हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – संतृप्त ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – संतृप्त ??

दुनिया को जितना देखोगे,

दुनिया को जितना समझोगे,

दुनिया को जितना जानोगे,

दुनिया को उतना पाओगे..,

अशेष लिप्सा है दुनिया,

जितना कंठ तर करेगी,

तृष्णा उतनी ही बढ़ेगी..,

मैं अपवाद रहा

या शायद असफल,

दुनिया को जितना देखा,

दुनिया को जितना समझा,

दुनिया में जितना उतरा,

तृष्णा का कद घटता गया,

भीतर ही भीतर एक

संतृप्त जगत बनता गया

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ आषाढ़ मास साधना- यह साधना आषाढ़ प्रतिपदा तदनुसार सोमवार 5 जून से आरम्भ होकर देवशयनी एकादशी गुरुवार 29 जून तक चलेगी। 🕉️

💥 इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – 🕉️ ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।🕉️💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 85 ⇒ चाय की भाषा… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “चाय की भाषा”।)  

? अभी अभी # 85 ⇒ चाय की भाषा? श्री प्रदीप शर्मा  ? 

भाषा और परिभाषा में बहुत अंतर होता है। पक्षियों की भी अपनी भाषा होती है। एक भाषा नैनों की भी होती है। बिहारी की भाषा में कहें तो ;

भरे भौन में करत है

नैनन ही सो बात !

और हमारी भाषा में ;

आँखों आँखों में बात होने दो।

अक्सर हम बॉडी लैंग्वेज की बात करते हैं, वह भाषा जो संकेत की भी हो सकती है, इशारों की भी हो सकती है। जो लोग चाय से प्रेम करते हैं, उनकी भी एक भाषा होती है।

बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद ! फलसफा चाय का तुम क्या जानो। तुमने कभी चाय ना पीया। चाय में एक आकर्षण होता है, जो चुंबक की तरह चाय प्रेमी को अपनी ओर खींचता है। चाय किसी चाय दिवस का इंतजार नहीं करती। हमने ऐसे ऐसे टी टोटलर देखे हैं, जो सिर्फ चाय पीते हैं, चाय के लिए ही जीते हैं, चाय के लिए ही मरते हैं। ।

यही चाय तीसरी कसम की चहा थी, जो इस्स कहते हुए लोटे में पी जाती थी। हमने अंग्रेजों का जमाना भले ही ना देखा हो, हमारी दादी, नानी का जमाना जरूर देखा है, जहां घरों में कप प्लेट वर्जित थे और चाय पीतल और कांसे की कटोरियों और तश्तरियों में डालकर सुड़क के साथ पी जाती थी।

सारी खुमारी चाय से ही तो दूर होती थी। कभी कभी तो फूंक मारने के बावजूद जीभ जल जाती थी, लेकिन एक बार जिसकी जबान पर चाय का स्वाद चढ़ गया, वह छाले भी बर्दाश्त कर लेता था। लागी नाहिं छूटे रामा, चाह जिंदगी की।।

कभी होगी लिप्टन माने अच्छी चाय और ब्रुक बॉन्ड विदेशी चाय, आज तो देश के नमक वाले टाटा और बाघ बकरी की चाय एक ही ठेले पर उपलब्ध है।

चाय शौक भी है और आदत भी। किसी की जिंदगी तो किसी की मजबूरी। हमने बचपन में कभी ब्रेड और बिस्किट नहीं खाए, चाय के साथ रात की ठंडी रोटी ही कभी हमारा ब्रेकफास्ट तो कभी स्कूल के टिफिन का विकल्प था। मिड डे मील कहां हमारे नसीब में कभी था।

भाषा की तरह चाय की भी तजहीब होती है। लेकिन जीभ कभी तहजीब की मोहताज नहीं। आप चाय कप से पीयें या प्लेट से, ग्लास में पीयें या लोटे में, ठंडी करके पीयें या गर्मागर्म उकलती, कड़क मीठी अथवा कम फीकी, पसंद अपनी अपनी स्वाद अपना अपना। कुछ लोग ट्रे की चाय पसंद करते हैं। चाय का पानी अलग, दूध अलग, चीनी अलग। अपनी चाय सबसे अलग।।

मत पूछिए, चाय में क्या है ऐसा। जो आप जिंदगी भर चाय पी पीकर हासिल नहीं कर पाए, वो एक शख्स ने केवल चाय बेचकर हासिल कर लिया।

