श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत है माँ सरस्वती पूजन एवं  बसंत पंचमी पर्व पर आपकी विशेष रचना  “ऋतु बसंत। इस सामायिक रचना के लिए श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ जी की लेखनी को सादर नमन। ) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 79 ☆

? ऋतु बसंत ?

देखो आया बसंत बहार

प्रकृति ने किया सोलह श्रृंगार

सदियों से जाने यह बात

ऋतुएं भी मनाती हैं त्यौहार

 

उमड़ने लगा भाव अनुनय

बातों में होने लगी विनय

प्रेम मनुहार की सुंदर बेला

ऋतु बसंत का आया समय

देव ने किया मिलकर विचार

प्रकृति ने किया सोलह सिंगार

 

बसंत आते देख ऋतुराज

पहन लिया पुष्पों का ताज

वन उपवन सब झूम के गाए

झरनों से बजने लगे साज

धरा भी खुश हो रही निहार

प्रकृति ने किया सोलह श्रृंगार

 

कोयल कू के डाली डाली

तितलियां हो गई मतवाली

ऋतु बसंत ने ली अंगड़ाई

प्रेमी युगल सब डूबे ख्याली

अब ना कोई सुझे विचार

प्रकृति ने किया सोलह श्रृंगार

 

आमों में बौरै भी छाई

बसंत पंचमी झुम के आई

पीली चुनर सर पर ओढ़े

खेतों में सरसों खिलखिलाई

लेकर इनकी शोभा अपार

प्रकृति ने किया सोलह श्रृंगार

 

मानव मन हो गया आशातीत

हर दृश्य निर्मल नवीन पुनीत

उमंग   खिले अमलतास कनेर

भर उठा जीवन भरा संगीत

होने लगे सब सपने साकार

प्रकृति ने किया सोलह श्रृंगार

 

देख धरा की सुंदरता

मां नर्मदा बन सरिता

देवों की बढीं आतुरता

मां सरस्वती स्वयं विराजी

ले वीणा के मधुर झंकार

प्रकृति ने किया सोलह श्रृंगार

 

सदियों से जाने यह बात

ऋतुएं भी मनाती है त्यौहार

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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