हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – ‘है’ और ‘था’… (1) ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

हम श्रावणपूर्व 15 दिवस की महादेव साधना करेंगे। महादेव साधना महाशिवरात्रि तदनुसार 18 फरवरी तक सम्पन्न होगी।

💥 इस साधना में ॐ नमः शिवाय का मालाजप होगा, साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ भी करेंगे 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – ‘है’ और ‘था’… (1) ??

‘है’ और ‘था’,

देखें तो

दोनों के बीच

केवल एक पल खड़ा है,

‘है’ और ‘था’,

सोचें तो इक पल में

जीवन और मृत्यु का

अंतर कटा है..!

© संजय भारद्वाज 

रात्रि 3:22 बजे, 22.5.2019

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 69 – मनोज के दोहे ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 69 – मनोज के दोहे  ☆

1 फागुन

फागुन का यह मास अब, लगता मुझे विचित्र।

छोड़ चला संसार को, परम हमारा  मित्र।।

2 फाग

उमर गुजरती जा रही, फाग न आती रास।

प्रियतम छूटा साथ जब, उमर लगे वनवास।।

3 पलास

रास न आते हैं अभी, अब पलास के फूल।

बनकर दिल में चुभ रहे, काँटों से वे शूल।।

4 वन

वन में झरे पलास जब, लगें गिरे अंगार।

आग लगाने को विकल, लीलेंगे संसार।।

5 जोगी

धर जोगी का रूप दिल, चला छोड़ संसार।

तन बेसुध सा है पड़ा, जला रहा अंगार।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 125 – गीत – आज नहीं… ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  एक भावप्रवण गीत – आज नहीं।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 125 – गीत – आज नहीं…  ✍

आज नहीं, कल बात करेंगे, अभी सफर से आई हो।

कल भी कितनी बात करेंगे

हाँ या ना उत्तर दोगी

कोई मुश्किल प्रश्न किया तो

अलमारी में रख लोगी

ऐसे ही चलती है दुनिया, किसकी भली चलाई हो ।

 

तुम्हें देखने उस नगरी के

कितने लोग जुड़े होंगे

संयम के शहजादों के भी

सहसा पाँव मुड़े होंगे

सच कहना, उस भरी भीड़ क्या, याद शहर की आई हो।

 

वापस आई राजनगर से

रूप नगर की शहजादी

स्वागत का अधिकार नहीं है

कहने भर की आजादी

नहीं, नहीं, कुछ नहीं कहूँगा, नाहक ही घबराई हो।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कविता # 125 – “॥ गजल ॥” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है आपकी – “॥ गजल ॥)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 125 ☆।। कविता ।। ☆

☆ ॥ गजल ॥ ☆

अपने पुराने घर खिड़की मे

अतीत होते हुये बह तुम थे

आइनों की बडी कतारों में

व्यतीत होते हुये वह तुम थे

कभी कहीं पर तुम्हें देखा है

प्रतीत होते हुए वह तुम थे

गौर से देखता तारोंकोगहन

निशीथ होते हुए वह तुमथे

लिखेहैंबहुतगीतअभिनवसे

अगीत होते हुये वह तुम थे

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

27-11-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अधिष्ठान ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

हम श्रावणपूर्व 15 दिवस की महादेव साधना करेंगे। महादेव साधना महाशिवरात्रि तदनुसार 18 फरवरी तक सम्पन्न होगी।

💥 इस साधना में ॐ नमः शिवाय का मालाजप होगा, साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ भी करेंगे 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – अधिष्ठान ??

चांद की सतह पर

खुरदरा दाग देखा?

उसने पूछा..,

चांद से झरती

स्निग्ध चांदनी देखी?

इसने पूछा..,

सौंदर्य और विकृति का

अपना-अपना अधिष्ठान है,

दृष्टि में बसती सृष्टि

इसका चैतन्य प्रमाण है..!

© संजय भारद्वाज 

प्रात: 11:31बजे, 6 फरवरी 2023

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ मौत के सौदागर… ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम् ☆

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आई आई एम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। आप सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत थे साथ ही आप विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में भी शामिल थे।)

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी ने अपने प्रवीन  ‘आफ़ताब’ उपनाम से  अप्रतिम साहित्य की रचना की है। आज प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम भावप्रवण रचना “मौत के सौदागर…  

? मौत के सौदागर… ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम् ☆ ?

लगता है कि अब कुछ

हो ही नहीं सकता हैं,

लहू के सौदागर आदमी की

अनमोल जान का कौड़ियों  के भाव

खरीद-फ़रोख्त कर रहे हैं,

जान पल-प्रतिपल और भी

सस्ती होती जा रही है…

बेगुनाहों का लहू नालों की तरह

चारों तरफ बह रहा है,

आदमी ही आदमी का

खून पी रहा हैं,

नहीं! अब बहुत हो गया,

इसे रोकना ही पड़ेगा…

इस खूनी होली का खेल

अब बंद करना ही पड़ेगा,

प्रतिशोध की तीव्र इच्छा

का शमन करना ही पड़ेगा…

अन्यथा मानवता ही

समाप्त हो जाएगी

और साथ में मानव जाति भी…!