यह उपलब्धि किसी गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रेकॉर्ड्स जैसी जगह शामिल नहीं की जा सकती, क्योंकि यह कोई रेकॉर्ड नहीं एक चमत्कार है, न भूतो न भविष्यति।

चाय के प्याले में कभी तूफान आता था। आजकल ग्रीन रिवोल्यूशन का जमाना है। बाजार में स्वास्थ्यवर्धक ग्रीन टी भी आ गई है। नशे और शान में अंतर होता है। यह तो यही हुआ, आप किसी को व्हिस्की ऑफर कर रहे हैं, लेकिन वे महाशय नींबू पानी से आगे ही नहीं बढ़ रहे।।

हो जाए प्याले में क्रांति, दुनिया भर में चाय पर राजनीतिक चर्चा और ग्रीन टी रिवोल्यूशन, न हम कभी चाय छोड़ेंगे और ना ही हमारा चाय वाला हमें छोड़ेगा। हम भी आदत से मजबूर और चाय वाला पहले से भी और अधिक मजबूत..!!

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ लघुकथा – स्वच्छता अभियान… ☆ श्री सदानंद कवीश्वर ☆

श्री सदानंद कवीश्वर 

संक्षिप्त परिचय

भारत में जन्म, वाणिज्य स्नातक, नई दिल्ली में स्थाई निवास। विश्व-प्रसिद्ध कंपनी ‘डाबर’ से सेवानिवृत्त, लेखन, पठन तथा संगीत में रुचि। एक एकल लघुकथा संग्रह- ‘फिर मिलेंगे’ तथा छह साझा संग्रह प्रकाशित। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में दोहे, कुण्डलियाँ, हाइकू, लेख, निबंध तथा लघुकथाएँ नियमित रूप से प्रकाशित। लघुकथाओं का पंजाबी, मराठी, भोजपुरी, मैथिलि व बांग्ला आदि भाषाओं में अनुवाद तथा सम्बद्ध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन।

✍ लघुकथा – स्वच्छता अभियान… ☆ श्री सदानंद कवीश्वर

झुग्गियों में रहने वाला केशव अपनी दोनों जेबों में मोतीचूर के लड्डू ठूँसते हुए तेज़ी से पार्क में पडी थर्मोकोल की प्लेट्स, दोने, पानी के डिस्पोज़ेबल गिलास और मुसे हुए टिश्यू पेपर उठा रहा था। उसने सब कुछ उठा कर कूड़ेदान में डाला और गेट के पास खड़े अपने दोस्त के पास जाकर उसे भी एक लड्डू दिया।

“अरे, यह लड्डू किसने दिया और तू यह कचरा क्यों बीन रहा था ?”

“तुझे तो कुछ पता ही नहीं होता”, केशव बोला, “आज विधायक जी आए थे यहाँ, ‘स्वच्छता अभियान’ का उद्घाटन करने। सबसे पहले विधायक जी का भाषण हुआ। उन्होंने अपने आसपास की जगह को साफ़ रखने तथा कूड़ेदान के प्रयोग का महत्व बताया। फिर जितने लोग आए थे, सबने अपने घर के साथ-साथ पार्क और सड़क को साफ़ रखने की कसम खाई। चार बड़े कूड़ेदान पार्क में लगवाए गए। उसके बाद नाश्ता हुआ और तब मुझे पार्क में चारों ओर पड़े दोने, प्लेट आदि उठा कर इस जगह को साफ़ करने के बदले 4 मोतीचूर के लड्डू दे के, अभी तो गए हैं सब लोग यहाँ से।

© श्री सदानंद कवीश्वर

संपर्क – 9810420825

[email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक की पुस्तक चर्चा # 142 – “चित्त शक्ति विलास…” – स्वामी मुक्तानन्द ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जो  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है स्वामी मुक्तानन्द जी द्वारा रचित पुस्तक  चित्त शक्ति विलासपर पुस्तक चर्चा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 142 ☆

☆ “चित्त शक्ति विलास…” – स्वामी मुक्तानन्द ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

