हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 141 ☆ बेबसी का राग… ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ ☆

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना बेबसी का राग। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 141 ☆

बेबसी का राग ☆

जो चलना शुरू कर देगा वो अवश्य ही रास्ता बनाता जाएगा। राह और राही का गहरा नाता होता है। जिस रंग की तलाश आप अपने चारों ओर करते हैं कुदरत वही निर्मित करने लगती है। यही तो आकर्षण का प्रबल सिद्धांत है। इसे ससंजक बल भी कह सकते हैं जिससे तरल की बूंदे जुड़कर शक्तिशाली होती जाती हैं। बल कोई भी हो जोड़- तोड़ करने में प्रभावी होता है, अब देखिए न सारे लोग एक साथ चलने को आतुर हैं किंतु पहले कौन चलेगा ये तय नहीं कर पा रहे। जनता जनार्दन तो मूक दर्शक बनने की नाकाम कोशिश करते हुए, पोस्टरों को देख कर मुस्कुराते हुए कह देती है जब आपके पास कोई चेहरा ही नहीं है? तो मोहरा बनते रहिए। खेल और खिलाड़ी अपनी विजयी टीम के साथ मैदान में उतरेंगे और एक तरफा मैच खेलते हुए विजेता बनकर हिन्द और हिंदी का परचम विश्व में फैलाएंगे।

कहते हैं उम्मीद पर दुनिया कायम है। जब सभी आपकी ओर विश्वास भरी नजरों से देख रहें हों तो विश्वास फलदायकम का नारा बुलंद करते हुए सुखद अहसास होने लगता है। विचारों की शक्ति जिसके पास नहीं होगी, साथ ही कोई लिखित साझा कार्यक्रम भी तय नहीं होगा तो बस दिवा स्वप्न ही देखना पड़ेगा। पोस्टर में किसकी फोटो बड़ी होगी, कौन ज्यादा हाईलाइट होगा ये भी भविष्य पर छोड़ना, आपको कैसे ताकतवर बना सकता है।

जरूरत है अच्छी पुस्तकों की जिसे पढ़कर राह के साथी कैसे चुनें इसका अंदाजा लगाया जा सके। चयन हमेशा ही चौराहे की तरह होता है, यदि सही मार्गदर्शक मिला तो मंजिल तक पहुंच जायेंगे अन्यथा चौराहे के चक्कर लगाते हुए आजीवन घनचक्कर बनकर अपनी बेबसी का राग अलापना पड़ेगा।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार #184 ☆ व्यंग्य – नेताजी का स्मृति-लोप ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार ☆

डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय  व्यंग्य ‘नेताजी का स्मृति-लोप’। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 184 ☆

☆ व्यंग्य ☆ नेताजी का स्मृति-लोप

नेताजी अब सत्तर के हुए। उम्र बढ़ने के साथ नेताजी को डर लगता है कि कहीं चुनाव में टिकट से वंचित न कर दिये जाएँ। उनका कहना है कि नेता को आखिरी साँस तक जनता की सेवा का मौका मिलना चाहिए। अन्त में तिरंगे में लिपट कर न गये तो जीने का क्या मतलब?

नेताजी पिछले पंद्रह सालों में पाँच पार्टियाँ बदल चुके हैं। अब छठवीं में हैं। लोग उन्हें मौसम- विशेषज्ञ कहते हैं। वे हवा सूँघते रहते हैं। जैसे ही किसी दूसरी पार्टी के पावर में आने की संभावना दिखती है, वे बेचैनी से कसमसाने लगते हैं। कदम खुद-ब-खुद उस पार्टी की तरफ बढ़ने लगते हैं। फिर अपनी पार्टी में हज़ार खामियाँ दिखने लगती हैं।

नेता जी का कहना है कि पार्टी के सिद्धान्तों, उद्देश्यों से उन्हें कोई मतलब नहीं है। बस, जनता की सेवा का भरपूर मौका मिलना चाहिए। जिस पार्टी में जनता की सेवा का मौका न मिले उसे अविलंब छोड़ देना चाहिए। ‘तजिए ताहि कोटि बैरी सम, यद्यपि परम सनेही’। लेकिन उनसे ‘जनता की सेवा’ का अर्थ पूछने की हिम्मत किसी की नहीं होती क्योंकि ज़ाहिराना वे अपनी और अपने परिवार की ही सेवा करने के लिए बदनाम हैं।

फिलहाल नेताजी परेशानी में पड़ गये हैं। उनकी स्मरण-शक्ति कमज़ोर हो गयी है। भूल जाते हैं कि वे कितनी पार्टियों में और कब से कब तक रहे। एक डायरी में उन्होंने यह सारी जानकारी लिख रखी थी, लेकिन वे उस डायरी को रखने की जगह भी भूल गये हैं। पार्टी-परिवर्तन का इतिहास याद करने की कोशिश करते हैं तो सब गड्डमड्ड हो जाता है। नेताजी आतंकित हैं। कहीं उनकी वर्तमान पार्टी के हाई कमांड को उनकी हालत का पता चल गया तो क्या होगा? फिर कोई ऊँची कुर्सी या मलाईदार पद नहीं मिलेगा। आगे बेटों- बेटियों को पॉलिटिक्स में जमाने की कोशिश कर रहे हैं। बेटों को चालाकी, मिथ्या भाषण, पाखंड जैसे राजनीतिक गुण सिखा रहे हैं। लेकिन अगर उनकी अपनी स्थिति ही कमज़ोर हो गयी तो सन्तान को कौन पूछेगा?

