हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 124 ⇒ भुट्टा… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “किताब और कैलेण्डर”।) 

? अभी अभी # 124 ⇒ ∆ भुट्टा ∆? श्री प्रदीप शर्मा  ? 

बारिश का मौसम भुट्टे का मौसम होता है। गन्ने की तरह भुट्टे भी खेत में ही पैदा होते हैं। गन्ना अगर मीठा होता है तो भुट्टे में भी दूध की मिठास होती है। गन्ने का अगर गुड़ बनता है तो मक्के की रोटी बनती है। भुट्टे के दानों को ही मक्का कहते हैं। ठंड का मौसम आते ही मुंह पर मक्के की रोटी और सरसों के साग का स्वाद उतर आता है।

मक्का, ज्वार और बाजरा खड़ा अनाज है, इनमें गेहूं की तुलना में अधिक पौष्टिक तत्व और फाइबर होता है। जो मेहनत करते हैं, वे ही इसे पचा सकते हैं। हमने चने को जान बूझकर छोड़ दिया है क्योंकि आप हरे छोड़ तो आसानी से खा सकते हैं, लेकिन जब सूखकर ये चना बन जाते हैं तो इन्हें चबाना लोहे के चने चबाने के समान ही होता है। ।

अनार अगर एक फल है तो भुट्टा अनाज की श्रेणी में आता है। दोनों का परिधान इनकी विशेषता है। अनार का दाना दाना एक कछुए के अंगों के समान सुरक्षित और किसी अभेद्य किले के समान बाहर से एक मोटी परत द्वारा ढंका हुआ होता है। भुट्टों की तो पूछिए ही मत। इनके वंश में कोई बेनजीर पैदा नहीं होती, सब भुट्टे ही पैदा होते हैं। लेकिन शर्मीले इतने कि नई नवेली दुल्हन की तरह आवरण में आवरण से नख शिख तक शालीनता से ढंके हुए। भुट्टे के दानों तक पहुंचने के लिए प्रशासन भी आपकी मदद नहीं कर सकता और मजबूरी में आपको दुशासन बनना ही पड़ता है। कभी भुट्टे के पांव पकड़ने पड़ते हैं तो कभी चोटी। इतना बढ़िया प्राकृतिक पैकिंग, आखिर किसी की नजर लगे भी तो कैसे।

अपने आवरण से जुदा होते ही एक भुट्टे की किस्मत भी जुदा जुदा हो जाती है। किसी को सिगड़ी की आग में भून लिया जाता है तो किसी को किसनी में किसकर उसका किस बना लिया जाता है। किसी को भुट्टे का किस पसंद होता है तो कोई सिके हुए भुट्टे पर नमक और नींबू लगाकर, फिर प्रेम से उसे मुंह लगाते हैं। आवश्यकता आविष्कार की जननी है।

भुट्टे के लड्डू, भुट्टे की कचौरी और भुट्टे के पकौड़ों की भी अपनी अलग ही कहानी है। ।

कॉर्न की तरह ही एक बेबी कॉर्न भी होता है लेकिन हमारे घरों के बच्चे ना जाने क्यों पॉप कॉर्न पर फिदा हैं। जिसे आम भाषा में मक्के की धानी कहते हैं वही किसी मॉल के पीवीआर अथवा थिएटर में दो सौ रुपए में कॉम्बी कॉर्न के नाम से बेचा जाता है।

थियेटर की फिल्मों का यह कॉर्न कल्चर कब पॉर्न कल्चर बन जाता है पता ही नहीं चलता।

जब बचपन में हमारी नर्सरी राइम पानी बाबा आ जा, ककड़ी भुट्टा ला जा, होती थी, हम समझते थे ककड़ी और भुट्टे भी ओलों की तरह आसमान से ही टपकते होंगे। भुट्टे को छोड़ मैगी और पास्ता खाने वाली हमारी आज की पीढ़ी इतनी भोली भी नहीं। उसने भुट्टे के खेत भले ही नहीं देखे हों, कॉमिक्स और फिल्मों में एलियंस जरूर देखे हैं।।

बारिश है, सुहाना मौसम है, क्यों न किसी छुट्टी के दिन बच्चों को फिल्म और मोबाइल से दूर किसी खेत में मियां भुट्टो से मिलाया जाए। स्वदेशी में विदेशी का तड़का तो वैसे भी लग ही चुका है। देसी भुट्टे की जगह अमरीकन भुट्टा भी हमारी धरती पर अपनी जड़ें जमा चुका है। नाम बड़े और इनके दर्शन भी आजकल मॉल में ही अमेरिकन कॉर्न के रूप में होते हैं और वह भी मक्खन में। भुट्टे के किस की पसंद में हमारी पसंद देसी भुट्टे की ही है, अमरीकन भुट्टे के किस में वह स्वाद कहां।

जो स्वाभाविक मिठास देसी भुट्टे में है, वह मीठे अमरीकन भुट्टे में नहीं। ।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (14 अगस्त से 20 अगस्त 2023) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (14 अगस्त से 20 अगस्त 2023) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

सबसे पहले आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की बहुत-बहुत बधाई।

कुछ लोग कहते हैं जय सीताराम और हम कहते हैं जय श्री राम। अब प्रश्न यह है की जय श्री राम और जय सीताराम में क्या अंतर है। भावनात्मक और शाब्दिक अर्थ में दोनों में कोई अंतर नहीं है। परंतु जब हम जय श्री राम कहते हैं तो यह आभास होता है कि आज के पापियों और राक्षसों से हम सभी सनातनी युद्ध करने जा रहे हैं। रामचरितमानस के अनुसार वानर सेना राक्षसों के विरुद्ध युद्ध करने जाने से पहले श्री रघुवीर को याद करती थी।

आइए अब हम हनुमान चालीसा की आज की चौपाई की चर्चा करते हैं।

साधु सन्त के तुम रखवारे।

असुर निकन्दन राम दुलारे॥ 

भावार्थ:- श्री हनुमान जी राक्षसों को समाप्त करने वाले हैं। श्री रामचंद्र जी के अत्यंत प्रिय है। साधु संत और सज्जन पुरुषों कि वे रक्षा करते हैं। श्री रामचंद्र जी के इतने प्रिय हैं कि अगर आपको उनसे कोई बात मनमानी हो तो आप श्रीहनुमानजी को माध्यम बना सकते हैं।

इस चौपाई का बार बार पाठ करने से होने वाला लाभ:-

हनुमान चालीसा की इस चौपाई के बार बार पाठ करने से दुष्टों का नाश होता है, जातक रक्षा होती है और उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं।

आइए अब हम 14 अगस्त से 20 अगस्त 2013 विक्रम संवत 2080 शक संवत 1945 के अधिक श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से श्रावण शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तक के साप्ताहिक राशिफल के बारे में चर्चा करते हैं।

इस सप्ताह चंद्रमा प्रारंभ में कर्क राशि का रहेगा। 16 अगस्त को 4:54 सायंकाल से सिंह राशि में प्रवेश करेगा। 18 तारीख को 4:35 रात अन्त से वह कन्या राशि में गोचर करेगा। सूर्य प्रारंभ में कर्क राशि में रहेगा तथा 17 अगस्त को 3:57 रात से सिंह राशि में प्रवेश करेगा। मंगल प्रारंभ में सिंह राशि में रहेगा और 18 अगस्त को 3:10 दिन से कन्या राशि का हो जाएगा। बुद्ध पूरे सप्ताह सिंह राशि में रहेगा, गुरु मेष राशि में रहेगा, शनि कुंभ राशि में वक्री रहेगा, शुक्र कर्क राशि में वक्री रहेगा तथा राहु मेष राशि में वक्री रहेगा। 

आइए अब हम राशि वार राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

मेष राशि के जातकों को अपनी संतान से इस सप्ताह अत्यधिक सहयोग प्राप्त होगा। उनकी संतान उनकी विशेष रूप से मदद करेगी। मेष राशि के जातक जो छात्र हैं उनको अपने परीक्षाओं में सफलता मिलेगी। मेष राशि के जनप्रतिनिधियों के लिए यह सप्ताह उत्तम नहीं है। इस सप्ताह आपके सुख में कमी आएगी। माताजी और पिताजी दोनों का स्वास्थ्य थोड़ा थोड़ा खराब हो सकता है। धन आने का योग है। इस सप्ताह आपके लिए 14, 15 और 16 अगस्त उत्तम और परिणाम दायक हैं। 19 और 20 अगस्त को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप शुक्रवार के दिन मंदिर पर जाकर गरीबों के बीच में चावल का दान दें। ‌‌सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

वृष राशि

इस सप्ताह आपके सुख में वृद्धि होगी। आपके माताजी के लिए यह समय उत्तम है। आप कोई नया सामान खरीद सकते हैं। अगर आप मकान बनाने की प्लानिंग कर रहे हैं तो वह भी प्रारंभ हो सकता है। पिताजी के स्वास्थ्य में कोई खराबी आएगी। कार्यालय में आपको विरोध का सामना करना पड़ेगा। आपने अगर नौकरी के लिए कोई आवेदन दिया है तो उसमें सफलता आपको मिल सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 17 और 18 अगस्त लाभदायक हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप दक्षिण मुखी हनुमान जी के मंदिर में जाकर प्रतिदिन तीन बार हनुमान चालीसा का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मिथुन राशि

