मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆  श्वान परिषद ☆ श्री प्रमोद वामन वर्तक ☆

श्री प्रमोद वामन वर्तक  

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

?  श्वान परिषद श्री प्रमोद वामन वर्तक ☆

बिन मेजाची गोलमेज

भरली होती रस्त्यावर,

आले सगळे आवर्जून

चर्चा करण्या प्रस्तावावर !

*

टॉम, टायगर दोघे होते

श्वान परिषदेचे कन्व्हेंनर,

विसरून सारे जातीभेद

गोल बसले दोन पायावर !

*

तुमच्या त्या उपवासाला 

दूधभात नाही चालणार,

रोजच्या सारखे आम्ही 

चिकन मटणच खाणार !

आमचे भुंकण्याचे स्वातंत्र्य

 तुम्ही कोण हिरावून घेणार ?

 आम्हाला वाटेल तेंव्हा आम्ही

 कधीही, कोणाही चावणार !

*

यापुढे कधी दिलात त्रास

तुम्हांला कोर्टात खेचणार,

आमच्यातर्फे आमची केस

मायबाप “PETA” लढवणार !

मायबाप “PETA” लढवणार !

© प्रमोद वामन वर्तक

संपर्क – दोस्ती इम्पिरिया, ग्रेशिया A 702, मानपाडा, ठाणे (प.) 400610 

मो – 9892561086 ई-मेल – [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #219 – कविता – ☆ तीन मुक्तक… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है “तीन मुक्तक…” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #219 ☆

☆ तीन मुक्तक… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

[1]

हँसी गायब हुई है, अब बची मुस्कान फीकी सी

नहीं दिल में रही, पहले सरीखी चाह मीठी सी

सुहाती है नहीं, आदर्श की बातें तुम्हारी अब,

न जाने क्यूँ लगे मिश्री, हमें अब सुर्ख़ मिर्ची सी।

[2]

बुरा जो वक्त आया तो, किनारे हो गए सारे

उजाले छोड़ कर चलते बने अब संग अँधियारे

चुगाये थे जिन्हें दानें, उड़े अब दूर वे नभ में,

न दूजों से दुखी हम तो, हमारो से ही हैं हारे।

[3]

राह में पत्थर मिले तो, सीढ़िया उनको बना लें

मिले बाधाएँ, परीक्षा समझ उनका हल निकालें

उधारी के उजाले, निश्चित करेंगे दिग्भ्रमित ही

बिना श्रम बिन साधना के, सफलता के भ्रम न पालें।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 43 ☆ खिलखिलाती अमराइयाँ… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “खिलखिलाती अमराइयाँ…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 43 ☆ खिलखिलाती अमराइयाँ… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

हवा कुछ ऐसी चली है

खिलखिलाने लगीं हैं अमराइयाँ।

माघ की ख़ुशबू

सोंधापन लिए है

चटकती सी धूप

सर्दी भंग पिए है

रात छोटी हो गई है

नापने दिन लगे हैं गहराइयाँ।

नदी की सिकुड़न

ठंडे पाँव लेकर

लग गई हैं घाट

सारी नाव चलकर

रेत पर मेले लगे हैं

बड़ी होने लगीं हैं परछाइयाँ।

खेत पीले मन

सरसों हँस रही है

और अलसी,बीच

गेंहूँ फँस रही है

खेत बासंती हुए हैं

बज रहीं हैं गाँव में शहनाइयाँ।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि –  नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि ? ?

बौराये बैठे हैं;

मेरे अजेय

अस्तित्व से

पगलाये बैठे हैं,

मतिशून्य हैं;

नहीं समझते

सत्य, आत्मा

का प्रतिरूप है,

हताश होता है;

परास्त नहीं होता,

आदि-अनादि

कभी समाप्त नहीं होता,

योगेश्वर ने

यों ही नहीं कहा-

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि

नैनं दहति पावक:।

न चैनं क्लेदयन्त्यापो

न शोषयति मारुत:॥

© संजय भारद्वाज  

(सुबह 7:31 बजे, 14.4.2017)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना हम शीघ्र करेंगे। 🕉️ 💥

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ War for… ☆ Hemant Bawankar ☆

Hemant Bawankar

☆ War for… ☆ Hemant Bawankar ☆

I’m crawling

in the battlefield,

towards

widening jaws of death

ready to swallow me.

 

My heart is melting

with moans of wounded knights.

