मराठी साहित्य – वाचताना वेचलेले ☆ डब्यातला श्रीकृष्ण – एक सुंदर दृष्टान्त — लेखक – मनोहर कानिटकर ☆ प्रस्तुती – सौ. गौरी गाडेकर ☆

सौ. गौरी गाडेकर

📖 वाचताना वेचलेले 📖

☆ डब्यातला श्रीकृष्ण – एक सुंदर दृष्टान्त — लेखक – मनोहर कानिटकर ☆ प्रस्तुती – सौ. गौरी गाडेकर 

एक संन्यासी फिरत फिरत एका दुकानावरून जात होता.त्याचे सहज लक्ष गेले.त्या दुकानात बरेच लहान मोठे डबे,बरण्या होत्या.त्या संन्याशाच्या मनात सहज एक विचार आला आणि त्याने त्या दुकानदाराला एक डबा दाखवून विचारले,” यात काय आहे?” दुकानदार म्हणाला – “त्यात मीठ आहे.” संन्यासी बुवांनी आणखी एक डब्याकडे बोट दाखवून विचारले- “यात काय आहे?” दुकानदार म्हणाला- “यात साखर आहे.” असे करत करत बुवांनी शेवटच्या डब्याकडे बोट करून विचारले-“आणि यात काय आहे?” दुकानदार म्हणाला, ” यात श्रीकृष्ण आहे.”  संन्यासी अचंबित झाला आणि म्हणाला, “अरे, या नावाची कोणती वस्तू आहे?मी तर कधी ऐकली नाही. हे तर देवाचे नाव आहे.” दुकानदार संशयी बुवांच्या अज्ञानाला हसून म्हणाला,”महाराज तो रिकामा डबा आहे. पण आम्ही व्यापारी रिकाम्या डब्याला रिकामा नाही म्हणत. त्यात श्रीकृष्ण आहे असे म्हणतो.”

बुवांचे डोळे खाडकन उघडले आणि त्यांच्या डोळ्यात पाणी दाटून आले.ते ईश्वराला म्हणाले “अरे कोणत्या कोणत्या रूपाने तू ज्ञान देतोस.ज्या गोष्टीसाठी मी एवढा भटकलो, घरदार सोडून संन्यासी झालो, ती गोष्ट एक दुकानदाराच्या तोंडून मला ऐकवलीस.परमेश्वरा मी तुझा शतशः आभारी आहे”. असे म्हणून त्याने त्या दुकानदाराला साष्टांग नमस्कार केला.

जे मन-बुद्धी- हृदय काम, क्रोध, लोभ, मोह,मद,मत्सर, अहंकार,ईर्षा,द्वेष, चांगले-वाईट आणि सुख-दुःख अशा लौकिक गोष्टींनी भरले आहे, तिथे श्रीकृष्ण म्हणजेच भगवंत कसा राहील? जे रिकामे आहे म्हणजेच एकदम स्वच्छ आहे, अशाच ठिकाणी म्हणजे अशाच मन,बुद्धी व हृदयात परमेश्वर वास करतो.

लोकांना दाखवायला गीता व ज्ञानेश्वरी वाचली किंवा एकादशीला आळंदी-पंढरपूरची वारी केली, तरी मन-बुद्धी-हृदय जोपर्यंत रिकामे होत नाही, म्हणजे स्वच्छ होत नाही, तोपर्यंत परमेश्वर तिथे वास करणार नाही.

लेखक : श्री मनोहर कानिटकर 

संग्राहिका : सौ. गौरी गाडेकर

संपर्क – 1/602, कैरव, जी. ई. लिंक्स, राम मंदिर रोड, गोरेगाव (पश्चिम), मुंबई 400104.

फोन नं. 9820206306

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार # 210 ☆ कहानी – दावत — ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार ☆

डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय कहानी ‘दावत—‘। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 210 ☆
☆ कहानी – दावत- 

नन्दू के कमरे में कुछ दिनों से रौनक है। लोगों का आना-जाना बना रहता है। बाहर बोर्ड लटक रहा है— ‘जयकुमार फैंस क्लब’। जयकुमार मशहूर क्रिकेट खिलाड़ी है और नन्दू स्थानीय जयकुमार फैंस क्लब का अध्यक्ष है। एक तरह से वह क्लब का आजीवन अध्यक्ष है क्योंकि क्लब का सूत्रधार वही है। जयकुमार के लिए उसकी दीवानगी इंतहा से परे है। टीवी पर जयकुमार के दर्शन से ही वह धन्य हो जाता है।

कमरे में घुसते ही सब तरफ जयकुमार की बहार दिखती है। सब तरफ विभिन्न मुद्राओं में जय कुमार के फोटो हैं। चार फोटो नन्दू के साथ हैं जिनमें नन्दू गद्गद दिखायी पड़ता है। जयकुमार का एक लंबा-चौड़ा पोस्टर ठीक नन्दू की कुर्सी के पीछे है। दफ्तर में घुसने पर सबसे पहले नन्दू पोस्टर को प्रणाम करता है, फिर अगरबत्ती जलाकर उसके चारों तरफ घुमाता है। इसके बाद ही दफ्तर का कामकाज शुरू होता है। उसके क्लब में पन्द्रह बीस सदस्य हैं जो उसी की तरह क्रिकेट के दीवाने हैं। जयकुमार का मैच देश में कहीं भी हो, नन्दू दो चार दोस्तों के साथ ज़रूर देखने पहुँचता है। जयकुमार के क्रिकेट के सारे रिकॉर्ड उसकी ज़बान पर हैं। पूछने पर कंप्यूटर की तरह फटाफट आँकड़े फेंकता है।

जयकुमार फैंस क्लब हर साल धूमधाम से अपने हीरो का जन्मदिन मनाता है। कोई और जगह नहीं मिलती तो नन्दू के मकान की छत पर ही इन्तज़ाम हो जाता है। गाने-बजाने के अलावा पास की झोपड़पट्टी के पचीस-तीस लड़कों को भोजन कराया जाता है। नन्दू सदस्यों के अलावा आसपास के लोगों से कुछ चन्दा बटोर लेता है। शहर में क्रिकेट-प्रेमियों की संख्या अच्छी ख़ासी है, उनसे भी सहयोग मिल जाता है।

अभी आठ दिन बाद जयकुमार का जन्मदिन है, इसलिए दफ्तर में चहल-पहल है। नन्दू बेहद व्यस्त है। कार्यक्रम बनाने के अलावा दावत में बुलाये जाने वाले लड़कों को सूचित करना है। अखबारों में इस आयोजन की सूचना देनी है। आयोजन के बाद फिर फोटो और रिपोर्ट छपवानी होगी, जिसकी एक कॉपी जयकुमार को भेजी जाएगी। यह सब ठीक से निपटाने के लिए अखबारों के रिपोर्टरों को बुलाना होगा।