पुस्तक चर्चा 

चित्त शक्ति विलास

स्वामी मुक्तानन्द

गुरुदेव शक्ति पीठ, गणेशपुरी

 चर्चा विवेक रंजन श्रीवास्तव, भोपाल

जीवन क्या है, क्यों है, क्या भगवान कहीं ऊपर एक अलग स्वर्ग की दुनियां में रहते हैं, परमात्मा प्राप्ति का तरीका क्या है, ऐसी जिज्ञासायें युगों युगों से बनी हुई हैं. जिन तपस्वियों को इन सवालों के किंचित उत्तर मिले भी, उन्हें इस ज्ञान की प्राप्ति तक इतने दिव्य अनुभव हो जाते हैं कि वे उस ज्ञान को दूसरों तक पहुंचाने में रुचि खो देते हैं, कुछ अपने मठ या चेले बनाकर इस ज्ञान को एक संप्रदाय में बदल देते हैं. आशय यह है कि यह परम ज्ञान जिसमें हम सब की रुचि होती है, हम तक बिना तपस्या के पहुंच ही नहीं पाता. “चित्त शक्ति विलास” में इस तरह के सारे सवालों के उत्तर सहजता से मिल जाते हैं. भगवान कहीं और नहीं हमारे भीतर ही रहता है. हम भगवान के ही अंश हैं.

गृह्स्थ जीवन में रहते हुये जीवन के इस अति आवश्यक तत्व से आम आदमी अपरिचित ही बना रह जाता है. किन्तु सिद्ध मार्ग के अनुयायी स्वामी मुक्तानन्द के गुरू स्वामी नित्यानंद थे. गुरु के शक्ति पात से स्वामी मुक्तानन्द का कुण्डलनी जागरण हुआ. इस किताब को माँ कुण्डलिनी का वैश्विक विलास कहा गया है. १९७० में प्रथम संस्करण के बाद से अब तक इस किताब की ढ़ेरों आवृत्तियां छप चुकी हैं. यह मेरे पढ़ने में आई यह मुझ पर परमात्मा की कृपा ही है. इसकी किताब की चर्चा केवल इसलिये जिससे जिन तक यह दिव्य ज्ञान प्रकाश न पहुंच सका हो वे भी उससे अवंचित न रह जायें.

सत्य क्या है ? ” शास्त्र प्रतीति, गुरू प्रतीति, और आत्म प्रतिति में अविरोध ही सत्य है.

“मैं, मेरी जाती रहे अल्प भावना, हृद्य में उदय चित्त ज्ञान हो ” यही प्रार्थना स्वामी मुक्तानन्द अपने गुरुदेव से करते हैं, हमें भी इसका अनुसरण करना चाहिये.

आमुख में ही वे इस दिव्य ज्ञान को उजागर करते हुये स्वामी मुक्तानन्द लिखते हें कि “

संसारी जन अपने सभी व्यवहारों के साथ सिद्ध योग का अभ्यास सहजता से कर सकते हैं. यह मार्ग सभी के लिये खुला है. यह कुण्डलिनी शक्ति पदावरूपिणी महादेवी है। इसे कुण्डलिनी के नाम से पुकारते हैं, जो मूलाधार कमल के गर्भ में मृणाल मालिका के समान निहित है। यह कुण्डल आकार में रहती है. वह स्वर्णकान्तियुक्त, तेजोमय है। यह परंशिव की परम निर्भय शक्ति है। वही नर या नारी में जीवरूपिणी शक्ति है। यह प्राणरूप है। मानव अपनी इस अन्तरंग शक्ति को जानकर संसार में रहते हुए उसका उपयोग कर सके इसी उद्देश से मैं इस शक्ति का वर्णन कर रहा हूँ। कुण्डलिनी प्राणवस्वरूप है। उस पारमेश्वरी कुण्डलिनी शक्ति के जग जाने पर जो संसार रुखा, सूखा, रसहीन, असन्तोषयुक्त दिखता है वही रसवान, हराभरा, पूर्ण सन्तोषरूपी बन जाता है।

जो आल्हादिनी, विश्वविकासिनी, पारमेश्वरी शक्ति है, जो चिति भगवती है। वही कुल-कुण्डलिनी है। वह कुण्डलाकार में मूलाधार में स्थित होकर हमारे सर्वांग के व्यवहारों को नियमबद्ध करती है। वह श्रीगुरुकृपा द्वारा जागकर सर्वाग- सहित मानव के इस संसार को उसके अदृष्टानुरूप विकसित करके संसार के जनो में एक दूसरे के प्रति परम मैत्रीपूर्ण ‘परस्पर देवो भव’ की भावना का उदय करते हुए, संसार को स्वर्गमय बनाती है। संसार में जो कुछ भी अपूर्ण है उसे पूर्ण करती है।

