मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ जय जय रामकृष्ण हरी ☆ श्री आशिष बिवलकर ☆

श्री आशिष  बिवलकर

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

?– जय जय रामकृष्ण हरी – ? ☆ श्री आशिष  बिवलकर ☆

फुलला मोगरा | ज्ञानियाच्या दारी |

सुगंध ईश्वरी | देऊनिया ||१||

मिटूनिया चक्षु  | ध्यान ज्ञानेश्वर |

प्रकटे ईश्वर | ज्ञान योग ||२||

ब्रम्हानंदी लागे | ज्ञानियाची  टाळी |

भावार्थाच्या ओळी | लिहूनिया ||३||

भावार्थ दीपिका | एक एक ओवी |

स्व अनुभवावी | ज्ञानेश्वरी ||४||

कैवल्य पुतळा | झाली ही माऊली |

ज्ञानाची सावली | उद्धारासी ||५||

एक एक ओवी |  अमृता समान |

मराठी सन्मान | मायबोली ||६||

भागवत धर्म  | रचलिया पाया |

समाधीस्त काया | तेजोमय ||७||

© श्री आशिष  बिवलकर

बदलापूर

मो 9518942105

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 167 – गीत – बिना मोल अब तेरे हाथ बिकानी हूँ ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण गीत – बिना मोल अब तेरे हाथ बिकानी हूँ।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 167 – गीत –बिना मोल अब तेरे हाथ बिकानी हूँ…  ✍

मोल लगाया था जग ने मैं बिकी नहीं

बिना मोल अब तेरे हाथ बिकानी हूँ

 

मंत्र चलाया, जादू डाला

तार तार चादरिया

झूठ खबर ही भिजवा देता

मैं आती साँवरिया

मैं भी तो मीरा सी दरद दिवानी हूँ।

 

जाने किस चुम्बक ने खींचा

खिंची चली मैं आई

क्या है तेरा कर्ज पावना

आज करूँ भरपाई

तुम कहते मधुमती मुझे, मैं पानी हूँ।

 

मन पहले ही भेज दिया था

देह फूल अब लाई

करो विसर्जित मन का संशय

प्राणों की पहुनाई

रंगी पिया के रंग में प्रेम दिवानी हूँ ।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 166 – “इधर आँख में थमें नहीं…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत  इधर आँख में थमें नहीं...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 166 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “इधर आँख में थमें नहीं...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

पहुँची उन्हें विदेश, मृत्यु की

खबर, पिता जी की

है पहाड़ दुख का पर दोनों

कहें नहीं जी की

 

बड़ा भाई बोला छोटे से-

इधर जर्मनी में

मिलें छुट्टियाँ बहुत अल्प

छत्तीस महीने में

 

ऐसा करो अभी तुम

भारत-वर्ष स्वयम् जाओ

मैं जाऊँगा माँ के टाइम

समझो बारीकी

 

छोटा बोला ड्यू हैं मेरी

बाइफ की जाँचें

आप अगर घर से आयी

चिट्टी को जो बाँचें

 

कुछ हिदायतें, गर विदेश के

घर में कुछ अड़चन

तो मत आना, शोक सभा

करने को तुम फीकी

 

दोनों ही उधेड़ बुन में थे

जायें ना जायें

पर वे जाना नहीं चाहते

थे क्या बतलायें

 

इतना पैसा फ्लाईट का

बेकार खर्च होगा

चार पाँच महिने घर में

छायेगी तारीकी

 

इधर आँख में थमें नहीं

आँसू बुढ़िया माँ के

ऐसे क्या टूटा करते

सम्बंन्धों के टाँके

 

और अंत में माँ को

दोनों बेटों ने सूचित-

किया-  ” नहीं आसकते

करना तेरहवीं नीकी

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

08-10-2023

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अक्स ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – अक्स ? ?

कैसे चलती है क़लम

कैसे रच लेते हो रोज़?

खुद से अनजान हूँ

पता पूछता हूँ रोज़,

खुदको हेरता हूँ रोज़,

दर्पण देखता हूँ रोज़,

बस अपने ही अक्स

यों ही लिखता हूँ रोज़!

