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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 151 ☆ अकिंचन की शक्ति… ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ ☆

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ (ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की  प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “अकिंचन की शक्ति...”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।) ☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 151 ☆ ☆  अकिंचन की शक्ति... ☆ लक्ष्य साधते हुए सीढ़ी दर सीढ़ी बढ़ते जाने के लिए दृढ़ निश्चयी होना बहुत आवश्यक होता है। अधिकांश लोग आया राम गया राम की तरह केवल समय पास करना जानते हैं। उन्हें कुछ करना- धरना नहीं रहता वो तो हो हल्ला करते हुए हल्ला बोल में शामिल होकर अपनी पहचान को बनाए रखने की जद्दोजहद में लगे रहते हैं। वैचारिक...
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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 215 ☆ व्यंग्य – भोजन वैविध्य… ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ (प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक व्यंग्य - भोजन वैविध्य...।)  ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 215 ☆   व्यंग्य - भोजन वैविध्य... इस देश में लोग चारा खा चुके हैं. दो प्रतिशत कमीशन ने पुल, नहरे और बांध के टुकड़े खाने वाले इंजीनियर बनाए हैं । सर्कस में ट्यूब लाइट और कांच, आलपीन खाते मिल ही जाते हैं । रेलवे स्टेशन पर बच्चे नशे के लिए पंचर जोड़ने का सॉल्यूशन चाव से खाते हैं । मंत्री, अफसर बाबू रुपए खाते हैं । किसी सह भोज में लोगो की प्लेट...
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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य # 190 ☆ “सोशल पर अवतरण दिवस…” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय (श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है आपका एक व्यंग्य  – सोशल पर अवतरण दिवस।) ☆ व्यंग्य — “सोशल पर अवतरण दिवस…” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆ अच्छे दिन आने वाले हैं ऐसा सोचकर कितना अच्छा लगता है। दुःख, परेशानियां, मुसीबतों के बीच जब खूब सारे लोग बधाईयां और शुभकामनाएं देने लगते हैं तो अच्छा तो लगता है,वो दिन अच्छा लगता है ये दिन झूठ मूठ का भले हो।साल भर में दो चार बार अच्छे दिन लाने को लिए आजकल सोशल मीडिया बड़ा साथ दे रहा है। आजकल अच्छे दिन का अहसास कराने के लिए...
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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार #193 ☆ व्यंग्य – साहित्यिक ‘ब्यौहार’ ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार ☆

डॉ कुंदन सिंह परिहार (वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपका एक अतिसुन्दर व्यंग्य  ‘साहित्यिक 'ब्यौहार'’। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।) ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 194 ☆ ☆ व्यंग्य ☆  साहित्यिक 'ब्यौहार' ☆ शीतल बाबू परेशान हैं। चार दिन से उनके पुराने मित्र बनवारी बाबू उनका फोन नहीं उठा रहे हैं। वे बार-बार लगाते हैं, लेकिन उधर से कोई...
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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 150 ☆ क्यों दाता बनें विधाता…? ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ ☆

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ (ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की  प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “क्यों दाता बनें विधाता...?”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।) ☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 150 ☆ ☆  क्यों दाता बनें विधाता...? ☆ प्रचार- प्रसार के माध्यमों से लोक लुभावन सपने दिखाना तो एक हद तक सही हो सकता है, किंतु मुफ्त में सारी सुविधाओं को देने से कामचोरी की आदत पड़ जाती है। जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं, अशक्त हैं उन्हें मजबूत करने के प्रयास हों। पर जाति, धर्म, अल्पसंख्यक के नाम पर समाज को विभाजित करके सुविधाओं का...
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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 47 ⇒ व्यंग्य – पाठक होने का सुख… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा (वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ "अभी अभी" के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका व्यंग्य - "पाठक होने का सुख"।)   अभी अभी # 47 ⇒ पाठक होने का सुख… श्री प्रदीप शर्मा    जो पढ़ सकता है, उसे पाठक होने से कोई नहीं रोक सकता! लिखने की बात अलग है। लिखने से कोई लेखक नहीं बन जाता। जवानी की कविता और प्रेम पत्र ने कईयों को कुमार विश्वास और कन्हैयालाल नंदन बना दिया है। एक लेखक की लेखनी का श्री गणेश, संपादक के नाम पत्र से भी हो सकता है। कुछ लेखक और अखबार वाले उन लोगों से संपादक के नाम पत्र लिखवाते भी हैं, जिनको छपास का रोग होता है। लिखते लिखते एक दिन ये लेखक हो ही जाते हैं। । एक पाठक को इन सब मुश्किलों से नहीं गुजरना पड़ता। वह एक अख़बार का नियमित...
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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार #193 ☆ व्यंग्य – मल्लू का ड्रॉइंग-कम-डाइनिंग रूम ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार ☆

