English Literature – Poetry ☆ ‘तुम लिखो कविता! …’ श्री संजय भारद्वाज (भावानुवाद) – ‘You Write a Poem…’ ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of n

ational and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi poem “तुम लिखो कविता! .  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

श्री संजय भारद्वाज जी की मूल रचना

? संजय दृष्टि – तुम लिखो कविता! ??

उन्होंने कविता और

कवित्व की हँसी उड़ाई,

मैंने कलम उनके हाथ थमाई

और कहा, अब तुम लिखो कविता!

 

उनकी हँसी अचकचाई,

दृष्टि सकुचाई,

मैंने कलम ली उनके हाथ से

लिखी पक्तियाँ उसी

अचकचाने-सकुचाने पर

और उन्हें ही प्रति थमाई।

 

सृजन यों ही नहीं जन्मता,

देखना, दृष्टि में यों ही नहीं बदलता,

कविताओं के छत्ते से

तुम भरपूर शहद

भले ही जुटा पाओगे,

स्मरण रहे,

मधुमक्खी तो तब भी नहीं हो पाओगे!

 

बाहरी जगत के विस्तार का

माइक्रोचिप बनाएगी कविता,

जब कभी भीतर देखना होगा

उन्हें रास्ता दिखायेगी कविता!

© संजय भारद्वाज

मोबाइल– 9890122603, संजयउवाच@डाटामेल.भारत, [email protected]

☆☆☆☆☆

English Version by – Captain Pravin Raghuvanshi

? – You Write a Poem… ??

They incessantly ridiculed

the poetry and poetics…
 

I handed over a pen

to them and said smiling,

“Now you write a poem!”

Their laughters ceased abruptly

Eyes got perplexly narrowed,

Countenance shrank embarassingly!
 

I took the pen, wrote intricately a

few poetic verses on their predicament

With some hesitation and bewilderment

They took the copy, with a coyish grin..!
 

Creation never gets born just like that,

Seeing never changes the sight just like that,

One may be able to gather plenty of

honey from the hive of poems,

But always remember, even then

you won’t be able to become a bee!
 

Poetry will create a microchip of the

expansion of the external world,

Whenever one has to look within,

poetry will show him the way forward..!

~Pravin

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 172 – गीत – जैसे नहीं मिली हो…. ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका एक अप्रतिम गीत – जैसे नहीं मिली हो।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 172 – गीत  –  जैसे नहीं मिली हो…  ✍

कहने को कुछ खास नहीं है

यही पुराने रस्ते

आते जाते देखा देखी

दो दो बार नमस्ते

खुशबू न्यौता देती रहती

लगती भली भली हो।

 

कभी अगर कुछ कहा सुना तो

वह भी केवल इतना

देखो सीखी नई बुनाई

कोर्स हुआ है इतना

पढ़ना चाहो मुझको पढ़ लो

पढ़ने कहाँ चली हो।

 

अक्सर होंठ फड़कते देखे

देखी आँख भटकती

सम्मन पाकर अँगड़ाई का

सारी नसें चटकती

गंध उम्र ने सौंपी लेकिन

अब तक नहीं खिली हो।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 170 – “रोपे थे जो कठिन समय में…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत  रोपे थे जो कठिन समय में...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 170 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “रोपे थे जो कठिन समय में...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

सोच रहा फुटपाथ यहाँ पर

लैम्प पोस्ट नीचे ।

लोग चल रहे कैसे

अपनी ऑंखों को मीचे ॥

 

उजड़ी जहाँ वनस्पतियाँ हैं

उभय किनारों की ।

पगडंडियाँ कर रही निंदा

शुष्क विचारों की ।

 

विद्वानों ने सुखा दिये हैं

ज्ञान समन्वय के-

रोपे थे जो कठिन समय में

अभिनव बागीचे ॥

 

लोग जहाँ सन्दर्भ हीन

दिख रहे कहानी में ।

वहाँ खोजती सत्व

नायिका यथा जवानी में ।

 

वहीं इसी चौराहे पर

क्यों हुये इकट्ठे हैं –

आपस में मुट्ठियाँ तानते

हुये होंठ भींचे ॥

 

कैसे भूले लोग अद्यतन

जाती सुविधायें ।

जो सामाजिक संरचना की

होतीं समिधायें ।

 

जिनके पारगमन की चिन्ता

सड़कें करती हैं –

अपने हिरदय पर लक्षमण की

रेखा को खींचे ॥

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

02-11-2023

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – तुम लिखो कविता! ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

?संजय दृष्टि – तुम लिखो कविता!  ? ?

