हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 109 – “घर में सहमी…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – “घर में सहमी।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 109 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || “घर में सहमी” || ☆

अँधियारे के

इस किबाड़ में

वे गुण सूचक-

सूत्र सभी हैं,

जो पहाड़ में-

 

रहा किये हैं

सब पेड़ों में

शहर, ग्राम

कस्बे खेड़ों में

 

सूखी-सूखी

लिये पसलियाँ

बिन पानी

भीगे अषाढ़ में

 

ताका करती

कई कनखियों

की परतों से

निकल बदलियों-

 

से गिर चमकी

तड़ित अकेली

अस्त व्यस्त सी

किस उजाड़ में

 

रूपदर्शना

सगुन-लता के

सुरमे के रंग

पगी दिशा के-

 

घर में सहमी

मौन खड़ी है

कामदेव की

कठिन आड़ में

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
image_print

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – शून्य ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

आज की साधना (नवरात्र साधना)

इस साधना के लिए मंत्र इस प्रकार होगा-

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

देवीमंत्र की कम से कम एक माला हर साधक करे। अपेक्षित है कि नवरात्रि साधना में साधक हर प्रकार के व्यसन से दूर रहे, शाकाहार एवं ब्रह्मचर्य का पालन करे।

💥 मंगल भव 💥

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – शून्य ??

शून्य अवगाहित

करती सृष्टि,

शून्य उकेरने की

टिटिहरी कृति,

शून्य के सम्मुख

हाँफती सीमाएँ,

अगाध शून्य की

अशेष गाथाएँ,

साधो…!

अथाह का

कुछ पता चला

या थाह में

फिर शून्य ही

हाथ लगा?

© संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
image_print

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लघुकथा # 156 ☆ “कुर्सी का सवाल” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी  की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – “कुर्सी का सवाल”)  

☆ लघुकथा # 156 ☆ “कुर्सी का सवाल” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

नेता जी हमसे हमेशा भाषण लिखवाते हैं फिर सुबह चार बजे उठकर भाषण को चिल्ला चिल्ला कर रटते हैं। आज के भाषण में हमने तुलसीदास जी की ये चौपाई का जिक्र कर दिया……

सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस |

राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास ||

नेताजी ने इस चौपाई को सौ बार पढ़ा पर उन्हें याद नहीं हो रही थी और न इसका मतलब समझ आ रहा था तो उन्होंने चुपके से फोन करके हमें अकेले में बुलाया और कहने लगे इस बार के भाषण में ये क्या लिख दिया है हमारे समझ में नहीं आ रहा है, इसका असली मतलब बताइये। हमने कहा कि तुलसीदास जी ने इन चार लाइनों में कहा है कि  मंत्री, वैद्य और गुरु —ये तीन यदि भय या लाभ की आशा से  प्रिय बोलते हैं तो राज्य, शरीर एवं धर्म – इन तीन का शीघ्र ही नाश हो जाता है ।

नेताजी कुछ सोचते रहे फिर बोले – नाश हो जाता है तो कोई बात नहीं, हमारी कुर्सी तो सलामत रहेगी न……..?

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print

Please share your Post !

Shares

English Literature – Poetry ☆ – Nothing to Lose – ☆ Shri Ashish Mulay ☆

Shri Ashish Mulay

?️ Poetry ?️

 ? – Nothing to Lose – ? ☆ Shri Ashish Mulay 

I am not afraid of Poverty

For Wealth has taught me

To sit Idle and do Nothing…

I am not afraid of Lacking

For even at the top of Mountain

You lack Company…

I am not afraid of Uncertainty

For I know that Destiny

cannot be Bought…

I am not afraid of Missing-out

For Everything that happens Outside

Ultimately is felt Inside only…

Don’t be afraid of “Life”

For when you die in arms of “Contentment”

You really have “Nothing to Lose”

© Shri Ashish Mulay

Sangli 

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

image_print

Please share your Post !

Shares
Poetry,
Warning: Trying to access array offset on value of type bool in /var/www/wp-content/themes/square/inc/template-tags.php on line 138

हिन्दी साहित्य – यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 1 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी विदेश यात्रा के संस्मरणों पर आधारित एक विचारणीय आलेख – ”न्यू जर्सी से डायरी…”।)

? यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 1 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ?

