(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब) शिक्षा- एम ए हिंदी , बी एड , प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । यादों की धरोहर हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह -एक संवाददाता की डायरी को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से कथा संग्रह-महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)
☆ लघुकथा – “सहानुभूति”☆ श्री कमलेश भारतीय ☆
वे विकलांगों की सेवा में जुटे हुए थे। इस कारण नगर में उनका नाम था। मुझे उन्होंने आमंत्रण दिया कि आकर उनका काम व सेवा संस्थान देखूं। फिर अखबार में कुछ शब्द चित्र खीच सकूं।
वे मुझे अपनी चमचमाती गाड़ी में ले जा रहे थे। उस दिन विकलांगों के लिए कोई समारोह था संस्था की ओर से।
राह में बैसाखियों के सहारे धीमे-धीमे चल रहा था एक वृद्ध।
उनकी आंखों में चमक आई। मेरी आंखों में भी।
उन्होंने कहा कि यह वृद्ध हमारे समारोह में ही आ रहा है।
मैंने सोचा कि वे गाड़ी रोकेंगे और वृदध विकलांग को बिठा लेंगे पर वे गाड़ी भगा ले गये ताकि मुख्यातिथि का स्वागत् कर सकें।
☆ लघुकथा ☆ ~ भोर का तारा ~ ☆ श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’ ☆
भोर का तारा अब भी एकटक निहार रहा था। नन्हा गोलू चुप होने का नाम नही ले रहा था। मानों वह चीख चीखकर कह रहा था कि क्या मौसी! तुम भी मुझको छोड़कर चली जाओगी।
कुछ ही महीनों पहले की बात थी, सब कुछ ठीक ठाक था। घर में दुबारा मंगल बधाई बजने को थी, लेकिन उपर वाले को न जाने क्या मंजूर था कि सुमन की खुशियाँ धरी की धरी रह गयी। नन्हें आगन्तुक के आने से पहले ही वह चल बसी। गोलू अब इस दुनियां में बिना माँ के होकर रह गया था। ईश्वर को गोलू पर थोड़ी दया आयी तो उसे मौसी की गोद मिली तो उसको थोड़ी राहत मिली।
लेकिन आज एक बार फिर तेज- तेज बज रहे बैंड बाजों की आवाज ने गोलू को डरा दिया। गोलू आज बिल्कुल ही नही सोया। बार बार चिल्ला देता। बड़ी मुश्किल से उसकी कोई दूसरी चचेरी मौसी ने उसे पकड़ी तो जाकर, कहीं शादी की रस्म पूरी करने के लिये बिंदु मंडप में बैठ पायी। सिंदूरदान होने के बाद जब वह वापस कुछ रस्म अदाएगी के लिये कमरे में आयी तो गोलू उसे देखकर चिल्ला पड़ा, और इसबार उसकी गोद में पहुँच कर ही चुप हुआ। उसे आज नींद नही आयी। पूरी रात जगा ही रहा। शायद उसे इस बात का आभास हो चुका था कि उसकी मौसी भी उसे छोड़कर जाने वाली है।
बिंदु ने भी दौड़ कर उसे गले लगा लिया। सूरज निकलने से पहले ही बिदाई का मुहूर्त था। भोर का तारा अभी भी अकेले एक टक सब कुछ देख रहा था। बिंदु की विदाई की रस्म शुरू हो गयी थी। सभी रो रहे थे और गले लगकर बिंदु से मिल रहे थे। कार दरवाजे पर खड़ी हो गयी थी। अब विन्दु को इसी कार में बैठना था। किसी अंजान गोद में फंसा, गोलू एकदम से चिल्ला उठा, मानों वह कह रहा हो, मौसी.. क्या तुम भी मुझे छोड़कर चली जाओगी। बिंदु अपना बड़ा घुंघट हटाते हुए, पीछे मुड़ी तो गोलू, विवेक के गोद में था।
