हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – कविता… ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि –  कविता… ? ?

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बघार लगाकर

रचें एवरग्रीन कविता,

लंबे समय

चर्चा में रहेगी

ये कविता;

शोध का विषय

बनेगी ये कविता,

प्रगतिशील और

नवोन्मेषवादी

कहलायेगी

ये कविता,

हो सकता है

ऐसा होता हो,

कोई बता रहा था

ऐसा ही होता है,

पर ये सब लागू है

उन पर

जिनके लिए

कमॉडिटी है कविता,

खरीद-फरोख्त

चर्चित होने की

रेमेडी है कविता,

अलबत्ता-

मैं ऐसा हरगिज़

नहीं कर सकता

पयपान को विषाक्त

नहीं कर सकता,

मेरे लिए

निष्पाप, अबोध

अनुभूति है कविता,

पवित्र संवेदना की

अभिव्यक्ति है कविता,

मेरी आराधना है कविता

मेरी साधना है कविता,

मेरी आह है कविता

मेरी माँ है कविता!

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 श्री हनुमान साधना – अवधि- मंगलवार दि. 23 अप्रैल से गुरुवार 23 मई तक 💥

🕉️ श्री हनुमान साधना में हनुमान चालीसा के पाठ होंगे। संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही। मंगल भव 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ नजर उठा के गुनहगार जी न पायेगा…… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “नजर उठा के गुनहगार जी न पायेगा“)

✍ नजर उठा के गुनहगार जी न पायेगा… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

निगाह से न गिराना भले फ़ना कर दो

अगर नहीं है मुहब्बत उसे ज़ुदा कर दो

 *

किसी गिरे को कभी लात मत लगाना तुम

बने अगर जो ये तुमसे तो कुछ भला कर दो

 *

नजर उठा के गुनहगार जी न पायेगा

मुआफ़ उसकी अगर दिल से तुम  ख़ता कर दो

 *

कफ़स की कैद में दम घुट रहा परिंदे का

वो नाप लेगा फ़लक बस उसे रिहा कर दो

 *

अभी तलक मैं जिया सिर्फ खुद की ही खातिर

किसी के काम भी आऊ मुझे ख़ुदा कर दो

 *

लगा ज़हान बरगलाने सौ जतन करके

झुके ख़ुदा न कभी यूँ मेरी अना कर दो

 *

अरुण नसीब का लिख्खा नहीं मिले यूँ ही

उठो तो दस्त से कुछ काम भी बड़ा कर दो

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ मिशन शक्ति ☆ श्रीमति उषा रानी ☆

श्रीमति उषा रानी

(ई-अभिव्यक्ति में साहित्यकार एवं शिक्षिका श्रीमति उषा रानी जी का स्वागत है। बालिका शिक्षा एवं नारी सशक्तिकरण सम्मान से सम्मानित। अनेकों साहित्यिक एवं ऑनलाइन सोशल मीडिया मंचो पर काव्य पाठ। प्रतिष्ठित पत्रिकाओं एवं साझा काव्य संकलनों में कई कवितायें प्रकाशित। एक काव्य संग्रह शीघ्र प्रकाश्य। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता मिशन शक्ति।)

☆ मिशन शक्ति… ☆ श्रीमति उषा रानी

घर-घर जा संदेश पहुॅंचाऍं,

बाल अधिकार से परिचय कराऍं।

सुरक्षा संरक्षण का ज्ञान कराकर,

हेल्पलाइन नंबर प्रयोग कराऍं।।

*

यौन शोषण की पहचान कराऍं,

अपराध पर अब  रोक लगाऍं।

पोक्सो एक्ट कानून लगाकर,

शीघ्र अपराधी को सजा कराऍं।।

*

बाल विवाह एक अपराध है,

जन जागरण अभियान चलाऍं।

बेटियों को शिक्षित कर,

भविष्य सुनहरा बनाऍं।।

*

अभिभावक बैठक कराऍं,

सामाजिक मंच को सुदृढ़ बनाऍं।

मिशन शक्ति के कार्यों से,

नारी को सम्मानित कराऍं।।

*

© श्रीमति उषा रानी (स०अ०)

संपर्क – एफ 224, गंगा नगर, मेरठ, मो नं – 9368814877, ईमेल – – [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 51 – साक्षात् भगवान हो गया… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – साक्षात् भगवान हो गया।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 51 – साक्षात् भगवान हो गया… ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

अपना लक्ष्य समान हो गया 

कठिन सफर, आसान हो गया

*

तुमको पाया, मेरे दिल का 

पूरा, हर अरमान हो गया

*

बाँहों में भर लिया तुम्हें जब

स्वतः, शांत तूफान हो गया

*

प्यार भरा, तेरा खत आया 

जीने का सामान हो गया

*

तुमने जो चख लिया जरा-सा 

मीठा हर पकवान हो गया

*

जब तुमने, मुझको अपनाया 

वह पल, स्वर्ग समान हो गया

*

जो, गर्दिश में बना सहारा 

साक्षात् भगवान हो गया

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 127 – सजल – बदल गया है आज जमाना ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “सजल – बदल गया है आज जमाना। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 127 – सजल – बदल गया है आज जमाना ☆

समांत – आह

पदांत – कीजिए

मात्रा भार – सोलह

उर से कभी न आह कीजिए।

उमर गई अब वाह कीजिए ।।

 *

बदल गया है आज जमाना।

भेद-भाव का दाह कीजिए ।।

 *

चौथा-पन आया है द्वारे।

मिल-जुल सभी सलाह कीजिए।।

 *

माता नहीं कुमाता होती।

कर चिंता परवाह कीजिए।।

 *

जन्म दिया है जिनने तुमको।

उनसे प्यार अथाह कीजिए।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – डस्टबिन ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – डस्टबिन ? ?