हालत यह है कि कभी घर से निकलते हैं तो किसी पहले छोड़ी हुई पार्टी के दफ्तर में पहुँच जाते हैं और वहाँ बैठकर लोगों से प्रेमपूर्ण बातचीत और उस पार्टी की तारीफ करने लगते हैं। पार्टी के लोग उनका मुँह देखते रह जाते हैं। उन्हें लगने लगता है कि नेताजी शायद पुरानी पार्टी में वापस आना चाहते हैं। उनके बेटों को पता चलता है तो वे उनको वहाँ से उठा लाते हैं।

बेटे सलाह देते हैं कि उन्हें किसी मनोचिकित्सक को दिखाया जाए, लेकिन नेताजी हाथ उठा देते हैं। कहते हैं, ‘पार्टी हाई कमांड को यह बात मालूम हो गयी तो तुरन्त मुझे कचरेदान में डाल देंगे। मनोचिकित्सक के पास गया तो रिपोर्टर और कैमरेवाले सूँघते हुए पहुँच जाएँगे। न बाबा, मैं किसी डॉक्टर के पास नहीं जाऊँगा। पॉलिटिक्स में मनोचिकित्सक के पास जाने का मतलब खुदकुशी करना है।’

लाचार, बेटों ने उन्हें घर में ही रहने के लिए कह दिया है। उन पर चौबीस घंटे निगरानी रहती है। रिपोर्टरों और फोटोग्राफरों से मिलने की मनाही है। बाहर जाएँ तो किसी बेटे के साथ ही जाएँ। बेटे खुद ही परेशान हैं क्योंकि पिताजी निर्बल हो गये तो पॉलिटिक्स में उनका कैरियर कैसे बनेगा?

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 140 ☆ सवाल पर बवाल… ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ ☆

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “सवाल पर बवाल…। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 140 ☆

☆ सवाल पर बवाल ☆

डूबती नैया पर सवारी करने का फल यही होता है कि आपको अपने विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए कोई सही तर्क ही नहीं मिलता और आप कुतर्कों के सहारे जुबानी जंग जीतने की कोशिश करने लग जाते हैं। किंतु आजकल तो हर बात रिकॉर्डेड होती जा रही, जरा सी चूक होने पर आपका अगला- पिछला सब कारनामा सामने हाजिर हो जाता है। अब तो अपनी बात पर अड़िग रहें या शब्दों की वापसी की घोषणा करते हुए कह दें कि मेरा ये मतलब नहीं था, मीडिया ने तोड़-मरोड़  कर मेरी बात को प्रस्तुत किया है।

इन्हीं चर्चाओं के बीच बहुत से प्रश्न और खड़े हो जाते हैं जिनका स्पष्टीकरण किसी के पास नहीं होता क्योंकि यहाँ भी अक्ष पर घूमने का सिद्धांत कार्य कर रहा होता है जो आज यहाँ है वो कल कहाँ होगा ये वो भी नहीं जानता है बस चलते रहो का अनुसरण करते हुए स्वयं को लाभान्वित करना मुख्य लक्ष्य होता है।

कहते हैं जो कार्य करेगा उस पर सवाल होगा, सो सवालों से न बचते हुए उसे हल करने की ओर चलें। वैसे भी आप किसी भी विचारधारा के हों आपको अनुयायी मिल ही जाते हैं। किसी भी मुद्दे को पकड़ कर उस पर पाँच साल तो क्या पूरा जीवन गुजारा जा सकता है, बस उसके इर्द- गिर्द मायाजाल रचते रहिए, समस्याओं को हल करने की ओर यदि आप लगे तो निश्चित है कि कुचक्र का शिकार होंगे अतः ऐसा कार्य करें जो आपको व्यस्त तो रखे साथ ही रोज नए सवालों को भी पैदा करता रहे, जब सवाल होंगे तो वबाल होगा और दिन – रात की तरह आजीवन मनुष्य गतिशील रहकर विचारों का मंथन करते हुए अपने को उपयोगी बनाए रखेगा।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य # 178 ☆ “फेंन्स के इधर और उधर…” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है आपका एक  व्यंग्य – फेंन्स के इधर और उधर…”।)

☆ व्यंग्य  # 178 ☆ “फेंन्स के इधर और उधर…” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

पाकिस्तानी सीमा से लगे हुए गांव का स्कूल है,स्कूल के नीचे बंकर बना हुआ है। सभी बच्चे टाटपट्टी बिछा कर पढ़ने बैठते हैं , फर्श गोबर से बच्चे लीप लेते हैं फिर सूख जाने पर टाट पट्टी बिछा के पढ़ने बैठ जाते हैं ,मास्टर जी छड़ी रखते हैं और टूटी कुर्सी में बैठ कर खैनी से तम्बाकू में चूना रगड़ रगड़ के नाक मे ऊंगली डाल के छींक मारते हैं फिर फटे झोले से स्लेट निकाल लेते हैं , ऐसा वे हर रोज करते हैं, कभी कभी पाकिस्तान सीमा से उस पार गोलीबारी की आवाज पर तुनक जाते हैं बड़े पंडित जी जैसई स्कूल में प्रवेश करते हैं सब बच्चे खड़े होकर पंडित जी को प्रणाम करते हैं , सीमा पार पाक के गांव के बच्चे भी इस स्कूल में पढ़ना चाहते हैं पर मास्टर जी छड़ी उठा कर दिखा देते हैं। पाक के बच्चे फेंन्स के उधर से पढ़ते बच्चों को ललचाई नजर से देखते हैं।

मास्टर जी तम्बाकू मलने में मस्त हैं। वक़्त बहुत मज़बूत होता है उसे काटो तो नहीं कटता, पर मास्टर जी थोड़ा वक्त तम्बाकू मलने में काट लेते हैं, पता नहीं क्यों उनका मन पढ़ाने में लगता नहीं हैं, हर दम बोरियत महसूस होती है ,स्कूल की दीवार में लिखी इबारत पढ़ने लगते हैं,

गांव के प्रायमरी स्कूल की दीवार में लिखा है।

“विद्या धनम् सर्व धनम् प्रधानम्”

 मास्टर जी छड़ी उठाकर मेज में पटकते हैं  छकौड़ी से पूछते हैं ‘विद्या धनम् सर्व धनम् प्रधानम्’ का असली मतलब बताओ ? 

