श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण रचना – उन्हें  तसव्वुर हो ना हो मगर आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 212 ☆

☆ गीत – उन्हें  तसव्वुर  हो  ना हो  मगर… ☆ श्री संतोष नेमा ☆

गीत प्यार  के हम  गाने लगे  हैं

देखो हम अब  मुस्कुराने लगे हैं

*

दिल में डेरा है अब हसरतों  का

ख्वाब कई  हम सजाने  लगे  हैं

*

पंख लग गये अरमानों के बहुत

कबूतर  प्रेम  के  उड़ाने  लगे हैँ

*

उन्हें  तसव्वुर  हो  ना हो  मगर

याद हमें वो हरदम आने लगे हैँ

*

दास्तां इश्क़ की इस कद्र फैली

लोग चुपके से बतियाने लगे हैँ

*

जिनको सहूर नहीं आशिक़ी का

पाठ इश्क़ का वही पढ़ाने लगे हैँ

*

इश्क़ जब सच्चा होता है संतोष

वहाँ आशियाने जगमगाने लगे हैँ

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 7000361983, 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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