क्रोध, आक्रोश

प्रेम, आवेश

भय, चिंता

पौरुष के सारे प्रवाहों का

‘डस्टबिन’ होती है औरत,

स्त्री विमर्शकों का

मंथन जारी था..,

असहाय होता है डस्टबिन

एकत्रित करता है कूड़ा

और दुर्गंध से सना रह जाता है,

सुनो-

विमर्शक नहीं हूँ मैं

किंतु

चिंतन में उठती हैं लहरें

माटी सोखती है

सारा चुका हुआ

सारा हारा हुआ,

माटी देती है

हर बीज को

अपनी उष्मा

अपना पोषण,

बीज उल्टा पड़ा हो या सीधा

टेढ़ा या मेढ़ा

आम का हो

या बबूल का,

सारे विमर्शों से परे

माटी अँकुआती है जीवन

धरती को करती है हरा

धरती को रखती है हरा

हरापन-

प्राणवान होने का प्रमाण है,

माटी फूँकती है प्राण

मित्रो!

स्त्री माटी होती है

और दुनिया के

किसी भी शब्दकोश में

माटी का अर्थ

‘डस्टबिन’ नहीं होता।

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 श्री हनुमान साधना – अवधि- मंगलवार दि. 23 अप्रैल से गुरुवार 23 मई तक 💥

🕉️ श्री हनुमान साधना में हनुमान चालीसा के पाठ होंगे। संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही। मंगल भव 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ अभी अभी # 354 ⇒ बैंकर्स और व्यंग्य… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक कविता – “बैंकर्स और व्यंग्य।)

?अभी अभी # 354 ⇒ बैंकर्स और व्यंग्य? श्री प्रदीप शर्मा  ?

बैंकिंग मतलब

दिमाग़ का दही !

जमा-नामे, ब्याज-बट्टा

नहीं कोई

हँसी ठट्टा।

साहूकार हो

हट्टा कट्टा।।

जो ब से बैंक

लिख मारे

वही इस                                                                                               

दिमाग के दही

की

लस्सी बना डाले।।

 

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 187 – सुनो माधवी… ☆ स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण कविता – सुनो माधवी।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 187 – सुनो माधवी✍

नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य)

आह! माधवी

तुम्हारी कथा

व्यथा

वेधती है

हृदय।

अवसाद से भर उठते हैं

प्राण

मन।

तिलमिलाती है

चेतना।

होता हूँ

लज्जावनत

और दुःखी।

घेर लेता है

एक नपुंसक आवेश!

तपःपूत ऋषियों

और दानवीर, योद्धा

नरेशों के नाम,

मुँह में घोलते हैं

कड़वाहट

और सबसे अधिक

पीड़ित करता है

तुम्हारा

अनुर्वर मौन।

प्रश्न है

तुम

नारी, नदी या पाषाणी हो

माधवी ?

© डॉ राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 188 – “अपने जीवित होने की…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत  “अपने जीवित होने की...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 188 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “अपने जीवित होने की...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

छोटी मलकिन के विवाह की

वही दहेज रही

जो घर के कोने में बैठी

टुटही मेज रही

 

घरकी अम्माने उस पर थे

पापड़ बेले भी

रखती आयी थी गृह स्वामिन

गरम तबेले भी

 

अपने जीवित होने की

ध्वनि करती बरसों से

जो अब उम्रदराज बनी

संदेशा भेज रही

 

बेशक शिशु किशोर सब

इस पर अबतक सोये हैं

अपने चिन्तन बीज जिहोने

प्रमुदित बोये हैं

 

गोया यह  पूरे घर की

सन्तानों की सुखकर

हिलती डुलती चींची

करती मधुरिम सेज रही

 

मेहमानों का प्रीति भोज

इसपर होता आया

तृप्ति और संतोष सहजता

की स्वर्णिम माया

 

इस घर के इति वृत्त कथन का

सुभग समन्वय है

दम्भऔर मिथ्यादर्शों का

जो  परहेज रही

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

25-04-2024

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अन्नपूर्णा ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – अन्नपूर्णा ? ?

खरी दुनिया की

किसी भाषा का कोई शब्द

नहीं लिख पायेगा

वह भाव

जो देखा मैंने

अपने नवजात शावकों

के साथ

अलसाई पड़ी

बकरी की आँखों में,

इन शावकों का बीजारोपण

करनेवाले नर साथी

के अंत से अज्ञात नहीं है वह,

इन्हें, इनसे पहले और

इनके बाद जने जानेवाले शावकों

विशेषकर नर शावकों का भविष्य

उसकी पुतली की कोर में दबे

ललिया गये आतंक में दीखता है,

तब भी निरंतर जनती है

वह शावक

तन में प्राण रहने या

जनने की क्षमता समाप्ति पर

उसी अंत पर पहुँचने तक,

मनुष्यो और मनुष्यों की संतानो!

मुझे दिखता है दृश्य

स्वर्ग से उतरते

उस उड़नखटोले का

जो निश्चित ही

नहीं भेजा गया है

मेरे-तुम्हारे-हमारे या

हम में से किसी के लिए,

ये भेजा गया है

उस बकरी के लिए

जो मेरे-तुम्हारे-हमारे लिए

आजीवन बनी रही अन्नपूर्णा,

और

अन्नपूर्णा का स्वर्ग जाना

किसी भी पंथ में

वर्जित नहीं है!

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 श्री हनुमान साधना – अवधि- मंगलवार दि. 23 अप्रैल से गुरुवार 23 मई तक 💥

🕉️ श्री हनुमान साधना में हनुमान चालीसा के पाठ होंगे। संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही। मंगल भव 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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