छड़ी के डर से छकौड़ी खड़ा होकर कहता है- “सर, इसका अर्थ हुआ विद्या के लिए आया सारा धन गांव के प्रधान के लिए होता है।”

मास्टर जी ने छकौड़ी को शाबाशी दी, नये जमाने के लड़के सब समझते हैं।

पुन्नू की घंटी बजी, बच्चों के खाने की छुट्टी हो गई …। पाक के बच्चे फेंन्स के उधर से रोटी खाते बच्चों को ललचाई नजर से देखते हैं, छकौड़ी आधी रोटी लेकर फेन्स के उधर खड़े बिलाल को दे देता है, बिलाल खुश होकर हाथ मिलाता है रोते हुए बताता है हमारे यहां आटा नहीं मिलता,आटे के चक्कर में बड़ी बड़ी लाइन लगतीं हैं, गोलियां चलतीं हैं हमारी अम्मी के पास स्कूल की फीस का पैसा नहीं था इसलिए हमारा नाम स्कूल से काट दिया गया। हमारे यहां का राजा कहता था हम लोग भूखे भले रह लेंगे पर परमाणु बम जरूर बनाएंगे। हमारे यहां पेट्रोल डीजल की बहुत किल्लत रहती है, हमारा राजा कटोरा लिए फिरता है पर देश का इम्प्रेशन खराब है तो कोई लिफ्ट नहीं देता। बिलाल कई दिनों का भूखा था आधी रोटी दो सेकेण्ड में गुटक गया और दूसरे बच्चों के टिफिन की तरफ ललचाई नज़रों से देखने लगा जब तक पुन्नू की घंटी बज गई, लंच टाइम खत्म हो गया।

मास्टर जी बिना मन के कक्षा में प्रवेश करते हैं, मेज में छड़ी पटक कर कुर्सी में बैठ जाते हैं टाइम पास करना है तो छकौड़ी को खड़ा करके पूछते हैं छकौड़ी सब बच्चों को सच सच बताओ कि आज तुमने सच में क्या सोचा।

छकौड़ी बताता है कि सर हमारे मास्टर साब का पढ़ाने लिखाने में मन नहीं लगता, बेचारे सोलह किलोमीटर से आते हैं थक जाते होंगे, घर में भी कोई होगी जो तंग करती होगी। हमारा राजा भी अजीब चमत्कारी राजा है मंहगे कपड़े पहनकर सच्ची क्वालिटी का झूठ बोलता है, हाथ मटका मटका कर अनोखे सपने दिखाता है, अपनी बात रेडियो से छुपकर बोलता है, सब जगह तालियां पिटवा कर विरोधियों की लाई लुटवाई देता है। अस्सी करोड़ लोगों को फ्री राशन पानी देकर वोट बटोर लेता है। हमारे देश में अरबपतियों की संख्या बढ़ती जा रही है।

छकौड़ी धाराप्रवाह सच बोले जा रहा है बच्चे तालियां बजा रहे हैं तभी मास्टर जी छड़ी लेकर खड़े हो जाते हैं ताली बजाते हुए कहते हैं आज के बच्चे सब समझते हैं बात सही भी है कि अरबपतियों की बढ़ती संख्या अच्छी अर्थव्यवस्था का नहीं, खराब होती अर्थव्यवस्था का संकेत है। जो लोग कठिन परिश्रम करके देश के लिए भोजन उगा रहे हैं, इन्फ्रास्ट्रक्चर का निर्माण कर रहे हैं, फैक्ट्रियों में काम कर रहे हैं उन्हें अपने बच्चे की फीस भरने, दवा खरीदने और दो वक्त का खाना जुटाने में संघर्ष करना पड़ रहा है, अमीर-गरीब के बीच बढ़ती खाई लोकतंत्र को खोखला कर रही है।

फैन्स के उधर का अब्दुल 

1 किलो आटे के लिए 

रो रहा है, और

फैन्स के इधर का अब्दुल 

3 साल से फ्री का 

राशन खाकर 

राजा को कोस रहा है।

अचानक मेज में रखी छड़ी नीचे गिर गयी, फैन्स के उधर बच्चे की रोने की आवाज आ रही थी, बार्डर पर फैन्स के उधर के सैनिक बच्चे को बन्दूक की बट से मार रहे हैं, और फैन्स के इधर पुन्नू घंटी बजाने लगा है, स्कूल की छुट्टी हो गई।  इधर के बच्चे उधर के रोते बच्चों को देखकर भारत माता की जय के नारे लगाने लगते हैं फैन्स के उधर के सैनिक हंसते हुए आगे बढ़ जाते हैं, छकौड़ी दौड़कर बिलाल से हाथ मिला लेता है और कल दो रोटी देने का वायदा करता है।

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार #183 ☆ व्यंग्य – जवानी की दीवानगी ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार ☆

डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय  व्यंग्य ‘जवानी की दीवानगी’। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 183 ☆

☆ व्यंग्य ☆ जवानी की दीवानगी

धर्म के अनुसार हमारी ज़िन्दगी में चार आश्रम बताए गये हैं। ब्रम्हचर्य से शुरू कीजिए और सन्यास से होते हुए शालीनता से ज़िन्दगी से बाहर हो जाइए। समझदार लोग इस क्रम को स्वीकार करते हैं, लेकिन कुछ लोग ज़िन्दगी में ‘रेवर्स गियर’ लगाने में लगे रहते हैं। कोशिश करते हैं कि उम्र का सिलसिला जवानी से आगे न बढ़े। इसी चक्कर में अपनी रंगाई-पुताई करते रहते हैं, जैसे कि रंगाई-पुताई से पुरानी इमारत फिर नयी हो जाएगी। उम्र किसी बरजोर घोड़ी की तरह भागती जाती है और वे रस्सी पकड़े घिसटते जाते हैं।

