्हा पेंशन धारकानी बॅकेत वारंवार चौकशी करू नये… खादीची साडी नि सदरा, दिवाळीचं पॅकेट दुकानात वाट बघत राहिलं… अन पेपरला बातमी आली… सरकारी दिवाळी पॅकेज कडे लाभार्थींनी पाठ फिरवली त्यामुळे सगळी पॅकेटची खुल्या बाजारात  विक्री करण्यास अनुमती दिली आहे…

… रेशन दुकानाच्या पायरीवर ते दोघे थकून भागून बसले.. पिशवीतून आणलेल्या पाण्याच्या बाटलीतले चार घोट पाणी पिऊन तरतरीत झाले…आजही स्वतःच्या अस्तित्व टिकविण्याच्या धावपळीत  त्यांना पंचाहत्तर वर्षापूर्वीचा स्वातंत्र्य लढ्यात केलेल्या धावपळीचा भूतकाळ आठवला… तन,मन,धन वेचून देश स्वतंत्र व्हावा म्हणून त्यांनी योगदान दिले होते… देश स्वतंत्र झाला पण…पण  स्वतंत्र देशाच्या अनुशासनाचे आजही  ते गुलामच राहिले आहेत…

©  नंदकुमार पंडित वडेर

विश्रामबाग, सांगली

मोबाईल-99209 78470.

ईमेल –[email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संवाद # 109 ☆ लघुकथा – वोट के बदले नोट ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆

डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है  शिक्षा के क्षेत्र में राजनीतिक विमर्श पर आधारित एक विचारणीय लघुकथा ‘वोट के बदले नोट’। डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद  # 109 ☆

☆ लघुकथा – वोट के बदले नोट ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆

हैलो रमेश ! क्या भाई,  चुनाव प्रचार कैसा चल रहा है ?

बस चल रहा है । कहने को तो शिक्षा क्षेत्र का  चुनाव है लेकिन कथनी और करनी का अंतर यहाँ भी दिखाई दे ही जाता है । कुछ तो अपने बोल का मोल होना चाहिए यार ? मुँह देखी बातें करते हैं सब, पीठ पीछे कौन क्या खिचड़ी पका  रहा है, पता ही नहीं  चलता ?

अरे छोड़ , चुनाव में तो यह सब चलता ही रहता है। जहाँ चुनाव है वहाँ राजनीति और जहाँ राजनीति आ गई वहाँ तो —–

पर यह तो विद्यापीठ का चुनाव है, शिक्षा क्षेत्र का! इसमें उम्मीदवारों का चयन उनकी अकादमिक योग्यता के आधार पर ही होना चाहिए ना !

रमेश किस दुनिया में रहता है तू ? अपनी आदर्शवादी सोच से बाहर निकल। अकादमिक योग्यता, कर्मनिष्ठा ये बड़ी – बड़ी बातें सुनने में ही अच्छी लगती हैं । तुझे पता है क्या कि अभय ने कई मतदाताओं के वोट पक्के कर लिए हैं ?

कैसे ? मुझे तो कुछ भी नहीं पता इस बारे में ।

इसलिए तो कहता हूँ अपने घेरे से बाहर निकल, आँख – कान खुले रख । खुलेआम वोट के बदले नोट का सौदा चल रहा है । बोल तो तेरी भी बात पक्की करवा दूं ? ठाठ से रहना फिर, हर कमेटी में तेरा नाम और जिसे तू चाहे उसका नाम डालना। चुनाव में खर्च किए पैसे तो यूँ वापस आ जाएंगे और सब तेरे आगे – पीछे भी रहेंगे ।

नहीं – नहीं यार,  शिक्षक हूँ मैं, वोट के बदले नोट के बल पर मैं जीत भी गया तो अपने विद्यार्थियों को क्या मुँह दिखाऊंगा। अपनी अंतरात्मा को क्या जवाब दूंगा ?

