हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 72 – मुझमें है मेरा कातिल… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – मुझमें है मेरा कातिल।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 72 – मुझमें है मेरा कातिल… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

मुझमें है मेरा कातिल, मुझको पता न था 

साजिश में तुम हो शामिल, मुझको पता न था

*

जिसने डुबाई कश्ती, था आसरा उसी का

दुश्मन बनेगा साहिल, मुझको पता न था

*

विष ब्याल है प्रदूषण, कितने करीब उनके 

हैं लोग इतने गाफिल, मुझको पता न था

*

हम वृक्ष पूजते हैं, वे उनको काटते हैं 

हमको कहेंगे जाहिल, मुझको पता न था

*

बेटे हुनर बताते हैं, कामयाबियों के 

वे हो गये हैं काबिल, मुझको पता न था

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 145 – मनोज के दोहे – हिन्दी हिन्दुस्तान के…☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “हिन्दी हिन्दुस्तान के… । आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 145 – हिन्दी हिन्दुस्तान के…

(14 सितम्बर हिन्दी दिवस पर दोहे)

माथे पर बिंदी सजी, भारत माँ के आज।

देख रहा जग आज है, कल पहनेंगे ताज।।

*

हिन्दी हिन्दुस्तान के,  दिल पर करती राज।

आजादी के वक्त भी,  यही रही सरताज।।

*

संस्कारों में है पली,  इसकी हर मुस्कान।

संस्कृति की रक्षक रही,  भारत की पहचान।।

*

स्वर शब्दों औ व्यंजनों, का अनुपम भंडार।

वैज्ञानिक लिपि भी यही, कहता है संसार।।

*

भावों की अभिव्यक्ति में, है यह चतुर सुजान।

करते हैं सब वंदना,  भाषा विद् विद्वान ।।

*

देव नागरी लिपि संग,  बना हुआ गठजोड़।

स्वर शब्दों की तालिका,  में सबसे बेजोड़।।

*

संस्कृत की यह लाड़ली,  हर घर में सत्कार।

प्रीति लगाकर खो गए,  हर कवि रचनाकार ।।

*

तुलसी सबको दे गए,  मानस का उपहार।

सूरदास रसखान ने,  किया बड़ा उपकार ।।

*

जगनिक ने आल्हा रची,  वीरों का यशगान।

मीरा संत कबीर ने,  गाए प्रभु गुण गान।।

*

मलिक मोहम्मद जायसी,  रहिमन औ हरिदास।

इनको जीवन में सदा, आई हिन्दी रास।।

*

दुनिया में साहित्य की, हिन्दी बनी है खास।

विद्यापती पद्माकर , भूषण केशवदास।।

*

चंदवरदायी खुसरो,  पंत निराला नूर।

जयशँकर भारतेन्दु जी,  हैं हिन्दी के शूर।।

*

दिनकर मैथिलिशरण जी, सुभद्रा, माखन लाल।

गुरूनानक, रैदास जी,  इनने किया धमाल।।

*

सेनापति, बिहारी हुए,  बना गये इतिहास।

हिन्दी का दीपक जला,  बिखरा गये उजास।।

*

महावीर महादेवि जी, हिन्दी युग अवतार।

कितने साधक हैं रहे,  गिनती नहीं अपार ।।

*

हेय भाव से देखते,  जो थे सत्ताधीश।

वही आज पछता रहे, नवा रहे हैं शीश ।।

*

अटल बिहारी ने किया, हिन्दी का यशगान।

विजय पताका ले चले, मोदी सीना तान।।

*

हिन्दी का वंदन किया,  मोदी उड़े विदेश।

सुनने को आतुर रहा,  विश्व जगत परिवेश।।

*

ओजस्वी भाषण सुना, सबको दे दी मात।

सुना दिया हर देश में, मानव हित की बात ।।

*

विश्व क्षितिज में छा गयी, हिन्दी भाषा आज।

भारत ने है रख दिया,  उसके सिर पर ताज।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पल-पल ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – पल-पल ? ?

छोटी-सी थी

कितनी बड़ी हो चली है,

बूँद-सी लगती थी

धारा बन बह चली है,

जीवन की गति पर

आश्चर्य जता रहा था,

दर्पण में दिखती

अपनी उम्र से बतिया रहा था,

आश्चर्य पर हँस पड़ी वह

कुछ यूँ कहने लगी वह,

धीमे चलने, पिछड़ जाने

का सोग जीवन भर रहा,

आगमन-गमन की घटती दूरी पर

कभी चिंतन ही न हुआ,

बीता कल, आता कल,

कल हुआ हरेक पल,

भूत,भविष्य की चर्चा में

हाथ से निकला हर पल,

यह पल यथार्थ है

यह पल भावार्थ है

इस पल को साँसों में उतार लो

इस पल को रक्त में निचोड़ लो

अन्यथा दर्पण हमेशा है,

बढ़ती उम्र हमेशा है,

कल होता पल हमेशा है,

और बातूनी तो

तुम हमेशा से हो ही..!

