हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – मृत्यु ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – मृत्यु ? ?

प्रासंगिकता के बोझ तले दबी

अप्रासंगिकता

एकाएक आज़ाद हो जाती है

शरीर की सीमाओं और

देह की वर्जनाओं से,

प्रासंगिकता

शव में पथराई पड़ी रहती है;

अप्रासंगिक धुएँ में

किर्च-किर्च बहता है,

निरंतर कहता है;

प्रासंगिकता में छिपी

आदिम अप्रासंगिकता की कथा

या शायद

अप्रासंगिकता के

नित प्रासंगिक होने के प्रमाण!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “तुम अचानक न आना…” ☆ सुश्री प्रणिता खंडकर ☆

सुश्री प्रणिता खंडकर

 ☆ कविता  – “तुम अचानक न आना” 🦋 ☆ सुश्री प्रणिता खंडकर ☆

(काव्यसंग्रह ..अलवार)

मेरे घर कभी तुम, अचानक न आना,

इज्जत को मेरी, ना दाँव पे लगाना|

मेहमानियत में तेरी, ना रहे कोई कमी,

इसीलिए आने की, खबर जरूर करना|

मेरे घर कभी तुम, अचानक न आना!

खबर जो मिलेगी, बुला लूँगी सबको,

मस्ती भरे गीत, सुना दूँगी तुझ को,

महफिल से सारी मिला दूँगी तुझ को,

कही भूल न जाऊँ, किसी को बुलाना,

मेरे घर कभी तुम, अचानक न आना |

दोस्तों से कर लूँगी, चंद बातेंं,

मिटा दूँगी दिल से, सारे ही शिकवे,

मिल जाएंगे सारे, अपने-परायें,

वजह ना हो कोई, तुम्हें पडे न रूकना,

मेरे घर कभी तुम, अचानक न आना |

मेरे छोटे दिल में, समाओगी कैसे?

मेरे अपने सारे, तो साथ ही होंगे,

दिल में सभी के ही, तुम बस जाना,

मोहलत  इतनी ही, तुम जरूर देना,  

मेरे घर, खुशी तुम, अचानक न आना |

   ☆        

© सुश्री प्रणिता खंडकर

ईमेल – [email protected] वाॅटसप संपर्क – 98334 79845.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 170 – दोहे – मीरा ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण गीत – क्यों कर पालिश करती हो।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 170 – दोहे  –  मीरा…  ✍

चित्रकार चित्रित करेलिखें ग्रंथ विद्वान

पर मीरा के ‘रहस’ को, कौन सका कब जान॥

पहुंची मीरा द्वारकाथी गिरधर से होड़

पल भर में ही हो गये‘मीरा-मय’ रणछोड़।।

मीरा जन्मी जगत् में, साक्षी सकल समाज

देख न पाये विदाईरहे सभी मुहताज ॥

तुलसी सूर कबीर के, जीवन चरित अनुप

मीरा अपने आप-सी, हो गई श्याम स्वरूप।।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 169 – “ऑंगन का अपना दुख था…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत  ऑंगन का अपना दुख था...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 169 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “ऑंगन का अपना दुख था...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

यह भी तो छत की मुँडेर का

अपना अनुभव था ।

उस पर ही बैठेगी चिडिया

कैसे संभव था ॥

 

ऑंगन का अपना दुख था

ना छा पायी बदली ।

अगर कभी उस तरफ मुड़ी

तो भी बदल बदली ।

 

आमों के पेडों के नीचे

छाँव नहीं लौटी ।

मौसम के अपनेपन का

यह कथित पराभव था ॥

 

दीवारें चुपचाप अहंकारी

जैसी दिखतीं ।

दरवाजे, खिड़कियाँ, चौखटें

खिंची खिंची लगतीं ।

 

जिन पर प्रसन्नता का कुछ

कुछ था चढ़ा घमंड रहा ।

यह उनकी निर्वाध सोच का

चिन्तन लाघव था ॥

 

आत्म प्रचारक दिखी पौर,

व चिन्तक दालाने ।

जो अपने वैविध्य समन्वय

की थीं पहचानें ।

 

जो खपरैलों से होकर

सब से बस यह कहतीं ।

यहाँ जिंदगी जीना शायद

बहुत असंभव था ॥

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

20-10-2023

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पगडंडी ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – पगडंडी ? ?

