हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ परदेश – भाग -4 ☆ श्री राकेश कुमार ☆

श्री राकेश कुमार

(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” ज प्रस्तुत है नवीन आलेख की शृंखला – “ परदेश ” की अगली कड़ी।)

☆ आलेख ☆ परदेश – भाग – 4 ☆ श्री राकेश कुमार ☆

प्रातः भ्रमण

हमारे देश में उत्तम स्वास्थ्य के लिए प्रातः काल के भ्रमण को सर्वोत्तम बताया जाता हैं। इसी मान्यता का पालन करने के लिए हम भी दशकों से प्रयास रत हैं। पूर्ण रूप से अभी तक सफलता प्राप्त नहीं हुई हैं। इसी क्रम में विदेश में कोशिश जारी हैं।

घड़ी के हिसाब से भोर की बेला में तैयार होकर जब घर से बाहर प्रस्थान किया तो देखा सूर्य देवता तो कब से अपनी रोशनी से धरती को ओतप्रोत कर चुके हैं। घड़ी को दुबारा चेक किया तो भी लगा की अलसुबह सूर्य के प्रकाश का तेज तो दोपहर जैसा प्रतीत हो रहा था। हवा ठंडी और सुहानी थी, इसलिए मेज़बान की सलाह से पतली जैकेट जिसको अंग्रेजी मे विंड चीटर का नाम दिया गया, पहनकर चल पड़े, सड़कें नापने के लिए। हमें लगा यहां के लोग तो बहुत धनवान हैं, इसलिए  देर रात्रि तक जाग कर सुबह देरी से उठते होंगे, परंतु ये तो हमारा भ्रम निकला। सड़क पर बहुत सारे युवा, वृद्ध प्रातः भ्रमण कर रहें थे। कुछ ने हमारा अभिवादन भी किया। अच्छा लगा कि यहां भी संस्कारी लोग रहते हैं। हमारे देश में तो अनजान व्यक्ति को तो अब लोग अच्छी दृष्टि से देखते भी नहीं हैं, अभिवादन तो इतिहास की बात हो गई हैं। हम लोग तो अपने पूर्वजों के संस्कारों को तिलांजलि दे चुके हैं।

सड़कें इतनी साफ और स्वच्छ थी, हमें लगा, हमारे चलने से कहीं गंदी ना हो जाएं। कहीं पर भी कोई कागज़, गुटके के खाली पैकेट भी नहीं दिखाई दे रहे थे। विदेश की सफाई और स्वच्छता के बारे में सुना और पढ़ा था, आज अपनी आँखों से देखा तब जाकर विश्वास हुआ की इतनी स्वच्छता भी हमारे ब्रह्मांड पर हो सकती हैं।

यहां के अधिकतर नागरिक सैर के समय अपने श्वान को साथ लेकर चल रहे थे, अगले भाग में श्वान चर्चा करेंगे।

© श्री राकेश कुमार

संपर्क – B 508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान) 

मोबाईल 9920832096

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 139 – नव दूर्गा की आराधना ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ ☆

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है आपकी नवरात्रि पर्व पर आधारित एक भक्ति गीत  “नव दूर्गा की आराधना”।) 

