हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 71 ☆ सफ़र ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं ।  सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण कविता “सफ़र ”। )

आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –

यूट्यूब लिंक >>>>   Neelam Saxena Chandra

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 71 ☆

सफ़र ☆

आँखों के आगे एक कोहरा-

न आगे नज़र आता था, न पीछे;

एक गाड़ी में बैठी हुई

बस किसी और गाड़ी के पीछे-पीछे

धीमी-धीमी रफ़्तार में

ज़िंदगी चल रही थी…

 

कुछ उतावलापन था

मंजिल तक पहुँचने का,

कुछ छटपटाहट थी

वक़्त ज़्यादा लगने की,

कुछ डर था

कि आगे की गाड़ी का साथ

छूट न जाए,

कुछ उत्सुकता थी

कि सफ़र का अंत कैसा होगा…

 

उस उतावलेपन, छटपटाहट, डर और उत्सुकता ने

बदल दी मेरी सोच की धारा

और एक डरी हुई मैना की तरह मैं

सिमट गयी ख़ुद ही मैं…

 

कहाँ जानती थी

कि आगे वाली गाड़ी को शायद

ख़ुद ईश्वर का आशीर्वाद था,

और मेरे भीतर भी

एक ईश्वर था!

 

जब से यह राज़ खुला है,

हो गयी हूँ बेफिक्र और मस्मौला,

और उडती हूँ अपने ख्यालों के आसमान में

किसी बाज़-सी!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – दृष्टि ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि –  दृष्टि ?

मौसम तो वही था,

यह बात अलग है

तुमने एकटक निहारा

स्याह पतझड़,

मेरी आँखों ने चितेरे

रंग-बिरंगे वसंत,

बुजुर्ग कहते हैं,

देखने में और

दृष्टि में

अंतर होता है।

 

(माँ सरस्वती का अनुग्रह हम सबमें देखने को दृष्टि में बदलने वाली शारदीयता सदा जागृत रखे। शारदा पूजन एवं वसंतपंचमी का अभिवादन स्वीकार करें।)

©  संजय भारद्वाज

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

9890122603

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ ‘एकाकार’… श्री संजय भरद्वाज (भावानुवाद) – ‘Union…’ ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.)

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi Poem “एकाकार”.  We extend our heartiest thanks to the learned author  Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit,  English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

श्री संजय भारद्वाज 

☆ संजय दृष्टि –  एकाकार ☆

बार-बार इशारा कर

वह बुलाती रही,

देख समझ कर भी

वह अनदेखा रहा,

एक-दूसरे के प्रति

असीम आकर्षण,

एक-दूसरे के प्रति

अबूझ भय,

धूप-छाँह सी

उनकी प्रीत,

अंधेरे-उजाले सी

उनकी रिपुआई,

वे टालते हैं मिलना

प्राय: सर्वदा

पर जितना टला

मिलन उतना अटल हुआ,

जब भी मिले

एकाकार अस्तित्व चुना,

चैतन्य, पार्थिव जो भी रहा

रहा अद्वैत सदा,

चाहे कितने उदाहरण

दे जग प्रेम-तपस्या के,

जीवन और मृत्यु का नेह

किसीने कब समझा भला!

©  संजय भारद्वाज

Union… ☆

Repeatedly gesticulating,

she kept on calling,

Even after seeing her

He feigned to be ignorant,

Infinite charm,

lethal attraction

kept pulling them

towards each other…

But, the unknown fear,

Kept them at bay…

 

Their lasting love

remained like

Scorching Sun and

the soothing shade

Their rancor kept nurturing

like the light and darkness…

 

They avoided meeting

As much as possible

Kept postponing their union

almost always…

But then, their union

became so inevitable,

However hard they

Chose to be singularly existent…

 

Dead or alive

Mortal or immortal

whoever lived

Always been monistic,

the advaita,

No matter

how many references

the world may quote

of love-penance,

But, who could ever understand

the amorous affinity between

the Life and death…!

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 79 – कविता – ऋतु बसंत ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत है माँ सरस्वती पूजन एवं  बसंत पंचमी पर्व पर आपकी विशेष रचना  “ऋतु बसंत। इस सामायिक रचना के लिए श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ जी की लेखनी को सादर नमन। ) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 79 ☆

? ऋतु बसंत ?

