हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कथा कहानी # 36 – आत्मलोचन – भाग – 6 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

श्री अरुण श्रीवास्तव

(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना  जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। प्रस्तुत है आपके कांकेर पदस्थापना के दौरान प्राप्त अनुभवों एवं परिकल्पना  में उपजे पात्र पर आधारित श्रृंखला “आत्मलोचन “।)   

☆ कथा कहानी # 36 – आत्मलोचन– भाग – 6 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव 

(“इस कहानी के सभी पात्र और घटनाए काल्पनिक है, इसका किसी भी व्यक्ति या घटना से कोई संबंध नहीं है। यदि किसी व्यक्ति से इसकी समानता होती है, तो उसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा।”)

आप क्लाइमैक्स का इंतज़ार कर रहे हैं पर ये तो सिर्फ फिल्मों में होता है. ये तो  वास्तविकता से जुड़ी अलग कहानी है जिसमें 100% सही न तो नायक है न ही खलनायक. शायद यही जिंदगी की हकीकत है जिसमें हम सब भी गुजर रहे हैं और जानते हैं कि हमारी समस्याओं का समाधान करने के लिए अगर कोई नायक है तो वह भी हम हैं पर खलनायक कौन है, ये पहचानना या परिभाषित करना मुश्किल है.इस कथा के अंतिम पड़ाव के संक्षिप्त बिंदु यही हैं.

  1. इस अपहरण में आत्मलोचन जी को जानबूझकर कोई शारीरिक कष्ट नहीं पहुंचाया गया न ही उनके साथ कोई अभद्रता की गई. ये बात अलग है कि सिचुएशन के हिसाब से अपहरणकर्ताओं का आचरण रहा और आत्मलोचन जी भी समझ गये कि इन लोगों के साथ शालीनता ही सबसे कामयाब शस्त्र है. लेकिन दुरूह क्षेत्र के उबड़खाबड़ रास्ते और आंखों में पट्टी बंधे होने कारण हल्की चोट जरूर आई थी. चोट शारीरिक से ज्यादा मानसिक रूप से पीड़ा दे रही थी और इन जख्मों पर भय, नमक का काम कर रहा था.
  2. उनकी सुरक्षा में लगे वे सिक्यूरिटी गार्ड, जिनकी शक्ल भी उन्होंने देखी नहीं थी, बहुत बेदर्दी से मौत के घाट उतार दिये गये थे और आत्मलोचन जी ने अपने जीवन में पहली बार निर्ममता पूर्वक किये गये कत्ल का मंजर देखा था. किताबों की विद्वत्ता के बोझ तले पोषित व्यक्ति जब पहली बार मृत्यु की विभीषिका से रूबरू होता है तो यह अनुभवहीनता उसे स्तब्ध कर देती है और शून्यता उसके सारे सेंस को शतप्रतिशत संक्रमित कर देती है.
  3. किडनेप होने के बाद अपने इस कैंप में उनका ठिकाना सर्किट हाऊस नहीं बल्कि सुदूर जंगल का वह खंडहरनुमा घर था जिसमें उनके VIP status के हिसाब से एक कमरा पूरी तरह उनके लिये रिजर्व था. उनके विश्राम के लिये डबल बैड और बैठने के लिये विशिष्ट चेयर दोनों का डबल रोल एक संकरा तख्त कर रहा था और यही उनका तख्ते ताऊस था. बाहर निकलने की स्वतंत्रता नहीं थी और natural calls के लिये ही बाहर निकला जा सकता था जिसके लिये उन्हें यहां की सिक्यूरिटी प्रदान की गई थी.
  4. अपहरण के Chief Executive Officer याने मॉस्टर माइंड से उनकी मुलाकात अभी हुई नहीं थी. पर जब प्रदेश की राजधानी से प्रतिनियुक्त मीडियेटर और नक्सलियों के मीडियेटर की मीटिंग, विभिन्न दौर के मंथन, कुछ घोषित और कुछ गुप्त मांगों की स्वीकृति की ओर अग्रसर हुई तो उन्हें इस अपहरण कांड के नायक या उनके लिए खलनायक से मिलने का सुअवसर प्राप्त हुआ. कद लगभग साढे छह फुट, रंग गहरा सांवला, कमांडो जैसी काया और आंखों के भीतर लहराता ज्वालामुखी जो किसी को भी भयभीत करने में सक्षम था. पर ये मुलाकात बड़े ही परिपक्व और सौहार्द वातावरण में हुई क्योंकि सामने भी विद्वत्ता और शासकीय अधिकारसंपन्नता से लबालब थे आत्मलोचन IAS Distt. Megistrate. सुदूर बस्तर में बहुत कम लोग ही उनसे अंग्रेजी में बात कर पाते थे पर यहाँ वार्तालाप की शुरुआत ही अंग्रेजी में हुई.

Hello Mr. DM, I am “Shekhar”, Commander Incharge of this area.I hope you will adjust with the shortcomings of this place, and you should as you know that we too have adjusted since so many years.