इस सप्ताह आपके पास धन आने का योग है। किसी स्त्री के कारण आपको धन हानि भी हो सकती है। भाई बहनों के साथ संबंध अच्छे रहेंगे। एक भाई के साथ संबंध खराब हो सकता है। छात्रों के लिए समय अच्छा है। छात्रों की पढ़ाई ठीक चलेगी। भाग्य आपका साथ नहीं देगा। आपको अपने परिश्रम से ही सब कुछ प्राप्त करना पड़ेगा। अगर आप प्रयास करेंगे तो आप के शत्रु समाप्त हो सकते हैं। कार्यालय में आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। इस सप्ताह आपके लिए 19 और 20 अगस्त लाभदायक हैं। 14-15 और 16 अगस्त को आपको कुछ धन की प्राप्ति भी हो सकती है। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह प्रतिदिन सायंकाल को पीपल के पेड़ के नीचे मिट्टी का दीपक जलाकर पीपल की सात बार परिक्रमा करें। इसके अलावा आप शनिवार को शनि देव का पूजन भी करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कर्क राशि

कर्क राशि के जातकों के लिए यह सप्ताह थोड़ा सा अच्छा और थोड़ा सा बुरा है। धन आने का उत्तम योग है। व्यापार अच्छा चलेगा। व्यापार में प्रगति होगी। स्वास्थ्य सामान्यतया ठीक रहेगा। जन्नेद्रियों में समस्या हो सकती है। विवाह के योग्य अविवाहित जातकों के लिए विवाह के प्रस्ताव आ सकते हैं। आपके जीवन साथी को शारीरिक कष्ट हो सकता है। संतान से आपको सहयोग प्राप्त होगा। भाग्य ठीक है। इस सप्ताह आपके लिए 14, 15 और 16 अगस्त उत्तम फलदाई हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप मंदिर में जाकर सफेद वस्त्रों का दान दें। सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

सिंह राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपके जीवन साथी के स्वास्थ्य में थोड़ी बाधाएं आएंगी। भाग्य से आपको कोई विशेष मदद नहीं प्राप्त होगी। आपका परिश्रम ही आपके भाग्य का निर्माण करेगा। दुर्घटनाओं से आप बचेंगे। जनता में आपकी लोकप्रियता में वृद्धि होगी। जीवनसाथी के कमर या गर्दन में दर्द हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 17 और 18 अगस्त फलदायक हैं। 14, 15 और 16 अगस्त को आपको सावधान रहकर कोई कार्य करना चाहिए। अन्यथा आपके कार्य में बाधा आ सकती है या आपका कार्य सफल नहीं होगा। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

कन्या राशि

इस सप्ताह आपकी कुंडली के गोचर के अनुसार धन आने का उत्तम योग है। शत्रुओं की संख्या में वृद्धि होगी। अगर आप प्रयास करेंगे तो ये शत्रु समाप्त भी हो सकते हैं। आपके पेट में पीड़ा हो सकती है। गर्दन या कमर में दर्द भी हो सकता है। संतान से आपको सहयोग प्राप्त नहीं होगा। आपके संतान के लिए यह सप्ताह ठीक नहीं है। आपके लिए 19, और 20 अगस्त लाभदायक है। 19 और 20 अगस्त को आपके द्वारा किए गए अधिकांश कार्य सफल होंगे। 17 और 18 अगस्त को आपको सचेत रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन विष्णु सहस्त्रनाम का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

तुला राशि

इस सप्ताह कार्यालय में आपके कामकाज बहुत तेजी से चलेंगे। कार्यालय के कार्यों में आपको बहुत सफलता मिलेगी। व्यापार में आप सफल होंगे। व्यापार में काफी तेजी आएगी। आपको अपनी संतान से कम सहयोग प्राप्त होगा। आपका और आपके जीवन साथी का स्वास्थ्य पहले जैसा ही रहेगा। भाग्य से कोई विशेष सफलता प्राप्त नहीं होगी। परंतु भाग्य आप को सफल करने में मदद अवश्य करेगा। शत्रु को परास्त करने में भी आप सफल हो सकते हैं। छात्रों की पढ़ाई में बाधा आ सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 14, 15 और 16 अगस्त फलदायक और लाभकारी हैं। 19 और 20 अगस्त को आपको सचेत रहना चाहिए। 19 और 20 अगस्त को आप सावधान हो करके ही कोई कार्य करें। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप अपनी सफेद रंग की बनियान को किसी कोढ़ी को पहना दें। इस सप्ताह आपके लिए शुभ दिन बुधवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपका और आपके जीवन साथी का स्वास्थ्य पहले जैसा ही रहेगा। कार्यालय में आपको सफलता मिलेगी। कार्यालय के कार्यों में आपको अपने वरिष्ठ अधिकारियों से सहयोग प्राप्त होगा। व्यापार में उन्नति होगी। सप्ताह के प्रारंभ के दिनों में भाग्य आपका साथ देगा। आपके संतान का आपको सहयोग प्राप्त होगा। छात्रों की पढ़ाई भी ठीक-ठाक चलेगी। आपके सुख में कमी आएगी। हो सकता है कि यात्रा करनी पड़े। माता जी के स्वास्थ्य में थोड़ी खराबी हो सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 17 और 18 तारीख उत्तम है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन राम रक्षा स्त्रोत का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह आपको अपने भाग्य का बहुत अच्छा सहयोग प्राप्त होगा। भाग्य से के कारण जितने भी काम हो सकते हैं उनको करने का आपको इस सप्ताह प्रयास करना चाहिए। आपको अपने संतान से थोड़ा बहुत सहयोग भी प्राप्त हो सकता है। आपका और आपके जीवन साथी का स्वास्थ्य पहले जैसा ही रहेगा। भाई बहनों के साथ आपके संबंधों में तनाव आ सकता है। व्यापार आपका ठीक-ठाक चलेगा। नौकरी भी ठीक ही रहेगी। इस सप्ताह आपके लिए 19 और 20 तारीख उत्तम है। 14-15 और 16 अगस्त को आपको सचेत रहकर कार्य करना चाहिए। इन तारीखों में अगर आप सावधान नहीं रहेंगे तो आपको नुकसान हो सकता है और असफलता मिल सकती है। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह रुद्राष्टक का प्रतिदिन पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

मकर राशि

इस सप्ताह आपका अपने भाई बहनों के साथ अच्छा संबंध रहेगा। थोड़ी मात्रा में धन आ सकता है। दुर्घटनाओं से बचने का प्रयास करें। आपके और आपके जीवनसाथी के स्वास्थ्य में खराबी आ सकती है। अतः इस सप्ताह आप अपने गांव की तरफ ना जाकर शहर में ही रहें। जिससे आपको चिकित्सीय सहयोग पूर्णतया मिल सके। इस सप्ताह आपके लिए 14, 15 और 16 अगस्त उत्तम और लाभदायक हैं। 17 और 18 तारीख को आपको सचेत रहकर ही कार्य करना चाहिए। 17 और 18 तारीख को आपको अपने कार्यों में सावधानी रखना आवश्यक है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कुंभ राशि

यह सप्ताह आपके जीवनसाथी के लिए अत्यंत मंगल कारक है। उनको हर क्षेत्र क्षेत्र में सफलता प्राप्त होगी। भाग्य आपका साथ देगा। आपके शरीर में पीड़ा हो सकती है। शत्रुओं से आपको सावधान रहना चाहिए। आपको अपने कार्यालय में सफलता प्राप्त होगी। व्यापार आपका उत्तम गति से चलेगा। इस सप्ताह आपके लिए 17 और 18 अगस्त उत्तम है। सप्ताह के बाकी दिनों में आपको सावधान रहने की आवश्यकता है। आपको चाहिए कि इस सप्ताह प्रतिदिन आप घर की बनी पहली रोटी गौ माता को दें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

मीन राशि

इस सप्ताह आपके पास गलत रास्ते से धन आने की उम्मीद है। आपका और आपके जीवन साथी का स्वास्थ्य पहले जैसा ही रहेगा। आपको अपनी संतान से कोई विशेष सहयोग प्राप्त नहीं होगा। शत्रुओं का आप सफाया कर सकेंगे। कचहरी के कार्यों में आप इस सप्ताह न उलझे। भाग्य आपका साथ देगा। अगर आप परिश्रम करेंगे तो आपको सफलता निश्चित रूप से मिलेगी। इस सप्ताह आपके लिए 19 और 20 तारीख फलदायक हैं। 17 और 18 तारीख को आपको सावधान रहकर कार्य करने की आवश्यकता है। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह चिड़ियों को दाना खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

मां शारदा से प्रार्थना है कि आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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सूचना/Information ☆ ✒️ Contest – Anthology “अयोध्या: Ram and Sita Return” ✒️ ☆ Courtesy – Ms. Neelam Saxena Chandra☆

सूचना/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

Ms. Neelam Saxena Chandra

✒️ Contest – Anthology “अयोध्या: Ram and Sita Return” – ✒️

“अयोध्या: Ram and Sita Return” – this is the title of not only the next anthology (Kindle Version only by Dewdrop Publication), but also the contest. You have to interpret the title in your own words and as per your imagination. It could be happiness on their return, it could be a question mark on what was to follow, it could be a happiness on the end of war, it could be just anything. And it could be from the perspective of anyone – Hanuman, Vibhishan, Urmilla, Sita, Ram, Laxman, Bharat or a simple onlooker etc etc etc.

