English Literature – Poetry ☆ The Grey Lights# 13 – “Make her Man…” ☆ Shri Ashish Mulay ☆

Shri Ashish Mulay

? The Grey Lights# 13 ?

☆ – “Make her Man…” – ☆ Shri Ashish Mulay 

 If you can buy out

her share of mistakes

yet convert it into

your asset of strength

 

If you can enlighten her

with the ways of men

yet respect for her

crafty survival ways

 

If you can identify

you are her true pain

yet be the true friend

to stop her rain

 

If you can allow her

to be your sword

yet when her blade fails

be her shield

 

If you can walk forward

ahead of your time

yet stop for her

to catch up for a while

 

If you can make her

known for smile

when she is notorious

for her tears

 

and…

 

If you can

‘make her man’

you will become more

than ‘just her man’…

© Shri Ashish Mulay

Sangli 

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈




हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 152 ☆ नवगीत – “भारत / तकनीक…” ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक नवगीत – भारत / तकनीक…)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 152 ☆

☆ नवगीत – भारत / तकनीक… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

भारत

यह देश भारत वर्ष है, इस पर हमें अभिमान है 

कर दें सभी मिल देश का, निर्माण नव अभियान है 

गुणयुक्त हो अभियांत्रिकी, शर्म-कोशिशों का गान है 

परियोजना त्रुटिमुक्त हो, दुनिया कहे प्रतिमान है

तकनीक

नवरीत भी, नवगीत भी, संगीत भी तकनीक है 

कुछ प्यार है, कुछ हार है, कुछ जीत भी तकनीक है 

गणना नयी, रचना नयी, अव्यतीत भी तकनीक है 

श्रम-मंत्र है, नव यंत्र है, सुपुनीत भी तकनीक है 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१२-१२-२०१५, जबलपुर

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈




ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (28 अगस्त से 3 सितंबर 2023) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (28 अगस्त से 3 सितंबर 2023) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

पिछले सप्ताह मैं बागेश्वर धाम जिला छतरपुर में गया था। वहां पर गुरु जी के दर्शन किए। उनको अपनी किताब “नासे रोग हरे सब पीरा” की 11 प्रतियां भेंट की तथा इस पुस्तक के अंग्रेजी एडिशन में प्रकाशित करने के लिए आशीर्वाद प्राप्त किया।

आइए अब हम हनुमान चालीसा की आज की चौपाई की चर्चा करते हैं :-

तुम्हरे भजन राम को पावै, जनम जनम के दुख बिसरावै॥

भावार्थ:- भजन का अर्थ होता है ईश्वर की स्तुति करना। भजन सकाम भी हो सकता है और निष्काम भी। हनुमान जी और उन के माध्यम से श्री रामचंद्र जी को प्राप्त करने के लिए निष्काम भक्ति आवश्यक है। भजन कामनाओं से परे होना चाहिए। अगर आप कामनाओं से रहित निस्वार्थ रह कर हनुमान जी या श्री रामचंद्र जी का भजन करेंगे तो वे आपको निश्चित रूप से प्राप्त होंगे।

इस चौपाई के बार बार पाठ करने से होने वाला लाभ :-

इस चौपाई के बार बार पाठ करने से हनुमत कृपा प्राप्त होती है। यह सभी दुखों का नाश करती है और आपका बुढ़ापा और परलोक दोनो सुधारती है।

इस हनुमत चर्चा के उपरांत अब मैं पंडित अनिल पाण्डेय आप सभी से 28 अगस्त से 3 सितंबर 2023 अर्थात विक्रम संवत 2080 शक संवत 1945 के श्रावण शुक्ल पक्ष की द्वादशी से भाद्रपद कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तक के सप्ताह के साप्ताहिक राशिफल की चर्चा करेंगे।

इस सप्ताह चंद्रमा प्रारंभ में धनु राशि का रहेगा। 28 अगस्त को 7:57 प्रातः से मकर राशि में प्रवेश करेगा। इसके उपरांत 30 अगस्त को 10:28 दिन से कुंभ में, 1 सितंबर को 12:47 दिन से मीन में तथा 3 सितंबर को 3:49 दिन से मेष राशि में गोचर करेगा।

इस पूरे सप्ताह सूर्य सिंह राशि में, मंगल कन्या राशि में, गुरु मेष राशि में रहेंगे। इसी प्रकार इस पूरे सप्ताह बुद्ध सिंह राशि में वक्री, शनि कुंभ राशि में वक्री , शुक्र कर्क राशि में वक्री तथा राहु मेष राशि में वक्री रहेगा।

आइए अब हम राशिवार राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

इस सप्ताह आपको जनता में सम्मान की प्राप्ति हो सकती है। आपके विचारों के प्रति लोगों के अंदर सम्मान पैदा होगा। माताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपके सुख में थोड़ी वृद्धि हो सकती है। आपके प्रयासों से आपके शत्रुओं को कष्ट हो सकता है। आपका ब्लड प्रेशर या डायबिटीज या खून संबंधी कोई रोग बढ़ सकता है। धन आने की कम उम्मीद है। इस सप्ताह आपके लिए 28 और 29 अगस्त उत्तम है। 1, 2 और 3 सितंबर को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप शनिवार को शनि मंदिर में जाकर शनि देव का पूजन करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

वृष राशि

 इस सप्ताह आपके सुख में वृद्धि होगी। जनता में आपका सम्मान बढ़ेगा। माता जी के परेशानियों में कमी आएगी। भाई बहनों के साथ संबंध सामान्य रहेंगे। संतान का सहयोग आपको प्राप्त नहीं होगा। पेट की रोग बढ़ सकता है। कार्यालय में आपको परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। भाग्य से आपको लाभ प्राप्त नहीं होगा। इस सप्ताह आपके लिए 30 और 31 अगस्त लाभदायक हैं। सप्ताह के बाकी दिन ठीक हैं। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह मंगलवार का व्रत करें तथा मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में जाकर पूजा पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

मिथुन राशि

इस सप्ताह आपका अपने भाई बहनों से ठीक-ठाक संबंध रहेगा। धन आने की थोड़ी उम्मीद है। भाग्य से आपको कम मदद प्राप्त होगी। माता जी के कष्टों में वृद्धि हो सकती है। पिताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। संतान से आपके सहयोग प्राप्त नहीं होगा। इस सप्ताह आपके लिए एक, दो और तीन सितंबर फलदायक हैं। एक, दो और तीन सितंबर को आपके अधिकांश कार्य सफल होंगे। 28 और 29 अगस्त को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह शनिवार के दिन दक्षिण मुखी हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम सात बार हनुमान चालीसा का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कर्क राशि

अगर आपका स्वास्थ्य पहले से खराब है तो वह ठीक होने लगेगा। इस सप्ताह आपके पास धन आने का अच्छा योग है। कृपया धन प्राप्त करने का प्रयास करें। भाई बहनों के साथ संबंधों में खटास आएगी। भाग्य से आपको थोड़ा बहुत लाभ मिल सकता है। माताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। पिताजी से आपका कुछ तकरार हो सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 28 और 29 अगस्त शुभ हैं। 30 और 31 अगस्त को आपको सावधान रहना चाहिए और कोई कार्य करने के पहले पूरी योजना बनाना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन सायंकाल के समय पीपल के पेड़ के नीचे मिट्टी का दीपक जलाकर पीपल के पेड़ की सात बार परिक्रमा करें। इस सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