 

©डॉ. ऋचा शर्मा

अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर. – 414001

संपर्क – 122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 130 ☆ स्नेह की ताकत ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ ☆

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “स्नेह की ताकत। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 130 ☆

☆ स्नेह की ताकत ☆ 

वैसे तो हर दिन अपने आप में नया होता है किन्तु एक विशेष दिन का निर्धारण करना ही चाहिए, जो उसकी पहचान बनें। अभी हम लोग कैलेंडर नववर्ष को मना रहे हैं। इस समय अपने संकल्प को फलीभूत करने हेतु बहुत से वायदे करते हैं। जहाँ कुछ लोग समय के साथ चलकर इसे पूर्ण करते हैं तो वहीं अधिकांश लोग इसे केवल डायरी तक ही रख पाते हैं। खैर जितने कदम चलें, चलिए अवश्य क्योंकि आपकी यात्रा व्यर्थ नहीं जाएगी। उचित समय पर परिणाम मिलेगा। इस दौरान लोगों का स्नेह आपको शक्ति व संबल प्रदान करेगा।

प्रकृति में उसी व्यक्ति या वस्तु का अस्तित्व बना रहेगा जो समाज के लिए उपयोगी हो, समय के साथ अनुकूलन व परिवर्तन की कला में सुघड़ता हो। अक्सर लोग शिकायत करते हैं कि मुझे जो मिलना चाहिए वो नहीं मिला या मुझे लोग पसंद नहीं करते ।एक सिरे से दूसरे सिरे तक पहुँचने के दौरान आपको विभिन्न जलवायु, खानपान, वेशभूषा के लोगों का सानिध्य रहेगा। सबको समझने के लिए जुड़ाव होना बहुत जरूरी है।

यदि ऐसी परिस्थितियों का सामना आपको भी करना पड़ रहा है तो अभी  भी समय है अपना मूल्यांकन करें, ऐसे कार्यों को सीखें जो समाजोपयोगी हों, निःस्वार्थ भाव से किये गए कार्यों से अवश्य ही एक न एक दिन आप लोगों की दुआओं व दिल में अपनी जगह बना पायेंगे।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अपरिमेय ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

श्री भास्कर साधना आरम्भ हो गई है। इसमें जाग्रत देवता सूर्यनारायण के मंत्र का पाठ होगा। मंत्र इस प्रकार है-

💥 ।। ॐ भास्कराय नमः।। 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – अपरिमेय  ??

संभावना क्षीण थी

आशंका घोर,

बायीं ओर से उठाकर

आशंका के सारे शून्य,

धर दिये संभावना के

दाहिनी ओर..,

गणना की

संभावना खो गई,

संभावना

अपरिमेय हो गई..!

© संजय भारद्वाज 

25.12.2021, सुबह 11:35 बजे

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Juvenile Fiction ☆ The Tide of will – Part-6 ☆ Dr. Amitabh Shanker Roy Choudhury ☆

Dr. Amitabh Shanker Roy Choudhury

Brief Introduction

  • Birth – January 18, 1955
  • Education – MBBS (IMS/BHU)
  • Publications – 4 books (2 in Hindi, 1 each in English and Bengali) and two are yet to come.
  • Translations – Books and articles are translated in English, Odiya, Marathi and Gujarati.
  • Awards – CBT awarded stories and novel, “Kamaleshwar Smriti Katha Award (2013, 2017 and 2019)” by Kathabimb.
  • Honour – “Hindi Sevi Samman” by Mahatma Gandhi Antarrashtriya Hindi Vishwa Vidyalaya, Wardha (December 2016). 

☆ Juvenile Fiction ☆ The Tide of will – Part-6 ☆ Dr. Amitabh Shanker Roy Choudhury ☆

The Wind Chimes Ring.

Quite confused, the retired headmaster Sasidharan Narayanan looked at his old student, Kumaran’s face. At last he could just say, ‘What do you mean? Want my granddaughter? What for?’

‘Yes sir, please send her to me. She is an uncut diamond, I can see that. She will definitely marvel if I can polish her properly. I can’t say whether you’ve heard of Ian Thorpe or not. He was the most successful swimmer from Australia. Won three golds in the competition held in Japan. Can you imagine how could they achieve these astonishing feats? They have brilliant coaches to guide them. They take regular training under their eyes. Except the American swimmer Tim Shaw no one could achieve this. In 1975, he too, had won three gold medals.’

‘Well, well, run a bit slow my dear boy. Do you want to teach me the whole history of swimming? Ha, ha!’ laughed Narayanan.

Kumaran too smiled and said, ‘Sir, swimming is not only my profession but it’s in my dreams as well. By swimming I earn my rice and idli. But the letters S, W, I and M are always swimming in my blood. It’s be all and end all of my existence. It’ll be a matter of great pleasure for me if only I can train a single boy or girl of Haripadam in this sport. And if Gayatri can achieve some milestones of success in this field it’ll be a matter of great joy for me.’