सुबह घूमते हुए …

अपने प्यारे पेड़ पौधों को आठ दस दिनों के लिए छोड़ कर जाना पड़े तो उनके लिए सिंचाई की व्यवस्था देखने मिली , सुबह घूमते हुए न्यूजर्सी में , जिप वाले पाली ट्री बैग्स पेड़ के तने को पहना दिए गए हैं, उनमें कोई 50 लीटर पानी भरा जा सकता है। व्यवस्था है की बूंद बूंद रिसाव जब तक पानी है अर्थात अगले लगभग 10 दिनों तक पेड़ की सिंचाई होती रहती है।

दक्षिण भारत में घूमते हुए ऐसी ही व्यवस्था देखी थी, जिसमे एक बड़े घड़े में पानी भरकर उसे पेड़ के तने के पास गाड़ दिया गया था, एक छेद करके उस में रुई भर दी गई थी।

नारियल के पेड़ के पास घड़े में नमक डाल दिया गया था, जिससे उसे समुद्र किनारे होने का अहसास हो।

खाद तथा वांछित रसायन भी इस तरह पेड़ो को धीमी गति से दिए जा सकने की प्रणाली बनाई जा सकती है।

विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 99 ☆ # कितने दूर, कितने पास… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “#कितने दूर, कितने पास…#”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 99 ☆

☆ # कितने दूर, कितने पास… # ☆ 

सुबह सुबह मार्निंग वाक में

घूमते हुए

ठंडी ठंडी शुद्ध हवा को

चूमते हुए

हमारा पुराना रिटायर्ड मित्र मिला

बातों का चल पड़ा सिलसिला

उसी समय उसके अमेरिका वाले

पुत्र का फोन काल आया

हमारा मित्र खुशी से मुस्कुराया

पुत्र ने पूछा,’ पापा ! आप और मम्मी कैसे हैं ?

दोनों की तबीयत कैसी है ?

मित्र ने कहा,’ सब बढ़िया है

आप लोग भी खुश रहो,

मुस्कुराते रहो ‘

 

कुछ देर बाद दूसरे पुत्र का फोन आया,

पापा,’ आपकी तबियत कैसी है?

शुगर नार्मल है या पहले जैसी है?

मित्र ने कहा – यार, मस्त हूँ 

अपने आप में व्यस्त हूँ

कल ही चेक कराया है,

सब नार्मल आया है

सब खा पी रहा हूँ,

मस्ती में जी रहा हूँ.

मित्र ने बताया यह एयर फोर्स में है,

हमको प्यारा मोस्ट है,

श्रीनगर में पोस्ट है

 

दोनों बेटे सुबह सुबह फोन करते हैं,

हाल चाल पूछते रहते हैं,

दोनों बड़े सुशील समझदार बच्चे हैं,

यार, मुझसे तो दोनों अच्छे हैं

मैंने कहा,’ भाई तुम भाग्यवान हो,

किस्मत वाले इन्सान हो

तुम्हे जीते जी मोक्ष मिल गया है

जीवन में ही स्वर्ग खिल गया है

वरना –

आज के युग में

बच्चे माँ-बाप को बोझ कहते हैं

बुढ़ापे में लोग क्या क्या सहते हैं

साथ में रहकर भी

माँ-बाप को कोई पूछता नहीं है

बीबी बच्चे के सिवा उनको

कुछ सूझता नहीं है

हमारे जैसे कितने साथ रहकर भी

बच्चों से कितने दूर हैं

यह बात बहुत ही खास है

कि

तुम्हारे बच्चे देश-विदेश में रहकर भी ,

तुम्हारे कितने पास है /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print

Please share your Post !

Shares

ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ २६ सप्टेंबर – संपादकीय – सौ. गौरी गाडेकर ☆ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सौ. गौरी गाडेकर

? ई -अभिव्यक्ती -संवाद ☆ २६ सप्टेंबर – संपादकीय – सौ. गौरी गाडेकर,  ई–अभिव्यक्ती (मराठी) ?