© संजय भारद्वाज 

( प्रातः 11:10 बजे, 6.6.2019 )

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मार्गशीर्ष साधना 28 नवंबर से 26 दिसंबर तक चलेगी 💥

🕉️ इसका साधना मंत्र होगा – ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🕉️

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 226 ⇒ एक स्थगित शव – यात्रा… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “एक स्थगित शव – यात्रा।)

?अभी अभी # 226 ⇒ एक स्थगित शव – यात्रा… ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

इंसान समय और परिस्थिति का गुलाम है, कब क्या हो जाए,कुछ कहा नहीं जा सकता। वक्त की चुनौतियां हमें अगर मजबूत बनाती हैं,तो कभी कभी कुछ कर गुजरने को मजबूर भी कर देती है।

शुभ अशुभ अवसर किसके जीवन में नहीं आते। हम बारिश,आंधी तूफान,भूकंप और कोरोना काल की बात नहीं कर रहे,किसी भी अपरिहार्य कारण से कई मंगल कार्य,स्वागत सम्मान समारोह,जन्मदिन,शोभा यात्रा और जुलूस तक स्थगित किए जा सकते हैं,लेकिन मृत्यु तो अटल है, चार कांधों की शवयात्रा कभी स्थगित नहीं की जा सकती।।

हर व्यक्ति के अपने अपने जीवन का अनुभव होता है,जिसमें घर गृहस्थी संभालना,मकान बनवाना और शादी ब्याह भी शामिल होता है। व्यक्तिगत प्रयास और सामूहिक सहयोग से आखिर बेड़ा पार लग ही जाता है। बीमारी और दुख के समय में भी अपने ही साथ देते हैं।

हाल ही में एक रात,मेरे साथ अचानक ऐसा कुछ अप्रत्याशित हुआ,जिसके लिए मैं बिल्कुल तैयार नहीं था। बात एक रात की तरह ही अचानक एक अज्ञात,अनजान महिला मेरे सामने चक्कर खाकर गिर पड़ी। इंसानियत के नाते मैं मदद को दौड़ा,तो मालूम पड़ा,वह तो मर चुकी है। मैं आपको पहले ही बता दूं,यह हकीकत नहीं एक सपना था,यानी मैं अवचेतन अवस्था में था।।

लेकिन मुझे इंसानियत के नाते कुछ तो करना ही था।

बहुत कोशिश की,सपने में हाथ पांव भी मारे,लेकिन उस महिला के बारे में कुछ पता नहीं चला। ऐसी परिस्थिति में विवेक से काम लिया जाता है,लेकिन सपने में कैसा विवेक। कुछ रायचंदों द्वारा मुझे सुझाया गया,आप ही इसकी अंतिम क्रिया अर्थात् अन्त्येष्टि की जिम्मेदारी उठा लें,और हम अवचेतन भगत,इसके लिए तुरंत तत्पर भी हो गए।

आनन फानन में गम का माहोल तैयार हो गया। और शवयात्रा का प्रबंध भी। सपने में सब कितना आसान होता है न,ना कोई प्रश्न और ना कोई प्रति प्रश्न। एकाएक ट्यूब लाइट जली,महिला लावारिस है,कानूनी पेचीदगी है,और हमें थाने वकील का नहीं, एस. पी. और कलेक्टर का खयाल आया।।

हम अवचेतन में भी पूरी तरह तनावग्रस्त हो चुके थे। ऐसे में कपड़ों और मोबाइल का भी होश नहीं ! सोचा सोसाइटी के साथियों का सहयोग ले ही लिया जाए। तभी ना जाने कहां से फोन की घंटी बजी और हमारे हाथ में मोबाइल भी आ गया। भोपाल से उसी महिला के कोई रिश्तेदार चिंतित और दुखी मुद्रा में बात कर रहे थे। यानी मेरे लिए एक राहत और आशा की किरण !

अच्छा भरा पूरा परिवार था महिला का। मैने सुझाव दिया, आपके आने तक हम इंतजार करते हैं,लेकिन इतने में ही,फोन नहीं कटा,हमारा सपना टूट गया,यानी हम बदहवास,अचानक जाग गए।

सपना टूटने के साथ ही हमारा उस दिवंगत महिला,और एंटायर परिवेश से भी संपर्क टूट गया,क्योंकि हम बैचेनी की नींद से,चैन से जाग गए थे। ऐसी अवस्था में जागकर इंसान सोचता है,अगर मैं नहीं जागता तो क्या होता। अब उस इंसान को कौन समझाए,अरे पगले,कुछ हुआ ही नहीं था। यह तो महज एक सपना था।

हुई ना एक स्थगित शवयात्रा ..!!