यह पारमेश्वरी शक्ति जिस पुरुष में अनुग्रहरूप से जगती है, उसका कायापलट हो जाता है। यह ज्ञान न कल्पित है और न केवल मुक्तानन्द का ही श्रुतिवाक्य है। रुद्रहृदयोपनिषद् का एक सत्य, प्रमाण-मन्त्र है :

 “रुद्रो नर उमा नारी तस्मै तस्यै नमो नमः।”

अर्थात इससे ऐसा ज्ञान उदित होता है कि जो आदि-सनातन सत्य, साक्षी परमेश्वर, जगत का मूल कारण, परमाराध्य, निर्गुण, निराकार एवं अज है, वही नर है।

नाम प्रकट परमात्मा है। इसलिये भगवान नाम जपो। नाम ध्याओ’ नाम गाओ । नाम का ही ध्यान करो। नाम जप होता है या नहीं इतना ही ध्यान बहुत है। नाम जपसाधना में रुचि और गुरू में प्रेम पूर्ण | ध्यान की कला देता है। प्रेम की प्रतीति देता है। नाम चिन्ता मणि है। नाम कामधेनु है। नाम कल्पतरू है। दाता है। सच पूछों तो भगवान का नाम वह मंत्र है जो तुमको गुरु से मिला है।

किताब में पहले खण्ड में सिद्धमार्ग के अंतर्गत परमात्मा प्राप्ति के उपाय बताये गये हैं. संसार सुख के लिये ध्यान की आवश्यकता समझाई गई है. जो जिसका ध्यान करेगा उसे वही प्राप्त होता है. परमात्मा का ध्यान करें तो परमात्मा ही मिलेंगे. हर व्यक्ति व स्थान का एक आभा मण्डल होता है अतः एक ही स्थान पर ध्यान करना चाहिये तथा उस स्थान की आभा बढ़ाते रहना चाहिये. स्वामी जी ने उनके साधना काल की अनुभूतियों का भी विशद वर्णन किया है. द्वितीय खण्ड में सिद्धानुशासन के अंतर्गत स्पष्ट बताया गया है कि भगवतत् प्राप्ति के लिये संसार मेंरहते हुये भी मैं और मेरा का त्याग करो, घर का नहीं. सिद्ध विद्यार्थियों के अनुभव भी परिशिष्ट में वर्णित हैं.

यह एक दिव्य ग्रंथ है जो जन सामान्य गृहस्थ को कुण्डलिनी जागरण से परमात्मा प्राप्ति के अनुभव करवाता है.

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

समीक्षक, लेखक, व्यंगयकार

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३, मो ७०००३७५७९८

readerswriteback@gmail.कॉम, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #4 ☆ कविता – “यादें…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #4 ☆

 ☆ कविता ☆ “यादें…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

यादें आपकी छुपी है

उस धड़कन की तरह

जो दूसरों को नहीं दिखती

मगर इंसान को जिंदा रखती है

 

क्या किसी पल में

है कभी धड़कन रुकी?

क्या किसी लम्हें से कभी

है आप जुदा हुई?

 

जब भी आता है

दिन वो हार का

आपकी यादें तरसाती हैं

उस खूबसूरत चांद की तरह

 

और जब भी आती है

वोह रात जीत की

आपकी यादें सुलगती हैं

उस बेदिल सूरज की तरह

 

जंग के लम्हों में

तुम खूब याद आती हो

 

और …..

 

जीत के लम्हों में

तुम ‘बेहद‘ याद आती हो…

 

©️ आशिष मुळे

 

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 166 ☆ गीत – पुकारती माँ भारती ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 131मौलिक पुस्तकें (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित तथा कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी संस्थान के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 166 ☆

गीत – पुकारती माँ भारती ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

जाग जाओ अब युवा

पुकारती माँ भारती।

लक्ष्य लेकर चल पड़ो

पूर्णिमा निहारती।।

 

अंधकार चीर दो।

न किसी को पीर दो।

श्रम का हाथ थामकर

कुछ नई लकीर दो।।

 

धीरता को पूज कर

नित्य करो आरती।

जाग जाओ अब युवा

पुकारती माँ भारती।।

 

इस धरा का रक्त है।

अल्प – सा ही वक्त है।

सामने आगे खड़ा

वीरता का तख्त है।।

 