नन्दू के लिए झोपड़पट्टी के लड़कों को बुलाना मुश्किल काम है। एक बुलाओ तो दस लपकते हैं। इसलिए उसने झोपड़पट्टी में अपना ठेकेदार नियुक्त कर दिया है जो पलक झपकते लड़कों का इन्तज़ाम कर देता है और कोई हल्ला- गुल्ला या बदइंतज़ामी नहीं हो पाती।

ठेकेदार दम्मू है। अभी लड़का ही है। आठवीं तक किसी तरह स्कूल में सिर मारने के बाद घर में बैठ गया है। लेकिन है चन्ट, इसलिए लोगों के संकट-निवारण के पचासों काम हाथ में लिये रहता है। आदमी अक्लमंद हो तो काम और दाम की कमी नहीं रहती। चुनाव के वक्त दम्मू की व्यस्तता बढ़ जाती है। हर चुनाव में वह अच्छी कमाई कर लेता है।

दम्मू के पास झोपड़पट्टी के लड़कों की लिस्ट है जो उसके बुलाने पर हाज़िर हो जाते हैं, चाहे वह कहीं ड्यूटी करने का काम हो या भोजन करने का। जयकुमार के जन्मदिन की खबर फैलते ही लड़के दम्मू के आसपास मंडराने लगे हैं और दम्मू का रुतबा बढ़ गया है। वह अपनी छोटी सी नोटबुक में लड़कों के नाम जोड़ता-काटता रहता है। अक्सर किसी लड़के को सुनने को मिलता है— ‘अपनी शकल देखी है आइने में? कितने दिन से नहीं नहाया? वहाँ सबके सामने मेरी नाक कटवायेगा? बालों और कपड़ों की हालत देखो। कल बाल कटवा कर और ढंग के कपड़े पहन कर आना, तब सोचूँगा।’ लड़का शर्मिन्दा होकर खिसक लेता है। चौबीस घंटे बाद कपड़े-लत्ते ठीक कर फिर इंटरव्यू के लिए हाज़िर हो जाता है।

झोपड़पट्टी में सुरिन्दर भी रहता है। बारहवीं का छात्र है। पढ़ाई-लिखाई में अच्छा है। दम्मू उस पर मेहरबान रहता है। कहीं भोजन- पानी का जुगाड़ हो तो लिस्ट में सुरिन्दर को ज़रूर शामिल कर लेता है। सुरिन्दर को भी मज़ा आता है। घर में जो भोजन नसीब नहीं हो पाता वह बाहर मिल जाता है।

सुरिन्दर के पिता प्राइवेट फैक्टरी में मुलाज़िम हैं। तनख्वाह इतनी कि किसी तरह गुज़र-बसर हो जाती है। बाज़ार की चमकती हुई चीजों को बच्चों तक पहुँचाना उनके लिए कठिन है। हीनता और असमर्थता की भावना हमेशा जकड़े रहती है। उन्हें पसन्द नहीं कि उनका बेटा खाने-पीने के लिए इधर-उधर जाए, लेकिन सुरिन्दर उन्हें निरुत्तर कर देता है। कहता है, ‘पापा, इसमें हर्ज क्या है? सब तरह की चीजें खाने को मिल जाती हैं—पिज़्ज़ा, बर्गर,चाइनीज़ और चाहे जितनी आइसक्रीम। नो लिमिट। घर में तो ज्यादा से ज्यादा पराठा-सब्जी। खाते खाते बोर हो जाते हैं।’

पिता को जवाब नहीं सूझता। बाज़ार में भोजन की चीज़ों की विविधता बढ़ने के साथ निर्बल पिताओं की मुसीबत भी बढ़ रही है। घर का सामान्य भोजन अखाद्य हो गया है।

जन्मदिन की शाम दम्मू लड़कों की लिस्ट के साथ नन्दू के घर पर डट गया। कहीं कोई अवांछित लड़का शामिल न हो जाए। लड़कों का नाम बुलाकर नोटबुक में टिक लगाया जाता है। एक तरफ उन लड़कों का छोटा सा झुंड है जो दम्मू की लिस्ट में नहीं हैं। उनकी आँखों में उम्मीद है कि शायद लिस्ट का कोई लड़का हाज़िर न हो और उनकी किस्मत खुल जाए।

नन्दू का घर रंग-बिरंगे बल्बों से सजा है। कार्यक्रम ऊपर छत पर है। क्रिकेट के एक पुराने खिलाड़ी मुख्य अतिथि हैं। मुहल्ले के तीन चार गणमान्य लोग भी हैं। बाकी क्लब के सदस्य हैं।

कार्यक्रम शुरू होता है तो जन्मदिन का केक कटता है। सामने जयकुमार का फोटो है। ‘हैपी बर्थडे टु यू’ गाया जाता है। एक लोकल आर्केस्ट्रा भी बुलाया गया है।

क्लब के सचिव के प्रतिवेतन के बाद मुख्य अतिथि का भाषण हुआ। मुख्य अतिथि क्रिकेट के अपने दिनों की यादों में खो गये। भाषण लंबा खिंचा तो भोजन करने आये लड़के कसमसाने लगे। मुख्य अतिथि के भाषण के बाद अन्य अतिथियों के द्वारा क्लब को आशीर्वाद और शुभकामना देने का सिलसिला चला। फिर क्लब के अध्यक्ष के द्वारा कृतज्ञता-ज्ञापन। इसके बाद आर्केस्ट्रा शुरू हो गया जो एक घंटे तक चला। भोजनातुर लड़कों का धीरज छूट गया। आर्केस्ट्रा की धुनें कर्कश लगने लगीं। जैसे तैसे भोजन की नौबत आयी,लेकिन भोजन सामग्री की विविधता और प्रचुरता ने सारे गिले-शिकवे दूर कर दिये।

सुरिन्दर लौटकर घर में घुसा तो पिता सामने ही बैठे थे। उसे देखकर व्यंग्य से बोले, ‘हो गया मुफ्त का भोजन? मज़ा आया?’

सुरिन्दर सोफे पर पसर कर पेट पर हाथ फेरता हुआ बोला, ‘बहुत मजा आया पापा।’ फिर थोड़ी देर आँखें मूँदे रहने के बाद बोला, ‘पापा, दरअसल अब हमारा स्टैंडर्ड ऊँचा हो गया है। पिज़्ज़ा बर्गर के सिवा कुछ अच्छा लगता ही नहीं। ऐसे ही बीच-बीच में दावतें मिलती रहें तो काम चलता रहेगा।’

पिता उसके मुँह की तरफ देखते बैठे रहे।

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ “मानुष हौं तो वही रसखानि” – भाग – 1 ☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆

डाॅ. मीना श्रीवास्तव

☆ “मानुष हौं तो वही रसखानि” – भाग – 1 ☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆

कृष्णभक्त रसखान के सवैयों का काव्यानुभव (पूर्वार्ध)

प्रिय पाठकगण

सस्नेह वंदन!