गोलू को गोद में लिये हुए विवेक यह कहते हुए कार में बैठा कि विन्दु तुम परेशान मत होओ, मत रोओ। गोलू भी हमारे साथ ही चलेगा। अब गोलू चुप हो गया था। फूलों से सजी कार आगे की ओर बढ़ गयी और धीरे -धीरे आँखों से ओझल हो गयी। आसमान में लालिमा छाने लगी थी। भोर का तारा भी हँसता हुआ वापस नीलगगन में समाते हुए आँखों से ओझल हो गया।
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। आज से प्रत्यक शनिवार प्रस्तुत है यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा।)
यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-२३ – हनुमान जन्म स्थली की पवित्र यात्रा ☆ श्री सुरेश पटवा
पर्वत की चढ़ाई करते समय सूर्य हमारे पीछे चलते आ रहे थे। हम पूर्व से पश्चिम दिशा में बढ़ रहे थे। जब ऊपर पहुंचे तो दिनमान पूरी तेजी से सिर पर चमक रहे थे, लेकिन चढ़ते समय पसीने से नहाए हुए थे, ऊपर हवा ठंडी चल रही थी। शरीर का तापमान भी सामान्य हो गया। आसमान में एक भी बादल का टुकड़ा नहीं था। फोटोग्राफी के लिए बहुत उम्दा चित्रमयी झांकियां चारों दिशाओं में दिख रही थीं। सम्पूर्ण भारत में सितंबर का महीना बड़ा सुहावना होता है। आंजनेय पर्वत पर से चारों दिशाओं में घूमकर देखा।
हमारी बस जिस रास्ते से आई थी। साथ में दाहिनी तरफ़ तुंगभद्रा नदी बहती दिखती रही थी। तुंगभद्रा नदी आंजनेय पर्वत को उत्तर से घूमकर पश्चिम की तरफ़ मुड़ती है। नदी भरी है, पानी पर सूर्य की किरणों की चमक तेज है। भारी गोल पत्थरों के किनारों से पेड़ों की घनी हरियाली दिख रही है। नदी और पहाड़ी के किनारे तक खेतों में हरियाली नज़र आ रही है। जी भरकर वीडियो बनाए और कई फोटो खींचे।
जिस रास्ते से चढ़े थे, उससे वापस उतरने के बजाय हमने दक्षिण दिशा का तीखी उतार का रास्ता चुना। सीधी सीढ़ियों से उतरने पर घुटनों में हल्का दर्द होने लगा। इसलिए रुक-रुक कर उतरते रहे। हमारे साथ घनश्याम मैथिल और रूपाली सक्सेना भी नीचे उतरे। नीचे उतर कर सबसे पहले नींबू-गन्ना रस पिया। बस की तरफ़ पैदल चलने लगे। तभी एक ऑटो ने दस-दस रुपयों में बस के नज़दीक छोड़ दिया। इस प्रकार हमारी हनुमान जन्म स्थली की पवित्र यात्रा पूरी हुई।
सभी साथियों के नीचे उतरने पर बस में सवार हो होटल की तरफ़ चले। सभी बुरी तरह थके निढाल दिख रहे थे। राजेश जी ने साथियों को विकल्प दिया कि होटल पहुँचकर आधा घंटा आराम करके एक और आश्रम चलना है या आराम करना है। हमने थोड़ा अधिक आराम करके हम्पी नगर का एक चक्कर लगाने का निर्णय किया। होटल पहुँच कुनकुने पानी से नहाकर थकान उतारी। थके-हारे पैरों की मालिश करके आधा घंटा ध्यान से मानसिक चंगा होकर घनश्याम जी के साथ पैदल घूमने निकले। दोहरी सड़क लंबी जाती दिख रही थी। उसी ओर बतियाते हुए चलने लगे। थोड़ा आगे चक्कर एक चौड़ी नहर के ऊपर से गुज़रकर क़रीब दो किलोमीटर चले। दोनों तरफ़ दुकानों की क़तारें थीं। एक बड़ा चौराहा पार करके उसके बाद के चौराहे से वापिसी यात्रा शुरू कर दी। फिर वही नहर मिली। चौड़ी और गहरी नगर तुंगभद्रा नदी पर बने बांध से प्रवाहित हो रही थी।