जो शिखर पर बढ़ चले

मुश्किलें भी हारतीं।

जाग जाओ अब युवा

पुकारती माँ भारती।।

 

सत्यता की जीत है

श्रेष्ठ सबसे प्रीत है।

साधना ही त्याग का

माधुरी नवनीत है।।

 

शत्रुओं को दो सबक

माँ भारती पुकारती।

जाग जाओ अब युवा

पुकारती माँ भारती।।

 

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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सूचनाएँ/Information ☆ श्री ओमप्रकाश ‘क्षत्रिय’ महाराजा सूरजमल बालसाहित्य सम्मान से सम्मानित – अभिनंदन ☆

☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

श्री ओमप्रकाश ‘क्षत्रिय’ महाराजा सूरजमल बालसाहित्य सम्मान से सम्मानित – अभिनंदन

रतनगढ़ (निप्र)। “विज्ञान की कठिन अवधारणा को समझाने के लिए बाल कहानी सबसे उत्तम साधन है। उसी साधन का प्रयोग करके मैंने बाल कहानियां लिखी है।” उक्त विचार जयपुर साहित्य संगीति के 25 जून को संपन्न हुए सर्वोत्कृष्ट रचना सम्मान समारोह के लघु साक्षात्कार में बोलते हुए प्रसिद्ध साहित्यकार ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ने व्यक्त किए। कार्यक्रम के संचालन प्रख्यात साहित्यकार अरविंद कुमारसंभव द्वारा महाराजा सूरजमल बाल साहित्य सम्मान- 2023 से सम्मानित करने के तुरंत उपरांत लिए गए लघु साक्षात्कार में आपने  व्यक्त किए हैं।

इस सम्मान समारोह में देशभर से करीब 45 से अधिक साहित्यकारों को उनकी प्रविष्टि से प्राप्त चुनिंदा पुस्तकों के आधार पर आमंत्रित किया गया था। राजस्थान सरकार की ओएसडी माननीय फारूक अफरीदीजी सहित सौ से अधिक गणमान्य साहित्यकारों के समक्ष सभी साहित्यकारों को सम्मानित किया गया। इसी के पश्चात घटते पाठक वर्ग के संकट पर विचार विमर्श किया।

ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ को उनकी विज्ञान की सर्वोत्कृष्ट कृति के आधार पर राजस्थान के रणबांकुरे वीर योद्धा की स्मृति में महाराजा सूरजमल बाल साहित्य सम्मान- 2023 हेतु प्रशस्ति पत्र, प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया गया।

इस कार्यक्रम में देश भर से निम्न साहित्यकार भी सम्मिलित हुए थे-

इस समारोह में प्रमुख रूप से नीलम राकेश चंद्रा, राकेश चंद्रा, शील कौशिक, मेजर कौशिक, दीनदयाल शर्मा, डॉक्टर लता अग्रवाल, सुशीला शर्मा, कीर्ति श्रीवास्तव, फारुक अफरीदी साहब, प्रबोध गोविल, अखिलेश पालरिया, प्रभा पारीक, अनीता गंगाधर द्वय, राजकुमार निजात, विमला नागला की प्रतिनिधि पुत्रपुत्री, अजय राणा, मधु कुलश्रेष्ठ, नीलम कुलश्रेष्ठ, पूजा अलापुरिया, चेतना उपाध्याय, पूनम मनु, मुकेश सिन्हा, अश्वनी शांडिल्य, रामकिशोर उपाध्याय, रमेश आनंद, हरगोविंद मैथिल, उदय प्रताप, नीलिमा तिग्गा, दशरथ सोलंकी, भावना शर्मा, आर. एल दीपक, रमेश लक्षकार, सीमा राय, हरीश आचार्य, ताराचंद मकसाने, अलका अग्रवाल, प्रो. राजेश कुमार, रामेश्वरी नादान,परी जोशी, सुशील सरित, सहित अनेक देशभर से पधारे हुए साहित्यकार साथी उपस्थित रहे हैं।

💐 ई- अभिव्यक्ति परिवार की और से श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ जी को इस विशिष्ट सम्मान के लिए हार्दिक बधाई 💐

– श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सुजित साहित्य #167 ☆ पाऊस… ☆ श्री सुजित कदम ☆

श्री सुजित कदम

? कवितेचा उत्सव ?

