हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #196 ☆ संतोष के दोहे – ऊँचे हिमगिरि के शिखर ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है संतोष के दोहे  – ऊँचे हिमगिरि के शिखरआप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 196 ☆

☆ संतोष के दोहे  – ऊँचे हिमगिरि के शिखर ☆ श्री संतोष नेमा ☆

भारत का मोहक मुकुट, है अपना कश्मीर

इस धरती पर स्वर्ग-सी, है  जिसकी तस्वीर

सुंदर छटा  लुभावनी, अमरनाथ शिव-धाम

मानस रमता है वहाँ, घाटी ललित ललाम।

धारा हटते ही हटी,सबके मन की पीर

बनी हुईं कश्मीर पर, टूटी सभी लकीर।

अभिन्नांग है देश का,जम्मू औ कश्मीर

अलग न कोई कर सके,पैदा हुआ न वीर

चौतरफा रौनक दिखे,केसर घुली जुबान

सुभग शिकारे तैरते, झीलों की पहचान

कहता सीना तान कर,मुझसे ऊँचा कौन

सुंदर पेड़ चिनार के,रहते कभी न मौन

ऊँचे हिमगिरि के शिखर,माँ वैष्णव का धाम

जिनके दर्शन से बनें,सबके बिगड़े काम

वहाँ तिरंगे का बढ़ा,आज बहुत सम्मान

बदल गई आबोहवा,हुई सुरक्षित आन

आज गर्व से कह रहा,एक बात “संतोष”

अब अखंड भारत हुआ,बढ़ा एकता कोष

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – दर्शन ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – दर्शन ? ?

जब नहीं बचा रहूँगा मैं

और बची रहेगी सिर्फ देह,

उसने सोचा…,

सदा बचा रहूँगा मैं

और कभी-कभार नहीं रहेगी देह,

उसने दोबारा सोचा…,

पहले से दूसरे विचार तक

पड़ाव पहुँचा,

उसका जीवन बदल गया…,

दर्शन क्या बदला,

जो नश्वर था तब

ईश्वर हो गया अब…!

© संजय भारद्वाज 

(रात्रि 11: 53 बजे, 28.2 2020)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना हम शीघ्र करेंगे। 🕉️ 💥

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #29 ☆ कविता – “अभी तो मैं जवान हूँ…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 29 ☆

☆ कविता ☆ “अभी तो मैं जवान हूँ…☆ श्री आशिष मुळे ☆

दिमाग की तलवार हूँ

समय की मैं धार हूँ

चढ़ता हुआ नशा हूँ

मैं बढ़ती हुई रात हूँ

अभी तो मैं जवान हूँ ।

 

दरिया हूँ भरा हुआ

कश्तियों की जान हूँ

जिगर की मैं शान हूँ

दिल की एक आन हूँ

अभी तो मैं जवान हूँ ।

 

वक्त की जो धूप है

सावन की ये आग है

फूलों की एक छांव हूँ

काँटों की मैं मौत हूँ

अभी तो मैं जवान हूँ ।

 

ज़ुल्फों की जो चांदी है

वो तो गुजरी आंधी है

चमकता एक अंदाज हूँ

जैसे कोई बाज हूँ

अभी तो मै जवान हूँ ।

 

जंगे पाया हजार हूँ

फिर भी आज जिंदा हूँ

पीकर भी एक प्यासा हूँ

जिंदगी का मैं प्यार हूँ

अभी तो मैं जवान हूँ ।

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆विश्व हिन्दी दिवस विशेष  – “अभिमान बनी हिन्दी भाषा…” ☆ डॉ निशा अग्रवाल ☆