‘And what about her studies?’

‘The least I can assure you sir, her studies won’t be disturbed at all.’

Neither of the two spoke a single word for some time. Then Kumaran, lost in his thoughts, said again, ‘And excuse my saying sir. No one asks whether pundit Bhimsen Joshi, the stalwart of Indian classical music, had crossed the class tenth barrier or not. No one can dare to ask what degree he had. His story is an ideal one. He fought against his poverty relentlessly. He flew his home. Sir, what is the real identity of a man? Is it not his deeds? And in Mahabharat what Karna had said? A man should be known by his deeds only and not by his birth.’

Gayatri was getting very much bored. ‘What the hell he is talking about? Oh, appupan, let’s go home.’

Narayanan was on the horns of a dilemma. In real life, it’s not easy to decide everything immediately. How could he answer Kumaran without hurting his sentiments? Ultimately he said, ‘Well, I must ask his father as well.’

‘That you’ve to, sir. But Mani is, after all, your own son.’

The duo returned home. Throughout the way Gayatri was quite restless, ‘Oh, when would we go to see those fireworks?’ Back home she didn’t open to see what prize she had got. She had altogether forgotten it.      

It was already dusk. They took their evening coffee and went out. Little Rajan would walk a bit and then start wailing, ‘Appu, in your lap, lap!’

Gayatri was walking with her appupan. Her pigtails dancing on her shoulders as she was jumping on the road. Amma, Ammuma and Gayatri – all wore white jasmine flowers in their hairs.

Gayatri was all smiles as she was reminiscing what happened last year in summer vacation when they all went to witness the ‘Vipulpuram’ festival of Vadakkunathan temple of Shiva at city of Thrissur. Whole of the temple premises were decorated with flowers. Great artists of Kerala would play there with five instruments. And there was a procession of elegantly caparisoned elephants. The drum players were walking with them, playing the chenda, a traditional percussion instrument. The face, the trunk and the sides of the elephants were covered with golden laced chadors. The skin of the pachyderms was full of colourful floral designs. Most famous among them was the elephant Parmeshwaram. Mani once told her, ‘They have shown the story of our Parmeshwaram in National Geography.’

Then the fireworks show continued till night. Every year on 8th of May it’s celebrated at Thrissur. The architectural design of the temple of Vadakkunathan is somewhat like that of a pagoda. The stories of the epic Mahabharata are depicted on the inner walls of the temple. Peoples come from far and near to see these.

Crowds of people poured into the field around the temple to see the fireworks. In the evening one after another firecrackers were let off. They exploded and a rainbow of bright coloured lights was visible in the sky, against the backdrop of the starlit night. With each loud noise of the firework the crowd burst into a roar of laughter. The light and sound! And the colours! Gayatri was practically hypnotized. She didn’t feel like going back home.

But her brother Rajan was already asleep on his father’s shoulder.  Mani grew restless, ‘Oh, it’s quite a night. We’re already late. Let’s go home. Tomorrow I’ve to attend my office as well.’

So they returned. And Gayatri too.

Before they had their dinner that night Narayanan repeated the proposal of Kumaran to them.

But Manishankaran couldn’t accept it so easily, ‘What you’re saying, achcha? What will happen to her studies? And doesn’t she need to learn the cooking and other domestic works? What will she do in her future?’

Next it was the turn of Lalithambika, the achchamma of Gayatri, to handle the argument, ‘And what’s your plan? Don’t you want to give her in wedding? My god, at her age I was -’

‘Oh Mani’s mamma, everywhere in life you cannot always expect to get ‘two twos are four’. The former math teacher continued, ‘One should dream of five. And if he gets just a three, he must not be demoralised. To dream of five is the essence of life. On the contrary, not to lose hope when one gets the three is the nectar of life! To be very frank, I’ve already decided. When we’ve got a chance we must send her for a training in swimming.’

Achaamma too was not ready to give in so easily, ‘Well, tell me now, how every morning she will go to Alleppey?’

‘It’s thrice in a week and it’s I who’ll take her to Alleppey.’

‘You? Have you ever seen yourself in the mirror? Not a single wisp of hair is black anymore. And you’ll take our kuchumol to Alleppey?’ Lalithambika covered her mouth and giggled.

