सूचना/Information ☆ संपादकीय निवेदन ☆ सम्पादक मंडळ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सूचना/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

💐 संपादकीय निवेदन 💐

वाचकहो, आज या निवेदनाद्वारे पुन्हा एकदा आपली भेट घेत आहोत.

दि.01/10/2021 पासून आम्ही ‘संपादकीय’ हे सदर चालू केले होते.या सदरामध्ये साहित्यिकांच्या जन्मदिनानिमित्त किंवा त्यांचे पुण्यतिथीनिमित्त त्यांच्या साहित्यिक कारकिर्दीविषयी जाणून घेण्याचा आम्ही प्रयत्न केला. त्यायोगे त्यांच्या साहित्याविषयी आम्हाला अधिक माहिती मिळाली व ती आपणापर्यंत पोहोचविणे आम्हाला उचित वाटले.तीस सप्टेंबरला या उपक्रमास एक वर्ष पूर्ण होत आहे. या कालावधीत सर्व साहित्यिकांविषयी आम्ही लिहू शकलो नाही हे आम्हाला माहित आहे. परंतू अनेक साहित्यिकांचे कार्य आपणापर्यंत पोहोचवू शकलो असे आम्हास वाटते. या कामात आम्हाला कराड येथील साहित्य साधना या संस्थेने प्रकाशित केलेल्या शताब्दी दैनंदिनीचा आणि विकिपीडिया अत्यंत मोलाचा उपयोग झाला आहे. त्यांनी उपलब्ध करून दिलेल्या जन्ममृत्यूच्या तारखां संदर्भासाठी उपयुक्त ठरल्या आहेत.

आज एक वर्षाच्या पूर्तीनंतर आम्ही हे सदर थांबवण्याचा निर्णय घेत आहोत. या सदरामुळे सर्वांनाच साहित्यिकांचे जीवन व कार्य याविषयी बरीच माहिती मिळाली असेल असे आम्हाला वाटते. नवीन काहीतरी देत राहूच. तोपर्यंत या ‘संपादकीय’ सदरास पूर्णविराम !

आपले

संपादकीय सदस्य

 संपादक मंडळ,

ई-अभिव्यक्ती (मराठी)

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

 

संपादकीय निवेदन :

 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य #152 ☆ आईना झूठ नहीं बोलता ☆ डॉ. मुक्ता ☆

डॉ. मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं।  साप्ताहिक स्तम्भ  “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक  साहित्य” के माध्यम से  हम  आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी का  वैश्विक महामारी और मानवीय जीवन पर आधारित एक अत्यंत विचारणीय आलेख आईना झूठ नहीं बोलता। यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को  इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 152 ☆

आईना झूठ नहीं बोलता 

लोग आयेंगे, चले जायेंगे। मगर आईने में जो है, वही रहेगा, क्योंकि आईना कभी झूठ नहीं बोलता, सदैव सत्य अर्थात् हक़ीक़त को दर्शाता है…जीवन के स्याह व सफेद पक्ष को उजागर करता है। परंतु बावरा मन यही सोचता है कि हम सदैव ठीक हैं और दूसरों को स्वयं में सुधार लाने की आवश्यकता है। यह तो आईने की धूल को साफ करने जैसा है, चेहरे को नहीं, जबकि चेहरे की धूल साफ करने पर ही आईने की धूल साफ होगी। जब तक हम आत्मावलोकन कर दोष-दर्शन नहीं करेंगे; हमारी दुष्प्रवृत्तियों का शमन कैसे संभव होगा? हम हरदम परेशान व दूसरों से अलग-थलग रहेंगे।

जीवन मेंं सदैव दूसरों का साथ अपेक्षित है। सुख बांटने से बढ़ता है तथा दु:ख बांटने से घटता है। दोनों स्थितियों में मानव को लाभ होता है। सुंदर संबंध शर्तों व वादों से नहीं जन्मते, बल्कि दो अद्भुत लोगों के मध्य संबंध स्थापित होने पर ही होते हैं। जब एक व्यक्ति अपने साथी पर अथाह, गहन अथवा अंधविश्वास करता है और दूसरा उसे बखूबी समझता है, तो यह है संबंधों की पराकाष्ठा।