Lightening of shells

and

the thundering of bombs.

 

Instantaneous light smiles

incessant dark laughs

and

I’m hanging between them.

 

I’m feeling

What’s death?

Death is not so easy

as we think.

It’s far beyond

from imagination

and

at the point of

realism.

 

It is felt

once in a life.

 

Soul feeds

respiration and pulsation

to fulfil

the incessant hungry stomach

of wild death.

 

Those are lucky

who return

from jaws of death.

Their experiences and feelings

are far beyond

from our hypothesis.

 

Ah!

Oh! My God!

One more dead,

and one more will die;

may be me

or

yourself.

 

No;

I can’t fight

with life; for life

but,

I’ll not make

my hands up

I’ll wait

for death!

 

That dangerous death

in the lap of whose

thousands of knights slept

in battlefield

on the earth

vigorous than any world war

the life’s war!

11th August 1977

(This poem has been cited from my book The Variegated Life of Emotional Hearts”.)

© Hemant Bawankar

Pune

≈ Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM 

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Poetry,
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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 295 ⇒ दाहिना हाथ… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “दाहिना हाथ।)

?अभी अभी # 295 ⇒ दाहिना हाथ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

right hand

हम सबके शरीर में दो हाथ और दो पांव हैं। दाहिना और बायां।

एक पांव से भी कहीं चला जाता है। कुछ जानवर तो चौपाये भी होते है, वहां उन्हें दो हाथों की सुविधा नहीं होती। एक से भले दो। एक अकेला थक जाता है इसलिए दोनों हाथ मिल जुलकर आसानी से काम निपटा लेते हैं। किसी से अगर दो दो हाथ करने पड़े, तो दोनों हाथ एक हो जाते हैं। एक हाथ से कहां काम होता है, प्रार्थना में भी दोनों हाथ जुड़ ही जाते हैं।

खाने के लिए मुंह हमें भगवान ने भले ही एक दिया हो, लेकिन वहां भी वह देखने के लिए मस्त मस्त दो नैन और सुनने के लिए दो दो कान देना नहीं भूला। नासिका भले ही हमें एक ही नजर आती हो, लेकिन वहां भी उसके दो द्वार हैं, आगम निगम। सांस इधर से अंदर, उधर से बाहर। हम भले ही ज्यादा अंदर नहीं झांकें, फिर भी दो दो किडनी और एक दिल और सौ अफसाने।।

वैसे तो अपना हाथ जगन्नाथ है ही, लेकिन हमारे दाहिने हाथ के साथ कुछ विशेष बात है। आपने शायद एक्स्ट्रा ab के बारे में नहीं सुना हो, लेकिन हर व्यक्ति के पास एक एक्स्ट्रा दाहिना हाथ होता है, जिसे आप अंग्रेजी में राइट हैंड भी कह सकते हैं। लेकिन यह हाथ अदृश्य होते हुए भी, मौका आने पर सबको नज़र आता है।

यह कोई पहेली नहीं, महज एक कहावत नहीं, एक हकीकत है। जो व्यक्ति संकट में, मुसीबत में, अथवा जरूरत पड़ने पर हमेशा आपके काम आता है, उसे आपका दाहिना हाथ ही कहा जाता है। कहीं कहीं तो गर्व से उस व्यक्ति का परिचय भी कराया जाता है। ये मेरे दाहिने हाथ हैं।

He is my right hand.

He or she, it doesn’t matter. कभी मेरी बहन मेरी राइट हैंड थी, तो उसके बाद एक परम मित्र मेरे जीवन में आए, जो वास्तव में मेरे दाहिने हाथ ही थे।।

हम सबके जीवन में कभी ना कभी ऐसे हितैषी अथवा सहयोगी का प्रवेश अवश्य होता है, जो हमारे हर काम में हमारा हाथ बंटाता है। उसके पीछे उसका कोई स्वार्थ नहीं होता। केवल

परिस्थितिवश ही ऐसे दाहिने हाथ हमसे अलग हो सकते हैं, जिसका हमें हमेशा मलाल और अफसोस बना रहता है।

राजनीति में आपको कई दाहिने हाथ नजर आ जाएंगे, लेकिन कौन कब तक साथ निभाएगा, कुछ कहा नहीं जा सकता। यहां दाहिने हाथ तो कम ही होते हैं, strange bed fellows ही अधिक होते हैं। कोई नीतीश कब किसके साथ नातरा कर ले, कुछ कहा नहीं जा सकता। समय समय का फेर है। फिलहाल तो सत्ता के आसपास, एक नहीं कई, दाहिने हाथ नजर आ रहे हैं, जिनमें आजकल हाथ तो काम, पंजे ही अधिक दिखाई दे रहे हैं।।