होसपेटे-कोप्पल जिलों की सीमा पर प्रवाहित तुंगभद्रा नदी पर एक जलाशय बना है। यह एक बहुउद्देशीय बांध है जो सिंचाई, बिजली उत्पादन, बाढ़ नियंत्रण आदि के काम आता है। यह भारत का सबसे बड़ा पत्थर की चिनाई वाला बांध है और देश के केवल दो गैर-सीमेंट बांधों में से एक है।
इस बाँध के बनने का भी एक इतिहास रहा है। रायलसीमा के अकालग्रस्त क्षेत्र में उस समय बेल्लारी, अनंतपुर, कुरनूल और कुडप्पा जिले शामिल थे। अकाल के निदान हेतु 1860 में ब्रिटिश इंजीनियरों का ध्यान तुंगभद्रा ने आकर्षित किया। इन जिलों में अकाल की तीव्रता को कम करने के लिए तुंगभद्रा के पानी का उपयोग एक जलाशय और नहरों की एक प्रणाली के माध्यम से भूमि की सिंचाई के लिए करने का प्रस्ताव रखा गया। तुंगभद्रा के पानी की कटाई और उपयोग के लिए कई समझौते किए गए। ब्रिटिश भारत की मद्रास प्रेसीडेंसी और हैदराबाद निज़ाम रियासत के बीच वार्ता के कई दौर चले, पर कोई बात नहीं बनी। आज़ादी के बाद हैदराबाद निज़ाम रियासत के भारत में विलय, लेकिन भारतीय गणतंत्र बनने के पहले ही 1949 में इसका निर्माण शुरू हुआ। यह हैदराबाद और मद्रास प्रेसीडेंसी के तत्कालीन प्रशासन की संयुक्त परियोजना थी। 1950 में भारत के गणतंत्र बनने के बाद यह मद्रास और हैदराबाद राज्यों की सरकारों के बीच एक संयुक्त परियोजना बन गई। इसका निर्माण 1953 में पूरा हुआ। तुंगभद्रा बांध 70 से अधिक वर्षों से समय की कसौटी पर खरा उतरा है और उम्मीद है कि यह कई और दशकों तक टिकेगा।
नहर के ऊपर खड़े होकर कुछ देर नज़ारे देखते रहे। चाट-चटोरों और आइसक्रीम ठेलों पर बुर्काबंद महिलाएं बुर्का उठा कर सी-सी के तीखे स्वर के साथ पानीपूरी का मजा ले रही थीं। उनके बच्चे उन्हें आइसक्रीम ठेले की तरफ़ खींच रहे थे। हमने थोड़ी देर नज़ारे का आनंद लिया, फिर बाज़ार की गलियों में उतर गए। दुकानों पर हाथ से बनाई गई वस्तुएं जैसे मोती, पेंडेंट, स्क्रीन, नक्काशीदार टेबल और ताबूत के साथ सुगंधित वस्तुएं जैसे चंदन की मूर्तियां, चंदन की लकड़ी के पैनल, इत्र और अगरबत्ती जैसी वस्तुओं की भरमार थी।
थोड़ी ही दूर पर ठेलों पर स्थानीय व्यंजन बिक रहे थे। दुकानदार ने बताया यह चित्रन्ना है। चावल को नीबू के रस के साथ उपयोग करके इसे तैयार किया जाता है। आमतौर पर, चावल को गोज्जू नामक सब्जी मिश्रण में मिलाया जाता है। यह गोज्जू सामान्य रूप से सरसों के बीज, लहसुन, हल्दी पाउडर और मिर्च के साथ तैयार किया जाता है। मसाले में नींबू या मुलायम आम के टुकड़े मिलाये जाते हैं। पकवान को मसालेदार स्वाद बढ़ाने के लिए तली हुई मूंगफली और धनिये की पत्तियों से सजाया जाता है। सामग्री के आधार पर चित्रन्ना कई प्रकार के होते हैं।
