श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 37 – मनोज के दोहे

यश-अपयश की डोर है, हर मानव के हाथ।

जितना उसे सहेजता, प्रतिफल मिलता साथ।।

 

जीवन कैसा जी रहे, मिलकर करो विचार

लोक और परलोक में, मिलें पुष्प के हार।।

 

हमसे अच्छा कौन है, करो न यह अभिमान

कूएँ का मेंढक सदा, रखे यही बस शान।।

 

सच्चा साथी मन बने, समझो नहीं अनाथ।

निर्भय होकर तुम बढ़ो, हरदम मिलता साथ।।

 

चलो समय के साथ में, समय बड़ा अनमोल।

गुजरा समय न लौटता, ज्ञानी जन के बोल।।

 

राह चुने अच्छी सदा,  जीवन में है भोर।

गलत राह में जब बढ़े, तम का बढ़ता शोर ।।

 

दिखे जगत में बहुत हैं, भाँति-भाँति के लोग।

तृप्त पेट को ही भरें, मिलता मोहन-भोग।।

 

अकड़ दिखाते जो बहुत, पागल हैं वे लोग।

विनम्र भाव से जो जिएँ, घेरे कभी न रोग।।

 

चलो आपके साथ हैं, कदम बढा़ते साथ।

सच्चा रिश्ता है वही, थामे सुख दुख हाथ।।

 

मन-मंदिर में राम हों, रक्षक तब हनुमान।

सीता रूपी शांति से, सुखद-सुयश धनवान।।

 

रामराज्य का आसरा, राजनीति की डोर।

देख पतंगें गगन में, पकड़ न पाते छोर।।

 

अनुभव कहता है यही, दुख में जो दे साथ।

रिश्ता सच्चा है वही, कभी न छोड़ें हाथ।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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