Rules

  1. The poem must not be more than 30 lines. Poems with more than 30 will be rejected and no questions entertained.
  2. The poem can be in English/Hindi. Only 1 poem will be entertained. If you send more than 1 poem, the one sent first will be used.
  3. The poem should not hurt the sentiments by usage of foul words, etc. Such poems will be rejected.
  4. The poem should be sent as a word document which should also contain a 100 word biodata. Biodata with more than 100 words will not be used in anthology. Both biodata and poem should be in the same word document – the biodata should be put first, followed by the poem. The email should also have a jpeg photo of yours, unless you don’t wish it to be published.
  5. The email should contain a declaration
    “This is my own work and I have the copyright to my poem. I have no objection if the poem is published in kindle anthology.”
  6. If you want to send your poem only for the contest, then simply declare – “This is my own work and I have the copyright to my poem.”
  7. The last date to send is 31/08/2023. The entries will be sent anonymously to the editors.
  8. The anthology will be published by October.
  9. If anyone wishes to submit their painting on the theme, same can also be emailed. The best one will be used as the cover page.
  10. All submissions should be made on [email protected]

Courtesy – Ms. Neelam Saxena Chandra

Email – [email protected]

 ≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ भिरभिरणारे मन… ☆ सुश्री अरूणा मुल्हेरकर☆

सुश्री अरूणा मुल्हेरकर

? कवितेचा उत्सव ?

☆ पावसाची कविता – ‘भिरभिरणारे मन…’ ☆ सुश्री अरूणा मुल्हेरकर ☆

((वृत्त~ शुभगंगा ८+८+६)

कुठून आले वादळ वारे कळले का

भिरभिरणारे मन हे माझे भिजले का

 

किती प्रतीक्षा वसुंधरेची थकली ती

निष्ठूर नको होऊस असा रडले का

 

एका वेळी अनेक शंका अशा कशा

आभाळातच काळे घन हे भरले का

 

कधी शांतता तुफान केव्हा काय असे

गहिवर जाता ऊन कधी ते पडले का

 

संततधारा कधी बरसल्या भूवरती

तशीच वर्षा मनात माझ्या झरते का

©  सुश्री अरूणा मुल्हेरकर

०९/०७/२०२३

डेट्राॅईट (मिशिगन) यू.एस्.ए.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ एक विशेष  दिवस… ☆ श्री सुहास सोहोनी ☆

श्री सुहास सोहोनी

? कवितेचा उत्सव ?

एक विशेष  दिवस… ☆ श्री सुहास सोहोनी ☆

कधीतरी रोजचीच सकाळ

वेगळीच किमया करून जाते

पालथ्या पडल्या हातावर

अत्तर फाया फिरवून जाते …

 

रोजचीच साखर, रोजचीच पावडर

रोजचंच दूध, नि रोजचंच पाणी

रोजचीच बशी नि रोजचाच कप

गंजही रोजचा नि रोजचीच गाळणी

 

तयारी तीच नि सरंजामही तोच

लगबग तीच नि उत्साह तोच

चवही तीच आणि चहाही तोच

करणारा तोच, नि घेणारा तोच,

 

पण आजचा दिवस खास आहे

ओल्या पाउसधारांचा आहे

भागलेल्या काळोखी सूर्याचा आहे

वाफाळता चहा समोरआहे

गरम गरम पहिला घोट तर

“आह्” ची दाद घेतो आहे …

 

अगदी खरं सांगायचं तर

सारं काही तेच असतं

आपलंच मन एखाद्या दिवशी

फुलपाखरू होऊन बागडत असतं

 

कालचं रंगित फूल त्याला

आज जास्त भावतं

कालच्यापेक्षा मध आज

जास्त गोड लागतो

एक नवल गुपित मात्र

त्याचं त्याला माहित नसतं

पंखांवर आज त्याच्या

इंद्रधनू नाचत असतं

 

अशी जादू घेउन येतो

तो दिवस हसरा असतो

मी विश्वाचा विश्वही माझे

सुखाचा मंत्र देऊन जातो

 

आजचा दिवस तर विशेष आहे

दुप्पट तिप्पट सुखाचा आहे

कारण त्याचं खमंग आहे

चहाआधी कांदाभजी

पोटात जाऊन बसली आहेत …..!!

😃

© सुहास सोहोनी

रत्नागिरी

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – क्षण सृजनाचे ☆ जीवनपट… ☆ सुश्री दीप्ती कुलकर्णी ☆

सुश्री दीप्ती कुलकर्णी

? क्षण सृजनाचे ?

☆ जीवनपट… ☆ सुश्री दीप्ती कुलकर्णी ☆

माझे वडील संस्कृत चे माध्यमिक शिक्षक व गाढे अभ्यासक होते. जुन्या अकरावीचे संस्कृत व पी.टी. घेत. करवीर पीठात त्यांनी उत्तम अध्ययन केले. त्यांना पीठाचे शंकराचार्य पद स्वीकारा म्हणत होते पण घरच्या जबाबदाऱ्या मुळे त्यांनी ते स्वीकारले नाही. वृद्धत्वात ते थोडे विकलांग झाले नि ते पाहून मला ही कविता स्फुरली‌.

 – दीप्ती कुलकर्णी

☆ जीवनपट… ☆ सुश्री दीप्ती कुलकर्णी ☆

जीवनाच्या या पटावरी

कितीतरी प्यादी येती जाती

माझे,माझे म्हणती सारे

फोलता हि नच ,कुणा ही ठावे

क्षणभंगुरता कळेल का परी

उरते अंती मृत्तिका जरी

यात्रिक सारे सममार्गावरी

नियतीचीही मिरासदारी

नियतीचीही सर्व खेळणी

कुणा छत्र,कुणी अनवाणी

श्वासासंगे श्वास येई रे

दुजा न कोणी सांगाती

जीवनाच्या या पटावरी

कितीतरी प्यादी येती जाती ||

© सुश्री दीप्ति कुलकर्णी

हैदराबाद

मो.नं. ९५५२४४८४६१

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ स्वदेशीचा जादू… भाग – ४ ☆ श्री विश्वास विष्णु देशपांडे ☆

श्री विश्वास विष्णु देशपांडे

? विविधा ?

☆ स्वदेशीचा जादू… भाग – ४ ☆ श्री विश्वास विष्णु देशपांडे  

समृद्ध प्राचीन वारसा 

श्यामराव, श्यामलाताई , पिंकी आणि राजेश यांची जंगल सफारी मजेत सुरु होती. पिंकी आणि राजेश तर अतिशय खुश होते. बऱ्याच दिवसांनी आई बाबांबरोबर गाडीतून ते सहलीसाठी जात होते. तेथून जवळच एक प्राचीन हेमाडपंती शिवमंदिर होते. ते मुलांना दाखवावे म्हणून श्यामराव त्यांना तिथे घेऊन जात होते. सगळ्यांची वटवृक्षाखाली खाणं आणि थोडी विश्रांती झाली होती. त्यामुळे सगळ्यांचा मूड फ्रेश होता. गाडीत बाबांनी ‘ जय जय शिव शंकर ‘ गाणं लावलं होतं आणि त्या तालावर त्यांचं डोलणं आणि गुणगुणणं सुरु होतं. रस्त्यावर एके ठिकाणी प्राचीन शिवमंदिराकडे असा बोर्ड त्यांना लावलेला आढळला. मुख्य रस्त्याला सोडून गाडी आतमधील छोट्या कच्च्या रस्त्याकडे वळली. थोडेसे अंतर गेल्यानंतर लगेच शिवमंदिर होते. श्यामरावांनी एका लिंबाच्या झाडाच्या दाट सावलीत गाडी पार्क केली. सगळे खाली उतरले.

तिथे एका बाजूला काही माणसे फुले, हार, बेलपत्रे आदी विक्रीसाठी घेऊन बसली होती. शामलाताईंनी एका बाईजवळून बिल्वपत्रे विकत घेतली. दुरूनच शिवमंदिराची दगडी हेमाडपंती बांधणी लक्ष वेधून घेत होती. राजेशच्या मनात नेहमीप्रमाणेच काही प्रश्नांनी गर्दी केली होती. पण बाबा म्हणाले, ‘ बेटा, आपण आधी भोलेनाथांचं दर्शन घेऊ. मंदिरात दर्शन  घेताना काही बोलू नये. मग निवांतपणे तू काहीही विचार. ‘ राजेश म्हणाला, ‘ हो, बाबा.