सम+बंध अर्थात् समान रूप से बंधा हुआ। दोनों में यदि अंतर भी हो, तो भी भाव-धरातल पर समता की आवश्यकता है। इसी में जाति, धर्म, रंग, वर्ण का ही स्थान नहीं है, बल्कि पद-प्रतिष्ठा भी महत्वहीन है। वैसे प्यार व दोस्ती तो विश्वास पर कायम रहती है, शर्तों पर नहीं। महात्मा बुद्ध का यह कथन इस भाव को पुष्ट करता है कि ‘जल्दी जागना सदैव लाभकारी होता है। फिर चाहे नींद से हो, अहं से, वहम से या सोए हुए ज़मीर से। ख़िताब, रिश्तेदारी सम्मान की नहीं, भाव की भूखी होती है…बशर्ते लगाव दिल से होना चाहिए, दिमाग से नहीं।’ सो! संबंध तीन-चार वर्ष में समाप्त होने वाला डिप्लोमा व डिग्री नहीं, जीवन-भर का कोर्स है। यह अनुभव व जीने का ढंग है। सो! आप जिससे संबंध बनाते हैं, उस पर विश्वास कीजिए। यदि कोई उसकी निंदा भी करता है, तो भी आप उसके प्रति मन में अविश्वास का भाव न पनपने दें, बल्कि संकट की घड़ी में आप उसकी अनुपस्थिति में ढाल बन कर खड़े रहें। लोगों का काम तो कहना होता है। वे किसी को उन्नति के पथ पर अग्रसर होते देख केवल ईर्ष्या ही नहीं करते; उनकी मित्रता में सेंध लगा कर ही सुक़ून पाते हैं। सो! कबीर की भांति आंख मूंदकर नहीं, आंखिन देखी पर ही विश्वास कीजिए। उन्हीं के शब्दों में ‘बुरा जो देखन मैं चला, मोसों बुरा न कोय।’ इसलिए अपने अंतर्मन में झांकिए, आप स्वयं में असंख्य दोष पाएंगे। दोषारोपण की प्रवृत्ति का त्याग ही आत्मोन्नति का सुगम व सर्वश्रेष्ठ मार्ग है। केवल सत्य पर विश्वास कीजिए। झूठ के आवरण को हटाने के लिए चेहरे पर लगी धूल को हटाने की आवश्यकता है अर्थात् अपने अंतस की बुराइयों पर विजय पाने की दरक़ार है।

इसी संदर्भ में मैं कहना चाहूंगी कि ऐसे लोगों की ओर आकर्षित मत होइए, जो ऊंचे मुक़ाम पर पहुंचे हैं। वास्तव में वे तुम्हारे सच्चे हितैषी हैं, जो तुम्हें ऊंचाई से गिरते देख थाम लेते हैं। सो! लगाव दिल से होना चाहिए, दिमाग़ से नहीं। जहां प्रेम होता है, तमाम बुराइयां अच्छाइयों में परिवर्तित हो जाती हैं तथा अविश्वास के दस्तक देते व अच्छाइयां लुप्तप्राय: हो जाती हैं। त्याग व समर्पण का दूसरा नाम दोस्ती है। इसमें दोनों पक्षों को अपनी हैसियत से बढ़ कर समर्पण करना चाहिए। अहं इसमें महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। ईगो अर्थात् अहं तीन शब्दों निर्मित है, जो रिलेशनशिप अर्थात् संबंधों को अपना ग्रास बना लेता है। दूसरे शब्दों में एक म्यान में दो तलवारें नहीं समा सकतीं। संबंध तभी स्थायी अथवा शाश्वत बनते हैं, जब उनमें अहं, राग-द्वेष व स्व-पर का भाव नहीं होता।

सो! जिससे बात करने में खुशी दुगुन्नी तथा दु:ख आधा रह जाए, वही अपना है; शेष तो दुनिया है, जो तमाशबीन होती है। वैसे भी अहंनिष्ठ लोग समझाते अधिक व समझते कम हैं। इसलिए अधिकतर मामले सुलझते कम, उलझते अधिक हैं। यदि जीवन को समझना है, तो पहले मन को समझो, क्योंकि जीवन हमारी सोच का साकार रूप है। जैसी सोच, वैसा जीवन। इसलिए कहा जाता है कि असंभव दुनिया में कुछ भी नहीं है। हम वह सब कर सकते हैं, जो हम सोचते हैं। इसलिए कहा जाता है, मानव असीम शक्तियों का पुंज है। स्वेट मार्टन के शब्दों में ‘केवल विश्वास ही एकमात्र ऐसा संबल है, जो हमें अपनी मंज़िल तक पहुंचा देता है।’ सो! आत्मविश्वास के साथ-साथ लगन व्यक्ति से वह सब करवा लेती है, जो वह नहीं कर सकता। साहस व्यक्ति से वह सब करवाता है; जो वह कर सकता है। किन्तु अनुभव व्यक्ति से वह करवा लेता है, जो उसके लिए करना अपेक्षित है। इसलिए अनुभव की भूमिका सबसे अहम् है, जो हमें ग़लत दिशा की ओर जाने से रोकती है और साहस व लगन अनुभव के सहयोगी हैं।

