श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “दाहिना हाथ।)

?अभी अभी # 295 ⇒ दाहिना हाथ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

right hand

हम सबके शरीर में दो हाथ और दो पांव हैं। दाहिना और बायां।

एक पांव से भी कहीं चला जाता है। कुछ जानवर तो चौपाये भी होते है, वहां उन्हें दो हाथों की सुविधा नहीं होती। एक से भले दो। एक अकेला थक जाता है इसलिए दोनों हाथ मिल जुलकर आसानी से काम निपटा लेते हैं। किसी से अगर दो दो हाथ करने पड़े, तो दोनों हाथ एक हो जाते हैं। एक हाथ से कहां काम होता है, प्रार्थना में भी दोनों हाथ जुड़ ही जाते हैं।

खाने के लिए मुंह हमें भगवान ने भले ही एक दिया हो, लेकिन वहां भी वह देखने के लिए मस्त मस्त दो नैन और सुनने के लिए दो दो कान देना नहीं भूला। नासिका भले ही हमें एक ही नजर आती हो, लेकिन वहां भी उसके दो द्वार हैं, आगम निगम। सांस इधर से अंदर, उधर से बाहर। हम भले ही ज्यादा अंदर नहीं झांकें, फिर भी दो दो किडनी और एक दिल और सौ अफसाने।।

वैसे तो अपना हाथ जगन्नाथ है ही, लेकिन हमारे दाहिने हाथ के साथ कुछ विशेष बात है। आपने शायद एक्स्ट्रा ab के बारे में नहीं सुना हो, लेकिन हर व्यक्ति के पास एक एक्स्ट्रा दाहिना हाथ होता है, जिसे आप अंग्रेजी में राइट हैंड भी कह सकते हैं। लेकिन यह हाथ अदृश्य होते हुए भी, मौका आने पर सबको नज़र आता है।

यह कोई पहेली नहीं, महज एक कहावत नहीं, एक हकीकत है। जो व्यक्ति संकट में, मुसीबत में, अथवा जरूरत पड़ने पर हमेशा आपके काम आता है, उसे आपका दाहिना हाथ ही कहा जाता है। कहीं कहीं तो गर्व से उस व्यक्ति का परिचय भी कराया जाता है। ये मेरे दाहिने हाथ हैं।

He is my right hand.

He or she, it doesn’t matter. कभी मेरी बहन मेरी राइट हैंड थी, तो उसके बाद एक परम मित्र मेरे जीवन में आए, जो वास्तव में मेरे दाहिने हाथ ही थे।।

हम सबके जीवन में कभी ना कभी ऐसे हितैषी अथवा सहयोगी का प्रवेश अवश्य होता है, जो हमारे हर काम में हमारा हाथ बंटाता है। उसके पीछे उसका कोई स्वार्थ नहीं होता। केवल

परिस्थितिवश ही ऐसे दाहिने हाथ हमसे अलग हो सकते हैं, जिसका हमें हमेशा मलाल और अफसोस बना रहता है।

राजनीति में आपको कई दाहिने हाथ नजर आ जाएंगे, लेकिन कौन कब तक साथ निभाएगा, कुछ कहा नहीं जा सकता। यहां दाहिने हाथ तो कम ही होते हैं, strange bed fellows ही अधिक होते हैं। कोई नीतीश कब किसके साथ नातरा कर ले, कुछ कहा नहीं जा सकता। समय समय का फेर है। फिलहाल तो सत्ता के आसपास, एक नहीं कई, दाहिने हाथ नजर आ रहे हैं, जिनमें आजकल हाथ तो काम, पंजे ही अधिक दिखाई दे रहे हैं।।

जब तक इस संसार में इंसानियत है, हमारी नीयत साफ है, हमारे जीवन में भी, ऐसे दाहिने हाथ जरूर आते रहते हैं। अपने दोनों हाथों के लिए तो हम ईश्वर को धन्यवाद देते ही हैं, साथ ही उन सभी दाहिने हाथों को भी नमन करते हैं, जिन्होंने मुसीबत में किसी का हाथ थामा है, सुख दुख में सदा उनका साथ दिया है। निर्बल के बल राम। हम भी किसी के दाहिने हाथ बन सकें, ईश्वर हमें भी ऐसा अवसर प्रदान करे।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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