हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 114 ☆ # गणतंत्र… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है दीप पर्व पर आपकी एक भावप्रवण कविता “# गणतंत्र…#”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 114 ☆

☆ # गणतंत्र… # ☆ 

यह भारत का गणतंत्र है

समता, सद्भाव का मंत्र है

बंधुत्व, एकता का तंत्र है

धर्मनिरपेक्षता का यंत्र है

 

हर व्यक्ति को अधिकार है

हर क्षेत्र में अपार है

देश में कहीं भी, कभी भी

रहने, बसने का आधार है

 

चाहे जो हो अभिलाषा

चाहे जो हो भाषा

चाहे जो हो प्रांत

पूर्ण हो सबकी आशा

 

सब धर्मों का हो सम्मान

हर व्यक्ति हो धर्म प्राण

अपनी अपनी जीवन पद्धति

अपने रीति रिवाजों से हो निर्वाण

 

अमीर गरीब का ना भेदभाव हो

जात पात की ना कोई छांव हो

सब मनुष्य एक समान है

प्रेम, बंधुत्व का एक भाव हो

 

मतदान का अधिकार अस्त्र है

सरकार चुनने का शस्त्र है

योग्य व्यक्ति का करें चुनाव

यही तो गणतंत्र है

 

हम सब भाग्यवान है

गणतंत्र हमारी शान है

सब को एक सूत्र में बांध के रक्खा

कितना महान हमारा संविधान है

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 125 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media# 125 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 125) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 125 ?

☆☆☆☆☆

तुम कभी मेरे साथ

आसमान तक चलो,

मुझे इस चाँद का

गुरूर तोड़ना है…!

☆☆

Sometime you must come

to the sky with me

I’ve to break the inflated ego

of the arrogant moon…!

☆☆☆☆☆

 ☆☆ ~ Precious as Time… ~ ☆☆ 

हम भी वक्त जैसे ही

 कीमती  हैं,  जनाब…

कदर ना करने वालों को

 दोबारा  नहीं  मिलते..!

☆☆ 

I am also as priceless

 as time, Sire…

Those who don’t value,

 don’t get me again..!

☆☆☆☆☆

इश्क़ में कहाँ कोई

उसूल होता है, जनाब

यार चाहे जैसा भी हो

हमेशा कुबूल होता है…!

☆☆

When has ever been there

any principle in love, Sire

Whatever sweetheart may be,

he is always accepted…!

☆☆☆☆☆

पतंग तो उसी की थी

जिसने चुकाई कीमत,

कटी  तो हक़दार सारा

शहर ही हो गया…!

☆☆

The kite was his only who

paid the price, but when cut,

then the whole city started

claiming its possession…!

 ☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #174 – 60 – “तुम छुपाते रहो अपने गुनाहों को…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “तुम  छुपाते  रहो  अपने गुनाहों  को…”)

? ग़ज़ल # 60 – “तुम  छुपाते  रहो  अपने गुनाहों  को…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

इश्क़  इस  तरह से  जताना तुम्हारा,

सियासी  लगे  दिल  लगाना तुम्हारा।

अगर  कोई  पूछे बता दो  ये  उनको,

मेरा दिल नहीं  अब  ठिकाना तुम्हारा।

तुम  छुपाते  रहो  अपने गुनाहों  को,

इतिहास  कहेगा   फ़साना   तुम्हारा।

सुनेगा   भला  कौन  मेरी   यहाँ  पर,

है  अदालत  तेरी  ओ  थाना  तुम्हारा।

तुम्हारी  खुदाई  का   इतना  असर है,

‘आतिश’ हो गया  है  दिवाना  तुम्हारा।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पैसा ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

मकर संक्रांति रविवार 15 जनवरी को है। इस दिन सूर्योपासना अवश्य करें। साथ ही यथासंभव दान भी करें।

💥 माँ सरस्वती साधना संपन्न हुई। अगली साधना की जानकारी से हम आपको शीघ्र ही अवगत कराएँगे। 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – पैसा ??

पैसा कमाता है आदमी,

पैसे के पहियों पर

दौड़ने लगता है आदमी,

आदमी और पैसा कमाता है,

पैसे को लग जाते हैं पंख,

उड़ने लगता है आदमी,

आदमी बहुत पैसा कमाता है,

आदमी ढेर पैसा कमाता है,

निगाहों में चढ़ने लगता है आदमी!

