हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 113 ☆ # दिल कुछ पल बहल जाए… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है दीप पर्व पर आपकी एक भावप्रवण कविता “# दिल कुछ पल बहल जाए…#”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 113 ☆

☆ # दिल कुछ पल बहल जाए… # ☆ 

चलो कहीं चला जाए

कब तक फरेब से छला जाए

जीना दुश्वार हो गया है यहां

कब तक इस आग में जला जाए

 

यहां इन्सान कहां रहते हैं

बुत बनकर सब सहते हैं

मर गई है सबकी संवेदनाएं

क्या इसी को जीना कहते हैं ?

 

आंखें रहकर भी सारे अंधे हैं

ना जाने किसके गुलाम बंदे हैं

ना सुनते है ना बोलते है वो

गले में गुलामी के फंदे हैं

 

कांटों के संग फूल खिल तो रहे हैं

अच्छे बुरे लोग मिल तो रहे हैं

उपवन में यह सन्नाटा सा क्यूं है

दहशत में लोग होंठ सिलतो रहे हैं

 

चलो खुली हवा में कहीं टहल आए

लड़खड़ाती सांस फिर से चल जाए

कहीं तो होगी सुकून वाली जगह

शायद यह दिल कुछ पल बहल जाए  /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 124 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media# 124 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 124) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 124 ?

☆☆☆☆☆

यूँ तो गलत नहीं हुआ करते

अंदाज़ चेहरों के,

पर लोग वैसे भी नहीं होते

जैसे नज़र आते हैं…!

☆☆

Generally, expressions on the

faces do not go wrong,

But then, actually people are

not what they appear to be…!

☆☆☆☆☆

☆☆ ~ ज़िंदगी  ~ ☆☆ 

सब कुछ तो यहाँ बदल जाता है

देखते-देखते ही दिन ढल जाता है,

तेरी चाहतों के बीच मेरी तमाम

ज़िंदगी यूँ ही निकली जाती है…

☆☆ 

 Everything here changes so fast

even the day fades away in a jiffy,

In the midst of longing for you,

whole life passes away just like that…

☆☆☆☆☆

☆☆ ~ Shattering of Moon’s Ego… ~ ☆☆ 

तुम कभी मेरे साथ

    आसमान तक चलो,

मुझे इस चांद का

    गुरूर  तोड़ना  है…!

☆☆ 

Sometime you must come

      to the sky with me

I’ve to deflate the conceited

      ego of the moon…!

☆☆☆☆☆

☆☆ ~ Memories~ ☆☆ 

यादें बनकर जो तुम

    साथ रहते हो मेरे

तेरे इस अहसान का भी

    सौ  बार  शुक्रिया..!

☆☆ 

For staying with me

    as lasting memories

I’m  indebted  to  you

    for this favour of yours..!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #173 – 59 – “अजब हो चला इस ज़माने का चलन…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “अजब हो चला इस ज़माने का चलन…”)

? ग़ज़ल # 59 – “अजब हो चला इस ज़माने का चलन…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

लँगड़े पर दौड़ने का आरोप लगाते हैं,

गंजे को कंघी का तोहफ़ा भिजवाते हैं।

अजब हो चला इस ज़माने का चलन,

अंधों को  नज़रों के चश्मे लगवाते हैं।

तिजोरी पूरी चुनावी अभियान में झोंकी,

नेता जी  बजट रिश्वत का बनवाते हैं।

नदियों पर क्रूज अभियान हो ज़रा तेज,

हज़ार करोड़ गंगा सफ़ाई पर लगाते हैं।

सौ स्मार्ट सिटी का लक्ष्य सध रहा है,

शहर की  गंदगी गाँव में फिकवाते हैं।

उल्टा सीधा खाने से किडनी हुई ख़राब,

आयुष्मान से दिल का इलाज कराते हैं। 

हिंदू हिंदी और हिंदुस्तान के नारे लगवा,

गाँव में अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल खुलाते हैं।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 51 ☆ मुक्तक ।।कल का सुंदर संसार, मिलकर आज ही संवार।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण मुक्तक ।।कल का सुंदर संसार, मिलकर आज ही संवार।।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 51 ☆

☆ मुक्तक  ☆ ।।कल का सुंदर संसार, मिलकर आज ही संवार।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

यदि  बनाना  है  कल  अच्छा तो करो  आज      तैयारी।

यदि पहुंचना मंजिल  पर कल तो करो आज होशियारी।।

भविष्य  का  निर्माण  प्रारंभ  ही  वर्तमान से     होता है।

यदि रहना है कल को खुश तो करो दूर आज लाचारी।।

[2]