© संजय भारद्वाज  

प्रातः 7:19 बजे, 01.01.2019

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 गणेश चतुर्थी तदनुसार आज शनिवार 7 सितम्बर को आरम्भ होकर अनंत चतुर्दशी तदनुसार मंगलवार 17 सितम्बर 2024 तक चलेगी।💥

🕉️ इस साधना का मंत्र है- ॐ गं गणपतये नमः। 🕉️

साधक इस मंत्र के मालाजप के साथ ही कम से कम एक पाठ अथर्वशीर्ष का भी करने का प्रयास करें। जिन साधकों को अथर्वशीर्ष का पाठ कठिन लगे, वे कम से कम श्रवण अवश्य करें।

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 205 – जय जय श्री गणेशाय नमः ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ ☆

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है श्री गणेश वंदना जय जय श्री गणेशाय नमः ”।) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 205 ☆

🌻 जय जय श्री गणेशाय नमः🌻

हे बुध्दि प्रदायक, हे गण नायक, सब काज किए, देव बड़े।

हे ज्ञान विधाता, जन सुखदाता, शुभ आस लिए, लोग खड़े।।

सुन शंकर नंदन, तुम दुख भंजन, मूषक वाहन, लाल कहें।

हो सिध्दी विनायक, शुभ फल दायक, संकट कटते, आप रहे। ।

 *

हे शंकर कानन, गोद गजानन, मोदक प्यारे, भोग लगे।

हे भाग्य विधाता, घर – घर नाता, सबसे न्यारें, भाग जगे।।

ले आरत वंदन, रोली चंदन, मोती माला, रोज चढ़े।

हो पग-पग पूरन, तेरा सुमिरन, भारत आगे, दुआ बढे़।।

 *

सुन विनती मेरी, कृपा घनेरी, गौरा नंदन, कलम चले।

मन की अभिलाषा, समझे भाषा, आराधन से, कष्ट टले।।

हे दीनदयाला, जग रखवाला, अर्ध चंद्र से, भाल सजे।

कर तेरी सेवा, पाते मेवा, खुशी मनाते, ढोल बजे।।

 *

जाने जग सारा, नाम तुम्हारा, भक्तों के मन, धीर धरें।

बोले हर प्राणी, हो वरदानी, गौर गजानन, देव हरे।।

ले रिध्दी- सिध्दी, पाते प्रसिद्धि, पूजन अर्चन, भक्ति भरें

बोले जयकारा, दास तुम्हारा, हे लंबोदर, कृपा करें।।

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 207 – कथा क्रम (स्वगत)… ☆ स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 207 – कथा क्रम (स्वगत)… ✍

(नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य) से )

क्रमशः आगे…

 

किया देह का दोहन ।

किन्तु

अभी

पूरा नहीं हुआ था

गालव का अभीष्ट ।

शुल्क

में

जुट पाये थे

केवल छै सौ अश्व ।

चिन्तातुर

गालव ने

फिर स्मरण किया

मित्र गरुड़ का

परामर्श के लिये ।

गरुड़ ने पूछा –

क्यों मित्र

कृतकार्य हुए?

उदास गालव ने

कहा –

अभी बाकी है

गुरुदक्षिणा का

चौथाई भाग ।

गरुड़ ने कहा-

‘मित्र

पूर्ण नहीं होगा

तुम्हारा मनोरथ ।

और

इसका कारण है।

पूर्व काल में

राजा गाधि की पुत्री

सत्यवती को पत्नी रूप में पाने

ऋचीक मुनि ने

शुल्क रूप में

दिये थे

© डॉ राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 207 – “बहुत तराशा धैर्य…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत बहुत तराशा धैर्य...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 207 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “बहुत तराशा धैर्य...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी 

इतना चलकर कलकल

करते थका बहुत झरना

पानी का प्रवाह कुंठित

हो क्या करता बहिना ?

 

गति के सारे समीकरण

जो सह सह कर हारा

फिर भी मिटा सका न

अपना परिचय आवारा

 

बहुत तराशा धैर्य

तभी जाकर पुरुषार्थ

बना जिसे सहारा बना

प्रकृति में जिन्दा है रहना

 

पानी का सिद्धांत और

थी सचल धारणायें

जिनके चलते बनी रहीं

चंचला समस्यायें

 

बहुत बनी परिभाषा

जिनमें ठगा गया जल को

बहुत कहा लोगों ने आगे

जारी है कहना

 

इसकी यही अस्मिता

जगमें पहचानी सबने

सुना गये सारे विकल्प

चिन्तित होकर अपने

 

लोगो ने खोजा जिसमें

सम्भवतम अपनापन

वही बह गया पानी सा था

आज दुखी झरना

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

15-09-2024

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – चयन ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – चयन ? ?

समुद्र में अमृत पलता

समुद्र ही हलाहल उगलता,

शब्दों से गूँजता ऋचापाठ,

शब्द ही कहलाते अर्वाच्य,

चिंतन अपना-अपना,

चयन भी अपना-अपना!