श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 139 ☆

☆ भक्ति गीत 🌿 🔥 नव दूर्गा की आराधना 🔥

 कर नव दुर्गा आराधना, भाव भक्ति के साथ।

सकल मनोरथ पूर्ण हो, बने बिगड़ी बात।

🕉️

आज भवानी चल पड़ी, होके शेर सवार।

भक्तों का करती कल्याण, दुष्टों का संहार।

🕉️

श्वेत वस्त्र हैं धारणी, कमल पुष्प लिए हाथ।

बटुक भैरव चल पड़े, माँ भवानी के साथ।

🕉️

शक्ति का है रुप निराला, भक्ति से भवपार।

श्रद्धा से सुमिरन करें, भर देती माँ भंडार।

🕉️

ऊँचे पर्वत वासिनी, कहीं गुफा में निवास।

आन पडे जो शरण में, पूरण करती आस । 

🕉️

कालचक्र इनकी गति, आगम निगम बखान।

होते दिन अरु रात हैं, सब पर कृपा महान।

🕉️

लाल ध्वजा लहरा रहीं, ओढ़े चुनरियां लाल।

अस्त्र शस्त्र लिए हाथ में, अर्ध चन्द्रमा भाल।

🕉️

कहीं होती शक्ति पूजा, कहीं गरबे की रात।

ढोल मंजीरे बज उठे, कहीं बाँटे प्रसाद।

🕉️

कर सोलह श्रृंगार माँ, बैठी आसन बीच।

सबका मन मोह रही, मधुर मुस्कान खींच।

🕉️

बोए जवारे भाव से, माँ भवानी से प्रार्थना।

सुख शांति वैभव लक्ष्मी, पूरी हो आराधना।

🕉️

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

सूचनाएँ/Information ☆ 1. अंतरराष्ट्रीय हिंदी महोत्सव, बैंकॉक में श्री राजेश पाठक प्रवीण एवं संतोष नेमा द्वारा प्रतिनिधित्व 2. श्री सुरेश पटवा को स्व हजारीलाल जैन वांगमय पुरस्कार ☆

 ☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

☆ अंतरराष्ट्रीय हिंदी महोत्सव, बैंकॉक में जबलपुर भारत से श्री राजेश पाठक प्रवीण एवं संतोष नेमा द्वारा प्रतिनिधित्व☆ 

अंतरराष्ट्रीय थाई हिंदी परिषद बैंकॉक एवं थाई भारत आश्रम  द्वारा आयोजित हिंदी दिवस के अवसर पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिंदी महोत्सव में जबलपुर भारत से हिंदी का प्रतिनिधित्व श्री राजेश पाठक प्रवीण एवं संतोष नेमा ने किया ।  

इस अवसर पर अंतरराष्ट्रीय स्तर के विविध साहित्यकार हिंदी महोत्सव में शामिल हुए जिन्होंने हिंदी में आलेख एवं कविताओं का वाचन किया. अत्यंत हर्ष का विषय है की थाईलैंड में विभिन्न विश्वविद्यालयों द्वारा हिंदी के तमाम कोर्स शामिल किए गए हैं जहां पर वहां के छात्रों द्वारा विशेष रुचि से हिंदी सीखी जा रही है उनका हिंदी के प्रति अनुराग एवं उत्साह हम सबके लिए अत्यंत हर्षित करने वाला है. इस अवसर पर हम लोगों ने हिंदी की महत्ता पर अपना उद्बोधन देते हुए काव्य पाठ किया. समारोह में भारतीय दूतावास के प्रतिनिधियों सहित अनेक विश्वविद्यालयों के शिक्षाविद भी शामिल रहे.

हम लोगों को गौरवमयीअनुभूति हुई कि बैंकॉक में हिंदी भाषा को बोलने और समझने का प्रयत्न किया जाता है। यहां के साहित्यकारों ने थाईभाषा के साथ हिंदी में आलेख एवं कविताओं का प्रस्तुतीकरण किया ।आयोजन के अतिथि श्री संतोष नेमा एवं राजेश पाठक प्रवीण ने हिंदी के महत्व पर प्रकाश डाला।

☆ श्री सुरेश पटवा को स्व हजारीलाल जैन वांगमय पुरस्कार की घोषणा ☆

सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री सुरेश पटवा जी को हिन्दी भवन, भोपाल  द्वारा स्व हजारीलाल जैन वांगमय पुरस्कार प्रदान करने की घोषणा की गई है। सूचनानुसार आपको मध्यप्रदेश के राज्यपाल महामहिम श्री मंगू भाई पटेल के कर कमलों से दिनांक १० अक्तूबर २०२२ को पूर्वान्ह ११ बजे हिन्दी भवन सभागार, भोपाल  में प्रदान किया जाएगा।

💐 ई-अभिव्यक्ति परिवार की ओर से श्री राजेश पाठक प्रवीण, संतोष नेमा ‘संतोष’ एवं  श्री सुरेश पटवा जी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं 💐

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ २७ सप्टेंबर – संपादकीय – श्री सुहास रघुनाथ पंडित ☆ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

श्री सुहास रघुनाथ पंडित

? ई-अभिव्यक्ती – संवाद ☆ २७ सप्टेंबर – संपादकीय – श्री सुहास रघुनाथ पंडित – ई – अभिव्यक्ती (मराठी) ?