दुकानदार ने दूसरा व्यंजन वंगीबाथ बताया। वंगीबाथ होसपेट का एक बहुत ही पसंदीदा व्यंजन है। इसे चावल और मिले-जुले मसालों से तैयार किया जाता है। इसे तैयार करने में अंडे की जर्दी का इस्तेमाल किया जाता है। यह व्यंजन आमतौर पर नाश्ते के लिए बनाया जाता है। मुख्य रूप से, लंबे हरे बैंगन और वंगीबथ पाउडर इसकी मुख्य सामग्रियां हैं, वे इसे एक अनोखा स्वाद देते हैं। वंगीबाथ को मेथी की पत्तियों का उपयोग करके भी तैयार किया जा सकता है। रेसिपी में कई मसाले भी शामिल दिख रहे थे, जो इसके मसालेदार और स्वादिष्ट स्वाद को अनोखा बनाते हैं।
एक और व्यंजन पुलिओइग्रे बताया। पुलिओइग्रे अपने खट्टे और मसालेदार स्वाद के लिए जाना जाता है। इसे इमली के रस के साथ चावल से तैयार किया जाता है। इसकी सजावट मूंगफली से की जाती है जो इसे और भी स्वादिष्ट बनाती है।
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित – “कविता – बलिदानी वीरों की याद…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।)
☆ काव्य धारा # 222 ☆
☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – बलिदानी वीरों की याद… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
(डा. मुक्ता जीहरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के माध्यम से हम आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी की मानवीय जीवन पर आधारित एक विचारणीय आलेख विश्वास–अद्वितीय संबल। यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की लेखनी को इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य # 273 ☆
☆ विश्वास–अद्वितीय संबल… ☆
‘केवल विश्वास ही एक ऐसा संबल है,जो हमें मंज़िल तक पहुंचा देता है’ स्वेट मार्टिन का यह कथन आत्मविश्वास को जीवन में लक्ष्य प्राप्ति व उन्नति करने का सर्वोत्तम साधन स्वीकारता है,जिससे ‘मन के हारे हार है,मन के जीते जीत’ भाव की पुष्टि होती है। विश्वास व शंका दो विपरीत शक्तियां हैं– एक मानव की सकारात्मक सोच को प्रकाशित करती है और दूसरी मानव हृदय में नकारात्मकता के भाव को पुष्ट करती है। प्रथम वह सीढ़ी है, जिसके सहारे दुर्बल व अपाहिज व्यक्ति अपनी मंज़िल पर पहुंच सकता है और द्वितीय को हरे-भरे उपवन को नष्ट करने में समय ही नहीं लगता। शंका-ग्रस्त व्यक्ति तिल-तिल कर जलता रहता है और अपने जीवन को नरक बना लेता है। वह केवल अपने घर-परिवार के लिए ही नहीं; समाज व देश के लिए भी घातक सिद्ध होता है। शंका जोंक की भांति जीवन के उत्साह, उमंग व तरंग को ही नष्ट नहीं करती; दीमक की भांति मानव जीवन में सेंध लगा कर उसकी जड़ों को खोखला कर देती है।