☆ सुजित साहित्य # 167 ☆ पाऊस☆ श्री सुजित कदम ☆

तुझ्या माझ्यातला पाऊस

आता पहिल्यासारखा

राहिला नाही..

तुझ्या सोबत जसा

पावसात भिजायचो ना

तसं पावसात भिजण होत नाही

आता फक्त मी पाऊस

नजरेत साठवतो…

आणि तो ही

तुझी आठवण आली की

आपसुकच गालावर ओघळतो..

तुझं ही काहीसं

असंच होत असेल

खात्री आहे मला

तुझ्याही गालावर नकळत

का होईना

पाऊस ओघळत असेल…!

 

© श्री सुजित कदम

संपर्क – 117, विठ्ठलवाडी जकात नाका, सिंहगढ़   रोड,पुणे 30

मो. 7276282626

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ विठ्ठला ☆ श्री रमेश जावीर ☆

? कवितेचा उत्सव ?

☆ विठ्ठला ☘️ श्री रमेश जावीर 

पंढरीच्या पांडुरंगा विठ्ठला विठ्ठला

आठवणीने कंठ माझा दाटला

शेतामध्ये राबतो मी  घाम हा फुटला

तुझे गीत मी गातो एकला एकला

पाहतो   वर आभाळात  थेंब हा कुठला

उरी माझ्या कंठ दाटे पायी काटा  रुतला

 ध्यान  तुझे मनी दाटे जीव हा  सुकला

सुखी ठेव देवराया सकला सकला

 कमरेचे हात सोड धीर हा सुटला

 नाठाळ हे जगी लोक आण वठणीला

 

© श्री रमेश जावीर

खरसुंडी, सांगली

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ “त्या तीन कविता…” ☆ सौ कल्याणी केळकर बापट ☆

सौ कल्याणी केळकर बापट

? विविधा ?

“त्या तीन कविता…” ☆ सौ कल्याणी केळकर बापट ☆

आपल्याला वाचनाची गोडी असली की आपण वेळ मिळेल तेव्हा,वाचायला जे मिळेल ते अधाशासारखं वाचीत असतो.वाचतावाचता काही साहित्य मात्र मेंदूच्या कप्प्यात, ह्रदयाच्या गाभाऱ्यात अलवार जाऊन विराजमान होतं आणि कायमस्वरूपी ठाणच मांडून बसतं. वाचतांना एक गोष्ट लक्षात आली लेखन करतांना पद्यरचना जरा तरी लिहावयास सुलभ कारण आपल्याला जे सांगायचं असतं त्यासाठी भरपूर लेखन आपण करु शकतो पण त्यामानाने गद्यलेखन मात्र जरा अवघड, किचकट कारण अत्यंत कमी शब्दांत आपल्याला सगळं सार उलगडून सांगावं लागतं. त्यामुळेच कविता,चारोळ्या करणाऱ्या मंडळींच जरा जास्त कौतुक वाटतं.

अशाच तीन कविता माझ्या डोक्यात फिट बसल्यात, मनात घर करून बसल्यात. त्या तीन कविता म्हणजे प्रणय पत्रिका, चाफा बोलेना आणि गाई पाण्यावर…..

दरवेळी ह्या कविता वाचतांना, ऐकतांना नव्यानेच ऐकल्यागत एक वेगळीच ओढ,उर्मी जाणवते. मग अजून अभ्यास करता लक्षात आलं की ह्या तिनही कवितांचा रचयिता ही एकच व्यक्ती आहे.आज ह्या कवीचा जन्मदिन.  त्यांना विनम्र अभिवादन.

कवी “बी” म्हणजेच कवी नारायण मुरलीधर गुप्ते ह्यांनी प्रणय, कौटुंबिक, ऐतिहासिक व सामाजिक विषयांवर कविता केल्या आहेत.  मी मागेच कवी बी ह्यांच्या विषयीचा समग्र लेख त्यांच्या दोन  कवितांबद्दल लिहीला होताच. आज त्यांच्या प्रणय पत्रिका ह्या कवितेबद्दल विचार करू.