कविता महाजन

मराठी साहित्यात वैचारिक बंड करून स्वतःचे निशाण अल्पायुष्यात फडकवणा-या कविता महाजन यांनी काव्यलेखनाने प्रारंभ  करून  पुढे साहित्याच्या विविध प्रांतात लेखन केले. कविता, कादंबरी, कथा, बालसाहित्य व अनुवादित साहित्याची निर्मिती करून त्यांनी मराठी साहित्यात मोलाची भर घातली आहे. त्यांच्या बालसाहित्याचे वैशिष्ट्य असे की त्यांनी ते लेखन, चित्रे, फोटोग्राफी, कॅलिग्राफी अशा विविध माध्यमातून सादर केले आहे. तसेच ‘भारतीय लेखिका ‘या पुस्तकातून त्यांनी अनेक भारतीय भाषांतील लेखिकांचा परिचय करून दिला आहे. त्यामुळे मराठी साहित्यातील हे एक महत्त्वाचे पुस्तक म्हणावे लागेल. त्यांनी आदिवासी प्रदेशात काम करून तेथील समाजजीवनाचा अभ्यास केला होता. त्यातूनच पुढे वारली आणि आदिवासी लोकगीतांचे संकलन त्यांच्या कडून पूर्ण झाले. आणखी एक वेगळा पैलू म्हणजे त्यांनी पाकशास्त्रासंबंधीही लेखन केले व तेही अत्यंत गांभीर्याने लिहीलेले आहे. ‘समुद्रच आहे एक विशाल जाळं’ या दीर्घकवितेने त्यांचे काव्यलेखन उच्च पातळीवर जाऊन पोहोचलो आहे.

‘ब्र’ आणि ‘भिन्न’ या त्यांच्या दोन कादंब-यांनी   त्यांना कादंबरी विश्वात मानाचे स्थान मिळवून दिले आहे. ब्र ही कादंबरी महिला सरपंच व त्यांचे अनुभव विश्व या विषयावर आहे. भिन्न या कादंबरीतील त्यांनी एच्. आय. व्ही. बाधित व एडस् ग्रस्तांचे चित्रण केले आहे. अत्यंत वेगळ्या विषयावरील या दोन कादंब-यांमुळे एक बंडखोर लेखिका म्हणून त्या प्रकाशात आल्या.

या लेखना बरोबरच त्यांनी अन्य भाषांतील साहित्यही अनुवादित केले आहे. शिवाय संपादनाचे कामही केले आहे.

कविता महाजन यांची साहित्य संपदा याप्रमाणे :

काव्यसंग्रह:

तत्पुरुष, धुळीचा आवाज, मृगजळीचा मासा

कादंबरी:

ठकी आणि मर्यादित पुरूषोत्तम, ब्र, भिन्न.

बालसाहित्य:

कुहू(मल्टीमिडीया कादंबरी), जोयानाचे रंग, वाचा जाणा करा, बकरीचं पिलू(जंगल गोष्टी)

कथासंग्रह:(अनुवादित)

अनित्य, अन्या ते अनन्या, अंबई:तुटलेले पंख, आग अजून बाकी आहे, रजई, वैदेही यांच्या निवडक कथा  इ.

लेखसंग्रह:

ग्राफिटीवाॅल, तुटलेले पंख(संपादित)

चरित्र: तिमक्का, पौर्णिमादेवी बर्मन.

अन्य:

वारली लोकगीते

पाकशास्त्र:

समतोल खा, सडपातळ रहा

प्राप्त पुरस्कार:

न. चि. केळकर पुरस्कार

काकासाहेब गाडगीळ पुरस्कार

ना. ह. आपटे पुरस्कार

कवयित्री बहणाई पुरस्कार

यशवंतराव चव्हाण उत्कृष्ट वाड्मयनिर्मिती पुरस्कार,

साहित्य अकादमीचा अनुवाद पुरस्कार(रजई),

साहित्य अकादमी पुरस्कार. (ब्र या कादंबरीसाठी)

त्यांचे हेही अन्य भाषांत अनुवादीत झाले आहे.

“बायकांचे पाय भूतासारखे उलटे असतात, कुठेही जात असले तरी ते घराकडेच वळत असतात.”

‘ब्र’ या कादंबरीतील हे वाक्य त्यांच्या लेखनातील वेगळेपण दाखवून देते.

भिन्न वृत्तीच्या या लेखिकेचे वयाच्या अवघ्या एकवनाव्या वर्षी 2018मध्ये निधन झाले. आज त्यांचा स्मृतीदिन आहे. त्यांच्या स्मृतीस अभिवादन! 🙏

☆☆☆☆☆

श्री सुहास रघुनाथ पंडित

ई-अभिव्यक्ती संपादक मंडळ

मराठी विभाग

संदर्भ: विकिपीडिया, महाराष्ट्र टाईम्स.काॅम, कविता कोश

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ दातृत्व… ☆ सौ. विद्या पराडकर ☆

सौ. विद्या पराडकर

? कवितेचा उत्सव ?