सिंह राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। व्यापार में मामूली प्रगति होगी। कचहरी के कार्यों में काफी परिश्रम के बाद सफलता मिल सकती है। धन आने के रास्ते में कई बाधाएं हैं। आपके जीवन साथी को कष्ट हो सकता है। भाग्य आपका थोड़ा बहुत साथ देगा। छात्रों की पढ़ाई ठीक चलेगी। इस सप्ताह आपके लिए 30 और 31 अगस्त उत्तम और लाभदायक हैं। 30 और 31 अगस्त को छोड़कर सप्ताह के बाकी दिनों में आपको सचेत रहना चाहिए। कोई भी कार्य करने के पहले पूरी योजना बनाना चाहिए और सावधानी से कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन भगवान शिव का अभिषेक करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

कन्या राशि

इस सप्ताह आपको कचहरी के कार्यों में सफलता प्राप्त हो सकती है। धन आने का भी योग है। शत्रुओं की संख्या में वृद्धि हो सकती है। आपके स्वास्थ्य में थोड़ी खराबी आएगी। खून संबंधी कोई रोग हो सकता है। दुर्घटनाओं से आपको सावधान रहना चाहिए। भाग्य से आपको कोई बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं करना चाहिए। इस सप्ताह आपके लिए 1 , 2 और 3 सितंबर उत्तम फलदायक हैं। 30 और 31 अगस्त को आपको कार्यों को करने में बड़ी सावधानी बरतना चाहिए। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

तुला राशि

आपकी कुंडली के गोचर में धन आने का अच्छा योग है। आपका स्वास्थ्य सामान्य रहेगा। चर्म संबंधी कोई रोग हो सकता है। कचहरी के कार्यों में ज्यादा मत उलझें। आपके प्रयास से आपके कई शत्रु पराजित होंगे। भाई-बहनों के साथ सामान्य संबंध रहेगा। कार्यालय में आपको लोगों से सहयोग प्राप्त होगा। आपके विभिन्न कार्यालय में लंबित कार्य पूर्ण हो सकते हैं। कृपया प्रयास करें। इस सप्ताह आपके लिए 30 और 31 अगस्त उत्तम है। 1 , 2 और 3 सितंबर को आपको सावधान रहकर अपने कार्य संपन्न करना चाहिए। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह गाय को हरा चारा खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

वृश्चिक राशि

आपको इस सप्ताह अपने भाग्य से थोड़ी मदद मिल सकती है। कार्यालय में आपका प्रभुत्व बढ़ेगा। आपको अपने सभी सहकर्मियों से अच्छा सहयोग प्राप्त होगा। विभिन्न कार्यालयों में आपके लंबित कार्य संपन्न होंगे। आपको थोड़ा सा प्रयास करने की आवश्यकता है। धन आने की कोई विशेष उम्मीद नहीं है। पेट के रोग में वृद्धि हो सकती है। आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 30 और 31 अगस्त उत्तम और फलदाई हैं। सप्ताह के बाकी दिन ठीक हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप शुक्रवार के दिन मंदिर में जाकर गरीबों के बीच में चावल का दान दें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह आपको अपने भाग्य से लाभ प्राप्त होगा। भाग्य के कारण आपके कई कार्य संपन्न हो सकते हैं। आप दुर्घटनाओं से बचेंगे। कार्यालय में आपको सहयोग प्राप्त नहीं होगा। अपने अधिकारियों से उलझने की कोशिश ना करें। आपके संतान को कष्ट हो सकता है। पिताजी को कष्ट हो सकता है। माताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। आप और आपके जीवनसाथी दोनों का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। इस सप्ताह आपके लिए 1 , 2 और 3 सितंबर लाभदायक हैं। इस सप्ताह आप अपने लंबित सभी कार्यों को संपन्न करने का प्रयास करें। आपको अधिकांश कार्यों में सफलता प्राप्त होगी। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप रामरक्षा स्तोत्र का प्रतिदिन जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

मकर राशि

अविवाहित जातक के लिए यह सप्ताह अच्छा है। उनके विवाह के उत्तम प्रस्ताव आएंगे। प्रेम संबंधों में वृद्धि होगी। इस सप्ताह आपका भाग्य साथ नहीं दे पाएगा। आपको सब कुछ अपने परिश्रम से ही प्राप्त करना होगा। दुर्घटनाओं से आपको सावधान रहना चाहिए। कचहरी के कार्यों में मामूली सफलता मिल सकती है। भाई बहनों के साथ संबंध सामान्य रहेगा। इस सप्ताह आपके लिए 28 और 29 अगस्त उत्तम है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप विष्णु सहस्त्रनाम का प्रतिदिन जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

कुंभ राशि

यह सप्ताह आपके जीवनसाथी के लिए अत्यंत उत्तम है। भाई बहनों के साथ आपके संबंध सामान्य रहेंगे। भाग्य आपका साथ देगा। लंबी दूरी के भ्रमण पर आप जा सकते हैं। आप के रोग में वृद्धि हो सकती है। आपका स्वास्थ्य थोड़ा खराब रहेगा। दुर्घटनाओं से निरंतर बचने का प्रयास करें। इस सप्ताह आपके लिए 30 और 31 अगस्त उत्तम फलदाई हैं। 28 और 29 अगस्त को आपको सचेत रहकर कार्य करना चाहिए। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह रूद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

मीन राशि

सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। थोड़ा बहुत धन आने की उम्मीद है। आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त होगा। आपके जीवन साथी को शारीरिक कष्ट हो सकता है। आपको भी मानसिक परेशानी हो सकती है। आपको अपने कार्यालय में प्रतिष्ठा प्राप्त होगी। इस सप्ताह आपके लिए एक, दो और तीन सितंबर उत्तम और लाभदायक हैं। इन तारीखों में आपके द्वारा किए गए कार्यों का आपको अच्छा फल प्राप्त होगा। 30 और 31 तारीख को आप पूरी सावधानी के साथ ही कोई कार्य करें अन्यथा आपका कार्य असफल हो जाएगा। इस सप्ताह आपको चाहिए कि प्रतिदिन भगवान शिव का अभिषेक करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

मां शारदा से प्रार्थना है कि आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ चांद्रयान मोहीम ☆ सौ.उज्वला सुहास सहस्त्रबुद्धे ☆

सौ.उज्वला सुहास सहस्त्रबुद्धे

?  कवितेचा उत्सव  ?

☆ चांद्रयान मोहीम ☆ सौ.उज्वला सुहास सहस्त्रबुद्धे ☆

 काल चांदणे खुदकन हसले,

   नभांगणी या रात्री !

अवनी वरच्या यान भेटीने,

   केली जगाशी मैत्री !……१

 

यान उतरले चंद्रावरती,

  पहात होत्या चांदण्या!

चमचम करीत सज्ज जाहल्या,

  स्वागतास जाण्या !…..२

 

पहात होते अनुपम सोहळा,

 पृथ्वीवरचे जन !

आनंदाने न्हाऊन  गेले ,

भारतीयांचे मन !……३

 

भारत भूचा विजय दिन,

  असे हा अवर्णनीय!

चांद्रयानाने कोरले वरती,

   सुवर्णाचे ते पाय……४

© सौ. उज्वला सुहास सहस्रबुद्धे

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ ‘चांद्रयान – ३’ ☆ सुश्री प्रणिता खंडकर ☆

सुश्री प्रणिता प्रशांत खंडकर

? कवितेचा उत्सव ?

☆ ‘चांद्रयान – ३‘ ☆ सुश्री प्रणिता खंडकर ☆

आकाशाशी जोडले नाते धरणीमातेचे,

 चांद्रयान चंद्रावर गेले, तिरंगा डौलाने फडके!