प्रसिद्ध कृष्ण भक्त रसखान ब्रज भाषा के कवि हैं! वल्लभ सम्प्रदाय को संत वल्लभाचार्य ने प्रारम्भ किया| जब से गोकुल वल्लभ संप्रदाय का केंद्र बना, ब्रजभाषा में कृष्ण पर साहित्य लिखा जाने लगा। इस प्रभाव ने ब्रज (मथुरा गोकुल वृन्दावन की) की बोली भाषा को एक प्रतिष्ठित साहित्यिक भाषा बना दिया। सूरदास और रसखान की कृष्ण भक्ति से ओत-प्रोत मधुर ब्रजभाषा भाषा में रचित काव्य अत्यंत सुंदर भावानुभूति कराता है। उनके काव्य का मुख्य विषय ‘कृष्णलीला’ है। उसकी गहराई का अनुभव करना हो तो रसखान की कविताओं को पढ़ना ही एकमात्र उपाय है। इस लेख में, मैंने उनके प्रेम और भक्ति से परिपूर्ण कुछ ‘सवैये’ नामक प्रसिद्ध काव्य प्रकार का अंतर्भाव करते हुए उनका रसग्रहण करने का प्रयत्न किया है|

सैयद इब्राहिम खान उर्फ रसखान का जन्म काबुल (१५७८) में हुआ था और उनकी मृत्यु वृन्दावन (१६२८) में हुई थी। रसखान प्रसिद्ध भारतीय सूफ़ी कवि और कृष्ण के बहुत बड़े भक्त थे! कवि ने स्वयं कहा है कि वे बादशाही जाति के थे| उससे यह माना जाता है कि उनका बचपन अच्छी स्थिति में रहा होगा। भागवत का फ़ारसी अनुवाद पढ़कर उनके हृदय में भगवान कृष्ण के प्रति भक्ति जाग उठी। इस संबंध में कई किंवदंतियाँ प्रसिद्ध हैं। अंततः तात्पर्य यह है कि, वे कई प्रसंगों के कारण कृष्ण भक्ति की ओर आकर्षित हुए थे। वल्लभाचार्य के पुत्र विट्ठलनाथ द्वारा कृष्ण भक्ति की दीक्षा प्राप्त करने के उपरांत, उन्होंने मुस्लिम होने के बावजूद एक वैष्णव भक्त का जीवन व्यतीत किया।

उन्होंने १६ वीं शताब्दी में प्रेमवाटिका काव्य की रचना की और वृन्दावन में बहुत प्रसिद्धी पाई। बावन दोहों की इस कविता में प्रेम के महत्व का वर्णन किया गया है। मात्र १२९ स्फुट पदों के इस संग्रह के नायक हैं ‘सुजान रसखान’ के प्रिय अपनी बाँसुरी से गोपियों को लुभाते श्रीकृष्ण! इनमें ‘कवित्तसवैया’ बहुत लोकप्रिय हैं। इस संदर्भ में ‘सुनाओ कोई रसखान’ अर्थात ‘कविता सुनाओ’ वाक्यांश का प्रयोग बहुत ही प्रचलित था। ऐसा देखा गया है कि ब्रजभाषा में काव्य रचना करने वाला यह कवि भागवत तथा अन्य संस्कृत ग्रंथों से भली-भांति परिचित था। रसखान ने अपने काव्य में इन पौराणिक सन्दर्भों का उल्लेख किया है। उनकी कविता में अरबी, फ़ारसी और अपभ्रंश भाषाओं के शब्द भी प्रचुर मात्रा में देखे गये हैं। उनकी भाषा सरल और सीधी होते हुए भी सुरुचिपूर्ण और समृद्ध है। उन्होंने दोहा, कवित्त, घनाक्षरी और सवैया छन्द (श्लोकों) का अधिकतर प्रयोग किया। रसखान का सबसे बड़ा परिचय एक कवि के रूप में है, जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से कृष्ण के लड़कपन तथा उनकी विभिन्न लीलाओं का रोचक मानस रचा! कुछ विद्वानों के अनुसार रसखान की कविता इतनी ‘रसमय’ है कि वह उन्हें प्रसिद्ध कृष्ण भक्त कवि सूरदास की श्रेणी में लाकर खड़ा करती है|

सवैय्या

मित्रों, अब देखें कि सवैये का मतलब क्या है? सवैय्या एक छंद (वृत्त) है।चार पंक्तियों (प्रत्येक पंक्ति में २२-२६ शब्द) के संग्रह को पारंपरिक रूप से हिंदी में ‘सवैया’ कहा जाता है। रसखान के सवैये बहुत प्रसिद्ध हैं| निम्नलिखित कविता ‘मानुष हो तो वहीं रसखानि’ उनकी कृष्णभक्ति का सुंदर उदाहरण है। कवि अनेक प्रकार से कहता है कि मुझे कृष्ण के अतिरिक्त और कुछ नहीं चाहिए। कृष्णलीला ही उनकी समग्र कविताओं की आत्मा है। ‘आठ सिद्धियों और नौ निधियों का वैभव भी मैं कृष्ण की लाठी और कम्बल पर न्योछावर कर दूँ’ इन अलौकिक शब्दों में उन्होंने अपनी भक्ति व्यक्त की है| आइए अब इस प्रसिद्ध कविता का आनंद लेते हैं| उनमें से केवल कुछ एक सवैयों के अर्थ जानने का यत्न करें, क्योंकि कविता रसमय तो है, लेकिन साथ ही काफी लंबी भी है। मैंने इस रसग्रहण को करते हुए कवि की कृष्ण भक्ति को वैसी की वैसी प्रस्तुत करने का भरसक प्रयास किया है|

‘मानुष हौं तो वही रसखानि’

मानुष हौं तो वही रसखानि, बसौं मिलि गोकुल गाँव के ग्वारन।

जो पसु हौं तो कहा बस मेरो, चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥

पाहन हौं तो वही गिरि को, जो धर्यो कर छत्र पुरंदर धारन।

जो खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदीकूल कदम्ब की डारन॥

रसखान को ब्रजभूमि से इतना लगाव है कि वे वहां कृष्ण से जुड़ी हर चीज से जुड़ना चाहते हैं। कवि अपनी इच्छा व्यक्त करते हुए कहता है, ‘हे भगवान, यदि तुम मनुष्य का जन्म देना चाहते हो तो गोकुल के किसी चरवाहे या ग्वाले का जनम देना| पशु योनि में जन्म देना चाहते हो तो गोकुल के नन्द बाबा के घर में पल बढ़ रही गाय या बछड़े के रूप में जन्म देना| नन्द बाबा के घर रहूँगा तो, गारंटी है कि कान्हा मुझे हर दिन वन में ले जाएंगे! हां, अगर पत्थर ही बनाना चाहते हो तो, जो कृष्ण ने जो गोवर्धन पर्वत उठाया था, बस उसी पर मुझे पडे रहने देना। उस गिरिधर ने एक बार उस पवित्र पर्वत के छत्र को अपनी करांगुली (छोटी उंगली) पर धारण कर के इंद्रदेव के प्रकोप से गोकुल के लोगों के प्राण बचाये थे! अरे पक्षी का भी जन्म दो तो कोई दिक्कत नहीं, लेकिन ऐसी व्यवस्था करो हे भगवन कि, मैं जन्म लूं ब्रज की धरती पर और घोंसला बनाऊं कालिंदी के किनारे कदम्ब के पेड़ की शाखा पर। ओह, एक समय की बात है, राधा और गोपाल कृष्ण इस कदम्ब के पेड़ की शाखाओं पर झूल रहे होंगे! यदि नहीं, तो वह किसन कान्हा इसी कदम्ब के पेड़ पर बैठकर बांसुरी बजाकर गोपियों को रिझाता होगा! डॉ. मीना श्रीवास्तवक्या मेरा ऐसा नसीब होगा कि, मैं भी वहीं जन्म लूंगा जहाँ कृष्ण और गोपियाँ निवास करते होंगे?’