☆ दातृत्व… ☆ सौ. विद्या पराडकर ☆

रत्नाकराचया गर्भातून,गाभिर्याचे रत्न घ्यावे

धरित्रीचया उदरातून, औदार्याचे लेणे घ्यावे

 

काळ्या ‌काळया ढगांकडून, पर्जन्याच दान घ्यावे

मोठ मोठ्या वृक्षाकडून, समानतेचे बोध घ्यावे

 

जाईजुईचया फुलांपासून, धुंद मस्त सुवास घ्यावा

मृगोदरीतील कस्तुरीचा, दरवळणारा सुगंध घ्यावा

 

अंधार दूर करणारया,दिनपतीचे तेज घ्यावे

अष्टमीच्या चंद्रकिरणांपासून, अमृताचे कण‌ घ्यावे

 

निसर्गाने मुक्त हस्ताने, मानवाला देणे द्यावे

बदल्यात मानवाने निसर्गाचे दातृत्व घ्यावे.    

 

© सौ. विद्या पराडकर

वारजे  पुणे..

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ फार मस्त वाटतंय… ☆ कविता महाजन ☆

? कवितेचा उत्सव ?

☆ फार मस्त वाटतंय… 

फार मस्त वाटतंय

थांबवताच येत नाहीय हासू

इतकं कोसळतय….इतकं..

नाचावसही वाटतंय

उडावसही

 

तू का असा,काही सुचत

नसल्यासारखा

पाहतो आहेस नुसता गप्प

खांबासारखा ताठ उभा राहून

काय झालय असं संकोचल्यासारख ?

 

खर तर तूही एकदा

पसरून बघ असे हात

घेऊन बघ गर्रकन गिरकी

 एका पायावर

विस्कटू दे केस थोडे विसकटले तर

 

बघ तर

तुझ्याही आत दडलं असेल

हसणं नाचणं उडणं

तुझ्या नकळत

 – कविता महाजन

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #157 ☆ खडा मिठाचा… ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

? अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 157 ?

खडा मिठाचा

तो आकाशी भिरभिरणारा पतंग होता

रस्त्यावरती आला झाला भणंग होता

 

मठ नावाचा महाल त्याने उभारलेला

काल पाहिले तेव्हा तर तो मलंग होता

 

गंमत म्हणुनी खडा मारुनी जरा पाहिले

क्षणात उठला त्या पाण्यावर तरंग होता

 

काय जाहले भाग्य बदलते कसे अचानक

तरटा जागी आज चंदनी पलंग होता

 

चार दिसाची सत्ता असते आता कळले

आज गुजरला खूपच बाका प्रसंग होता

 

माझी गरिबी सोशिक होती तुझ्यासारखी

मुखात कायम तू जपलेला अभंग होता

 

घरात माझ्या तेलच नव्हते फोडणीस पण

खडा मिठाचा वरणामधला खमंग होता

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – विविधा ☆ डोळ्यांतले पाणी…भाग 9 ☆ सौ. अमृता देशपांडे ☆

सौ. अमृता देशपांडे

? विविधा ?

☆ डोळ्यांतले पाणी…भाग – 9 ☆ सौ. अमृता देशपांडे  

सध्याच्या digital युगाच्या झपाट्याने बदलत असलेल्या वेगानं पुढे जाणा-या जगात धावताना माणसाच्या संवेदना बोथट झाल्या आहेत की काय असे वाटू लागले आहे. जे नैसर्गिक होतं ते कृत्रिम झाले आहे. हल्ली रडावंसं वाटतं असताना रडलं तर लोक हसतील किंवा आपण कमकुवत ठरू म्हणून लोक रडण्याचं टाळतात, डोळ्यातलं पाणी परतवून लावतात. तेव्हा ते रडणारं ह्रदय घाबरतं आणि आपलं काम करताना त्याचाही तोल ढळतो. ह्रदयाच्या आजाराचं आणि अकार्यक्षमतेचं हे सुद्धा एक कारण असू शकतं. मन व शरीर यांची एकरूपता म्हणजे तंदुरुस्ती. अशी निरामय तंदुरुस्ती हवी असेल तर संवेदना बोथट होणार नाहीत याची काळजी घेतली पाहिजे. शारिरीक व मानसिक सुदृढतेसाठी आचार-विचार, आहार-विहार या सह हसू आणि आसू दोन्ही आवश्यक आहेत.

