हिंदी साहित्य – कविता ☆ कुछ क्षणिकाएं… ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

सुश्री इन्दिरा किसलय

☆ कविता ☆ कुछ क्षणिकाएं… ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

(२३ मई विश्व विवशता दिवस और विश्व कछुआ दिवस के उपलक्ष्य में)

[ १ ]

नेपथ्य में

सुविधाजीविता

स्टेज पर अभिनीत

मजबूरी

दिखा देती है सच से

मीलों दूरी

[ २ ]

विवशता

स्वयं को विवश पा रही है

महंगाई डायन की तरह

अपना कद

बढ़ाती ही जा रही है।।

[ ३ ]

बहुत लुभाती हैं

सोने की जंजीरें

बाँधते बाँधते

खोलती जाती हैं

तुम्हारा हर राज़

धीरे धीरे।।

[ ४ ]

नदियों को

कूड़ादान बनाकर

खाली पीली बहसते हो

वृथा हैं तुम्हारे

वाद और प्रतिवाद

सुनाई नहीं देता

उनका आर्त्तनाद।।

[ ५ ]

हमें पता है

तुम रावण के सिर

आसानी से गिन लोगे

पर मजबूरी के कितने ?

जवाब कहाँ से दोगे।।

[ ६ ]

जंगल उजाड़कर

पर्यावरण की

रक्षा करोगे

मौसम दुर्वासा है

 बच न सकोगे

कोप से।।

[ ७ ]

लगभग

समान हैं दोनों के

गुणधर्म

कछुए की फितरत और

मजबूरी का मर्म।।

©  सुश्री इंदिरा किसलय 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सत्य… ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – सत्य…  ? ?

जितनी बातें

गुप्त समझी गईं,

उनके रहस्य

खुल गए

कभी न कभी..,

पर जगत में

अपवाद का

सिद्धांत भी बना रहा,

पारदर्शी होने पर भी

सत्य का गुपित

सदा बना रहा..!

?

© संजय भारद्वाज  

संध्या 5:19 बजे, 22.5.2025

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️💥 श्री महावीर साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की जानकारी आपको शीघ्र दी जवेगी।आत्मपरिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही💥  

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा #226 ☆ रहे तिरंगा सदा लहरता सतरंगी आकाश में… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “कविता  – रहे तिरंगा सदा लहरता सतरंगी आकाश में। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 226

रहे तिरंगा सदा लहरता सतरंगी आकाश में… 🇮🇳 ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

रहे तिरंगा सदा लहरता भारत के आकाश में,

करता रहे देश नित उन्नति इसके धवल प्रकाश में ॥

लाखों वीरों ने बलि देकर के इसको फहराया है

आजादी का रथ रक्तिम पथ से ही होकर आया है ॥ 1 ॥  

यह भारत की माटी पावन इसमें चन्दन – गंध है,

अमर शहीदों का इसमें इतिहास और अनुबंध है ॥  

उनके उष्ण रक्त से रंजित अगणित मर्म व्यथाएँ हैं,

सतत प्रेरणादायी भावुक कई गौरव – गाथाएँ हैं ॥ 2 ॥

 *

मनस्वियों औ तपस्वियों से इसका युग का नाता है,

राम – कृष्ण, गाँधी – सुभाष हम सबकी प्रेमल माता है ।

वीर प्रसू यह भूमि पुरातन बलिदानी, वरदानी है,

मानवीय संस्कृति की हर कण में कुछ लिखी कहानी है ॥ 3 ॥

आओ इससे तिलक करें हम सुदृढ़ शक्ति फिर पाने को,

नई पीढ़ी को अमर शहीदों की फिर याद दिलाने को ॥  

जन्मभूमि यह कर्मवती धार्मिक ऋषियों का धाम है,

इसको शत – शत नमन हमारा, बारम्बार प्रणाम है ॥ 4 ॥

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 161 ☆ गीत – ।। जिसके जीवन में संघर्ष जीत भी उसके हिस्से में आएगी ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

 

☆ “श्री हंस” साहित्य # 161 ☆

☆ गीत – ।। जिसके जीवन में संघर्ष जीत भी उसके हिस्से में आएगी ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