जब तक इस संसार में इंसानियत है, हमारी नीयत साफ है, हमारे जीवन में भी, ऐसे दाहिने हाथ जरूर आते रहते हैं। अपने दोनों हाथों के लिए तो हम ईश्वर को धन्यवाद देते ही हैं, साथ ही उन सभी दाहिने हाथों को भी नमन करते हैं, जिन्होंने मुसीबत में किसी का हाथ थामा है, सुख दुख में सदा उनका साथ दिया है। निर्बल के बल राम। हम भी किसी के दाहिने हाथ बन सकें, ईश्वर हमें भी ऐसा अवसर प्रदान करे।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ जिया जो उम्र भर दामन बचाकर… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “जिया जो उम्र भर दामन बचाकर“)

✍ जिया जो उम्र भर दामन बचाकर… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

ये आदम जात की फ़ितरत तो देखो

बिकाऊ हो गई उलफ़त तो देखो

*

रहा जो उम्र भर बस रोनकों में

ये कब्रिस्तान की खलबत तो देखो

*

शरीफों की नहीं अब पूछ कोई

गुनहगारों की है इज्ज़त तो देखो

*

हुए शैतान के वंदे ख़ुदा के

परस्पर कर रहे नफ़रत तो देखो

*

जिया जो उम्र भर दामन बचाकर

उसी से हो गई गफ़लत तो देखो

*

पिता के सामने बेटा चला है

ये कैसी हो रही रुख़सत तो देखो

*

करेगी राज रानी बनके बेटी

किसी मुफ़लिस की ये हसरत तो देखो

*

कलम अखबार टी व्ही हाथ जोड़े

अरुण सरकार की दहशत तो देखो

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ लघुकथा – 12 – दलदल ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ ☆

श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा –  गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी,  संस्मरण,  आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – दलदल।)

☆ लघुकथा – दलदल ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

वह युवा शिक्षिका सभी लोगों को तिरंगे परिधान में देखकर एक गहन चिंता में खो गई और अचानक उसके मुंह से निकल गया-

” अरे आज 2 अक्टूबर है?”

गांधी जी के सादा जीवन और उच्च विचार से अवगत कराएंगे,इसी उधेड़बुन में वह जल्दबाजी में चल पड़ी।

चारों तरफ देश के प्रति सम्मान बिखरा पड़ा है,लेकिन अच्छा है  बापू आज नहीं है….. उनके नाम पर जाने क्या-क्या होता है?

स्कूल के सभागार में पहुंच गई।

वहाँ बापू की प्रतिमा पर फूलों के हार चढ़ाने के बाद  सभागृह में सभी उपस्थित लोगों ने भाषण दिया।

शाकाहारी को भोजन हर सार्वजनिक स्थल पर मिलना चाहिए। मांसाहार की दुकानों को बंद करवाने की सफलता का गुणगान में रत।

चारों तरफ जश्न…लाउडस्पीकर पर देशभक्ति, बापू-भक्ति के गाने।

बापू के सिद्धांतों को प्रतिपादित करते हुए 3 बच्चे नजर आए,

बुरा मत देखो बुरा मत सुनो और बुरा मत बोलो की मुद्रा में बैठे थे।

क्या इन बच्चों को इसका मतलब समझ आ रहा है, उसे देखकर  अच्छा भी लगा और हंसी भी आ गई।

क्या यह आज के युग में संभव है?

सभा समाप्त हुई।

रास्ते में उसे सभागृह में उपस्थित जो व्यक्ति उपदेश दे रहे थे वही व्यक्ति छोटी-छोटी बातों पर एक-दूसरे पर लाठी ताने, गाली दे रहे थे ।

कानों में लाउडस्पीकर शोर उड़ेल रहा था –

दे दी हमें आजादी

बिना खड्ग, बिना ढाल…!

गांधीजी के स्वच्छ भारत और नशा मुक्ति अभियान को क्या जनमानस समझ पाएगा!

अरे! यह क्या?

मैं यह कहां फंस गई…

गाड़ी को क्या हो गया?