‘गाभाऱ्याच्या बाहेर एक सुंदर दगडी नंदी होता. सगळ्यांनी आधी त्याला नमस्कार केला. मंदिरात गेल्यानंतर श्यामलाताईंनी आपल्याजवळील बेल काहीतरी मंत्र म्हणत भगवान शंकराच्या पिंडीवर अर्पण केला. श्यामराव, राजेश, पिंकी यांनीही काही बेलाची पाने पिंडीवर वाहिली.

बाहेरचा दगडी सभामंडप खूपच छान होता. तेथील खांबांवर आणि बाजूच्या कमानीवर छानपैकी नक्षी, पौराणिक चित्रे आणि आकृत्या कोरलेल्या होत्या. आजूबाजूला असलेला उन्हाचा ताप तिथे जाणवत नव्हता. काही क्षण तिथे बसल्यानंतर सगळे बाहेर पडले. आता मंदिराच्या भोवतालचा परिसर ते न्याहाळत होते. राजेश म्हणाला, ‘ बाबा, तुम्ही मघापासून हे मंदिर हेमाडपंथी आहे असं म्हणत होता. हेमाडपंथी म्हणजे काय ? ‘

बाबा म्हणाले, ‘ अरे बाबा, हेमाडपंथी नाही, हेमाडपंती. बरेच लोक हेमाडपंथी असा चुकीचा उच्चार करतात. पण ही मंदिर बांधण्याची पद्धत किंवा शैली हेमाडपंत याने सुरु केली म्हणून हेमाडपंती मंदिर असे म्हटले जाते. अरे तेराव्या शतकात देवगिरीत यादव राजांचे राज्य होते. हेमाद्री पंडित किंवा हेमाडपंत हा यादवांचा प्रधान होता. तो फार बुद्धिमान होता. त्याने मंदिर बांधण्याची एक नवीन पद्धत विकसित केली. ‘ पिंकी, राजेश, या मंदिराची बांधणी तुम्ही पाहिली का ? ‘ पिंकी म्हणाली, ‘ हो बाबा, नुसते दगडावर दगड ठेवलेले दिसतात. ‘

बाबा म्हणाले अगदी बरोबर, ‘ त्यालाच हेमाडपंती शैली म्हणतात.आजकाल बांधकामासाठी आपण जसा सिमेंटचा वापर करतॊ, तसाच पूर्वी चुन्याचा वापर केला जायचा. पण या अशा मंदिरांमध्ये हेमाडपंत याने असा कोणत्याच पदार्थाचा वापर केला नाही. चौकोनी, त्रिकोणी, पंचकोनी या आकारात दगडी चिरे कापून त्यांच्या खाचा किंवा खुंट्या एकमेकात घट्ट बसतील अशा आकारात कापून या मंदिरांची उभारणी केली आहे. ती इतकी मजबूत झाली आहे की अनेक शतके झाली तरी ही मंदिरे आजही टिकून आहेत. त्याशिवाय कित्येक टन वजन असलेल्या शिळा पंचवीस फुटांपेक्षाही अधिक उंचीवर नेऊन हे बांधकाम करण्यात आले आहे. केवढे विकसित तंत्रज्ञान असेल त्या मंडळींजवळ ! ‘ 

‘कमालच आहे ना बाबा, सिमेंट, चुना न वापरता अशा प्रकारचे बांधकाम करणे म्हणजे आपल्या पूर्वजांच्या बुद्धिमत्तेचे कौतुक करावे तेवढे कमीच आहे. ‘ राजेश म्हणाला.

‘हो, राजेश, आणि अशी मंदिरे आपल्या महाराष्ट्रात अनेक ठिकाणी आहेत बरं का ! वेरूळचे घृष्णेश्वर मंदिर, औंढा नागनाथ येथील मंदिरे अशीच आहेत. चाळीसगावाजवळील पाटणादेवी येथे असेच शंकराचे हेमाडपंती मंदिर आहे. ‘

पिंकी म्हणाली, ‘ बाबा, किती छान माहिती मिळाली या मंदिराबद्दल ! शाळेत ही माहिती सांगून मी बाईंची शाबासकी मिळवणार. ‘

‘शाब्बास पिंकी. आणि तुम्ही काय करणार राजे ? ‘ बाबा राजेशकडे पाहत म्हणाले.

‘बाबा, आपण या मंदिराचा फोटो घेतला आहे ना ! मी या मंदिराचे चित्र काढून आमच्या चित्रकलेच्या शिक्षकांना दाखवेन. माझे मित्र सुद्धा ते पाहून खुश होतील. ‘ दॅट्स ग्रेट! ‘बाबा म्हणाले.

‘आई, मला तुला काही विचारायचे आहे. मघाशी आपण भगवान शंकरांच्या पिंडीवर बेलाची पाने वाहिली. ती का वाहायची आणि तू काहीतरी मंत्र पुटपुटत होतीस तो पण सांग ना, ‘ राजेश म्हणाला.

‘राजेश, पिंकी, अरे बेलपत्र किंवा बेलाची पाने भोलेनाथांना अतिशय प्रिय बरं का ! श्रावणात तर दर सोमवारी भगवान शंकरांना बिल्वपत्रे अर्पण करतात. तुम्ही देव दानवांनी केलेल्या समुद्र मंथनाबद्दल ऐकले असेलच. त्यावेळी समुद्र मंथनातून निघालेले हलाहल शंकरांनी प्राशन करून आपल्या कंठात धारण केले. त्यांच्या सर्वांगाचा भयंकर दाह म्हणजे आग व्हायला लागली. तेव्हा त्यांच्या मस्तकावर बेलाचे पान ठेवण्यात आले. तेव्हापासून शंकराला बेलपत्र वाहण्याची प्रथा आहे. बेलाची तीन पाने सुद्धा अतिशय महत्वाची आहेत बाळांनो. तीन पाने म्हणजे भगवान शंकरांचे त्रिनेत्र, तशीच ही पाने म्हणजे ब्रह्मा, विष्णू आणि महेश म्हणजेच महादेव या तिन्ही देवांचे प्रतिनिधित्व करतात.’ 

‘अरे बापरे ! केवढे महत्व आहे बिल्वपत्राचे ! ‘ पिंकी म्हणाली. ‘ आई, तू कोणता मंत्र म्हणत होतीस बेल अर्पण करताना  ? ‘

‘सांगते, ‘ आई म्हणाली. भोलेनाथांना बेलाचे पान अर्पण करताना, ‘त्रिदल त्रिगुणाकार त्रिनेत्रं च त्रिधायुतम | त्रीजन्मपापसंहारम बिल्वपत्रं शिवार्पणम ‘ या पौराणिक मंत्राचा जप करतात बरं का पिंकी.  या मंत्राचा अर्थ असा आहे की तीन गुण, तीन डोळे, त्रिशूल धारण करणारे आणि तीन जन्मांचे पाप नष्ट करणारे हे भगवान शिव, तुम्हाला तीन पाने असलेले बेलाचे पान आम्ही अर्पण करतो. बेलाच्या पानांमध्ये विषनाशक गुणधर्म असतो. शिवाला बेल वाहताना आपल्या हातावरील विषाणू तर नष्ट होतातच पण त्या पानांचा एक प्रकारचा सुगंधही आपल्या हाताला येतो. ‘

‘आणि आणखी एक महत्वाची गोष्ट सांगते तुम्हाला. भगवान शंकरांना हे बेलपत्र इतके प्रिय आहे की आपल्याजवळ दुसरे काही नसेल आणि आपण भक्तिभावाने एखादे बिल्वपत्र जरी त्यांना अर्पण केले, तरी ते संतुष्ट होतात. म्हणूनच त्यांना ‘ आशुतोष ‘ म्हणतात. आशुतोष म्हणजे सहज संतुष्ट होणारा. भगवान शंकर आपल्याला जणू सांगतात की तुम्ही सुद्धा माझ्यासारखे सहज संतुष्ट, समाधानी असणारे व्हा. ‘

‘आई, आशुतोष या नावाचा किती सुंदर अर्थ सांगितलास. माझ्या वर्गात शेखरकाकांचा मुलगा आशुतोष आहे ना. तो माझा चांगला मित्र आहे. पण आता मला या नावाचा अर्थ कळला. ‘ राजेश आनंदाने म्हणाला.

 खरंच आई, आपल्या देवांची नावं, हे बिल्वपत्राचं महत्व, आपल्या वनस्पती आणि एकूणच  सगळ्या गोष्टी, परंपरा किती अर्थपूर्ण आहेत ! पण कोणी अशा त्या समजावून सांगत नाही. ‘

श्यामराव म्हणाले, ‘ अरे, पण बेलाच्या झाडाची माहिती तर तुम्हाला आईने सांगितलीच नाही. तुम्हाला ऐकायची आहे का ? ‘

‘हो बाबा, सांगा. मी आता एका वहीत आपल्या सगळ्या वृक्षांची माहिती लिहून काढणार आणि तिथे त्यांची चित्रे चिकटवून एक छान हस्तलिखित तयार करणार. ‘ राजेश म्हणाला.

