हिन्दी साहित्य – कविता ☆ जब तुम नदी बन जाओगी ☆ श्री केशव राजेंद्र प्रसाद शुक्ल ☆

श्री केशव राजेंद्र प्रसाद शुक्ल

(युवा साहित्यकार श्री केशव राजेंद्र प्रसाद शुक्ल जी लखनऊमें पले बढ़े और अब पुणे में सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। आपको बचपन से ही हिंदी और अंग्रेजी कविताएं लिखने का शौक है। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता जब तुम नदी बन जाओगी।)

 ☆ कविता ☆ जब तुम नदी बन जाओगी ☆ श्री केशव राजेंद्र प्रसाद शुक्ल ☆

जब तुम नदी बन जाओगी

 और जब तुम नदी बन जाओगी

तब तुम्हे महसूस हो जायेंगी

वो हज़ारों छोटी बड़ी मछलियां,

जो तैर रही हैं तुममे

महसूस होंगी तुम्हें टकराती हुई

और फिर टूटती हुई चट्टानें 

 

और जब तुम नदी बन जाओगी

तुम्हे पता चलेगा तुम्हारे वेग का।

कही अपनी चंचलता का एहसास होगा 

और कहीं अपनी गहराई का।

 

और जब तुम नदी बन जाओगी

तब भी याद रखना, उन बादलों को

उन हिम खंडों को जो तुम्हे जीवन देने के लिये मिट गए

याद रखना उन सभी कणों को 

जो निस्वार्थ बह चले तुम्हारे साथ

 

और जब तुम नदी बन जाओगी 

वो आएंगे तुम्हारे पास

अपनी प्यास बुझाने, अपने पाप धोने

और कभी बस किनारे पे वक़्त गुजारने

 

आसान नही होगा 

पर मुझे पता है

तुम एक दिन नदी बन जाओगी। 

© केशव राजेंद्र प्रसाद शुक्ल

पुणे मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ ॥ मानस के मोती॥ -॥ मानस में सूक्तियां – भाग – 1॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

मानस के मोती

☆ ॥ मानस में सूक्तियां – भाग – 1 ॥ – प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’☆

बालकाण्ड

मुद मंगल मय सन्त समाजू, जो जग जंगम तीरथ राजू।

बिनु सत्संग विवेक न होई, रामकृपा बिनु सुलभ न सोई।

भलो भलाई पै लहई, लहई निचाई नीचु

सुधा सराहिअ अमरता, गरल सराहिअ मीचु।

जड़ चेतन गुणदोषमय विश्व कीन्ह अवतार।

संत हंस गुण गहहिं पय, परिहरि बारि विकार।

कीरति भनिति भूति भलि सोई, सुरसरि सम सब कहं हित होई।

राम नाम मनि दीप धरु जीह देहरी द्वार।

तुलसी भीतर बाहिरहू जौ चाहसि उजयार।

गुरु के वचन प्रतीति न जेही, सपनेहु सुगम न सुख सिधि तेही।

राम कथा सुन्दर कर तारी, संसय विहंग उड़ावन हारी।

अगुन अनूप अलख अज जोई, भगत प्रेम बस सगुन सो होई।

तुलसी जस भक्तिव्यता, तैसी मिलई सहाय।

आपु न आवई ताहि पहिं, ताहि तहां ले जाय॥

हरि व्यापक सर्वत्र समाना, प्रेम तें प्रकट होहि भगवाना।

उदित उदय गिरी मंच पर रघुकुल बाल पतंग

बिकसे संत सरोज सब हरषे लोचन भृंग॥

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 95 – गीत – शायद याद किया तुमने ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका एक अप्रतिम गीत – शायद याद किया तुमने…।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 94 – गीत – शायद याद किया तुमने✍

शायद याद किया है तुमने कांटे लगे महकने।

खिड़की खुली बजे दरवाजे हवा ठुमकती आई ।

बादल लगा डाकिया जैसा लाया बूँद बधाई।

आँखें ऐसी हुई कि जैसे पंछी लगें चहकने ।

विकल हुई थी मन की धरती बातों बात जुड़ानी

होने लगी ख्वाब की खेती मिला याद का पानी ।

शायद याद किया है तुमने पीड़ा लगी सरसने।

शायद याद किया है तुमने काँटे लगे महकने।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 97 – “धुँधला सब दिख रहा है…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – “धुँधला सब दिख रहा है…”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 97 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || “धुँधला सब दिख रहा है”|| ☆

परी बनी ,हरी-हरी

सी पहिन साडियाँ

सिल्की दिखा किये हैं

सुबह की पहाडियाँ

 

हौले से तह किये

लगीं जैसे दुकान में

ठहरी प्रसन्नता हो ।

खुद के मकान में

 

चिडियों की चहचहाहटों

के खुल गये स्कूल

 पेड़ों के साथ पढ ने

आ जुटीं झाडियाँ

 