 

 शास्त्रज्ञांनी देखियले हो स्वप्न भव्य येथे,

  इस्त्रोमधूनी हालवली मग पहा त्यांनी सूत्रे,

 प्रयत्न त्यांचे आज पहा हे यशस्वी झाले,

चांद्रयान चंद्रावर गेले, तिरंगा डौलाने फडके! ||१||

 

  चंद्रावरती प्रथम उतरूनी, विक्रम हा केला ,

  जगामध्ये या  वाजतसे हो भारताचा डंका,

  बांधली  राखी चांदोबाला, आज वसुंधरेने,

 चांद्रयान चंद्रावर गेले, तिरंगा डौलाने फडके! ||२||

 

  कडकडाट टाळ्यांचा झाला, दुमदुमली अवनी,

  शास्त्रज्ञांच्या डोळ्यांमधूनी आनंदाश्रू झरती,

  सार्थक झाले आज वाटते त्यांच्या तपस्येचे,

  चांद्रयान चंद्रावर गेले, तिरंगा डौलाने फडके! ||३||

 

    अपयशातून रचली आम्ही आज  यशोगाथा,

       ठेवू उन्नत सदैव आम्ही भारतभूचा  माथा,

     रवी-शुक्र हे लक्ष्य आमुचे, आता या पुढचे,

    चांद्रयान चंद्रावर गेले, तिरंगा डौलाने फडके! ||४||

 

    आकाशाशी जोडले नाते धरणीमातेचे,

     चांद्रयान चंद्रावर गेले, तिरंगा डौलाने फडके!

© सुश्री प्रणिता खंडकर

संपर्क – सध्या वास्तव्य… डोंबिवली, जि. ठाणे.

ईमेल [email protected] केवळ वाॅटसप संपर्क.. 98334 79845.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – विविधा ☆ “खरेदीचे साइड इफेक्ट…” ☆ श्री कौस्तुभ परांजपे ☆

श्री कौस्तुभ परांजपे

? विविधा ?

☆ “खरेदीचे साइड इफेक्ट…” ☆ श्री कौस्तुभ परांजपे ☆

साइड इफेक्ट बऱ्याचदा औषधांचे, तेलाचे, क्रिमचेच असतात आणि ते नंतर दिसतात किंवा जाणवतात अस काही नाही. त्याचा त्रास ते घेणाऱ्याला होतो हे खरंय. पण लागोपाठच्या आणि सततच्या खरेदीचे सुद्धा साइड इफेक्ट असतात आणि ते आपल्या वागण्यात दिसतात अस लक्षात आल. आणि त्याचा त्रास समोरच्याला होतो.

खरेदी करायला कोणाला आवडत नाही… पण पुरुषांना सगळ्याच खरेदीत तेवढाच उत्साह असतो अस नाही. काही खरेदीत तो असतो… तर काहीवेळा तो आणावा लागतो. बायकांच्या बाबतीत खरेदी म्हणजे नशाच असते. उतरल्याच जाणवतच नाही. खरेदी जेवढी जास्त तेवढी ती चढतच जाते. मग आपली स्वतःची नसली तरीही.

आमच्याकडे एक कार्य होत. मग काय? खरेदीचा सुळसुळाट आणि उत्साहाचा महापूर आला होता. महापुरात सगळीकडे पाणीच पाणी दिसत. तसच या सुळसुळाटात आणि उत्साहात हातात पिशव्या आणि खिशात यादीच सापडत होती. याशिवाय अनेक सुचना होत्या त्या वेगळ्या. कुठे जायच, काय घ्यायच, तिथे काय घ्यायच नाही. भाव किती असेल. भावाच्या बाबतीत तुम्ही बोलू नका. त्यातल तुम्हाला काही कळत नाही. (नाहीतरी कशातल कळतंय….. अस पण हळूच बोलून होत होत.) सामान उचलण्याची घाई करू नका. हल्ली सामान घरपोच देतात. या आणि अनेक. या सुचनांमुळे काहीवेळा सुचेनासे होत.

घरचा माणूस म्हणून जवळपास सगळ्याच ठिकाणी माझी उपस्थिती अगदी प्रार्थनीय नसली तरी हवी होती. निदान गाडी घेऊन तरी चला…….. बाकीच आम्ही पाहून घेऊ. असे सांगत प्रार्थनीय उपस्थिती असणाऱ्यांची सोय झाली होती. गरज होती ती गाडीची आणि त्यांच्या सोयीच्या वेळेत. (याला म्हणतात काॅन्फिडन्स…….)

कार्यासाठी दागिने खरेदी करतांना यातच पण वेगळी डिझाईन, हिच डिझाईन पण वजनाला यापेक्षा थोड कमी किंवा जास्त. थोड लांब किंवा अखूड. दोन पदरी किंवा मोठं पेंडेंट. असा संवाद सारखा कानावर पडत होता. सोनं पिवळंच असल्याने त्यात वेगळा रंग मागायची सोय नव्हती. पण ती रंगाची कमी आम्ही दागिन्यांवर लावलेल्या खड्यांच्या रंगात आणि आकारात उभ्या उभ्या म्हणजे खडेखडेच शोधत होतो. घडणावळ जास्त आहे, हे वाक्य. आणि मधे मधे कॅरेट हा शब्द होताच. रेट मात्र फिक्स होता.

सोन्याच्या दुकानात भाव करण्याची सोय नसते. पण त्या विकणाऱ्याल्याच एक दोन दिवसात भाव काही कमी होण्याची शक्यता आहे काहो?…… अशीही विचारणा होत होती… कमी नाहीच पण वाढण्याची शक्यता आहे….. असे तो चेहऱ्यावरचे भाव न बदलता सांगायचा. त्याच बोलणं मनाला बरं वाटतं होतं. एकतर आज थोड स्वस्त मिळेल याचा आनंद. नाहीतर दोन दिवसांनी याच तिकीटावर हाच खेळ परत करायला लागेल याची काळजी.

इतर खरेदित या रंगात, त्या डिझाईन मध्ये, आणि त्या प्रकारात अशी विचारणा हातरुमाल, पर्स, पिशव्या, साड्या, पॅन्ट आणि शर्ट पिस, चप्पल, बुट अशा शक्य त्या सगळ्या वस्तुंच्या बाबतीत झाली. डिस्काउंट वर घसघशीत घासाघीस झाली.

किराणा मालातील साबण आणि पेस्ट या सारख्या काही वस्तू सोडल्या तर तांदूळ, पोहे, रवा, डोक्याला लावायचे तेल, चहा या सारख्या वस्तू सुद्धा सुटल्या नाहीत. रवा जाड हवा. पोहे जास्त पातळ हवे, किंवा नको. वेगवेगळ्या नावाचे पण पोहे असतात हे मला याचवेळी समजले. चहा मिक्स हवा, ममरी नको, हे माझ्या मेमरीत फिट्ट बसले. तांदूळ बासमतीच हवा, चिनोर, कोलम नको. तुकडा चालणार नाही. असं पाहतांना एक एक वस्तू आणि त्यांची खरेदी याचा तुकडा पाडला जात होता. म्हणजे खरेदी संपत नसली तरी काही प्रमाणात आटोपत होती.

त्यामुळे प्रकार, रंग, डिझाईन, भाव, डिस्काउंट या गोष्टी त्या काही दिवसात पाठ झाल्या होत्या. पाठ म्हणजे इतक्या पाठ की त्या पाठ सोडायला तयार नव्हत्या.

पण या सगळ्या खरेदीचा साइड इफेक्ट कार्य संपल्यावर जाणवला. नंतर परत बॅंकेतून पैसे काढण्यासाठी गेलो तेव्हा कॅशीयरला सुध्दा सांगितले. सगळ्या एकाच प्रकारच्या नोटा देऊ नका. वेगवेगळ्या द्या.  त्यावर त्याने सुद्धा विचारले. काही कार्यक्रम आहे का?… हे झाले पैशाचे.