‘शाब्बास बेटा ,’ बाबा म्हणाले, ‘ बेल हा एक देशी वृक्ष आहे. बेलाची झाडे आपल्या आशिया खंडात सर्वत्र आढळतात. त्याची पाने, फुले, फळे, खोड असे सगळेच भाग औषधी आहेत. अनेक आयुर्वेदिक औषधात बेलाचा वापर केला जातो. अगदी पोटदुखीपासून ते मधुमेहाच्या आजारापर्यंत या पानांचा उपयोग होतो. बेलाच्या झाडापासून मुरंबा, जॅम, सरबत आदी गोष्टी बनवल्या जातात. बेलाच्या झाडावर पक्षी आपली घरटी बांधतात. कीटक त्याच्या आश्रयाने राहतात. त्याच्या फुलांवर बसलेल्या मधमाशा, फुलपाखरांमुळे परागीभवन होते. बेलाचे लाकूड टणक आणि टिकाऊ असल्याने त्याचा वापर फर्निचरसाठी सुद्धा केला जातो. शेतकरी शेतीची अनेक औजारे तयार करतात. मी तुम्हाला मागच्या वेळी जी वड, पिंपळ यासारख्या वृक्षांची माहिती सांगितली, त्याबरोबरच हे झाडही महत्वाचे आहे बरं, त्याचीही लागवड आपण केली पाहिजे. केवळ धार्मिकच नव्हे तर पर्यावरणाच्या दृष्टीने सुद्धा अशी झाडे खूप महत्वाची असतात. ‘

पिंकी म्हणाली, ‘ बाबा, तुम्ही आणि आईने आज खूप वेगवेगळ्या विषयांची नवीन माहिती दिली आम्हाला. आम्ही आता आमच्या वहीत ही सगळी माहिती लिहून काढू. ‘

समोरच एका ठिकाणी उसाच्या रसाची गाडी होती. सगळेच आता तहानलेले होते. राजेश म्हणाला, ‘ बाबा, उसाचा रस घेऊ या ना. ‘

‘चला, आपण सगळेच रस घेऊ या, ‘ सगळ्यांनी मस्त थंडगार आले, लिंबू घातलेल्या उसाच्या आस्वाद घेतला आणि गाडी मग पुढील प्रवासासाठी मार्गस्थ झाली. 

क्रमशः… 

©️ श्री विश्वास विष्णु देशपांडे

चाळीसगाव.

 प्रतिक्रियेसाठी ९४०३७४९९३२

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ ‘प्रश्नचिन्ह…’ ☆ सुश्री प्रणिता खंडकर ☆

सुश्री प्रणिता प्रशांत खंडकर

? जीवनरंग ❤️

☆ ‘प्रश्नचिन्ह…’ ☆ सुश्री प्रणिता खंडकर ☆

शैलाताईंच्या डोळ्यांना धार लागली होती. विचार करकरून डोकं भणभणून गेलं होतं. त्यांची नजर वारंवार ईशाकडे जात होती. ईशा त्यांची नात आपल्या कॉटवर शांत झोपली होती. तिच्या निष्पाप चेहऱ्यावर कोणतेच भाव नव्हते. मान एका बाजूला कलली होती आणि तोंडातून लाळ गळत होती. एरवी वारंवार तिचं तोंड स्वच्छ करणाऱ्या शैलाताई आज मात्र स्तब्ध बसून होत्या. आपल्या नशिबात अजून काय काय  वाढून ठेवलंय कोण जाणे!

रामराव आणि शैलाताईंना तीन मुलगे. संजीव, संकेत आणि सलील. तिन्ही मुलांची लग्न होऊन त्यांनी स्वतंत्र संसार थाटले होते. संजीव मुंबईत, संकेत सांगलीत आणि सलील दुबईत. रामरावांच्या निधनानंतर संजीव आईला आपल्या घरी घेऊन आला होता. संजीवची बायको सानिकाशी त्यांचं छान जमायचं. इतर दोघी सुनांशीही भांडण नव्हतं, पण जवळीकही नव्हती तेवढी! नाशिकचं घर त्यांनी बंदच ठेवलं होतं.

ईशाच्या जन्मानंतर खरं तर घर किती आनंदात होतं. पण  लवकरच ती गतीमंद असल्याचं निदान झालं आणि तिचं संगोपन हेच एक आव्हान म्हणून उभं ठाकलं. त्याच सुमारास संजीवला एका मल्टिनॅशनल कंपनीत ऑफर आली आणि चांगलं  भारी पॅकेज मिळालं. त्यामुळे मग ईशाकडे लक्ष देण्यासाठी, सानिकानं आपला जॉब सोडला. शैलाताईंची मदत होतीच.

आणि गेल्याच वर्षी कंपनीच्या कामानिमित्त उत्तराखंडला जायला निघालेल्या संजीवचं विमान कोसळलं आणि त्यातच त्याचा मृत्यू झाला. शैलाताई आणि सानिका या आघाताने कोलमडून गेल्या. कंपनीकडून आर्थिक मदत मिळाली पण सानिकाला काहीतरी धडपड करणं भागच होतं, घर चालवण्यासाठी!  शैलाताई एकट्या ईशाला कश्या सांभाळणार? हेही एक प्रश्नचिन्ह होतंच!

या संकटांचा मुकाबला करायच्या प्रयत्नात असतानाच  कोविडमुळे लॉ कडाऊन सुरू झाला. सानिकाच्या नोकरीच्या प्रयत्नांना त्यामुळे खीळ बसली. औषधं, दूध, भाजीपाला आणण्यासाठी,  अधून-मधून तरी सानिकाला घराबाहेर पडावं लागतंच होतं. सहा महिने कसेबसे गेले आणि तिलाही कोविडनी गाठलं आणि आठवड्यापूर्वी हॉस्पिटलमध्ये दाखल झालेल्या सानिकाचा मृतदेहही घरी आणता आला नाही. संकटाच्या या मालिकेमुळे शैलाताई  दुःखानं पिचून गेल्या होत्या. 

कोविडमुळे एकमेकांकडे जाणंही बंद होतं. शेजारी – पाजारीदेखील दुरावले होते. माणुसकीच्या नात्याने कोणी-ना-कोणी जमेल तशी मदत करत होते. पण त्यांनाही मर्यादा होतीच. मुलं-सुना, नातेवाईक फोनवरून संपर्क साधत होते, पण रोजचा गाडा तर शैलाताईंनाच हाकायचा होता.ईशाला आता एखाद्या गतीमंद मुलांसाठीच्या संस्थेत दाखल करावं, असं त्यांच्या दोन्ही मुलांनी आडून आडून सुचवलं होतं. पण आपल्या या दुर्दैवी नातीला असं एकटं कुठेतरी ठेवायला, शैलाताईंचं मन तयार होत नव्हतं. शिवाय कोविडमुळे तेही सोपं नव्हतंच! एक-एक दिवस त्या कसाबसा ढकलत होत्या. 

आता आणखी सहा महिन्यांनंतर बाहेरची परिस्थिती हळूहळू निवळायला लागली होती. दुकानं, दळणवळण काही प्रमाणात सुरू झालं होतं. लोक  मास्क लावून घराबाहेर पडायला लागले होते. सर्व निर्बंध काही प्रमाणात शिथिल होऊ लागले.

अश्याच एका दुपारी त्यांच्या फ्लॅटची बेल वाजली. दाराची साखळी अडकवून त्या बाहेर डोकावल्या तर बाहेरच्या माणसानं आपलं ओळखपत्र दाखवलं. तो संजीवच्या कंपनीतून आला होता. त्याच्यामागे एक गोरटेला, मध्यम उंचीचा माणूसही होता. तो परदेशी वाटत होता.

एवढ्यात शेजारचे शिंदेकाका पण घरातून बाहेर आले. त्यांनी मग त्या दोघांची चौकशी केली आणि शैलाताईंना दार उघडायला हरकत नाही असं सांगितलं. घरात येताच तो परदेशी वाटणारा माणूस, शैलाताईंच्या पायावर लोळण घेऊन ओक्साबोक्शी रडायला लागला. त्या तर या प्रकाराने भांबावून गेल्या. तो काहीतरी बोलत होता पण त्यांना त्याची भाषा समजेना.मग संजीवच्या कंपनीतल्या माणसाने सगळा उलगडा केला.