धुँधला सब दिख रहा है

यहाँ अंतरिक्ष में

खामोश चेतना जगी है वृक्ष-वृक्ष  में

 

जैसे बुजुर्ग, बादलों

के झूमते दिखें

लेकर गगन में श्वेत-

श्याम बैल गाडियाँ

 

गतिशील हो गई हैं

मौसम की शिरायें

बहती हैं धमनियों में

ज्यों खून सी हवायें

 

या कोई वैद्य आले

को  लगा देखता

कितनी क्या ठीक चल

रहीं, सब की नाडियाँ

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

14-06-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 88 ☆ # नया सवेरा आयेगा # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है पितृ दिवस पर आपकी एक भावप्रवण कविता “# नया सवेरा आयेगा #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 88 ☆

☆ # नया सवेरा आयेगा # ☆ 

कब तक अंधकार में भटकोगे

कब तक जुमलों से बहकोगे

कब तक सच के लिए तरसोगे

हाथ उठाओ

आवाज लगाओ

लोगों को जगाओ

तब यह तिमिर छट जायेगा

नया सवेरा आयेगा

 

चारों तरफ दीवारें हैं

रास्ते बंद सारे हैं

सब गम के मारे हैं

सबको गले लगाना होगा

पत्थरों मे राह बनाना होगा

अंधविश्वास भगाना होगा

तब यह शोषण घट जाएगा

नया सवेरा आयेगा  

 

कांटों भरी राह है

दुश्वारियां अथाह है

कदम कदम पर आह है

शिकंजों में कसे जाओगे

यातनाएं हजार पाओगे

हो सकता है मारे जाओगे

तब मरने का डर मिट जाएगा

नया सवेरा आयेगा

नया सवेरा आयेगा /

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ ॥ मानस के मोती॥ -॥ मानस में लोकोत्तियां – भाग – 3॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

मानस के मोती

☆ ॥ मानस में लोकोत्तियां – भाग – 3 ॥ – प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’☆

उत्तरकाण्ड

मृग लोचनि के नैनसर को अस लागि जाहि।

चिंतासांपिनी को नहि खाया, को जग जाहि न लागी माया।

सुत वित लोक ईसना तीनी, केहि के मति इन्ह कृत न मलीनी।

सकल सोकदायक अभिमाना।

ऐसेहि हरि बिन भजन खगेशा, मिटहिं न जीवन देकर कलेशा।

भगतहीन गुन सब सुख ऐसे, लवन बिना बहु व्यंजन जैसे।

नारी मुई गृह संपति नासी, मूड़ मुड़ाई होहिं सन्यासी।

अति संघरषन करि जो कोई, अनल प्रगट चन्दन ते होई।

ईश्वर अंस जीव अविनासी, चेतन अमल सजह सुखरासी।

ग्यानपंथ कृपाण की धारा, परत खगेश होहिं नहिं बारा।

संत सहहिं दुख पर हित लागी, पर दुख हेतु असंत अभागी।

श्रुति पुरान सब ग्रंथ कहाहीं, रघुपति भगति बिना सुख नाहीं।

बारि मथे घृत होई बरु सिकता ते बरु तेल।

बिनु हरि भजन न भव तरिअ यह सिद्धांत अपेल॥

रामकथा के तेई अधिकारी जिन्ह के सत्संगति अति प्यारी।

केहि के लोभ विडम्बना जिन्ह न एहि संसार।

जाने बिन न होई परपीती, बिन परतीती होई नहिं प्रीती।

बिनु संतोष न काम नसाहीं, काम अछत सुख सपनेहु नाहीं।

तृस्ना केहि न कीन्ह बौराहा, केहिकर हृदय क्रोध नहिं दाहा।

मत्सर काहि कलंकु न लावा, काहि न सोक समीर डौलावा।

रवि सन्मुख तम कबहुं कि जाही।

बिन हरि भजन न जाहिं कलेशा।

कोटि भांति कोऊ करे उपाई, कहुं थल बिनु जल रह न सकाई।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 99 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

?  Anonymous Litterateur of Social Media # 99 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 99) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 99 ?

 ☆☆☆☆☆

Pampering of Life…

कभी आँखों पे तो कभी

सिर पे बिठाए रखना,

ज़िंदगी तल्ख़ ही सही

मगर दिल से लगाए रखना

 ☆ 

Always regale abundantly

keep pampering yourself

Life, though is tough, but

keep loving it joyously…!

 ☆☆☆☆☆

 …And, He keeps his word…

ज़ंजीर-ए-दर खड़का के वो

चला भी गया रात बिरात,

हम सोचते ही रह गए

ये शरारत हवा की है..!

 ☆

He even went away, clinking

the door chainlet at night 

We kept on thinking it was

a mischief of the wind..!