या लकुटी अरु कामरिया पर, राज तिहूँ पुर को तजि डारौं।

आठहुँ सिद्धि, नवों निधि को सुख, नंद की धेनु चराय बिसारौं॥

ए रसखानि जबै इन नैनन ते ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौ।

कोटिक हू कलधौत के धाम, करील के कुंजन ऊपर वारौं॥

उपरोक्त सवैये में ऐसा प्रतीत होता है कि कवि रसखान कृष्ण के बचपन की चीजों से अत्यधिक मोहित हुए हैं। देखें कि वे उनके लिए क्या त्याग करने को तैयार हैं! वे कहते हैं ‘इस ग्वाले की लाठी और कम्बल मुझे अति प्रिय हैं, यदि मुझे त्रिलोक का राज्य भी मिल जाए तो भी मैं इनपर उसे न्योछावर कर दूँ| यदि कोई मुझे नंद बाबा की गायों को चराने ले जाने का अवसर देता है तो, आठ सिद्धियों (अणिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्त्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व) और नौ निधियों (पद्म निधि, महापद्म निधि, नील निधि, मुकुंद निधि, नंद निधि, मकर निधि, कच्चा निधि, शंख निधि और खर्व) के सुख का मैं त्याग कर सकता हूँ| जीवनभर ब्रजभूमि के वनों, उपवनों, उद्यानों और तड़ागों को अपनी आंखों से देखूंगा और उन्हें अपनी आंखों में संजोकर रखूंगा। मैं ब्रजभूमि की कंटीले वृक्ष लताओं के लिए करोडों  स्वर्ण महल अर्पित करने को मैं खुशी खुशी तैयार हो जाऊँगा।‘

सेस गनेस महेस दिनेस, सुरेसहु जाहि निरंतर गावै।

जाहि अनादि अनंत अखण्ड, अछेद अभेद सुबेद बतावैं॥

नारद से सुक व्यास रहैं पचि हारे तऊ पुनि पार न पावैं।

ताहि अहीर की छोहरियाँ, छछिया भरि छाछ पै नाच नचावैं॥

कवि उपरोक्त पंक्तियों में कहते हैं, ‘शेष (नाग), गणेश, महेश (शिव), दिनेश (सूर्य) और सुरेश (इंद्र) लगातार उनका (कृष्ण) ध्यान करते हैं, उसका आकलन न कर पाने वाले वेद उनकी स्तुति गाते हैं, ‘वह अनादी, अनंत, अखंड, अछेद (जिसमें कोई छेद न हो) आणि अभेद हैं।’ नारद मुनि, शुक मुनि, वेद व्यास जैसे महा बुद्धिमान ऋषि जिनके नाम का लगातार जाप करते रहते है, ऐसे परात्पर परब्रह्म गोकुल के बालकृष्ण को ये ग्वालिनें (अहीर या ग्वाले की छोरियां) छछिया (छाछ रखने का मिट्टी का एक छोटा बरतन) भर छाछ दिखाकर नचाती हैं, तो कभी पायल पहनती हैं तो कभी घाघरा चोली!’ ये हैं भगवान कृष्ण, जो दुनिया को नचाते हैं! उनकी लीला तो अपरम्पार है! इन ग्वालिनों के परम भाग जो इस जगदीश्वर को अपने मन माफिक नचाती रहती हैं| उनका बाल रूप इतना मनमोहक और सर्वज्ञ है, फिर भी वे निःसंदेह अज्ञ गोपियों के लिए ऐसी लीला करते हैं।

(ऐसा कहा जाता है कि देवगण और ऋषि मुनियों ने स्त्री रूप धारण कर भगवान विष्णु से एकरूप होने के लिए गोपिकाओं के रूप धारण किये थे। लेकिन गोपिकाएँ बनने के बाद, वे अपने मूल रूप को भूल गए और भोली भाली गोपिकाओं के रूप में इस प्रकार कृष्ण की संगति का आनंद लिया! क्या सही और क्या गलत! केवल पूर्ण ब्रह्म कृष्ण ही जानें! केवल एक ही सत्य, भगवान कृष्ण, जिन्होंने दुनिया को नचाया, गोपियों के लिए नृत्य करने के लिए हमेशा तैयार रहते थे, केवल एक गोला मक्खन का और एक छछिया भर छाछ देना होता था!)

मित्रों, आज यहीं विराम देती हूँ! कल उत्तरार्ध प्रस्तुत करुँगी!

तब तक राम कृष्ण हरी!

©  डॉ. मीना श्रीवास्तव

ठाणे 

दिनांक १५ ऑगस्ट २०२3

मोबाईल क्रमांक ९९२०१६७२११, ई-मेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 210 ☆ उड़ जाएगा हंस अकेला..! श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆  संजय उवाच # 210 ☆ उड़ जाएगा हंस अकेला..! ?

आनंदलोक में विचरण कर रहा हूँ। पंडित कुमार गंधर्व का सारस्वत कंठ हो और दार्शनिक संत कबीर का शारदीय दर्शन तो इहलोक, आनंदलोक में परिवर्तित हो जाता है। बाबा कबीर के शब्द चैतन्य बनकर पंडित जी के स्वर में प्रवाहित हो रहे हैं,

उड़ जाएगा हंस अकेला

जग दर्शन का मेला…!