हा परदेशी माणूस अकिरो.. जपानी होता. संजीवबरोबर तो कंपनीत कामाला होता. दोघांची पोस्टही सारखीच होती. उत्तराखंडला मिटिंगला खरंतर  अकिरोच जाणार होता. पण त्याची आई अत्यवस्थ असल्याचा फोन आल्यामुळे, तो अचानक सुट्टी घेऊन तातडीने जपानला गेला. त्याच्याऐवजी संजीव मिटिंगला गेला पण वाटेतच तो अपघात झाला. लॉकडाऊनमुळे अकिरो जपानमध्येच अडकून पडला. पण संजीवच्या मृत्यूला आपणच कारणीभूत झालो, अशी अपराधी भावना त्याला छळू लागली. पहिली संधी मिळताच तो भारतात आला आणि आज संजीवच्या घरी आला होता.

शैलाताईंना तर काय बोलावं तेच कळत नव्हतं. शिंदेकाकांनी त्या दोघांना शैलाताईंच्या सद्यस्थितीची कल्पना दिली. अकिरो खूपच भावुक झाला होता. आपल्या हावभावांद्वारे तो जणू शैलाताईंची माफी मागत होता. ईशाकडे बघून त्याचे डोळे सतत पाझरत होते. परत भेटायला येण्याचं आश्वासन देऊन ते दोघे निघून गेले.

आणि आज सकाळी ते दोघे परत आले. त्याने आणलेल्या प्रस्तावावर काय निर्णय घ्यावा या दुविधेत शैलाताई सापडल्या होत्या. अकिरोने ईशाला दत्तक घेण्याचा प्रस्ताव मांडला होता. त्याने व्हिडिओ कॉल करून आपलं घर आणि बायको व मुलगा यांची ओळख शैलाताईंना करून दिली. तो ईशाला जपानला आपल्या घरी घेऊन जाणार होता. त्यांच्या देशात अशा दिव्यांग, गतीमंद मुलांसाठी खूपच सुविधा उपलब्ध होत्या. आपल्याकडून नकळत का होईना पण जो अपराध घडला, त्याचं प्रायश्चित्त घेण्याची संधी मिळावी, अशी त्याची आणि त्याच्या कुटुंबीयांची विनंती आहे, हेच तो शैलाताईंचे पाय धरून सांगत होता.

एकीकडे ईशाचं सुरक्षित भवितव्य तर दुसरीकडे तिची आपल्यापासून कायमची ताटातूट, यात कशाची निवड करावी याचं उत्तर शोधण्याचा त्या प्रयत्न करत होत्या. 

© सुश्री प्रणिता खंडकर

संपर्क – सध्या वास्तव्य… डोंबिवली, जि. ठाणे.

ईमेल [email protected] केवळ वाॅटसप संपर्क.. 98334 79845.

ही कथा आवडल्यास लेखिकेच्या नावासह आणि कोणताही बदल न करता अग्रेषित करण्यास हरकत नाही.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – मनमंजुषेतून ☆ “कृष्ण चिंतन…” ☆ श्री सुनील देशपांडे ☆

श्री सुनील देशपांडे

? मनमंजुषेतून ?

☆ “कृष्ण चिंतन…” ☆ श्री सुनील देशपांडे ☆

जन्माष्टमी म्हणजे श्रीकृष्णाचा जन्म. हा कुणा व्यक्तीचा जन्म नाही. किंबहुना व्यक्तीच्या निमित्ताने नवाच एक विचार पुढे आला आहे.  व्यक्ती काल्पनिकही  असू शकेल. पण व्यक्तीपेक्षा तो विचार खरा आणि महत्त्वाचा आहे. त्याचे तत्वज्ञान आणि त्याचे चरित्र यातून हा विचार आपल्यापुढे मांडता येतो असे मी मानतो. 

लहानपणी श्रीकृष्णाने इंद्राच्या पूजेला विरोध करून गोवर्धनाची पूजा, गाई वासरांची पूजा करण्याचा विचार मांडला.  म्हणजेच परंपरा कितीही जुनी असली तरी जे जुने आहे ते पवित्रच आहे असे न समजता, कालमानपरत्वे जुन्या परंपरांचा विचार टाकून दिला पाहिजे. कालमानानुसार जे नवे विचार आहेत त्यांचा अंगीकार केला पाहिजे. ( वाचा ‘दोन शब्दात दोन संस्कृती’ — लेखक वि. दा. सावरकर) श्रीकृष्णाने गीता सांगितली, परंतु गीतेच्याद्वारे त्याने तत्वज्ञान सांगितले ते महत्त्वाचे.

‘मी सर्वकाही आहे, मी असे करतो, मी जगाचा आदि आहे, अंत ही आहे.’  असे तत्वज्ञान त्याने मांडले आहे असे वरकरणी वाटते.  परंतु हे तत्त्वज्ञान म्हणजे ‘ मी-पणा ‘ नसून, ‘ मीच आहे माझ्या जीवनाचा शिल्पकार ‘ या प्रकारचे तत्त्वज्ञान मी मानतो. मी जो उपदेश करतो ते तत्वज्ञान मी स्वतः अंगिकारतो असे त्याचे म्हणणे आहे.  मी म्हणजे कुणीही व्यक्ती. माझ्या दृष्टीने त्याचा अर्थ इतकाच की जेव्हा माझा जन्म झाला तेव्हाच या विश्वाची निर्मिती झाली. जेव्हा माझा मृत्यू होईल तेव्हा माझ्या दृष्टीने या विश्वाचा अंत होणार आहे.   

श्रीकृष्ण मानला जर विश्वाचा शासक, तर त्याचे असे म्हणणे की जो सर्वोच्च पदावर आहे तो तुम्हाला तुमच्या लढाईमध्ये कोणतीही सक्रिय मदत करणार नाही. तो फक्त तुम्हाला तत्वज्ञान सांगेल.  कृष्ण म्हणतो ‘ न धरी शस्त्र करी मी, सांगेन युक्तीच्या गोष्टी चार ‘ म्हणजेच सर्वोच्च शासक हा तुम्हाला काही युक्तीच्या गोष्टी सांगेल परंतु तो स्वतः तुमच्या जीवनाच्या युद्धात तुमच्या बरोबर सामील होणार नाही. सक्रीय मदत करणार नाही.  उलट त्याचे सैन्य हे तुमच्या विरोधात लढणार आहे.  त्याच्या सैन्याला तुमच्या भल्याचं काहीही घेणं देणं नाही.  हीच परिस्थिती आज आणि पूर्वीही दिसते आहे नाही का?  शासन कोणतेही असो  तुमच्या बाजूने लढणारे फक्त  तुमचे चार पाच जण असतात जे खरे मनापासूनचे हितचिंतक आणि मित्र असतात.  तेच फक्त तुम्हाला मदत करतील. पण लढणारे फक्त तुम्ही आहात.  त्यामुळे सर्वोच्च शासकाने कोणत्याही प्रकारे सामान्य माणसाच्या कल्याणाचा विचार केला असला तरी  प्रत्येकाला स्वतःची लढाई स्वतःच लढायची आहे. ती लढाई लढण्यासाठी अंधश्रद्धांची झापडे आणि परंपरांच्या कुबड्या उपयोगाच्या नाहीत.  

सकारात्मक विचार, जपलेली नाती आणि आयुष्यासाठी लढण्याची जिद्द हीच फक्त उपयोगाची आहे. मला वाटते हेच जीवनाचे तत्त्वज्ञान आपण अनुभवत आहोत.  म्हणून हा आजच्या काळातील जगण्याचा महत्त्वाचा विचार आहे असे मला वाटते. 

… राम-कृष्ण चरित्रातून अजूनही बरेच विचार आपल्याला जगण्यामध्ये समजून घ्यावे लागतील. 

© श्री सुनील देशपांडे

मो – 9657709640

email : [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ रुक जाना नही… ☆ सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी ☆

सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी

? इंद्रधनुष्य ?

☆ रुक जाना नही… ☆ सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी ☆

(लेखक भावे भाटिया यांच्या पुस्तकावरून)

“आई, मी उद्यापासून शाळेत जाणार नाही. सगळेजण मला ‘आंधळा, आंधळा’ असं चिडवतात”.

आईने कुशीत घेऊन भावेशला समजाविले की,’तू जग पाहू शकतोस की नाही याने काहीही फरक पडत नाही. मात्र तू असे काम करून दाखव की सारे जग तुझ्याकडे पाहू लागेल’

आईचा उपदेश हृदयावर कोरून छोट्याशा भावेशने जीवनात निश्चयपूर्वक वाटचाल चालू केली.

भावेश भाटिया यांना’रेटिना मस्क्युलर डिजनरेशन’या आजारामुळे  बालपणीच दृष्टी गमवावी लागली.  जिद्द, निश्चय व मेहनतीच्या बळावर त्यांनी स्वतः बनविलेल्या विविध आकाराच्या, आकर्षक, सुगंधी, रंगीत मेणबत्यांची विक्री महाबळेश्वर इथे एका हातगाडीवर सुरू केली . आज त्यांची ‘सनराइज कॅन्डल्स’ही कंपनी देश-विदेशात कोट्यावधी रुपयांची उलाढाल करीत आहे.