विपरीत परिस्थितियां और भयजनित असहायता व्यक्ति की बोलने की शक्ति उसकी मातृभाषा तक ही सीमित कर देती हैं. तो आत्मलोचन जी ने अपनी मातृभाषा में अपने सुरक्षा गार्ड की हत्या की बात करनी चाही पर “शेखर” ने भी गुरिल्ला युद्ध के कमांडर का दर्जा, अपनी चतुराई, नृशंसता और हर पल व्यक्तियों और घटनाओं को अपने हिसाब से नियंत्रित करने की कला के बल पर ही हासिल किया था. उसने प्रश्न पूरा होने के पहले ही उनकी बात काटते हुये जवाब दिया “हमने भी अपने बहुत से योद्धा खोये हैं, जन्म के बाद हमारा पहला खेल ही मृत्यु से आंखमिचौली से शुरु हो जाता है. हमारा” नेटवर्क” बहुत शक्तिशाली है और हम अपने एरिया के हर महत्वपूर्ण अधिकारी का बायोडाटा, स्केच और मूवमैंट की पल पल की खबर हम तक समय से पहले पहुँच जाती है. पर एक बात और है कि आपको तो हम सम्मान सहित सुरक्षित रिहा कर आपके घर पहुंचा रहे हैं, फाइनल सेटलमेंट के बाद,” पर हम हमारी मुखबिरी करने वालों को नहीं छोड़ते”. कमांडो शेखर ने अपनी मिलिट्री जैसी ड्रेस के एक पॉकेट से कलेक्टर साहब का स्केच और बायोडाटा उनको देकर अपनी हल्की मुस्कान के साथ विदा ली।

मुलाकात खत्म हो गई क्योंकि ये सिर्फ संदेशात्मक थी. एक दो दिन के बाद सेटलमेंट के अनुसार आत्मलोचन जी मीडियेटर के संरक्षण में स्वास्थ्य परीक्षण के बाद घर पहुँच गये. घर लौटने पर उनकी मां ने छलकते आंसुओं के बीच उनके सुरक्षित लौटने पर तिलक लगाया आरती की और कई अरसे के बाद आत्मलोचन, पिता के चरणस्पर्श कर उनके गले लगे. Power and Strong Network के बारे में जो भूतपूर्व मुख्यमंत्री समझाना चाहते थे, वह नियति ने उनको बहुत प्रभावी तरीके से समझा दिया था. इस घटना के बाद आत्मलोचन जी के पास TMT जैसा मजबूत इरादा तो था पर लक्ष्य जिले की कवच कुंडल जड़ित अभावग्रस्त जनता को गरीबी की रेखा से ऊपर उठने की लड़ाई में उनका साथ देना भी था. उन्होंने मुख्य मंत्री द्वारा मुख्य सचिव के माध्यम से दिये गये अपने ट्रांसफर के सुझाव पर भी विनम्रतापूर्वक कहा कि उनका असली assignment तो अब शुरु होने वाला है और वह भी इसी जिले में और इसी पद पर.

एक अंतिम बात जो कि इस पूरी कहानी का एंटी क्लाइमैक्स है वह है नक्सलग्रस्त जिलों में दो समानांतर सत्ताओं की मौजूदगी. एक सरकारी होती है जिसमें भ्रष्टाचार, कामचोरी और लालफीताशाही होती है.

दूसरी दुर्गम क्षेत्र में प्रभावी व्यवस्था भय, आतंकवाद मनमानी और निरंकुश होती है. ये दोनों व्यवस्थायें आपस में युद्धरत रहती हैं और इन दो पाटों के बीच में पिसते रहते हैं साधनविहीन, शिक्षाविहीन, स्वास्थ्य विहीन निरीह और निर्बल ग्रामवासी जो न केवल गरीबी से बल्कि निरंकुशता से भी हारी हुई लड़ाई लड़ते रहते हैं. प्रयास सिर्फ आंकड़ों में दिखाये जाते हैं और जमीनी हकीकत के लिये सरकार और नक्सली एक दूसरे पर दोषारोपण करते रहते हैं.

अगर आपके मन मस्तिष्क में ये कहानी चोट करे और लोचन गीले लगें तो अपनी राय जरूर दीजियेगा. अपनी कांकेर पदस्थापना के अनुभवों और कल्पनाशक्ति की कॉकटेल है ये कथा.

© अरुण श्रीवास्तव

संपर्क – 301,अमृत अपार्टमेंट, नर्मदा रोड जबलपुर

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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मराठी साहित्य – मराठी कविता ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 136 ☆ माझी वटपौर्णिमा… ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कवितेच्या प्रदेशात # 136 ?

☆ माझी वटपौर्णिमा… ☆

 कुणीतरी विचारलं सकाळी

चेष्टेने, “तुमचा हा कितवा जन्म”?

माझाही तोच सूर, “सात पूर्ण झाले,

हा आठवा, म्हणूनच,

नो कमिटमेंट “

 

वडाला फे-या मी कधीच घातल्या नाहीत!

लग्नानंतर काही वर्षे,

घरातल्या ज्येष्ठ बायका करतात

म्हणून धरला उपवास,

काही वर्षे कुंडीतल्या फांदीची पूजा !

आणि अचानक आलेली जाग,

नारी समता मंचावर आलेली…

तेव्हा पासून सोडून दिलं,

स्वतःच्या नावापुढे सौ.लावणं !

 श्रावणात सवाष्ण जेऊ घालणं,

आणि “हळदीकुंकू” करणंही !

 

मी नाहीच स्वतःला “स्त्रीवादी”

म्हणवण्या इतकी धीट !