जिसके जीवन में संघर्ष जीत भी हिस्से में आएगी।

हृदय में स्नेह-प्रेम तो प्रीत भी उसके हिस्से में आएगी।।

*****

परिस्थिति का काम रोकना है आपका काम बढ़ते जाना।

तब आपको अपनी आंतरिक शक्ति को है बाहर लाना।।

सोच बदल देखो लड़ी सितारों की भी हिस्से में आएगी।

जिनके जीवन में संघर्ष जीत भी हिस्से में आएगी।।

****

किश्ती नहीं बदलो दिशा बदलो कि किनारे आ जाएंगे।

नजर बस अपनी बदलो कि नजारे भी नजर आएंगे।।

संकल्प आत्मबल से जीत भी आपके किस्से में आएगी।

जिनके जीवन में संघर्ष जीत भी हिस्से में आएगी।।

****

धीरे-धीरे ही चाहे चल लेना पर तुम बीच राह रुकना मत।

कठनाइयों को देख कर अपनी कोशिश में झुकना मत।।

बारिश में भीगोगे तभी इंद्रधनुष छवि हिस्से में आएगी।

जिनके जीवन में संघर्ष जीत भी हिस्से में आएगी।।

****

एक नहीं हर काम के ही हजार प्रकल्प होते हैं।

एक रास्ता बंद तो खुलते हजार विकल्प होते हैं।।

जो व्यवहार कुशल भी तो मीत मित्रता हिस्से में आएगी।

जिनके जीवन में संघर्ष जीत भी हिस्से में आएगी।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सत्य ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – सत्य ? ?

ब्रह्म सत्य है,

सत्य ही ब्रह्म है,

सत्य-सा

अमर नहीं कोई,

सत्य से बड़ा

अभिशप्त भी नहीं कोई,

अभिशाप का

सनातन साधन

बनने लगा आदमी,

एको ब्रह्म द्वितीय नास्ति

की धज्जियाँ उड़ाकर

अपनी-अपनी आँख में

अपना-अपना सत्य

गढ़ने लगा आदमी…!

?

© संजय भारद्वाज  

संध्या 5:26 बजे, 22.5.2025

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️💥 श्री महावीर साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की जानकारी आपको शीघ्र दी जवेगी।आत्मपरिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही💥  

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संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार #50 – नवगीत – मन विचलित है… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम नवगीत – मन विचलित है

? रचना संसार # 50 – नवगीत – मन विचलित है…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

फटे-पुराने कपड़े उनके,

धूमिल उनकी आस।

जीवन कुंठित है अभाव में,

खोया है विश्वास।।

 

अवसादों की बहुतायत है,

रूठा है शृंगार।

अंग-अंग में काँटे चुभते,

तन-मन पर अंगार।।

मन विचलित है तप्त धरा है,

कौन बुझाये प्यास।

 

चीर रही उर पिक की वाणी,

काॅंपे कोमल गात।

रोटी कपड़ा मिलना मुश्किल,

अटल यही बस बात।।

साधन बिन मौन हुआ उर,

करें लोग परिहास।

 

आग धधकती लाक्षागृह में,

विस्फोटक सामान।

अंतर्मन भी विचलित तपता,

कोई नहीं निदान।

श्रापित होता जीवन सारा,

श्वासें हुई उदास।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #277 ☆ हाथ में तिरंगा रहे… ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता – हाथ में तिरंगा रहे…।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 277 – साहित्य निकुंज ☆

☆ हाथ में तिरंगा रहे🇮🇳🇮🇳☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

नहीं झुकेंगे हम कभी वतन का नेक विचार।

गूंज रहा संदेश यह करना भारत का उद्धार।

त्याग तपस्या प्रेम से इतिहास रचाइए।

हाथ में तिरंगा रहे, विजयी बनाइए।

 *

शब्द नहीं हमें बोलना देना, कर्म प्रमाण।

जन-जन की चेतना, जन मन में बलिदान

करना है संघर्ष हमें, सब में आस जगाइए

हाथ में तिरंगा रहे, विजयी बनाइए।

 *

भीड़ नहीं बनकर चलना, बने दीप की शान

अंधकार में जल उठे, भारत माँ की आन

पावन धरा की गोद में इतिहास बनाइए।

हाथ में तिरंगा रहे, विजयी बनाइए।

*

जय हिन्द…  🇮🇳🇮🇳

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #259 ☆ नापाकी अब पाक की… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता – नापाकी अब पाक की आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

 ☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 259 ☆

☆ नापाकी अब पाक की☆ श्री संतोष नेमा ☆

सेना अपने देश की, दुनिया में मशहूर |

आप्रेशन सिंदूर ने, तोड़ा पाक गुरूर ||

*

बदला हमने ले लिया, घर में घुस कर खूब |

हुआ चकित सारा जगत, देख पाक का रूप ||

*

ताकत का करता नहीं, भारत कभी गुमान |

सही वक्त पर चोट कर, छोड़े स्वयं निशान ||

*

पाक न सह पाया कभी, भारत का आघात |

सेना ने ठंडे किए, उसके सब जज्बात ||

*

गीदड़ भभकी की उसे, लत लागी बेकार |

होती हैं नाकाम सब, पाक व्यर्थ हुंकार ||

*

इस भारत को भूल से, समझें मत कमजोर |

सही वक्त पर वार कर, घाव करे पुरजोर ||

*

सीमा पर घुसपैठ का, करते काम तमाम |

वीर सैनिकों को करें, मिलकर सभी प्रणाम ||

*

आँख उठाना गैर का, हमको नहीं कबूल |

दुश्मन मिट्टी में मिलें, अपना यही उसूल ||

*

चाल कुटिल हम जानते, ताकत लो पहचान |

फन कुचलें हम सांप का, सुन लो ए शैतान ||

*

भीख माँगता फिर रहा, जग में पाकिस्तान |

जाकर शरण गुहारता, बचा हमें श्रीमान ||

*

एटम बम की धमकियाँ, हुईं सभी नाकाम |

नापाकी अब पाक की, सरेराह बदनाम ||

*

साथ खड़े हों देश के, अपना यह कर्तव्य |

पाएंगे संतोष तब, नहीं व्यर्थ वक्तब्य ||

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 70003619839300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिंदी साहित्य – कविता ☆ युद्ध पर दो कवितायें – (1) युद्ध (2) जन्म ☆ डॉ जसवीर त्यागी ☆

डॉ जसवीर त्यागी

(ई-अभिव्यक्ति में  प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ जसवीर त्यागी जी का स्वागत। प्रकाशन: साप्ताहिक हिन्दुस्तान, पहल, समकालीन भारतीय साहित्य, नया पथ,आजकल, कादम्बिनी,जनसत्ता,हिन्दुस्तान, राष्ट्रीय सहारा,कृति ओर,वसुधा, इन्द्रप्रस्थ भारती, शुक्रवार, नई दुनिया, नया जमाना, दैनिक ट्रिब्यून आदि पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ व लेख प्रकाशित।  अभी भी दुनिया में- काव्य-संग्रह। कुछ कविताओं का अँग्रेजी, गुजराती,पंजाबी,तेलुगु,मराठी,नेपाली भाषाओं में अनुवाद। सचेतक और डॉ. रामविलास शर्मा (तीन खण्ड)का संकलन-संपादन। रामविलास शर्मा के पत्र- का डॉ विजयमोहन शर्मा जी के साथ संकलन-संपादन। सम्मान: हिन्दी अकादमी दिल्ली के नवोदित लेखक पुरस्कार से सम्मानित।)

☆ कविता ☆ युद्ध पर दो कवितायें – (1) युद्ध (2) जन्म डॉ जसवीर त्यागी 

(1) युद्ध

कुछ लोगों का मानना है

कि युद्ध होना चाहिए

ताकि बचा रहे हमारा अपना वजूद

 *

कुछ लोगों का विचार है

कि युद्ध नहीं होना चाहिए

ताकि बचा रहे दूसरों का भी अस्तित्व।

 *

(2) जन्म

युद्ध हो रहा है

गोलियों,और बमों के शोर-शराबे के बीच

अभी-अभी

कुछ नवजात शिशुओं ने जन्म लिया है

उनकी किलकारियाँ

युद्ध के शोर तले दब गयी हैं

चाहता हूँ

हर कोई सुन सके

नवजात शिशुओं की पुकार

और थम जाये

चारों ओर गूंजता हाहाकार।

©  डॉ जसवीर त्यागी  

सम्प्रति: प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, राजधानी कॉलेज (दिल्ली विश्वविद्यालय) राजा गार्डन नयी दिल्ली-110015

संपर्क: WZ-12 A, गाँव बुढेला, विकास पुरी दिल्ली-110018, मोबाइल:9818389571, ईमेल: [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पुनरावर्तन ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – पुनरावर्तन ? ?

चलो फिर

नए डग भरें,

चलो फिर से

जीवन शुरू करें,

तब की ग़लतियाँ,

अब न दोहराई जाएँ,

आग्रह की चादर

दुराग्रह की सीमा तक

न खींची जाए,

मतभेद को मन

बींधने से रोका जाए,

शब्दों को ‘म्यूट’ कर

ठहाका लगाया जाए,

अबोला को चर्चा से

हम स्थानापन्न करें,

कुछ एक-दूसरे की सुनें,

कुछ एक-दूसरे के मन का करें,

सुनो….,जानता हूँ,

ज़िंदगी पीछे लौटती नहीं कभी,

पर लाख जतन करो,

सुख की चाह भी तो

सूखती नहीं कभी,

कल्पना में ही सही,

अपनत्व को साकार करें,

क्षण-क्षण झरते जीवन में

नेह के रंग भरें..!

?

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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