श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  “विश्वास पर दोहे। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 152 ☆

विश्वास पर दोहे ☆ श्री संतोष नेमा ☆

आपस में मत तोड़िये, आप किसी की आस

मुश्किल से जग में बने, आपस में विश्वास

होते एक समान ही, प्रेम और विश्वास

जबरन ये होते नहीं, करिए लाख प्रयास

जीवन में गर चाहिए, सर्वांगीण विकास

दृढ़ इच्छा मन में रखें, खुद पर कर विश्वास

संकल्पों की शक्ति से, पूरे होते काम

मुश्किल लगें न काज भी, होता जग में नाम

कहते सभी प्रबुद्ध जन, फलदायक विश्वास

बिरले ही तोड़ें इसे, रख स्वार्थ की आस

गुण ग्राहक मिलते सदा, अवगुण का क्या मोल

कोयल भाती सभी को, कर्कश कागा बोल

सोच समझ कर कीजिये, कलियुग में विश्वास

टूटा गर इक बार भी, कभी न आता पास

खड़े सत्य के साथ जो, ईश्वर उनके साथ

मुश्किल भी होती सरल, ऊँचा होता माथ

एक भरोसा राम पर, रखते हम “संतोष”

जिनसे ही जीवन चले, जो सच्चे धन-कोष

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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