सलून मध्ये पण असंच झालं. कटिंग करायला बसल्यावर त्याने विचारले. कसे कापू? जास्त की साधारण?…..  मी विचारल पैसे दोघांचे सारखेच लागतील नं? त्यावर त्याने ज्या नजरेने माझ्याकडे पाहिल ते त्याच्या आरशात मला दिसल…..

कार्याची दगदग झाल्यावर नंतर तब्येत थोडी नरमगरम वाटली. डाॅक्टरांकडे गेलो. त्यांनी तपासून तीनचार गोळ्या व एक बटलीतले औषध लिहून दिले.

औषधाच्या दुकानात तोच प्रकार. अरे या पॅकिंगमध्ये गोळ्या कशा आहेत ते दिसत नाही. जरा आकार आणि रंग दिसणाऱ्या दाखवा ना…… बाटलीत यापेक्षा वेगळा आणि लहान आकाराच्या नाही का?… किमतीत काही कमी जास्त…… गोळ्या यातच लहान नाही का?…. गिळायला बऱ्या असतात.

मी अस विचारल्यावर औषध विकणाऱ्याने चेहरा खाऊ का गिळू असा केला. पण साइडने त्याच्या चेहऱ्यावर माझ्या बोलण्याचा झालेला इफेक्ट मला दिसलाच…..

माझ्या लक्षात आलं. सतत रंग, डिझाईन, वजन, लहान, मोठ अस विचारत  केलेल्या सततच्या खरेदीचा हा साइड इफेक्ट आहे……

असच एक कार्य बऱ्याच वर्षांपूर्वी माझ्याचसाठी घडवून आणल होत. त्याही कार्याचे काही साईड आणि वाईड इफेक्ट आता दिसायला लागले आहेत. पण त्यावर नंतर बोलू.

©  श्री कौस्तुभ परांजपे

मो 9579032601

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ.मंजुषा मुळे/सौ.गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ आंबटगोड नातं…– भाग- १ ☆ श्री व्यंकटेश देवनपल्ली ☆

श्री व्यंकटेश देवनपल्ली

? जीवनरंग ❤️

☆ आंबटगोड नातं…– भाग- १ ☆ श्री व्यंकटेश देवनपल्ली

कुलकर्णी साहेबांचा पंचाहत्तरावा वाढदिवस आणि त्याचबरोबर त्यांच्या लग्नाच्या पन्नासाव्या वाढदिवसाचा योग एकत्र जुळून आला. साहेबांच्या मुलांनी त्या निमित्ताने सूरज प्लाझा हॉलमध्ये एका समारंभाचं आयोजन केलं होतं. साहेबांच्याबरोबर मी चार वर्ष एकत्र काम केलं आहे. ते मला धाकटा भाऊच मानतात. आमचे अतिशय घनिष्ठ संबंध आहेत. मला सपत्निक येण्याचे निमंत्रण नव्हे तर आज्ञा होती.

आम्ही उभयता समारंभाच्या आदल्या दिवशीच हजर झालो. त्यांची मुले विदेशाहून दहा दिवस अगोदरच ठाण्याला येऊन दाखल झाली. कार्यक्रमाच्या आदल्या दिवशी, रात्रीचं जेवण केटररकडून मागवलेलं होतं. साहेबांचे जवळचे नातेवाईक आणि इतर भावंडे बऱ्याच दिवसांनी एकत्र जमल्याने वारेमाप गप्पा सुरू होत्या. मध्येच कुणी तरी म्हणालं, “आपण गाण्याच्या भेंड्या खेळूयात का?”

सगळ्यांनी एकमुखाने कल्ला केला. आपोआप दोन गट पडले. साठ सत्तरच्या दशकातील सदाबहार गाणी एकेकाच्या पोतडीतून बाहेर निघत होती. सुरेख मैफल सजली होती. रात्र होत चालली होती तसा खेळ रंगत चालला होता. शेवटी गाण्याचे तेच अक्षर रिपीट व्हायला लागले. साहेबांच्या ग्रुपला ‘क’ अक्षर आलं. माझ्याकडे पाहून डोळे मिचकावत साहेबांनी गायला सुरूवात केली. ‘कहे ना कहे हम बहका करेंगे…’ सुधावहिनीनी आक्षेप घेतला. ‘ चिटींग करताय. रहें ना रहें.. असं आहे.’  मग सुधावहिनींनी ते गाणे गायलाच पाहिजे म्हणून सगळ्यांनी आग्रहच धरला. सुरूवातीला आढेवेढे घेत, सुधा वहिनीनी ‘रहें ना रहें हम, महका करेंगे बन के कली, बन के सबा, बाग-ए-वफ़ा में…..’  कित्ती गोड गायलं होतं की, व्वा !..  ‘ए’ अक्षर आल्यावर, सुधावहिनींच्याकडे पाहत साहेब गायला लागले, ‘ऐ मेरी जोहराजबीं, तुझे मालूम नहीं तू अभी तक है हसीं और मैं जवॉं तुझपे क़ुर्बान मेरी जान, मेरी जाँ ये शोख़ियाँ, ये बाँकपन जो तुझमें है, कहीं नहीं….’ साहेबांचा रोमॅंटिक सूर लागला होता त्यांना कुणी टोकलं नाही. तेच शेवटचं गाणं ठरलं. रात्र बरीच झाली. दुसऱ्या दिवशी कार्यक्रम होता. लगेच पांगापांग झाली. 

लॉनच्या मध्यभागात छानपैकी मांडव सजवलेला होता. साहेब आणि वहिनी नवदांपत्यासारखे नटले होते. अतिशय सुंदर पद्धतीने कार्यक्रमाची आखणी करण्यात आली होती. सनई चौघडे याचं छान कर्णमधुर संगीत वाजत होतं. साहेबांची कन्या कार्यक्रमाचे संयोजन करीत होती. उभयतांनी टाळ्यांच्या कडकडाटात एकमेकांच्या गळ्यात पुष्पहार घातले. जणू साहेबांचा आणि सुधा वहिनींचा पुन्हा एकदा विवाहसमारंभच होता. 

रविवारी दुपारी समारंभ असल्याने साहेबांच्या जवळपासची शंभर एक माणसे अगत्याने आली होती. पुष्पगुच्छ आणि भेटवस्तूंच्या बॉक्सेसचा नुसता ढीग लागलेला होता. मुलं, सुना आणि नातवंडे प्रफुल्लित वातावरणात समरसून गेली होती. जेवणाच्या मेन्यूत मोजकेच पण दर्जेदार आणि चविष्ट पदार्थ ठेवलेले होते. कार्यक्रम अतिशय सुरेख संपन्न झाला. कार्यक्रम झाल्यानंतर दोन दिवस साहेबांच्या मुलांची खरेदी चालू होती. मित्रांना भेटणे सुरू होते. 

त्या दिवशी दिवसभर तापत राहिलेली सूर्याची किरणे आपला पसारा आवरत परत पावली जाण्याच्या तयारीत होती. संध्याकाळ धूसर होत चालली होती. मी आणि साहेब बाल्कनीत खुर्च्या टाकून बसलो होतो. आकाशात पक्ष्यांच्या झुंडी चिवचिवाट करत आपापल्या घरट्याकडे परतत होती. गेले आठ दहा दिवस गजबजत राहिलेलं साहेबांचे घर आज रिकामं होणार होतं. आपापल्या मुक्कामाकडे जाण्यासाठी मुलं, नातवंडं सामान पॅकिंग करण्यात गुंतलेली होती. सुधावहिनी मुलांना काय काय बांधून देता येईल यात गुंतलेल्या होत्या. एक एक करत दोन्ही मुले, कन्या नातवंडे “आई बाबा काळजी घ्या. येतो आम्ही.” असं म्हणून नमस्कार करीत टॅक्सीत बसून एअरपोर्टकडे निघत होते. सुट्या संपल्या होत्या. मुलांच्या शाळा होत्या. मुलां-नातवंडाना उभयतांनी हसत हसत निरोप दिला.