तुम्हारी हर बात में हमेशा कुछ गहराई होनी चाहिये।

तुम्हारे काम   में सदा  ही कुछ भलाई होनी चाहिये।।

सुधार करते रहो हर गलती का भी   तुम  हर कदम।

टूटे रिश्तों   की भी    हमेशा से तुरपाई होनी चाहिये।।

[3]

जीवन प्रभु का   दिया       एक अनमोल सा उपहार है।

मूल उद्देश्य इसका रखना सबके ही  साथ   सरोकार है।।

एक ही मिला है जीवन जो फिर मिलेगा    न     दुबारा।

यही हो भावना कि सम्पूर्ण विश्व एक ही तो परिवार है।।

[4]

मिलकर बनायों संसार जिसमें बस अमन चैन सुख हो।

बस जाये ऐसा  भाई चारा कि  किसी को न दुःख  हो।।

भाषा संस्कार संस्कृति सबका  ही  होता रहे    संवर्धन।

दुनिया न   कहलाये    कलयुग बस मानवता का युग हो।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – विरोधाभास ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

मकर संक्रांति रविवार 15 जनवरी को है। इस दिन सूर्योपासना अवश्य करें। साथ ही यथासंभव दान भी करें।

💥 माँ सरस्वती साधना 💥

सोमवार 16 जनवरी से माँ सरस्वती साधना आरंभ होगी। इसका बीज मंत्र है,

।। ॐ सरस्वत्यै नम:।।

यह साधना गुरुवार 26 जनवरी तक चलेगी। इस साधना के साथ साधक प्रतिदिन कम से कम एक बार शारदा वंदना भी करें। यह इस प्रकार है,

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – विरोधाभास ??

समान क्षेत्र में

विरोधाभास देखा,

वे काटकर

छोटी करते रहे रेखा,

मैं खींचकर

लम्बी करता रहा रेखा..!

© संजय भारद्वाज 

20.01.2023, प्रात: 9:01 बजे।

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 116 ☆ ग़ज़ल – “परेशां देख के तुमको…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक ग़ज़ल – “परेशां देख के तुमको…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा #116 ☆  ग़ज़ल  – “परेशां देख के तुमको…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

मुझे जो चाहते हो तुम, तुम्हारी ये मेहरबानी

मगर कोई बात मेरी तुमने अब तक तो नहीं मानी।

 

परेशां देख के तुमको मुझे अच्छा नहीं लगता

जो करते प्यार तो दे दो मुझे अपनी परेशानी।

 

तुम्हें संजीदा औ’ चुप देख मन मेरा तड़पता है

कहीं कोई कर न बैठे बख्त हम पर कोई नादानी।

 

मुझे लगता समझते तुम मुझे कमजोर हिम्मत का

तुम्हारी इस समझदारी में दिखती मुझको नादानी।

 

हमेशा अपनी कह लेने से मन का बोझ बँटता है

मगर मुझको बताने में तुम्हें है शायद हैरानी।

 

मुसीबत का वजन कोई सहारा पा ही घटता है

तुम्हारी बात सुनने से मुझे भी होगी आसानी।

 

जो हम तुम दो नहीं है, एक हैं, तो फिर है क्या मुश्किल?

नहीं होती कभी अच्छी किसी की कोई मनमानी।

 

नहीं कोई, जमाने में मोहब्बत से बड़ा रिश्ता

तुम्हरी चुप्पियां तो हैं मोहब्बत की नाफरमानी।

 

परेशां हूँ  तुम्हारी परेशानी और चुप्पी से

’विदग्ध’ दिल की बता दोगे तो हट सकती परेशानी।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ विजयगीत ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

विजयगीत ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

ज़िद पर आओ, तभी विजय है,नित उजियार वरो।

करना है जो, कर ही डालो,प्रिय तुम लक्ष्य वरो।।

 

साहस लेकर, संग आत्मबल बढ़ना ही होगा

जो भी बाधाएँ राहों में, लड़ना ही होगा

काँटे ही तो फूलों का नित मोल बताते हैं

जो योद्धा हैं वे तूफ़ाँ से नित भिड़ जाते हैं

मन का आशाओं से प्रियवर अब श्रंगार करो।

ज़िद पर आकर, कर ही डालो,प्रिय तुम लक्ष्य वरो।।

 

सुख पाना है तो हँसकर ही, दुख को सहना होगा

कालनीर जिस ओर बहा दे, सबको बहना होगा

मौसम आये पतझड़ का पर, बन बहार मुस्काओ

हर इक को तुम हर्ष बाँट दो, फूलों -सा बन जाओ

सपने जो तूने देखे थे, अब साकार करो।

ज़िद पर आकर, कर ही डालो, प्रिय तुम लक्ष्य वरो।।

 