~ प्रवीन रघुवंशी ‘आफताब’

© कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

पुणे

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 116 ☆ # मुक्ति… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# मुक्ति… #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 116 ☆

☆ # मुक्ति… # ☆ 

तुमने मुझको कितना सताया

तुमने मुझको कितना रूलाया

जब जब मैंने चलना सीखा

तुमने राहों में कांटे बिछाया

 

मैं उन कांटों को चुनती रही

फूलों के संग बुनती रही

हार बनाकर वरमाला पहनाई

फिर भी जीवन भर सुनती रही

 

तुमने लेकर अपनी बाँहों में

प्रतिबंध लगाया मेरी चाहो में

लोकलाज की बातें कहकर

बेड़ियाँ डाल दी मेरी पांवों में

 

मैं आजादी से कभी उड़ ना सकी

मैं नीले आसमान से कभी जुड़ ना सकी

सिमट के रह गई एक दायरे में

मैं मुक्ति के पथ कभी मुड़ ना सकी

 

मैं कब तक रहूंगी पिंजरे की मैना

कौन सुनेगा मेरा दर्द, मेरा कहना

तुम पुरूषों के दंभी संसार में

क्यों नारी को है यह सब सहना

 

नहीं! अब मैं नहीं डरूंगी

लोकलाज की परवाह नहीं करूंगी

तोड़ूंगी झूठा तिलिस्म तुम्हारा

मुक्ति के बीना नहीं मरूंगी /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 127 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media# 127 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 127) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 127 ?

☆☆☆☆☆

इत्तफाकन  कुछ  यूं  हुआ  कि  

जब  भी  जरूरत  पड़ी  मुझे,

आदतन  हर  शख्स  को  मजबूर

या  मसरूफ  ही  पाया  मैंने..!

☆☆

Is it just a coincidence that whenever  

I was in dire need of help

Perpetually, found every person

either helpless or too busy…!

☆☆☆☆☆ 

छप के बिका करते थे, 

जो  अख़बार  कभी…

सुना  है  इन  दिनों  वो

बिक के छपा करते हैं…

☆☆

Newspapers, those once

used to sell after printing,

I have heard that these days

they print after selling…

☆☆☆☆☆

बहुत कुछ बदल जाता है

ढलती  उम्र  के  साथ,

पहले हम जिद्द किया करते थे

अब  समझौते  करते  हैं..

☆☆

Many a thing keep changing

with the passage of time,

Earlier we used to stubbornly insist,

Now we simply compromise…

☆☆☆☆☆

तुमको याद कर लूँ तो मिल जाती

है हर दर्द से राहत,

लोग बेवजह ही शोर मचाते हैं

कि दवाइयाँ महंगी हैं…!

☆☆

I’m relieved of every pain

whenever I remember you

People unnecessarily complain

that medicines are expensive…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 126 ☆ सॉनेट ~ क्यों? ~ ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित सॉनेट “~ क्यों ?~”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 126 ☆ 

सॉनेट ~ क्यों? ~ ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

*

अघटित क्यों नित घटता हे प्रभु?

कैसे हो तुम पर विश्वास?

सज्जन क्यों पाते हैं त्रास?

अनाचार क्यों बढ़ता हे विभु?

कालजयी क्यों असत्-तिमिर है?

क्यों क्षणभंगुर सत्य प्रकाश?

क्यों बाँधे मोहों के पाश?

क्यों स्वार्थों हित श्वास-समर है?

क्यों माया की छाया भाती?

क्यों काया सज सजा लुभाती?

क्यों भाती है ठकुरसुहाती?

क्यों करते नित मन की बातें?

क्यों न सुन रहे जन की बातें?

क्यों पाते-दे मातें-घातें?

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

९-२-२०२२, जबलपुर

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आत्मानंद साहित्य #155 ☆ कविता – आज ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 155 ☆

☆ कविता – आज  ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

जो बीत गया वो भूतकाल था,

जो‌ बचा हुआ  वह  आज है।

उसका संबंध  है भविष्य से,

यही तो एक  गहरा‌ राज है।

 

आज  मेहनत पर टिका हुआ,

सफल  भविष्य  का  साज  है।

कर्मवीर मानव अपने कर्मों पे

करता   बहुत   ही   नाज  है।

 

आज की मेहनत का परिणाम ‌

सदैव भविष्य  में  मिलता  है।

अकर्मण्य सदैव  पछताता है,

उसका   दुखी    मिजाज  है।

 

भूतकाल  न   लौट  के  आए,

मात्र स्मृतियों  में  दिखता  है।

जिसने  मेहनत  किया  आज,

वह नित नई ऊंचाई  छूता है।

 

वह चढ़ा बुलंदी की छाती पर,

उसे  आज  दुआएं  देता है।

समय   के    तीन   है   भाई,

कल   आज    और    कल।

 

बीते समय को आज भुला,

अब  तू  आगे  आगे  चल।

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

(1-09-2021)

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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