प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ गीत – श्रमिकों की वंदना  ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

श्रमिकों का नित ही है वंदन,जिनसे उजियारा है।

श्रम करने वालों से देखो,पर्वत भी हारा है।।

*

खींच रहे हैं भारी बोझा,पर बिल्कुल ना हारे।

ठिलिया,रिक्शा जिनकी रोज़ी,वे ही नित्य सहारे।।

मेहनत की खाते हैं हरदम,धनिकों पर धिक्कारा है।

श्रम करने वालों से देखो,पर्वत भी हारा है।।

*

खेत और खलिहानों में जो,राष्ट्रप्रगति के वाहक ।

अन्न उगाते,स्वेद बहाते,जो सचमुच फलदायक ।।

श्रम के आगे सभी पराजित,श्रम का जयकारा है।

श्रम करने वालों से देखो,पर्वत भी हारा है।।

*

सड़कों,पाँतों,जलयानों को,जिन ने नित्य सँवारा।

यंत्रों के आधार बने जो,हर बाधा को मारा।।

संघर्षों की आँधी खेले,साहस जिन पर वारा है।

श्रम करने वालों से देखो,पर्वत भी हारा है।।

*

ऊँचे भवनों की नींवें जो,उत्पादन जिनसे है।

हर गाड़ी,मोबाइल में जो,अभिवादन जिनसे है।।

स्वेद बहा,लाता खुशहाली, श्रमसीकर प्यारा है।

श्रम करने वालों से देखो,पर्वत भी हारा है।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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