डॉ कुंदन सिंह परिहार (वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपका एक अतिसुन्दर व्यंग्य  ‘मल्लू का ड्रॉइंग-कम-डाइनिंग रूम’। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।) ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 193 ☆ ☆ व्यंग्य ☆  मल्लू का ड्रॉइंग-कम-डाइनिंग रूम ☆ मल्लू ने मकान बनवाया। इंजीनियर साहब ने कहा बीस लाख में तुम्हें मकान में घुसा देंगे, लेकिन मल्लू पच्चीस लाख से...
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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 213 ☆ व्यंग्य – भाई भतीजा वाद… ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ (प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक व्यंग्य  – भाई भतीजा वाद...।)  ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 212 ☆   व्यंग्य – भाई भतीजा वाद... अंधेर नगरी इन दिनों बड़ी रोशन है। दरअसल अंधेर नगरी में बढ़ रही अंधेरगर्दी को देखते हुए नए चौपट राजा का चुनाव आसन्न हैं। इसलिए नेताजी ए सी कमरे में मुलायम बिस्तर पर भी अलट पलट रहे हैं, उन्हे बैचेनी हो रही है, नींद उड़ी हुई है। वे अपनी जीत सुनिश्चित कर लेना चाहते हैं। पत्नी ने करवट बदलते पति का मन पढ़ते हुए...
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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ माइक्रो व्यंग्य # 188 ☆ बैठे-ठाले — “जेंडर चेंज…” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय (श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है आपका एक माइक्रो व्यंग्य  – ——।) ☆ माइक्रो व्यंग्य # 188 ☆ बैठे-ठाले — “जेंडर चेंज...” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆ आंख खोलकर जब दुनिया देखता हूं तो बड़ी विषमता नजर आती है। अमीर है गरीब है, नर है नारी है, युद्ध है शान्ति है। बैठे - ठाले सोचा कि इन दिनों नारी सशक्तिकरण के नाम से खूब योजनाएं चल रहीं हैं।  अगले गणतंत्र दिवस परेड में तो अब सिर्फ महिलाएं ही परेड करेंगी ऐसी बात चल रही है। कहीं एक हजार महीना मिल रहा है, कहीं फ्री...
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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी# 35 ⇒ सर्कस… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा (वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ "अभी अभी" के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख - "सर्कस"।)   अभी अभी # 35 ⇒ सर्कस… श्री प्रदीप शर्मा    हम लोगों ने बचपन में कॉमिक्स नहीं पढ़े, टीवी पर डिस्ने वर्ल्ड, पोगो और nicks जैसे बच्चों के प्रोग्राम नहीं देखे, नर्सरी राइम्स नहीं गाई, बस अमर चित्र कथा पढ़ी और पिताजी के साथ सर्कस देखा। घर के पास ही तो था, चिमनबाग मैदान जहां अक्सर सर्कस का तंबू गड़ जाता था, जोर शोर से सड़कों, मोहल्लों पर प्रचार प्रसार होता था, आपके शहर में शीघ्र आ रहा है, खूंखार शेर के हैरतअंगेज कारनामे और मौत के कुएं में करतब दिखाते फटफटी सवार। दिल दहला देने वाले और मनोरंजन से भरपूर करतबों के साथ जेमिनी सर्कस। रोजाना दो शो ! दोपहर ३.३० बजे और शाम ६.३० बजे।। दिन भर जानवरों...
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