 पण स्त्रीवादी विचारसरणीचा

पगडा मनावर मूलतःच !

माझी आई नेहमीच

धार्मिक कर्मकांड आणि

व्रतवैकल्यात रमलेली !

पण तिची आई–माझी आजी,

सामाजिक कार्याचं व्रत घेतलेली,

उपास तापास न करणारी !

माणूसपण जपणारी-कर्मयोगिनी !

आयुष्यात भेटलेली पहिली आदर्श स्त्री !

 

 त्यानंतर पुस्तकातून भेटल्या,

 “टीन एज”  मधे इरावती कर्वे,

छाया दातार, आणि हो…देवयानी चौबळही!

नंतरच्या काळात विद्याताई,

गौरी देशपांडे,अंबिका सरकार,सानिया

 आणि मेधा पेठेही!

 

जगणं स्पष्ट असावं संदिग्ध नको,

हे मनोमन पटलं !

आणि तळ्यात मळ्यात करत,

जगूनही घेतलं मनःपूत!

 

वटपौर्णिमेलाच कशाला,

नेहमीच म्हणते नव-याला,

“तुमको हमारी उमर लग जाए”

आणि या वानप्रस्थाश्रमात

जाण्याच्या वयात,

व्रत वसा फक्त पर्यावरणवाद्यांचा !

वसुंधरा बचाओ म्हणणा-यांचा,

 

हवा- पाणी -माती

प्रदुषण मुक्त करण्याचा !

झाडे लावण्याचा !

© प्रभा सोनवणे

१४ जून २०२२

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – मीप्रवासीनी ☆ मी प्रवासिनी क्रमांक २३ – भाग २ ☆ सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी ☆

सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी

☆ मी प्रवासिनी क्रमांक २३ – भाग २ ☆ सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी ☆ 

✈️ एक जिद्दी देश— इस्त्रायल  ✈️

‘सी ऑफ गॅलिली’च्या एका किनाऱ्यावर खूप मोठ्या परिसरात, सुरेख झाडा-फुलांचा सान्निध्यात, थोड्या उंचीवर एक छान चर्च आहे. ख्रिश्चन धर्मियांसाठी हे एक पवित्र ठिकाण आहे. येशू ख्रिस्त या परिसरात राहिला होता, इथल्या टेकड्यांवरून त्याने प्रवचने दिली असे मानले जाते.

गेले दोन- तीन दिवस आम्ही ‘सी ऑफ गॅलिली’च्या किनाऱ्यावरील एका हॉटेलात  मुक्कामाला होतो. उगवत्या सूर्याची किरणे गॅलिलीच्या निळ्या-निळ्या लाटांवर स्वार होत आणि आसमंत सोनेरी प्रकाशाने भरून जाई. दिवसभर  स्थलदर्शन करताना दुपारचे कडकडीत उन्ह नकोसे होई तर संध्याकाळी हॉटेलच्या गच्चीवरून गॅलिलीचा किनारा मुला माणसांनी फुललेला दिसे. गॅलिलीवरून आलेला ताजा वारा आणि लिची ज्यूस किंवा चहा कॉफीबरोबर घेतलेल्या ( घरच्या ) चकल्या, चिवड्याच्या समाचार यामुळे संध्याकाळ सुखद होई. आज गॅलिलीचा निरोप घेऊन इस्रायलच्या उत्तर पश्चिम किनाऱ्यावरील हैफा इथे जायचे होते.

इस्त्रायलच्या पश्चिमेला भूमध्य समुद्र आहे. हैफा हे समुद्रकिनाऱ्यावरील सुंदर शहर व्यापारी व औद्योगिक ठिकाण तसेच महत्त्वाचे बंदर आहे. दोन विद्यापीठे, सागर संशोधन संस्था, कला, नौकानयन आणि पुरातत्व संशोधनाशी संबंधित म्युझियम आहेत. प्रागैतिहासिक काळापासून ऑटोमन साम्राज्यापर्यंतच्या अनेक खाणाखुणा या शहराने जपल्या आहेत.

हैफा,  तेल अव्हिव्ह, बहाई गार्डन्स

हैफाच्या उत्तरेला भूमध्य समुद्र किनाऱ्यावर बहाई वर्ल्ड सेंटर व जगप्रसिद्ध बहाई गार्डन्स आहेत. पर्शियामध्ये राहणारा बहाउल्ला हा या पंथाचा संस्थापक आहे. स्त्री- पुरुष समानता, मानवता हा एकच जागतिक धर्म , एकच ईश्वर, गरीब व श्रीमंत यांच्यातील दरी नाहीशी करणे अशी या पंथाची उदात्त तत्वे आहेत. जगातील बहुतांश देशांत या पंथाचे अनुयायी आहेत. आपल्याकडे दिल्लीला बहाई पंथाचे ‘लोटस टेंपल’ आहे. बहाउल्लाच्या या विशिष्ट विचारांच्या शिकवणुकीमुळे त्याला पर्शियातून हाकलले गेले . तो हैफा जवळील एकर या ठिकाणी आला. इसवी सन १८९२ मध्ये बहाउल्लाचा मृत्यू झाला. 