आपली मुलं विदेशात राहतात म्हणून मी साहेबांना कधी कुरकुरताना पाहिलं नाही. उलट ते म्हणायचे की आईवडिलांचं नातं हे मुलांच्या पायातली बेडी बनू नये. दरवर्षी साहेब आणि वहिनी दोघेही न चुकता दोन्ही मुलांच्याकडे आणि मुलीकडे जाऊन येतात. आम्हा दोघांना आणखी दोन दिवस मुक्कामाला राहण्याचा साहेबांचा प्रेमळ आदेश होता. मुले निघून जाताच, जड मनाने साहेब मला म्हणाले, “ वसंता, चल आपण जरा बाहेर जाऊन येऊ या.” 

आम्ही बाहेर पडणार होतो त्याआधी साहेबांनी सुधा वहिनींची परवानगी मागितली, “अहो, वसंताला बाजारात जायचंय म्हणे, मला या म्हणतोय. आम्ही जाऊन येऊ काय?” 

“बघा, जणू हे माझ्या परवानगीशिवाय कुठेच जात नाहीत ते. मी नाही म्हटलं तर जणू थांबणारच आहेत. या जाऊन.” 

साहेबांनी बुक केलेली टॅक्सी बघता बघता दामिनी साडी सेंटरच्या समोर येऊन थांबली. दुकानात शिरल्यावर साहेबांनी एका पैठणीकडे बोट दाखवून तिथल्या सेल्समनला सांगितलं, “ती साडी पॅक करून द्या.”  मी सहज विचारलं, “साहेब, कार्यक्रम तर संपला आहे. आता कुणासाठी घेताय ही पैठणी?” 

ते हसत हसत म्हणाले, “अरे, ही पैठणी तुझ्या वहिनींसाठीच घेतोय. काय झालं, गेल्या आठवड्यात दोन्ही सुनांच्यासाठी आणि कन्येसाठी साड्या घ्यायला आलो होतो, तेव्हा तिने ही पैठणी पाहिली होती. किंमत पाहून तिने ती तशीच ठेवून दिली आणि सुनांसाठी घेतलेल्या वाणाचीच एक सिल्क साडी स्वत:साठी घेतली. दुकानातून निघताना ती त्याच पैठणीकडे पाहत होती, ह्यावर माझं लक्ष होतं. लग्नाच्या पन्नासाव्या वाढदिवसाच्या निमित्ताने मी तिला सरप्राईझ द्यायचं ठरवलं आहे. काय वाटतं तुला?” मी काय बोलणार? साहेबांचे पेमेंट करून झाल्यावर आम्ही घराकडे परतलो. 

चहा घेऊन आम्ही टीव्हीवर बातम्या पाहत बसलो होतो. किचनमधून भांड्यांचा आवाज येत होता. जणू आदळआपटच चालली होती. मी बायकोला म्हटलं, “ सविता, बघून येतेस काय, काय झालं ते? ”  

 “अहो वहिनी, तुम्ही आत जाऊ नका. थोड्या वेळात सगळं शांत होईल. मी तिला गेल्या पन्नास वर्षापासून ओळखतोय. आज मुलं निघून गेली आहेत ना, त्याचं दु:ख ती असं आदळआपट करून लपवू पाहतेय. ती आपलं मनातलं कधी कोणापुढे बोलेल तर ना?”..  साहेबांनी शांतपणे सांगितलं. खरंच थोड्या वेळानं सगळं शांत झालं.

थोड्या वेळानंतर, साहेबांनी वहिनींना हाक मारली, “अहो मॅडम, तुमचं काम झालं असेल तर एक मिनिट बाहेर येता काय? थोडंसं काम होतं.”

सुधावहिनी पदराला हात पुसत बाहेर आल्या. “ हं, बोला काय काम आहे? मला अजून सगळं घर आवरायचं आहे, रात्रीचा स्वयंपाक करायचा आहे. लवकर सांगा.”

साहेबांनी हळूच पिशवीतून पैठणी काढून वहिनींच्या हातात दिली आणि मिश्किलपणे म्हणाले, 

“ पदरावरती जरतारीचा मोर नाचरा हवा…… ही घे आपल्या लग्नाच्या पन्नासाव्या वाढदिवसाची तुला खास भेट !. आताच्या आता ही पैठणी नेसून ये. आज आपल्या चौघांना बाहेर जेवायला जायचं आहे.”

‘अहो, चला काही तरीच काय?’ असं म्हणत त्या चक्क लाजल्या. पैठणी न घेताच त्या आत गेल्या आणि थोड्याच वेळेत पदराआड लपवून आणलेलं एक बॉक्स साहेबांना देत म्हणाल्या, ” हे घ्या. तुम्हाला पुस्तकं वाचण्याचा छंद आहे ना? माझ्याकडून तुम्हाला हा घ्या किंडल रीडर !. मी पैजेतून जिंकलेल्या आणि माझ्या बचतीच्या पैशातून घेतला आहे, बरं का !” असं म्हणून पैठणी घेऊन वहिनी आत गेल्या. 

– क्रमशः भाग पहिला. 

© श्री व्यंकटेश देवनपल्ली.

बेंगळुरू

मो ९५३५०२२११२

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – मनमंजुषेतून ☆ स्पेस आणि बॅकस्पेस… भाग-१ ☆ श्री सतीश मोघे ☆

श्री सतीश मोघे

? मनमंजुषेतून ?

☆ स्पेस आणि बॅकस्पेस… भाग-१ ☆ श्री सतीश मोघे

संगणक वापरतांना आणि अलीकडे कुटुंबात वावरतांना एक गोष्ट नेहमी द्यावी लागते, ती म्हणजे ‘स्पेस’. संगणकावरील लिखाणात दोन शब्दात स्पेस दिल्याने वाक्याचा अर्थ समजणे सुकर होते तर कुटुंबात स्पेस दिल्याने नाती राखणे सुकर होते. ‘स्पेस’ या मराठीत रुळलेल्या इंग्रजी शब्दाचा शब्दकोशातला अर्थ अवकाश, अंतर, प्रदेश, जागा असा आहे. पण नात्यांमध्ये हा शब्द वापरतांना तो उसंत, वेळ, मोकळीक, स्वस्थता, सवलत, सूट अशा अनेक भावछटांच्या अभिव्यक्तीसाठी उपयोगात आणला जातो. 