आनंद, चिंतन को पुकारता है। चिंतन की अंगुली पकड़कर विचार हौले-हौले चलने लगता है। यह यात्रा कहती है कि ‘मेल’ शब्द से बना है ‘मेला।’ मिलाप का साकार रूप है मेला। दर्शन जगत को मेला कहता है क्योंकि मेले में व्यक्ति थोड़े समय के लिए साथ आता है, मिलाप का आनंद ग्रहण करता है, फिर लौट जाता है अपने निवास। लौटना ही पड़ता है क्योंकि मेला किसीका निवास नहीं हो सकता। गंतव्य के अलावा कोई विकल्प नहीं।

विचार अब चलना सीख चुका। उसका यौवनकाल है। उसकी गति अमाप है। पलक झपकते जिज्ञासा के द्वार पर आ पहुँचा है।  जिज्ञासा पूछती है कि महात्मा कबीर ने ‘हंस’ शब्द का ही उपयोग क्यों किया? वे किसी भी पखेरू के नाम का उपयोग कर सकते थे फिर हंस ही क्यों? चिंतन, मनन समयबद्ध प्रक्रिया नहीं हैं। मनीषी अविरत चिंतन में डूबे होते हैं। समष्टि के हित का भाव ऐसा, सात्विकता ऐसी कि वे मुमुक्षा से भी ऊपर उठ जाते हैं। फलत: जो कुछ वे कहते हैं, वही विचार बन जाता है। अपने शब्दों की बुनावट से उपरोक्त रचना में द्रष्टा कबीर एक अद्वितीय विचार दे जाते हैं।

विचार कीजिएगा कि हंस सामान्य पक्षियों में नहीं है। हंस श्वेत है, शांत वृत्ति का है। वह सुंदर काया का स्वामी है। आत्मा भी ऐसी ही है, सुंदर, श्वेत, शांत, निर्विकार। हंस गहरे पानी में तैरता है तो हज़ारों फीट ऊँची उड़ान भी भरता है। आकाशमार्ग की यात्रा हो अथवा वैतरणी पार करनी हो, उड़ना और तैरना दोनों में कुशलता वांछनीय है।

हंस पवित्रता का प्रतीक है। शास्त्रों में हंस की हत्या, पिता, गुरु या देवता की हत्या के तुल्य मानी गई है।

हंस विवेकी है। लोकमान्यता है कि दूध में जल मिलाकर हंस के सामने रखा जाए तो वह दूध और जल का पृथक्करण कर लेता है। संभवत:  ‘दूध का दूध और पानी का पानी’ मुहावरा इसी संदर्भ में अस्तित्व में आया। हंस के नीर-क्षीर विवेक का भावार्थ है कि स्वार्थ, सुविधा या लाभ की दृष्टि से नहीं अपितु अपनी बुद्धि, मेधा, विचारशक्ति के माध्यम से उचित, अनुचित को समझना। मनुष्य जब भी कुछ अनुचित करना चाहता है तो उसे चेताने के लिए उसके भीतर से ही एक स्वर उठता है। यह स्वर नीर-क्षीर विवेक का है, यह स्वर हंस का है। हंस को माँ सरस्वती के वाहन के रूप में मिली मान्यता अकारण नहीं है।

कारणमीमांसा से उपजे अर्थ का कुछ और विस्तार करते हैं। दिखने में हंस और बगुला दोनों श्वेत हैं। मनुष्य योनि हंस होने की संभावना है। विडंबना है कि इस संभावना को हमने गौण कर दिया है।  हम में से अधिकांश बगुला भगत बने जीवन बिता रहे हैं। जीवन के हर क्षेत्र में बगुला भगतों की भरमार है। हंस होने की संभावना रखते हुए भी भी बगुले जैसा जीना, जीवन की शोकांतिका है।

मनुष्य को बुद्धि का वरदान मिला है। इस वरदान के चलते ही वह नीर-क्षीर विवेक का स्वामी है। विवेक होते हुए भी अपनी सुविधा के चलते ढुलमुल मत रहो। स्पष्ट रहो। सत्य-असत्य के पृथक्करण का साहस रखो। यह साहस तुम्हें अपने भीतर पनपते बगुले से मुक्ति दिलाएगा, तुम्हारा हंसत्व निखरता जाएगा। जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य जी कहते हैं कि महर्षि वेदव्यास जब महाभारत का वर्णन करते हैं तो पांडवों का उदात्त चरित्र उभरता है। इसका अर्थ यह नहीं कि वे पांडवों के प्रवक्ता हैं। सनद रहे कि महर्षि वेदव्यास सत्य के प्रवक्ता हैं।

अपनी एक कविता स्मृति में कौंध रही है,

मेरे भीतर फुफकारता है

काला एक नाग,

चोरी छिपे जिसे रोज़ दूध पिलाता हूँ,

ओढ़कर चोला राजहंस का

फिर मैं सार्वजनिक हो जाता हूँ…!

दिखावटी चोले के लिए नहीं अपितु उजला जीवन जिओ अपने भीतर के हंस के लिए। स्मरण रहे, वह समय भी आएगा जब हंस को उड़ना होगा सदा-सर्वदा के लिए। इस जन्म की अंतिम उड़ान से पहले अपने हंस होने को सिद्ध कर सको तो जन्म सफल है।

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 माधव साधना सम्पन्न हुई। आपको अगली साधना की जानकारी शीघ्र दी जाएगी। 💥 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 157 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 157 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 157) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 157 ?

☆☆☆☆☆

 ☆ Self-Review First…

 ☆

Someone said that

If you judge others

Then first

place a mirror in

front of you…

Hence, that being so…

Make a comment

on yourself first

Then waste your

time on others…

 ☆

किसी ने फरमाया कि

दूसरों पर अगर

तब्सिरा कीजिए तो 

पहले सामने आईना

रख लिए करिए

इसीलिए …

इक तब्सिरा अपने

आप पर कीजिए

फिर औरों पर वक्त

जाया किया करिए …

 ☆

Matrix of Love

Love has a different

calculations altogether,

It just happens in a moment,

but lasts for a lifetime..!

 ☆

इश्क़ का भी एक

अलग ही हिसाब है,

फलभर में हो जाता है,

उम्र भर के लिए…!

 ☆

 ☆ Untrue Dreams 

 ☆

Dreams may be false  

But at least

they make me meet

you every day…!

 ☆

ख़्वाब झूठे ही सही

मगर कम से कम 

तुमसे  मुलाक़ात  तो

रोज़ करवाते हैं…

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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English Literature – Poetry ☆ The Grey Lights# 16 – “To whom…” ☆ Shri Ashish Mulay ☆

Shri Ashish Mulay

? The Grey Lights# 16 ?

☆ – “To whom…” – ☆ Shri Ashish Mulay 

To whom shall I bow down to

a story, a man or to an animal

a picture, the stars or a carnival

for they are all fall-able

 

To whom shall I bow down to

the gold, a stone or to myself

the diamond, the light or the darkness

for they are all truly meaningless

 

To the existence I shall bow down to

the birth, the life and the death

an energy, the synergy and the destruction

for they never go, out of the construction..

© Shri Ashish Mulay

Sangli 

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 158 ⇒ सुखासन… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “सुखासन”।)

?अभी अभी # 158 ⇒ सुखासन? श्री प्रदीप शर्मा  ?