आम्ही बसने माउंट कारमेलच्या माथ्यावर पोचलो. प्रवेशद्वारातून खाली उतरण्यासाठी दगडी जिने आहेत दोन जिने उतरून खाली आलो आणि समोरच्या पोपटी- हिरव्या, एकाखाली एक उतरत जाणाऱ्या देखण्या बागा बघुन चकीतच झालो.माउंट कारमेलच्या साडेसातशे फूट उंचीवरून समुद्रकिनारी असलेल्या बहाउल्लाच्या मंदिरापर्यंत १८ सुंदर, भव्य बागा एकाखाली एक उतरत गेल्या आहेत.  आम्ही उभ्या होतो तिथपासून समुद्र किनाऱ्यावरील  मंदिरापर्यंतच्या सर्व बागा,  तळाशी असलेले शुभ्र संगमरवराचे मंदिर, त्याचा लालसर ग्रॅनाईटचा घुमट, त्यावरील सोनेरी टाईल्स  सूर्य प्रकाशात चमकताना दिसत होत्या. पलीकडल्या निळ्या- हिरव्या भूमध्य समुद्रात मोठ्या बोटी बंदरात शिरण्यासाठी वाट पाहत उभ्या होत्या.

२०० फूट ते १२०० फूट रुंद असलेल्या या बागांच्या मधोमध उतरते दगडी जिने, पूल, छोटे-छोटे बोगदे कल्पकतेने आखले आहेत. झाडा फुलांनी डवरलेल्या त्या बागांच्या मध्ये लहान-मोठी कारंजी आहेत.  बागांच्या कडेने मूळ डोंगरावर असलेली रानटी पण रंगीत फुलांची झाडे आणि तिथल्या मूळ वृक्षांच्या प्रजाती यांचे संवर्धन केलेले आहे. स्वच्छ सूर्यप्रकाश, निळा हिरवा समुद्र, उतरत्या देखण्या बागा आणि निस्तब्ध , हिरवी शांतता असे एक सुंदर निसर्ग चित्र मनावर कोरले गेले.

माऊंट कारमेलच्या उत्तर भागातील उतारावरून मंदिरापर्यंत पोहोचण्यासाठी उतरत्या बागांचे डिझाईन करण्याचे काम १९८७ मध्ये कॅनडिअन वास्तुशास्त्रज्ञ फरिबोर्झ साबा यांना देण्यात आले तर मंदिराचे डिझाईन कॅनेडियन वास्तुशास्त्रज्ञ विल्यम मॅक्सवेल यांनी केले आहे. मंदिराचा शुभ्र  संगमरवरी बाह्यभाग हा इटलीमधून तयार करून आणण्यात आला. मंदिराचे घुमटाचे खांब लालसर ग्रॅनाईटचे आहेत आणि त्यावर सोन्याच्या पत्र्याने मढविलेल्या टाईल्स बसविल्या आहेत. हे काम हॉलंडमध्ये करण्यात आले. जगभरचे प्रवासी आवर्जून या बागा बघण्यासाठी येतात .मागील वर्षी या बहाई गार्डन्सना साडे सात लाख लोकांनी भेट दिली.

जाफा आणि तेल अव्हिव्ह ही आता जुळी शहरे झाली आहेत. तेल अव्हिव्ह ही इस्त्रायलची आर्थिक, औद्योगिक ,व्यापारी, सांस्कृतिक राजधानी आहे. भूमध्य समुद्रकिनारी असलेल्या या देखण्या शहरात इस्त्रायलच्या एकूण ८२ लाख लोकसंख्येपैकी ४५ लाख लोक राहतात. आपल्या मरीन ड्राईव्हसारख्या सागर किनारी अनेक देशांचे दूतावास, सरकारी कार्यालये,  उच्चभ्रू वस्ती आहे.  गॅलिलीच्या पश्चिमेकडील हा समृद्ध विभाग आहे. या विभागात संत्री-मोसंबी, ऑलिव्ह, ॲव्हाकाडो अशी फळे व शेती होते. भूमध्य समुद्राच्या सुंदर किनाऱ्यावर  सागरी खेळांची सुविधा आहे. अनेक संशोधन केंद्रे आहेत.

तेल अविव इथून जेरुसलेम इथे पोहोचलो. इथल्या हॉटेलात प्रवाशांची सतत ये-जा होती पण कुठेही गडबड गोंधळ नव्हता. जेरूसलेमला पोहोचलो त्या रात्री आम्ही तिथल्या प्राचीन किल्यात ‘साउंड ॲ॑ड लाईट’ शो पाहिला. किल्ल्याच्या आवारात बसण्याची व्यवस्था होती.  किल्ल्याच्या भिंती, बुरुज, दरवाजे, उंच-सखलपणा या विशाल पार्श्वभूमीवर प्रोजेक्टर्स, स्पीकर्स, आणि कम्प्युटर्स यांच्या सहाय्याने हे ४० मिनिटांचे, खुर्चीला खिळवून ठेवणारे, प्राचीन काळाची सफर घडविणारे नाट्य उभे केले गेले. किंग डेव्हिड व किंग सॉलोमनचा कालखंड, जेरुसलेमचा नाश व पुनर्निर्माण, घोडे,उंट, व्यापारी, योद्धे, सामान्य नागरिक, रोमन काळ, चर्चेस, धर्मगुरू,  इस्लामी कालखंड, ऑटोमन साम्राज्य आणि सध्याचे जेरुसलेम असा भव्य कालपट यात उलगडला आहे.स्केर्झो या फ्रेंच कंपनीने या शोची अतिशय देखणी आणि कल्पक उभारणी केली आहे.