विद्याधर गोखले

विद्याधर संभाजीराव गोखले (4 जानेवारी 1924 – 26 सप्टेंबर 1996) हे पत्रकार व संगीत नाटककार होते.

प्रथम गोखले शिक्षक म्हणून काम करत होते.नंतर ते पत्रकार म्हणून ‘नवभारत’मध्ये व पुढे ‘लोकसत्ता’त गेले.त्यांनी ‘साप्ताहिक लोकसत्ते’ची  पूर्ण जबाबदारी सांभाळली. पुढे  ते ‘दैनिक लोकसत्ता’चे संपादक झाले.

अमरावतीत त्यांना ‘सावधान’ या वृत्तपत्राच्या वीर वामनराव जोशी यांचा सहवास लाभला. त्याबरोबरच गोखलेंनी न. चिं. केळकर, अच्युत बळवंत कोल्हटकर, शि. म. परांजपे यांच्या लेखनाचा खास अभ्यास केला. संपादकीय लेखनाचे धडे त्यांनी ह. रा. महाजनी यांच्या मार्गदर्शनाखाली गिरवले. त्यांनी विपुल प्रमाणात संपादकीय लेखन केले.

त्यांची शैली गांभीर्यापेक्षा रंजकतेकडे झुकणारी होती. राजकीय लेखनही ते साहित्यिक शैलीने नटवत. संस्कृत व उर्दू साहित्याचा त्यांचा चांगला अभ्यास होता. त्यातील वचने व कल्पना ते आपल्या अग्रलेखात वापरत.संपादकाने प्रक्षोभक लिहिण्यापेक्षा मुद्यांकडे,भाषेच्या व शब्दांच्या नेटक्या वापराकडे लक्ष द्यायला हवे, असे त्यांचे मत होते. त्यांचे लेखन सरळ, सुबोध असून त्यात विनोदाचा शिडकावा असे.

‘सं.जय जय गौरीशंकर’, ‘सं. पंडितराज जगन्नाथ’, ‘सं. मदनाची मंजिरी’, ‘सं. मंदारमाला’, ‘सं. सुवर्णतुला’,  ‘सं.स्वरसम्राज्ञी’  वगैरे गोखलेंनी लिहिलेली नाटके रसिक प्रेक्षकांनी डोक्यावर घेतली. त्यांनी ‘झंझावात’ ही कादंबरीही लिहिली.

गोखलेंनी रंगशारदा प्रतिष्ठानची स्थापना केली.

ते 1989-1991 या काळात उत्तर मध्य मुंबई लोकसभा मतदारसंघातून लोकसभा सदस्य म्हणून निवडून आले होते.

स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक, मुंबई या संस्थेचे ते 1995-1996 दरम्यान अध्यक्ष होते.

1993मध्ये सातारा येथे भरलेल्या मराठी साहित्य संमेलनाचे ते अध्यक्ष होते.

पुण्यात विद्याधर गोखले यांच्या नावाचे, संगीताचे व अभिनयाचे कार्यक्रम करणारे संगीत- नाट्य प्रतिष्ठान आहे.

मुंबईतील दादर येथील बाळ गोविंददास मार्ग व सेनापती बापट मार्ग हे दोन रस्ते एकमेकांना मिळून तयार झालेल्या चौकास नाटककार विद्याधर गोखले यांचे नाव दिले आहे.

मुंबई पत्रकार संघातर्फे दरवर्षी चांगल्या लेखक -पत्रकाराला विद्याधर गोखले स्मृती पुरस्कार देण्यात येतो.

विद्याधर गोखले यांच्या स्मृतिदिनानिमित्त त्यांना आदरांजली!🙏🏻

सौ. गौरी गाडेकर

ई–अभिव्यक्ती संपादक मंडळ

मराठी विभाग

संदर्भ : साहित्य साधना, कऱ्हाड शताब्दी दैनंदिनी, विकीपीडिया.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर ≈

image_print

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ नंदादीप… ☆ सुश्री अरूणा मुल्हेरकर☆

सुश्री अरूणा मुल्हेरकर

? कवितेचा उत्सव ?