उन्होंने कविता और

कवित्व की हँसी उड़ाई,

मैंने कलम उनके हाथ थमाई

और कहा, अब तुम लिखो कविता!

 

उनकी हँसी अचकचाई,

दृष्टि सकुचाई,

मैंने कलम ली उनके हाथ से

लिखी पक्तियाँ उसी

अचकचाने-सकुचाने पर

और उन्हें ही प्रति थमाई।

 

सृजन यों ही नहीं जन्मता,

देखना, दृष्टि में यों ही नहीं बदलता,

कविताओं के छत्ते से

तुम भरपूर शहद

भले ही जुटा पाओगे,

स्मरण रहे,

मधुमक्खी तो तब भी नहीं हो पाओगे!

 

बाहरी जगत के विस्तार का

माइक्रोचिप बनाएगी कविता,

जब कभी भीतर देखना होगा

उन्हें रास्ता दिखायेगी कविता!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना हम शीघ्र करेंगे। 🕉️ 💥

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

English Literature – Poetry ☆ ‘आहत…’ श्री संजय भारद्वाज (भावानुवाद) – ‘Indomitable Warrior…?’ ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of n

ational and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi poem आहत.  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

श्री संजय भारद्वाज जी की मूल रचना

? संजय दृष्टि – आहत ? ?

आहत हूँ

पर क्या करूँ,

जानता था

सारी आशंकाएँ मार्ग की,

सो समूह के आगे

चलता रहा,

डग भरने से चोटें

घिसटने से खरोंचेेंं,

पीछे चलनेवालों के घात,

पीछे खींचनेवालों के आघात,

रास्ता दिखाने वालों के पास

आहत होने के सिवा

कोई विकल्प भी तो

नहीं होता ना..!

© संजय भारद्वाज

(प्रातः 11:10 बजे, 6.6.2019)

मोबाइल– 9890122603, संजयउवाच@डाटामेल.भारत, [email protected]

☆☆☆☆☆

English Version by – Captain Pravin Raghuvanshi

? – Indomitable Warrior??

I’m hurt; Yes, I’m hurt…

but then, what to do…

Knowing all through

the weariness of the path,

Kept marching ahead,

pioneering the caravan…

 

Injuries caused by the

arduousness of the path,

Scratches caused by the

impregnable thorny routes…

Kept facing the ambushes

of the plotting followers…

 

Endured the blows of those

who kept pulling me back,

What options do the

pioneers ever have other

than combating the hurt..?

~Pravin

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 220 ☆ कविता – “कोहरे में” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता“कोहरे में”)

☆ कविता – कोहरे में☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

कोहरे की 

चादर ओढ़कर 

अभी अभी

पहुंचा हूँ गाँव।

गाँव में

सब चलता है

मौसम खराब 

होने से

किसी पर कोई

असर नहीं होता।

धूप कभी

दिखती छुपती

नहाने चली जाती

धनिया गोबर से

भरा तसला लिए

कोहरे में कहां

गुम हो जाती।

सरसों के फूल

धुले धुले से

लगते दूर से  

कोहरे की चादर

फेंककर 

अलसाई सी

जग गई है धरती।

मेहमान बनकर

आता है कोहरा

कोहरे में किसान

सब्जी लेकर

निकल पड़ता है

बाजार की ओर

क्योंकि मेहमान 

बनकर आता है 

कोहरा

गांव की ओर।

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 162 ☆ # विधुर का जीवन # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# विधुर का जीवन #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 160 ☆

☆ # विधुर का जीवन #

सुबह सुबह पार्क की बेंच पर

वह बैठा रहता है

मुझे देख मुस्कुरा कर

गुड़ मार्निंग कहता है

उसकी चेहरे की झुर्रियों में

गजब की उष्मा है

आंखों पर मोटे ग्लास का

चश्मा है

अधपके काले सफेद बाल हैं 

लंगड़ाते हुए उसकी चाल है

सबसे गर्म जोशी से

हाथ मिलाता है

अपने दर्द को भूलकर

खूब खिलखिलाता है

मैंने एक दिन पूछा-

भाई! क्या हाल है ?