देवाने सृष्टी निर्माण करताना डोळ्यात पाण्याची देणगी दिली आहे. 

गाई म्हशी, कुत्रे घोडे, याकडे, हत्ती असे पशू रडून आपल्या भावना व्यक्त करतात. त्यांना अश्रू आवरण्याची बुद्धी नाही म्हणून ह्रदयाचे दुखणे नाही. या दैवी देणगी चा प्रसंगी अडवणूक  करून,  नाकारून आपण अपमान तर करत नाही ना असा विचार मनात येतो.

थोडक्यात काय तर आपल्या भावना आणि मन खुलेपणाने योग्य वेळी योग्य प्रकारे व्यक्त होणे महत्वाचे. सुख-दुःख, हसू-आसू, ऊन- सावली यांचं कुळ एकच. नैसर्गिकता. दुःख न मागता येतंच, सावली आपल्याला हवीच असते. मग आसू का नाकारायचे? ते सकारात्मतेने अंगिकारून व्यक्त करावेत. मन हलकं होतं……..

(क्रमशः… प्रत्येक मंगळवारी)

© सौ. अमृता देशपांडे 

पर्वरी – गोवा

9822176170

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ उपरती— ☆ डॉ. ज्योती गोडबोले ☆

डॉ. ज्योती गोडबोले

?जीवनरंग ?

☆ उपरती— ☆ डॉ. ज्योती गोडबोले☆ 

नणंद आजारी होती म्हणून तिला भेटायला निरुपमा हॉस्पिटल मध्ये गेली.

“ निरु,रोज येशील ना ग भेटायला? फार कंटाळा येतो ग इथे पडून पडून.” नणंद  तिला म्हणाली.

“ येईन की, त्यात काय….  मस्त आराम कर. लेक यायचाय का सिंगापूरहून?”

“ छे ग !त्याला कुठला वेळ बाई.” 

“ बरं.आता छान विश्रांती घे. मी येईन हं उद्या परत. “

निरुपमा लिफ्ट जवळ उभी होती. सहजच शेजारी बघितले, तर ओळखीचा चेहरा दिसला.

“ अग, तू संध्या तर नव्हेस? चारुशीलाची बहीण ? “

“ हो,ग, आणि तू निरुपमा ना? इकडे कशी ? “

“ अग माझ्या नणंदेची मायनर  सर्जरी झालीय, तिच्यासाठी येते मी.”

संध्या म्हणाली, “ निरुताई, प्लीज  चारूला भेटशील का? तिला ब्रेस्ट कॅन्सर डिटेक्ट झालाय. लवकरच आला लक्षात,

त्यामुळे काळजीचे कारण नाही. पुढच्या आठवड्यात तिची surgery आहे. भेटशील का तिला?” 

निरुपमा विचारात पडली. “ पण तिला चालेल का मी भेटलेले?”

“ भेट. बघ तरी काय म्हणते.” 

निरुपमा घरी गेली.जाताना तिच्या डोळ्यासमोर मागचा चित्रपट सरकू लागला—–

कॉलेजचे ते फुलपंखी दिवस. निरुपमा,चारू,पद्मिनी, असा सगळ्यांचा तो सुंदर ग्रुप होता. छान सकाळचे कॉलेज करावे आणि घरी यावे. कोणालाच शिक्षणाची फारशी ओढ नव्हती. लग्न होईपर्यंत डिग्री असावी,म्हणून घ्यायची, हाच विचार. निरुपमा भाबडी, अतिशय सरळ आणि दिसायला सुरेख होती. त्यातल्या त्यात धूर्त चारुच होती. स्वार्थ असेल तिथे चारू नेहमी पुढे. निरुपमाच्या हे लक्षात येत असे, पण ती दुर्लक्ष करायची.‘ जाऊ दे ना,कुठे बारीक सारीक गोष्टीकडे लक्ष द्यायचे,’ असे म्हणून सोडून द्यायची. निरुपमा आणि चारुच्या आर्थिक परिस्थितीतही खूप फरक होता.

निरुपमाचे आईवडील मध्यम वर्गीय तर चारुशीलाचे वडील चांगल्या पोस्टवर होतें आणि या दोघी बहिणीच.