परंतु पथ की बाधाएं हमारे व्यक्तित्व विकास में अवरोधक हैं। सो! कोई निखर जाता है, कोई बिखर जाता है। यहाँ साहस अपना चमत्कार दिखाता है। सो! संकट के समय परिवर्तन की राह को अपनाना चाहिए। तूफ़ान में कश्तियां/ अभिमान में हस्तियां/ डूब जाती हैं/ ऊंचाई पर वे पहुंचते हैं/ जो प्रतिशोध के बजाय/ परिवर्तन की सोच रखते हैं। सो! अहंनिष्ठ मानव पल भर मेंं अर्श से फ़र्श पर आन गिरता है। इसलिए ऊंचाई पर पहुंचने के लिए मन में प्रतिशोध का भाव न पनपने दें, क्योंकि उसका जन्म ईर्ष्या व अहं से होता है। आंख बंद करने से मुसीबत टल नहीं जाती और मुसीबत आए बिना आँख नहीं खुलती। जब तक हम अन्य विकल्प के बारे में सोचते नहीं, नवीन रास्ते नहीं खुलते। इसलिए मुसीबतों का सामना करना सीखिए। यह कायरता है, पराजय है। ‘डू ऑर डाई, करो या मरो’ जीवन का उद्देश्य होना चाहिए। ‘कौन कहता है आकाश में छेद हो नहीं सकता/ एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो।’ दुनिया में असंभव कुछ भी नहीं। अक्सर मानव को स्वयं स्थापित मील के पत्थरों को तोड़ने में बहुत आनंद आता है। सो थककर राह में विश्राम मत करो और न ही बीच राह से लौटने का मन बनाओ। मंज़िलें बाहें पसारे आपकी राह तकेंगी। स्वर्ग-नरक की सीमाएं निश्चित नहीं हैंं; हमारे कार्य-व्यवहार ही उन्हें निर्धारित करते हैं।

श्रेष्ठता संस्कारों से प्राप्त होती है और व्यवहार से सिद्ध होती है। जिसने दूसरों के दु:ख में दु:खी होने का हुनर सीख लिया, वह कभी दुखी नहीं हो सकता। ‘ज़रा संभल कर चल/ तारीफ़ के पुल के नीचे से/  मतलब की नदी बहती है।’ इसलिए प्रशंसकों से सदैव दूरी बना कर रखनी चाहिए, क्योंकि ये उन्नति के पथ में अवरोधक होते हैं। इसलिए कहा जाता है, घमंड मत कर ऐ दोस्त/ अंगारे भी राख बनते हैं। इसलिए संसार में इस तरह जीओ कि कल मर जाना है। सीखो इस तरह कि जैसे आपको सदैव जीवित रहना है। शायद इसलिए ही थमती नहीं ज़िंदगी किसी के बिना/  लेकिन यह गुज़रती भी नहीं/ अपनों के बिना। ‘सो! क़िरदार की अज़मत को न गिरने न दिया हमने/  धोखे बहुत खाए/ लेकिन धोखा न दिया हमने।’ इसलिए अंत में मैं यही कहना चाहूंगी, आनंद आभास है/  जिसकी सबको तलाश है/ दु:ख अनुभव है/ जो सबके पास है। फिर भी ज़िंदगी में वही क़ामयाब है/ जिसे ख़ुद पर विश्वास है। इसलिए अहं नहीं, विश्वास रखिए। आपको सदैव आनंद की प्राप्ति होगी। रास्ते अनेक होते हैं। और निश्चय आपको करना है कि आपको जाना किस ओर है?

© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत, पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी

संपर्क – #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com, मो• न•…8588801878

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #152 ☆ भावना के दोहे… ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है  “भावना के दोहे…।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 152 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे… ☆

बाट जोहती राधिका, कछु ना मोह सुहाय।

श्याम-श्याम माला जपै, ढलकत आंसू जाय।।

 

आहट दर पर हुई मगर, जागी मन में आस।

देख मोहन का रुप तो, बुझी नैन की प्यास।।

 

शोभा राधा से बढ़ी, अंक भर रहे श्याम।

मंद मघुर मुस्कान से, देख रहे घन श्याम।।

 

बातों में उलझा रहे, ढलती है अब शाम।

रस्ता घर पर देखते, जाने दो अब श्याम।।

 

मुरली मधुर बजा रहे, साथ रचाते रास।

हम दोनों के संग का, मौका है ये खास।।

 

राधा-राधा जप लियो, होंगे पूरे काम।

मन में तो मोहन बसा, लेकर राधा नाम।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – कार्डिओग्राम ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

आज की साधना (नवरात्र साधना)

इस साधना के लिए मंत्र इस प्रकार होगा-

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

देवीमंत्र की कम से कम एक माला हर साधक करे।

अपेक्षित है कि नवरात्रि साधना में साधक हर प्रकार के व्यसन से दूर रहे, शाकाहार एवं ब्रह्मचर्य का पालन करे।

मंगल भव। 💥

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – कार्डिओग्राम ??

कुछ भारीपन है,

चुभन है छाती में,

बेचैनी, अन्यमनस्कता

भी अनुभव कर रहा हूँ,

..यह मेडिकल

इमरजेंसी का वक्त है,

ईसीजी और अन्य कुछ

टेस्ट की ज़रूरत है..,

क्षमा करें,

मशीन नहीं जान

सकती कभी इसे,

स्पंदन की रेखाएँ

नहीं थाम सकती इसे,

मैं जानता हूँ-समझता हूँ

अपने हृदय का आर्तनाद,

इसका कार्डिओग्राम

अलग हटकर होता है,

शब्दों में ढलकर

कागज़ पर अभिव्यक्त होता है..!

© संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #139 ☆ संतोष के दोहे – अहम ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  “संतोष के दोहे – अहम। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 140 ☆

☆ संतोष के दोहे – अहम ☆ श्री संतोष नेमा ☆

कभी न हम पालें अहम, इसकी गहरी मार

मान गिराता यह सदा, होता है अपकार

 

अहम करे किस बात का, हे मूरख इंसान

जाना सबको एक दिन, बचता नहीं निशान

 

बचें सदा हम क्रोध से, इसमें लिपटा दंभ

अहंकार की आग में, गिरें टूट के खम्भ

 

सदा कभी रहता नहीं, धन-वैभव अभिमान

माटी में मिलता सदा, माटी का इंसान

 

साथ न देते बंधु प्रिय, महल अटारी कोष

वहम बढ़ाता अहम को, और बढ़ाये रोष

 

धन दौलत सम्मान से, मिले अहम को खाद

कमतर समझे गैर को, करे झूठ आबाद

 

अहंकार से सब मिटे, वैभव, इज्जत, वंश

देखें तीन उदाहरण, रावण,कौरव,कंस

 

साईं इतना दीजिए, आ ना सके गुरूर

चलें धर्म की राह हम, प्रेम रहे भरपूर

 

मनसा,वाचा कर्मणा, सबके बनें चरित्र

स्वयं रहे “संतोष” भी, रहें विचार पवित्र

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 5 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी विदेश यात्रा के संस्मरणों पर आधारित एक विचारणीय आलेख – ”न्यू जर्सी से डायरी…”।)

? यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 5 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ?

पवेलियन आन व्हील

महत्वपूर्ण बातें तो कई लोग करते हैं , किताबें तथा मीडिया पर बड़ी बातों पर खूब सी सामग्री सहजता से मिल जाती है, इसलिए मैं उन छोटी और इग्नोर्ड विषयों पर चर्चा कर रहा हूं जो हम देखकर भी अनदेखा कर देते हैं। ऐसे अनेक छोटे छोटे मुद्दे हैं जो सुविधाओ तथा दूरियों के चलते भारत से भिन्नता रखते हैं, और उन्हें जानने समझने में आपकी रुचि हो सकती है। ऐसा ही एक विषय है खेलों में आम आदमी की अभिरुचि ।