बाबा रामदेव अपने च्यवनप्राश के प्रचार में बताते हैं कि महर्षि च्यवन इस औषधि का सेवन करके बूढ़े से जवान हो गये थे। बाबा यह नहीं बताते कि उनका च्यवनप्राश खाकर कितने बूढ़े जवान हुए। उन्हें बूढ़े से जवान हो जाने वाले लोगों का फोटो चस्पाँ करना चाहिए और फोटो के नीचे ‘च्यवनप्राश के सेवन से पहले’ और ‘च्यवनप्राश के सेवन के बाद’ लिखना चाहिए। अनेक कंपनियाँ दीर्घकाल से च्यवनप्राश बनाती रही हैं, लेकिन अभी तक ऐसी जानकारी नहीं मिली कि कोई बूढ़ा अपनी टेकने की लाठी छोड़कर छलाँगें भरने लगा हो।हमारे देश में जवानी की ज़बरदस्त ललक रही है। सयाने महाकवि केशवदास अपने श्वेत केशों को इसलिए कोसने लगे थे कि उनकी पोतियों की उम्र की  ‘चंद्रवदन मृगलोचनी’ कन्याएं उन्हें ‘बाबा’ कहकर पुकारने लगी थीं। अब श्वेतकेशी व्यक्ति को कन्याएं ‘बाबा’ न कहें तो क्या कहें? उस वक्त अगर कोई ‘हेयर डाई’ उपलब्ध होता तो शायद महाकवि यह छीछालेदर कराने वाला दोहा लिखने से बच जाते। ज़ाहिर है कि वे अपने को रीतिकाल के प्रवाह में बहने से नहीं बचा पाये।
पुराणों में राजा ययाति की कथा मिलती है जिन्होंने अपने पुत्र से उसकी जवानी माँग ली थी। ययाति दलितों के गुरु शुक्राचार्य के शाप से असमय ही वृद्ध हो गये थे। बार-बार उनकी मृत्यु की घड़ी आती थी और बार-बार वे यम से अनुनय- विनय करके घड़ी को टाल देते थे। अंततः यम ने उनके सामने शर्त रखी कि आगे वे तभी जीवित रह सकते हैं जब वे अपने किसी पुत्र से उसकी जवानी माँग लें। उनके पाँच पुत्रों में से सबसे छोटा पुरु ही उन्हें अपनी जवानी देने को राज़ी हुआ और राजा पुत्र की जवानी पाकर भोग-विलास में डूब गये। अंततः उन्हें पश्चाताप हुआ और उन्होंने पुरु को उसका यौवन लौटा कर वैराग्य धारण कर लिया।

ऐसे ही पिता के आज्ञाकारी भीष्म पितामह और हम्मीर हो गये हैं। भीष्म के पिता राजा शांतनु सत्यवती पर अनुरक्त हो गये थे और उससे विवाह करना चाहते थे, किंतु सत्यवती के पिता ने यह शर्त रखी कि सत्यवती की संतान ही राज्य की उत्तराधिकारी हो। परिणामतः पितृभक्त भीष्म ने आजीवन अविवाहित रहने का प्रण ले लिया। प्रसन्न होकर पिता ने उन्हें इच्छा-मृत्यु का वरदान दिया। हम्मीर के बारे में कथा है कि उन्होंने अपने लिए आये विवाह के प्रस्ताव को ठुकरा कर उस कन्या की शादी अपने पिता से करवा दी क्योंकि उनके पिता ने परिहास में प्रस्ताव लाने वाले से कह दिया था कि उनके (पिता के) लिए भला विवाह प्रस्ताव कौन लाएगा?

ऐसे ही एक पितृभक्त राजा मोरध्वज के पुत्र ताम्रध्वज थे जिन्होंने पिता के आदेश पर अपने को आरे से चिरवा दिया था। व्यंग के पितृपुरुष हरिशंकर परसाई ऐसी पितृभक्ति के पक्षधर नहीं थे। अपनी रचना ‘कंधे श्रवण कुमार के’ में उन्होंने मोरध्वज की कथा के विषय में लिखा, ‘कथा के इस अन्त ने कितनी पीढ़ियों को आरे से चिरवा दिया होगा।’
जवानी को पकडे रहने की इसी  ख्वाहिश में ब्यूटी पार्लर, कॉस्मेटिक सर्जरी, एंटी एजिंग क्रीम का धंधा दिन-दूना रात-चौगुना बढ़ रहा है। ‘शो बिज़नेस’ में बुढ़ापे का बड़ा ख़ौफ़ होता है क्योंकि बुढ़ापा धंधे को चौपट करने वाला होता है। एक फिल्म अभिनेत्री के बारे में पढ़ा था कि उन्होंने अपने चेहरे पर बुढ़ापे के चिन्हों को रोकने के लिए 29 बार सर्जरी करवायी, लेकिन फिर भी वे बुढ़ापे को प्रकट होने से रोक नहीं पायीं।

जवानी को बरकरार रखने की कोशिश में लगे लोगों को यह समझ में नहीं आता कि दुनिया में यदि बुढ़ापे और मृत्यु की तरफ बढ़ती यात्रा रुक जाएगी तो दुनिया की हालत क्या हो जाएगी। अंग्रेज़ कवि रॉबर्ट ब्राउनिंग समझदार थे। उन्होंने अपनी प्रसिद्ध कविता में लिखा, ‘मेरे साथ बूढ़े हो। जीवन का सर्वश्रेष्ठ अभी होने को है, जीवन का वह अंतिम चरण जिसके लिए प्रथम चरण निर्मित हुआ।’ अमेरिकन कवयित्री एमिली डिकिंसन ने लिखा, ‘उम्र बीतने के साथ हम पुराने नहीं होते, बल्कि नये होते चले जाते हैं।’

परसाई जी अपनी रचना ‘पहला सफेद बाल’ में देश की नयी पीढ़ी को संबोधित करते हुए ययाति के संदर्भ में लिखते हैं, ‘हमें तुमसे कुछ नहीं चाहिए। ययाति जैसे स्वार्थी हम नहीं हैं जो पुत्र की जवानी लेकर युवा हो गया था। बाल के साथ उसने मुँह भी काला कर लिया।’

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 139 ☆ जन जागरूकता बढ़ती रहे… ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ ☆

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “जन जागरूकता बढ़ती रहे…। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 139 ☆