सुरवातीला भावेश यांचे वडील गोंदिया इथल्या सिमेंट वर्क्समध्ये अकाउंटंट म्हणून काम करीत होते.  गोंदिया येथील गुजराती नॅशनल हायस्कूलमध्ये भावेश यांचे दहावीपर्यंतचे शिक्षण झाले. आई वडिलांनी त्यांना सर्वसामान्य मुलाप्रमाणे वागविले. शाळेत फळ्यावरील काही दिसत नसल्याने आई त्यांना सर्व अभ्यास तसेच त्यांची आवडती कॉमिक्सची पुस्तके वाचून दाखवीत असे. कपडे धुणे, भांडी घासणे, स्वयंपाक करणे अशी दैनंदिन कामे शिकवून  आईने त्यांना स्वयंपूर्ण केले. वडील त्यांना सिनेमाला नेत. सायकलवरून सर्व ठिकाणी फिरवून तिथली माहिती सांगत. वडिलांना शास्त्रीय संगीताची व गझल ऐकण्याची आवड होती.  गझलमधील अनेक शब्द त्यांच्या विशेष भावार्थासह ते भावेशला समजावून सांगत. तीच आवड भावेश यांच्यामध्येही उतरली.  भावेश यांनी घरातच त्यांनी जमविलेल्या कॉमिक्सची लायब्ररी सुरू केली. त्यामुळे अनेक मुलांबरोबर त्यांची छान मैत्री झाली. सिमेंट फॅक्टरीमधल्या वाळूमध्ये खेळणे, ओल्या वाळूतून वेगवेगळे प्राणी बनविणे,  लाकडाच्या वखारीतून बांबू आणून ते तासून त्याच्या वस्तू बनविणे , झाडांवर चढणे ,शेतात भटकणे, निरनिराळ्या पक्ष्यांची किलबिल ऐकणे यात त्यांचं बालपण गेलं. फॅक्टरीमध्ये सिमेंटचे पाईप बनविताना त्याचे डाय  कसे वापरले जातात हेही त्यांनी समजावून घेतलं.

भावेश यांचे मोठे भाऊ जतीन यांना कुत्रा चावल्यामुळे मृत्यू आला. त्यामुळे खचलेल्या आईला या दुःखातून बाहेर काढण्यासाठी नातेवाईकांनी  शिवणक्लासमध्ये घातलं. भावेश आईबरोबर तिथे जात. तिथे कला कौशल्याच्या वस्तूही बनवायला शिकवत. छोट्या भावेशने स्पर्शाच्या सहाय्याने अनेक आकार शिकून घेतले व कापडाची खूप खेळणी बनविली.

कॉलेजमध्ये असताना त्यांनी दोन मित्रांबरोबर सायकलवरून गोंदिया ते काठमांडू असा दोन हजार किलोमीटर्सचा   प्रवास केला. त्यावेळी त्यांना आलेले अनुभव , मनुष्य स्वभावाचे अनेक नमुने, वाटेतील अडचणी या साऱ्यांना तोंड देऊन त्यांनी धाडसाने  तो प्रवास कसा पूर्ण केला हे सर्व मुळातून वाचण्यासारखे आहे.

काही काळाने वडील  महाबळेश्वरला कच्छी समाजाच्या आरोग्य भवन इथे  व्यवस्थापक म्हणून काम करू लागले. तिथल्या आवारात त्यांना एक लहानशी खोली राहायला मिळाली.

आईच्या कॅन्सरच्या आजारात भावेश यांनी शर्थीने पैशांची जमवाजमव  करून मुंबईला टाटा हॉस्पिटलमध्ये अनेक खेपा घातल्या. आईच्या मृत्यूनंतर त्यांना खऱ्या अर्थाने दृष्टिहीन झाल्यासारखे वाटले.

मुंबईला वरळी येथील नॅब(National association for blind) इथे त्यांना ब्रेल लिपी आणि इतर जीवनावश्यक गोष्टींचे शिक्षण मिळाले. तिथेच त्यांनी मेणबत्ती बनवण्याचे शिक्षणही घेतले.

अनेक अडचणींना तोंड देत त्यांनी महाबळेश्वर येथे भाड्याने हातगाडी घेऊन सुंदर, सुगंधी, विविध आकारातील मेणबत्यांच्या विक्रीचा व्यवसाय सुरू केला त्यावेळी भावेश अर्थशास्त्र घेऊन एम. ए. झाले होते.

सुट्टीसाठी म्हणून महाबळेश्वरला आलेल्या नीता, उत्स्फूर्तपणे भावेश यांना त्यांच्या मेणबत्ती विक्रीच्या कामात मदत करू लागल्या. मदतीचा हात देताना त्या , रुबाबदार व्यक्तिमत्त्वाच्या भावेश यांच्या प्रेमात पडल्या.  सुशिक्षित, धनाढ्य कुटुंबातील एकुलती एक मुलगी असलेल्या, बी.कॉम झालेल्या नीताच्या या ‘आंधळ्या प्रेमाला’ सहाजिकच घरच्यांचा विरोध होता. जेव्हा नीता यांनी भावेश यांच्यापुढे विवाहाचा प्रस्ताव ठेवला तेव्हा ते अंतर्बाह्य थरारून गेले. पण भावेश यांना फक्त सहानुभूती नको होती . नीता तिच्या या विचारपूर्वक घेतलेल्या निर्णयावर  ठाम होती.   घरच्यांचा विरोध असूनही फक्त आईच्या पाठिंब्यावर अगदी साधेपणाने हे लग्न झाले.  भावेश यांची एकच अट होती की, नीताने माहेरचा एकही पैसा त्यांच्या घरात आणायचा नाही. 

नीता यांनी भावेशना सर्वार्थाने डोळस साथ दिली. खरं म्हणजे नीताच्या रत्नपारखी नजरेने भावेश यांच्यामध्ये लपलेला लखलखणारा हिरा पाहिला आणि त्याला पैलू पाडून जगासमोर आणला.  उत्तम पद्धतीने संसाराची घडी बसवली. अनेक मानसन्मानासहित नीताने स्वतःसह भावेश यांना खूप उंचीवर नेऊन ठेवले. ‘अंध व्यक्तीशी लग्न करण्याचा वेडेपणा करून तू आत्महत्या करीत आहेस’ या माहेरच्या मताला नीताने स्वकर्तृत्वाने  उत्तर दिले. लग्नानंतर दोन वर्षांनी कुणाल या त्यांच्या अव्यंग, सुदृढ अपत्याच्या जन्म झाला .सासर माहेर एक झाले.

महाभारत काळात  गांधारी आयुष्यभर डोळ्यांवर पट्टी  बांधून वावरली हा फार मोठा त्याग समजला जातो. भावेश यांच्या मताप्रमाणे गांधारीने डोळ्यांवर पट्टी न बांधता, महाराज धृतराष्ट्रांचे डोळे बनून राहणं अधिक आवश्यक होतं. गांधारीने डोळ्यावर पट्टी बांधली नसती तर कदाचित महाभारताचे युद्धही झाले नसते. नीताने गांधारीपेक्षाही अनेक पटीने त्याग केला आहे. ती केवळ भावेश यांचे डोळे झाली नाही तर तिच्या तेजस्वी  डोळ्यांनी तिने भावेश यांना सुंदर जगाचा परिचय करून दिला. उभयतांनी अनेक प्रदर्शनांमध्ये भाग घेऊन भावेश यांची कला जगासमोर आणली.

भावेश आणि नीता यांचा उद्देश केवळ स्वतःची प्रगती साधण्याचा नव्हता.  इतर दृष्टिबाधित मित्रांना रोजगार मिळून ते स्वयंपूर्ण व्हावेत यासाठी दोघांनीही अथक प्रयत्न केले. महाबळेश्वर येथे राहत्या घराजवळ एक छोटी जागा भाड्याने घेऊन त्यात अंध मुला-मुलींच्या राहण्याची  सोय केली. त्यांना मेणबत्ती बनविण्याचे प्रशिक्षण दिले आणि स्वतःच्या पायावर उभे केले. मेणबत्ती व्यवसाय शिकण्यासाठी वाढत्या संख्येने येणाऱ्या  दृष्टिहीन विद्यार्थ्यांसाठी त्यांनी महाबळेश्वर- सातारा रोडवर मोळेश्वर येथे एक जागा विकत घेतली आणि दीडशे मुला- मुलींचे वसतीगृह उभारले. जागा मिळविणे आणि वसतीगृह बांधणे यासाठी अनंत अडचणी उभ्या राहिल्या. त्यावेळी अनेक सुहृदांनी  अनंत हस्ते  त्यांच्या या सत्कार्याला मदत केली. प्रतीथयश व्यक्तींचे पूर्णाकृती पुतळे बनवून त्यांनी एक वॅक्स म्युझियमही उभारले आहे.  अनेक लोक त्याला आवर्जून भेट देतात.