‘What do you mean – I’m an Oldman?’ full of energy Narayanan was about to beat his chest, ‘And have you heard of Meenakshi Gurrukkal? The leading exponent of Kearalian martial art Kalarippayattu. Even at the age of seventy-four she wouldn’t stop, so?’   

Mani tried to play tactfully, ‘Achcha, what’s the use of this swimming for her?’

‘Use? You mean profit?’ Narayanan took his glasses in hand and wiped them, ‘Our life is not a business. A game of profit making. P.T.Usha was born in Kuttali of Calicut. She was brought up in Payoli. And now the people know the name of Meladi because of her only.’

‘After all you can’t compare Gayatri with her.’

In the meantime, Ananthi had served the day’s special dinner for everybody on banana leaves. Appupan was really fond of all these traditional preparations. They were sitting on the floor. Narayanan picked up the broken thread of conversation, ‘When Lord Ramachandra was making a bridge to cross the sea to reach the kingdom of Lanka, even the little squirrels were of great assistance to him. They would bring the stone chips and twigs to fill up the gaps between the stones of the bridge under construction. Similarly, an unknown washerwoman from Panakurti village of Andhra had decided that she would not succumb to the pressure tactics of the landlord of the village. She refused to part with her small piece of land. She revolted and the fire of her spirit spread all over Telangana. Next the peasants of Telangana rose altogether. So who can say who’s important and who’s insignificant?’

‘Achcha, your arguments are inspiring, no doubt, but are they practical? Gayatri is the girl of our family. Won’t she learn how to run a household?’

‘One must have the courage to touch the sky. One must try to fly if he has a dream. Why to have poverty even in your dreams?’     

When the grownups of a family discuss something about a child they never bother about his or her feelings. While the father and son were engrossed in their discussions, they didn’t even notice that Gayatri had left her seat and be took herself to her bed. Silently. She was dog tired and her eyes could hardly afford to remain open. Within no time she was sound asleep.

Ananthi, Gayatri’s mother, was a bit sad. She murmured to herself, ‘Oh, your war of words! No one even bothered to congratulate my daughter for her achievement.’

But her grandfather didn’t forget it. Suddenly he asked, ‘Hey Ananthi, what was her prize?’

‘Don’t know, achcha.’

‘Didn’t see? Oh, bring that box. It’s over there on my table.’

Quickly he opened the box. Oh my god, there was a piece of wind chimes in it! Narayanan picked it up and hung it from his hand. It started chiming. The metallic tune drifted all over the house.

Narayanan, full of pride and joy, went near Gayatri’s bed and hung it near her head. Lovingly, his eyes were fixed at his kuchumol’s face.

Coming through the open window, rays of moon light fell upon the bed. Her face was illuminated. Was she dreaming? The wind chimes were ringing.

As if a melody wafted across the room,

‘Dream and dare to touch the blue sky

You too have wings, why don’t you fly?’

Contd…      

© Dr. Amitabh Shanker Roy Choudhury

C0ntact: Care Dr. Alok Kumar Mukherjee, 104/93, Vijay Path, Mansarovar, Jaipur, Rajasthan 302020

Mo: 9455168359, 9140214489

Email: [email protected]

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 186 ☆ आलेख – नए साल की चुनौतियां और हमारी जिम्मेदारी ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक विचारणीय   आलेख  – बदलते कहां हैं अब कैलेंडर?

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 186 ☆  

? आलेख – नए साल की चुनौतियां और हमारी जिम्मेदारी ?

नया साल प्रारंभ हो चुका है. आज जन मानस के जीवन  में मोबाईल इस कदर समा गया है कि अब साल बदलने पर कागज के कैलेंडर बदलते कहां हैं ?अब साल, दिन, महीने, तारीखें, समय सब कुछ टच स्क्रीन में कैद हाथो में सुलभ है. वैसे भी अंतर ही क्या होता है, बीतते साल की आखिरी तारीख और नए साल के पहले दिन में, आम लोगों की जिंदगी तो वैसी ही  बनी रहती है.