देश भी तो धार्मिक, जातिवाद, गरीबी, अशिक्षा, सामाजिक कुरीतियों के बंधन में जकड़ा हैं।

मैंने तो अपनी गाड़ी को इस दलदल से निकाल लिया …

भारतवर्ष इस दलदल से कैसे निकलेगा….?

© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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सूचनाएँ/Information ☆ रचनाएँ आमंत्रित – साप्ताहिक स्तम्भ – कहां गए वे लोग? ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय संपादक ई-अभिव्यक्ति (हिन्दी)☆

 ☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

🌹रचनाएँ आमंत्रित – साप्ताहिक स्तम्भ – कहां गए वे लोग? 🌹

आपकी अपनी प्रिय वेब पत्रिका ‘ई-अभिव्यक्ति’ जिसे हिन्दी, मराठी और अंग्रेजी के लाखों पाठक प्रतिदिन पढ़ते और पसंद करते हैं में  इस सप्ताह से प्रत्येक सोमवार को साप्ताहिक स्तम्भ – कहाँ गए वे लोग? का प्रकाशन प्रारम्भ किया गया है। इस स्तम्भ को हमारे प्रबुद्ध पाठकों का अभूतपूर्व प्रतिसाद मिल रहा है। 

इस ऐतिहासिक स्तम्भ में हम अपने आसपास की ऐसी महान हस्तियों की जानकारी प्रकाशित करते हैं जो आज हमारे बीच नहीं हैं किन्तु, उन्होने देश के स्वतंत्रता संग्राम, साहित्यिक, सामाजिक या अन्य किसी क्षेत्र में अविस्मरणीय कार्य किया है।  

इस संदर्भ में आपसे अनुरोध है कि आपअपने क्षेत्र की ऐसी महान हस्तियों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर उनके उल्लेखनीय कार्यों का विवरण लिखकर उनकी एक फोटो के साथ हमें वाट्स अप नंबर 9977318765 पर प्रेषित करें। साथ ही अपना परिचय और फोटो भी प्रकाशनार्थ प्रेषित कीजिये। 

संपर्क – श्री जय प्रकाश पाण्डेय, संपादक ई-अभिव्यक्ति (हिन्दी), मोबाइल न – 9977318765)

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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सूचनाएँ/Information ☆ वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’ अनंत में विलीन – विनम्र श्रद्धांजलि ☆

 ☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

🙏 💐 वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’ अनंत में विलीन – विनम्र श्रद्धांजलि 💐🙏

जबलपुर। प्रतिष्ठित साहित्यकार, लगभग 40 कृतियों के रचयिता, पाथेय साहित्य कला अकादमी के संस्थापक कविवर डॉ. राजकुमार तिवारी सुमित्र का कल दिनांक 27 फरवरी 2024 को रात्रि 10 बजे 85 वर्ष की उम्र में निधन हो गया।

आप डॉक्टर भावना तिवारी, श्रीमती कामना, एवं चिरंजीव डॉ. हर्ष कुमार तिवारी के पिता, बाल पत्रकार बेटी प्रियम के पितामह एवं हम सब साहित्य अनुरागियों तथा नए युवा साहित्यकारों के  प्रेरणा स्रोत अब हमारी स्मृतियों में शेष रहेंगे।

70 के दशक से सतत गुरुवर का  मार्गदर्शन एवं आशीर्वाद मेरे लिए अविस्मरणीय है। ई-अभिव्यक्ति में आपके “साप्ताहिक स्तम्भ – सुमित्र की लेखनी से” को अब विराम मिल गया।  

डॉ. सुमित्र ने अनेक समाचार पत्रों में सम्पादकीय सेवाएं दी ।आप प्रदेश ही नही, सम्पूर्ण देश की साहित्यिक धारा के संवाहक रहे। लगभग 6 दशक उन्होंने साहित्य की अप्रतिम सेवा की।

  – हेमन्त बावनकर, पुणे  

🙏 मैं पीढ़ा का राजकुंवर हूँ… के सृजनकर्ता सुमित्र जी का महाप्रयाण – श्री गिरीश बिल्लोरे मुकुल 🙏

70 के दशक में अगर किसी महान  व्यक्तित्व से मुलाकात हुई थी तो वे थे डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” जी।

