श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “एक स्थगित शव – यात्रा।)

?अभी अभी # 226 ⇒ एक स्थगित शव – यात्रा… ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

इंसान समय और परिस्थिति का गुलाम है, कब क्या हो जाए,कुछ कहा नहीं जा सकता। वक्त की चुनौतियां हमें अगर मजबूत बनाती हैं,तो कभी कभी कुछ कर गुजरने को मजबूर भी कर देती है।

शुभ अशुभ अवसर किसके जीवन में नहीं आते। हम बारिश,आंधी तूफान,भूकंप और कोरोना काल की बात नहीं कर रहे,किसी भी अपरिहार्य कारण से कई मंगल कार्य,स्वागत सम्मान समारोह,जन्मदिन,शोभा यात्रा और जुलूस तक स्थगित किए जा सकते हैं,लेकिन मृत्यु तो अटल है, चार कांधों की शवयात्रा कभी स्थगित नहीं की जा सकती।।

हर व्यक्ति के अपने अपने जीवन का अनुभव होता है,जिसमें घर गृहस्थी संभालना,मकान बनवाना और शादी ब्याह भी शामिल होता है। व्यक्तिगत प्रयास और सामूहिक सहयोग से आखिर बेड़ा पार लग ही जाता है। बीमारी और दुख के समय में भी अपने ही साथ देते हैं।

हाल ही में एक रात,मेरे साथ अचानक ऐसा कुछ अप्रत्याशित हुआ,जिसके लिए मैं बिल्कुल तैयार नहीं था। बात एक रात की तरह ही अचानक एक अज्ञात,अनजान महिला मेरे सामने चक्कर खाकर गिर पड़ी। इंसानियत के नाते मैं मदद को दौड़ा,तो मालूम पड़ा,वह तो मर चुकी है। मैं आपको पहले ही बता दूं,यह हकीकत नहीं एक सपना था,यानी मैं अवचेतन अवस्था में था।।

लेकिन मुझे इंसानियत के नाते कुछ तो करना ही था।

बहुत कोशिश की,सपने में हाथ पांव भी मारे,लेकिन उस महिला के बारे में कुछ पता नहीं चला। ऐसी परिस्थिति में विवेक से काम लिया जाता है,लेकिन सपने में कैसा विवेक। कुछ रायचंदों द्वारा मुझे सुझाया गया,आप ही इसकी अंतिम क्रिया अर्थात् अन्त्येष्टि की जिम्मेदारी उठा लें,और हम अवचेतन भगत,इसके लिए तुरंत तत्पर भी हो गए।

आनन फानन में गम का माहोल तैयार हो गया। और शवयात्रा का प्रबंध भी। सपने में सब कितना आसान होता है न,ना कोई प्रश्न और ना कोई प्रति प्रश्न। एकाएक ट्यूब लाइट जली,महिला लावारिस है,कानूनी पेचीदगी है,और हमें थाने वकील का नहीं, एस. पी. और कलेक्टर का खयाल आया।।

हम अवचेतन में भी पूरी तरह तनावग्रस्त हो चुके थे। ऐसे में कपड़ों और मोबाइल का भी होश नहीं ! सोचा सोसाइटी के साथियों का सहयोग ले ही लिया जाए। तभी ना जाने कहां से फोन की घंटी बजी और हमारे हाथ में मोबाइल भी आ गया। भोपाल से उसी महिला के कोई रिश्तेदार चिंतित और दुखी मुद्रा में बात कर रहे थे। यानी मेरे लिए एक राहत और आशा की किरण !

अच्छा भरा पूरा परिवार था महिला का। मैने सुझाव दिया, आपके आने तक हम इंतजार करते हैं,लेकिन इतने में ही,फोन नहीं कटा,हमारा सपना टूट गया,यानी हम बदहवास,अचानक जाग गए।

सपना टूटने के साथ ही हमारा उस दिवंगत महिला,और एंटायर परिवेश से भी संपर्क टूट गया,क्योंकि हम बैचेनी की नींद से,चैन से जाग गए थे। ऐसी अवस्था में जागकर इंसान सोचता है,अगर मैं नहीं जागता तो क्या होता। अब उस इंसान को कौन समझाए,अरे पगले,कुछ हुआ ही नहीं था। यह तो महज एक सपना था।

हुई ना एक स्थगित शवयात्रा ..!!

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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