‘मला स्पेस हवी’, ‘मला थोडी स्पेस द्या’ अशी मागणी अलीकडेच  मोठ्या प्रमाणात होऊ लागली आहे,हे खरे असले तरी  स्पेस देण्याघेण्याची ही क्रिया पूर्वापार चालत आली आहे. फक्त तेव्हा स्पेस मर्यादेत व ठरलेल्या वेळी, आई-वडील जेव्हढी देतील तेव्हढीच घेतली जायची. कुटुंबात स्वत:चे व्यक्तिमत्व स्वतंत्रपणे अधोरेखित करण्याची वृत्ती नव्हती. डब्यांमध्ये ठरलेले अंतर ठेऊन कुटुंबाची ‘समझोता एक्सप्रेस’ ठराविक वेगात, ठराविक वेळेत धावत असायची. स्पेस मागायला जागाच नसायची आणि स्पेस मागायची वेळही यायची नाही. कारण छोटी घरे आणि भरपूर कामे. छोट्या घरांमुळे याची रुम वेगळी, त्याची वेगळी असे शक्यच नसायचे. एकाच खोलीत आजी-आजोबा, तिथेच बाबा, तिथेच मूले. स्पेस घ्यायची म्हटली तरी दुसरी मोकळी जागा उपलब्धच नसायची. तसेच भरपूर कामांमूळे स्पेस घ्यायला वेळच नसायचा. पाणी भरा, दळण दळून आणा, भाजीबाजार, रेशनिंग, किराणा, धुणी-भांडी, अभ्यास ही सर्व कामे कुटुंबातील सर्वांनीच विभागून करायची. या कामात संपूर्ण दिवस निघून जायचा. स्पेस घेण्यासाठी वेळही शिल्लक नसायचा. मुलांची धडपड, प्रयत्न, आई वडिलांचे कष्ट कमी करुन आई वडिलांना स्पेस (म्हणजे कष्टातून उसंत) देण्यासाठी तर आईवडिलांची धडपड मुलांनी स्पेसमध्ये (अवकाशात) भरारी घ्यावी म्हणून त्यांच्या पंखात बळ भरण्यासाठी, याची जाणीव दोघांना असल्यामुळे सर्व व्यवहार हदयाचा. बद्धीचे ‘पण’ ‘परंतू’ हे शब्द शब्दकोशातच नव्हते. त्यामुळे वेगळ्याने “स्पेस हवी…  स्पेस द्या” असे चिडून वैतागून म्हणण्याची वेळ यायची नाही. आईवर कधीतरी हे वेळ यायची. कुटुंबात कामाच्या ओझ्याने दबलेली आईच असायची. तिच्यामागे काही हट्ट, अभ्यासातली शंका यासाठी खूप मागे लागलो की कधीतरी ती म्हणायची, “आता जरा थांब. मला माझे हे काम करु दे”. अर्थात ती देखील  निवांत बसण्यासाठी नव्हे तर हातातले काम वेगाने पूर्ण करण्यासाठी ही स्पेस मागायची.

मध्यमवर्गीय  आणि श्रीमंत कुटुंबात स्पेस घेणे आणि देणे हल्ली अनिवार्य आणि त्याच जोडीला सहज शक्य झाले आहे. कारण मोठी घरे आणि बऱ्यापैकी मोकळा वेळ. प्रत्येकाला वेगळे बेडरुम. मोकळीक हवी असली की आपल्या बेडरुमध्ये शिरायचे की मिळाली स्पेस. घरात धुणी-भांडी,केरकचरा, स्वयंपाकाला  मोलकरणी, किराणा, भाज्या, पीठ इ. सर्व घरपोच. त्यामूळे मुलांना अभ्यास सोडला तर इतर कामे नाहीत,त्यामुळे स्पेस घ्यायला बऱ्यापैकी मोकळा वेळ, असे झाले आहे खरे. याबद्दल तक्रार करण्याचेही कारण नाही. कारण नशिबाने ही सर्व सुखे त्यांना, आपल्याला मिळाली आहेत. ही जरुर उपभोगावीत . पण एव्हढी सुखे आणि भरपूर स्पेस मिळत असूनही जेव्हा कुटुंबातील एखादा सदस्य दुसऱ्याला, “तू माझ्या डोक्यात जातेस/जातोस” असे सरळ तोंडावर बोलून, रागाने पाय आपटत आपल्या खोलीचे दार धाडकन आपटून आपल्या खोलीत जाते आणि बराच वेळ बाहेर येत नाही, तेव्हा या ‘स्पेस’ घेण्यावर आणि त्याला स्पेस देण्यावर विचार करावा लागतो. 

हे असे का घडते? याचा विचार केला तर दिवसेंदिवस कमी होत जाणारी सहनशीलता, हे त्याचे उत्तर म्हणावे लागेल. जीवन म्हणजे सहन करणे आहे. स्वत: ला आणि इतरांनाही. आपण जर संवदेनशील असलो तर आपल्या वागण्यातल्या चुका लगेच समजतात. रागावलो तरी थोड्याच वेळात वाटते, उगाच रागावलो. कुणाला काही हिताचे सांगितले आणि तो नाराज झाला की वाटते उगाच आपण सांगत बसलो. हे असे बऱ्याचदा  घडले की आपलाच स्वभाव आपल्याला सहन होत नाही. थोडक्यात ‘काही करू पहातो, रुजतो अनर्थ तेथे’ , असे होते आणि या नैराश्यात आपलाच आपल्याला राग येऊन आपण कोपऱ्यात जावून बसतो. नको तेवढी स्पेस द्यायला आणि घ्यायला सुरुवात करतो. आपल्याला आपण सहन करू शकत नाही. तसेच इतरांनाही आपण सहन करु शकत नाही. कुटुंब, प्रवास, नोकरीचे ठिकाण आणि जिथे जिथे आपल्याला जावे लागते अशा सर्वच ठिकाणी भिन्न प्रकृतीच्या,स्वभावाच्या व्यक्ती असतात. अशा व्यक्तींना सहन करण्याची आपली क्षमता अत्यल्प असल्याने तिथेही आपण अंतर ठेवून आणि मौन राखून राहायला लागतो. आपण अंतर ठेवले तरी त्या व्यक्ती जवळ यायच्या थांबत नाही.बोलायच्या थांबत नाहीत. अशा व्यक्ती जवळ आल्या,काही बोलल्या की त्या डोक्यात जातात. त्रास आपल्यालाच होतो. हा त्रास कमी करायचा तर स्पेस घेण्याची वृत्ती न वाढविता सहनशीलता वाढविणे आवश्यक आहे.

सहनशीलता ही बाल वयातच वाढू शकते. पूर्वी संस्काराचे वय सोळा वर्षापर्यंत होते. आता ते कमी होऊन सात ते आठ वर्षापर्यंत आले आहे. या वयातील मुलेच तुम्हाला समजून घेण्याच्या, स्वत: त बदल करण्याच्या, सहनशीलता वाढविण्याच्या मनस्थितीत असतात. या वयात त्यांच्यावर योग्य ते संस्कार झाले पाहिजेत. काका-काकू,वडीलधारी पाहुणे मंडळी घरी पाहूणे म्हणून आले तर मुलांना त्यांना नमस्कार करायला सांगितले पहिजे. “त्यांना खाली झोपता येत नाही.त्यांचे गुडघे,पाठ दुखतात. ते तुमच्या बेडरूममध्ये बेडवर झोपतील. तुम्ही हॉलमध्ये गादी घालून खाली झोपा”,असे त्यांना प्रेमाने सांगितलेच पाहिजे. दिलेली स्पेस केव्हा सोडायची, बॅक स्पेसला कधी जायचे, हे त्यांना समजले पाहिले.

या बाबतीत एका मित्राने सांगितलेला प्रसंग खरंच विचार करायला लावणारा आहे. पत्नीचे निधन झाल्यावर त्याचे व्यवसायाचे ठिकाण सोडून मुलाकडे राहण्याची इच्छा त्याने  व्यक्त केली. मुलगा म्हणाला, ” हरकत नाही. पण माझी मुले त्यांचे बेडरुम कुणाला शेअर करू देत नाहीत. तेव्हा तुम्हाला हॉलमध्ये झोपावे लागेल.” मुलांना स्पेस देणाऱ्या या वृत्तीला काय म्हणावे ! बरे मुलांची वयेही ७ वर्षे आणि ९ वर्षे. या वयातच त्यांना स्पेस कधी सोडायची हे शिकविता येते. कारण आई बाबा सांगतात ते योग्यच आहे, अशी ठाम समजूत असल्याने शिकवितांना ते नाराज होण्याची शक्यता कमी असते आणि नाराज झाले तरी वाद न घालता ते कृती करत असतात. तसे न करता आपण त्यांना नको तेवढी स्पेस देवून आपल्या जन्मदात्यालाच बेडरूममधे झोपायला स्पेस नाही, असे म्हणत असू ,तर ही स्पेस नात्याच्या, जिव्हाळ्याच्या, कुटुंबव्यवस्थेच्या विनाशाकडे नेणारी आहे, हे निश्चित.