दुसऱ्या दिवशी ‘नान दान जैन इरिगेशन प्रोजेक्ट बघायला गेलो. उपलब्ध जमीन, पाणी, हवामान आणि मातीचा कस याचा संपूर्ण अभ्यास व पिकांच्या जातींचे संशोधन करून ड्रिप इरिगेशनने पिकांच्या मुळाशी आवश्यक तेवढेच पाणी व खत पुरविण्याची पद्धत इस्त्रायलने प्रयत्नपूर्वक राबवली आहे. त्यामुळे थोड्या जागेत भरपूर पीक घेतले जाते व नैसर्गिक संसाधनांचा सुयोग्य उपयोग केला जातो. जगभरातील शंभराहून अधिक देशात ‘नान दान  जैन इरिगेशन’ कंपनीने तांत्रिक सहाय्य केले आहे. ड्रिप इरिगेशन, मायक्रो स्प्रिंकलर्स, हरितगृह उभारणी करून उत्पादन वाढीसाठी क्रांतिकारक बदल घडवून आणले आहेत. तिथल्या प्रोजेक्ट मॅनेजरने सुरुवातीलाच अगदी अभिमानाने सांगितले की,’ आत्ता तुम्ही जे पाणी प्यायलात ते अर्ध्या तासापूर्वी भूमध्य सागराचे पाणी होते. आता आम्ही ‘सी ऑफ गॅलिली’चे गोडे पाणी पिण्यासाठी अजिबात वापरत नाही, and we can’t afford to waste a single drop of water.’

वाढती लोकसंख्या, गोड्या पाण्याची वाढती मागणी, कमी पाऊस, पाण्याचा उपलब्ध साठा याचा भविष्यकालीन वेध घेऊन इस्त्रायलने समुद्रकिनाऱ्यावर समुद्राच्या पाण्याचे शुद्धीकरण करण्यासाठी मोठे प्लांट्स उभारले आहेत. यासाठी रासायनिक प्रक्रियेचा वापर करतात. इस्त्रायलमध्ये प्रत्येक घरातील सिंक, बेसिन, बाथरुम यांचे पाणी प्रक्रिया करून शेतीसाठी वापरले जाते.सतत संशोधन, नवनवीन तंत्रज्ञान व त्याचा रोजच्या जीवनासाठी  आवर्जून वापर हे इस्त्रायलचे एक मोठे वैशिष्ट्य आहे.

इस्त्रायल भाग-२ समाप्त

© सौ. पुष्पा चिंतामण जोशी

जोगेश्वरी पूर्व, मुंबई

9987151890

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 37 – मनोज के दोहे ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 37 – मनोज के दोहे

यश-अपयश की डोर है, हर मानव के हाथ।

जितना उसे सहेजता, प्रतिफल मिलता साथ।।

 

जीवन कैसा जी रहे, मिलकर करो विचार

लोक और परलोक में, मिलें पुष्प के हार।।

 

हमसे अच्छा कौन है, करो न यह अभिमान

कूएँ का मेंढक सदा, रखे यही बस शान।।

 

सच्चा साथी मन बने, समझो नहीं अनाथ।

निर्भय होकर तुम बढ़ो, हरदम मिलता साथ।।

 

चलो समय के साथ में, समय बड़ा अनमोल।

गुजरा समय न लौटता, ज्ञानी जन के बोल।।

 

राह चुने अच्छी सदा,  जीवन में है भोर।

गलत राह में जब बढ़े, तम का बढ़ता शोर ।।

 

दिखे जगत में बहुत हैं, भाँति-भाँति के लोग।

तृप्त पेट को ही भरें, मिलता मोहन-भोग।।

 

अकड़ दिखाते जो बहुत, पागल हैं वे लोग।

विनम्र भाव से जो जिएँ, घेरे कभी न रोग।।

 

चलो आपके साथ हैं, कदम बढा़ते साथ।

सच्चा रिश्ता है वही, थामे सुख दुख हाथ।।

 

मन-मंदिर में राम हों, रक्षक तब हनुमान।

सीता रूपी शांति से, सुखद-सुयश धनवान।।

 

रामराज्य का आसरा, राजनीति की डोर।

देख पतंगें गगन में, पकड़ न पाते छोर।।

 

अनुभव कहता है यही, दुख में जो दे साथ।

रिश्ता सच्चा है वही, कभी न छोड़ें हाथ।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक की पुस्तक चर्चा # 110 –“चटपटे शरारे” … संपादन… फारूक अफरीदी, कविता मुखर ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका पारिवारिक जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है फारूक अफरीदी, कविता मुखर द्वारा पुस्तक “चटपटे शरारे” की समीक्षा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 110 ☆

☆ “चटपटे शरारे” … संपादन… फारूक अफरीदी, कविता मुखर ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆  