‘जब तक असफलता बिल्कुल छाती पर सवार न होकर बैठ जाए; असफलता को स्वीकार न करें’ मदनमोहन मालवीय जी का यह कथन द्रष्टव्य है,जो गहन अर्थ को परिलक्षित करता है। जिस व्यक्ति में आत्मविश्वास है; असफलता उसके निकट दस्तक नहीं दे सकती। ‘हौसले भी किसी हक़ीम से कम नहीं होते/ हर तकलीफ़ में ताकत की दवा देते हैं।’ सो! हौसले मानव-मन को ऊर्जस्वित करते हैं और वे साहस व आत्मविश्वास के बल पर असंभव को संभव बनाने की क्षमता रखते हैं। जब तक मानव में कुछ कर गुज़रने का जज़्बा व्याप्त होता है; उसे दुनिया की कोई ताकत पराजित नहीं कर सकती, क्योंकि किसी की सहायता करने के लिए तन-बल से अधिक मन की दृढ़ता की आवश्यकता होती है। महात्मा बुद्ध के शब्दों में ‘मनुष्य युद्ध में सहस्त्रों पर विजय प्राप्त कर सकता है, लेकिन जो स्वयं कर विजय प्राप्त कर लेता है; वह सबसे बड़ा विजयी है।’ फलत: जीवन के दो प्रमुख सिद्धांत होने चाहिए–आत्म-विश्वास व आत्म- नियंत्रण। मैंने बचपन से ही इन्हें धारण किया और धरोहर-सम संजोकर रखा तथा विद्यार्थियों को भी जीवन में अपनाने की सीख दी।
यदि आप में आत्मविश्वास है और आत्म-नियंत्रण का अभाव है तो आप विपरीत व विषम परिस्थितियों में अपना धैर्य खो बैठेंगे; अनायास क्रोध के शिकार हो जाएंगे तथा अपनी सुरसा की भांति बढ़ती बलवती इच्छाओं, आकांक्षाओं व लालसाओं पर अंकुश नहीं लगा पायेंगें। जब तक इंसान काम, क्रोध, लोभ, मोह व अहंकार पर विजय नहीं प्राप्त कर लेता; वह मुंह की खाता है। सो! हमें इन पांच विकारों पर विजय प्राप्त करनी चाहिए और किसी विषय पर तुरंत प्रतिक्रिया नहीं देनी चाहिए। यदि कोई कार्य हमारे मनोनुकूल नहीं होता या कोई हम पर उंगली उठाता है; अकारण दोषारोपण करता है; दूसरों के सम्मुख हमें नीचा दिखाता है; आक्षेप-आरोप लगाता है, तो भी हमें अपना आपा नहीं खोना चाहिए। उस अपरिहार्य स्थिति में यदि हम थोड़ी देर के लिए आत्म-नियंत्रण कर लेते हैं, तो हमें दूसरों के सम्मुख नीचा नहीं देखना पड़ता, क्योंकि क्रोधित व्यक्ति को दिया गया उत्तर व सुझाव अनायास आग में घी का काम करता है और तिल का ताड़ बन जाता है। इसके विपरीत यदि आप अपनी वाणी पर नियंत्रण कर थोड़ी देर के लिए मौन रह जाते हैं, समस्या का समाधान स्वत: प्राप्त हो जाता है और वह समूल नष्ट हो जाती है। यदि आत्मविश्वास व आत्म-नियंत्रण साथ मिलकर चलते हैं, तो हमें सफलता प्राप्त होती है और समस्याएं मुंह छिपाए अपना रास्ता स्वतः बदल लेती हैं।
जीवन में चुनौतियां आती हैं, परंतु मूर्ख लोग उन्हें समस्याएं समझ उनके सम्मुख आत्मसमर्पण कर देते हैं और तनाव व अवसाद का शिकार हो जाते हैं, क्योंकि उस स्थिति में भय व शंका का भाव उन पर हावी हो जाता है। वास्तव में समस्या के साथ समाधान का जन्म भी उसी पल हो जाता है और उसके केवल दो विकल्प ही नहीं होते; तीसरा विकल्प भी होता है; जिस ओर हमारा ध्यान केंद्रित नहीं होता। परंतु जब मानव दृढ़तापूर्वक डटकर उनका सामना करता है; पराजित नहीं हो सकता, क्योंकि ‘गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में’ के प्रबल भाव को स्वीकार लेता है और सदैव विजयी होता है। दूसरे शब्दों में जो पहले ही पराजय स्वीकार लेता है; विजयी कैसे हो सकता है? इसलिए हमें नकारात्मक विचारों को हृदय में प्रवेश ही नहीं करने देना चाहिए।