डॉ निशा अग्रवाल

☆ विश्व हिन्दी दिवस विशेष  – “अभिमान बनी हिन्दी भाषा…” ☆ डॉ निशा अग्रवाल

जान बनी अभिमान बनी हिन्दी भाषा तो अपनी

हर जन की ह्रदय प्रिय बनी हिन्दी भाषा तो अपनी

हिंदुस्तानी हम है तो हिंदी का मान बढ़ाएं

हिंदी भाषी लोगों से हम कभी नहीं कतराएं।

अहसास गर्व का करवाती हिंदी भाषा ही अपनी

हर मन के भाव समझाती हिंदी भाषा ही अपनी

जान बनी अभिमान बनी हिन्दी भाषा तो अपनी

हर दिल की अज़ीज़ बनी हिन्दी भाषा तो अपनी

☆ 

घर परिवार समाज को बांधे एक सूत्र में हिंदी

सारेगामा सात सुरों को साजे ताल में हिंदी

संस्कारों को चिन्हित करती हिंदी भाषा ही अपनी

मनमोहक चित्रण भी करती हिंदी भाषा ही अपनी

☆  

जान बनी अभिमान बनी हिन्दी भाषा तो अपनी

हर दिल की अज़ीज़ बनी हिन्दी भाषा तो अपनी

☆ 

मीरा, तुलसी के दोहे हिंदी भाषा में बने हैं

निर्गुण भाव कबीरा और  वात्सल्य रसखान भरे हैं

गद्य पद्य दोहे सूक्ति मिल पुस्तक बन जाती हिंदी

नैतिक शिक्षा, ज्ञान, विज्ञान में छाप छोड़ती हिंदी

☆ 

जान बनी अभिमान बनी हिन्दी भाषा तो अपनी

हर दिल की अज़ीज़ बनी हिन्दी भाषा तो अपनी

☆ 

छंदबद्ध, मुक्त छंद काव्य सब हिंदी में रचे गए हैं

शोध ग्रंथ, पाठ्यक्रम पुस्तक सहज ही पढ़े गए हैं

जटिल तथ्य को सहज बनाती हिंदी भाषा ही अपनी

उमंग, खुशी की लहर जगाती हिंदी भाषा ही अपनी

☆ 

जान बनी अभिमान बनी हिन्दी भाषा तो अपनी

हर दिल की अज़ीज़ बनी हिन्दी भाषा तो अपनी

©  डॉ निशा अग्रवाल

(ब्यूरो चीफ ऑफ जयपुर ‘सच की दस्तक’ मासिक पत्रिका)

एजुकेशनिस्ट, स्क्रिप्ट राइटर, लेखिका, गायिका, कवियत्री

जयपुर ,राजस्थान

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 189 ☆ बाल गीत – चंदा मामा, चंदा मामा ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 189 ☆

☆ बाल गीत – चंदा मामा, चंदा मामा ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

चंदा मामा, चंदा मामा

हमने सुंदर चित्र बनाए

हम लाए कुर्ता , पाजामा

तुमको पहनाकर  हरषाए।।

 

देखो चित्र एक अपना तो

जिसमें सूत कातती माता

गोल पूर्णिमा की आभा से

धरती का हर जीव सुहाता

 

खीर पेट भर खा लो मामा

काजू , किशमिस फल भी लाए।।

 

देखो एक चित्र अपना तो

चपटी लगे कछुआ – सी पीठ

कभी नारियल – से भूरे हो

कभी लगते बच्चों – से ढीठ

 

देख तुम्हारी सूरत , मूरत

रोज – रोज ही हम मुस्काए।।

 

तरबूजे की खाँफ सरीखे

रसगुल्ला – से लगते सफेद

रूप बनाते न्यारे – न्यारे

और न कभी तुम करते भेद

 

रात तुम्हारी मित्र अनोखी

रोज प्रेम से तुम बतलाए।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #212 – कविता – ☆ माँ के बुने हुए स्वेटर से… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपके माँ के बुने हुए स्वेटर से…”।)

☆ तन्मय साहित्य  #212 ☆

☆ माँ के बुने हुए स्वेटर से… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

लगे काँपने कंबल

बेबस हुई रजाई है

ठंडी ने इस बार

जोर से ली अँगड़ाई है।।

 

सर्द हवाएँ सुई चुभाए

ठंडे पड़े बदन

ओढ़ आढ़ कर बैठे लेटें

यह करता है मन,

बालकनी की धूप

मधुर रसभरी मलाई है।

ठंडी में…

 

 धू-धू कर के लगी जलाने

 जाड़े की गर्मी

 रूखी त्वचा सिकुड़ते तन में

 नष्ट हुई नरमी,

 घी-तेलों से स्नेहन की

 अब बारी आई है।

 ठंडी ने….

 

बाजारु जरकिनें विफल

मुँह छिपा रहे हैं कोट

ईनर विनर नहीं रहे

उनमें भी आ गई खोट,

माँ के बुने हुए स्वेटर से

राहत पाई है।

ठंडी ने….

 

घर के खिड़की दरवाजे

सब बंद करीने से

सिहरन भर जाती है

तन में पानी पीने से,

सूरज की गुनगुनी धूप से

प्रीत बढ़ाई है।

ठंडी ने….