चटपटे शरारे

राही रेंकिंग २०२० में चयनित व्यंग्यकारों का व्यंग्य संकलन

संपादन… फारूक अफरीदी, कविता मुखर

संयोजक… प्रभात कुमार गोविल, डॉ. संजीव कुमार  

प्रकाशक… इंडिया नेटबुक्स प्रा लिमि नोएडा

मूल्य ४००रु, पृष्ठ २०४

चर्चाकार.. विवेक रंजन श्रीवास्तव

शतक एक ऐसी संख्या है जो एक मान्य मुकाम की उद्घोषणा के रूप में स्थापित हो चुकी है. क्रिकेट में शतकीय पारी, उम्र में १०० बरस की जिंदगी, परीक्षाओ में १०० अंको के पूर्णांक वगैरह वगैरह… वर्ष २०१५ से राही सहयोग संस्थान नामक संस्था ने स्वैच्छिक रूप से  कुल पचपन सदस्यों का एक समूह बनाया. इन सदस्यों में कुछ शिक्षक, विद्यार्थी, शोधार्थी, संपादक, समीक्षक, सामान्य रूचि शील पाठकों के रूप में कुछ साहित्यानुरागी गृहणियाँ थी । पुस्तकालय कर्मी, प्रकाशक और प्रतिष्ठित पुस्तक विक्रेता तक शामिल थे  और शेष इंटरनेट सर्फर्स थे । प्रबुद्ध साहित्यिक प्रबोध कुमार गोविल जी की इस पहल का उद्देश्य था कि हिन्दी पाठकों को हिन्दी दिवस के अवसर पर हिन्दी जगत के १०० सक्रिय श्रेष्ठ रचनाकारों से एक रेंकिंग के जरिये परिचित करवाना. २०१५ से प्रारंभ यह इरादा अब तक लगातार मूर्त रूप ले रहा है, और अब इसकी गूंज वैश्विक हो चली है.

वर्ष २०१७ की इस रैंकिंग के तीसरे वर्ष में लगातार चुने गए साहित्यकारों के विस्तृत साक्षात्कारों पर आधारित एक किताब “ हरे कक्ष में दिनभर ” प्रबोध कुमार गोविल के संपादन में प्रकाशित हुई.इंडिया नेटबुक्स प्रा लिमि नोएडा के संस्थापक श्री संजीव कुमार एक प्रयोगधर्मी साहित्यकार भी हैं, उनके सहयोग से  वर्ष २०२० की राही रैंकिंग सूची में चयनित व्यंग्यकारो, कवियों, लघुकथाकारो, कहानीकारो आदि के विधावार रचना संकलन प्रकाशित किये गये. वरिष्ठ व्यंग्यकार फारूक अफरीदी एवं सुश्री कविता मुखर के संपादन में चटपटे शरारे शीर्षक से राही रेंकिंग २०२० में चयनित व्यंग्यकारों का व्यंग्य संकलन प्रकाशित हुआ है.

यह संकलन अपने आप में इस दृष्टि से अनूठा है कि इसमें सर्वश्री अरविंद तिवारी, डा गिरिराजशरण अग्रवाल, गिरीश पंकज, गोपाल चतुर्वेदी, गोविंद शर्मा, डा ज्ञान चतुर्वेदी, हरीश नवल, डा हेतु भारद्वाज, ईश मधु तलवार, लालित्य ललित, प्रभात गोस्वामी , डा नरेंद्र कोहली, प्रेम जनमेजय, रामदेव धुरंधर, डा सूर्यबाला, तेजेन्द्र शर्मा तथा विभूति नारायन राय जैसे स्वनाम धन्य सुस्थापित व्यंग्यकारो के चुटीले व्यंग्य ही नही, उन व्यंग्य लेखों पर समकालीन व्यंग्यकारो की समीक्षात्मक विस्तृत टिप्पणियां भी पुस्तक में संग्रहित हैं. इस तरह शोधार्थियों हेतु एक प्रारंभिक कार्य पहले ही कर सुलभ कर दिया गया है. विभिन्न संकलित व्यंग्य रचनाओ पर की गई टिप्पणीयों में सर्वश्री पिलकेंद्र अरोड़ा, डा उषारानी राव, डा चित्तरंजन कर, सुरेश अवस्थी, भारती पाठक, डा मंगत बादल, बुलाकी शर्मा, अजय अनुरागी, रास बिहारी गौड़, राजेंद्र मोहन शर्मा, राजेश कुमार, सवाई सिंह शेखावत, अर्चना चतुर्वेदी, सुभाष चंदर, बसंती पंवार, अनूप घई, ब्रजेश कानूनगो, हेतु भारद्वाज, डा आभा सिंह, बी एल आच्छा, सुनीता शानू, और विजी श्रीवास्तव जैसे सक्रिय पाठक व लेखक महत्वपूर्ण हैं. एक नियत समय सीमा में चयनित व्यग्यकारों से रचनायें प्राप्त कर उन पर देश भर में फैले रचनाकारों से विशद टिप्पणियां बुलवाकर उन्हें संपादित कर किताब का स्वरूप देना श्रमसाध्य साहित्यिक कार्य है, जिसे संपादक द्वय ने पूरी जिम्मेदारी से कर दिखाया है. श्री फारूक अफरीदी जी का विस्तृत संपादकीय स्वयं में व्यंग्य की वर्तमान स्तिथियों का पूरा लेखा जोखा है. कविता जी ने अपने संपादकीय में संकलित रचनाओ पर गंभीर टिप्पणियां की हैं. कुल मिलाकर चटपटे शरारे वर्ष २०२० के व्यंग्य परिदृश्य का शोध दस्तावेज निरूपित किया जा सकता है.