दोघींनाही आपल्या  जरा उच्च परिस्थितीचा गर्व होताच.

एकदा पद्मिनीचा लांबचा भाऊ तिच्या घरी आला होता. त्याने निरुपमाला बघितले. पद्मिनीला म्हणाला, “ छान आहे ग तुझी मैत्रीण. दे ना ओळख करून.” –तो दुसऱ्या दिवशी कॉलेजवरच आला. कॅन्टीन मध्ये निरुपमा,पद्मिनी, चारू बसल्या होत्या. पद्मिनीचा हा भाऊ आर्मीमध्ये होता. त्याचा तो रुबाबदार युनिफॉर्म,  तलवार कट मिशी बघून मुली तर खुळ्याच व्हायच्या. रवीला– म्हणजे पद्मिनीच्या भावाला  हा अनुभव नवा नव्हता. चारुशीला तर सरळसरळ प्रेमातच पडलेली दिसली रवीच्या. पण रवीने तिच्याकडे सरळ दुर्लक्ष केले आणि निरुपमाशी बोलू लागला. चारुशीलाचा जळफळाट झाला. निरुपमाला रवी ‘ सहजच भेटलो ‘ असे भासवत भेटू लागला.

वेडं वय आणि हा रुबाबदार  पुरुष आपला अनुनय करतोय म्हटल्यावर  निरुपमा खुळावली. त्यांच्या भेटी वाढू लागल्या. पद्मिनीच्या हे लक्षात आले.

“ निरु, काय चाललंय तुझं? रवी बरोबर फार भेटी वाढल्यात वाटतं? माझा लांबचा भाऊ आहे, हे खरं,

पण सावध करतेय तुला. अजिबात धड शिकला नाही, मावशीने आणि काकांनी दिले आर्मीत पाठवून. चांगला बॉडीबिल्डर आहे,म्हणून झालाय सिलेक्ट तिकडे. अगदी सामान्य पोस्ट आहे त्याची. तू मुळीच मागे लागू नकोस ग त्याच्या– बघ बाई. मग नको म्हणू–पद्मिनीने सांगितले नाही.” 

त्या दिवशी,ती सहज  डेक्कन जिमखान्यावर गेली होती, तर तिला भास झाला की रवी आणि चारुशीला  मोटरसायकल वरून चालले आहेत.  दुसऱ्या दिवशी तिने चारुला विचारले, तर तिने साफ नाही म्हणून सांगितले.

रवीची सुट्टी संपली आणि तो निघून गेला. जाताना निरुपमाला भेटलाही नाही की  सांगितलेही नाही. निरुपमाला अतिशय वाईट वाटले.

सहा महिन्यांनी निरुपमाला पद्मिनीने सांगितले,” निरु, चारुशीलाचे लग्न ठरलंय रवीशी. तुला मी सांगितले होते ना,नुसता खेळवत होता तो तुला. बरोबर चारूने डाव टाकला. त्याला घरी बोलावून, आपल्या श्रीमंतीचे प्रदर्शन केले त्याच्यासमोर. दोघे तसलेच उथळ. मूर्ख कुठले ! उलट तू सुटलीस त्याच्या जाळ्यातून. रडतेस कसली वेडे? बाबा बघतील त्या छान मुलाशी लग्न कर. तुझी या रवीपेक्षा खूप चांगला मुलगा मिळण्याची नक्कीच पात्रता आहे वेडे.

बघ. मी खरी मैत्रीण आहे ना तुझी? माझे शब्द खरे होतील बघ.” 

सहाच महिन्यात निरुपमाचे लग्न ठरले–महेंद्रशी. महेंद्र चांगल्या कंपनीत होता, आणि खूप शिकलेला होता।

भविष्यकाळ नक्कीच उज्ज्वल होता त्याचा. निरूपमाने महेंद्रला भेटून रवीबद्दल सगळे सांगितले.

महेंद्र हसला आणि म्हणाला “ होतं ग असं ! आता नाही ना काही तसलं तुझ्या मनात? जा विसरून ते काफ लव्ह !” 

निरुपमाला त्याचा उमदा स्वभाव अतिशय आवडला. नंतर ती तिच्या संसारात रमून गेली. सोन्यासारखी दोन मुले,  आणि सोन्यासारखाच महेंद्र, यात ती रमून गेली.

