(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है “भावना के दोहे”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 160 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे – हनुमान जी का लंका गमन /सीता की खोज – 1 ☆
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है “संतोष के दोहे ”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ गीत ऋग्वेद – मण्डल १ – सूक्त १० (इंद्र सूक्त) ☆ डाॅ. निशिकांत श्रोत्री ☆
ऋग्वेद – मण्डल १ – सूक्त १० ( इंद्र सूक्त )
ऋषी – मधुछंदस् वैश्वामित्र : देवता – इंद्र
मधुछन्दस वैश्वामित्र ऋषींनी पहिल्या मंडळातील दहाव्या सूक्तात इंद्र देवतेला आवाहन केलेले आहे. त्यामुळे हे सूक्त इंद्रसूक्त म्हणून ज्ञात आहे. याच्या गीतरूप भावानुवादाच्या नंतर दिलेल्या लिंकवर क्लिक केले म्हणजे हे गीत ऐकायलाही मिळेल आणि त्याचा व्हिडीओ देखील पाहता येईल.
मराठी भावानुवाद : डॉ. निशिकांत श्रोत्री
गाय॑न्ति त्वा गाय॒त्रिणोऽ॑र्चन्त्य॒र्कम॒र्किणः॑ ।
ब्र॒ह्माण॑स्त्वा शतक्रत॒ उद्वं॒शमि॑व येमिरे ॥ १ ॥
☆
गायत्रीतुन भक्त उपासक तुझेच यश गाती
अर्कस्तोत्र रचुनी ही अर्कअर्चनेस अर्पिती
पंडित वर्णित तुझीच महती तुझेच गुण गाती
केतनयष्टी सम ते तुजला उच्च स्थानी वसविती ||१||
☆
यत्सानोः॒ सानु॒मारु॑ह॒द्भूर्यस्प॑ष्ट॒ कर्त्व॑म् ।
तदिन्द्रो॒ अर्थं॑ चेतति यू॒थेन॑ वृ॒ष्णिरे॑जति ॥ २ ॥
☆
भक्त भटकला नगानगांच्या शिखरांवरुनीया
अगाध कर्तृत्वा इंद्राच्या अवलोकन करण्या
भक्ती जाणुनि वर्षाधिपती प्रसन्न अति झाला
सवे घेउनीया लवाजमा साक्ष सिद्ध झाला ||२||
☆
यु॒क्ष्वा हि के॒शिना॒ हरी॒ वृष॑णा कक्ष्य॒प्रा ।
अथा॑ न इन्द्र सोमपा गि॒रामुप॑श्रुतिं चर ॥ ३ ॥
☆
घन आयाळी वर्षादायक अश्व तुझे बहु गुणी
धष्टपुष्ट देहाने त्यांच्या रज्जू जात ताठुनी
जोडूनिया बलशाली हयांना रथास आता झणी
प्रार्थनेस अमुच्या ऐकावे सन्निध रे येउनी ||३||
☆
एहि॒ स्तोमा॑ँ अ॒भि स्व॑रा॒भि गृ॑णी॒ह्या रु॑व ।
ब्रह्म॑ च नो वसो॒ सचेन्द्र॑ य॒ज्ञं च॑ वर्धय ॥ ४ ॥
☆
अमुचि आर्जवे सवे प्रार्थना ऐका धनेश इंद्रा
प्रसन्न होऊनी प्रशंसून त्या त्यासि म्हणा भद्रा
अमुची अर्चना स्वीकारा व्हा सिद्ध साक्ष व्हायला
यज्ञा अमुच्या यशप्राप्तीचे आशीर्वच द्यायला ||४||
☆
उ॒क्थमिन्द्रा॑य॒ शंस्यं॒ वर्ध॑नं पुरुनि॒ष्षिधे॑ ।
श॒क्रो यथा॑ सु॒तेषु॑ णो रा॒रण॑त्स॒ख्येषु॑ च ॥ ५ ॥
☆
ऐका याज्ञिक ऋत्वीजांनो इंद्रस्तोत्र गावे
सर्वश्रेष्ठ ते सर्वांगीण अन् परिपूर्ण ही असावे
सखेसोयरे पुत्रपौत्र हे असिम सुखा पावावे
देवेंद्राच्या कृपादृष्टीने धन्य कृतार्थ व्हावे ||५||
☆ सात सुरांची साथ नव्यांची… ☆ श्री नंदकुमार पंडित वडेर ☆
… तू जो मेरे सुर मे सुर मिलाके, संग गाले, तो जिंदगी हो जाए सफल… सा रे ग म प ध..नी सा… ये म्हणा कि गं तुम्ही पण माझ्या बरोबर.सात सुरांची साथ नव्याची ऑडिशनला आपल्याला उदया जायचयं! आहेना लक्षात? आपल्या सातही जणींची फायनला निवड पक्की होणारच.केशरबाई तू काळी दोन मधे सुरु करशील.पिवळाक्का तुम्ही काळी चार घ्या बरं. उदयाचा विठूचा गजर टिपेला न्या. तुम्ही दोघी करडू दिदी यमनचा षड्ज द्रुतलयीत लावाल. मी आणि ग्रे ताई मालकंस नि भैरवी ने मंद्र सप्तकात सांगता करू.