यह जानकारी देना प्रासंगिक होगा कि वर्ष २०२१ के चयनित व्यंग्यकारों के व्यंग्य संकलन पर मेरे तथा श्री अरुण अर्नव खरे के संपादन में कार्य चल रहा है. जल्दी  ही यह संकलन भी प्रकाशित होगा, इससे पहले मैं  पाठकों को चटपटे शरारे खरीद कर पढ़ने की सलाह दूंगा.

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ पहचान ☆ श्री राकेश कुमार ☆

श्री राकेश कुमार

(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” ज प्रस्तुत है आलेख – “पहचान।)

☆ आलेख ☆ पहचान ☆ श्री राकेश कुमार ☆

आज प्रातः काल में मोबाईल दर्शन से ज्ञात हुआ कि श्री के के का रात्रि निधन हो गया। मैसेज भेजने वाले को हमने अपनी अनिभिज्ञता जाहिर की और कहा हमारा संगीत में ध्यान नहीं हैं। कुछ समय के पश्चात सभी टी वी चैनल वाले उनके गीत सुना रहे थे। गीत प्रायः सभी सुने हुए थे, और जुबां पर भी थे। देश के सभी बड़े नेताओं ने संवेदनाएं व्यक्त की। चैनल वाले भी उन से संबंधित जानकारी देते रहे।

हमने मन ही मन विचार किया इनका नाम और चेहरा कभी नही सुना/देखा। अंतर्मन में अपनी आयोग्यता को लेकर नए आयाम तय करने में लगे रहे।

उनको पहचान न पाने के कारण खोज में लगे हुए थे। तभी विचार किया- क्या स्वर्गीय के के ने किसी भी विज्ञापन में कार्य किया था?

क्या किसी रियलिटी शो में प्रतियोगी या जज के रूप में टी वी पर आए थे?

क्या उनके साथ कभी कोई विवाद हुआ था?

यदि इन सब का उत्तर ना है, तो फिर हम उनको कैसे पहचानते?

वर्तमान समय में अकेले काम से आपकी पहचान नहीं बनती हैं। आपको सोशल मीडिया में कार्यशील रहना होता हैं। बिग बॉस या अन्य किसी टीवी शो में छोटे स्क्रीन पर नजर आना होगा। किसी विवाद में आपका नाम है, तो लोग आपको चेहरे से पहचानने लग जाएंगे।

ये सब केके के साथ नहीं था। वो सिर्फ आवाज़ के जादूगर थे। इसलिए वो एक अच्छे इंसान  बनकर ही रह गए। पुरानी कहावत भी है “जो दिखता है, वो ही बिकता है।

ॐ शांति🙏🏻

© श्री राकेश कुमार

संपर्क –  B  508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान) 

मोबाईल 9920832096

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #142 ☆ अत्तर उडून गेले ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

? अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 142 ?

☆ अत्तर उडून गेले 

आता नव्या पिढीला मिळणार मोकळेपण

बंधन नसेल आणिक कोणी नसेल राखण

 

बांधीलकी कशाला आकाश स्वैर आहे

स्वीकार कलियुगाला व्यापार मुक्त धोरण

 

उघड्या कुपी मधूनी अत्तर उडून गेले

वेळीच या कुपीचे मी लावले न झाकण

 

नाही सकसपणा हा कोठेच राहिलेला

हे राज्य भेसळीचे मिळणार काय पोषण

 

नाही शुभंकरोती गीता न वाचली मी

संस्कार भावनांचे व्हावे कुठून रोपण

 

बोलू नकोस वेड्या त्यांच्या विरूद्ध काही

नेते करो कितीही अश्लाघ्य रुक्ष भाषण

 

दाणा कसा टिपावा पक्षास ह्या कळेना

हुसकून लावण्याला आहे तयार गोफण

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 92 – गीत – नील झील से नयन तुम्हारे ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका एक अप्रतिम गीत – नील झील से नयन तुम्हारे…।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 92 – गीत – नील झील से नयन तुम्हारे…✍

नील झील से नयन तुम्हारे

जल पांखी सा मेरा मन है।

 

संशय की सतहों पर तिरते  जलपांखी का मन अकुलाया। संकेतों के बेहद देखकर

नील-झील के तट तक आया।

 

 दो  झण हर तटवर्ती को लहर नमन करती है लेकिन-

 

 गहराई का गांव अजाना मजधारों के द्वार बंद है ।

शव सी ठंडी हर घटना पर अभियोजन के आगिन छंद है।

संबंधों की सत्य कथा को

इष्ट तुम्हारा संबोधन है।

*

 कितनी बार कहा- मैं हारा लेकिन तुम अनसुनी किए हो। डूब डूब कर उतर आता हूं संदेशों की सांस दिए हो।

 

वैसे तो संयम की  सांकल चाहे जब खटका दूं लेकिन-

कूला कूल लहरों पर क्या वश जाने कब तटस्थता वर ले। वातावरण शरण आया है -एक सजल समझौता कर लें-

 