सुमित्र जी के माध्यम से साहित्य जगत को पहचान का रास्ता मिला था। गौर वर्णी काया के स्वामी, मित्रों के मित्र, और राजेश पाठक प्रवीण के  साहित्यिक गुरु डॉक्टर राजकुमार सुमित्र जी के कोतवाली स्थित आवास में देर रात तक गोष्ठियों में शामिल होना, अपनी बारी का इंतजार करना उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण होता था उनके व्यक्तित्व से लगातार सीखते रहना। स्व. श्री घनश्याम चौरसिया “बादल” के माध्यम से उनके घर में आयोजित एक कवि गोष्ठी में स्वर्गीय बाबूजी के साथ देर रात तक हुई बैठक में लगा कि यह कवि गोष्ठी नहीं बल्कि कवियों को निखारने की कार्यशाला है।

धीरे-धीरे कभी ऐसी घरेलू बैठकों की आदत सी पड़ चुकी थी। वहीं शहर के नामचीन साहित्यकारों से मुलाकात हुआ करती थी। उनके कोतवाली के पीछे वाले घर को साहित्य का मंदिर कहना गलत न होगा।

तट विहीन तथाकथित प्रगतिशील कविताओं के दौर में गीत, छंद, दोहा सवैया, कवित्त, आदि के अनुगुंजन ने लेखन को नई दिशा दी थी।

गेट नंबर 2 के पास स्थित नवीन दुनिया प्रेस में बतौर साहित्य संपादक सुमित्र जी द्वारा नारी-निकुंज औसत रूप से सर्वाधिक बिकने वाला संस्करण हुआ करता था।

हमें भी दादा अक्सर पूरे अंक में लिखने की छूट देते थे। कविता के साथ कंटेंट क्रिएशन की शिक्षा शशि जी और सुमित्र जी से ही हासिल की है।

अभी-अभी पूज्य सुमित्र जी के महाप्रयाण का समाचार राजेश के व्हाट्सएप संदेश के जरिए मिला।

वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.राजकुमार तिवारी सुमित्र का निधन जबलपुर के साहित्यिक समाज के लिए एक दुखद प्रसंग है। नए स्वर नए गीत कार्यक्रम की श्रृंखला प्रारंभ कर पूज्य गुरुदेव सुमित्र जी ने सार्थक सृजन को दिशा प्रदान की है। वे अक्सर कहते थे कि-“उससे बड़ा सौभाग्यशाली कोई नहीं जिसके घर में साहित्यकारों के चरणरज न गिरें।”

अपने आप को पीड़ा का राजकुमार कहने वाले दादा ने ये भी कहा – ” दर्द की जागीर है, बाँट रहा हूँ प्यार।”

गायत्री कथा सम्मान के संस्थापक सुमित्र जी नगर के हर एक रचना कार्य और साहित्य साधकों के केंद्र बिंदु हुआ करते थे। उनकी साहित्यिक सक्रियता से शहर जबलपुर साहित्य साधना का केंद्र था। सृजनकर्ता को दुलारना,उसे मजबूती देना, यहां तक की प्रकाशित करना भी उनका ही दायित्व बन गया था। हम तो उनके आजीवन ऋणी है।

जबलपुर ही नही प्रदेश के प्रतिष्ठित साहित्यकार, लगभग 40 कृतियों के रचयिता, पाथेय साहित्य कला अकादमी के संस्थापक कविवर डॉ. राजकुमार तिवारी सुमित्र का आज दिनांक 27 फरवरी 2024 को  रात्रि 10  बजे 85 वर्ष की उम्र में निधन हो गया ।

सुमित्र जी डॉक्टर भावना तिवारी, श्रीमती कामना , एवं चिरंजीव डॉ. हर्ष कुमार तिवारी के पिता, बाल पत्रकार बेटी प्रियम के पितामह एवं हम सब साहित्य अनुरागीयों तथा नए युवा साहित्यकारों के  प्रेरणा स्रोत अब हमारी स्मृतियों में शेष रहेंगे।

डॉ. सुमित्र ने अनेक समाचार पत्रों में सम्पादकीय सेवाएं  दी ।

आप प्रदेश ही नही. देश, प्रदेश की साहित्यिक धारा के संवाहक रहे। यूरोप में भी भारतीय साहित्य का परचम लहराने वाली इस शख्सियत ने लगभग सात दशक साहित्य की अप्रतिम सेवा की है।

 – श्री गिरीश बिल्लोरे मुकुल, जबलपुर 

🙏 ई-अभिव्यक्ति परिवार की ओर से डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’ जी को विनम्र श्रद्धांजलि 🙏

 ≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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