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कथा कहानी # 216 ☆ लघुकथा – “आंखों में क्या जी, गजब की हलचल” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है आपकी एक मनोरंजक लघुकथा – “आंखों में क्या जी, गजब की हलचल”)

☆ लघुकथा – “आंखों में क्या जी, गजब की हलचल☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय  

पहली बार आंख की महिला डाक्टर को दिखाया तो बोली – आपकी आंखें बहुत अच्छी हैं, प्यारी हैं।

दूसरी बार दिखाया तो बोली – अब तो हर तीन महीने में दिखाना ही पड़ेगा।

तीसरी बार दिखाया तो बोली – अब आपको अपने आंखों की जीवन भर रखवाली करनी पड़ेगी, क्योंकि कोई आपकी आंख चुरा भी सकता है….

महिला डॉक्टर से डरकर आंखों के पुरूष डाक्टर को जब दिखाया तो बोला – गलतफहमी में मत रहना ये ग्लूकोमा के प्रारंभिक लक्षण हैं…..

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ मेरी सच्ची कहानी – भेदभाव… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा ‘शहीद’।)

☆ लघुकथा – भेदभाव…. ☆

पंडाल में,श्री गणेश जी की भव्य मनोहर मूर्ति विराजमान थी,पंडाल रोशनी से जग मग हो रहा था,भक्तों में धार्मिक भावना,और धार्मिक उल्लास नजर आ रहा था,भजन मंडली, भजन कीर्तन कर रही थी सभी रसास्वादन कर रहे थे, मैं अपने परिवार के साथ, पत्नि और बेटी के साथ उपस्थित था,आयोजन भव्य था,तभी श्रीगणेश आरती की घोषणा हुई,और आरती शुरू हुई,जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा…. आरती संपन्न हुई,सभी आरती ले रहे थे,तभी मेरी बेटी ने मुझसे कहा,पापा भगवान श्री गणेश जी की आरती में,बांझन को पुत्र देत,क्यों,,पुत्री क्यों नहीं,यह तो पुत्र और पुत्री के मध्य भेदभाव है ना,समाज में ऐसा भेदभाव क्यों,,

मैं सोच में पड़ गया,,आज तक ये ही आरती गाता आ रहा हूं,,कभी किसी ने प्रश्न नहीं किया,मेरे मन में भी कभी ख्याल नहीं आया,,आरती में बांझन को पुत्र देत क्यों,,पुत्री क्यों नहीं,,

घर आकर विचार किया, कि आरती तो किसी व्यक्ति ने ही लिखी होगी,सुधार तो हो सकता है,और आरती में थोड़ा सुधार किया,,,बांझन की गोद भरे,,निर्धन को माया,

अब मैं यही आरती गाता हूं,आप भी विचार कीजिए,आपको मेरी सोच अच्छी लगे, तो आप भी यही आरती गाएं,ताकि पुत्री के साथ भेदभाव न हो

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 158 ☆ # शरद ऋतु की एक सुबह # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# शरद ऋतु की एक सुबह #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 158 ☆