☆ जन जागरूकता बढ़ती रहे  ☆

न नुकुर करते पूरा समय बीतता जा रहा है किन्तु वे टस से मस न हुए, ऐसा किसी व्यक्ति के साथ नहीं बल्कि पूरी उस सामाजिक सोच  के साथ है, जो समय के साथ बदलना ही नहीं चाहती। बस एक जैसा जीवन व्यतीत करते हुए पूरी उम्र बीती जा रही है। जिन मुद्दों को स्वतंत्रता के पूर्व उठाया गया था वही आज भी चले आ रहे हैं। जनता नए विचारों को आत्मसात करती जा रही है, किन्तु कुछ दल आज भी वही पुराना घोषणा पत्र, वही घिसे पिटे तर्क। अब कौन उन्हें समझाए कि  आज हम लोग डिजिटल हो चुके हैं सब कुछ गूगल से सर्च करके ही प्रत्याशी का चयन करते हैं। विभिन्न दलों के प्रवक्ता अपने दलों के समर्थन में जो तर्क देते हैं उन्हें सत्यता की कसौटी में परख कर ही चयन करते हैं। पहले कहा जाता था कि नेता पाँच साल में एक बार मुँह दिखाते हैं किन्तु अब ऐसा नहीं रहा, आगामी चुनावों की तैयारी में पूरा शीर्ष नेतृत्व 24×7, 365 दिन लगा रहता है। अब सबको समझ में आ गया है कि एक- एक पल का हिसाब  जनता  रखती है।

सच्चे मायनों में यही श्रेष्ठ लोकतंत्र का लक्षण है। लोक का ध्यान रखने वाली सरकार ही चुनी जाएगी। लोगों के मन से भय चला जाए, वे निर्भीक होकर  अपने विचारों को अभिव्यक्त कर सकें। सबको समान मौलिक अधिकार मिलें, सभी शिक्षित हों।

अब हम लोग अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक अपनी वैचारिक सोच को रख कर निर्णय लेने लगें हैं। वैसे भी सर्वे भवन्तु सुखिनः, वसुधैव कुटुंबकम, तमसो मा ज्योतिर्गमय हमारी परंपरा का हिस्सा रहे हैं और रहेंगे भी। तो आइए सद्विचारों के पोषक बनें और सही निर्णय लेने की ओर सदैव अग्रसर रहें।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 199 ☆ व्यंग्य – घोस्ट राइटिंग और प्रचुर लेखन — ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक विचारणीय   व्यंग्य  – घोस्ट राइटिंग और प्रचुर लेखन

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 199 ☆  

? व्यंग्य – घोस्ट राइटिंग और प्रचुर लेखन – ?

विश्व पुस्तक मेले का हाल नंबर 2 हिंदी प्रकाशकों के स्टॉल्स से भरा हुआ है। प्रत्येक प्रकाशक के पास कविता के बाद संभवतः व्यंग्य की ही सर्वाधिक पुस्तकें हों, संकलन या व्यक्तिगत किताबें खूब छप रही हैं। आई एस बी एन सहित और बिना इसके भी। अनेक ओहदों वाले जिनके पास समय ही नहीं, वे भी रातों रात बड़े लेखक बने दिखते हैं।

मेरे पास एक प्रकाशक का प्रस्ताव आया था की मैं कोई सौ पृष्ठ व्यंग्य भेज दूं और राशि ले लूं, घोस्ट राइटर के रूप में। अर्थात व्यंग्यकार के रूप में खुद को स्थापित करने की चाहत रखने वाले हैं, जो बडी राशि देकर घोस्ट राईटिंग खरीद रहे हैं।  ठीक हो सकता है कि ऐसा लेखन जो महज रुपयों या नाम हेतु हो साहित्य  की शास्त्रीयता को नुकसान पहुंचा सकता है।

अन्यथा किसी भी विधा की लोकप्रियता उसे बढ़ाती ही है नुकसान नहीं पहुंचाती।

क्रिकेट का उदाहरण सर्वाधिक सरल है उसकी बढ़ती लोकप्रियता ने नए फार्मेट लाए, खिलाड़ियों को शोहरत और रुपए दिलवाए, किंतु क्रिकेट तो क्रिकेट ही है उसे नुकसान नहीं पहुंचा। टेस्ट मैच की शास्त्रीयता अपनी जगह है ही। इसी तरह साहित्य यदि मौलिक है तो जितना अधिक लिखा जाए, बेहतर ही  होगा।

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – व्यंग्य ☆ होली पर्व विशेष – विधान सभा का होली सत्र ☆ श्री नवेन्दु उन्मेष ☆

श्री नवेन्दु उन्मेष

☆ व्यंग्य ☆ होली पर्व विशेष – विधान सभा का होली सत्र ☆ श्री नवेन्दु उन्मेष

विधानसभा का होली सत्र राज्यपाल के अभिभाषण के बाद शुरू हो चुका था। सदन के अंदर माननीय सदस्य हंगामा कर रहे थे कि राज्यपाल के अभिभाषण में राज्य के विकास की बातें तो हैं लेकिन हम सदस्यों को होली का कुछ भी उपहार नहीं मिला है। सरकार की ओर से जवाब आया कि माननीय सदस्य शांत रहें और सदन का होली सत्र चलने दें। पहले सरकार राज्य के लोगों का होली पर विकास करना चाहती है। इसके बाद ही माननीय सदस्यों को होली का उपहार दिया जायेगा।

इसी बीच वित मंत्री ने स्पीकर के आदेश पर होली का बजट पढ़ना शुरू किया। उन्होंने कहा कि होली पर राज्य के युवाओं को एक दिन के लिए नौकरी दी जायेगी और दूसरे दिन वे रिटायर करा दिये जायेंगे। इस पर टोकते हुए एक सदस्य ने कहा यह तो युवाओं को ठगने का काम किया जा रहा है। वित मंत्री ने उन्हें उत्तर देते हुए कहा कि इससे युवाओं को नौकरी करने का अवसर प्राप्त होगा। उन्हें भी महसूस होगा कि वे बेरोजगार नहीं हैं। भले ही नौकरी एक दिन के लिए ही क्यों न हो।

दूसरे सदस्य ने पप्रश्न किया कि एक दिन में आखिर युवा सरकारी नौकरी पाकर कौन सा तीर मार लेंगे। वित मंत्री ने जबाव दिया वे एक दिन में भांग घोटेंगे। होली पर राज्य के लोगों को भांग पिलाया जायेगा ताकि वे आंदोलन की राह छोड़कर विकास की राह पर चल सकें।