– क्रमशः भाग पहिला. 

© श्री सतीश मोघे

मो – +91 9167558555

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ कॅप्टन  सचिन गोगटे – कॅडेट नंबर ३४५० ☆ सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी ☆

सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी

? इंद्रधनुष्य ?

☆ कॅप्टन  सचिन गोगटे – कॅडेट नंबर ३४५० ☆ सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी ☆

कॅप्टन सचिन गोगटे यांनी मर्चंट नेव्हीमध्ये अनेक वर्षं काम केलं. साध्या शिकाऊ कॅडेटपासून प्रचंड मोठ्या ऑइलटँकरचे कॅप्टन म्हणून अनेक वर्षं ते कार्यरत होते.  या कार्यकाळातील स्वानुभवांवर आधारीत लेखनातून त्यांनी आपल्याला या वेगळ्या क्षेत्राचा थरारक आणि सखोल परिचय करून दिला आहे.

मेकॅनिकल इंजिनिअर झाल्यावर सचिन यांनी ‘टीएस राजेंद्र’ या भारत सरकारच्या जहाजावर मर्चंट नेव्हीचे प्रशिक्षण घेतले. नंतर काही वर्षं व्यापारी जहाजांवर काम केले.डेक कॅडेटपासून सुरू झालेला त्यांचा जीवनप्रवास चाळीस वर्षं अव्याहत या क्षेत्रात सजगतेने काम करून  ऑइल टँकरचे तज्ज्ञ कॅप्टन या पदापर्यंत पोहोचला. अनेक परदेशी व्यापारी  जहाजांवर त्यांनी कॅप्टन म्हणून उत्कृष्ट काम केले.तसेच ऑइल टँकर व ऑइल फील्ड्स यातील तज्ज्ञ व्यक्ती म्हणून  जगभर नाव कमावले. कंपनीच्या विविध जहाजावर जाऊन तिथल्या उमेदवारांना प्रशिक्षण देण्यासाठी त्यांना आवर्जून बोलाविले जाई. त्यासाठी त्यांना  सततचा विमान प्रवास करावा लागला. त्यांनी जगातल्या १२० देशांना भेटी दिल्या. सहावेळा पृथ्वी प्रदक्षिणा घडली.

एखाद्या परदेशी बंदरात पोचल्यावर पाच सहा तासात तिथले व्यापार-व्यवहार समजून घेणे आणि त्याबद्दल बोटीवरील सहकाऱ्यांना व्यावहारिक प्रशिक्षण देणं त्यांनी महत्त्वाचं मानलं. जहाजाच्या आणि सहकाऱ्यांच्या सुरक्षेला प्राधान्य दिलं.

इराण- इराक लढाई, अंगोला, सिरीया अशा युद्धक्षेत्रात  काम करताना जीवावरच्या प्रसंगांना तोंड द्यावं लागलं. समुद्री चाचेगिरीच्या प्रदेशात सुरक्षित राहणं ही फार महत्त्वाची गोष्ट असते. ही सुरक्षितता कशी मिळवावी याचं प्रशिक्षण देण्यासाठी त्यांनी अनेकदा सोमालीया, पश्चिम आफ्रिका, इंडोनेशियाच्या प्रदेशात जाऊन काम केलं. ऑइल टँकर्सवर काम करताना तिथल्या सुविधा वापरून जहाजांवरच्या मोठ्या आगींना तोंड देण्याचे प्रशिक्षण त्यांनी बारा वर्षे दिलं.

कॅप्टन सचिन यांनी आधुनिक विज्ञान आणि इलेक्ट्रॉनिक्स तंत्रज्ञानाचे अत्याधुनिक  शिक्षण घेऊन स्वतःला सतत काळाबरोबर ठेवलं. त्यामुळे ते अनेक जहाजांचे दूर संपर्काने (रिमोटली) जहाजाच्या ब्लॅक बॉक्सचं विश्लेषण करणे,नेव्हिगेशन ऑडिट करणे अशी कामे करू शकले.

या धाडसी क्षेत्रातला पैसा आपल्याला दिसतो पण त्यासाठी भरपूर शारीरिक, बौद्धिक आणि मानसिक कष्ट  करावे लागतात. सलग ३६ तास ड्युटी बऱ्याच वेळा करावी लागते. जमिनीचं दर्शनाही न होता अथांग सागरात अनेक दिवस काढावे लागतात. भर समुद्रात भयानक वादळांना तोंड द्यावे लागते.कुटुंबापासून महिनो महिने दूर राहावं लागतं. अनेकदा सचिन यांनी सागरी चाचेगिरीच्या संकटातून शक्तीने आणि युक्तीने जहाजाला सहीसलामत बाहेर काढले. कुठल्याही व्यापारी जहाजाचा किंवा ऑईलटँकरचा त्या त्या बंदरातील व्यवहार आपल्याला वाटतो तितका सरळ, साधा, सोपा कधीच नसतो. त्याला राजकीय, सामाजिक, आर्थिक आणि दहशतवादाचे अनेक पैलू असतात.

सचिन  कॅप्टन असलेल्या सर्व जहाजांवर खूप कडक शिस्त स्वतःसह सर्वांनी पाळावी यासाठी ते  आग्रही असंत. तसेच सहकाऱ्यांच्या आरोग्याची, कुटुंबीयांची योग्य प्रकारे काळजी घेतली जाईल यावरही त्यांचे लक्ष असे .स्वतःच्या निर्व्यसनी, निर्भिड,धाडसी वागणुकीमुळे तसेच स्वच्छ चारित्र्यामुळे त्यांचा दरारा होता. बंदराला बोट लागल्यानंतर अनेक गैरव्यवहार  (बाई, बाटली, स्मगलिंग , अमली पदार्थ) होत असतात. सचिन यांनी कुणाकडूनही कसलीही भेट स्वीकारली नाही आणि स्वतःच्या जहाजावर कुठलाही गैरव्यवहार होऊ दिला नाही. यामुळे कंपनीचे वरिष्ठ अधिकारी त्यांच्यावर नेहमी खुश असत.

या त्यांच्या साऱ्या प्रवासात त्यांच्या पत्नी मीना यांनी मोलाची साथ दिली. लहानग्या ईशानसाठी आई आणि वडील दोघांची भूमिका समर्थपणे निभावली. निगुतीने संसार केला. सचिन यांना कसल्याही कौटुंबिक अडचणी न कळवता हसतमुखाने पाठिंबा दिला.ईशानचे शिक्षण आणि सर्व आर्थिक व्यवहार, नातेसंबंध उत्तम रीतीने सांभाळले. त्यावेळी आजच्यासारख्या मोबाइल ,इंटरनेट अशा कुठल्याही सोयीसुविधा नव्हत्या. जेव्हा कधी मीना यांना सचिन यांच्या जहाजावर जाण्याची संधी मिळाली तेव्हा लहानग्या ईशानसह सगळे आंतरराष्ट्रीय प्रवास एकटीने  करून ज्या बंदरात सचिन यांचे जहाज असेल ते बंदर गाठावे  लागे. जहाजावरही कॅप्टनची बायको म्हणून वेगळेपणाने न वागता मीना यांनी जेवणघरातील कूकपासून सर्वांशी सलोख्याचे संबंध ठेवले.