सुबह घूमते हुए मैने देखा की आवासीय परिसर में ही सड़क किनारे बास्केट बाल का चेन लिंक से घिरा पक्का ग्राउंड भर नहीं है , पर्याप्त दर्शको के लिए एल्यूमिनियम का पवेलियन आन व्हील भी बनाया गया है। फोल्डिंग, फटाफट फिट स्टेडियम, इस प्रकार के चके पर चलते स्टेडियम अपने भारत में मेरे देखने में नहीं आए । इससे पता चलता है की खेलने वाले भी हैं, और उन्हें बकअप कर उत्साह बढ़ाने वाले भी हैं। समाज में व्याप्त यह जज्बा ही अंतराष्ट्रीय स्तर पर मेडल टेली में देश को ऊपर लाता है ।

हमारे देश के वर्तमान हालात के महज चंद खिलाड़ियों के विभिन्न खेलों के कैंप, टीम तो बना सकते हैं पर प्रत्येक खेल में क्रिकेट की तरह का जज्बा तभी पैदा हो सकता है जब सामाजिक प्रवृत्ति खेलने , खेलो में हिस्सेदारी की बने । यह हिस्सेदारी दर्शक की भूमिका से आयोजक प्रायोजक तक गांव शहर मोहल्लों में बने । इसके लिए ऐसे सहज पेवेलियन आन व्हील्स और मैदानो के इंफ्रा स्ट्रक्चर की आवश्यकता से आप भी सहमत होंगे।

विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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सूचनाएँ/Information ☆ स्व. शंकरराव कानिटकर हिंदी विभागीय ग्रंथालय हेतु 2000 पुस्तकों का संकलन – हिंदी विभाग, मॉडर्न महाविद्यालय (स्वायत्त), पुणे ☆

 ☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

☆ स्व. शंकरराव कानिटकर हिंदी विभागीय ग्रंथालय हेतु 2000 पुस्तकों का संकलन – हिंदी विभाग, मॉडर्न महाविद्यालय (स्वायत्त), पुणे ☆ 

🌸 हिंदी विभाग द्वारा आयोजित कृतज्ञता ज्ञापन समारोह 🌸

दिनांक 28 सितंबर 2022 को हिंदी विभाग, मॉडर्न महाविद्यालय, पुणे 05 की ओर से कृतज्ञता ज्ञापन समारोह संपन्न हुआ ।  

हिंदी विभाग, महाविद्यालय में स्व. शंकरराव कानिटकर हिंदी विभागीय ग्रंथालय का निर्माण कर रहा है । इस हेतु हिंदी विभाग को सर्वप्रथम 300 पुस्तकें देकर प्रोफेसर जया परांजपे जी ने नींव रखी और बाद में हिंदी के अनेक लेखक, कवि, प्राध्यापकों ने पुस्तकें प्रदान की और प्रसन्नता है कि हिंदी विभाग, मॉडर्न महाविद्यालय (स्वायत्त), शिवाजीनगर, पुणे 05 ने अब 2000 पुस्तकों का संकलन पूरा किया है ।  डॉ. प्रेरणा उबाळे और हिंदी विभाग द्वारा किए गए ग्रंथालय निर्माण के उपक्रम की हिंदी जगत के विभिन्न विद्वानों से प्रशंसा हो रही है ।  

हिंदी विभागीय ग्रंथालय निर्माण हेतु इसके पूर्व डॉ. संतोष कालिया, डॉ. सुनील देवधर, डॉ. स्मिता दाते, डॉ. वासंती वैद्य, प्रा. सदानंद महाजन आदि हिंदी लेखक- कवि, प्राध्यापकों ने अपने संचय की महत्वपूर्ण पुस्तकें देकर सहयोग दिया है ।  

दिनांक 28 सितंबर के कृतज्ञता ज्ञापन कार्यक्रम में प्रोफेसर कांतिदेवी लोधी, पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष, नौरोसजी वाडिया महाविद्यालय, पुणे, डॉ. शहाबुद्दीन शेख, प्राचार्य, लोकसेवा महाविद्यालय, औरंगाबाद, प्राचार्य न्यू आर्टस्, कॉमर्स कॉलेज, अहमदनगर, डॉ. गोरख थोरात, हिंदी विभागाध्यक्ष, स. प. महाविद्यालय, पुणे, डॉ. रमेश गुप्ता ‘मिलन’, वरिष्ठ हिंदी लेखक, कवि, कहानीकार, पुणे और श्री. शरददेंदु शुक्ला, वरिष्ठ हिंदी हास्य व्यंग्यकार, कवि , पुणे जी ने मिलकर 300 से अधिक हिंदी पुस्तकें और पत्रिकाएँ भेंट कीं , ये सभी महानुभाव उपस्थित रहें ।  

