श्री अरुण श्रीवास्तव
(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। प्रस्तुत है एक विचारणीय संस्मरणात्मक कथा “स्वर्ण पदक“ )
☆ कथा-कहानी # 124 – 🥇 स्वर्ण पदक – भाग – 5🥇 श्री अरुण श्रीवास्तव ☆
रजतकांत और उनके भाई स्वर्णकांत एक शहर में होने बावजूद प्रतियोगिता के अंतिम दिन याने फाईनल के दिन मिल पाये और वह भी खेल के मैदान पर. रजतकांत ने रेल्वे के VIP guest house में टीम के साथ रुकना ही पसंद किया, mandatory भी रहता है, कोई भी स्पांसर डेवियेशन अफोर्ड नहीं करना चाहता. तो फाईनल मुकाबले के पहले ही ये मुलाकात हुई जिसमें गर्मजोशी कम औपचारिकता ज्यादा थी. नहीं मिलने के दोनों के अपने अपने कारण थे, रजत के लिये फाईनल जीतना उसके लिये टीम इंडिया में वांछित पोजीशन दिला सकता था और स्वर्णकांत अपने छद्मनाम स्वयंकांत से छुटकारा पाना चाहते थे क्योंकि उनका कैरियर भी दांव पर लगा हुआ था. रविवार को इस प्रतिष्ठित मैच को देखने के लिये बैंक का बहुत सारा स्टॉफ भी दर्शक दीर्घा में मौजूद था.
हॉकी की चैम्पियनशिप रेल्वे की टीम ने हरियाणा को हराकर 3-2 से जीती, रेल्वे की तरफ से तीनों गोल फील्ड गोल थे जो रजतकांत की उत्कृष्ट ड्रिबलिंग का कमाल थे जिसमें बेहतरीन प्लेसिंग का बहुत कुशलता से उपयोग किया गया. पिछली चैम्पियन हरियाणा की टीम का पॉवरप्ले, रेल्वे की टीम की चपलता के आगे मात खा गया हालांकि उनके पैनल्टी कार्नर विशेषज्ञ खिलाड़ी के दम पर पहले दो गोल हरियाणा ने ही पहले हॉफ टाईम में किये और हॉफ टाईम का स्कोर 2-0 था. पर सेकेंड हॉफ ने खेल का नक्शा बदल दिया. मैदान में रजतकांत का टीमवर्क और चपलता दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर गई. रजत हीरो बन चुके थे और जश्न के बाद दूसरे दिन विशाल सेंटर बैंक ब्रांच ने रेल्वे की टीम को शाम को बैंक में आमंत्रित किया. रजत व्यस्त होने के बावजूद मना नहीं कर पाये ,आखिर भाई के साथ वक्त गुजारने का मौका भी तो मिल रहा था. तो दूसरे दिन शाम को लगभग 6 बजे एक तरफ रेल्वे की हॉकी टीम के सदस्य अपने कैप्टन रजतकांत के साथ बैठे थे और दूसरी तरफ थी इंडस्ट्रियल रिलेशन की धीमी आंच को अपने अंदर समेटे बैंक की टीम जिसके कप्तान थे स्वर्णकांत. कुछ अवसर ऐसे होते हैं जब बैंक की छवि और बैंक का सम्मान सबके ऊपर वरीयता पाता है. वही आज भी हुआ पर इस कार्यक्रम के हीरो थे रजतकांत जिनके खेल का पूरा स्टॉफ दीवाना हो गया था और उपस्थित स्टाफ की नजर दोनों भाइयों के बीच उसी तरह दौड़ लगा रही थीं जैसे हॉकी के ग्राउंड में बॉल दौड़ती है कभी इस हॉफ में तो कभी उस हॉफ में.
अंतिम भाग अगले सप्ताह…
© अरुण श्रीवास्तव
संपर्क – 301,अमृत अपार्टमेंट, नर्मदा रोड जबलपुर
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
रोचक वर्णन।