हां दुनियां भर में नए साल के स्वागत में जश्न, रोशनी, आतिशबाजी जरूर होती है. लोग नए संकल्प लेते तो हैं, पर निभा कहां पाते हैं?  कारपोरेट जगत में गिफ्ट का आदान प्रदान होता है, डायरी ली दी जाती है, पर सच यह है की अब भला डायरी लिखता भला कौन है ? सब कुछ तो मोबाइल के नोटपैड में सिमट गया है.देश का संविधान भी सुलभ है, गूगल से फरमाइश तो करें. समझना है की संविधान में केवल अधिकार ही नहीं कर्तव्य भी तो दर्ज हैं.  लोकतंत्र के नाम पर आज स्वतंत्रता को स्वच्छंद स्वरूप में बदल दिया गया है.

इधर मंच से स्त्री सम्मान की बातें होती हैं उधर भीड़ में कुत्सित लोलुप  दृष्टि मौका मिलते ही चीर हरण से बाज नहीं आती. स्त्री समानता और फैशन के नाम पर स्त्रियां स्वयं फिल्मी संस्कृति अपनाकर संस्कारों का उपहास करने में पीछे नहीं मिलती. 

देश का जन गण मन तो वह है, जहां फारूख रामायणी अपनी शेरो शायरी के साथ राम कथा कहते हैं. जहां मुरारी बापू के साथ ओस्मान मीर, गणेश और शिव वंदना गाते हैं. पर धर्म के नाम पर वोट के ध्रुवीकरण की राजनीति ने तिरंगे के नीचे भी जातिगत आंकड़े की भीड़ जमा कर रखी है.

इस समय में जब हम सब मोबाइल हो ही गए हैं, तो आओ नए साल के अवसर पर  टच करें हौले से अपने मन, अपने बिखर रहे संबंध, और अपडेट करें एक हंसती सेल्फी अपने सोशल मीडिया स्टेटस पर नए साल में, मन में स्व के साथ समाज वाले भाव भरे सूर्योदय के साथ.

यह शाश्वत सत्य है कि भीड़ का चेहरा नहीं होता पर चेहरे ही लोकतंत्र की शक्तिशाली भीड़ बनते हैं. सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर सेल्फी के चेहरों वाली  संयमित एक दिशा में चलने वाली भीड़ बहुत ताकतवर होती है. इस ताकतवर भीड़ को नियंत्रित करना और इसका रचनात्मक हिस्सा बनना आज हम सब की जिम्मेदारी है.

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

न्यूजर्सी , यू एस ए

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य #130 – लघुकथा – “गन्दगी” ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है एक विचारणीय लघुकथा  “गंदगी।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 130 ☆

☆ लघुकथा – “गंदगी” ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

” गंदगी तेरे घर के सामने हैं  इसलिए तू उठाएगी।”

” नहीं! मैं क्यों उठाऊं? आज घर के सामने की सड़क पर झाड़ू लगाने का नंबर तेरा है, इसलिए तू उठाएगी।”

” मैं क्यों उठाऊं! झाड़ू लगाने का नंबर मेरा है। गंदगी उठाने का नहीं। वह तेरे घर के नजदीक है इसलिए तू उठाएगी।”

अभी दोनों आपस में तू तू-मैं मैं करके लड़ रही थी। तभी एक लड़के ने नजदीक आकर कहा,” मम्मी! वह देखो दाल-बाटी बनाने के लिए उपले बेचने वाला लड़का गंदगी लेकर जा रहा है। क्या उसी गंदगी से दाल-बाटी बनती है?”

यह सुनते ही दोनों की निगाहें साफ सड़क से होते हुए गंदगी ले जा रहे लड़के की ओर चली गई। मगर, सवाल करने वाले लड़के को कोई जवाब नहीं मिला।

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

28-11-21 

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 141 ☆ बाल गीत – धरा, गगन  है चिड़ियाघर… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 122 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 141 ☆

☆ बाल गीत – धरा, गगन  है चिड़ियाघर… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

धरा , गगन  है चिड़ियाघर।

अद्भुत जीवन नई डगर।।

 

बुलबुल करतीं रोज सवेरा।

पेड़ों पर उनका है डेरा।।

 

ठुमक – ठुमक कर गीत सुनातीं।

योग करें , मुस्काती जातीं।।

 

बत्तख़ तैर रही हैं जल में।

आशा देख रही हैं कल में।।

 

तैर – तैर कर मन हैं मोहतीं।

खुशियों की शबनम हैं बोतीं।।

 

बादल जी के ठाठ निराले।

चित्र बनाते अद्भुत माले।।

 

कभी शेर से बन जाते हैं।

पानी बर्षा उड़ जाते हैं।।

 

पल में भालू , पल में आलू।

देख – देख कर खुश है कालू।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सुजित साहित्य #142 ☆ संत जनाबाई… ☆ श्री सुजित कदम ☆

श्री सुजित कदम

? कवितेचा उत्सव ?