☆ नंदादीप … ☆ सुश्री अरूणा मुल्हेरकर ☆ 

अंधाराचा नाश करून

दिवा देतो प्रकाश

यासाठी तो पूजनीय,वंदनीय

अंधारात कसे चालावे?

धडपडणार नाही का आपण?

सरळ रस्ता सोडून

जाऊ की हो भलत्याच मार्गावर!…

दाटला अंधार माणसाच्या मनात

दिसत नाही त्याला

काय चांगले काय वाईट.

भरकटत जातो मग

आणि पडतो की हो खड्यात…

महाराष्ट्राची परंपरा मोठी

लावले त्यांनी ज्ञानदीप

माणसाला प्रकाश देण्यासाठी

पंत संत तंत

वाटा उजळविल्या त्यांनी

सुश्लोक वामनाचा

ओवी ज्ञानेशाची

अभंग तुकयाचा

आर्या मयूरपंताची

हीच पणती मिणमिणती,

हीच समई नि हाच लामणदिवा…

ज्ञानेशांचा ज्ञानदिवा

अखंड तेवत आहे

सामान्यांना परमात्म्याचे

ज्ञान वाटत आहे.

असीम त्यांचे शब्दभांडार

जीवनातील द्दृष्टांत देऊन

आत्मज्ञानाचा प्रकाश टाकत आहे

मनावरची मळभे दूर सारत आहे…

तुकाराम,नामदेव,जनाबाई

संत प्रत्येक जातीतले

संसाराच्या दरेक वस्तूत

दिसला त्यांना साक्षात परमेश्वर

वाट दाखविली भक्तीची

महिमा वर्णिला समर्पणाचा

अंधःकार दूर झाला

माणसाच्या मनातला…

संसार करता करता

ठेचकाळला माणूस अंधारात

विसरला त्याचा धर्म,त्याची कर्तव्ये

दासांनी दिला बोध प्रापंचिकाला

दिवटी धरून हातात सन्मार्ग दाखविला…

सुभाषितांनी केले ज्ञानाचे वाटप

शिकविला भल्या बुर्‍यातला फरक

कोणा वंदावे कोणा निंदावे

जाणिले सज्जन आणि दुर्जनांना

सतत तेवत आहे हा नंदादीप…

आभार ह्या दीपाचे कसे मानावे?

त्याने दाखविलेल्या वाटेने चालावे

हीच त्याची पूजा हीच कृतज्ञता…

©  सुश्री अरूणा मुल्हेरकर

डेट्राॅईट (मिशिगन) यू.एस्.ए.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ.गौरी गाडेकर≈

image_print

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ हे शब्द अंतरीचे # 99 ☆ तूच आहे मनोहरा… ☆ महंत कवी राज शास्त्री ☆

महंत कवी राज शास्त्री

 

?  हे शब्द अंतरीचे # 99 ? 

☆ तूच आहे मनोहरा… ☆

कृष्णा केशवा माधवा,

आलो शरण मी तुला

नको अंत पाहू माझा

घोर लागला जीवाला…०१

तूच आहे मनोहरा

माझा सदैव कैवारी

नको मला काही दुजे

बहू त्रासलो संसारी…०२

किती जन्म वाया गेले

माझे मला न कळले

गणित अवघड पहा

नाही कोडे, कधीच सुटले…०३

चालू जन्म माझा कृष्णा

तुझ्याचं लेखी लागावा

राज जीवनाचे कठीण

धाव मोहना, समयाला…०४

© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन, वर्धा रोड नागपूर – 440005

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ.गौरी गाडेकर≈

image_print

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – विविधा ☆ विचार – पुष्प – भाग ३६ – परिव्राजक १४ – मध्यभारत ☆ डाॅ.नयना कासखेडीकर ☆

डाॅ.नयना कासखेडीकर

?  विविधा ?

☆ विचार – पुष्प – भाग ३६ – परिव्राजक १४ – मध्यभारत ☆ डाॅ.नयना कासखेडीकर 

स्वामी विवेकानंद यांच्या जीवनातील घटना-घडामोडींचा आणि प्रसंगांचा आढावा घेणारी मालिका विचार–पुष्प.