वित मंत्री ने होली का अपना बजट पढ़ना जारी रखा और कहा होली पर सड़कों के किनारे भांग का शिविर लगाया जायेगा। राज्य के सभी नागरिकों को एक-एक गिलास भांग मुफ्त दिया जायेगा। दूसरा गिलास मांगने पर उसकी कीमत एक रूपये वसूली जायेगी। इससे सरकार को जो आय प्राप्त होगी उसे राज्य के बेरोजगार युवाओं के बीच बांटा जायेगा।

वित मंत्री ने आगे बताया होली के बाद सड़कों की सफाई के लिए भी सरकार के पास योजनाएं हैं। तभी कुछ लोग पानी-पानी चिल्लाने लगे। एक सदस्य ने कहा कि होली पर राज्य में पानी की कमी हो जाती है। कई इलाके के लोग होली खेलने के बाद पानी की कमी के कारण स्नान नहीं कर पाते हैं। वित मंत्री ने उन्हें बताया कि ऐसे लोगों के लिए आसपास की नदियों से पानी की आपूर्ति की जायेगी। इस बीच एक सदस्य ने कहा राज्य की नदियों में पानी नहीं है। नदियां नाले में तब्दील हो चुकी हैं।

तब पर्यावरण मंत्री का जबाव आया नदियों की सफाई की व्यवस्था की जा रही है। होली खेलने के बाद जो लोग स्नान नहीं कर पायेंगे उन्हें सरकारी वाहन से नदियों के तट पर पहुंचाया जायेगा और साबून इत्यादि देकर स्नान कराया जायेगा। नदी में कोई गिर न जाये इसके लिए एनडीआरएफ की टीम की तैनाती की जायेगी। ताकि गिरे हुए व्यक्ति को तत्काल नदी से निकाला जा सके।

गृह मंत्री भी पूरे होली के मूड में थे। उन्होंने बताया कि होली के लिए प्रत्येक थाने में भांग की व्यवस्था की जायेगी। भांग पीने के बाद अगर कोई व्यक्ति सड़कों पर हंगामा करता हुए पाया गया तो उसे थाने के लॉकर में बंद कर भांग के डंडे से पीटा जायेगा। इसके लिए सरकार ने भांग के डंडों की व्यवस्था थाने में की है। गृह मंत्री ने आगे बताया कि इस बार राज्य के अधिकारी होली नहीं खेलेंगे। अगर कोई अधिकारी होली खेलते हुए पकड़ा गया तो उसे होली अदालत में प्रस्तुत किया जायेगा। उसके साथ होली की धाराओं के तहत मुकदमा चलाया जायेगा और अगर वह दोषी पाया जाता है तो उसे आगामी साल की होली के दिन जमकर भांग पिलाया जायेगा। इसका समर्थन सत्ता पक्ष के सदस्यों ने मेज थपथपाकर की।

अब बारी थी स्वास्थ्य मंत्री की। उन्होंने होली के अवसर पर लोगों के स्वास्थ्य पर पूरा ध्यान देने की बातें कहीं। उन्होंने बताया कि इस बार सरकारी अस्पतालों में होली आउटडोर का विषेष प्रबंध किया जायेगा। वहां होली के चिकित्सक होली का आला लटकाकर बैठेंगे और सभी मरीजों को होली की दवाइयां देंगे। अगर कोई मरीज होली के दिन बीमार पड़ जाता है तो उसकी पूरी देखभाल की जायेगी। इसके लिए होली एंबुलेस की व्यवस्था की जायेगी। होली सीटीस्कैन से लेकर होली एक्सरे किया जायेगा। गर्भवती महिलाओं को अगर होली के लिए बच्चा होता है तो उन्हें होली का विशेष सर्टिफिकेट दिया जायेगा। ऐसी महिलाओं को होलीश्री या होली माता की उपाधि से नवाजा जायेगा। उनके साथ चिकित्सक फोटो खींचायेंगे जिसे राज्य की पत्रिका में छापा जायेगा।

विधान सभा का होली सत्र चल ही रहा था कि तभी वहां पागलखाने से कुछ वार्डर पहुंच गये और मंत्री से लेकर विधायक बने लोगों को पहचान लिया और दो-दो डंडे लगाते हुए कहा-साले हम सुबह से तुम लोगों को खोजने में परेशान है और तुमलोग यहां विधानसभा का होली सत्र चला रहे हो। एक पत्रकार को पकड़ने हुए कहा पागलखाने में तो तुम सिर्फ न्यूज की बातें किया करते थे। यहां विधानसभा का न्यूज लिख रहे हो। लगता है कि इस न्यूज को अपने बाप के अखबार में छापोगे।

तभी स्पीकर बने पागल ने घोषणा कर दी कि विधानसभा की कार्यवाही आगामी सत्र के लिए स्थगित कर दी जाती हैं। उसे भी दो डंडे लगाकर पागलखाने के वार्डर अपने साथ लेते चले गये। इस प्रकार विधानसभा का होली सत्र माननीय सदस्यों को वार्डरों का डंडा लगने के बाद खत्म हो गया। वार्डरों ने फर्जी विधानसभा के परिसर में माननीय सदस्यों को दौड़-दौड़कर पकड़ा और वापस पागलखाने लेकर चले गये।

© श्री नवेन्दु उन्मेष

संपर्क – शारदा सदन,  इन्द्रपुरी मार्ग-एक, रातू रोड, रांची-834005 (झारखंड) मो  -9334966328

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य # 177 ☆ “पुस्तक मेला और बड़े साहब का दौरा…” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है आपका एक  व्यंग्य – पुस्तक मेले में चिलमची लेखक…”।)