त्यांची पहिली कविता ‘प्रणय पत्रिका‘ ही वर्‍हाडात चिखलदरा येथे दिनांक १४ सप्टेंबर १८९१ रोजी लिहिली गेली. त्यावेळी ते सुमारे १९ वर्षांचे असावेत. अवघं एकोणवीस वर्षांचे वय,त्यावेळेचा काळ आणि विषय प्रणय पत्रिका म्हणजे एक धाडसचं. अजूनही ह्या विषयाच्या उल्लेखाने भु्वया ह्या उंचावल्या जातात. त्याकाळी हा विषय हाती घेणं म्हणजे एक दिव्यच. ही कविता त्याच वर्षी कै. हरिभाऊ आपटे यांच्या ‘करमणूक’ पत्रात प्रसिद्ध झाली.

अनेक दिवस झाले तरी प्रियकराची क्षेमकुशल सांगणारी खबरबात असलेले पत्र  आले नाही म्हणून जरा बावरलेल्या,चिंताग्रस्त  प्रेयसीने आपल्या प्रियकराला लिहिलेले पत्र म्हणजे ‘प्रणय पत्रिका’..काय नसतं ह्या भावनेत, एक उत्कटता,काळजी,प्रेम ,घालमेल ह्या सगळ्याचा अविष्कार.

किति तरि दिन झाले ! भेट नाही पदांची,

करमत मज नाही; वेळ वाटे युगाची.।।

ह्या ओळींवरुन बरेच दिवस भेट न झाल्याने होणारी तगमग,ओढ जाणवते.भेट न झाल्याने क्षण न क्षण हा हळूहळू युगासारखा भासू लागतो.

    तरल मन नराचे राहते ऐकते मी

    विसर बघुनि पावे अन्य पात्रास नामी.

    ह्या तरल भावनेचा,मानसिकता गुंतवणूकीचा

विसर तर पडला नसेल ना ह्या भितीने मनात घर केल्या गेल्यावर ह्या ओळी सुचतात.

     कमलिनि भ्रमराला नित्य कोशात ठेवी

      अविरत म्हणुनी तो पंकज प्रेम दावी.

 

     विसर पडुनि गेला काय माझाही नाथा ?

     म्हणुनिच धरिले हे वाटते मौन आता

त्या भ्रमराला नित्य सहवासात म्हणजे कोषात ठेवल्याने हे प्रेम वाढीस लागतं .तुझं हे मौन प्रेमाचा विसर पडल्याचं द्योतक तर नाही ही भिती वारंवार जाणवते.

ह्यात एक दुसराही गहन अर्थ लपलायं तो म्हणजे प्रेयसीचा उद्वेग, वैताग, तडफड हा प्रेमाचा एक अविष्कार तर तेवढीच तीव्रता तिचा प्राणप्रिय सखा आपल्या मौनाद्वारे मनातल्या मनात दाबून टाकतो.

“चाफा बोलेना,चाफा चालेना” ही कविता आम्हाला अकरावी,बारावीत मराठी अभ्यासक्रमात होती.खरतरं  घटना एकचं, पण निरनिराळ्या व्यक्ती ह्या घटनेकडे वेगवेगळ्या अँगलने बघतात.हे बघितल्यावर अचंबित व्हायला होतं.”चाफा”ही कविता खरतरं पूर्णतः सहजासहजी कोणाला नीटशी कळत नाही. बरेचदा वाटतं हे प्रेमगीतं असावं,तर कधीतरी अचानकच वाटायचं हे त्यापलीकडेही काहीतरी कळण्यासंदर्भात वेगळं किंवा त्यापलीकडचं पण असावं. ही आपल्यातील आपल्यावरच आपलेपणाने रुसलेली एक काव्य प्रतीभाच आहे असही कधीकधी भासून जात़ं.

तसेच “गायी पाण्यावर” ही कविता तर बापलेकीच्या नात्याचा एक सर्वोत्तम दाखलाच जणू. कळायला लागल्यानंतर बाबा ही कविता गुणगुणायचे तेव्हा बापलेकीच्या अलवार नात्यानं भडभडून यायचं.अजूनही ह्यातील ओळी कानी पडल्या तरी मन आपोआपच कातर,हळवं हे होतचं.

या तिन्ही कवितांवर लिहावे तेवढे थोडेच  आहे.कवी बी म्हटले की या तीन कविता प्रामुख्याने डोळ्यासमोर  येतात. लिहावेसे वाटले म्हणून  ‘प्रणय पत्रिके’ विषयी थोडे लिहून थांबते.

©  सौ.कल्याणी केळकर बापट

9604947256

बडनेरा, अमरावती

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ.मंजुषा मुळे/सौ.गौरी गाडेकर≈

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