डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है स्त्री विमर्श पर आधारित एक विचारणीय लघुकथा दिन छुट्टी का ?। डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद  # 139 ☆

☆ लघुकथा – दिन छुट्टी का ?  ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆

रविवार का दिन। छुट्टी के दिन सबके काम इत्मीनान से होते हैं। बच्चे तो दस बजे तक सोकर उठते हैं। रिया सबसे पहले नहाने चली गई, छुट्टी के दिन बाल ना धो तो फिर पूरे हफ्ते समय ही नहीं मिलता। ऑफिस से लौटते हुए सात बज जाते हैं फिर वही रात के खाने की तैयारी। उसने नहाकर पूजा की और सीधे रसोई में चली गई नाश्ता बनाने। रविवार को नाश्ता में कुछ खास चाहिए सबको। आज नाश्ते में इडली बन रही है। नाश्ते करते-करते ही ग्यारह बज गए। बच्चों को आवाज लगाई खाने की मेज साफ करने को। तभी पति की आवाज सुनाई दी –‘सुनो! मेरी पैंट शर्ट भी वाशिंग मशीन में डाल देना। ‘ झुंझला गई – ‘अपने गंदे कपड़े भी धोने को नहीं डालते, बच्चे तो बच्चे ही हैं, पर ये —

बारह बजने को आए, जल्दी से खाने की तैयारी में लग गई। दाल-चावल , सब्जी बनाते-बनाते दो बजने को आए। गरम-गरम फुलके खिलाने लगी सबको। तीन बजे उसे खाना नसीब हुआ। रसोई समेटकर कमर सीधी करने को लेटी ही थी कि बारिश शुरू हो गई। अरे, मशीन से निकालकर कपड़े बाहर डाल दिए थे, जब तक बच्चों को आवाज लगाएगी कपड़े गीले हो जाएंगे, खुद ही भागी। सूखे कपड़े तह करके सबकी अल्मारियों में रख दिए जो थोड़े गीले थे कमरे में सुखा दिए। शाम को फिर वही क्रम रात का खाना, रसोई की सफाई— । छुट्टी के दिन के लिए कई काम सोचकर रखती है पर कई बार रोजमर्रा के काम में ही रविवार निकल जाता है। छुट्टीवाले दिन कुछ ज्यादा ही थक जाती है। छुट्टी का तो इंतजार ही अच्छा होता है बस। थककर चूर हो गई, आँखें बोझिल हो रही थीं कि पति ने धीरे से कंधे पर हाथ रखकर कहा– ‘आज सारा दिन मैं घर पर था पर तुम दो मिनट आकर बैठी नहीं मेरे पास, क्या करती रहीं सारा दिन? प्यार करती हो ना मुझसे? वह जैसे नींद में ही बोली— ‘प्यार?’ आगे कुछ बोले बिना ही वह गहरी नींद में सो गई।

© डॉ. ऋचा शर्मा

प्रोफेसर एवं अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर. – 414001

संपर्क – 122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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