श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है “तीन मुक्तक…” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #219 ☆

☆ तीन मुक्तक… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

[1]

हँसी गायब हुई है, अब बची मुस्कान फीकी सी

नहीं दिल में रही, पहले सरीखी चाह मीठी सी

सुहाती है नहीं, आदर्श की बातें तुम्हारी अब,

न जाने क्यूँ लगे मिश्री, हमें अब सुर्ख़ मिर्ची सी।

[2]

बुरा जो वक्त आया तो, किनारे हो गए सारे

उजाले छोड़ कर चलते बने अब संग अँधियारे

चुगाये थे जिन्हें दानें, उड़े अब दूर वे नभ में,

न दूजों से दुखी हम तो, हमारो से ही हैं हारे।

[3]

राह में पत्थर मिले तो, सीढ़िया उनको बना लें

मिले बाधाएँ, परीक्षा समझ उनका हल निकालें

उधारी के उजाले, निश्चित करेंगे दिग्भ्रमित ही

बिना श्रम बिन साधना के, सफलता के भ्रम न पालें।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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