जब घरों में सोफे कुर्सियां नहीं थीं, तब आगंतुक को सबसे पहले बैठने के लिए आसन दिया जाता था। अगर बैठक हो, तो बैठने की व्यवस्था होती थी, अगर किसी गरीब के घर में तखत चारपाई अथवा टूटी फूटी कुर्सी भी ना हो, तो जमीन पर ही आसन, दरी, अथवा चटाई बिछा दी जाती थी।

किसी भी आरामदायक स्थिति को आसन कहते हैं। नंगी जमीन पर बैठना अशुभ माना जाता है। यही आसन योगासन का भी एक प्रमुख अंग है। अष्टांग योग यम, नियम और आसन प्राणायाम से ही तो शुरू होता है, लेकिन सच तो यही है कि आसन प्राणायाम को ही लोग योग समझ बैठे हैं। वैसे प्राणायाम भी अतिशयोक्ति ही है, थोड़े हाथ पांव हिला लिए, और हो गया योगा।।

तो क्यों न हम भी आज सिर्फ आसन की ही बात करें। अगर आसन में ही सुख नहीं हो, तो काहे का आसन! हमारे महर्षि पातंजल इस बात को भली भांति जानते थे, इसलिए उन्होंने आसन की परिभाषा में ही लिख दिया, स्थिरसुख आसनम् ! यानी जिस स्थिति में आप सुखपूर्वक स्थिर हो बैठे रहें, वही आसन है। शुद्ध हिंदी में इसे any comfortable posture कहते हैं। कितनी आसान परिभाषा है आसन की।

योग की भाषा में आसन को पोश्चर यानी योगासन कहा जाने लगा है। कुछ आसन तो जीव गर्भ में ही कर लेता है, और एक नवजात शिशु की हर क्रिया भी आसन ही होती है। प्रकृति उसकी गुरु होती है। बड़े होते होते वह पांव का अंगूठा भी मुंह में ले लेता है, अगर हम बड़े लोग अगर यह करने जाएं, तो सिर्फ दांतों तले उंगलियां ही दबाते रह जाएं।।

इंसान योग करे ना करे, हर व्यक्ति के कुछ प्रिय आसन होते हैं। मेरा प्रिय आसन सुखासन है। यह मैं जमीन पर बैठकर भी कर सकता हूं, और कुर्सी पर बैठकर भी। इसे हमारी देसी भाषा में पालकी मारकर बैठना कहते हैं। वैसे रीढ़ की हड्डी सीधी रखते हुए आप स्वस्तिकासन और सिद्धासन भी कर सकते हैं और अभ्यासोपरान्त पद्मासन भी लगा सकते हैं। अजी, पद्मासन को तो आसनों का राजा कहा गया है।

अगर आप अपने घुटनों पर ही बैठ गए, तो यह वज्रासन हो गया। वज्रासन में एक खूबी और है, यह आप भर पेट भोजन करने के बाद भी कर सकते हैं। लोगों ने आजकल जमीन पर बैठना ही बंद कर दिया है। जिसका जमीन पर बैठना एक बार छूट गया फिर वह खाना भी टेबल पर ही खाएगा और पाखाने के लिए भी कमोड को ही अपनाएगा।।

खैर, हम तो सुख की बात कर रहे थे। मेरा एक और प्रिय आसन शवासन है।

मरना कहां हमारे हाथ में है, लेकिन शव जैसे पड़े रहने में क्या हर्ज है। मुर्दा कहां कुछ बोलता और सोचता है, बस बिना हाथ पांव हिलाए डुलाए, पड़ा रहता है। आप भी मुर्दे के समान कुछ मत सोचो, कुछ मत बोलो, मस्त शरीर को शिथिल छोड़कर पड़े रहो।

नहीं मरा, तो मरकर देख।

सांस तो फिर भी चल रही है। अहा, कितना सुख है, कितना आनंद है, जीते जी मरने में।

और अगर इसी में नींद लग गई तो ! अरे नेकी और पूछ पूछ, अजी आप कहां इतनी जल्दी मरने वाले हो। आप तो जिंदगी की झंझटों को भूल आराम से पड़े हो। अगर आपकी आंख लग गई, तो समझो यही योगनिद्रा हो गई। विचार शून्य होना तो ध्यान की अवस्था है। लो जी, पड़े पड़े ही ध्यान भी लग गया। बस, जब तंद्रा टूटे, आप उठ बैठो। आप एक बार मर भी गए, और समझो आपका पुनर्जन्म भी हो गया।।

बस इसी तरह रोज जीते, मरते रहें। रोज रात को करवटें बदलना भूल जाएंगे। घोड़े बेचकर सोने वाली, साउंड स्लीप, जो आपकी पूरे दिन भर की थकान दूर कर देगी और आप पुनः दिन भर के लिए तरो ताजा हो जाएंगे।

कितना सुख है इन आसान आसनों में..!!

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 155 ☆ भारत का भाषा गीत… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है – भारत का भाषा गीत)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 155 ☆

☆ भारत का भाषा गीत ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

हिंद और हिंदी की जय-जयकार करें हम

भारत की माटी, हिंदी से प्यार करें हम

*

भाषा सहोदरा होती है, हर प्राणी की

अक्षर-शब्द बसी छवि, शारद कल्याणी की

नाद-ताल, रस-छंद, व्याकरण शुद्ध सरलतम

जो बोले वह लिखें-पढ़ें, विधि जगवाणी की

संस्कृत सुरवाणी अपना, गलहार करें हम

हिंद और हिंदी की, जय-जयकार करें हम

भारत की माटी, हिंदी से प्यार करें हम

*

असमी, उड़िया, कश्मीरी, डोगरी, कोंकणी,

कन्नड़, तमिल, तेलुगु, गुजराती, नेपाली,

मलयालम, मणिपुरी, मैथिली, बोडो, उर्दू

पंजाबी, बांगला, मराठी सह संथाली

​’सलिल’ पचेली, सिंधी व्यवहार करें हम

हिंद और हिंदी की, जय-जयकार करें हम

भारत की माटी, हिंदी से प्यार करें हम

*

ब्राम्ही, प्राकृत, पाली, बृज, अपभ्रंश, बघेली,

अवधी, कैथी, गढ़वाली, गोंडी, बुन्देली,

राजस्थानी, हल्बी, छत्तीसगढ़ी, मालवी,

भोजपुरी, मारिया, कोरकू, मुड़िया, नहली,

परजा, गड़वा, कोलमी से सत्कार करें हम

हिंद और हिंदी की, जय-जयकार करें हम

भारत की माटी, हिंदी से प्यार करें हम

*

शेखावाटी, डिंगल, हाड़ौती, मेवाड़ी

कन्नौजी, मागधी, खोंड, सादरी, निमाड़ी,

सरायकी, डिंगल, खासी, अंगिका, बज्जिका,

जटकी, हरयाणवी, बैंसवाड़ी, मारवाड़ी,

मीज़ो, मुंडारी, गारो मनुहार करें हम

हिन्द और हिंदी की जय-जयकार करें हम

भारत की माटी, हिंदी से प्यार करें हम

*

देवनागरी लिपि, स्वर-व्यंजन, अलंकार पढ़

शब्द-शक्तियाँ, तत्सम-तद्भव, संधि, बिंब गढ़

गीत, कहानी, लेख, समीक्षा, नाटक रचकर

समय, समाज, मूल्य मानव के नए सकें मढ़

‘सलिल’ विश्व, मानव, प्रकृति-उद्धार करें हम

हिन्द और हिंदी की जय-जयकार करें हम

भारत की माटी, हिंदी से प्यार करें हम

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२४-८-२०१६, जबलपुर

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (18 सितंबर से 24 सितंबर 2023) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (18 सितंबर से 24 सितंबर 2023) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

