श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा –  गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी,  संस्मरण,  आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – तजुर्बा।)

☆ लघुकथा # 73 – तजुर्बा श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

कमल जी सुबह-सुबह मन्दिर से वापस आईं। देखा उनकी पोती रागिनी कालेज जाने के लिए तैयार खड़ी है। किसी से फोन पर बात कर रही है। दादी को देखकर वह बहुत गुस्सा हो गई  – आप मेरी बातें क्यों सुन रही हो क्या यह अच्छी बात है? मां इन्हें गांव क्यों नहीं भेज देती हो? एक तो इन्हें मेरे कमरे में रख दिया है, दिन भर पूजा पाठ करके मुझे डिस्टर्ब करती रहती हैं।  हमेशा मेरे कपड़े के पहने होने पर रोक लगाती रहती हैं।

– अच्छा यह तो बता तू मोबाइल में सारा दिन करती क्या रहती है?

– बस बेटी मैं सीखना चाहती हूं क्योंकि इसमें खाना बनाने की भी अच्छे-अच्छे विधियां बताते हैं। मैं सोचती हूं तुझे बनाकर खिलाऊँ और दोपहर में टाइम पास भी अच्छा हो जाता है। ठीक है तुझे गुस्सा लगता है तो अब नहीं पूछूंगी चुप रहूंगी।

– लेकिन एक बात सुन ले मैं भी कॉलेज की पढ़ाई की है और मैंने भी जमाना देखा है। तेरी मां ने तो आंख में पट्टी बांध ली है बेचारा मेरा बेटा तो दिन भर काम करता है।

– क्या मैं ऑंख में पट्टी बांध लूं? मन ही मन बुदबुदाई।

– हे राम जमाने को क्या हो गया है।  क्यों बहू रागिनी क्या तुम पेपर नहीं पढ़ती न्यूज़ नहीं सुनती आजकल जमाना कितना खराब है। खैर जमाना तो हमारे जमाने से भी ऐसा था।

– माँ आजकल यही फैशन है सब बच्चे इसी तरह पहनते हैं, देखकर उसका भी मन करता है यदि सलवार कमीज पहने की तो सब उसे गवार समझेंगे। जाने दो मैं आपके लिए नाश्ता बनाती हूं क्या बना दूं?

– तू चाय नाश्ता और घर गृहस्थी छोड़ थोड़ी बाहर की भी दुनिया देख। स्कूल कॉलेज में पढ़ना कोई बुराई नहीं है शिक्षा तो हर किसी को मिलनी चाहिए क्या हम तो पढ़े नहीं थे लेकिन क्या आजादी इतना देना उचित है वह तो बच्ची है उसे कुछ समझ नहीं है लेकिन तू तो समझ है?

– खाना तो मैं बना दूंगी। जा तू थोड़ा देख बिटिया रानी क्या करती है? पीछे देख चुपके से वह स्कूल कॉलेज में क्या कर रहे हैं, कहीं बुरी संगत में तो नहीं फंस गई है। तेरा यह फर्ज है। देख मेरी बातें तुझे बुरी जरूर लग रही है, पर तू मेरा कहा मान जा। आज तू अपनी जिंदगी जी ले खूब घूम ले फिर न मेरी तरफ से बाबूजी की पेंशन तो मुझे मिलती है। 1000 रुपया लो और कुछ अपने लिए खरीद लेना।

अब सासू मां ने कहा था तो रागिनी ने सोचा चलो इसी बहाने घूम फिर लूंगी और वह जब अपनी बेटी के कॉलेज पहुंची तो उसने दूर से देखा कि उसकी बेटी कुछ लड़कों के साथ सिगरेट पी रही है, और लड़कों की नजर और नीयत ठीक नहीं लग रही थी वह कुछ देर रुक कर यही देखने लग गई फिर कुछ और लौट के आगे देखा कि वह लोग क्लास में नहीं गए तभी उसने देखा कि वह लोग रागिनी के साथ कुछ अजीब सी हरकतें करने लग गए और वह चिल्लाने लग गई तो कुछ लड़कों ने मिलकर उसे पकड़ लिया।

तभी उसकी मां दौड़ी दौड़ी उसके पास आ गई। और वह जोर-जोर से चिल्लाने लगी इसी समय पूरे कॉलेज का स्टाफ इकट्ठा हो गया और उन लड़कों की बहुत पिटाई हुई वह माफी मांगने लग गए कि आंटी हमें पुलिस में मत दीजिए हमसे गलती हो गई और ऐसा नहीं करेंगे उसने भी समझदारी से कम लेकर उन्हें छोड़ दिया और अपनी बेटी को लेकर घर आ गई।

तभी कमल जी ने दरवाजा खोला और बोला क्या हुआ बहू तूने क्या खरीदा ?

– अपने लिए कुछ नहीं मांजी आपको मैं गलत सोचती थी पर बात सही है घर में बड़े बुजुर्गों का होना चाहिए उनकी सलाह और तजुर्बा से घर गृहस्थी चलना चाहिए। जब आपको रवि घर में लेकर आए थे तब मैं बोझ मानती थी और मुझे यह लगता था कि आप क्यों आ गई लेकिन अब आप कभी मत जाइएगा आप यही रहिएगा।

आज मुझे बहुत अच्छा लग रहा है कि माँ के रूप में मुझे एक सहेली मिल गई। बड़ों बुजुर्गों का का घर में होना कितना जरूरी होता है, आज मुझे अनुभव हुआ।

© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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