☆☆☆☆

कभी  आँखों  पे  तो कभी

सिर पे बिठाए रखना,

ज़िंदगी  तल्ख़  ही  सही

मगर दिल से लगाए रखना…

 ☆

Always regale abundantly

keep pampering  yourself 

Life, though is tough, but

keep  loving  it  joyously..!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 99 ☆ राजस्थानी मुक्तिका : … तैर भायला ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित राजस्थानी मुक्तिका : … तैर भायला)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 99 ☆ 

☆ राजस्थानी मुक्तिका : … तैर भायला ☆

लार नर्मदा तैर भायला.

बह जावैगो बैर भायला..

 

गेलो आपून आप मलैगो.

मंजिल की सुण टेर भायला..

 

मुसकल है हरदां सूँ खडनो.

तू आवैगो फेर भायला..

 

घणू कठिन है कविता करनो.

आकासां की सैर भायला..

 

सूल गैल पै यार ‘सलिल’ तूं.

चाल मेलतो पैर भायला..

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

३-५-२०१२

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ बदल रही हूँ मैं ☆ सुश्री रुचिता तुषार नीमा ☆

सुश्री रुचिता तुषार नीमा

(ई-अभिव्यक्ति में युवा साहित्यकार सुश्री रुचिता तुषार नीमा जी का हार्दिक स्वागत है।आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण एवं विचारणीय कविता बदल रही हूं मैं ।) 

जीवन परिचय

शिक्षा – स्नातकोत्तर (जूलॉजी) होलकर साइंस कॉलेज, B.Ed. (IGNOU) 

प्रकाशन – अनेक पत्र पत्रिकाओं में कविताओं और लघुकथा का प्रकाशन एवम साझा कृतियों में प्रकाशन

प्राप्त सम्मान / पुरस्कारः  सुर्मिला अलंकरण (नेमा दर्पण) काव्य आभा अलंकरण, वर्तिका शक्ति श्री सम्मान शब्द साधना अलंकरण, मध्यप्रदेश नारी गौरव सम्मान. मंथन काव्य पीयूष अलंकरण, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच एवम अन्य जगहों पर सम्मानित

☆ कविता – बदल रही हूं मैं ☆ सुश्री रुचिता तुषार नीमा ☆

आज भी वही सुबह होती है,

वही खूबसूरत शामें भी होती है,

 

लगता जैसे सबकुछ पहले जैसा है….

 

लेकिन अब वक्त बदल गया है,,,

साथ में लोग भी बदल गए हैं।।

 

दुनिया के साथ साथ अब मैं भी… 

 

थोड़ी जिम्मेदार हो रही हूँ…

थोड़ी सी समझदार हो रही हूँ…

 

इस बदलती दुनिया के साथ…

अब मैं भी खुद को बदल रही हूँ ।।

© सुश्री रुचिता तुषार नीमा

इंदौर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ ॥ मानस के मोती॥ -॥ मानस में लोकोत्तियां – भाग – 2॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

मानस के मोती

☆ ॥ मानस में लोकोत्तियां – भाग – 2 ॥ – प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’☆

अयोध्याकाण्ड

चोरहिं चांदनी रात न भावा

ऊँच निवास, नीच करतूती, देखि न सकहिं पराई विभूति।

कोउ नृप होऊ हमहिं का हानी, चेरी छाडि़ न होउब रानी।

हित अनहित पशु-पक्षिहु जाना

नहि असत्य सम पातक पुंजा।

पीपर पात सरिस मन डोला।

भई गति सांप छछूंदर केरी।

पिय वियोग सम दुख जग नाहीं।

जिय बिनु देह नदी बिना बारी, तैसहि नाथ पुरुष बिन नारी।

जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी, सो नृप अवसि नरक अधिकारी।

बैर प्रीति नहिं दुरई दुराये।

सबते सेवक धरम कठोरा।

करम प्रधान विश्व करि राखा जौ जस करई तो तस फल चाखा।

सूझ जुआरिहिं आपन दाऊं।

किष्किंधा काण्ड

जे न मित्र दुख होंहि दुखारी, तिनहिं विलोकत पातक भारी।

सत्रु-मित्र, सुख-दुख जग माहीं-मायाकृत परमारथ नाहीं।

अनुज वधू भगिनी सुत नारी, सुन सठ ये कन्या समचारी।

सुर नर मुनि सबकी यह रीती स्वास्थ्य लागि करहिं सब प्रीती।

सोई गुणज्ञ सोई बड़भागी, जो रघुवीर चरण अनुरागी।

सुन्दरकाण्ड

प्रविसि नगर कीजै सब काजा, हृदय राखि कौशलपुर राजा।

गरल सुधा रिपु करहिं मिताई, गौपद सिंधु अनल सितलाई।

ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी, सकल ताडऩा के अधिकारी।

लंकाकाण्ड

नारी स्वभाव सत्य सब कहहीं, अवगुन आठ सदा उर रहहीं।

पर उपदेश कुशल बहुतेरे, जे आचरहिं ते नर न घनेरे।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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