श्री रामचंद्र जी के सखा, सेवक तथा उनके परम मित्र श्री हनुमंत लाल को प्रणाम। साप्ताहिक राशिफल बताने के पहले मैं पंडित अनिल पाण्डेय हनुमान चालीसा की चौपाई का स्मरण करना चाहूंगा। आज की चौपाई है :-

जो सत बार पाठ कर कोई ।

छूटहि बन्दि महा सुख होई ।।

भावार्थ:- जो कोई इस हनुमान चालीसा का सत बार पाठ करेगा वह सब बंधनों से छूट जाएगा। उसे परमानन्द मिलेगा। उसे महासुख और मोक्ष की प्राप्ति होगी।

हनुमान चालीसा की इस चौपाई  के बार बार पाठ करने से होने वाला लाभ :-

ज्ञान  और मोक्ष की प्राप्ति के लिए इन चौपाइयों का बार-बार पाठ करना चाहिए।

हनुमान जी को स्मरण करने के उपरांत अब मैं  18 सितंबर से 24 सितंबर 2023 अर्थात विक्रम संवत 2080 शक संवत 1945 के भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया से भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तक के साप्ताह के साप्ताहिक राशिफल के बारे में चर्चा  प्रारंभ करता हूं।

सबसे पहले ग्रहों के गोचर के बारे में चर्चा की जाएगी।

इस सप्ताह चंद्रमा प्रारंभ में तुला राशि का रहेगा। 20 सितंबर को 6:20 प्रातः से वृश्चिक राशि में  गमन करेगा। इसके उपरांत 22 सितंबर को 12:08 दिन से धनुराशि में और 24 तारीख को 3:53 दिन से मकर राशि में प्रवेश करेगा।

इस पूरे सप्ताह सूर्य और मंगल कन्या राशि में गोचर करेंगे। बुद्ध सिंह राशि में और शुक्र कर्क राशि में रहेंगे। वक्री गुरु मेष राशि में और बक्री शनि कुंभ राशि में गोचर करेगा। पिछले महीनों के भांति राहु मेष राशि में ही रहेगा।

आइये अब हम राशिवार राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

यह सप्ताह आपके संतान के लिए उत्तम है। आपका भाग्य पहले से थोड़ा ज्यादा आपका साथ देगा। शत्रु परास्त हो सकते हैं। धन आने में कमी बरकरार रहेगी। आपका स्वास्थ्य भी थोड़ा बहुत खराब हो सकता है। माता जी को कष्ट हो सकता है। पिताजी का स्वास्थ्य भी थोड़ा नरम रहेगा। मुकदमों में लाभ मिलने की उम्मीद की जा सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 18 और 19 सितंबर किसी भी काम को करने के लिए उपयुक्त हैं। 18 और 19 सितंबर को आपको अधिकांश कामों में सफलता प्राप्त होगी। 20, 21 और 22 सितंबर के दोपहर तक का समय आपके स्वास्थ्य के लिए अनुकूल है। परंतु 20, 21 और 22 सितंबर के दोपहर तक का समय नए कार्यों को करने के लिए कम अनुकूल है। इस बात की पूरी संभावना है कि इस दौरान आप किसी एक्सीडेंट से बचें। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन विशेष रूप से शुक्रवार को मंदिर में जाकर गरीबों के बीच में चावल का दान दें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

वृष राशि

इस सप्ताह आपके खर्चों में कुछ कमी आएगी। माता जी का स्वास्थ्य ठीक होगा। आपकी संतान को लाभ प्राप्त होगा। अगर आप कर्मचारी अधिकारी हैं तो आपको अपने कार्यालय में सहयोगियों से मदद प्राप्त नहीं हो पाएगी। आपका भाग्य आपका थोड़ा बहुत साथ दे सकता है। आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। पिताजी के स्वास्थ्य में बाधा आ सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 20 और 21 तारीख ठीक-ठाक है। सप्ताह के बाकी दिनों में आपको सतर्क रहकर ही कोई कार्य करना चाहिए। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह प्रतिदिन गायत्री मंत्र की एक माला का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

मिथुन राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। धन आने की मात्रा में कमी आएगी। व्यापार ठीक चलेगा। संतान से आपको कुछ परेशानी हो सकती है। संतान का सहयोग आपको प्राप्त नहीं हो पाएगा। जनता में आपकी उपयोगिता बढ़ेगी। भाग्य आपका कम साथ देगा। इस सप्ताह आपके लिए 22 की दोपहर के बाद से 23 और 24 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त हैं। इन तिथियां में आपके अधिकांश कार्य सफल होंगे। 20-21 तारीख को आपको रोग से मुक्ति मिल सकती है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन हनुमान चालीसा का सात बार जाप करें तथा शनिवार के दिन दक्षिण मुखी हनुमान जी के मंदिर में जाकर हनुमान चालीसा का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन  रविवार है।

कर्क राशि

इस सप्ताह आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। पिताजी के स्वास्थ्य में थोड़ी परेशानी आ सकती है। माता जी का स्वास्थ्य ठीक रहने की उम्मीद है। भाग्य आपका साथ देगा। छोटी-मोटी दुर्घटना हो सकती है। धन आने की उम्मीद है। संतान से आपको लाभ प्राप्त होगा। भाइयों और बहनों से आपका संबंध सामान्य रहेगा। छात्रों की पढ़ाई उत्तम चलेगी। इस सप्ताह आपके लिए 18, और 19 तारीख उत्तम है। 22, 23 और 24 तारीख को आपको सावधान रहकर कोई कार्य करने की आवश्यकता है। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह प्रतिदिन पीपल के पेड़ के नीचे मिट्टी का दीपक जलाकर पीपल की सात बार परिक्रमा करें। सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

सिंह राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। कचहरी के कार्यों में बाधा आ सकती है। भाग्य से आपके सहयोग प्राप्त नहीं हो पाएगा। आपको अपने परिश्रम से ही फल की प्राप्ति होगी। आपके जीवनसाथी को कष्ट हो सकता है। आपके सुख में कमी आएगी। माता जी को कष्ट हो सकता है। पिताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। कार्यालय में आपके सहयोग प्राप्त होगा। भाइयों के साथ संबंध सामान्य रहेंगे। इस सप्ताह आपके लिए 20-21 और 22 तारीख उपयुक्त नहीं है। सप्ताह के बाकी दिन ठीक-ठाक हैं। इस सप्ताह आप सभी कार्य सावधानीपूर्वक ही करें। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन विष्णु सहस्त्रनाम का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कन्या राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक रहने की उम्मीद है। अगर आप ब्लड प्रेशर या डायबिटीज के मरीज है तो इसमें वृद्धि हो सकती है। कृपया इस संबंध में निरंतर सावधान रहें। पेट के अंदर की बीमारियां भी हो सकती हैं। धन आने में कमी होगी। शत्रुओं की संख्या में वृद्धि होगी। व्यापार में वृद्धि होगी। कचहरी के कार्यों में थोड़ी बहुत सफलता मिल सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 22, 23 और 24 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त हैं। 20-21 और 22 तारीख को आपको अपने भाइयों  और बहनों से अच्छा सहयोग प्राप्त होगा। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप भगवान शिव का दूध और जल से प्रतिदिन अभिषेक करें या किसी विद्वान ब्राह्मण द्वारा अभिषेक करवायें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