असफलता से मार्ग सफलता का मिल जाता है

सब कुछ होना, इक दिन हमको ख़ुद छल जाता है

असफलता से एक नया, सूरज हरसाता है

रेगिस्तानों में मानव तो नीर बहाता है

चीर आज कोहरे को मानव, तुम उजियार करो।

करना है जो,कर ही डालो, प्रिय तुम लक्ष्य वरो।।

 

भारी बोझ लिए देखो तुम, चींटी बढ़ती जाती है

एक गिलहरी हो छोटी पर, ज़िद पर अड़ती जाती है

हार मिलेगी, तभी जीत की राहें मिल पाएँगी

और सफलता की मोहक-सी बाँहें खिल पाएँगी

अंतर्मन में प्रवल वेग ले, ज़िद से प्यार करो।

करना है जो, कर ही डालो, प्रिय तुम लक्ष्य वरो।।

 

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #165 ☆ भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है  “भावना के दोहे ।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 165 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे ☆

बीत गया पतझड़ अभी, छाने लगा बसंत।

अच्छे दिन अब आ गए, हुआ शीत का अंत।।

पौधे भी अब कर रहे, कलियों की ही आस।

देखो दस्तक दे रहा, खड़ा हुआ मधुमास।।

पीले खिलते फूल, सरसों पर छाने लगे।

है मौसम अनुकूल, रवि के दिन आने लगे।

सरसों पर छाने लगे, खिलते पीले फूल।

दिन रवि के आने लगे, है मौसम अनुकूल।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – धुंध ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

मकर संक्रांति रविवार 15 जनवरी को है। इस दिन सूर्योपासना अवश्य करें। साथ ही यथासंभव दान भी करें।

💥 माँ सरस्वती साधना 💥

सोमवार 16 जनवरी से माँ सरस्वती साधना आरंभ होगी। इसका बीज मंत्र है,

।। ॐ सरस्वत्यै नम:।।

यह साधना गुरुवार 26 जनवरी तक चलेगी। इस साधना के साथ साधक प्रतिदिन कम से कम एक बार शारदा वंदना भी करें। यह इस प्रकार है,

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – धुंध ??

परिचितों की लम्बी फेहरिस्त

जहाँ तक आँख जाती है,

अपनों की तलाश में पर

नज़र धुंधला जाती है..!

© संजय भारद्वाज 

11:21 बजे, 12.11.2018

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #152 ☆ ““युद्ध पर आधारित कुछ दोहे…” …” ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  “युद्ध पर आधारित कुछ दोहे। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 152 ☆

युद्ध पर आधारित कुछ दोहे ☆ श्री संतोष नेमा ☆

इस जग में सब चाहते,अपनी ऊँची नाक

रूस अमिरिका डरा कर,जमा रहे हैं धाक

चीन बढ़ाने में लगा, अपना साम्राज्य

ऊँच-नीच सब त्यागकर, करता सबको बाध्य

नौ महीने गुजर गए, अहम हुआ न शांत

रसिया का मन हो गया, अब तो खूब अशांत

ढेर तबाही के लगे, लोग हुये बेहाल

चले गए परदेश में, कह कर आया काल

रुकी उन्नति देश की, काम हुए अवरुद्ध

हिंसा,घृणा व क्रोध वश, छेड़ दिया है युद्ध

युद्ध बढ़ाता डर सदा, बन करके हैवान

पीड़ित होते आमजन, हमलावर शैतान

करें अमन की बात जो, वही बेचते शस्त्र

नव विध्वंसक बना कर, जमा करें नव अस्त्र

निर्धन को धमका रहा, कबसे पूँजीवाद

जमीं खनिज सब हड़प कर, करता खूब विवाद

दादा बनना चाहते, रूस अमरिका चीन

आज अहम की ये सभी, बजा रहे हैं बीन

महायुद्ध के शोर में, बचपन है खामोश

दिखें सशंकित आमजन, पनपे बस आक्रोश

कलियुग के इस युद्ध का, कोई नीति न धर्म

चाहें केवल जीत ही, उन्हें न कोई शर्म

रसिया केवल चाहता, दास बने यूक्रेन

उसकी मर्जी से चले, खोकर अपना चैन

नभ मंडल से बमों की, खूब करें बौछार

मानवता भी सिसकती, कैसा अत्याचार

तानाशाही बढ़ रही, केवल देखें स्वार्थ

जहाँ क्रूर शासक वहाँ, कहाँ रहे परमार्थ

करें वार्ता बैठकर, अंतस रहता रोष

चलें अमन की राह पर, कहता यह “संतोष”

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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