श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  “युद्ध पर आधारित कुछ दोहे। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 152 ☆

युद्ध पर आधारित कुछ दोहे ☆ श्री संतोष नेमा ☆

इस जग में सब चाहते,अपनी ऊँची नाक

रूस अमिरिका डरा कर,जमा रहे हैं धाक

चीन बढ़ाने में लगा, अपना साम्राज्य

ऊँच-नीच सब त्यागकर, करता सबको बाध्य

नौ महीने गुजर गए, अहम हुआ न शांत

रसिया का मन हो गया, अब तो खूब अशांत

ढेर तबाही के लगे, लोग हुये बेहाल

चले गए परदेश में, कह कर आया काल

रुकी उन्नति देश की, काम हुए अवरुद्ध

हिंसा,घृणा व क्रोध वश, छेड़ दिया है युद्ध

युद्ध बढ़ाता डर सदा, बन करके हैवान

पीड़ित होते आमजन, हमलावर शैतान

करें अमन की बात जो, वही बेचते शस्त्र

नव विध्वंसक बना कर, जमा करें नव अस्त्र

निर्धन को धमका रहा, कबसे पूँजीवाद

जमीं खनिज सब हड़प कर, करता खूब विवाद

दादा बनना चाहते, रूस अमरिका चीन

आज अहम की ये सभी, बजा रहे हैं बीन

महायुद्ध के शोर में, बचपन है खामोश

दिखें सशंकित आमजन, पनपे बस आक्रोश

कलियुग के इस युद्ध का, कोई नीति न धर्म

चाहें केवल जीत ही, उन्हें न कोई शर्म

रसिया केवल चाहता, दास बने यूक्रेन

उसकी मर्जी से चले, खोकर अपना चैन

नभ मंडल से बमों की, खूब करें बौछार

मानवता भी सिसकती, कैसा अत्याचार

तानाशाही बढ़ रही, केवल देखें स्वार्थ

जहाँ क्रूर शासक वहाँ, कहाँ रहे परमार्थ

करें वार्ता बैठकर, अंतस रहता रोष

चलें अमन की राह पर, कहता यह “संतोष”

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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