 

कैसे जले अलाव

पड़े हैं ईंधन के लाले

जंगल कटे,निरंकुश मौसम

लगते मतवाले

प्रकृति दोहन स्पर्धा की अब

छिड़ी लड़ाई है।

ठंडी ने….।।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 36 ☆ आदमी… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “आदमी…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 36 ☆ आदमी… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(एक पुराना गीत)

एक मिट्टी का

घड़ा है आदमी

छलकते अहसास से रीता।

 

मुँह कसी है

डोर साँसों की

ज़िंदगी अंधे कुँए का जल,

खींचती है

उम्र पनहारिन

आँख में भ्रम का लगा काजल

 

झूठ रिश्तों पर

खड़ा है आदमी

व्यर्थ ही विश्वास को जीता।

 

दर्द से

अनवरत समझौता

मन कोई

उजड़ा हुआ नगर

धर्म केवल

ध्वजा के अवशेष

डालते बस

कफ़न लाशों पर

 

बड़प्पन ढोता

है अदना आदमी

बाँचता है कर्म की गीता।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ ये रोशनी से नहाए भवन है बेमानी… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “ये रोशनी से नहाए भवन है बेमानी“)

✍ ये रोशनी से नहाए भवन है बेमानी… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

ख़ुशी की जलती कहीं पे मशाल अब भी है

हमारे  घर में खुशी का अकाल अब भी है।

बदल गया है कलेंडर महज दीवारों पर

जो हाल पहले था वैसा ही हाल अब भी है

ये आ गया है नया साल बस मिथक हमको

हमारी रोज़ी का वो ही सवाल अब भी है

ये चौचले है रहीसों के जश्न मनते सब

श्रमिक के हाथ में देखो कुदाल अब भी है

ये रोशनी से नहाए भवन है बेमानी

गरीब घर में जो मकड़ी का जाल अब भी है

ये नाम अम्न के बारूद जो जमा रख्खा

विनाश करने उसका इस्तेमाल अब भी है

किसी के गाल से चिकनी सड़क के दावे भर

सड़क पे चैन से चलना मुहाल अब भी है

सबक न वक़्त से कुछ सीख ले के सीख सके

अरुण ये धर्म पे होता वबाल अब भी है

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 35 – कसक… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – कसक…।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 35 – कसक… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

हुक्मरानों के आगे, निडर है ग़ज़ल 

लेकर विद्रोही तेवर, मुखर है ग़ज़ल

घुंघरू परतंत्रता के, न पाँवों में अब 

आशिकी का, न केवल हुनर है ग़ज़ल

हर्म से अब नवाबों के, बाहर निकल 

होकर आजाद, फुटपाथ पर है ग़ज़ल

महफिलों का, न केवल ये शृंगार है 

जिन्दगी का, समूचा सफर है ग़ज़ल

ऐशो-आराम का मखमली पथ नहीं 

कंटकों, पत्थरों की डगर, है ग़ज़ल

खेत-खलिहान, जंगल, नदी, ताल, जल

मोट, हल, बैलगाड़ी, बखर है ग़ज़ल 

गाँव, तहसील, थाना, कचहरी जिला 

राष्ट्र क्या, विश्व से बाखबर है ग़ज़ल

प्रान्त, भाषा न मजहब की सीमा यहाँ 

आप जायें जिधर, ये उधर है गजल

मुक्तिका, गीतिका, तेवरी कुछ कहें 

आज हिन्दी में भी, शीर्ष पर है ग़ज़ल

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 111 – मनोज के दोहे… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 111 – मनोज के दोहे… ☆

1 नया साल

नया साल यह आ गया, लेकर खुशी अपार।

जन-मन हर्षित आज है, झूम उठा संसार।।

2 नववर्ष

स्वागत है नव वर्ष का,  देश हुआ खुशहाल।

विश्व जगत में अग्रणी, उन्नत-भारत-भाल।।

3 शुभकामना

मोदी की शुभकामना, मिले सभी को मान।

देश तरक्की पर बढ़े, बने विश्व पहचान ।।

4 दो हजार चौबीस

लेकर खुशियाँ आ रहा, दो हजार चौबीस ।

भूलो अब तेईस को, मिला राम आसीस।।

5 अभिनंदन

अभिनंदन है आपका, नए वर्ष पर आज।

कार्य सभी संपन्न हों, बिगड़ें कभी न काज।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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