जुनागडहून स्वामीजी पालिताणा, नडियाद, बडोदा इथे फिरले. जुनागडच्या दिवाण साहेबांनी बडोद्याला जाताना ज्यांच्या नावे परिचय पत्र दिलं होतं ते बहादुर मणीभाई यांनी बडोद्याला स्वामीजींची व्यवस्था केली होती. तिथून स्वामीजी लिमडीच्या ठाकूर साहेबांखातर महाबळेश्वरला गेले. ठाकुर साहेबांनी स्वामीजींकडून दीक्षा घेतली होती. तिथे ते एक दीड महिना राहिले. त्या काळात महाबळेश्वर हे एक श्रीमंत व्यापारी आणि धनवंत संस्थानिक यांचं, दिवस आरामात घालवण्याचं एक ठिकाण मानलं जात होतं. इथला मुक्काम आणि ठाकूर यांची भेट आटोपून, ते पुण्याहून ते खांडवा इथं गेले आणि तिथले वकील हरीदास चटर्जी यांच्याकडे उतरले. दोन दिवसातच त्यांना स्वामीजी एक केवळ सामान्य बंगाली साधू नसून, ते असाधारण असं श्रेष्ठ व्यक्तिमत्व आहे हे कळलं. तिथे अनेक बंगाली लोक राहत होते, त्यांचीही स्वामीजींची ओळख झाली. काही वकील, न्यायाधीश, संस्कृतचे अभ्यासक असे लोक भेटल्यानंतर स्वामीजींचे उपनिषदातील वचनांवर भाष्य, संगीतावरील प्रभुत्व, आणि एकूणच त्यांचे प्रभावी व्यक्तिमत्व यामुळे हे लोक भारावून गेले होते.(खांडवा म्हटलं की आठवण झाली ती अशोक कुमार, अनुप कुमार आणि किशोर कुमार गांगुली यांची, हे सिनेसृष्टीतले गाजलेले कलावंत सुद्धा या खांडव्याचेच राहणारे.)

खांडव्याहून स्वामीजींनी इन्दौर, उज्जैन, महेश्वर, ओंकारेश्वर या ठिकाणी भेटी दिल्या. भारतातल्या  बारा ज्योतिर्लिंगापैकी एक शिवाचे स्थान असलेले उज्जैन शहर, महाकवी कालीदासांचे उज्जैन, दानशूर आणि कर्तृत्ववान असलेल्या अहिल्यादेवी होळकर यांचे  इन्दौर आणि महेश्वर, अशी पवित्र आणि प्रसिद्ध ठिकाणं पाह्यला मिळाल्याने स्वामीजींना खूप आनंद झाला. ही ठिकाणं फिरताना स्वामीजींना खेडोपाड्यातली गरीबी दिसली. पण त्या माणसांच्या मनाची सात्विकता आणि स्वभावातला गोडवा पण दिसला. हीच आपली खरी संस्कृती आहे हे पुन्हा एकदा सिद्ध झालं. याच्याच बळावर आपल्या देशाचं पुनरुत्थान घडवून आणता येईल असा विश्वास त्यांना वाटला होता. कारण त्यांना भारतातील सामान्य जनतेचं प्रत्यक्ष दर्शन झालं होतं.

या भागात त्यांनी जे पाहिलं आणि त्यांना जाणवलं ते वर्णन आपल्या दिवाण साहेबांच्या प्रवास वार्तापत्रात ते करतात. ते म्हणतात, “एक गोष्ट मला अतिशय खेदकारक वाटली ती म्हणजे, या भागातील सामान्य माणसांना संस्कृत वा अन्य कशाचेही ज्ञान नाही. काही आंधळ्या श्रद्धा आणि रूढी यांचे गाठोडे हाच काय तो सारा यांचा धर्म आहे आणि त्यातील सर्व कल्पना, काय खावे, काय प्यावे, किंवा स्नान कसे करावे एव्हढ्या मर्यादेत सामावल्या आहेत. धर्माच्या नावाखाली काहीही सांगत राहणारे आणि वेदातील खर्‍या तत्वांचा गंध नसलेले स्वार्थी व आप्पलपोटे लोक समाजाच्या अवनतीला जबाबदार आहेत”.