☆ सुजित साहित्य # 142 ☆ संत जनाबाई… ☆ श्री सुजित कदम ☆

गोदावरी तीरावर

गंगाखेड जन्मगाव

दमा करूंडाची लेक

जनाबाई तिचे नाव. . . . ! १

 

दामाशेट शिंप्याकडे

जीवनास घाली टाके

झाली नामयाची  दासी

सार्थ अभिमान दाटे. . ! २

 

ओवी आणि अभंगात

जनाबाई जाणवते

घरा घरातली बाई

पहा दळण दळते…! ३

 

वात्सल्याची जणू ओवी

त्यागी, समर्पण वृत्ती

पूर्ण निष्काम होऊनी

विठू रूजविला चित्ती. . . . ! ४

 

तत्कालीन संतश्रेष्ठ

अभंगात आलंकृत

संत जीवन आढावा

काव्य पदी सालंकृत….! ५

 

प्रासादिक संकीर्तन

कधी देवाशी भांडण

संत जनाबाई करी

सहा रिपूंचे कांडण…! ६

 

संत सकल गाथेत

ओवी अभंगाचे देणे

संत जनाबाई जणू

काव्य शारदेचे लेणे…! ७

 

जनाबाई अभंगांने

मुक्तेश्वरा मिळे स्फूर्ती

भाव भावना निर्मळ

साकारती भावमूर्ती…! ८

 

बोली भाषा ग्रामस्थांची

जनाबाई वेचतसे

विठू तुझ्या दालनात

सुख दुःख सांगतसे….! ९

 

साडे तीनशे अभंग

कृष्णजन्म थाळीपाक

प्रल्हादाच्या चरीत्राने

दिली  ईश्वराला हाक. . . . ! १०

 

हरीश्चंद्र आख्यानाचा

आहे  आगळाच ठसा

बालक्रीडा अभंगात

जना पसरते पसा. . . . ! ११

 

द्रौपदीचे स्वयंवर

अभंगाने दिली कीर्ती

मुक्तेश्वर नाथनातू

तया लाभली रे स्फूर्ती. . . . ! १२

 

नामदेव गाथेमध्ये

जनाबाई एकरूप

अभंगात  भक्तीभाव

विठ्ठलाचे निजरूप.. . ! १३

 

परमार्थ वेचियेला

संत विचारांचा ठेवा

नामदेवा केले गुरू 

केली पांडुरंग सेवा …! १४

 

आषाढाची त्रयोदशी

पंढरीत महाद्वारी

समाधीस्त झाली जना

करे अंतरात वारी…! १५

©  सुजित कदम

संपर्क – 117, विठ्ठलवाडी जकात नाका, सिंहगढ़   रोड,पुणे 30

मो. 7276282626

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेच्या उत्सव ☆ निरोप देताना… ☆ सौ. जयश्री पाटील ☆

सौ. जयश्री पाटील

? कवितेच्या उत्सव ?

☆ निरोप देताना… ☆ सौ. जयश्री पाटील ☆

वर्षा मागून सरतील वर्षे

सुखदुःखाच्या हिंदोळ्यावर

रात्री मागून येईल पहाट

नित्य जीवनाच्या रहाटावर

 

निरोप देता सरत्या वर्षाला

किंतु परंतु मनी न राहावा

करता येईल कोणासाठी

काही विचार हा मनी यावा

 

आठवणींना जपून ठेवत

विसरून सारे झाले गेले

अनुभवांच्या आधारावर

भविष्याचेच बांधू इमले

 

चाहूल नवीन वर्षाची

तयारी करू स्वागताची

क्षणभर वळून मागे आता

फळी उभारू माणुसकीची

 

शिकवून गेले सारे सारेजण

सकारात्मकता मनी ठेवून

इच्छाशक्तीची उंच भरारी

नव्या आशेचे पंख लावून

 

© सौ. जयश्री पाटील

विजयनगर.सांगली.

मो.नं.:-8275592044

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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