अब पैसा खाता है आदमी,

अब पैसा पीता है आदमी,

पर पैसे की सवारी अब

नहीं कर नहीं पाता थुलथुला आदमी !

ज्यों-ज्यों ज़बान पर चढ़ता है पैसा,

त्यों-त्यों निगाहों से उतरता है आदमी !

इससे उस तक,

आदि से इति तक,

न कहानी बदलती है,

न नादानी बदलती है,

पैसा, आदमी की

नादानी पर हँसता है,

कवि,

पैसे और आदमी की

कहानी पर हँसता है!

© संजय भारद्वाज 

प्रात: 9:06 बजे, 2.11.20

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 52 ☆ मुक्तक ।। हमें बहुत गुमान है, कि हमारी मातृभूमि हिंदुस्तान है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण मुक्तक ।।हमें बहुत गुमान है, कि हमारी मातृभूमि हिंदुस्तान है।।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 52 ☆

☆ मुक्तक  ☆ ।।हमें बहुत गुमान है, कि हमारी मातृभूमि हिंदुस्तान है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

हमें    इस बात  का    बहुत गुमान है।

कि हमारी   मातृ भूमि    हिंदुस्तान  है।।

सूर्य सा आलोकित  है  सारे  संसार में।

विश्व   गुरू भारत  वास्तव में महान है।।

[2]

शांति मसीहा है भारत सारे जहान का।

बस ध्यान रहे भारत मां मानसम्मान का।

हर दिल में इक हिंदुस्तान बसना चाहिए।

प्रश्न है करोड़ों  जन के   स्वाभिमान का।।

[3]

इस वतन ने इंकलाब से आजादी पाई है।

शहीदों ने मर मिट कर  तस्वीर बनाई है।।

आंच न आने देगें इस बलिदानी धरती पर।

हर बाजू बनेगा तलवार आंख गर उठाई है।।

[4]

ये भाग्य राम कृष्ण की धरा पर जन्म पाया है।

इस देश ने रामायण  गीता संदेश सुनाया है।।

यह धरती है  विविधता में एकता का संगम।

पूरे विश्व वसुधैव कुटुंबकम् पाठ पढ़ाया है।।

[5]

इस गुलशन का पत्ता पत्ता जार न होने देना।

अमर शहीदों कीअमानत बेकार न होने देना।।

अभी तो आगाज हुआ मंजिल दूर बाकी है।

भारतमाता कीअस्मत कभी बेजार न होने देना।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 117 ☆ ग़ज़ल – “विश्व भौतिक है मगर, आध्यात्मिक है जिंदगी…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक ग़ज़ल – “विश्व भौतिक है मगर, आध्यात्मिक है जिंदगी…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा #117 ☆  ग़ज़ल  – “विश्व भौतिक है मगर, आध्यात्मिक है जिंदगी…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

बुराई बढ़कर भी आई हारती हर काल में

मकड़ियां फँसती रही नित आप अपने जाल में।।

 

समझता हर व्यक्ति खुद को सदा औरों से भला

पर भला वह है जो हो वैसा सबों के ख्याल में।।

 

वे बुरे जन जो हैं जीते आज ऊंची शान से

कल वही जाते हैं देखे भटकते बद हाल में।।

 

कर्म से किस्मत बनाई जाती है अपनी स्वतः

है नहीं सच यह कि सब कुछ लिखा सब के भाल में।।

 

प्रकृति देती पौधों को सुविधाएं प्रायः एक सी

बढ़ते हैं लेकिन वही, जीते हैं जो हर हाल में।।

 

धूप, आँधी, शीत, वर्षा, उमस सह लेते हैं जो

फूल सुन्दर सुरभिमय खिलते उन्हीं की डाल में।।

 

सत्य, श्रम, सद्कर्म मानव धर्म है हर व्यक्ति का

आदमी लेकिन फंसा है व्यर्थ के जंजाल में।।

 

मन में जिनके मैल, अधरों पै कुटिल मुस्कान है

तमाचा पड़ता सुनिश्चित कभी उनके गाल में।।

 

चाहते जो जिन्दगी में सुख यहाँ संसार में

स्वार्थ कम, चिन्ता अधिक सब की करें हर हाल में।।

 