इस उम्र में यह ऊर्जा  

वाकई कमाल है

वह बोला-

क्या कहें

किससे कहें

अपने दुःख हैं 

बेहतर है खुद ही सहें 

साहब –

बीमार पत्नी

कुछ साल पहले चल बसी

छिन गई तबसे हमारी हंसी

बहू बेटों के साथ रहते हैं

क्या कहें

क्या क्या सहते हैं

तीन बहू बेटों ने

मेरे दिन-रात

ऐसे बांटा है

नाश्ता, लंच, डिनर

फिर लंबा सन्नाटा है

साहब –

अगर पहले पति मर जायें

तो परिवार के साथ

पत्नी रम जाती है

परंतु पहले अगर पत्नी मर जाये

तो आदमी की जिंदगी

थम जाती है

लगता है कि 

उधारी की

जिंदगी जी रहा हूँ 

हंसते हंसते

अकेलेपन का

जहर पी रहा हूँ 

साहब –

पत्नी बिना बुढ़ापा

कांटों भरी शैय्या है

विधुर का जीवन तो

 बिन मांझी की नैया है  /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 170 ☆ सॉनेट ~ शारदा स्तुति ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी सरस्वती वंदना शारदा स्तुति )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 170 ☆

☆ सॉनेट ~ शारदा स्तुति ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

शारद! वीणा मधुर बजाओ

कुमति नाश कर सुमति मुझे दो

कर्म धर्ममय करूँ सुगति हो

मैया! मन मंदिर में आओ।

अपरा सीखी, सत्य न पाया

माया मोह भुला भटकाते

नाते राह रोक अटकाते

माता! परा ज्ञान दो, आओ

जन्म जन्म संबंध निभाओ

सुत को अपनी गोद बिठाओ

अंबे! नाता मत बिसराओ

कान खींच लो हँस मुस्काओ

झट से रीझो पुलक रिझाओ

जननी! मुझको आप बनाओ

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२.५.२०२२ 

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 171 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 171 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 171) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 171 ?

☆☆☆☆☆

Temporal Habitude

जमाने का चलन

मालूम नहीं मुझे कि मिट्टी ने है

रंग बदला या  है कोई और वजह

तमाम उम्र अपनापन बो  कर  भी

अकेलापन ही काटते रहते हैं हम..!

☆☆ 

Knoweth not if the soil has changed

its colour or for some other reasons

Despite sowing the camaraderie, lifelong

Why do we, keep reaping aloofness!

☆☆☆☆☆

 ☆ Enigmatic Waves ☆ 

जिस नजाकत से लहरें

पैरों को छूती है ….

यकीन नही होता इन्होंने कभी

कश्तियाँ डूबाई होगी…

☆☆

The tenderness with which the

waves caressed my feet…

Jus can’t believe that sometimes

they only sank the boats…!

☆☆☆☆☆

 ☆ Resolute Loyalty… ☆ 

भले ही साथ रहे सारा ज़माना

बहती हवाओं के साथ…

मगर हमारी वफादारी तो हमेशा

चिरागों के साथ ही रहेगी…!

☆☆

Let the the entire world side 

with  the  blowing  winds,

But my loyalty will always

remain with the lamp only..!

☆☆☆☆☆

Fulfilled Expectations☆ 

मुझे यकीन था कि एक दिन

तुम मुझे भूल जाओगे,

मुबारक हो कि तुम मेरी

उम्मीद पर खरे उतरे…

☆☆ 

I was sure that one day

you would forget me…

I’m glad that you’ve lived

upto my expectations..!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – भाषा ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – भाषा  ? ?

‘ब’ का ‘र’ से बैर है,

‘श’ की ‘त्र’ से शत्रुता,

‘द’ जाने क्या सोच

‘श’,‘म’ और ‘न’ से

दुश्मनी पाले है,

‘अ’ अनमना-सा

‘ब’ और ‘न’ से

अनबन ठाने है,

स्वर खुद पर रीझे हैं,

व्यंजन अपने मद में डूबे हैं,

‘मैं’ की मय में

सारे मतवाले हैं,

है तो हरेक वर्ण

पर वर्णमाला का भ्रम पाले है,

येन केन प्रकारेण

इस विनाशी भ्रम से

बाहर निकाल पाता हूँ,

शब्द और वाक्य बन कर

मैं भाषा की भूमिका निभाता हूँ!

© संजय भारद्वाज 

(रात्रि 11: 55 बजे, 16.12.18 )

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना हम शीघ्र करेंगे। 🕉️ 💥

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares
image_print