मीना यांना एकदा अशा प्रवासात एका भयानक प्रसंगाला तोंड द्यावे लागले. मीना यांना इजिप्तच्या कैरो या विमानतळावर पोहोचून तिथून प्रवासी गाडीने २२० किलोमीटर प्रवास करून अलेक्झांड्रिया या बंदरात सचिन यांची बोट गाठण्यासाठी जायचे होते. त्यांच्याबरोबर सचिन यांचे एक सहकारी होते. हा प्रवास थोडा आडवळणाचा आणि वाळवंटातील होता. वाटेत रानटी टोळ्यांची भीती असे. म्हणून काळोख व्हायच्या आत अलेक्झांड्रिया इथे पोहोचणे आवश्यक होते. परंतु विमानतळावरील एजंटच्या हलगर्जीपणामुळे प्रवास सुरू व्हायलाच संध्याकाळचे चार वाजले. थोडा प्रवास झाल्यावर ड्रायव्हरने त्यांना वाळवंटातील एका छोट्या हॉटेलमध्ये नेले व रात्र इथेच काढा असे सांगून तो पसार झाला. हॉटेलमधील त्या आडदांड परपुरुषांच्या वखवखलेल्या नजरा त्यांच्यावरून फिरत होत्या. धोका ओळखून त्यांनी  रूममधील सर्व फर्निचर ढकलत नेऊन दाराला टेकवून ठेवले. रात्रभर त्यांच्या दरवाजावर मोठ मोठ्या थापा मारल्या जात होत्या. पण मीना मुलाला कवटाळून गप्पपणे कॉटवर बसून होत्या. सकाळी उजाडल्यावर तो ड्रायव्हर आला आणि त्या कशाबशा अलेक्झांड्रियाला पोहोचल्या. संपर्काचे कुठलेही साधन नसल्यामुळे सचिन खूप काळजीत होते पण मीनाने विलक्षण धैर्याने साऱ्या प्रसंगाला तोंड दिले.

दैवगती खूप अनाकलनीय असते. सचिन एकदा कामासाठी तुर्कस्तानमध्ये इस्तंबूल इथे गेले होते. त्यांना रात्रीचं विमान पकडून सिंगापूर इथे जायचं होतं. संध्याकाळी काहीतरी खायला म्हणून ते रेल्वेस्टेशनकडे निघाले होते तेवढ्यात कानठळ्या बसवणारा स्फोटाचा आवाज आला आणि सचिन उलटे लांबवर फेकले गेले. त्यांच्या नाकातून कानातून रक्त वाहत होते अतिरेक अतिरेक्यांनी केलेल्या बॉम्बस्फोटचा त्यांना असा फटका बसला. कसबसे उठून त्यांनी विमानतळ गाठला. सिंगापूरला पोहोचले. पण तिथे गेल्यावर त्यांना चालायला खूप त्रास होऊ लागला. हालचालीवर बंधनं आली. त्या रोगाचे निदान एम एन डी (मोटर न्यूरॉन डिसीज) असे झाले. शरीरातील सर्व नर्व्हस सिस्टीम क्षीण होत गेली. कुटुंबीयांसोबत या आजाराबरोबर चार-पाच वर्षे झगडून सचिन यांनी या जगाचा निरोप घेतला. त्यांच्या कर्तृत्वाला मनःपूर्वक नमस्कार 🙏

© सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी

जोगेश्वरी पूर्व, मुंबई

9987151890

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – वाचताना वेचलेले ☆ मोबाईल नव्हते तरी… ☆ प्रस्तुती – सौ. गौरी गाडेकर ☆

सौ. गौरी गाडेकर

📖 वाचताना वेचलेले 📖

मोबाईल नव्हते तरी… ☆ प्रस्तुती – सौ. गौरी गाडेकर

चष्मा साफ करता करता एक वयस्कर काका आपल्या बायकोला म्हणाले : अगं,आपल्या जमान्यात मोबाईल नव्हते.

काकू : हो ना ! पण बरोबर 5 वाजून 55 मिनिटांनी मी पाण्याचा ग्लास घेवून दरवाजात यायची आणि तुम्ही पोहचायचे.

काका : मी तीस वर्षे नोकरी केली. पण मला आजपर्यंत हे समजलं नाही की , मी यायचो, त्यामुळे तू पाणी आणायचीस की तू पाणी आणायचीस,त्यामुळे मी वेळेवर यायचो.

काकू : हो . आणि अजून एक आठवतं, की तुम्ही रिटायर व्हायच्या आधी तुम्हाला डायबीटीस नव्हता. मी तुमची आवडती खीर बनवायचे, तेव्हा तुम्ही म्हणायचे की आज दुपारीच वाटलं होतं, की आज खीर खायला मिळाली, तर काय मजा येईल. 

काका : हो ना .. अगदी. ऑफिसमधनं निघताना मी जो विचार करायचो घरी आल्यावर बघतो तर तू तेच बनवलेलं असायचं.

काकू  : आणि तुम्हाला आठवतं ? पहिल्या डिलीव्हरीच्यी वेळी मी माहेरी गेले होते, तेव्हा मला कळा सुरू झाल्या होत्या. मला वाटलं, हे जर माझ्याजवळ असते तर ? आणि काय आश्चर्य! तासाभरात  स्वप्नवत तुम्ही माझ्या जवळ होतात.

काका  : हो. त्या दिवशी मनात विचार आला होता, की तुला जाऊन जरा बघूयात.

काकू : आणि तुम्ही माझ्या डोळ्यात डोळे घालून कवितेच्या दोन ओळी बोलायचे.

काका : हो. आणि तू लाजून पापण्या मिटवायचीस व मी त्या कवितेला तुझा ‘लाइक’ मिळाला असं समजायचो. 

बायको : एकदा दुपारी चहा करताना मला भाजलं होतं. त्याच दिवशी सायंकाळी तुम्ही बरनॉलची ट्यूब अापल्या खिशातनं काढून बोलले, ही कपाटात ठेव.

काका : हो..आदल्या दिवशीच मी बघितलं होतं, की ट्यूब संपलीय. काय सांगता येतं कधी गरज पडेल ते? हा विचार करून मी ट्यूब आणली होती.

काकू  : तुम्ही म्हणायचे की आज ऑफिस संपल्यावर तू तिथंच ये. सिनेमा बघूयात आणि जेवण पण बाहेरच करूयात.

काका : आणि जेव्हा तू यायचीस, तर मी जो विचार केलेला असायचा, तू अगदी तीच साडी नेसून  यायचीस.

काका काकूजवळ जाऊन तिचा हात हातात घेत बोलले : हो , आपल्या जमान्यात मोबाइल नव्हते पण आपण कनेक्टेड होतो.

काकू  : आज मुलगा आणि सून सोबत तर असतात. पण गप्पा नाही, तर व्हाट्सएप असतं. आपुलकी नाही तर टैग असतं. केमिस्ट्री नव्हे तर कॉमेंट असते. लव्ह नाही तर लाइक असतं . गोड थट्टामस्करीच्या ऐवजी अनफ़्रेन्ड असतं. त्यांना मुलं नकोत तर कैन्डीक्रश सागा, टेम्पल रन आणि सबवे सर्फर्स पाहिजे.

काका : जाऊ दे गं! सोड हे सगळं. आपण आता व्हायब्रेट मोडवर आहोत. आपल्या बॅटरीची पण एकच लाइन उरली आहे. अरे ! कुठं चाललीस ?

काकू  : चहा बनवायला.

काका : अरे… मी म्हणणारच होतो, की चहा बनव म्हणून.

बायको  : माहिती आहे. मी अजूनही कवरेज क्षेत्रात आहे आणि मेसेजेस पण येतात.

दोघेही हसायला लागले.

काका : बरं झालं आपल्या जमान्यात मोबाइल नव्हते.

संग्राहिका : सौ. गौरी गाडेकर

संपर्क – 1/602, कैरव, जी. ई. लिंक्स, राम मंदिर रोड, गोरेगाव (पश्चिम), मुंबई 400104.

फोन नं. 9820206306

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