प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

विजयगीत ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

ज़िद पर आओ, तभी विजय है,नित उजियार वरो।

करना है जो, कर ही डालो,प्रिय तुम लक्ष्य वरो।।

 

साहस लेकर, संग आत्मबल बढ़ना ही होगा

जो भी बाधाएँ राहों में, लड़ना ही होगा

काँटे ही तो फूलों का नित मोल बताते हैं

जो योद्धा हैं वे तूफ़ाँ से नित भिड़ जाते हैं

मन का आशाओं से प्रियवर अब श्रंगार करो।

ज़िद पर आकर, कर ही डालो,प्रिय तुम लक्ष्य वरो।।

 

सुख पाना है तो हँसकर ही, दुख को सहना होगा

कालनीर जिस ओर बहा दे, सबको बहना होगा

मौसम आये पतझड़ का पर, बन बहार मुस्काओ

हर इक को तुम हर्ष बाँट दो, फूलों -सा बन जाओ

सपने जो तूने देखे थे, अब साकार करो।

ज़िद पर आकर, कर ही डालो, प्रिय तुम लक्ष्य वरो।।

 

असफलता से मार्ग सफलता का मिल जाता है

सब कुछ होना, इक दिन हमको ख़ुद छल जाता है

असफलता से एक नया, सूरज हरसाता है

रेगिस्तानों में मानव तो नीर बहाता है

चीर आज कोहरे को मानव, तुम उजियार करो।

करना है जो,कर ही डालो, प्रिय तुम लक्ष्य वरो।।

 

भारी बोझ लिए देखो तुम, चींटी बढ़ती जाती है

एक गिलहरी हो छोटी पर, ज़िद पर अड़ती जाती है

हार मिलेगी, तभी जीत की राहें मिल पाएँगी

और सफलता की मोहक-सी बाँहें खिल पाएँगी

अंतर्मन में प्रवल वेग ले, ज़िद से प्यार करो।

करना है जो, कर ही डालो, प्रिय तुम लक्ष्य वरो।।

 

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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