तुला राशि

इस सप्ताह आपके व्यापार में वृद्धि होगी। कचहरी के कार्यों में सफलता प्राप्त होगी। अगर आप कर्मचारी अधिकारी हैं तो आपको अपने साथियों से कम सहयोग प्राप्त होगा। आपको अपनी संतान से इस सप्ताह सहयोग प्राप्त नहीं हो पाएगा। जीवनसाथी के स्वास्थ्य में थोड़ी कमी रहेगी। भाई बहनों के साथ उत्तम संबंध रहेगा। अगर आप थोड़ा प्रयास करेंगे तो आप अपने दुश्मनों को समाप्त कर सकते हैं। इस सप्ताह आपके लिए 18 और 19 सितंबर उत्तम है। 18 और 19 सितंबर को आपके  अधिकांश कार्य सफल होंगे। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप  रुद्राष्टक मंत्र के साथ में भगवान शिव का दूध और जल से अभिषेक करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपकी कुंडली के गोचर में धन वृद्धि का योग बन रहा है। इस सप्ताह आपके पास   धन आने की उम्मीद की जा सकती है। यह भी कह सकते हैं कि सप्ताह आपके पास धन आएगा। अगर आप कर्मचारी अधिकारी हैं तो आपको अपने कार्यालय में अपने साथियों से अच्छा सहयोग प्राप्त होगा। आपका व्यापार उत्तम चलेगा। भाग्य के स्थान पर आपको इस सप्ताह अपने परिश्रम पर विश्वास करना चाहिए। माता जी के स्वास्थ्य में थोड़ी कमी हो सकती है। इस सप्ताह आपको 18 और 19 सितंबर को सावधान रहकर के ही कोई कार्य करना चाहिए। इस पूरे सप्ताह आपको सचेत रहना चाहिए। आपके पेट में कष्ट हो सकता है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप  ओम नमः शिवाय मंत्र की एक माला का प्रतिदिन जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

धनु राशि

अगर आप कर्मचारी अधिकारी हैं तो यह सप्ताह आपके लिए उत्तम है। आपको अपने सबसे बड़े अधिकारी का बहुत अच्छा सहयोग प्राप्त होगा। इस सप्ताह आपका भाग्य आपकी पूर्ण मदद करेगा। धन आने की भी उम्मीद है। कचहरी के कार्यों में सफलता प्राप्त होगी। संतान से आपके सहयोग प्राप्त नहीं हो पाएगा। भाई बहनों के साथ संबंधों में तनाव आ सकता है। आपका स्वास्थ्य सामान्य तौर पर ठीक रहेगा। परंतु स्त्री जातक को   समस्या आ सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 20 तारीख के दोपहर के बाद से 23 और 24 तारीख का समय लाभप्रद और फलदायक है। 20-21 और 22 को कचहरी के कार्यों में सफलता की उम्मीद है। कर्जे में थोड़ी कमी भी हो सकती है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप राम रक्षा स्त्रोत का प्रतिदिन जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

मकर राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। आपके जीवन साथी के स्वास्थ्य में थोड़ी समस्या आ सकती है। भाग्य भी इस सप्ताह आपका सामान्य रूप से साथ देगा। आपको अपने कार्यालय में लोगों से सहयोग प्राप्त होगा। व्यापार में थोड़ी बहुत बाधा आ सकती है। माता जी के स्वास्थ्य में थोड़ी खराबी हो सकती है। पिताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। इस सप्ताह आपके लिए 18 और 19 तारीख फलदायक और लाभप्रद है। 20-21 और 22 तारीख को धन आने की उम्मीद है। 22, 23 और 24 तारीख को आपको सावधान रहकर कोई कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कुंभ राशि

इस सप्ताह आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपके व्यापार में वृद्धि होगी। व्यापार से उत्तम धन  की प्राप्ति हो सकती है। भाग्य आपका साथ देगा। लंबी यात्रा का भी योग बन सकता है। खून संबंधी कोई बीमारी जैसे ब्लड प्रेशर का बढ़ना डायबिटीज आदि हो सकती है। स्त्री जातकों को बीमारी से सावधान रहने की ज्यादा आवश्यकता है। इस सप्ताह आपको 20-21 और 22 तारीख को सावधान रहकर कार्य करने की आवश्यकता है। अगर आप सावधान रहकर कार्य करेंगे तो आप सफल होंगे। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप पंचाक्षरी मंत्र का प्रतिदिन जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

मीन राशि

मीन राशि के जातकों को अपने जीवन साथी से काफी मदद मिलेगी। जीवनसाथी के स्वास्थ्य में थोड़ी गड़बड़ हो सकती है। आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। धन आने में बाधा आएगी। कचहरी के कार्यों में सफलता की उम्मीद कम है। आपको अपनी संतान से सहयोग प्राप्त नहीं होगा। दुश्मनों की संख्या में कमी होगी। इस सप्ताह आपके लिए 22 की दोपहर के बाद से 23 और 24 तारीख उत्तम है। 18 और 19 तारीख को आपको सावधान रहने की आवश्यकता है। 20-21 और 22 तारीख को भाग्य आपका कम साथ देगा। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप घर की बनी पहली रोटी गौ माता को दें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

 

मां शारदा से प्रार्थना है कि आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ निमित्त… ☆ श्री शरद कुलकर्णी ☆

श्री शरद कुलकर्णी

? कवितेचा उत्सव ?

☆ निमित्त… ☆ श्री शरद कुलकर्णी ☆

पापणी ओलीच माझी,

ओलीच ती राहू दे ना!

मेघ पावसाच्या नभाचे,

नभीच माझ्या राहू दे ना!

 

वृक्ष व्याकूळ झाले कशाने ?

सळसळती पाने कशाने ?

गुपित हेही जीवघेणे,

वार्‍यास आज सांगू दे ना!

 

हूल उठल्या पावसाची,

चाहूलही लागलीच होती.

मोर माझे जायबंदी ,

मुक्त त्यांना होऊ दे ना!

 

थांबशील तू जराशी ,

वाटले वृथा मनाशी .

थांबण्याला तू जरासे,

निमित्त पाऊस होऊ दे ना!

 

© श्री शरद  कुलकर्णी

मिरज

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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