देखो आया बसंत बहार

प्रकृति ने किया सोलह श्रृंगार

सदियों से जाने यह बात

ऋतुएं भी मनाती हैं त्यौहार

 

उमड़ने लगा भाव अनुनय

बातों में होने लगी विनय

प्रेम मनुहार की सुंदर बेला

ऋतु बसंत का आया समय

देव ने किया मिलकर विचार

प्रकृति ने किया सोलह सिंगार

 

बसंत आते देख ऋतुराज

पहन लिया पुष्पों का ताज

वन उपवन सब झूम के गाए

झरनों से बजने लगे साज

धरा भी खुश हो रही निहार

प्रकृति ने किया सोलह श्रृंगार

 

कोयल कू के डाली डाली

तितलियां हो गई मतवाली

ऋतु बसंत ने ली अंगड़ाई

प्रेमी युगल सब डूबे ख्याली

अब ना कोई सुझे विचार

प्रकृति ने किया सोलह श्रृंगार

 

आमों में बौरै भी छाई

बसंत पंचमी झुम के आई

पीली चुनर सर पर ओढ़े

खेतों में सरसों खिलखिलाई

लेकर इनकी शोभा अपार

प्रकृति ने किया सोलह श्रृंगार

 

मानव मन हो गया आशातीत

हर दृश्य निर्मल नवीन पुनीत

उमंग   खिले अमलतास कनेर

भर उठा जीवन भरा संगीत

होने लगे सब सपने साकार

प्रकृति ने किया सोलह श्रृंगार

 

देख धरा की सुंदरता

मां नर्मदा बन सरिता

देवों की बढीं आतुरता

मां सरस्वती स्वयं विराजी

ले वीणा के मधुर झंकार

प्रकृति ने किया सोलह श्रृंगार

 

सदियों से जाने यह बात

ऋतुएं भी मनाती है त्यौहार

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.५२॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.५२॥ ☆

 

ब्रह्मावर्तं जनपदम अथ च्चायया गाहमानः

क्षेत्रं क्षत्रप्रधनपिशुनं कौरवं तद भजेथाः

राजन्यानां शितशरशतैर यत्र गाण्डीवधन्वा

धारापातैस त्वम इव कमलान्य अभ्यवर्षन मुखानि॥१.५२॥

फिर छांहतन ! जा वहां पार्थ ने की

जहाँ वाण वर्षा कुरुक्षेत्र रण में

नृपति मुख विवर में कि ज्यों हो तुम्हारी

सघन धार वर्षा कमल पुष्प वन में

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लेखनी सुमित्र की – दोहे ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  बसंत/वैलेंटाइन दिवस परआपके अप्रतिम दोहे।)

✍  लेखनी सुमित्र की – दोहे  ✍

प्रबल शक्ति है प्रेम की, चढ़ता रंग तुरंत।

वैलेंटाइन संत का, तन मन हुआ वसंत।।

 

वैलेंटाइन नाम का, चिंताजनक प्रयोग।

प्यार पड़ा बाजार में, चल निकला उद्योग।।

 

नहीं दिखावा प्यार है, प्यार न चालू गीत।

अनहद की हद लांघता, आत्मा का संगीत।।

 

प्यार शब्द में रूप है, रसवंती है गंध।

काव्य तत्व से युक्त यह, विधि का रचा निबंध।।

 

प्यार सदा ही ऊर्ध्वमुख, अधोमुखी है ज्वार।

तन्मयता की चंचलता, उपजाती है प्यार।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 37 – फिसल रहा अँधियारा… ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत “फिसल रहा अँधियारा… । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 37 ।। अभिनव गीत ।।

फिसल रहा अँधियारा…  ☆

सिमट चला फासला

तप्त-धूप-घाट का

झुका गई साँझ रौब

दिन के सम्राट का

 

सरक गई छाया कीं

अनगिन-किंवदंतियाँ

भूल चला दिन अपनी

परछाईं, गिनतियाँ

 

उघर चला बादल से

रिश्ता गुमनाम सा

जान सके न प्रभाव

इस समय-विराट का

 