कार्यक्रम की प्रस्तावना डॉ. प्रेरणा उबाळे ने प्रस्तुत कर सभी अतिथियों का स्वागत किया ।  सभी विद्वानों का सम्मान मॉडर्न महाविद्यालय के आदरणीय प्राचार्य डॉ. राजेंद्र झुंजारराव सर के करकमलों से किया गया ।  सभी मान्यवर हिंदी के सुप्रतिष्ठित लेखक, कवि, अनुवादक, समीक्षक हैं और मॉडर्न महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. राजेंद्र झुंजारराव सर की भी कविता का पाठ हुआ ।  प्राचार्य डॉ. झुंजारराव जी ने हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ . प्रेरणा उबाळे के ग्रंथालय निर्माण हेतु अथक परिश्रम की सराहना की । साथ ही हिंदी विभाग द्वारा आयोजित कार्यक्रमों की प्रशंसा की और अपनी ओर से शुभकामनाएं प्रदान की ।  

हिंदी विभाग में ग्रंथालय की स्थापना में सहायता करनेवाले प्राचार्य डॉ. राजेंद्र झुंजारराव सर तथा मॉडर्न महाविद्यालय और प्रोग्रेसिव एज्युकेशन सोसायटी के प्रति कृतज्ञता का भाव अभिव्यक्त करते हुए प्राचार्य महोदय का सम्मान हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. प्रेरणा उबाळे ने किया ।  

हिंदी विभाग द्वारा आयोजित इस कृतज्ञता ज्ञापन समारोह का आयोजन हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. प्रेरणा उबाळे ने किया और प्रस्तुत कार्यक्रम के आयोजन में हिंदी विभाग के प्रा. असीर मुलाणी एवं  प्रा. संतोष तांबे जी ने सहायता की ।

  –  साभार – डॉ. प्रेरणा उबाळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय 

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ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ ३० सप्टेंबर – संपादकीय – सौ. गौरी गाडेकर ☆ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सौ. गौरी गाडेकर

? ई -अभिव्यक्ती -संवाद ☆ ३० सप्टेंबर – संपादकीय – सौ. गौरी गाडेकर,  ई–अभिव्यक्ती (मराठी) ?

गंगाधर देवराव खानोलकर

गंगाधर देवराव खानोलकर  (19 ऑगस्ट 1903 – 30 सप्टेंबर 1992) हे लेखक, चरित्रकार व पत्रकार होते.

त्यांचा जन्म रत्नागिरी जिल्ह्यातील खानोली गावात झाला.

खानोलकरांचे वडील ज्ञानपिपासू, ग्रंथप्रेमी व माणुसकी हा एकच धर्म मानणारे आणि आई स्वाभिमानी, स्वावलंबी व त्यागी होती. त्यांचे दृढ संस्कार खानोलकरांवर झाले.

त्यांचे प्राथमिक शिक्षण प्रथम घरीच, नंतर सावंतवाडी व मालवण येथे टोपीवाला हायस्कूलमध्ये झाले. असहकार चळवळीत सहभागी झाल्याने ते मॅट्रिकच्या परीक्षेला बसले नाहीत.

यानंतर खानोलकर रवींद्रनाथ टागोरांच्या शांतीनिकेतमध्ये  वाङ्मयाचा विद्यार्थी म्हणून दाखल झाले.तेथे त्यांना थोर विद्वानांचे व रवींद्रनाथांचेही मार्गदर्शन लाभले. भरपूर वाचन, चिंतन, मनन वगैरे शैक्षणिक संस्कार त्यांना आयुष्यभर साहित्यसेवेची प्रेरणा देत राहिले.

त्यानंतर अंमळनेर तत्त्वज्ञान मंदिरात शिष्यवृत्ती मिळवून त्यांनी दोन वर्षे तत्त्वज्ञानाचा सखोल अभ्यास केला.

काही काळ त्यांनी तळेगावच्या राष्ट्रीय विचाराच्या समर्थ विद्यालयात अध्यापन केले.

पुढे ते मुंबईत ‘लोकहित’, ‘विविधवृत्त’, ‘प्रगती’, ‘रणगर्जना साप्ताहिक’, ‘वैनतेय साप्ताहिक’ इत्यादी वृत्तपत्रांचे संपादक झाले.