© संजय भारद्वाज  

रात्रि 11.31, 14.9.20

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 गणेश चतुर्थी तदनुसार आज शनिवार 7 सितम्बर को आरम्भ होकर अनंत चतुर्दशी तदनुसार मंगलवार 17 सितम्बर 2024 तक चलेगी।💥

🕉️ इस साधना का मंत्र है- ॐ गं गणपतये नमः। 🕉️

साधक इस मंत्र के मालाजप के साथ ही कम से कम एक पाठ अथर्वशीर्ष का भी करने का प्रयास करें। जिन साधकों को अथर्वशीर्ष का पाठ कठिन लगे, वे कम से कम श्रवण अवश्य करें।

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 192 ☆ # “सपने” # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता सपने

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 192 ☆

☆ # “सपने” #

सुबह की चहचहाती चिड़ियों के

फूलों की लटकती हुई लड़ियों के

क्षितिज पर चमकती हुई बिंदीया के

किरणों की शरारत से

उड़ती हुई निंदिया के

पनघट पर रून-झुन रून-झुन

पायल के

सखियों की तानों से आहत

घायल के

मंद-मंद खुशबू

बिखेरती पवन के

रंग-बिरंगे फूलों से

भरे चमन के

जिन्हें देखकर दिल

करता वाह-वाह है

अब तो ऐसे सपने

दिखाते जीने की राह है

 

सपने –

प्रातः काल अलसाये से

छोड़ते हुए अपने नीड़ के

मजबूरी में सुबह-सुबह

दौड़ती हुई भीड़ के

रोटी के बदलते हुए

नये नये रंग के

भूख के लिए

होती हुई जंग के

थके हुए बेबस

झुलसे हुए पांव के

अपने बच्चे को बचाती

मां की आंचल की छांव के

बुलडोजर से उजड़ती हुई

बस्तियों के

मंझधार में गृहस्थी की

डूबती हुई कश्तीयों के

कल आबाद थी

वह बस्तियां आज तबाह है

अब तो ऐसे सपने

देखना भी गुनाह है

 

सपने –

पेशोपेश मे पड़े

हुए बलम के

गिरवी रखी हुई

कलमकार के कलम के

ग्रह नक्षत्रों में उलझे

हुए सनम के

हाथ की लकीरों ने

फैलाये हुए भरम के

दिन-ब-दिन बदलती

हुई तस्वीर के

पांव में पहनी

हुई जंजीर के

वंचितों की आंखों से

बहते हुए नीर के

उनके हृदय में

उठती हुई पीर के

ऐसा कुछ पाने की  

इन आंखों में चाह है

अब तो ऐसे टूटते सपनों को

कौन देता पनाह है

 

सपने भी कितने अजीब होते हैं  

कभी हंसाते हैं कभी रूलाते हैं  

जीवन बेरंग हो जाता है

जब सपने टूट जाते है /

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – प्रतीक्षा… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय कविता ‘प्रतीक्षा…‘।)

☆ कविता  – प्रतीक्षा… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

निशि दिन प्रतीक्षा,

है उस घड़ी की

राहों में तेरी,

आंखें बिछाए,

 

आओगी जब तुम,

दर पर हमारे,

घूंघट की बदली में,

मुखड़ा छुपाए,

 

रेशम की साड़ी में,

सिमटी रहोगी,

पलकों में मीठे,

सपने संजोए,

 

पायल की छनछन में,

कंगन की खनखन में,

यादों की मीठी,

धुन को संजोए

 

आंखों में काजल,

माथे पर बिंदी,

पलकों की चिलमन में,

लज्जा छुपाए…

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of social media # 204 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of social media # 204  (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 203) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..! 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 204 ?

☆☆☆☆☆

गर यूँही घर में बैठा रहा

मार डालेगी तनहाइयाँ…

चल चलें मैखाने में जरा

ये फ़ना दिल बहल जायेगा…

☆☆

If I keep staying at home like this

The aloofness is going to  kill me

O’ dear  let’s  just  go to the bar…

This dying heart will come alive!

☆☆☆☆☆

इक किस्सा अधूरे इश्क़ का

आज भी है दरम्यान तेरे मेरे…

हैं मौजूद साहिलों की रेत पे

पैरों के कुछ निशान तेरे मेरे…

☆☆

A tale of inconclusive love still

exists between us, even today…

Few of our footprints are still

Present on the sand of shores…

☆☆☆☆☆

मरता तो कोई नही

किसी के प्यार में…

बस यादें कत्ल करती

रहती है किश्तों-किश्तों में…

☆☆

Nobody ever dies in

someone’s  love…

In installments just the

Memories  keep killing you…

☆☆☆☆☆

दीदार की तलब हो तो

नज़रें जमाये रखिये,

क्योंकि नक़ाब हो या नसीब, 

सरकता  तो  जरूर है…

☆☆

If urge of her glimpse is there

Then keep an eye on it patiently

Coz whether it’s the  mask or

luck , it moves for sure…

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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