पीलापन अम्बर की

कर्णपटह पर अटका

चेहरे पर क्षितिजा के

मेघ कोई आ भटका

 

जैसे विज्ञापन की

शर्त पर खरा उतरे

रेशमी प्रबंधन में

जिक्र नये पाट* का

 

फिसल रहा अँधियारा

सुरमई विकास से

सूरज ने कसी डोर

फिर इस विश्वास से

 

मोड़ लिये सप्त-अश्व-

घर को, प्रकाश के

खोलने बढ़ा अर्गल

रात के कपाट का

*पाट= रेशम

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

19-12-2020

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – एकाकार ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि –  एकाकार ☆

बार-बार इशारा कर

वह बुलाती रही,

देख समझ कर भी

वह अनदेखा रहा,

एक-दूसरे के प्रति

असीम आकर्षण,

एक-दूसरे के प्रति

अबूझ भय,

धूप-छाँह सी

उनकी प्रीत,

अंधेरे-उजाले सी

उनकी रिपुआई,

वे टालते हैं मिलना

प्राय: सर्वदा

पर जितना टला

मिलन उतना अटल हुआ,

जब भी मिले

एकाकार अस्तित्व चुना,

चैतन्य, पार्थिव जो भी रहा

रहा अद्वैत सदा,

चाहे कितने उदाहरण

दे जग प्रेम-तपस्या के,

जीवन और मृत्यु का नेह

किसीने कब समझा भला!

 

©  संजय भारद्वाज

( 21 जनवरी 2017, प्रात: 6:35 बजे)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #30 ☆ प्रेम खुदा की नेमत है ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है जिंदगी  में प्रेम की हकीकत बयां करती एक भावप्रवण कविता “प्रेम खुदा की नेमत है”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 30 ☆

☆ प्रेम खुदा की नेमत है ☆ 

ओस की बूंदों सा

वो नाज़ुक पल

प्यासी आंखों को

मृगतृष्णा का छल

तपती धरा को

तृप्त करता जल

कांपती दों फांकों पर

वो चुंबन निश्चल

ये प्रेम नहीं तो क्या है ?

प्रेम ही तो है !

 

भोर का रात से

रोज मिलने का वादा

अनछुई किरणों का

क्षितिज छूने का इरादा

पुष्परज लुटाता वो

प्रणय का राजा

अल्हड इठलाती बेलोसें

समीर का जुड़ा हुआ धागा

ये प्रेम नहीं तो क्या है ?

प्रेम ही तो है !

 

वर्षा ऋतु में

नाचते मयूर का

चांदनी रात में

युगों से प्यासे चकोर का

रातरानी के तने से

लिपटे भुजंग का

उसकी लगन में मस्त

मतवाले मलंग का

ये प्रेम नहीं तो क्या है ?

प्रेम नहीं तो क्या है !

 

पर अब-

प्रेम सियासत का अंग है

प्रेम पर हो रही जंग है

प्रेमियों पर  सख्त पहरे है

लव जिहाद के

कानून काफी गहरे हैं

कैसे समझाए-

प्रेम किया नहीं जाता

हो जाता है

प्रेमी युगल अपनी

सुध-बुध खो जाता है

एक लौ हृदय में जलती है

मिल जाए तो खुशी

नहीं तो-

सारा जीवन एक टीस

हृदय में पलती है

दोस्तों,

प्रेम खुदा की नेमत है

प्रेम पर पाबंदी,

खुदा से नफ़रत है।

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.५१॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.५१॥ ☆

ताम उत्तीर्य व्रज परिचितभ्रूलताविभ्रमाणां

पक्ष्मोत्क्षेपाद उपरिविलसत्कृष्णशारप्रभाणाम

कुन्दक्षेपानुगमधुकरश्रीमुषाम आत्मबिम्बं

पात्रीकुर्वन दशपुरवधूनेत्रकौतूहलानाम॥१.५१॥

उसे पार कर , रमणियों के नयन में

झूलाते हुये रूप अपना सुहाना

दशपुर निवासिनि चपल श्याम स्वेता

भ्रमर कुंद सी भ्रूलता में दिखाना

शब्दार्थ    ..  भ्रूलता –  भौंह रूपी लता अर्थात भौहो का चपल संचालन

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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