डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका एक अप्रतिम गीत – नील झील से नयन तुम्हारे…।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 92 – गीत – नील झील से नयन तुम्हारे…✍

नील झील से नयन तुम्हारे

जल पांखी सा मेरा मन है।

 

संशय की सतहों पर तिरते  जलपांखी का मन अकुलाया। संकेतों के बेहद देखकर

नील-झील के तट तक आया।

 

 दो  झण हर तटवर्ती को लहर नमन करती है लेकिन-

 

 गहराई का गांव अजाना मजधारों के द्वार बंद है ।

शव सी ठंडी हर घटना पर अभियोजन के आगिन छंद है।

संबंधों की सत्य कथा को

इष्ट तुम्हारा संबोधन है।

*

 कितनी बार कहा- मैं हारा लेकिन तुम अनसुनी किए हो। डूब डूब कर उतर आता हूं संदेशों की सांस दिए हो।

 

वैसे तो संयम की  सांकल चाहे जब खटका दूं लेकिन-

कूला कूल लहरों पर क्या वश जाने कब तटस्थता वर ले। वातावरण शरण आया है -एक सजल समझौता कर लें-

 

 बहुवचनी हो पाप भले ही किंतु प्रीति का एकवचन है।

*

मैं कदंब की नमीत डाल सा सुधियों की जमुना के जल में।

देख रहा हूं विकल्प तृप्ति को अनुबंधों के कोलाहल में।

 

आशय  का अपहरण अभी तक

कर लेता खुद ही लेकिन

 

 विश्वासों के बिंब विसर्जित आकांक्षा के अक्षत-क्षत हैं रूप शशि का सिंधु समेंटे  सम्मोहन हत लोचन लत हैं। दृष्टि क्षितिज में तुम ही तुम हो दरस की जैसे वृंदावन हैं ।

 

नील झील से नयन तुम्हारे

जल पाखी सा मेरा मन है।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

1 Comment
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
डॉ भावना शुक्ल

बेहतरीन अभिव्यक्ति