…परिक्षक कोणी असले तरी आपण घाबरायचं नाही. घाबरायचं त्यांनी आपल्याला. एक सुरात म्याँव म्याँव करून त्यांना सळो कि पळो करु.पायात घुटमळत राहू.तोंड पुसत पुसत त्यांना आपली निवड करायला भाग पाडू.नाहीतर अंगावर फिस्कारुन येउ म्हणावं हि धमकी देऊ.आमच्या शिवाय स्पर्धा होणे नाही!आम्ही नसलो तर स्पर्धा उधळून लावू. इतकंच नाही तर विजेते आमच्यातलेच असतील.बाहेरचा कुणी दिसलाच तर स्पर्धेत फिक्सिंग झाले असण्याचा संशयाचा धुरळा मेडियात उडवू देउ अशी तंबीच त्यांना देउ या; आणि आपले सगळेच नंबर आले तर स्पर्धा खेळी मेळीत निकोप वातावरणात झाली,उदयाच्या नव्या गायकांना प्रोत्साहन प्रेरणा अश्या स्पर्धेतून मिळते,म्हणून अश्या स्पर्धा सतत होणं गरजेचे आहे असं मेडियाला मुलाखत देताना तोंड फुगवून सांगूया.यातूनच जे आयोजक, ठेकेदार यांचे उखळ कायम पांढरे होत जाईल. टीआरपी वाढला कि स्पर्धेचे एपिसोड वाढतील.चॅनेल वाल्यांची चांदी आणि नव्या गायकांची एक्सपोजरची नांदी होईल.तेव्हा उदया
“… सारे के सारे गा मा के लेकर गाते चले….” कोरस हम साथ साथ मे म्हणू या… “
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जीद्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “साध्य और साधन”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।
आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 128 ☆
☆ साध्य और साधन☆
एक – एक कदम चलते रहने से कई कदम जुड़ने लगते हैं। स्वाभाविक है कि जब अच्छे उद्देश्य को लेकर कोई यात्रा हो तो परिणाम सुखद होंगे।कहते हैं कि केवल किताबी ज्ञान से कुछ नहीं होगा जब तक धरातल पर उतरकर उसे जीवन की प्रयोगशाला में सिद्ध न किया जाए। सनातन धर्म में यही खूबी है कि सब कुछ वैज्ञानिकता की कसौटी पर कसा जा चुका है, ये बात अलग है कि पश्चिमी विज्ञान उसे आज मान्यता दे रहा है। हमारे यहाँ तो नदियों की पंचकोशी परिक्रमा का भी अनुष्ठान होता है। नर्मदा नदी की तो सम्पूर्ण परिक्रमा की जाती है। हरियाली से भरा परिवेश, जन – जीवन- जंगल- जमीन से जुड़कर जनमानस एक दूसरे का सहयोग करना सीख जाता है। नर्मदा किनारे बसे गाँवो के लोग अन्न क्षेत्र का निर्माण करते हैं। सामान्य परिवार भी किसी परिक्रमा वासी को भूखा नहीं रहने देते। आज के समय में जब लोग पाई- पाई का हिसाब रखते हैं तब भी कुछ स्थान ऐसे हैं जो खुले दिल से सम्मान करना और कराना जानते हैं।
यही तो यात्रियों और यात्राओं की खूबी है कि वो हर परिस्थिति, जलवायु में जीना जानते हैं। जो आनन्द पैदल चलने में है वो वाहन की सवारी में नहीं, लोग जब आपसे मिलने आते हों तो विशिष्टता का अहसास होता है और यही जीने की वजह बन जाता है। ऐसे में लक्ष्य को साधना सरल लगने लगता है। हाथों में हाथ लेकर चलते हुए मन ये कहने लगता है अब मंजिल दूर नहीं।
सब कुछ सहजता से मिल सकता है बस नियत सच्ची होनी चाहिए। बिना योग्य हुए यदि मंजिल तक पहुँच भी गए तो भी वहाँ टिक नहीं सकते हैं। जब तक मनुष्य का सर्वांगीण विकास नहीं होगा तब तक पाना- खोना चलता रहेगा। सबको साथ लेने की कला बहुत जरूरी होती है,जब तक मानव मन की समझ नहीं होगी तब तक साध्य असाध्य रोग की तरह पीछा करता रहेगा।