कॉम्प्युटर इंजिनियर झालेला कुणाल याचे या कामात खूप मोठे योगदान आहे. भारतातील अनेक प्रांतातील  दृष्टिहीन मुला-मुलींना त्यांच्या घरीच मेणबत्त्या बनविणे, कागदी पिशव्या बनविणे व इतर  उद्योग शिकण्यासाठी कुणालने अनेक ॲप्स विकसित केली आहेत. त्याचा भारतभरच्या अंध विद्यार्थ्यांना फायदा होतो. तसेच कुणाल परदेशी निर्यातीचे सर्व काम सांभाळतो.

भावेश यांनी त्यांची मैदानी खेळाची आवड जपली आणि नीताच्या सक्रिय सहाय्यामुळे वाढविली. गोळाफेक, थाळीफेक, भालाफेक, पॉवर लिफ्टिंग, फुटबॉल, कबड्डी, अशा स्पर्धांमध्ये राष्ट्रीय पॅरालिंपिक व इंडियन ब्लाइंड स्पोर्ट्स असोसिएशनची एकूण ११४ पदके त्यांनी जिंकली आहेत. त्यामध्ये ४० सुवर्ण पदके आहेत. ते अनेक वेळा प्रतापगड, सिंहगड चढून गेले आहेत. इतकेच नाही तर कळसुबाई शिखरावरही तीन वेळा गेले आहेत. डॉक्टर भावेश यांचे असे म्हणणे आहे की, खिलाडू  वृत्ती आपल्याला परिपूर्ण बनवते, अंतर्बाह्य माणूस बनविते.  शरीर सुदृढ असेल तर मेंदू आणि मन हे सुद्धा सुदृढ राहतात. यशस्वी उद्योजक आणि दृष्टिहीनांसाठी कार्यरत असलेल्या भावेश यांना तीन वेळा राष्ट्रपती पुरस्काराने  सन्मानित करण्यात आले आहे. कर्नाटक सरकारने चन्नमा विद्यापीठातर्फे भावेश यांना डॉक्टरेट ही पदवी दिली.

गुजराती समाजाच्या रक्तातच उद्योगधंद्याचं बाळकडू असतं. व्यापारासाठी जगाच्या पाठीवर कुठेही जाण्याची त्यांची तयारी असते. नीता यांचे बालपण पूर्व आफ्रिकेतील सोमालिया इथे गेले कारण वडील व्यापारासाठी तिथे गेले होते.

भावेश यांचे   पहिले मेणबत्ती प्रदर्शन टिळक स्मारक मंदिर पुणे इथे यशस्वीपणे पार पडले . त्यासाठी महाबळेश्वर येथील ‘आनंदवन’ या सुप्रसिद्ध हॉटेलचे मालक वैद्य कुटुंबीय यांनी खूप मदत केली ,मेहनत घेतली. अनेक गुजराती व्यवसायिकांनी या प्रदर्शनाला भेट दिली आणि त्यानंतर या धडपडणाऱ्या व्यवसाय बंधूला गुजराती समाजातून फार मोठ्या प्रमाणावर पाठिंबा मिळाला. त्यांच्या उद्योगधंद्याची भरभराट होण्यासाठी, दृष्टिहीनांसाठी वसतीगृह उभारण्याचे स्वप्न साकार करण्यासाठी सर्व प्रकारची मदत करण्यात आली .’एकमेका सहाय्य करू’ हा गुजराती लोकांचा  विशेष गुण अनुकरणीय  आहे.

आज डॉ .भावेश यांना त्यांचे अनुभव आणि विचार ऐकविण्यासाठी सन्मानाने झारखंड येथील ‘टाटा स्टील’ पासून इतर सर्व मोठ्या उद्योगधंद्यामध्ये आवर्जून बोलावलं जातं. हा सर्व प्रवास महाबळेश्वरपासून ते एकट्याने करतात. त्यांचे अनुभव सांगताना भावेश सांगतात की अंध, अपंग व्यक्तींबद्दल नुसती सहानुभूती,दया दाखवून त्यांना मदत करू नका.  त्याऐवजी अंध अपंगांना सक्षम करण्यासाठी स्वतःच्या पायावर ते उभे राहतील अशा उद्योग धंद्यात मदत केलेली जास्त चांगली. अंध व्यक्तींची इतर  ज्ञानेन्द्रिये अधिक प्रगल्भ असतात. अशा व्यक्ती अधिक संवेदनशील असतात. या त्यांच्या गुणांचा फायदा घेऊन त्यांचा आत्मविश्वास जागृत करावा व योग्य ती मदत जरूर करावी. ‘सर्व शिक्षा अभियानां’तर्गत आता पदवी आणि पदव्युत्तर शिक्षण घेणे अंधांनाही सहज शक्य आहे. ते स्वानुभावावरून सांगतात की अंध, अपंग विद्यार्थ्यांसाठी वेगळ्या शाळा नकोत तर त्यांना इतर  सर्वसामान्य मुलांबरोबर नेहमीच्या शाळेत शिक्षण मिळाले पाहिजे .

एखाद्या वाढदिवसानिमित्त किंवा काही कारणासाठी आपण अशा अंध, अपंग संस्थांमध्ये भोजन देणे, भेटवस्तू देणे असे करतो. भावेश यांना ते अजिबात पसंत नाही. कारण त्यामुळे या अंध, अपंगांना तुम्ही दुबळे करता, त्यांना घेण्याची सवय लावता असं ते अनुभवाने सांगतात.त्यांचं स्पष्ट मत असं आहे की अंध अपंगांसाठी काम करणाऱ्या संस्थांपैकी फारच थोड्या संस्था तळमळीने काम करतात. इतर अनेक संस्थांमधील परिस्थिती भीषण असते. अंधांकडून काम करून घेतले जाते पण त्यांना पुरेसा आहार, पैसे दिले जात नाहीत. उलट संस्थाचालकंच ‘मोठे’ होत जातात. अंध निधीच्या नावाखाली कोट्यावधी रुपयांचा निधी गोळा केला जातो. प्रत्यक्षात त्यातील फार थोडा पैसा अंधांसाठी खर्च होतो. समाजाने जागृत होऊन योग्य ठिकाणी मदत केली पाहिजे. दृष्टीहीनांनी अभ्यासाबरोबर कौशल्य विकासाकडे लक्ष दिले पाहिजे असे ते सांगतात.

डॉक्टर भावेश यांच्या संस्थेतर्फे दृष्टीहीनांवर आधुनिक उपचार करून थोडे यश मिळत असेल तर तसा प्रयत्न केला जातो. लहान मोठी ऑपरेशन करण्यासाठी मदत केली जाते. समाजाने  नेत्रदान चळवळीला सक्रिय पाठिंबा दिला  तर त्याचा अनेक दृष्टीहीनांना लाभ होईल असं डॉक्टर भावेश यांना वाटतं.

नीता या स्वतः दुर्गम भागात जाऊन दृष्टीबाधित भगिनींना भेटतात. घरातील सदस्यांना विश्वासात घेऊन, नीता त्या अंध भगिनींना प्लास्टिक हार, तोरणे, कागदी पिशव्या, डिटर्जंट बनविणे  अशी अनेक कामे शिकवतात.

डॉक्टर भावेशजींसारखं व्यक्तिमत्व ज्यांचं संपूर्ण आयुष्य ऊर्जा व सकारात्मकतेने परिपूर्ण आहे ते आणि आपण इतर डोळस यांच्यात खऱ्या अर्थाने दृष्टिबाधित कोण आहे असा प्रश्न  हे पुस्तक वाचताना नक्की पडतो .

डॉक्टर भावेश यांचे आयुष्य घडविणाऱ्या महत्त्वाच्या  दोन व्यक्तींमधील एक अर्थातच त्यांची आई! आईने त्यांच्या मनातील न्यूनगंड काढून टाकून त्यांना आत्मविश्वासाने उभे केले आणि दुसरी व्यक्ती म्हणजे पत्नी नीता! नीता यांच्या ‘डोळस प्रेमाची’ एक छोटी गोष्ट सांगून थांबते.

एका आंतरराष्ट्रीय शर्यतीत भाग घेण्यासाठी भावेश यांना दररोज पंधरा-सोळा किलोमीटर धावण्याची प्रॅक्टिस करणे जरुरी होते. नीता यांनी काय करावे? आपल्या चार चाकी गाडीला कॅरियर बसून घेतले. त्याला पंधरा फुटांची एक लांब दोरी घट्ट बांधली. दोरीचे दुसरे टोक भावेश यांच्या हातात दिले आणि दररोज त्यांना पोलो ग्राउंडवर नेऊन धावण्याची प्रॅक्टिस करता येईल अशा पद्धतीने गाडी चालवून त्यांचा सराव करून घेतला. महाबळेश्वरला आलेले पर्यटक आणि पोलो ग्राउंडवर आलेले खेळाडू यांनी हे दृश्य डोळे भरून पाहिले.

 गृहिणी सचिव सखी प्रिया… असलेल्या नीता यांना आदराने नमस्कार

© सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी

जोगेश्वरी पूर्व, मुंबई

9987151890

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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