आणि आज किती तरी वर्षांनी  तिला चारुशीलाबद्दल समजले. दुसऱ्या दिवशी निरुपमा चारुला भेटायला गेली.

निरुपमाला बघून चारुला धक्काच बसला— “ निरु, तू? तू आलीस मला भेटायला?”

“अग हो चारू. माझी नणंद पालिकडच्याच रूममध्ये आहे. मी सहजच तुझे नाव वाचले रूमवर, म्हणून आले भेटायला तुला. कशी आहेस ग चारू तू ?”  चारुच्या डोळ्यातून घळघळ अश्रू वाहू लागले—-

“ बघतेच आहेस मी कशी आहे ते. परवा माझे ऑपरेशन आहे. मला खूप भीती वाटतेय ग. निरु, मी तुझी अपराधी आहे.” 

” अग वेडे, कसली अपराधी आणि काय– तरुणपणातला वेडेपणा ग तो ! काय मनाला लावून घेतेस? ऑपरेशन झाले की आता मस्त बरी होशील बघ.” 

“ नाही निरु,मला बोलू दे. मी मुद्दाम तुझ्यापासून रवीला हिरावून घेतला. मला चांगलेच माहीत होते की त्याला तूच आवडत होतीस. तो तुझ्यावरच प्रेम करत होता .पण मी नाना प्रकारे त्याला भुलवले. पुरुषच तो ! अडकला माझ्या पाशात. मला आसुरी आनंद व्हायचा, तो तुला टाळून माझ्याबरोबर हिंडायचा तेव्हा. पद्मिनीने मलाही सावध केले होते.  पण तिच्या बोलण्याकडे मी दुर्लक्ष केले. आणि लग्न केले रवीशी. पहिले काही दिवस बरे गेले,पण मग मात्र त्याचे खरे रंग दिसले मला. अतिशय उथळ, खर्चिक, दिखाऊ आणि कोणतीही जिद्द नसलेला रंगेल  माणूस आहे रवी. मी खूप  सहन केले पण माझीही सहनशक्ती हळूहळू संपलीच ग. एका घरात राहतो आम्ही, पण अजिबात  प्रेम नाही आमच्यात. आई बाबांनी माझ्या नावावर पैसे ठेवलेत म्हणून निदान त्याच्यावर अवलंबून तरी नाहीये मी. नाही तर कठीण होते माझे. मला आता पक्के समजले आहे की ,कोणाच्याही दुःखावर, तळतळाटावर उभा केलेला संसार सुखाचा होत नाही कधी. देवाने  शिक्षा म्हणून माझी कूसही रिकामी ठेवली. सगळ्या बाजूने मी हरले निरु.मला क्षमा करशील ना ग– प्लीज ?” –चारुशीला  ओक्साबोक्शी रडू लागली. 

निरुपमा तिच्या जवळ बसली. तिचे डोळे पुसले आणि म्हणाली, “ काय ग हे वेडे. कुठल्या गोष्टी कुठे नेतेस.

असं काही नाही ग. माझ्या मनात असले काहीही नाही. त्यावेळी मलाही खूप वाईट वाटले होते हे कबूल करते मी.

पण मला महेंद्रसारखा उमदा जोडीदार मिळाला. माझी सोन्यासारखी मुले आणि संसार  कोणीही हेवा करावा असाच आहे. आणि आता मी आणि तूही पूर्वीचे सगळे विसरून जाऊ या. लवकर छान बरी होशील तू यातून. हे बघ – आता आपण असले हेवेदावे करायचे वय किती मागे टाकून आलोय ना. पूस बघू डोळे. माझ्या मनात आता काहीसुद्धा नाही ग मागचे कटुत्व. चारू, मी नेहमी तुला शुभेच्छाच देईन. चुकूनही मनात काहीसुद्धा ठेवू नकोस.” 

निरुपमा तिच्या खोलीतून बाहेर पडली. तिच्या मनात आले ‘ दैवगती तरी पहा, हे सगळे होण्यासाठी चारुशीलाला कॅन्सरच व्हायला हवा होता का ?’ निरुपमाला अगदी मनापासून खूप वाईट वाटले.

पण तितक्याच मनापासून चारुशीलासाठी प्रार्थना करण्याव्यतिरिक्त निरुपमाच्या हातात दुसरे काय होते?

