मानस के मोती

☆ ॥ मानस में सूक्तियां – भाग – 1 ॥ – प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’☆

बालकाण्ड

मुद मंगल मय सन्त समाजू, जो जग जंगम तीरथ राजू।

बिनु सत्संग विवेक न होई, रामकृपा बिनु सुलभ न सोई।

भलो भलाई पै लहई, लहई निचाई नीचु

सुधा सराहिअ अमरता, गरल सराहिअ मीचु।

जड़ चेतन गुणदोषमय विश्व कीन्ह अवतार।

संत हंस गुण गहहिं पय, परिहरि बारि विकार।

कीरति भनिति भूति भलि सोई, सुरसरि सम सब कहं हित होई।

राम नाम मनि दीप धरु जीह देहरी द्वार।

तुलसी भीतर बाहिरहू जौ चाहसि उजयार।

गुरु के वचन प्रतीति न जेही, सपनेहु सुगम न सुख सिधि तेही।

राम कथा सुन्दर कर तारी, संसय विहंग उड़ावन हारी।

अगुन अनूप अलख अज जोई, भगत प्रेम बस सगुन सो होई।

तुलसी जस भक्तिव्यता, तैसी मिलई सहाय।

आपु न आवई ताहि पहिं, ताहि तहां ले जाय॥

हरि व्यापक सर्वत्र समाना, प्रेम तें प्रकट होहि भगवाना।

उदित उदय गिरी मंच पर रघुकुल बाल पतंग

बिकसे संत सरोज सब हरषे लोचन भृंग॥

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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