कुछ राजपथ, कुछ स्वर्णपथ,

मद-भोग के पथ,

विलास के कुछ पथ,

चमचमाती कुछ सड़कें,

विकास के ‘एलेवेटेड’ रास्ते,

चमकीली भीड़ में

शेष बची संकरी पगडंडी,

जिनसे बची हुई हैं

माटी की आकांक्षाएँ,

जिनसे बनी हुई हैं

घास उगने की संभावनाएँ,

बार-बार, हर बार

मन की सुनी मैंने,

हर बार, हर मोड़ पर

पगडंडी चुनी मैंने,

मेरी एकाकी यात्रा पर

अहर्निश हँसनेवालो!

राजपथ, स्वर्णपथ,

विलासपथ चुननेवालो!

तुम्हें एक रोज़

लौटना होगा मेरे पास,

जैसे ऊँचा उड़ता पंछी

दाना चुगने, प्यास बुझाने

लौटता है धरती के पास,

कितना ही उड़ लो,

कितना ही बढ़ लो,

रहो कितना ही मदमस्त,

माटी में पार्थिव का क्षरण

और घास की शरण

हैं अंतिम सत्य..!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 161 ☆ # वो # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# वो #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 160 ☆

☆ # वो #

वो चुप रहता है

लोगों से अलग थलग

पीपल के पेड़ के नीचे

शांत गुमसुम बैठा रहता है

उसकी आंखें

शुन्य में

कुछ ढूंढ़ती रहती है

कभी कभी नीले आसमान में

बादलों के पीछे पहुंच कर

बेरंग वापस लौट आती है

वो हर आवाज़ को

पुरी गंभीरता से सुनता है

चारों तरफ के शोर से

कर्कश ध्वनि से

चिल्लम चिल्लाई से

घबराकर

बेचैन रहता है

उसके मन में

द्वंद्व चलता रहता है

जिव्हा कुछ कहना चाहती है

पर मन रोकता है

वह अपनी बुद्धि से

जरूर कुछ सोचता है

पर परिस्थितियों से हारकर

परेशान होकर

बस चुप रहता है

उसके पेट की अंतड़ियां

सिकुड़ गई है

पसलियां उभर आई है

क्लांत चेहरा

भूख प्यास से

बेबस दिखता है

वो समाज में

व्याप्त विसंगतियों को देख

अंदर ही अंदर

क्रोधित होता है

उत्तेजित होता है

पर मन मारकर

शांत रहने का प्रयास करता है

अगर किसी दिन

उसकी शांति भंग होगी

चुप्पी टूटेगी

तो उसकी आंखों से

बहते आंसुओं से

सैलाब आयेगा

अगर वो बोलेगा तो

राज पाट हिल जायेगा

उसकी एक दहाड़ से

ये शोर थम जायेगा

उसके विद्रोह के शंखनाद से

भूख-प्यास का

यह गंदा खेल मिट जायेगा

वो चुप है

इस में ही

सब की भलाई है

और

उस के जागने में

लड़ने में

हक के लिए

विद्रोह करने में

सिर्फ तबाही,

तबाही और तबाही है /

 © श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 170 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 170 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 170) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 170 ?

☆☆☆☆☆

Reconciliation

थक  सा  गया हूँ  मैं ख़ुद    

से तकरार करते-करते,

अपने  आप  से  अब सुलह

करना  चाहता  हूँ  मैं..!

☆☆ 

I am done fighting

with myself…

Trying to make peace

with myself now…

☆☆☆☆☆

 ☆ Memories ☆  

गुजिश्ता यादों के पंख लगा के

उड़ता रहा तमाम ज़िंदगी,

तन्हाई से  यूंही इक परिंदा,

परवाज़ में ही फना हो गया…

☆☆

Whole life it kept flying with

the wings of past memories,

A bird just got perished in the

flight because of loneliness…!

☆☆☆☆☆

Silent Cacophony... ☆

खामोशीयों में कितना

ज़बरदस्त शोर होता है,

मैंने ये खुद को तन्हा कर

के महसूस किया है…!

☆☆

There happens to be an

eerie noise in the silence,

I have experienced it by

keeping myself aloof…!

☆☆☆☆☆

Life 

फिसलती ही चली गई

एक पल भी रुकी नहीं

अब जाके पता चला कि

रेत के मानिंद हैं ज़िंदगी…!