© डॉ. ज्योती गोडबोले

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – मनमंजुषेतून ☆ डॉक्टर फॉर बेगर्स ☆ आपलं माणूस…!!! ☆ डॉ अभिजीत सोनवणे ☆

डॉ अभिजीत सोनवणे

© doctorforbeggars 

??

☆ डॉक्टर फॉर बेगर्स ☆ आपलं माणूस…!!! ☆ डॉ अभिजीत सोनवणे ☆

नुकत्याच भिकेच्या डोहातून बाहेर काढलेल्या एका आजीचं आता कसं करावं ? काय करावं ? हा विचार डोक्यात सुरू होता… ! अशातच वाढदिवसानिमित्त गौरी धुमाळ या ताईंचा मला शुभेच्छा देण्यासाठी फोन आला. 

गौरीताई पौड भागात अत्यंत प्रतिकूल परिस्थितीत वृद्धाश्रम चालवतात. 

सहजच मी या आजीबद्दल गौरीताईंशी बोललो. त्या सहजपणे म्हणाल्या “ द्या माझ्याकडे पाठवून दादा त्यांना…! “

…. त्या जितक्या सहजपणे आणि दिलदारपणे हे वाक्य बोलल्या, तितक्या सहजपणे सध्या हा वृद्धाश्रम त्या चालवू शकत नाहीत याची मला पूर्ण कल्पना आहे. 

गौरीताई रस्त्यावर फिरत असतात…. निराधार आणि बेवारस पडलेल्या आजी-आजोबांना त्या रस्त्यावर आधी जेवू घालतात आणि त्यांना आपल्या आश्रमात कायमचा आसरा देतात. असे साधारण वीस ते बावीस आजी आजोबा सध्या त्या सांभाळत आहेत. 

एका फोटोमध्ये गरीब लोकांना भरपेट खाऊ घालताना त्या मला दिसल्या… मी त्याबद्दल त्यांचं कौतुक केलं…. यावर त्या डोळ्यात पाणी आणून म्हणाल्या, “ दोन-तीन वर्षांपूर्वीचा फोटो आहे तो …. या दोन-तीन वर्षांत माझे हे आजी आजोबा असे भरपेट जेवल्याचे मला आठवत नाही. रोजचं दोन वेळचं जेवण हीच आमच्यासाठी चैन आहे. अनेक बिलं थकली आहेत… कधी कधी वाटतं जग सोडून जावं… पण पुन्हा या आजी-आजोबांचा विचार येतो…. त्यांच्या चेहऱ्यावरचं करुण हास्य बघून दरवेळी मी माघारी फिरते….” —- हे बोलताना गौरी ताईंचा बांध फुटतो…! 

या ताईंना हा वृद्धाश्रम चालवण्यासाठी खरं तर कोणाचीच साथ नाही, सरकारी अनुदान नाही, जे काही थोडेफार डोनेशन मिळत आहे, त्यावर इतक्या लोकांचा संसार चालणं केवळ अशक्य आहे. 

आंबा खाऊन झाल्यावर त्याची कोय जितक्या सहजपणे रस्त्यावर फेकून देतात …. तितक्या सहजपणे आपल्या आई आणि बापाला रस्त्यावर सोडणारी मुले- मुली -सुना – नातवंड आम्ही रोज पाहतो…. 

दुसऱ्याच्या आईबापाला स्वतःच्या मायेच्या पदराखाली घेणारी ही ताई मला खरोखरी “माऊली” वाटते. 

परंतु आज हीच माऊली व्याकूळ झाली आहे…. परिस्थितीपुढे हरली नाही…. पण हतबल नक्कीच झाली आहे… ! 

अशा आई-वडील, आजी – आजोबा यांना आपला मदतीचा हात गौरीताईच्या माध्यमातून देता येईल. 

नळ दुरुस्त करणारा कितीही कुशल असला तरी डोळ्यातले अश्रू थांबवायला आपलं माणूसच असावं लागतं… 

गौरीताई यांच्या माध्यमातून आपणही या अंताला पोहोचलेल्या आजी-आजोबांचं ” आपलं माणूस ” होऊया का ? 

गौरीताई धुमाळ  यांच्याशी 74988 09495 या नंबरवर संपर्क साधता येईल…!

© डॉ अभिजित सोनवणे

डाॕक्टर फाॕर बेगर्स, सोहम ट्रस्ट, पुणे

मो : 9822267357  ईमेल :  [email protected],

वेबसाइट :  www.sohamtrust.com  

Facebook : SOHAM TRUST

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares
image_print