हा प्रवास संपवून स्वामीजी पुन्हा खांडव्याला हरीदास चटर्जी यांच्याकडे आले. हरीदास पण स्वामीजींच्या व्यक्तिमत्वावर भारावून गेले होते. त्यातच शिकागो इथं जागतिक सर्वधर्म परिषद भरणार आहे ही बातमी त्यांना समजली होती. हरीदास बाबू स्वामीजींना म्हणाले, आपण शिकागोला जाऊन हिंदू धर्माचे प्रतिनिधित्व करावे. हा विषय स्वामीजींच्या समोर याआधी पण मांडला गेला होता. धर्मपरिषद म्हणजे, विचार मांडण्यासाठी योग्य व्यासपीठ. पण स्वामीजी म्हणाले, प्रवास खर्चाची व्यवस्था होईल तर मी जाईन. धर्म परिषदेला जायला तयार असल्याची इच्छा स्वामीजींनी पहिल्यांदाच व्यक्त केली होती.

हरीदास बाबूंचे भाऊ मुंबईत राहत होते. हरीदास बाबूंनी स्वामीजींना परिचय पत्र दिलं आणि सांगितलं की, माझे बंधू तुमची मुंबईत, बॅरिस्टर शेठ रामदास छबिलदास यांची ओळख करून देतील. त्यांची यासाठी काही मदत होऊ शकते. मध्यप्रदेशातली भ्रमंती संपवून स्वामीजी मुंबईला आले. हरीदास बाबूंच्या भावाने ठरल्याप्रमाणे स्वामीजींचा छबिलदास यांच्याशी परिचय करून दिला. छबिलदास यांनी तर स्वामीजींना आपल्या घरीच आस्थेने ठेऊन घेतले. छबिलदास आर्यसमाजी होते. स्वामीजी जवळ जवळ दोन महीने मुंबईत होते. छबिलदासांकडे स्वामीजींना काही संस्कृत ग्रंथ वाचायला मिळाले त्यामुळे ते खुश होते. छबिलदास एकदा स्वामीजींना म्हणाले, “अवतार कल्पना आणि ईश्वराचे साकार रूप यांना वेदांतात काहीही आधार नाही. तुम्ही तो काढून दाखवा मी आर्य समाज सोडून देईन”. आश्चर्य म्हणजे स्वामीजींनी त्यांना ते पटवून दिलं आणि छबिलदास यांनी आर्यसमाज खरंच सोडला. यामुळे त्यांच्या मनात स्वामीजींबद्दल खूप आदर निर्माण झाला हे ओघाने आलेच.

आता स्वामीजी मुंबईहून पुण्याला जायला निघणार होते. छबिलदास त्यांना सोडायला स्टेशनवर आले होते. रेल्वेच्या ज्या डब्यात स्वामीजी चढले त्याच डब्यात योगायोगाने बाळ गंगाधर टिळक चढले होते. ते छबिलदास यांच्या जवळचे परिचयाचे असल्याने त्यांनी स्वामीजींचा परिचय करून दिला आणि यांची व्यवस्था आपल्या घरी करावी असे टिळकांना सांगीतले. बाळ गंगाधर टिळक नुकतेच राजकीय क्षेत्रात सक्रिय झाले होते. तर स्वामीजींना राजकारणाशी काहीही कर्तव्य नव्हते पण, हिंदूधर्माविषयी प्रेम, संस्कृत धर्म ग्रंथांचा अभ्यास, भारतीय संस्कृतीचा जाज्वल्य अभिमान, अद्वैतवेदांताचा पुरस्कार या गोष्टी दोघांमध्ये समान होत्या. तसच भगवद्गीते विषयी प्रेम हा एक समान धागा होता. देशप्रेमाचे दोघांचे मार्ग फक्त वेगळे होते. दोघांचा रेल्वेच्या एकाच डब्यातून मुंबई–पुणे प्रवास सुरू झाला.

 © डॉ.नयना कासखेडीकर

क्रमशः…

© डॉ.नयना कासखेडीकर 

 vichar-vishva.blogspot.com

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

image_print

Please share your Post !

Shares