खानोलकरांनी एकूण 22ग्रंथ लिहिले. अर्वाचीन वाङ्मय (खंड 1 ते 9), श्रीपाद कृष्ण कोल्हटकर चरित्र, वालचंद हिराचंद चरित्र, माधव ज्यूलियन चरित्र,के. बी.ढवळे चरित्र इत्यादी ग्रंथांचा त्यात समावेश होतो.

स्वामी विवेकानंद समग्र वाङ्मय (खंड 1-21), पुणे शहराचे वर्णन, कोल्हटकर लेखसंग्रह, डॉ. केतकरांचे वाङ्मयविषयक लेख, शेजवलकर लेखसंग्रह, धनंजय कीर :व्यक्ती आणि चरित्रकार, सोन्याचे दिवस :बा. ग. ढवळे स्मृतिग्रंथ इत्यादी ग्रंथांचे त्यांनी संपादन केले.

आज त्यांच्या स्मृतिदिनानिमित्त त्यांना आदरांजली!🙏🏻

सौ. गौरी गाडेकर

ई–अभिव्यक्ती संपादक मंडळ

मराठी विभाग

संदर्भ : साहित्य साधना, कऱ्हाड शताब्दी दैनंदिनी, आपलं महानगर, विकीपीडिया.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ आई धावत ये … ☆ सौ.ज्योत्स्ना तानवडे ☆

सौ.ज्योत्स्ना तानवडे

? कवितेचा उत्सव ?

☆ आई धावत ये … ☆ सौ.ज्योत्स्ना तानवडे ☆ 

!!  श्री  !!

तूची माता तूची त्राता | देवी अंबाबाई |

तुझ्या दर्शना आलो आई | धावत ये लवलाही |

आई धावत ये लवलाही ||

☆ 

तुझी ओढ मना अनिवार | दर्शनासी झालो अधीर |

ऐकुनी माझी ही साद | आई सत्वरी दे प्रतिसाद |

सर्व समर्पित तुझ्या ठायी | धावत ये लवलाही |

आई धावत ये लवलाही ||

☆ 

हाके सरसी धावत येसी | भक्तवत्सले अंबाबाई |

लेकरांसी दुखवीत नाही |अगाध माया तुझी ग आई|

किती तुला मी विनवू आई | धावत ये लवलाही |

आई धावत ये लवलाही ||

☆ 

संकटांचा पडला घाला | जीव किती हा घाबरला |

दुःखविमोचिनी तू गे आई | तुझ्याविना जगी त्राता नाही |

एकची आस उरली | धावत ये लवलाही |

आई धावत ये लवलाही || 

☆ 

© सौ.ज्योत्स्ना तानवडे

वारजे, पुणे.५८

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कविता ☆ विजय साहित्य #144 ☆ नवविधा भक्ती ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते ☆

कविराज विजय यशवंत सातपुते

? कवितेचा उत्सव # 144 – विजय साहित्य ?

☆ नवविधा भक्ती ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते ☆

चराचरी सर्वव्यापी, आदिमाया आदिशक्ती

नवदुर्गा नऊरुपे, करूं नवविधा भक्ती. ॥धृ॥

गुण संकीर्तन करू, नाम तुझे आई घेऊ

करू लिलया श्रवण, अंतरात भक्ती ठेऊ.

करूं श्रवण कीर्तन, दूर ठेवोनी आसक्ती…..॥१॥

करूं स्मरण अंबेचे, माय भवानी वंदन

दोन कर ,एक शिर,भाळी भक्तीचे चंदन

आदिशक्ती चरणांत, मिळे भवताप मुक्ती….॥२॥

सत्य, प्रेम ,आनंदाने,करू पाद संवाहन

आई माझी मी आईचा, प्रेममयी आचरण

परापूजा, मूर्तीपूजा, पूजार्चर्नी वाहू भक्ती….॥३॥

शब्द कवड्यांची माळ, दास्य भक्ती स्विकारली

आदिमाया आदिशक्ती, मनोमनी सामावली

नवरात्री उपासना, मनी धरोनी विरक्ती….॥४॥

© कविराज विजय यशवंत सातपुते

सहकारनगर नंबर दोन, दशभुजा गणपती रोड, पुणे.  411 009.

मोबाईल  8530234892/ 9371319798.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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