☆ # शरद ऋतु की एक सुबह #

कितना सुहावना

 मौसम आया है

गुनगुनी ठंड

साथ लाया है

कलियों पर

मोती चमक रहे है

आस की बूंदें

दमक रही है

चिड़ियों की चहचहाहट

कोमल पत्तों की थरथराहट

किरणों की देखो बाजीगरी

चूम रही है ओस की परी

ताल-तलैया शबनम

लुटा रहे हैं

आंखों को कितना

लुभा रहे है

ताल में वो

छोटी सी नाव

पतवार थामे

बैठे है राव

ताल में तैरती

सिंघाड़े की बेल

नाविक कर रहा

उनसे खेल

सिंघाड़े तोड़ रहा है

टोकरी में भर रहा है

पक्षियों के झुंड

उड़ रहे है

रंग बिरंगे रंगोंसे

जुड़ रहे है

कहीं कहीं धरती पर

बर्फ़ की चादर है

कहीं कहीं इठलाता

आवारा बादर है

पनघट पर

जल उड़ाती सखियां

अपने अपने प्रियतम की

कर रही बतियां

उनके पावों की

रुनझुन करती पायल

हर राहगीर को

कर रही है घायल

बागों में

भंवरों की गुनगुन

चूम रहे है

कलियों को चुन-चुन

कितना अलौकिक

दृश्य है

नयनों को सम्मोहित करता

स्वर्ग सा सदृष्य है

यह ऋतु जीवन की

आस बंधाता है

जीवन सुंदर है,

अनमोल है

समझाता है

शरद ऋतु का आगमन

कितना मनमोहक है

कितना सुहाना है

शरद ऋतु की यह सुबह

हर मनुष्य के लिए

प्रकृति का

खुशियों से भरा

खजाना है /

 © श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

सूचनाएँ/Information ☆ कथाकार डॉ अशोक शुक्ल का सम्मान – अभिनंदन ☆ प्रस्तुति – श्री जयप्रकाश पाण्डेय ☆

☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

 

☆ कथाकार डॉ अशोक शुक्ल का सम्मान – अभिनंदन ☆ प्रस्तुति – श्री जयप्रकाश पाण्डेय ☆

जबलपुर । ‘नंदिनी का पर्स’ और ‘छड़ी’ जैसी चर्चित कहानियां लिखने वाले कथा जगत के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर डॉ अशोक शुक्ल का ‘व्यंग्यम परिवार’ और माडेलियन 73 जबलपुर की ओर से सम्मान किया गया। अशोक शुक्ल का एक कहानी संग्रह प्रकाशित ही हुआ था कि सरकारी ड्यूटी में रहते हुए तबियत खराब हुई, 17 साल पहले मुंबई में ब्रेन सर्जरी की गई, बच तो गए पर लकवाग्रस्त होकर पिछले सोलह साल से बिस्तर में हैं, ऐसे समय ‘व्यंग्यम’ का सामाजिक दायित्व है कि ऐसे साहित्यकार को जो मुख्य धारा से अलग अकेलेपन का जीवन जी रहा हो उसकी रचनाधर्मिता को याद करते हुए उन्हें सम्मानित कर उनके जीवन में उत्साह और उमंग का संचार भरे।

डॉ अशोक शुक्ल  हिंदी के अपनी  तरह के अनूठे कथाकार हैं । वे बिजली की कौंध की तरह परिदृश्य में आये और अपनी कुछ कहानियों के मार्फत कथा जगत में अपना स्थान बनाया। उनकी एक कहानी पर चर्चित टेलीफिल्म भी बनी थी।

प्रस्तुति – श्री जय प्रकाश पाण्डेय, जबलपुर

💐 ई- अभिव्यक्ति परिवार की ओर से कथाकार डॉ अशोक शुक्ल जी को इस विशिष्ट सम्मान के लिए हार्दिक बधाई 💐

– श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ देह माझा… ☆ प्रा तुकाराम दादा पाटील ☆

श्री तुकाराम दादा पाटील

? कवितेचा उत्सव ?

☆ होरा☆ प्रा तुकाराम दादा पाटील ☆

(आनंदकंद) 

माझा अजून माझ्या दिलबर मनात आहे

त्यांच्याच आठवांचे मी गीत गात आहे

 

चंद्रा समान त्याच्या  नाजूक चेह-याचे

हसणे मला जरासे फुलवून जात आहे

 

हरवून मीच माझ्या आलो  प्रकाश वाटा

माझ्या सभोवताली काळोख रात आहे

 

मिरवू कसे कळेना गर्दीत गौरवाच्या

शृंगारली व्यथानी माझी वरात आहे

 

वाहून खूप ओझे गेली थकून गात्रे

पाळून रीत साधी जगणे जगात आहे

 

कापूर मौन माझे आलेय आरतीला

पण ज्योत अंतरीची जळते उरात आहे

 

ओंकार वास्तवाचा घुमतोय आत माझ्या

मिसळून सूर त्याच्या गेला सुरात आहे

 

माझी खरी समाधी मागेच बांधली मी

तेथेच देह माझा रमतो सुखात आहे

© प्रा. तुकाराम दादा पाटील

मुळचा पत्ता  –  मु.पो. भोसे  ता.मिरज  जि.सांगली

सध्या राॅयल रोहाना, जुना जकातनाका वाल्हेकरवाडी रोड चिंचवड पुणे ३३

दुरध्वनी – ९०७५६३४८२४, ९८२२०१८५२६

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares
image_print