जब मन कमज़ोर होता है, तो परिस्थितियां समस्याएं बन जाती हैं। जब मन मज़बूत होता है; वे अवसर बन जाती हैं। ‘हालात सिखाते हैं बातें सुनना/ वैसे तो हर शख़्स फ़ितरत से बादशाह होता है।’ इसलिए मानव को हर परिस्थिति में सम रहने की सीख दी जाती है। मुझे स्मरण हो रही हैं स्वरचित पंक्तियाँ– ‘दिन-रात बदलते हैं/ हालात बदलते हैं/ मौसम के साथ-साथ/ फूल और पात बदलते हैं/ यादों के महज़ दिल को/ मिलता नहीं सुक़ून/ ग़र साथ हो सुरों का/ नग़मात बदलते हैं।’ सच ही तो है ‘कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती/ लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती।’ इसी संदर्भ में सैमुअल बैकेट का कथन अत्यंत सार्थक है– ‘कोशिश करो और नाकाम हो जाओ, तो भी नाकामी से घबराओ नहीं। फिर कोशिश करो; जब तक अच्छी नाकामी आपके हिस्से में नहीं आती।’ इसलिए मानव को ‘ख़ुद से जीतने की ज़िद्द है मुझे/ ख़ुद को ही हराना है/ मैं भीड़ नहीं हूं दुनिया की/ मेरे भीतर एक ज़माना है। ‘वैसे भी ‘मानव को उम्मीद दूसरों से नहीं, ख़ुद से रखनी चाहिए। उम्मीद एक दिन टूटेगी ज़रूर और तुम उससे आहत होगे।’ यदि आपमें आत्मविश्वास होगा तो आप भीषण आपदाओं का सामना करने में सक्षम होगे। संसार में कोई ऐसी वस्तु नहीं है, जो सत्कर्म व शुद्ध पुरुषार्थ से प्राप्त नहीं की जा सकती।
योगवशिष्ठ की यह उक्ति अत्यंत सार्थक है, जो मानव को सत्य की राह पर चलते हुए साहसपूर्वक कार्य करने की प्रेरणा देती है।
‘सफलता का संबंध कर्म से है और सफल लोग आगे बढ़ते रहते हैं। वे ग़लतियाँ करते हैं, लेकिन लक्ष्य-प्राप्ति के प्रयास नहीं छोड़ते’–कानरॉड हिल्टन का उक्त संदेश प्रेरणास्पद है। भगवद्गीता भी निष्काम कर्म की सीख देती है। कबीरदास जी भी कर्मशीलता में विश्वास रखते हैं, क्योंकि अभ्यास करते-करते जड़मति भी विद्वान हो जाता है। महात्मा बुद्ध ने भी यह संदेश दिया है कि ‘अतीत में मत रहो। भविष्य का सपना मत देखो। वर्तमान अर्थात् क्षण पर ध्यान केंद्रित करो।’ बोस्टन के मतानुसार ‘निरंतर सफलता हमें संसार का केवल एक ही पहलू दिखाती है; विपत्ति हमें चित्र का दूसरा पहलू दिखाती है।’ इसलिए क़ामयाबी का इंतज़ार करने से बेहतर है; कोशिश की जाए। प्रतीक्षा करने से अच्छा है; समीक्षा की जाए। हमें असफलता, तनाव व अवसाद के कारणों को जानने का प्रयास करना चाहिए। जब हम लोग उसकी तह तक पहुंच जाएंगे; हमें समाधान भी अवश्य प्राप्त हो जाएगा और हम आत्मविश्वास रूपी धरोहर को थामे निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर होते जाएंगे।
(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीत – सोने की चिड़िया…।
रचना संसार # 46 – गीत – सोने की चिड़िया… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं – भावना के दोहे – आतंक।)
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.“साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है आपके – आतंक पर दोहे… । आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)