खैर चलते हुए लोग, उड़ते हुए पंछी, तैरती हुई मछली, हरा- भरा जंगल, कल- कल करती नदियाँ अच्छी लगतीं हैं।
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक विचारणीय व्यंग्य – रुपए का डालर में मेकओवर।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 181 ☆
व्यंग्य – रुपए का डालर में मेकओवर
मेकओवर का बड़ा महत्व होता है। सोकर उठते ही मुंह धोकर कंघी कर लीजिए कपड़े ठीक कीजीए, डियो स्प्रे कर लीजिए फ्रेश महसूस होने लगता है। महिलाओं के लिए फ्रेशनेस का मेकओवर थोडी लंबी प्रक्रिया होती है, लिपस्टिक, पाउडर, परफ्यूम आवश्यक तत्व हैं। ब्यूटी पार्लर में लड़की का मेकओवर कर उसे दुल्हन बना दिया जाता है। एक से एक भी बिलकुल बदली बदली सी लगने लगती हैं। दुल्हन के स्वागत समारोह के बाद बारी आती है ससुराल में बहू के मेकओवर की। सास, ननदे उसे गृहणी में तब्दील करने में जुट जाती हैं। शनैः शनैः गृहणी से पूरी तरह पत्नी में मेकओवर होते ही, पत्नी पति पर भारी पड़ने लगती है।
हर मेकओवर की एक फीस होती है। ब्यूटी पार्लर वह फीस रुपयों में लेता है। पर कहीं त्याग, समर्पण, अपनेपन, रिश्ते की किश्तों में फीस अदा होती है।
एक राजनैतिक पार्टी से दूसरी में पदार्पण करते नेता जी गले का अंगोछा बदल कर नए राजनैतिक दल का मेक ओवर करते हैं। यहां गरज का सिद्धांत लागू होता है, यदि मेकओवर की जरूरत आने वाले की होती है तो उसे फीस अदा करनी होती है, और अगर ज्यादा आवश्यकता बुलाने वाले की है तो इसके लिए उन्हें मंत्री पद से लेकर अन्य कई तरह से फीस अदा की जाती है। नया मेकओवर होते ही नेता जी के सिद्धांत, व्यापक जन हित में एकदम से बदल जाते हैं। विपक्ष नेता जी के पुराने भाषण सुनाता रह जाता है पर नेता जी वह सब अनसुना कर विकास के पथ पर आगे बढ़ जाते हैं।
स्कूल कालेज कोरे मन के बच्चों का मेकओवर कर, उन्हें सुशिक्षित इंसान बनाने के लिए होते हैं। किंतु हुआ यह कि वे उन्हें बेरोजगार बना कर छोड़ देते, इसलिए शिक्षा में आमूल परिवर्तन किए जा रहे हैं , अब केवल डिग्री नौकरी के मेकओवर के लिए अपर्याप्त है। स्किल, योग्यता और गुणवत्ता से मेकओवर नौकरी के लिए जरूरी हो चुके हैं। अब स्टार्ट अप के मेकओवर से एंजल इन्वेस्टर आप के आइडिये के लिए करोड़ों इन्वेस्ट करने को तैयार हैं।
पिछले दिनों हमारा अमेरिका आना हुआ, टैक्सी से उतरते तक हम जैसे थे, थे। पर एयरपोर्ट में प्रवेश करते हुए अपनी ट्राली धकेलते हम जैसे ही बिजनेस क्लास के गेट की तरफ बढ़े, हमारा मेकओवर अपने आप कुछ प्रभावी हो गया लगा। क्योंकि हमसे टिकिट और पासपोर्ट मांगता वर्दी धारी गेट इंस्पेक्टर एकदम से अंग्रेजी में और बड़े अदब से बात करने लगा।
बोर्डिंग पास इश्यू करते हुए भी हमे थोड़ी अधिक तवज्जो मिली, हमारा चेक इन लगेज तक कुछ अधिक साफस्टीकेटेड तरीके से लगेज बेल्ट पर रखा गया। लाउंज में आराम से खाते पीते एन समय पर हैंड लगेज में एक छोटा सा लैपटाप बैग लेकर जैसे ही हम हवाई जहाज में अपनी फ्लैट बेड सीट की ओर बढ़े सुंदर सी एयर होस्टेस ने अतिरिक्त पोलाइट होकर हमारे कर कमलों से वह हल्का सा बैग भी लेकर ऊपर डेक में रख दिया, हमे दिखा कि इकानामी क्लास में बड़ा सा सूटकेस भी एक पैसेंजर स्वयं ऊपर रखने की कोशिश कर रहा था। बिजनेस क्लास में मेकओवर का ये कमाल देख हमें रुपयों की ताकत समझ आ रही थी।