विश्व भौतिक है मगर आध्यात्मिक है जिंदगी

ध्यान ऐसा चाहिये हम सब को हर आमाल में।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #166 ☆ भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है  “भावना के दोहे ।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 166 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे ☆

कानों में मिसरी घुले,नन्हें की किलकार।

महक उठी घर अंगना,सांसों से फुलवार।।

आने से तेरे हुए ,सभी स्वप्न साकार।

मन आनंदित हो उठा,छाने लगी बहार।।

तुझको मैं तो देखकर,होने लगी निहाल।

बिन तेरे कुछ भी नहीं,रहती थी बेहाल।।

पाकर तुझको मिल गई,एक नई मुस्कान।

आने से तेरे मिली, इक माँ की पहचान।।

 तेरे अधरों पर बनी रहे, निश्छल  सी मुस्कान।

उच्च शिखर पर मिल रहे, नित नूतन सोपान।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #152 ☆ “विश्वास पर दोहे…” ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  “विश्वास पर दोहे। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 152 ☆

विश्वास पर दोहे ☆ श्री संतोष नेमा ☆

आपस में मत तोड़िये, आप किसी की आस

मुश्किल से जग में बने, आपस में विश्वास

होते एक समान ही, प्रेम और विश्वास

जबरन ये होते नहीं, करिए लाख प्रयास

जीवन में गर चाहिए, सर्वांगीण विकास

दृढ़ इच्छा मन में रखें, खुद पर कर विश्वास

संकल्पों की शक्ति से, पूरे होते काम

मुश्किल लगें न काज भी, होता जग में नाम

कहते सभी प्रबुद्ध जन, फलदायक विश्वास

बिरले ही तोड़ें इसे, रख स्वार्थ की आस

गुण ग्राहक मिलते सदा, अवगुण का क्या मोल

कोयल भाती सभी को, कर्कश कागा बोल

सोच समझ कर कीजिये, कलियुग में विश्वास

टूटा गर इक बार भी, कभी न आता पास

खड़े सत्य के साथ जो, ईश्वर उनके साथ

मुश्किल भी होती सरल, ऊँचा होता माथ

एक भरोसा राम पर, रखते हम “संतोष”

जिनसे ही जीवन चले, जो सच्चे धन-कोष

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 144 ☆ बाल-कविता  – डालों पर फल चाँदी -चाँदी… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 122 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 144 ☆

☆ बाल-कविता  – डालों पर फल चाँदी – चाँदी… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’☆ \

अतिशय मौसम प्यारा – प्यारा।

बिल्ली मौसी चली सैर पर

बच्चों का सँग लिए पिटारा।।

 

पेड़ों पर चाँदी है लिपटी

डालों के फल चाँदी – चाँदी।

देख चकित हैं बच्चे सारे

अद्भुत लगता आज नजारा।।

 

घर हैं चाँदी , घर हैं चंदा

चारों ओर बर्फ के बदरा।

हाथ में ले – ले खेलें होली

गिरा मौसमी देखो पारा।।

 

गिरि – पर्वत सब ढके बर्फ से

सन्नाटा हर ओर है पसरा।

मूल निवासी कैद घरों में

पानी जमा नलों में सारा।।

 

बिल्ली जैसे निरे सैलानी

धूम मचाने शिमला आए।

हुई दिक्कतें निरी वहाँ पर

लौट के बुद्धू घर को आए।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – चिरंजीव ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 माँ सरस्वती साधना 💥

 बीज मंत्र है,

।। ॐ सरस्वत्यै नम:।।

यह साधना गुरुवार 26 जनवरी तक चलेगी। इस साधना के साथ साधक प्रतिदिन कम से कम एक बार शारदा वंदना भी करें। यह इस प्रकार है,

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – चिरंजीव ??

मैं हूँ,

सो तुम हो,

मुझ पर ही

टिका है

तुम्हारा अस्तित्व,

‘जीती रहो’ पीड़ाओ,

खेद है-

तुम्हें ‘विजयी भव’

नहीं कह सकता मैं,

अपनी जिजीविषा को

चिरंजीव होने का आशीर्वाद

पहले ही दे चुका हूँ मैं..!

© संजय भारद्वाज 

प्रात: 10:40 बजे, बुधवार दि. 12 अक्टूबर 2017

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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