☆ व्यंग्य  # 177 ☆ “पुस्तक मेला और बड़े साहब का दौरा…” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हेड आफिस के बड़े साहेब के दौरे की खबर से आफिस में हड़बड़ी मच गई। बड़ी मंहगी सरकारी कार से बड़े साहब उतरे तो आफिस के बाॅस ने पूंछ हिलाते हुए गुलदस्ता पकड़ा दिया। आते ही बडे़ साहब ने आफिस के बाॅस पर फायरिंग चालू की तो बाॅस ने रोते हुए गंगा प्रसाद उर्फ गंगू को निशाना बना दिया। सर…. सर  हमारे आफिस में गंगू नाम का स्टाफ है, काम धाम कुछ करता नहीं, अपने को कभी साहित्यकार तो कभी व्यंग्यकार कहता है। दिन भर आफिस में फेसबुक, वाटस्अप के चक्कर में और बाकी समय ऊटपटांग लिख लिखकर आफिस की स्टेशनरी बर्बाद करता है। आपके दौरे की भी परवाह नहीं कर रहा था, दो दिनों पहले दिल्ली भग रहा था बिना हेडक्वार्टर लीव लिए। दादागिरी दिखाते हुए कह रहा था कि दिल्ली के प्रगति मैदान में उसकी व्यंग्य की पुस्तक का विमोचन और व्यंग्य का कोई बड़ा पुरस्कार – सम्मान मिलेगा साथ में 21 हजार या 51 हजार रुपये भी मिलने की बात कर रहा था। 

सर… र… बिल्कुल भी नहीं सुनता बहुत तंग किए है और दूसरे काम करने वालों को भी भड़काता है लाल झंडा दिखाने की धमकी देता है…. हम बहुत परेशान हैं। सर.. र… आफिस का माहौल उसके कारण बहुत खराब है। हमारा भी काम में मन नहीं लगता, इसलिए आपके पास इतनी शिकायतें और गड़बड़ियों की लिस्ट पहुंच रही है। बाहरी आदमी तक कह रहा है कि आपके आफिस का गंगाधर (गंगू) अखबार और पत्रिकाओं के साथ सोशल मीडिया में आफिस के कामकाज का मजाक उड़ा रहा है, व्यंग्य लिखता है। सरकार की नीतियों के खिलाफ व्यंग्य लिखकर खूब ऊपरी पैसे कमाता है और आफिस में धेले भर काम नहीं करता। 

सर….. र… आप विश्वास नहीं करोगे पिछले दिनों मेरे और मेरी स्टेनो के ऊपर ऐसा व्यंग्य लिखा कि मैं मुंह दिखाने लायक नहीं रह गया….. झांक झांक कर सब देख लेता है तिरछी नजर से सब बातें पकड़ लेता है, कुछ करने भी नहीं देता है.. स.. र.. र  आप बताइए हम क्या करें ? 

… अच्छा ऐसा है, तो तुम तंग आ गये हो…. तुमको इस आफिस का बाॅस बनाकर इसलिए बैठाया गया है कि एक सड़े से कर्मचारी पर तुम्हारा कन्ट्रोल नहीं है। स्टेनो के साथ बिजी रहते होगे, तभी आफिस का माहौल अनकन्ट्रोल हो गया है। 

… नहीं स.. र.. र  इसने ही अपने व्यंग्य लेख से इतने किस्से बना लिए हैं वास्तविकता कुछ नहीं है सर जी   प्लीज। 

… अच्छा ये बताओ कि बदमाश तुम हो कि तुम्हारी स्टेनो? किस्से तो काफी फैल गये हैं और तुम्हारी काम नहीं करने की भी बड़ी शिकायतें हेड आफिस पहुंच रहीं हैं। 

… नहीं सर, ये गंगा प्रसाद ‘गंगू’ के कारण ही ये सब हो रहा है। 

… तो बुलाओ उस हरामजादे गंगाधर को… अभी देखता हूं साले को, बहुत बड़ा साहित्यकार कम व्यंग्यकार बन रहा है… ।

बाॅस ने घंटी बजायी  चपरासी से कहा कि गंगू को बताओ कि बड़े साहब मिलना चाहते हैं। जब चपरासी ने गंगा प्रसाद को खबर दी तो गंगू फूला नहीं समाया… उसे लगा चलो दिल्ली नहीं जा पाए तो दिल्ली के हेड आफिस से सबसे बड़े साहब हमारा सम्मान करने पहुंच गए, जरूर किसी बड़े लेखक ने बड़े साहब को ऊपर से दम दिलाई होगी तभी ये आज भागे-भागे आये हैं चलो चलते हैं देखते हैं कि… 

… मे आई कम इन सर.. कहते हुए गंगा प्रसाद केबिन में घुसे तो बड़े साहब ने व्यंग्य भरी नजरों से ऊपर से नीचे तक देखा। 

… आइये आइये… वेलकम… तो आप हैं 1008 व्यंग्य श्री आचार्य गंगा प्रसाद गंगू…

… जी… स… र.. र आपके आने की खबर के कारण हमने अपना दिल्ली जाने का कार्यक्रम रद्द कर दिया सर… वहां विश्व पुस्तक मेले में हमारा सम्मान और हमारी पुस्तक का विमोचन…. 