☆☆

Just kept slipping away,

didn’t stop for a moment

Now only I came to know

that life is like the sand…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 169 ☆ जबलपुर में शुभ प्रभात  ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता जबलपुर में शुभ प्रभात )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 169 ☆

☆ जबलपुर में शुभ प्रभात ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

रेवा जल में चमकतीं, रवि-किरणें हँस प्रात।

कहतीं गौरीघाट से, शुभ हो तुम्हें प्रभात।।१।।

*

सिद्धघाट पर तप करें, ध्यान लगाकर संत।

शुभप्रभात कर सूर्य ने, कहा साधना-तंत।।२।।

*

खारी घाट करा रहा, भवसागर से पार।

सुप्रभात परमात्म से, आत्मा कहे पुकार।।३।

*

साबुन बिना नहाइए, करें नर्मदा साफ़।

कचरा करना पाप है, मैया करें न माफ़।।४।।

*

मिलें लम्हेटा घाट में, अनगिन शिला-प्रकार।

देख, समझ पढ़िये विगत, आ आगत के द्वार।।५।।

*

है तिलवारा घाट पर, एक्वाडक्ट निहार।

नदी-पाट चीरे नहर, सेतु कराए पार।।६।।

*

शंकर उमा गणेश सँग, पवनपुत्र हनुमान।

देख न झुकना भूलना, हाथ जोड़ मति मान।।७।।

*

पोहा-गरम जलेबियाँ, दूध मलाईदार।

सुप्रभात कह खाइए, कवि हो साझीदार।।८।।

*

धुआँधार-सौन्दर्य को, देखें भाव-विभोर।

सावधान रहिए सतत, फिसल कटे भव-डोर।।९।।

*

गौरीशंकर पूजिए, चौंसठ योगिन सँग।

भोग-योग संयोग ने, कभी बिखेरे रंग।।१०।।

*

नौकायन कर देखिये, संगमरमरी रूप।

शिखर भुज भरे नदी को, है सौन्दर्य अनूप।११।।

*

बहुरंगी चट्टान में, हैं अगणित आकार।

भूलभुलैयाँ भुला दे, कहाँ गई जलधार?।१२।।

*

बंदरकूदनी देख हो, लघुता की अनुभूति।

जब गहराई हो अधिक, करिए शांति प्रतीति।।१३।।

*

कमल, मगर, गज, शेर भी, नहीं रहे अब शेष।

ध्वंस कर रहा है मनुज, सचमुच शोक अशेष।।१४।।

*

मदनमहल अवलोकिए, गा बम्बुलिया आप।

थके? करें विश्राम चल, सुख जाए मन-व्याप।।१५।।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२८.११.२०१५

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 96 ☆ मुक्तक ☆ ॥ मानवता की जीत दानवता की हार हो जाये॥ ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 96 ☆

☆ मुक्तक ☆ ।।मानवता की जीत दानवता की हार हो जाये।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

मानवता की जीत दानवता की हार हो जाये।

प्रेम से दूर अपनी हर तकरार हो जाये।।

महोब्बत हर जंग पर होती भारी है।

यह दुनिया बस इतनी सी समझदार हो जाये।।

[2]

संवेदना बस हर किसी का सरोकार हो जाये।

हर कोई प्रेम का खरीददार हो जाये।।

नफ़रतों का मिट जाये हर गर्दो गुबार।

धरती पर ही स्वर्ग सा यह संसार हो जाये।।

[3]

काम हर किसीका परोपकार हो जाये।

हर मदद को आदमी दिलदार हो जाये।।

जुड़ जाये हर दिल से हर दिल का ही तार।

तूफान खुद नाव की पतवार हो जाये।।

[4]

अहम हर जिंदगी में बस बेजार हो जाये।

धार भी हर गुस्से की बेकार हो जाये।।

खुशी खुशी बाँटे आदमी हर इक सुख को।

गले से गले लगने को आदमी बेकरार हो जाये।।

[5]

हर जीवन से दूर हर विवाद हो जाये।

बात घृणा की जीवन में कोई अपवाद हो जाये।।

राष्ट्र की स्वाधीनता हो प्रथम ध्येय हमारा।

देश हमारा यूँ खुशहाल आबाद हो जाये।।

[6]

वतन की आन ही हमारा किरदार हो जाये।

दुश्मन के लिए जैसे हर बाजू ललकार हो जाये।।

राष्ट्र की गरिमा और सुरक्षा हो सर्वोपरि।

बस इस चेतना का सबमें संचार हो जाये।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – शपथ ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि –  शपथ ? ?

जब भी

उबारता हूँ उन्हें,

कसकर जकड़ लेते हैं 

और

मिलकर

डुबोने लगते हैं मुझे,

सुनो-

डूब भी गया मैं तो

मुझे यों श्रद्धांजलि देना,

मिलकर

डूबतों को उबारने की

शपथ लेना !

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

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☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना हम शीघ्र करेंगे। 🕉️ 💥

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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