 बहुवचनी हो पाप भले ही किंतु प्रीति का एकवचन है।

*

मैं कदंब की नमीत डाल सा सुधियों की जमुना के जल में।

देख रहा हूं विकल्प तृप्ति को अनुबंधों के कोलाहल में।

 

आशय  का अपहरण अभी तक

कर लेता खुद ही लेकिन

 

 विश्वासों के बिंब विसर्जित आकांक्षा के अक्षत-क्षत हैं रूप शशि का सिंधु समेंटे  सम्मोहन हत लोचन लत हैं। दृष्टि क्षितिज में तुम ही तुम हो दरस की जैसे वृंदावन हैं ।

 

नील झील से नयन तुम्हारे

जल पाखी सा मेरा मन है।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 94 – “कालजयी-आराधन…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – “कालजयी-आराधन …”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 94 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || “कालजयी-आराधन”|| ☆

क्या -क्या सम्हालते

 

कितनी ही यादों के-

विनती-फरियादों के

पाँवों में लगे – लगे

सूख गये आलते

 

रीत गये संसाधन कालजयी आराधन

वक्ष की उठानों के

बिम्ब कई सालते

 

घुँघराले बालों के

इतर रखे आलों के

पूरब के राग सभी

पश्चिम में ढालते

 

कंगन पानी -पानी

चिन्तित है रजधानी

और क्या नया किस्सा

आँखों में पालते

 

शीशे के बने हुये

चंदोबे तने हुये

परदों में रेशम की

डोर कभी डालते

 

रानी पटरानी सब

लाल हरी धानी सब

सहम गई शाम कहीं

दीपक को बालते

 

चित्त के चरित्र सभी

अपनो के मित्र सभी

तसवीरों में शायद

खुदको सम्हालते

 

भोर क्या हुई सहमी

ठहरी गहमा -गहमी

दूर नहीं हो पाये

आपके मुगालते

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

12-06-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कविता # 141 ☆ रिकवरी और ‘गुड़ -गुलगुले’ ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी  की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है आपका एक अविस्मरणीय एवं विचारणीय संस्मरण रिकवरी और ‘गुड़ -गुलगुले’”।)  

☆ संस्मरण  # 141 ☆ रिकवरी और ‘गुड़ -गुलगुले’ ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

प्रमोशन होकर जब रुरल असाइनमेंट के लिए एक गांव की शाखा में पोस्टिंग हुई,तो ज्वाइन करते ही रीजनल मैनेजर ने रिकवरी का टारगेट दे दिया, फरमान जारी हुआ कि आपकी शाखा एनपीए में टाप कर रही है और पिछले कई सालों से राइटआफ खातों में एक भी रिकवरी नहीं की गई, इसलिए इस तिमाही में राइट आफ खातों एवं एनपीए खातों में रिकवरी करें अन्यथा कार्यवाही की जायेगी ।

ज्वॉइन करते ही रीजनल मैनेजर का प्रेशर, और रिकवरी टारगेट का तनाव। शाखा के राइट्सआफ खातों की लिस्ट देखने से पता चला कि शाखा के आसपास के पचासों गांव में आईआरडीपी (IRDP – Integrated Rural Development Programme – एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम) के अंतर्गत लोन में दिये गये गाय भैंसों के लोन में रिकवरी नहीं आने से यह स्थिति निर्मित हुई थी। अगले दिन हम राइट्स आफ रिकवरी की लिस्ट लेकर एक गांव पहुंचे। कोटवार के साथ चलते हुए  एक हितग्राही रास्ते में टकरा गया।  हितग्राही  गुड़ लेकर जा रहा था, कोटवार ने बताया कि इनको आपके बैंक से दो गाय दी गईं थी। हमने लिस्ट में उनका नाम खोजा और उनसे रिक्वेस्ट की आज किसी भी हालत में आपको लोन का थोड़ा बहुत पैसा जमा करना होगा।

….हम लोग वसूली  के लिए दर बदर चिलचिलाती धूप  में भटक रहे है और आप गुड -गुलगुले खा रहा है ….बूढा बोला …बाबूजी गाय ने  बछड़ा  जना  है गाय के लाने सेठ जी से दस रूपया मांग के 5 रु . का गुड  लाये है…. जे  5 रु. बचो  है लो जमा कर लो …..

लगा ..किसी ने जोर से तमाचा जड़ दिया हो, अचानक रीजनल मैनेजर की डांट याद आ गई, मन में तूफान उठा, रिकवरी के पहले प्रयास में पांच रुपए का अपमान नहीं होना चाहिए, पहली ‘बोहनी’ है और हमने उसके हाथ से वो पांच रुपए छुड़ा लिए …..

बूढ़े हितग्राही ने कातर निगाहों से देखा, हमें दया आ गई, कपिला गाय और बछड़े को देखने की इच्छा जाग्रत हो गई, हमने कहा – दादा हम आपके घर चलकर बछड़ा देखना चाहते हैं। कोटवार के साथ हम लोग हितग्राही के घर पहुंचे, कपिला गाय और उसके नवजात बछड़े को देखकर मन खुश हो गया, और हमने जेब से पचास रुपए निकाल कर दादा के हाथ में यह कहते हुए रख दिए कि हमारी तरफ से गाय को पचास रुपए का और गुड़ खिला देना, और हम वहां से अगले डिफाल्टर की तलाश में सरक लिए …..

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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