… अच्छा !  सुना है आप सरकार के खिलाफ और आफिस की कमियों पर व्यंग्य लिखकर पैसे कमाते हैं, बड़े भारी व्यंग्यकार बनते हैं। आफिस के कामकाज और विसंगतियों और बाॅस पर व्यंग्य से प्रहार करते हो। आफिस का काम करने कहो तो लाल झंडा दिखाने की धमकी देते हो….. व्यंग्य के विषय में जानते हो कि व्यंग्य क्या होता है ? नौकरी करना है कि व्यंग्य लिखना है आपको मालूम नहीं कि असली व्यंग्यकार सबसे पहले अपने आप पर व्यंग्य लिखता है, अपने अंदर की गंदगी विसंगतियों की पड़ताल कर आत्मसुधार करता है। आफिस और सरकार के खिलाफ लिख कर नाम कमाने से आत्ममुग्धता आती है। आफिस के बाॅस और स्टेनो के संबंधों पर लिख कर उनका काम बिगाड़ दिया तुमने दाल भात में मूसरचंद बन गए।  तुम भी तो लंबे समय से आफिस में लफड़ेबाजी कर रहे हो कभी तिल का ताड़ कभी राई का पहाड़ बनाते रहते हो और सीधी सी बात है कि तुमने व्यंग्य लिखने के लिए  विभागीय अनुमति नहीं ली है  अभी दस तरह के मामलों में फंस जाओगे नौकरी चली जाएगी, बाल-बच्चे बीबी भूखी मरने लगेंगी। तुम्हें नहीं मालूम कि समाज में तुम्हारी इज्जत इस विभाग के कारण है, नहीं तो आजकल कोई पूछता नहीं है समझे। जितना पैसा व्यंग्य लिख कर कमा रहे हो उसका हिसाब आफिस में दिया क्या? जितना पैसा कमाया वो विभाग में जमा किया क्या? तो आयकर विभाग को चकमा देने का मामला भी बनता है। गंगू लाल अपने बाल बच्चों के पेट में लात मत मारो भाई। तुम्हें नहीं मालूम कि व्यंग्यकार के पास पैनी वैज्ञानिक दृष्टि होती है वह ईमानदार होता है तुम तो सौ प्रतिशत बेईमान लग रहे रहे हो। इसका मतलब है कि तुम्हारे लिखे कड़े शब्द नपुंसक होते हैं तभी न आफिस का माहौल नपुंसक हो गया। अरे भाई व्यंग्यकार तो लोक शिक्षण करता है। तुम लोग झांकने का काम करते हो किसी का बना बनाया काम बिगाड़ते हो। तुम लोग चुपके चुपके दरबार लगाते हो एक दूसरे की टांगे खींचते हो शरीफ और बुद्धिजीवी होने का नाटक करते हो। साहित्यकारों से समाज यह अपेक्षा करता है कि वे अपने आचरण और लेखन में शालीनता बरतें और बेहतर समाज बनाने में अपना योगदान दें… पर तुम तो अपने पेट से दगाबाजी करते हो आफिस का काम भी नहीं करते और चले व्यंग्यकार बनने… तुम साले कुछ नकली व्यंग्यकार पूर्वाग्रही, संकुचित सोच, अहंकारी गुस्सैल और स्वयं को सर्वज्ञानी मानते हो। हर पल चालाकियों की जुगत भिड़ाते हो…।।

गंगू के काटो तो खून नहीं… सारा लिखना पढ़ना, सम्मान पुरस्कार, पुस्तक मेला मिट्टी में मिल गया। बड़े साहब ने जम के दम देकर बेइज्जती की और नौकरी से निकाल देने की धमकी दी कि सीने के अंदर खलबली मच गई, बाल बच्चे और घरवाली की चिंता बढ़ गई हार्ट कुलबुला के के बाहर आने को है… बार बार शौचालय जाना पड़ रहा है शौचालय के कमोड में बैठे बैठे जैसे ही गंगू ने फेसबुक खोली त्रिवेदी की वाल में पुस्तक मेले का लाइव कार्यक्रम चल रहा है बार – बार गंगा प्रसाद “गंगू” को पुस्तक विमोचन के लिए और 51 हजार रुपये के सम्मान के लिए पुकारा जा रहा है.. एक से एक सजी बजी सुंदर लेखिकाएं ताली बजा रहीं हैं। पुस्तक मेले में भीड़ ही भीड़ उमड़ पड़ी है। बड़े बड़े व्यंग्यकारों पर त्रिवेदी का कैमरा घूम रहा है, विमोचन होने वाली पुस्तकों का कोई नाम नहीं ले रहा धकाधक विमोचन चल रहे हैं। एक व्यंग्य के मठाधीश बाजू वाले डुकर से कह रहे हैं कि इस महाकुंभ में मुफ्त में आंखें सेंकने मिलती हैं, किताबों में यही तो जादू है वे बुलातीं भी हैं और अज्ञान को भी नष्ट करतीं हैं।…

इधर जब गंगू ने शौचालय के कमोड का नल खोला तो पानी दगा दे गया और तुरंत मोबाइल की बैटरी रोने लगी। 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 138 ☆ सेवा भाव के बहाने… ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ ☆

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “सेवा भाव के बहाने…। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 138 ☆

☆ सेवा भाव के बहाने ☆

सेवक राम जी चारों ओर अपने कार्यों का ढिंढोरा  पीट रहे थे। हर रविवार अखबारो में फ्रंट पेज पर उनकी उपस्थिति लगभग तय रहती है। समाज सेवा का उनका बरसों पुराना अनुभव रहा है। ये बात अलग है कि लोगों ने उनको देर से पहचाना।

अपनी तारीफ करने के चक्कर में अनजाने ही वो कुछ ऐसा भी बोल देते हैं कि अपने बिछाए जाल में खुद फंसने लगते। किन्तु उनके सूत्र उन्हें पहले ही आगाह कर देते हैं सो वे बच जाते और बिचौलिए पकड़ जाते। उनकी एक खूबी और है कि वो भावनाओं को पहचान कर रिश्ते बनाने में माहिर हैं, सबसे रिश्ते जोड़ते हुए काम पड़ने पर उनका  इस्तेमाल करना और फिर दूध  में पड़ी मख्खी की तरह फेक देना। एक – एक करके विश्वसनीय व्यक्तियों को दूर करने के बाद स्वघोषित महाराज बनने का सुकून उनके चेहरे पर साफ देखा जा सकता है। ये बात अलग है कि दूसरों को धोखा देने के लिए चेहरा उतारने की नाकाम कोशिश लगातार की जा रही है। उनके बारे में लोगों ने जो भी भविष्यवाणी की है वो सब सामने आती जा रहीं हैं किंतु वे तो सेवक हैं सो अपने नाम के अनुरूप सेवा देना आखिरी दम तक जारी रखेंगे। अन्ततः यही मुक्तक याद आ रहा है-

स्नेहिल डोर से बँधे रिश्ते, बदलते नहीं हैं।

बिना मौसम बाग में भी, फूल खिलते  नहीं है।।

अपना नसीब  स्वयं लिख सको, ऐसे कर्म करो।

बिना परिश्रम किये कोई, फल मिलते नहीं हैं।।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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