जब अठारह घंटे के आराम दायक सफर के बाद जान एफ केनेडी एयरपोर्ट पर हम बाहर निकले, तब तक बिजनेस क्लास का यह मेकओवर मिट चुका था, क्योंकि ट्राली लेने के लिए भी हमें अपने एस बी आई कार्ड से छै डालर अदा करने पड़े, रुपए के डालर में मेकओवर की फीस कटी हर डालर पर कोई 9 रुपए मात्र। हमारे मैथ्स में दक्ष दिमाग ने तुरंत भारतीय रुपयों में हिसाब लगाया लगभग पांच सौ रुपए मात्र ट्राली के उपयोग के लिए। हमें अपने प्यारे हिंदोस्तान के एयर पोर्ट याद आ गए कहीं से भी कोई भी ट्राली उठाओ कहीं भी बेतरतीब छोड़ दो एकदम फ्री। एकबार तो सोचा कितना गरीब देश है ये अमरीका भला कोई ट्राली के उपयोग करने के भी रुपए लेता है ? वह भी इतने सारे, पर जल्दी ही हमने टायलेट जाकर इन विचारों का परित्याग किया और अपने तन मन का क्विक मेकओवर कर लिया। जैकेट पहन सिटी बजाते रेस्ट रूम से निकलते हुए हम अमेरिकन मूड में आ गए। तीखी ठंडी हवा ने हमारे चेहरे को छुआ, मन तक मौसम का खुशनुमा मिजाज दस्तक देने लगा। एयरपोर्ट के बाहर बेटा हमे लेने खड़ा था, हम हाथ हिलाते उसकी तरफ बढ़ गए।
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जीका हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य” के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है पुरस्कृत पुस्तक “चाबी वाला भूत” की शीर्ष बाल कथा –“भ्रष्टाचार की सजा”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 127 ☆
☆ लघुकथा – “भ्रष्टाचार की सजा” ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆
अखबार हाथ में लेते ही उसे वह पल याद याद आ गया जब वह कलेक्टर साहब के पास गया था।
“क्यों भाई दो लाख रुपए की रिश्वत मांगी और मुझे पता भी नहीं चला!”
“सरजी! वह क्या है ना, आप का भी हिस्सा था उसमें।”
“मगर दो लाख रुपए क्यों मांगे? इसीलिए उसने शिकायत की और अखबार में भी दे दिया- ‘रजिस्ट्रार ने रजिस्ट्री पर रोक लगाई! भ्रष्टाचार में मांगे दो लाख’ “
“सरजी वह पाँच करोड रुपए लेकर सरकार रेट पर जमीन की पच्चीस लाख रुपए में रजिस्ट्री करवा रहा था। कम से कम इतना तो हमारा हक बनता है।”
“मगर शिकायत हुई तो तुम्हें सजा जरूर मिलेगी,” जैसे कलेक्टर साहब ने कहा तो उसका हाथ ब्रीफकेस पर मजबूती से कस गया। मगर दूसरे ही पल उसने ना जाने क्या सोचकर भी ब्रीफकेस पर पकड़ ढीली करके उसे साहब के घर पर ही छोड़ दिया।
यह स्मृति में आते ही उसने अखबार का पन्ना खोला। पहले पृष्ठ पर खबर छपी थी। ‘भ्रष्ट रजिस्टार का इंदौर स्थानांतरण”।
यह पढ़ते ही उसके चेहरे पर धीरे-धीरे मुस्कान फैलती गई।
(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी की अब तक 122 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’(धनराशि ढाई लाख सहित)। आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।
आप “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)